Friday, 8 January 2021

प्रभु येसु का बपतिस्मा 10 January 2021 Hindi Reflection by Fr. Preetam Vasuniya

इसायाह 55:1-11

1 योहन 5:1-9

मरकुस 1:7-11

आज हम हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के बपतिस्मा का पर्व मना रहे हैं। हर साल प्रभु के बपतिस्मा के साथ ख्रीस्त जंयती काल समाप्त होता है और हम साधारण पूजनविधी में प्रवेश  करते हैं। पवित्र सुसमाचार में प्रभु के जन्म बाल्यकाल के बारे हम थोडा ही वर्णन पाते हैं। पवित्र सुसमाचार उनके बारह से तीस साल तक के जीवन के बारे में हमें कुछ भी नहीं बताता। संत लूकस इसके बारे में सिर्फ इतना कहते हैं कि ‘‘ईसा अपने माता-पिता के साथ नाज़रेत गये उनके अधीन रहे।’’ याने उन्हेंने 18 साल का अपना जीवन अपने माता-पिता के साथ बिताया, उनके अधीन रहकर, उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए उनके दैनिक कार्यों में उनकी मदद करते हुए। इसके बाद तीस वर्ष की आयु होने पर वे अपना घर माता-पिता को छोडकर जिस मिशन को जिस उद्देश्य को लेकर इस संसार में आये थे उसे पूरा करने के लिए चल पडते हैं। सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने स्वयं को प्रकट करने के पहले वे यर्दन नदी की ओर जाते हैं जहाँ पर योहन बपतिस्ता लोगों को पाप क्षमा का बपतिस्मा दे रहा था। प्रभु स्वयं वहाँ लागों की भीड में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लेने के लिए पानी में उतरते हैं। पवित्र त्रित्व का दूसरा व्यक्ति, इस दुनिया का सृष्टीकर्ता, अनादिकाल से पिता के साथ विद्यमान  वचन आज यर्दन नदी में योहन के सामने अपना सिर झूकाकर उनसे बपतिस्मा ग्रहण कर रहा हैं। यह वही योहन बपतिस्ता है जिसने लोगों से प्रभु के विषय में कहा था कि मेरे बाद जो आने वाला है वो मुझसे इतना महान है कि मैं झूककर उसके जूते का फिता खोलने के लायक भी नहीं हूँ (मत्ती 311, योहन 127); लेकिन आज उसी योहन बपतिस्ता के सामने प्रभु अपना सिर झूकाकर बपतिस्मा ग्रहण करते हैं।

 

वास्तव में देखा जाए तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी बपतिस्मा की ज़रूरत नहीं थी। वे तो निष्पाप थे परन्तु फिर भी वे पापियों की कतार में हम सब पापियों का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ खडे थे। वे अपने निजी पापों के लिए नहीं, हमारे पापों के पश्चताप हेतु वहाँ खडे थे। उन्होंने हमारे जैसा मानवीय स्वभाव धारण किया हम पापियों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने हम सबों के पापों को अपने ऊपर ले लिया। संत योहन के सुसमाचार अध्याय 129 में जब योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते हुए देखता है तो अपने शिष्यों से कहता है - ‘‘देखो-ईश्वर का मेमना जो संसार के पाप हरता है।’’ जि हाँ, प्रभु येसु वह मेमना है जिसके ऊपर पिता ने सारे संसार के पापों को लाद दिया है। नबी इसायस 526 में वचन कहता है- ‘‘हम सब अपना-अपना रास्ता पकड कर भेडों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सबों के पापों का भार डाल दिया है।’’ इसलिए प्रभु यर्दन नदी के पानी में हम सब के पापों को लेकर खडे थे। उन्हांने इसके साथ अपने उस मुक्ति कार्य को प्रारम्भ किया जिसके लिए वे इस संसार में आये थे। यह बपतिस्मा तो बस एक प्रतीक शुरूआत थी उस महान मुक्ति कार्य की जिसे पूरा करने के लिए प्रभु व्याकुल थे। संत लूकस के सुसमाचार 1250 में प्रभु कहते हैं -‘‘मुझे एक (और) बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ’’ यर्दन नदी में जो प्रतिकात्मक रूप में प्रारम्भ हुआ उसे प्रभु ने कलवारी पर अपने बलिदान द्वारा पूर्ण किया। वहाँ पर सचमुच बली का एक मेमना बनकर उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर  ले लिया। इसी रक्त के बपतिस्मा लिए वे व्याकुल थे। संत पेत्रुस हमसे कहते हैं कि - ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को कू्रस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें’’ (1पेत्रुस 224)

