Thursday, 26 November 2015

आगमन का पहला रविवार



  आगमन काल का पहला इतवार

यिरमियाह का ग्रंथ 33ः14-1
थेसलनीकियों के नाम पहला पत्र 3ः12-4ः2
लूकस 21ः25-28; 34-36 

डीकन जोन भाबोर
महू, इन्दौर धर्मप्रांत
ख्रीस्त मे प्रिय भाइयों और बहनों माता कलिसिया आज हमें आमंत्रित करती है कि हम आगमन काल के प्रथम सप्ताह मे भक्तिभाव से प्रवेष करें। आज माता कलिसिया पूजन विधि का भी नया वर्ष मना रही है। हर साल हम ख्रीस्त जयंति मनाते है परंतु इस साल हम प्रभु के आगमन की तैयारी आध्यात्मिक रुप से करंे ताकीे प्रभु हमे प्रार्थना मे लिन पाये।
परंतु आज का मनुष्य सांसारिक मोह माया मे इतना उलझा हुआ की वह भुल जाता है कि यह उसका निवास स्थान इस लोक का नहीं परंतु परलोक का है। पहले पाठ मे नबि यिरमियाह के ग्रंथ में प्रभु कहते है कि मैं इस्राएल तथा यूदा के घराने के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूंगा। इस््रााएलि जनता कब से प्रभु की प्रतिक्षा कर रही थी आज नबि यिरमियाह भी प्रभु के बारे मे भविष्यवाणि कर रहे हैै।
आज के दुसरे पाठ में संत पालूस कहते है कि जिस तरह हम आप लोगों को प्यार करते है उसी तरह आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सबों के प्रति बढता और उमडता रहे। हम ना केवल अपने ही परीवार के लोगो की मदत ना करें बल्कि सभी जरूरत मंद लोगो की सेवा प्रेम भाव से करे निःस्वार्थ भाव से करे।जिस तरह किसान अपने खेतों को तैयार करता है खेती करने के पूर्व उसी तरह आज से हम भी अपने दिलों को तैयार करे बालक येसु के आगमन के लिये जो 2000 वर्ष पूर्व संसार के हर एक व्यक्ति के लिये इस धरा पर आये।
आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु के आगमन के बारे मे यह न्याय के दिनों के समय का आगमन है उस समय संपुर्ण संसार भर मे कई प्रकार से चिन्ह एवं चमत्कार प्रकृट होगें। कई प्रकार से लोगों को दुःख उठाना होगा घोर विपत्तियंा उन पर आ गीरेगी। यह सब प्रभु हमे भयभित करने नहीं बलकी हमें प्रार्थना करते हुए सर्तक रहने को कह रहे है ताकी हम षैतान के प्रलोभनों मे न पडे। सांसारिक मोहमाया से दूर रहे भोगविलास मे अपना जीवन ना बितायें बल्कि ईष्वर कि प्रतिक्षा मे निरंतर आपना जीवन व्यापन करें।
लूकस 21ः27 मानव पुत्र अपार सामथ्र्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेगें तब वे अंतिम दिन जब हमारा न्याय करने आयेगें तब वे बादलों पर चलते हुए आयेगें। प्रभु का जन्म निर्धन दीनहीन बन कर हुआ परंतु जब वे पुनः आयेगे तब संपुर्ण सामथ्र्य के साथ आयेगे।
वेसे तो प्रभु हमेषा हमारे साथ है पर ये तीन विषेष अवसर है जब प्रभु हमारे साथ विषष रूप से होते है।  तीन विषेष अवसरों पर हम प्रभु येसु के आगमन को हमारे बिच महसूस कर सकते है।
1ः प्रभु येसु ने स्वंयम् कहा जहा दो या दो से अधिक व्यक्ति मेरे नाम पर एकत्र होते है मैं वहा उपस्थित रहता हूॅ।
2ः जब हम पवित्र ग्रंथ बाईबिल पढते है तब हम प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करते हैै।
3ःपरम पवित्र युख्रिस्तिय संस्कार को जब हम ग्रहण करते है तब प्रभु स्वंयम् हमारे दिलों में आते है। और हमें तथा हमारे दिलों को पवित्र करते एवं चंगाई प्रदान करते है।
प्रभु के इस आगमन काल मे हम पूर्णरूप से तैयार रहे की हम प्रभु को हमारे घर में आध्यात्मिक रूप से  बालक येसु का स्वागत करें। जो मनुष्य अपना जीवन धार्मिकता मे व्यतित करता है वह अंतिम दिनों के लिये भी तैयार रहता है। हम कई बार बालक येसु के आगमन की तैयारियां ठीक ढंग से नही कर पाते है पर इस बार एसा ना हो हम आध्यात्मिक रूप से तैयार रहे एवं गरीबों एवं निःसहाय को मदत करें क्योंकि प्रभु का जन्म भी गरीबों के सम्मान गरीब बन हुआ। आमेन।



