Saturday, 15 April 2017

पास्का पर्व , 2017

मेरे प्रिय भाईयों बहनों आज की पूजनविधि में  हम प्रभु के पुनरूत्थान पर मनन चिंतन करेंगे। योहन  11,33 में वचन कहता है - पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ। .......
हमने बीते दिनों में प्रभु येसु के दुखभोग एवं मरण की यादगारी मनाई। उनकी मृत्यु के बाद  उनके कुछ शिष्यों  ने उनकी पवित्र लाश  उतारी और उन्हें कब्र में रख दिया। प्रभु येसु के विरोधियों ने उनकी कब्र पर बडा सा पत्थर रखकर उस पर मूहर लगा दी यह सोचकर कि इसने पहले से कहा था कि वह तीसरे दिन जी उठेगा। न जाने कब उन के शिष्य आयेंगे और इसकी लाश  को ले जायेंगे। प्रभु के विरोधियां ने सोचा सारी कहानी का अंत वहां हो गया। सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन हम प्रेरित चरित  2, 24 में हम पढते हैं, जहां संत पेत्रुस कहते हैं  - ‘‘ ईश्वर  ने मृत्यु क बंधन खोलकर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असंभव था कि प्रभु येसु मृत्यु के वश  में रहे।’’ मृत्यु के अधीन, उसके अधिकार में उसके बंधन में रहना प्रभु येसु के लिए असंभव था।

प्रभु येसु के शिष्यों के अंदर भी डर था। और इसिलिए वे लोग भी सोच रहे थे कि सारी कहानी खत्म हो गई है, और वे जाकर एक कमरे में अपने-आप को बंद कर के छिप गये। अपने आप में ग्लानी महसूस कर रहे थे। अपने किये कार्यों पर ग्लानी व दुःख महसूस कर रहे थे कि दुखित क्षणों में हमने प्रभु को छोड दिया। हमने प्रभु का तिरस्कार किया। सबों पर उदासी छायी हुई थी। सब डरे हुए थे एक बंद कमरे में, मानो वे मरे हुए थे। 

संत योहन 20, में हम पढते हैं उनके बंद कमरे में पुनर्जिवित प्रभु येसु प्रवेश करते  हैं। और पुनर्जिवित प्रभु येसु का सामर्थ्य उस कमरे में भर जाता है। उनका प्रकाश  उस कमरे में भर जाता है। उनका जीवन उस कमरे में भर जाता है। इस तरह 2 तिमथी 1,10 में वचन कहता है - ‘‘ईसा ने मृत्यु का विनाश किया और अपने सुसमाचार के द्वारा अमर जीवन को अलोकित किया है।’’ जो शिष्य डरे हुए थे, असुरक्षा मसूस कर रहे थे कमरे में बंद थे, उन में प्रभु येसु ने एक नये जीवन का संचार किया। वे मरे -मरे थे उन पर प्रभु येसु ने जीवन का संचार किया। उनके उपर जो ग्लानी की भावना थी दुख से भरे थे, उन्हें प्रभु येसु ने आनन्द से भर दिया। जैसे कि एक पौधा, जो पानी के आभाव में मुरझा रहा हो, सूखने-सूखने को हो और अचानक उसे पानी किल जाए तो  वह फिर से खिल उठता है। हरा-भरा हो जाता है वैसे ही प्रभु के  शिष्यों में नई जान आ जाती है।

हम सुसमाचार में पढते हैं कि प्रभु येसु के प्रिय  शिष्याओं  में से एक मरियम मगदलेना और कुछ नारियां प्रभु येसु की कब्र की ओर जाती है। प्रातः का समय था वे आपस में सोच रहे थे कि हमारे लिए कौन कब्र को खोल देगा ताकि हम उनकी लाश  पर इत्र लगाएं। और ऐसा सोचते हुए वे कब्र के पास जा रही थी, सुसमाचार हमें बताता है कि जब वे वहां पहुंचती है तो कब्र खुली हुई थी। मरियम दौड कर आयी पेत्रुस और योहन को बुला लाई उन्होंने भी देखा कि कब्र खुली है और येसु की लाश  उसमें  नहीं है। और वह वहीं खडी रह गई और रोने लगी। तो स्वर्ग दूतों ने पूछा नारी क्यों रोती हो। उसने कहा कि क्योंकि वे मेरे गुरू की लाश  को ले गए हैं और  मैं नहीं जानती कि वह कहां है। बाद में प्रभु येसु स्वयं उससे पूछते हैं, नारी तुम क्यों रोती हो! और वह वही जवाब देती है। अंत में प्रभु येसु उन्हें नाम लेकर उसे पुकारते हैं "मरियम " और मरियम प्रभु येसु को पहचान लेती है। पुनर्जीवित प्रभु येसु का सामार्थ्य उसके अंदर प्रवेश  कर जाता है।