प्रभु ने यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण करके बपतिस्मा के जल को पवित्र कर दिया है। और हमारे लिए स्वर्ग का द्वार फिर से खोल दिया है। पुराने विधान में योशुआ के ग्रंथ में हम पढते हैं कि इस्राएली लोग मिस्र  की गुलामी से आज़ाद होकर प्रतिज्ञात देश में प्रवेश कर रहे थे उस समय उनको यर्दन नदी को पार करना था। उस समय योशुआ ने प्रभु के विधान की मंजूषाधारी पुरोहितों को नदी के बीचों-बीच खडा कर दिया और नदी का पानी एक बाँध की तरह रूक गया और इस्राएलियों ने सुखे पाँव नदी को पार किया था। आज प्रभु उसी यर्दन नदी के बीचों बीच खडे हैं नये विधान की मंजूषा बनकर। आज वो हमसे यही चाहते हैं कि हम  भी बपतिस्मा द्वारा हमारी पापमय दासता से मुक्त होकर सूखे पाँव इस लोक से स्वर्ग लोग की ओर गमन करें। जब तक सारे इस्राएली यर्दन के उस पार नहीं चले गये तब तक प्रभु के विधान की मंजूषा वहीं पर नदी के बीच में रही। प्रभु येसु नये विधान की मंजूषा के रूप में हम सब का इंतज़ार करते हुवे यर्दन नदी की बीचों बीच खडे रहते हैं नबी इसायाह के ग्रन्थ  में हमने पढ़ते  है क ईश्वर   तो थकता हिम्मत हारता है, जब तक वह पृथ्वी पर धार्मिकता की स्थापना कर दे। याने जब तक हम यर्दन के उस पार निकल जायें, जब तक हम मुक्ति प्राप्त कर लें प्रभु हमारी मुक्ति का कार्य जारी रखता है।

 

प्रभु हर एक इंसान को अपने इस मुक्ति कार्य में  सम्मिलित करना चाहता है। वे चाहते हैं कि हर कोई उद्धार पाये, मुक्ति पाये और बच जाये। प्रभु का वचन कहता है- ‘‘ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों हो, वह ईश्वर पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करता है, तो वह ईश्वर का कृपापात्र बन जाता है।’’ याने यर्दन पार कर प्रतिज्ञात देश में जाने के लिए, मुक्ति पाने के लिए, प्रभु के कृपापात्र बनने के लिए हमें उन पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करने की ज़रूरत है। आईये तो हम हमारी अधर्म की राहों को छोडें, पाप की राहों को छोडें, शैतान का उसके सारे प्रपचों का परित्याग करें, सारे कुकर्मों का परित्याग करें पवित्र त्रियेक ईश्वर पर अपने अटूट विश्वास में दृढ बने रहें  जिसे हमने हमारे बपतिस्मा के समय स्वीकार किया था। आमेन. 