डीकन प्रीतम वसुनिया


‘‘आईये हम राजा येसु की आराधना करें जो आने वाला है।’’ इसी उद्घोषणा के साथ माता कलीसिया आज आगमनकाल का आगाज़ करती है। आगमन याने किसी का आना। इस पवित्र आगमनकाल में हम प्रभु येसु के आने की तैयारी करते हैं। इस समय हम दो प्रकार के आगमन की याद करते हैं जहाँ एक ओर हम उनके प्रथम आगमन की याद करते हैं जब वह मानवता के उद्धार हेतु मनुष्य बनकर इस धरा पर आये; वहीं दूसरी ओर उनके द्वितीय आगमन की तैयारी करते हैं जब वह अंत समय में हमारा न्याय करने आयेंगे। इसलिए हर विष्वासी जो प्रभु के प्रथम आगमन की यादगार मनाता है उसे चाहिए कि वह उतनी ही मुस्तैदी से उनके द्वितीय आगमन की तैयारी भी करे।
प्रभु येसु आये थे, आते हैं, और आते रहेंगे। प्रभु येसु इतिहास में आये और इतिहास का एक भाग बन गये; वह संस्कारों के रहस्य में रोज़ हमारे बीच आते हैं और दुनिया के अंत में महिमा के साथ फिर आयेंगे। येसु प्रेम के साथ बेतलेहेम में आये। वह कृपा के साथ हमारी आत्माओं में आते हैं और दुनिया के अंत में न्याय के साथ फिर आयेंगे। आज की धर्म का सुसमाचार पाठ हमें कहता है - ‘‘जब ये बातें होने लगेंगे, तो उठ कर खडे हो जाओ और सिर ऊँपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है’’ (लूक 21ः28)। सुसमाचार के प्रारम्भ में भयानक विपत्तियों का वर्णन किया गया है। लेकिन ये अंतिम पंक्तियाँ हमारा सारा भय व अषंकायें दूर कर देती है। प्रभु कहते हैं कि इन विषम परिस्थितियों के बावज़ूद भी तुम जो विष्वासी हो, धीरज धरो क्योंकि तुम्हारा उद्धार ईष्वर के हाथों में है। प्रभु हमें अपना सिर ऊँचा करने को कहते हैं। इसका मतलब होता है कि हम हमारे मन को स्वर्गीय आनन्द कि ओर ऊँचा उठायें।
आगमन का समय हमारे लिए एक उम्मिद का समय है आषा का समय है। महिमा गान इस समय नहीं गाया जाता, ये इसलिए नहीं कि हम दुःखी हैं परन्तु इसलिए कि जब हम इसे क्रिसमस के दिन गायेंगे तो हमारा ये गीत दूतों के स्वरों के साथ मिलकर हमें ईष महिमा का एक नया आनन्द प्रदान करें।
आज का पहला पाठ हमें, उम्मीद बंँधाते हुवे कहता है कि ‘‘उन दिनों युदा का उद्धार होगा, येरूसालेम सुरक्षित रहेगा’’ (यिर 33ः16)। प्रभु आज हमें, नयी इस्राएली प्रजा को ये आष्वासन देते हैं कि हम सुरक्षित रहेंगे, बच जायेंगे, हमारा विनाष नहीं होगा। हम कैसे बच जायेंगे? उद्धार पाने के लिए सिर्फ ईसाई होना, ही काफी नहीं है। हमें प्रभु की बातों पर ध्यान देना होगा; उनके वचनों पर विष्वास करना होगा; उनके वचनों पर चलना होगा। प्रभु हमें तुम सुरक्षित रहोगे, तुम मुक्ति प्राप्त करोगे ये इसलिए नहीं कह रहे हैं कि हम सिर्फ ईसाई हैं पर इसलिए कि ईसाई होने के नाते, विष्वासी होने के नाते हम प्रभु के वचनों को जानते हैं और उसका पालन करते हैं। प्रभु ने समय से पहले आगाह कर दिया है। प्रभु का वचन हमारे पास है। यदि हम प्रभु के वचन को सुनते और उसके अनुसार आचरण करते हैं तो हमारा उद्धार निष्चित है।