इस तरह हम देखते हैं कि सुसमाचार में पढते हैं कि करीब चालिस दिनों तक प्रभु येसु अपने शिष्यों के साथ रहे और उनको बार-बार विविध रूपों में दर्शन  देते हुए इस बात का अनुभव करा रहे थे कि देखो मैं मर गया था लेकिन अभी जी गया हूँ। जैसा कि प्रकाशना 1 :18 ग्रंथ में हम पढते हैं - ‘‘जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे पास है।  तो इस प्रकार करीब चालिस दिन तक प्रभु येसु ने बारम्बार अपनेशिष्यों को दर्शन  देकर इस बात का अनुभव कराया कि वे  जीवित हैं  और पुनरूत्थान पर उनका विश्वास  दृढ करवाया। और उनका जीवन परिवर्तित हो गया। 

प्रभु येसु के पुनरूत्थान ने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया। उनका जीवन दर्षन ही बदल गया। जीवन को देखने का नज़रिया बदल गया। उनके लिए जीवन का एक नया रास्ता खुल गया। और प्रभु के पुनरूत्थान का अनुभव इतना गहरा था कि हमें वचन बताता है कि वे जाकर प्रचार करने लगे।  फिलिपियों 3,10 में संत पौलुस कहता है - "मैं यही चाहता हूं कि येसु मसीह को जानूं और उनके पुनरूत्थान के सामार्थ्य का अनुभव करूं।’’
संत पेत्रुस प्रे. च. 2, 23-24 में प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते हैं। यह पहला उपदेश  था और प्रभु के शिष्यों का  पहला प्रचार। उनके उपदेश की विषय-वस्तु और केंद्र प्रभु का पुनरूत्थान था। वे पुनर्जीवित प्रभु का गहरा अनुभव लोगों के साथ बांटते हैं। प्रे. च. 4, 35 में हम पढते हैं - प्रभु येसु के शिष्य बडे सामार्थ्य के साथ प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते थे और उन पर बडी कृपा बनी रहती थी। जब हम भी पुनर्जीवित येसु का साक्ष्य देंगे हम पर भी प्रभु की कृपा बनी रहेगी।

 हम ईसाईयों को चाहिए कि हम पुनर्जीवित मसीह का साक्ष्य देंवे। कभी-कभी देखने में आता है कि हम प्रभु मसीह के क्रूस पर बलिदान तक ही अपने साक्ष्य को सीमित रखते हैं। और प्रभु येसु के बलिदान के बारे में हम साक्ष्य देते हैं। पर सच्चे  मसीही वो हैं जो प्रभु येसु के पुनरूत्थान के बारे में साक्ष्य देते हैं। आज गैर ख्रीस्त  से भी यदि हम पूछें कि आप ईसा मसीह के बारे में क्या जानते हैं तो वे बतायेंगे कि उन्होंने सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम व क्षमा के मार्ग की न केवल शिक्षा  दी परन्तु अपने जीवन में उसे आत्मासात भी किया। उन्होंने क्रूस पर मरते समय भी अपने विरोधियों को क्षमा दी आदि। पर बहुत ही विरले हम उनके मुख से प्रभु के पुनरूत्थान के बार में सुनेंगे। क्यों? क्यों लोग प्रभु के पुनरूत्थान से अनभिज्ञ है? क्योंकि हम पुनर्जीवित प्रभु का साक्ष्य नहीं देते।    1 कुरिं 15,17 में वचन कहता - ‘‘यदि येसु मसीह का पुनरूत्थान नहीं हुआ है तो हमारा विश्वाश  व्यर्थ है।’’ हम मसीहियों के विश्वाश  का आधार है प्रभु येसु का पुनरूत्थान। हम किसी मरे हुए व्यक्ति की आराधना नहीं कर रहे हैं। हम पत्थरों अथवा मूर्तियों की नहीं,  हम एक ज़िदा खुदावन्द की आराधना करते हैं।  हम पुनर्जीवित येसु मसीह की आराधना करते हैं। जितनी यह बात  हमारे जीवन मजबूत होती जायेगी उतना आधीक हम प्रभु येसु के जीवन  का अपने जीवन में अनुभव करने लगेंगे। तो हम हर मसीही पुनर्जीवित येसु के साक्षी हैं। और हमें प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देना है।

