आगमन का पहला रविवार वर्ष - स
पहला पाठ यिरिमियाह ३३,१४-१६
दुसरा पाठ थेसलनिकयों ३, १२. ४,२
सुसमाचार लुकास २१, २५-२८.-३६
आज से पवित्र माता कलीसिया पवित्र आगमन काल की शुरूआत कर रही है। नबी यिरिमियाह के ग्रंथ से लिए आज के पहले पाठ में हम पढते हैं - प्रभु कहता है: वे दिन आ रहे हैं... नबियों के ग्रंथ में यह वाक्यांश कई बार आता है। नबी इन शब्दों के द्वारा इस्राएली जनता के उद्धार की भविष्यवाणियां करते हैं खासकरके मसीहा के आगमन के विषय में। जब हम मसीहा के आगमन की चर्चा करते हैं तो पवित्र बाइबल हमें उनके दो आगमनों के बारे में बतलाती है। एक उनका देहधारण करके मनुष्य बनकर इस दुनियां में आना व दूसरा उनका अंतिम महिमामय आगमन जब वो इस दुनिया का न्याय करने आयेंगे। इन दोनों घटनाओं की याद दिलाने के लिए माता कलीसिया ने पवित्र आगमनकाल निर्धारित किया है। चार सप्ताहों का यह समय हमें प्रभु के आने की याद दिलाता है कि प्रभु येसु परम पिता का इकलौता बेटा हमें पापों की दासता से छुडाने और हमें पिता के पास वापस ले जाने इस दुनिया में आया जिसे हम मसीह का प्रथम आगमन कहते हैं. और जिसे हम ख्रीस्त जयंति के रूप में प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को मनाते हैं। इस मान से आगमनकाल ख्रीस्त जयंति मनाने की तैयारी का समय होता है। इस तैयारी के तीन मुख्य पहलू होते हैं-
1. हमारी मुक्ति की वह घटना जब शब्द देह बना। हम इस महान रहस्यमय ईश-प्रेम की घटना पर मनन-चिंतन करते हैं कि किस प्रकार से ईश्वर ने अपने अनंत प्रेम से प्रेम किया है. (यिरिमियाह 31,3)।
2. वही प्रभु येसु मेरे व्यक्तिगत जीवन में एक जीवित सच्चाई बनकर आना चाहता है। तो इस आगमनकाल में यही जीवित येसु मेरी सारी तैयारियों का केंद्र होना चाहिए। जब मैं क्रिस्मस के बारे में एक पल आँखें मूंद कर कल्पना करूं तो मेरे जेहन में क्या चित्र उभरता है? ईमानदारी से कहूँ तो - गौशाला, बहुत सारी सजावट, बहुत बडी भीड, पकवान आदि। क्योंकि बचपन से ही मैं क्रिस्मस पर यही सब देखता आ रहा हूँ। यदि बालक येसु के बारे में कुछ सोचूं तो बालक येसु की मूर्ति दिमाग में आती है जिसे लेकर कैरोल के लिए जाते हैं या फिर क्रिब में रखते हैं और जिसका हम चुम्बन करता हैं। ये सब बातें बालक येसु के पास जाने के माध्यम हो सकते हैं कि लेकिन बालक येसु इन सब से परे एक जीवित सच्चाई है। वह एक जिंदा खुदा है, जो मेरे जीवन में आने वाला है। मैं मूर्ती वाले बालक येसु की नहीं पर मरियम की कोख से जन्में जीवित येसु, जो कि पवित्र साक्रामेंट में मेरे दिल में आने वाले हैं उनकी राह देखता हूँ। जितना अधिक मुझे मेरे येसु से प्यार है उतना ही अधिक मैं उनके आने के इंतजार में बेचैन व बेताब रहुंगा। जितनी अधिक मुझे मुक्ति की जरूरत है उनता अधिक मैं मेरे मुक्तिदाता से मिलने को आतुर रहूंगा। मुझे भोर की प्रतीक्षा करने वाले पहरेदारों से भी अधिक प्रभु की प्रभु की राह देखना चाहिए जैसा कि स्तोत्र 130, 6 में लिखा है। या फिर जल के सूखी संतप्त भूमि की तरह, प्रभु दर्शन के लिए मेरे आत्मा तरसना चाहिए जैसा कि स्तोत्र 63, 2 में स्तोत्रकार कहता है।
3. तीसरा पहलू है प्रभु येसु का अंतिम आगमन।ख्रीस्त जंयति के लिए हमारी जो तैयारी है वह हमें मसीह के अंतिम आगमन की याद दिलाती है कि जैसे प्रभु येसु 2000 साल पहले पिता ईश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार इस दुनिया में मानव बनकर आये थे वैसे ही वे अपनी प्रतिज्ञानुसार हमें अपने साथ ले जाने फिर आयेंगे। प्रभु का वचन आज के पहले पाठ में कहता है - ’’मैं दाऊद के घराने के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूंगा। प्रभु अपना वादा पूरा करेंगे जैसा उन्होंने संत योहन 14,3 में कहा है - ’’मैं वहाँ जाकर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने के बाद फिर आऊँगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊगा, जिससे जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी रहो।’’ अपने पहले आगमन में येसु हम मनुष्यों को जो कि अपने पापमय स्वभाव के कारण पिता के घर का रास्ता भटक गये थे, उन्हें पिता के घर का रास्ता बताने आये। पिता के घर हमें वापस ले जाने के लिए, इस नश्वर संसार से व उजड जाने वाले इस घर से हमें अपने वास्तविक घर में, ले जाने के लिए येसु स्वयं रास्ता बन गये। (संत योहन 14,6) हमें स्वर्ग तक ले जाने के लिए वे एक सीढी बन गये। (संत योहन 1, 51) और हमें अपने साथ वापस ले जाने के लिए वे दूसरी बार फिर आएंगे.
तो जब हम इस आगमन काल में प्रभु येसु के आने की तैयारी कर रहे हैं हमें उनके दोनों आगमनों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। और शायद उनके अंतिम आगमन को और भी ज्यादा गंभीरता से लेना चाहिए। क्योंकि आज का सुसमाचार हमें बतलाता है कि ‘‘कहीं ऐसा न हो कि भाग-विलास, नशे और इस संसार की चिंताओं से तुम्हारा मन कुंठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे। क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पडेगा।’’
इसलिए मसीह के अगामन की तैयारी में हमें क्या करना चाहिए आज का वचन हमें बतलाता है - संत लूकस 21,36 - ‘‘जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो।’’ हमें सजग रहकर प्रार्थना में लगे रहना चाहिए। आगमनकाल में हम अधिक समय प्रार्थना में बिताना चाहिए। संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में हमें कहते हैं - ‘‘आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सबों के प्रति बढता और उमडता रहे। इस प्रकार वह उस दिन तक अपने हृदयों को हमारे पिता ईश्वर के सामने पवित्र और निर्दोष बनाये रखें, जब हमारे प्रभु ईसा अपने सब संतों के साथ आयेंगे।’’ यही है आगमन की सच्ची तैयारी। प्रभु के प्रेम में व एक दूसरे के प्रेम में बढते हुए हर रोज पवित्र बने रहें। क्योंकि जो पवित्र हैं वे ही प्रभु के दर्षन कर पायेंगे। (संत मत्ती 5, 8)।
आइये इस आगमनकाल में हम जीवित येसु से मिलने के लिए अपने आपको तैयार करें। आमेन।
आत्मा की तलवार, प्रभु का वचन आपको आगमनकल में अच्छी तैयारी करने का सामर्थ्य प्रदान करें ।