 पवित्र बाईबल में हमें कई ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे जहाँ ईष्वर ने अपने प्रिय जानों को, अपने भक्तों को चेतावनी दी और उन्होंने ईष्वर की चेतावनी पर ध्यान दिया और वे बच गये तथा जिन्होंने चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया उनका विनाष हो गया।
नूह के ज़माने में सारी पृथ्वी पर पाप फैल गया था केवल नूह और उसका परिवार धर्मी था ईष्वर ने सारे संसार को जल प्रलय द्वारा नष्ट करने की योजना बनाई। उसने नूह को एक जहाज बनाकर अपने परिवार के साथ उस में सवार होने को कह दिया। उसने वैसा ही किया जैसा ईष्वर ने आदेष दिया था। और वह अपने परिवार के साथ बच गया। अब्राहम के समय, सोदोम और गोमोरा नामक दो नगरों के लोग वासना के पाप में डूब गये थे तब ईष्वर ने उन दो नगरों को आग बरसाकर भस्म करने की ठानी। वहाँ एक धर्मी परिवार रहता था। वह था अब्राहम का भतीजा लोट। ईष्वर ने उन्हें नगर से भाग जाने का आदेष दिया और चेतावनी दी कि तुम वापस मुडकर नहीं देखना। वे नगर छोडकर भाग रहे थे कि बीच में लोट की पत्नी ने पीछे मुडकर देख लिया और वह नमक का खंबा बन गयी जबकि लोट बच गया। जब ईष्वर का दूत दसवीं व आखरी विपत्ति के रूप में मिस्र में रहने वाले हर इंसान व जानवर के पहलौटों को मारने आने वाला था तो प्रभु ने मूसा द्वारा ईस्राएलियों को उस रात अपने घरों की चैखट पर मेमने का रक्त पौत देने का आदेष दिया। इस्राएलियों ने वैसा ही किया। रात ईष्वर का दूत आया जिस घर की चैखट पर मेमने का रक्त लगा था उन घरों को छोडकर बाकि सब घरों के पहलोटों को मार डाला गया, इस्राएलि बच गये।
जब मुम्बई में ताज होटल पर आतंकि हमला हुआ था तब कहा जता है कि खुफिया एजेंसि को इसकी भनक लग चुकि थी। और उन्होंने इसकी सुचना गृह मंत्रालय व सुराक्षा विभाग को दे दी थी। लेकिन किसी ने इस को ज़्यादा घंभीरता से नहीं लिया और उसका अंज़ाम क्या हुआ हम सब जानते हैं।