यह साक्ष्य हमें  हमारे कर्मों एवं वचनों दोनों से देना है। हमें पुनर्जीवित मसीह की घोषणा करना है। हमें लोगों को यह बतलाना है कि हमारा प्रभु जिंदा खुदा  है। और अपने कर्मों द्वारा भी यह दिखलाना है कि हमारा प्रभु हममें, हमारे अन्दर, हमारे जीवन में जिंदा है। गलातियों  को लिखे  पत्र 
2 :20 में  में संत पौलुस कहते हैं - ‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित है।’’ पुनर्जीवित मसीह मुझमें जीवित है। वो मेरे अंदर कार्य कर रहा है। वो मेरे अंदर अपने राज्य के फल उत्पन्न कर रहा है। कब्र से निकलकर वो मेरे जीवन में समाहित हो गया है। हम सब संत पौलुस के साथ आज यही बोलें - मुझमें अब से येसु जिंदा है। मेरा प्रभु मुझमें ज़िंदा है. मसीह का जीवन मुझमें मुझमें है।  मसीह का खून मेरे रगों में बह रहा है.  और यदि मसीह मुझमें जीवित है तो फिर मेरे कार्य, मेरी बातें, मेरा व्यवहार और मेरे विचार भी मसीह की तरह ही होना चाहिए। प्रभु का पुनरूत्थान मनाते समय यही भावना और यही घोषणा हम सब की होनी चाहिए। आमेन।

Saturday, 8 April 2017

Introduction for Palm Sunday Liturgy in Hindi

दुःखभोग अथवा खजूर रविवार


आज से वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण पुण्य सप्ताह आरंभ होता है। विशेषकर अगला गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रविवार वर्ष-भर में सबसे पवित्र दिन हैं। इन दिनों में घटी मानव इतिहास की सबसे मुख्य व केंद्रिय घटना ईशपुत्र येसु मसीह के दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान को माता, कलीसिया पुनः हमारे सामने रखती है। हम ख्रीस्तीय न केवल इन घटनाओं को ही देखें, परन्तु प्रार्थना तथा दृढ़निश्चय के साथ पूरी तरह उनमें सक्रिय रूप भाग लें।
आज का दिन प्रभु के दुःखभोग का खजूर रविवार कहा जाता है। हम पवित्र सप्ताह केवल प्रभु येसु मसीह की येरूसालेम यात्रा के ही कारण नहीं, वरन् उनके मनुष्य रूप में आने के उद्देश्य याने उनके दुःखभोग,मरण और पुनरूत्थान के कारण ही मनाते हैं। बेथानिया से जुलूस में राजा अपने राजाभिषेक एवं गद्दी पर बैठने येरूसालेम आये,परन्तु इस राजा का मुकुट काँटों का मुकुट है और उसकी गद्दी क्रूस है।

आज की प्रार्थनाएँ, भजन, पाठ तथा क्रियाएँ, यह सब बताती हैं कि हम सबके सामने प्रभु के प्रति अपना विश्वास व श्रद्धा प्रकट करते हैं। हम अपने उस राजा के साथ जुलूस में जाते हैं जिन्होंने हमारे लिए एक घमासान लड़ाई लड़ी। इसीलिए खजूर, जो विजय का चिह्न है, अपने हाथ में लेकर हम जुलूस निकालते हैं।