Saturday, 2 January 2021

प्रभु प्रकाश का पर्व 20221



पहला पाठ इसायाह 60,1-22

दूसरा पाठ एफे. 3,1-13

सुसमचाचार मत्ती 2,1-12


दुनिया की सबसे बडी समस्या क्या है? Corona? आतंकवाद? जनसंख्या वृद्धी? भ्रष्टाचार? बलात्कार? गरीबी? या फिर हत्या? ये सब अपने आप में बडी समस्यायें तो है, पर मैं इन में से किसी को भी बडी समस्या नहीं मानता हूँ। क्योंकि इन सबसे परे है एक समस्या है, जो बाकि सब समस्याओं की जनक है। और वह समस्या है - ‘‘ईश्वर  विहीनता’’ यह वह परिस्थिति है जिसमें हमारे आदि माता-पिता ने अपने प्रथम पाप के बाद प्रवेश  किया। ईश्वर  की योजना में तो ईष्वर ने इंसान को अपने साथ, अदन वाटिका में रहने के लिए बनाया था। उत्पत्ति ग्रंथ 3,8 में हम पढते हैं कि आदम और हेव्वा को बाग में टहलते ईष्वर की आवाज सुनाई पडी। पर पाप ने मनुष्य को ईष्वर की उपस्थिति से दूर कर दिया। यह पाप का परिणाम है। यह मृत्यु का अनुभव है। रोमियो 6,23 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘पाप का वेतन मृृत्यु है’’ यहाँ मौत के मायने खत्म हो जाना नहीं परन्तु अलग हो जाना है। कई बार लोग आपसी लडाई में बोलते हैं - तू मेरे लिए मर गया और मैं तेरे लिए। मरता कोई नहीं है बस आपसी संबंध तोडकर वे अलग हो जाते हैं। उत्पत्ति 3,3 में प्रभु ने आदम-हेवा से कहा कि वे वाटिका के बीच के पेड का फल खायें क्योंकि यदि वे उसे खायेंगे तो वे मर जायेंगे। 3,6 में दोनों ने मौत के फल को खाया और वचन 23 में क्या होता है? वे प्रभु की उपस्थिति से दूर कर दिये जाते हैं वे अदन वाटिका से बेदखल कर दिये जाते हैं। वे ईष्वर विहीन जीवन जीने के लिए छोड दिये जाते हैं।  वे ईष्वर से दूर एक ऐसे संसार में जाते हैं, जिसके विषय में आज का पहला पाठ कहता है - ‘‘पृृृथ्वी पर अंधेरा छाया हुआ है, और राष्ट्रों पर घोर अंधकार।" यह पाप, अज्ञानता, और बुराई का अंधेरा है। यह शैतान के राज्य का अंधेरा है जिसके आगोष में यह संसार  जी रहा है। प्रकाश की अनुपस्थिति ही अंधकार है। जहाँ ज्योति नहीं है वहाँ अंधेरा है। संत योहन 8, 12 मैं प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो कोई मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।’’ पहले पाठ इसा. 60,20 में प्रभु का वचन कहता है - तेरा सूर्य कभी अस्त नहीं होगा, क्योंकि ईष्वर ही तेरा सदा बना रहने वाला प्रकश  होगा। यह वादा ईष्वर ने अपनी चुनी हुई जाती इस्राएल के लिए किया था। ऐजे. 37,27 में वही यहोवा ईष्वर उनसे कहता है - ‘‘मैं उनके बीच निवास करूंगा, मैं उनका ईष्वर होऊंगा और वे मेरे प्रजा होंगे।’’ इस्राएली प्रजा का मानना था कि वे एक विषिष्ट प्रजा है जो ईष्वर द्वारा अपनी निजी प्रजा के रूप में चुनी गई हैं; ईष्वर ने नबियों और पूवर्जों द्वारा अपने आपको उन पर प्रकट किया, उन्हें अपना संदेष दिया कि वह उनका उद्धार करेगा। इसलिए वे गैरयहूदी जातियों को घृणित तुच्छ मानते थे तथा उन्हें उद्धार से दूर मानते थे।

परन्तु प्रभु येसु ने अपने देहधारण द्वारा अथवा अपने जन्म के द्वारा इस भ्रांति को दूर कर दिया। आज हम उस महान घटना को याद कर रहे हैं जब उन्होंने तीन गैर यहूदी ज्ञानियों पर अपने आप को प्रकट किया, अपने को प्रकाशित किया और यह साबित कर दिया कि वे केवल इस्राएलियों  के लिए नहीं वरन् हर इंसान के लिए आये हैं।

आज का दूसरा पाठ ऐफे.3,1-13 में इस बात को स्पष्ट करता है - ‘‘सुसमाचार के द्वारा यहूदियों के साथ गैरयहूदी एक ही विरासत के अधिकारी है, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह - विषयक प्रतिज्ञा  के सहभागी।’’

इसलिए जो कोई भी उन ज्योतिषियों की तरह मुक्ति को तलाशते हैं, अथवा ईष्वर को खोजते हैं वे उसे प्राप्त करेंगे; वे अंधकार से प्रकाश में जायेंगे। तब वे मृृत्यु से  जीवन में जायेंगे - वे संसार के सारे बंधनों से मुक्त हो जायेंगे। वचन कहता है संत योहन 12, 32 में - ‘‘यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होंगे। तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र कर देगा।’’

आज सारे संसार की ज्योति प्रभु येसु सारी मानव जाती के उद्धार के लिए प्रकट हो गये हैं। संत मत्ती 4,15-16 में वचन कहता है - ‘‘अंधकार में रहने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।’’ प्रभु येसु हमें मृत्यु के अंधकार से बाहर निकालकर ईष्वरीय उपस्थिति में ले जाने इस संसार में आये हैं। हमें हमेशा की

ईश्व्रर रहित जिंदगी जो कि अनंत मृत्यु है, से बाहर  निकाल कर अपने साथ स्वर्ग ले जाने  आये हैं।

हम उस ज्योति को खाजते हुए उसके पास जायें। वचन कहता है - "जब तुम मुझे ढूंढोगे तो मुझे पा जाओगे, यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूंढोगे तो मैं तुम्हें मिल जाऊंगा’’ (यरि. 29,13)  हम प्रभु को पूरे दिल से खोजें और वह हमें मिल जायेगा। और हमें अंधकार से अपनी स्वर्गिक ज्योति की ओर ले जायेगा, हमें मृत्यु से जीवन की ओर तथा ईष्वर विहिन जिंदगी से अपनी पावन उपस्थिति में ले जायेगा। आमेन।

 

प्रभु की स्तुति हो प्रभु येसु को धन्यवाद।