आज के सुसमाचार के द्वारा प्रभु भी हमें समय रहते चेतावनी दे रहे हैं ‘‘सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नषे और इस संसार की चिंताओें से तुम्हारा मन कुंठित न हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक आप पर आ पडे; क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के निवासियों पर आ पडेगा। इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खडे होने योग्य बन जाओ’’ लूक 21ः34-36। अब जागते रहना या सोते रहना हमारे ऊँपर निर्भर है। जब चिडिया खेज चुग जायेगी तब पछताने से कुछ भी नहीं मिलने वाला। याद करो गरीब लाज़रूस व धनी के उस दृष्टाँत को मरने के बाद पछताता है वो, मरने के बाद उसको लाज़रूस का ख्याल आता है। पिता अब्राहम से कहता है कि वह लाज़रूस को एक बंूद पानी लेकर उसके पास भेज दे। हम उन पाँच नासमझ कुँवारियों के समान न बनें जो दुल्हे की अगवानी करने तो गयी लेकिन अपने लिए प्र्याप्त तेल नहीं ले गयीं। तब अंत में रोने से कुछ भी हासिल नहीं होगा जब द्वार बंद कर लिए जायेगा। तब हम ये कहेंगे प्रभु हमने आपके नाम पर बपतिस्मा ग्रहण किया है। प्रभु हम कभी-कभी गिरजा भी जाते थे। प्रभु कहेंगे मैं तुम्हें नहीं जानता। प्रभु हमारे पाखंड से नहीं हमारी सच्ची धार्मिकता से प्रसन्न होता है। वह हमसे पुछेंगेे तुम चर्च गये थे ठिक बात है, नोवेना में भाग लिया बहुत अच्छा पर मैं जब भूखा क्या तुमने मुझे खिलाया, मैं प्यासा था तब क्या तुमने मुझे पिलाया, मैं बिमार, बंदी व परदेसी था तब क्या तुम मुझसे मिलने आये? तब उस समय कोई भी बहाना प्रभु के सामने नहीं चलेगा। तब हम यदि मुर्खों की तरह कहने लगेंगे - ‘‘प्रभु आप कब आये हमारे पास, यदि मुझे पता होता तो रोटी क्या मैं तो 5 स्टार होटल में मेरे प्रभु को पार्टी देता। हमें तो पता ही नहीं चला! प्रभु कहेंगे तुमने मेरे इन छोटे से छोटे भाईयों के लिए जो कुछ भी किया वो मेरे लिए किया और जो नहीं किया वो मेरे लिए नहीं किया। इसलिए जाओ उस नरक की आग में जो तुम्हारे लिए तैयार की गयी है। संत योहन के पहले पत्र 4ः12 प्रभु का वचन हमसे कहता है - ‘‘ईष्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईष्वर हम में निवास करता है और ईष्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है। और वचन 20 कहता है यदि कोई कहता है कि मैं ईष्वर से प्रेम करता हूँ और वह अपने भाई से बैर करता है, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता, तो ईष्वर को, जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता।’’
तो आईये आज हम आगमनकाल में जब हमारे मुक्तिदाता के हमारे दिलों में जन्म लेेने की तैयारी करते हैं, तो न केवल बाहरी तैयारियँा करें परन्तु भलाई के कार्यों व आध्यात्मिक कार्यों द्वारा स्वयं को तैयार करें। और जैसा कि मैंने शुरू में कहा कि हम दो प्रकार के आगमनों पर मनन-चिंतन करते हैं इसलिए हमारा उद्देष्य सिर्फ क्रिसमस की तैयारी नहीं परन्तु दूसरे आगमन की तैयारी भी होना चाहिए।  
आमेन 