आज की धर्म-विधि में सब से पहले खजूरों को आशिष दी जाती है।तब पवित्र सुसमाचार से प्रभु येसु के येरूसालेम प्रवेश का वर्णन पढ़ा जाता है।
सचमुच हम आज भी उसी येसु मसीह के जुलूस में जाते हैं जिनके साथ उस पहले खजूर रविवार के दिन यहूदी लोग गए थे। येसु हमारे बीच तीन प्रकार से उपस्थित हैं-क्रूस पर चिन्ह के रूप में, उनके प्रतिनिधि पुरोहित के रूप में और हम सब के रूप में जो उनके नाम पर यहाँ एकत्रित हुए हैं।

यह जुलुस हमारे उस अंतिम जुलूस की निशानी है जिसमें हम प्रभु येसु के साथ स्वर्गीय येरूसालेम में सदा के लिए प्रवेश करेंगे।

अब हम उस प्रथम खजूर रविवार की याद करें जिस दिन प्रभु येसु मसीह स्वयं अपने शिष्यों के साथ बेथानिया से येरूसालेम गये थे। वे क्यों वहाँ गए? राजा बनने? किसी भी हालत में, सांसारिक राजा बनने नहीं।
उनका मुकुट काँटों का मुकुट था। वे हमारे लिए दुःख भोगने और मर जाने के लिए गए और अपने इस घोर दुःखभोग एवं मरण द्वारा पुनरूत्थान के लिए गए। हमारी मुक्ति उनका अनुसरण करने पर निर्भर है, यदि हम उनके साथ जी उठना चाहते हैं तो हमें उनके साथ मरना भी है। इसीलिए आज की मिस्सा की पहली प्रार्थना में हम इस प्रकार निवेदन करते हैंः-
‘‘उनके दुःखभोग के अनुसार चलने पर हमें उनके पुनरूत्थान के भी भागी बना दें।’’

खजूर की डालियों के साथ भजन गाते हुए हमारा जुलूस, आज की मिस्सा का प्रवेश गान है। मिस्सा हमें कलवारी पहाड़ी पर हुए मुक्ति कार्य की याद दिलाती व उसे सांस्कारिक चिन्हों के रूप में सजीव करती है, जबकि खजूरों के साथ जुलूस, मुक्तिदाता के पुनरूत्थान का विजय-स्मृति चिन्ह है। घर जाकर हम अपनी खजूर की डालियाँ आदर के साथ कमरों में लगे क्रूस पर लगा देंगे क्योंकि उन्हें धर्म-मण्डली की विशेष आशिष मिली है। वहाँ से ये हमें प्रभु येसु के प्रति अपनी भक्ति व श्रद्धा की याद दिलाती रहें।
पास्का का अपना पाप-स्वीकार हमें पुण्य बृहस्पतिवार के मिस्सा के पूर्व ही करना चाहिए। शनिवार तक ठहरना पवित्र सप्ताह की कृपाओं से अपने आप को वंचित रखना होगा।

