Saturday, 8 April 2017

Introduction for Palm Sunday Liturgy in Hindi

दुःखभोग अथवा खजूर रविवार


आज से वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण पुण्य सप्ताह आरंभ होता है। विशेषकर अगला गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रविवार वर्ष-भर में सबसे पवित्र दिन हैं। इन दिनों में घटी मानव इतिहास की सबसे मुख्य व केंद्रिय घटना ईशपुत्र येसु मसीह के दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान को माता, कलीसिया पुनः हमारे सामने रखती है। हम ख्रीस्तीय न केवल इन घटनाओं को ही देखें, परन्तु प्रार्थना तथा दृढ़निश्चय के साथ पूरी तरह उनमें सक्रिय रूप भाग लें।
आज का दिन प्रभु के दुःखभोग का खजूर रविवार कहा जाता है। हम पवित्र सप्ताह केवल प्रभु येसु मसीह की येरूसालेम यात्रा के ही कारण नहीं, वरन् उनके मनुष्य रूप में आने के उद्देश्य याने उनके दुःखभोग,मरण और पुनरूत्थान के कारण ही मनाते हैं। बेथानिया से जुलूस में राजा अपने राजाभिषेक एवं गद्दी पर बैठने येरूसालेम आये,परन्तु इस राजा का मुकुट काँटों का मुकुट है और उसकी गद्दी क्रूस है।

आज की प्रार्थनाएँ, भजन, पाठ तथा क्रियाएँ, यह सब बताती हैं कि हम सबके सामने प्रभु के प्रति अपना विश्वास व श्रद्धा प्रकट करते हैं। हम अपने उस राजा के साथ जुलूस में जाते हैं जिन्होंने हमारे लिए एक घमासान लड़ाई लड़ी। इसीलिए खजूर, जो विजय का चिह्न है, अपने हाथ में लेकर हम जुलूस निकालते हैं।

आज की धर्म-विधि में सब से पहले खजूरों को आशिष दी जाती है।तब पवित्र सुसमाचार से प्रभु येसु के येरूसालेम प्रवेश का वर्णन पढ़ा जाता है।
सचमुच हम आज भी उसी येसु मसीह के जुलूस में जाते हैं जिनके साथ उस पहले खजूर रविवार के दिन यहूदी लोग गए थे। येसु हमारे बीच तीन प्रकार से उपस्थित हैं-क्रूस पर चिन्ह के रूप में, उनके प्रतिनिधि पुरोहित के रूप में और हम सब के रूप में जो उनके नाम पर यहाँ एकत्रित हुए हैं।

यह जुलुस हमारे उस अंतिम जुलूस की निशानी है जिसमें हम प्रभु येसु के साथ स्वर्गीय येरूसालेम में सदा के लिए प्रवेश करेंगे।

अब हम उस प्रथम खजूर रविवार की याद करें जिस दिन प्रभु येसु मसीह स्वयं अपने शिष्यों के साथ बेथानिया से येरूसालेम गये थे। वे क्यों वहाँ गए? राजा बनने? किसी भी हालत में, सांसारिक राजा बनने नहीं।
उनका मुकुट काँटों का मुकुट था। वे हमारे लिए दुःख भोगने और मर जाने के लिए गए और अपने इस घोर दुःखभोग एवं मरण द्वारा पुनरूत्थान के लिए गए। हमारी मुक्ति उनका अनुसरण करने पर निर्भर है, यदि हम उनके साथ जी उठना चाहते हैं तो हमें उनके साथ मरना भी है। इसीलिए आज की मिस्सा की पहली प्रार्थना में हम इस प्रकार निवेदन करते हैंः-
‘‘उनके दुःखभोग के अनुसार चलने पर हमें उनके पुनरूत्थान के भी भागी बना दें।’’

खजूर की डालियों के साथ भजन गाते हुए हमारा जुलूस, आज की मिस्सा का प्रवेश गान है। मिस्सा हमें कलवारी पहाड़ी पर हुए मुक्ति कार्य की याद दिलाती व उसे सांस्कारिक चिन्हों के रूप में सजीव करती है, जबकि खजूरों के साथ जुलूस, मुक्तिदाता के पुनरूत्थान का विजय-स्मृति चिन्ह है। घर जाकर हम अपनी खजूर की डालियाँ आदर के साथ कमरों में लगे क्रूस पर लगा देंगे क्योंकि उन्हें धर्म-मण्डली की विशेष आशिष मिली है। वहाँ से ये हमें प्रभु येसु के प्रति अपनी भक्ति व श्रद्धा की याद दिलाती रहें।
पास्का का अपना पाप-स्वीकार हमें पुण्य बृहस्पतिवार के मिस्सा के पूर्व ही करना चाहिए। शनिवार तक ठहरना पवित्र सप्ताह की कृपाओं से अपने आप को वंचित रखना होगा।

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