Tuesday, 17 November 2015

ख्रीस्त राजा का पर्व, 22 नवम्बर 2015



ख्रीस्त राजा का पर्व
22 नवंबर 2015
डीकन-प्रीतम वसुनिया,
इंदौर


हम कहते हैं सोना धातुओं को राजा है क्योंकि यह सब धातुओं मंे मंहगा है। उसी प्रकार शेर को जंगल का राजा कहा जाता है क्योंकि शेर को सारे जंगली जानवरों में शक्तिषाली माना जाता है। उसी प्रकार हम प्रभु येसु को सारी मानवजाती का राजा कहते हैं क्योंकि वह ‘‘अदृष्य ईष्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईष्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है’’ (कोलो 1ः15-18)। आज का पहला पाठ हमें बताता है कि ‘‘उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा  राजत्व दिया गया। सभी राष्टृ और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे’’ (दानिएल 7ः14)
पिलातुस येसु से पुछता है - ‘‘तो तुम यहुदियों के राजा हो?’’ येसु कहते हैं - ‘‘यह आप ठीक ही कहते हैं। मैं इसिलिए जन्मा और संसार में आया हूँ कि सत्य के पक्ष में साक्ष्य दूँ। जो सत्य के पक्ष में है वह मेरी सुनता है’’ (यो. 18ः37)।
इसलिए प्रभु येसु सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं - ‘‘मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18ः36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चैगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुष्मनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-षौकत को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौषाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2ः7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्यांेकि लिखा है - अपने प्रभु ईष्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4ः8-10)।

जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6ः15)। इस दुनिया के राजा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद व लोगों के राजा होते हैं। लेकिन हमारे प्रभु आत्माओं के राजा हैं वे आत्माओं पर, हमारे दिलों पर राज्य करते हैं। उनका राज्य भौतिक व सांसारिक नहीं, आध्यात्मिक है। सांसारिक राज्य समाप्त हो जाने वाला राज्य है। इतिहास के पन्ने पलटकर यदि हम देखें तो पायेंगे कि कितने ही महान से महान राजा हुवे, उन्होंने पृथ्वी के सिमांतों तक अपने राज्य का विस्तार किया। सिकंदर महान जैसे राजा ने तो करीब-करीब पूरे विष्व पर विजय प्राप्त कर ली थी। पर कोई टिक नहीं सका; सब मिट गया; उनका राज्य इतिहास के पन्नों में सिमट के रह गया। लेकिन हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त का राज्य दो हजार से भी ज्यादा वर्ष बीत जाने के बाद भी बरकरार है; उतना ही प्रभाषाली है जितना पहले था; उतना ही जीवन्त है जितना प्रेरितों के समय था। और ये कभी अन्त होने वाला नहीं है। यह अनन्तकाल तक बना रहने वाला राज्य है। प्रभु का वचन कहता है ‘‘उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्या कभी अंत नहीं होगा’’ (दानिएल 7ः14)। साँसारिक राज्य मिट गये, समाप्त हो गये क्योंकि वे सब मिथ्या थे, झूठे थे, फरेबी थे, वे स्वार्थी, अभिमानी व बुराईयों से भरपूर थे। परन्तु हमारे प्रभु का राज्य सत्य पर आधारित है। प्रभु पिलातुस के सामने कहते हैं, ‘‘मैं राजा हूँ। मैं इसलिए जन्मा हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य दूँ। जो सत्य के पक्ष में है वह मेरी सुनता है‘‘ (योहन 18ः37)।
प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईष्वर का राज्य निकट आ गया है’’ (मारकुस 1ः15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईष्वर का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेष करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पष्चताप करो और सुसमाचार में विष्वास करो’’ (मारकुस 1ः15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विष्वास करना होगा, स्वयं को ईष्वर के आत्मा व उसके सामाथ्र्य के सम्मुख समर्पित करना होगा।
ईष्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईष्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिष्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेषा शासन करते रहें।
बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5ः4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।
प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। आज के परिवेष में यदि हम देखें तो पायेंगे शैतान विभिन्न रूप में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिषत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। और हम प्रभु के सैनिक यह तमाषा देख रहे हैं। हम खुद भी उसके षिकार बन रहे हैं। आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विष्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5ः8)।
प्रभु हमें एक कुषल सैनिक की तरह शैतान के विरूद्ध लडने को कह रहे हैं। वह हमसे कहते हैं ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामाथ्र्य से बल ग्रहण करें, आप ईष्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों। क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि इस अन्धकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पडता है। इसलिए आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6ः10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईष्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमंे बतलाते हैं ईष्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विष्वास की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईष वचन।
आईये ख्रीस्त राजा का पर्व मानाते समय हम इन आध्यात्मिक अस्त्र-सस्त्रों को धारण करके स्वयं को प्रभु के राज्य के लिए एक योग्य सैनिक बना लें व प्रभु को हमारे दिलों के सिंहासन पर असीन करें। और जैसा वह हमसे कहते हैं हम वैसा ही करें (योहन 2ः5) तथा उसकी इच्छा के अनुरूप अपना जीवन बितायें; उनके प्रेम, क्षमा, शाँति, दया, व भाईचारे के राज्य की स्थापना में अपने सर्वस्व समर्पित करें।
आमेन