खजूर रविवार, २०१७ का प्रवचन



इसायाह ५०, ४-७
फिलिपियों २,६-७
मत्ती २६, १४-६६

येसु का येरूसलेम में प्रवेश  करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह यहूदियों के पास्का पर्व का समय था। प्रभु येसु येरूसलेम में प्रवेश  करते हैं क्योंकि उनका समय आ चुका था। 21 मार्च 2017 को न्युयाॅर्क के एक यहूदियों के प्रार्थना गृह में बम होने की अपवाह के बाद उस प्रेमिस से प्री-सकूल के बच्चों को आनन-फानन में सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। इस प्रकार की कई घटनाओं के बारे में हम पढते और सुनते हैं। कहीं तुफान अथवा भूकम्प की से बचने के लिए लोग अपने घरों को अपने आशियांनों को छोडकर सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं तो कहीं आतंकियों या फिर विरोद्धी सेना से बचने के लिए सुरिक्षत स्थानों को तलाशते हैं। क्योंकि हम सब मौत से डरते हैं। हम मरने से डरते हैं। कोई ज़्याद तो कोई कम, पर मौत से डर हर-किसी को लगता है। साधरणतः सभी अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं। हम जीना चाहते हैं। हम नहीं जानते कि हम कब तक जीयेंगे पर जीवन से हमें प्रेम है। परन्तु प्रभु येसु इस संसार में इस लिए आये कि वे मारे जायें। वो मौत को गले लगाकर मौत को हराने के लिए इस संसार में आये। वे इसलिए आये कि उनके मारे जाने से हमें जीवन मिले। उन्होंने मरना स्वीकार किया ताकि हम जीवित रहें।
वे इस मौत को एक मज़बूरी के तौर पर नहीं, परन्तु पिता की मर्जी व उसकी को योजना को पूर्णता तक पहुुँचाने के लिए स्वीकार करते हैं। उनके जीवन का मकसद ही यह था कि वो अपने स्वर्गीक पिता की इच्छा को पूरा करे। संत योहन 4, 34 में वे कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा है उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।’’ पिता की इच्छा को, पिता की मरजी़ को, पिता की चाह को पूरा करना ही प्रभु येसु का भोजन था। पिता की इच्छा क्या थी? संत पौलुस हमें बतलाते हैं रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायष्चित करें और हम  विश्वास  द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ यह है पिता ईश्वर  की इच्छा। प्रभु येसु अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए व्याकुल थे। संत लूकस 12,50 में प्र्रभु कहते हैं - ‘‘मुझे एक और बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ।" हम सब जानते हैं कि प्रभु येसु ने अपनी सेवकाई प्रारम्भ करने के पहले यर्दन नदी में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लिया था जो कि जल का बपतिस्मा था। अब वे रक्त का बपतिस्मा ग्रहण करने के लिए व्याकुल थे। एक ऐसा बपतिस्मा जो सारे संसार के पापों की क्षमा के लिए वे लेने वाले थे। वे इस दुनिया के, व सारी मानव जाती के नये पुराने सब पापों को सूली पर अपना खून बहाकर माफ करने वाले थे। व सबके पापों का दाम चुकाने वाले थे। इस पवित्र बलिदान के द्वारा वे पिता से हम  सब का पुनः मेल कराने वाले थे। सारी कायनात के उद्धार को संपन्न करने वाले थे। एक महान बलिदान देने वाले थे। इसलिए जब समय पूरा हुआ तो वे अपने इस अंतिम मिशन  की ओर चल पडते हैं। योहन 13, 1 में हम पढते हैं - ‘‘ईसा जानते थे कि मेरी घडी आ गयी है और मुझे यह संसार छोडकर पिता के पास जाना है। वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने वाले थे।’’ आज हम उस दिन की याद करते हैं जब प्रभु अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने के लिए येरूसलेम की ओर बढते हैं। हमारे प्रति पिता के प्रेम का सबूत देने के लिए वे उस नगर में प्रवेश  करते हैं जहाँ उनके प्राणों के दुश्मन उन्हें  क्रूरतापूर्वक मार डालने की योजनायें बना रहे थे।