Wednesday, 4 November 2015

नवम्बर 8 वर्ष का 32 वाँ रविवार


                    वर्ष का 32 वाँ रविवार                              

                                                                                                पहला पाठ - 1 राजा. 17ः10.16                 
                                                                                                दूसरा पाठ - इब्रा. 9ः24-28                        
                                                                                                 सुसमाचार - मार्क 12ः38-44                     
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों। आज के पाठों से एक बात खासकरके उभर के सामने आती है। वो है विधवा और उसका दान। आज के सुसमाचार में जहाँ प्रभु मंदिर की दान-पेटी में एक पैसा डालने वाली विधवा की तारिफ करते हैं वहीं दूसरी ओर पहला पाठ सरेप्ता की विधवा का वर्णन करता है जो अपनी अत्यन्त गरीबी की हालत में भी अपना भोजन नबी एलियाह के साथ बाँटने को राजी हो जाती है। इसलिए आज मैं इस रविवार को विधवाओं का रविवार कहना पसंद करूँगा। विधवा जिसे हमारे समाज में तुच्छ दृष्टी से देखा जाता है। कई समाजों में विधवा को अषुभ माना जाता है। सुहाग उजड जाने के बाद नारी का मान-सम्मान और महत्व कम हो जाता है। उसे अबला व निस्साहाय देखकर कई लोग उसका आर्थिक, सामाजिक व शारीरिक शोषण करते हैं। लेकिन पवित्र बाईबल विधवाओं को बहुत ही महत्व देती है। प्रभु विधवाओं और अनाथों का विषेष ख्याल रखता है। सम्पूर्ण बाइबल में करीब 50 बार विधवाओं के बारे में वर्णन किया गया है। निर्ग. 22ः21 में प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम विधवा व अनाथ के साथ दुव्र्यव्यहार मत करो। यदि तुम उनके साथ दुव्र्यव्यहार करोगे और वे मेरी दुहाई देंगें तो मैं उनकी पुकार सुनूँगा।’’ येरे. 22ः3 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘विदेषियों, अनाथों, और विधवाओं के साथ अन्याय मत करो।’’ और लूकस 7ः11 में हम पाते हैं नाईन नामक नगर में एक विधवा का एकलौता पुत्र मर जाता है। प्रभु को उस विधवा पर तरस आता है और वह उसे नवयुवक को जिवनदान देता है। जि हाँ विधवा, अनाथ और गरीब प्रभु के दिल में खास स्थान रखते हैं। और आज प्रभु हमें ऐसी ही गरीब दो विधवाओं के उदाहरण द्वारा हमारे जीवन में उदारतापुर्वक दान देने व प्रभु के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने का पाठ पढाते हैं।