आज प्रभु येसु, सुसमाचार की सच्चाई को अपने आपमें धारण करते हैं और उसकी घोषणा करते हैं। उन्होंने अपने षिष्यों से कहा था - ‘‘जब तक गेहूं  का दाना जमीन पर गिरकर मर नहीं जाता वह तब तक अकेला रहता है, पर जब वह मर जाता है तब वह बहुत फल उत्पन्न करता है।’’ येसु स्वयं वह बीच है जो येरूसलेम की उस प्रचीन भूमि पर गिरा। ये वही गेंहूँ का दाना है जो मरकर बहुत फल उत्पन्न करता है, जो मुक्ति के फल उत्पन्न करता है। अतः मानवों की मुक्ति के लिए उनका मरना आवश्यक  था ।
हम हमारी मृत्यु से दूर भागते हैं। परन्तु प्रभु येसु अपनी मौत को ख़ुशी  से गले लगाने के लिए येरूसालेम में प्रवेश  करते हैं। वे मौत के भय से पीछे नहीं हटते। क्योंकि वे अपनी मौत की कीमत जानते थे। वे जानते थे कि उनका हर दुख, हर दर्द, हर एक कोडों की मार, उनका हर घांव, काटों वो ताज, और हाथ पैरों की वो कीलें ये सब मानव के पापों की मुक्ति के लिए आवश्यक  हैं। प्रभु येसु के लिए अपने मानवीय जीवन से महान है पापी आत्माओं का उद्धार।
प्रभु येसु स्वर्ग के राज्य की स्थापना करने के लिए इस जहान में आये थे। जब यर्दन नदी में अपने बपतिस्मा के बाद उन्होंने सुसमाचार का प्रचार प्रारम्भ किया उनका पहला सन्देश यही था। पश्चाताप करो, स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। विभिन्न कहानियों एवं दृष्टांतों द्वारा वे इस राज्य के बारे में लोगों को समझते रहे। पर लोग उन्हें सही अर्थों में समझ नहीं पाये। क्योंकि ईश्वर  का राज्य संसार के राज्यों और ईश्वर  का शासन सांसारिक राजाओं के शासन से बहुत ही भिन्न है। यह हिंसा एवं खुन खराबे के साथ सत्ता हासिल करने वाला राज्य नहीं। यह निर्बलों पर निरंकुष शासन करने वाला राज्य नहीं। यह गरीबों और बेसहारों का शोषण करने वाला राज्य नहीं। परन्तु यह है विनम्रता, अंहिसा, प्रेम, दयालुता और क्षमा का राज्य। दुनिया के राजा अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए हथियार बंद सेनाओं के साथ अपने दुष्मनों पर चढाई करते हैं। पर आज सारी दुनिया का राजा निहत्थे ही महज बारह अनुयायों के साथ पूरे संसार पर विजय पाने चल पडा है। उनको रथ, घोडों अथवा पालकी की ज़रूरत नहीं क्योंकि उनका राज्य इस दुनिया के दिखावटी वैभव पर टिका हुआ नहीं है। ये विनम्रता का राज्य है इसलिए उनके लिए एक तुच्छ समझा जाने वाला जानवर, गधा ही काफी था। वे गधे की सवारी करते हुए, विनम्रता का पाठ पढाते हुए वे येरूसलेम की ओर निकल पडे हैं। आज के दूसरे पथ में संत पौलुस हमें बताते हैं - "उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया है। और मनुष्यों का रूप धारण करने के बाद वह मरण तक, हाँ क्रूस के मरण तक, आज्ञाकारी बन गये ओर इस प्रकार उन्होंने अपने को और भी दीन बना लिया है। इसलिए ईश्वर  ने उन्हें महान बना दिया है।"
जैसा कि प्रारम्भ में बताया गया है कि ये सब उस समय सम्पन्न होता है जब यहूदी लोग अपना वार्षिक पास्का पर्व मनाने पवित्र नगरी येरूसलेम आते हैं। यह पर्व मिस्र देश  से उनकी आज़ादी की धार्मिक यादगारी पर्व है जब ईश्वर  ने उन्हें मेमने के रक्त के चिन्ह द्वारा दूत की तलवार एवं फिराऊँ की गुलामी से बचाया था। ये उनकी मुक्ति का पर्व था। नये विधान का मेमना, प्रभु येसु शैतान रूपी फिराऊँ और पाप रूपी मिस्र से सारी मानव जाती को छुडाने के लिए इसी समय को चुनता हैं। हज़ारों यहूदी तीर्थ यात्रा करते हुए येरूसलेम पहुंच रहे थे। उसी बीच गधे पर सवार यहूदियों का राजा येरूसलेम की ओर बढ़ता है। तीर्थ यात्री उनके सामने रास्ते पर अपने कपडे बिछाते एवं जैतुन की डालियां लहराते हुए अपने राजा का स्वागत करते व भजन गाते हुए कहते हैं - होसन्ना, होसान्ना, होसान्ना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम पर आते हैं स्वर्ग प्रभु को होसान्ना!!!
आज हम प्रभु येसु के साथ उस भीड में  उनके पीछे-पीछे येरूसलेम की पवित्र नगरी मेंप्रवेश  करें। आज से हम पवित्र सप्ताह का आरम्भ कर रहे हैं। यह वास्तव में अति पवित्र सप्ताह है। यह वह मुल्यवान समय है जब हमारी मुक्ति का कार्य सम्पन्न हुआ। विभिन्न प्रकार के लोग इस भीड मे प्रभु के साथ येरूलेम में प्रवेश  कर रहे हैं। हम भी इस भीड के साथ पवित्र नगरी मेंप्रवेश  करें। और हमारी मुक्ति के उन मुल्यवान पलों को हमारे जीवन में जिंदा करें। सैकडों की भीड जो आज होसान्ना गा रही है, जो आज प्रभु की तारीफ कर रही है, तीन दिनों के बाद - इसे क्रूस दो, इसे क्रूस दो कह कर चिल्लाएगी। तीन सालों तक उनके करीब रहकर उनके वचनों को सुनने वाले व चिन्ह और चमत्कार देखने वाले शिष्य  भाग खडे होंगे, सबसे भरोसेमंदशिष्य  पेत्रुस, याकूब और योहन गेथसेमनी की प्राणपीडा के समय प्रार्थना करके उन्हें ढाढस बंधाने की जगह, सो जायेंगे। पिलातुस उन्हें निर्दोष मानकर रिहा करने का मन बनाने पर सारे यहूदी नेता और भीड उनके विरूद्ध एक स्वर में उन्हें क्रूस देने की गुहार लगाएंगे। उनके साथ मर जाने की बात कहने वाला पेत्रुस उन्हें पहचानने तक से इनकार कर देगा। उनका ही करीबी मित्र चाँदी के चंद सिक्कों के बदले उन्हें बेच देगा। झूठादोषारोपण, अन्यायपूर्ण दंड़, सैनिकों की क्रूरता, उनके द्वारा किया गया अपमान, सब के द्वारा ठुकराया गया एक अभागे इंसान से येसु कलवारी के पहाड़ पर मुक्ति का महायज्ञ सम्पन्न करने जा रहे हैं। उनके इन अत्यंत दुःखमयी पलों में उनकी प्यारी माँ मरिया, कुछ धार्मिक स्त्रियाँ, संत योहन, अरिमिथिया का युसूफ एवं निकोदेमुस उनके आस-पास रहते हैं। जब हम प्रभु के साथ मुक्ति के इन पलों को मनाने जा रहे हैं तो हम अपने आप से पुछें कि मैं किसका किरदार अदा करने जा रहा हूँ? उस धोखेबाज भीड का जो कभी होसन्ना तो कभी क्रूस देने की बात कहती है? या उन शिष्यों  का जो डर के मारे उन्हें छोडकर भाग खडे होते हैं अथवा उन्हें पहचाने से भी इनकार कर देते हैं? या फिर उन सैनिकों का जो अपने ही प्रभु ईश्वर पर हाथ उठाते हैं, जो अपने ही मुक्तिदाता पर कोडे बरसाते हैं? या फिर माता मरियम, धार्मिक नारियों एवं संत योहन का जो कि प्रभु के इन असहय दुखों की घडी में उनके साथ रहे व उनके दुखों में भागीदार हुए? या फिर उस भले डाकू का जो यह कहता है कि प्रभु आप जब अपने राज्य में आयेंगे तो मुझे याद कीजिएगा। सारी जिंदगी बुराईयों में बिताने के बाद भी अंतिम क्षणों का उसका पश्चाताप उसे स्वर्ग दिला देता है। प्रभु उससे कहते हैं आज ही तुम मेरे साथ स्वर्ग में होंगे। उसने विश्वास  किया कि येसु उसको अनन्त मृत्यु से बचा सकते हैं। वचन कहता है रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर  ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायष्चित करें और हम विष्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ आइये हम हमारे कमजोर टूटे व जर्जर विश्वास  को बटोरते हुए, अपनी बिखरी हुई मानवता को समटते हुए इस पवित्र एवं मुक्ति के सप्ताह में प्रवेश करें। प्रभु के साथ हमारी मुक्ति के उन पलों को सजीव करें, जब हमारे प्रभु येसु ने दुःख भोगा, क्रूस पर चढाये गये मर गये, दफनाये गये व तीसरे दिन वे फिर जी उठे।
आमेन।