आईये हम दन दोनों विधओं के चरित्र पर मनन चिंतन करें। पहली है सरेप्ता की विधवा जिसका वर्णन हमने पहले पाठ में सुना। यह घटना उस समय की है जब प्रभु के आदेषानुसार तीन साल तक बारीष नहीं हुई और इस्राएल में भारी अकाल पडा था। तीन साल तक कोई फसल पैदा नहीं हुई थी। इधर ये अभागिन विधवा अपने पुत्र के साथ अपने जीवन का अंतिम भोजन करने जा रहंी थी। उसके पास मुट्ठी भर आटा व कुप्पी में थोडा सा तेल बाकि रह गया था। वो नबी एलियाह से कहती है कि इसे खाकर व अपने पुत्र के साथ मर जायेंगी। आगे कोई उम्मिद नहीं है उनके पास। ऐसे में प्रभु का सेवक, नबी एलियाह, उससे खाने को कुछ माँगता है और कहता है कि जब तक यह अकाल खत्म न हो जाये तब तक प्रभु इस आटे और तेल को खत्म नहीं होने देगा। उस विधवा ने प्रभु पर विष्वास किया और जैसा नबी ने कहा था उसने वैसा ही किया। नबी के लिए भोजन बनाकर उसे खिलाया। और प्रभु की महिमा देखिये, तीन साल तक न तो उनका आटा खत्म हुआ और न ही उनका तेल।
वैसा ही सुसमाचर में हमने सुना प्रभु उस विधवा की तारिफ करते हैं जिसने तंगी में रहते हुवे भी उसके पास जो भी था पूरा दान पेटी में डाल दिया। उस विधवा का दान बडे-बडे अमीरों, जिनने अपनी समृद्धी में से कुछ दिया, उनकी तुलना में कुछ भी नहीं था पर प्रभु की निगाहों में वह सबसे अधिक था। प्रभु कहते हैं इस विधवा ने सबसे अधिक दिया है।
प्यारे भाईयों और बहनों हम दान पुण्य करने, चन्दा देने आदि में कभी न हिचकें। प्रभु का वचन प्रव. 29ः13.14 में हमसे कहता है ‘‘अपने धन का त्याग भाई और मित्र के लिए दान कर दो और ज़मीन के नीचे उसमें जंग न लगने दो। अपने सर्वोच्च प्रभु की आज्ञा के अनुसार अपने धन का उपयोग करो। और तुम सोने की अपेक्षा उससे अधिक लाभ उठाओगे।’’ प्रभु का वचन कहता है कि हम प्रभु की आज्ञा के अनुसार हम अपने धन का उपयोग करें। और प्रभु की आज्ञा ये है कि हम अपनी संपत्ति का उपयोग परहित में करें।
वचन कहता है कि हम हमारा धन दूसरों के हित में लगा दें दूसरों की भलाई हेतु त्याग कर दें। हमारा दान त्यागपूर्ण होना चाहिए। धन को दूसरों के लिए लुटाने व दान करने में काफी फर्क है। आज के सुसमाचार में अन्य लोग अपनी सम्पन्नता में से अपना धन लुटा रहे थे पर उस विधवा ने वास्तव में दान किया। उसने अपना सब कुछ त्याग कर दान किया। जब दान में त्याग की भावना नहीं है तो वह अधिक फलप्रद नहीं होगा। त्याग करना किसे कहतें हैं? जब कोई वस्तु हमें प्रिय है और उसे यदि मुझे किसी को देने को कहा जाये; मैं उसे देना तो नहीं चाहता, दिल में दर्द होता है, पर मैं प्रभु के पे्रम के खातीर, प्रभु को अपना प्रेम दिखाने के लिए उसे दूसरों के हित में त्याग देता हूँ, दान दे देता हूँ। यह है त्यागमय दान। ऐसे दान में ज्यादा वजन होता है, ज्यादा महत्व होता है। हम हर साल सेमिनारी बन्द होते समय अपने पुनाने कपडे इकट्ठे करके गरीबों को बाँट देते हैं। यह एक अच्छा काम है, पुण्य का काम है। लेकिन इसके अलावा यदि मैं मेरे जेब खर्च से किसी एक गरीब बच्चे के लिए नये कपडे खरीदकर देता हूँ तो ये त्यागमय दान होगा। इसका मुझे अधिक प्रतिफल मिलेगा।
इसलिए हम अपनी सम्पत्ति, अपना धन दूसरों के लिए त्याग करना सिखें, दूसरों के साथ मिलकर बाँटना सिखें, तथा प्रभु के लिए उसे भेंट करना सिखंे, चर्च में प्रभु को भेंट अर्पित करें प्रभु के लिए बलिदान चढायें। क्योंकि प्रव. 35ः16-13 में प्रभु का वचन हमसे कहता है - खाली हाथ प्रभु के सामने मत जाओ, क्योंकि ये सब बलिदान आदेष के अनुकूल है। धर्मी का चढावा वेदी की शोभा बढाता है और उसकी सुगन्ध सर्वोच्च ईष्वर तक पहूँचती है। धर्मी का बलीदान सुग्राह्य होता है, उसकी स्मृति सदा बनी रहेगी। प्रसन्न मुख होकर दान चढाया करों और खुष्ी से दषमांष दो। जिस प्रकार सर्वोच्च ईष्वर ने तुम्हें दिया है उसी प्रकार तुम भी उसे सामथ्र्य के अनुसार उदारतापुर्वक दो, क्योंकि प्रभु प्रतिदान करता है, वह तुम्हें सात गुना लौटा देगा।’’ यहाँ तीन बातें खास ध्यान देने योग्य हैं - हम प्रसन्न मुख से  दान चढायें, कुडकुडाकर नहीं, जबदरस्ति नहीं। दूसरी बात हम अपने सामथ्र्य के अनुसार अनुसार उदारपुर्वक दें। हमारी आर्थिक क्षमता के अनुसार हम भेंट चढायें। तीसरी बात वचन हमें बताता है वह है- प्रभु प्रतिदान करता है, वह तुम्हें सात गुना लौटा देगा। जि हाँ हमारा दिया दान कभी खाली नहीं जायेगा। वचन कहता है प्रभु एक का सात गुना हमें लौटा देगा। लेकिन जब हम दान करते हैं तो इसका हमारा उद्देष्य ये गुना वापस पाना नहीं होना चाहिए। ये लौटाना व प्रतिदान करना तो प्रभु का काम है। प्रतिदान की चिन्ता हमें नहीं करनी चाहिए। आज मैंने दान दिया और कल मैं उठकर उसका फल पाने की अपेक्षा करूँ तो ये भी गलत है। तो हमारे दान का फल इस दुनिया में पाने की उम्मीद करना हमारे लिए उचित नहीं है। प्रभु हमसे मत्ती के सुसमाचार 6ः19-21 में कहते हैं - ‘‘पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीडे खाते हैं और चोर सेंध लगा कर चुराता है, स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो जहाँ न तो मोरचा लगता है, न कीडे खाते हैं और न ही चोर चुरा सकता हैै। क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी होगी वहीं तुम्हारा हृदय भी होगा।’’
इसलिए आज हम कुरिन्थियों को लिखे अपने पत्र 9ः6-7 में संत पौलुस द्वारा बतायी इस षिक्षा पर मनन चिंतन करें जहाँ वचन हमसे कहता है- ‘‘इस बात का ध्यान रखें कि जो कम बोता है, वह कम लुनता है और जो अधिक बोता है वह अधिक लुनता है। हर एक ने अपने मन में जितना निष्चित किया है उनता ही दें। वह अनिच्छा से अथवा लाचारी से ऐसा न करें। क्योंकि ईष्वर प्रसन्नता से देने वाले को प्यार करता है।’’
आईये हम आज ईष्वर से ये कृपा माँगें कि प्रभु हमें धन के मोह से मुक्त कर एक उदार दिल इंसान बना दें ताकि हम हमारे जीवन में ज़रूरतमंद लोगों की सेवा हमारे त्यागमय दान द्वारा कर सकें। व स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा कर सकें। 
आमेन।