Saturday, 27 August 2016

वर्ष का २२ वां रविवार 28 August 2016


प्रवक्ता ग्रन्थ ३: १७-१८, २०, २८-२९
इब्रानी १२:१८-१९, २२-२४
लुकस १४:१, ७-१४


ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आज की धर्मविधि में प्रभु हम सबको अपने समान विनम्र बनने का आह्वान कर रहे हैं। प्रभु कहते हैं ‘‘तुम जितने अधिक बडे हो, उतने अधिक नम्र बनो इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे’’ (प्रव 3:19)
महापुरूषाों की तुलना बहुत बार आम के पेड से की जाती है। आम का पेड जितना अधिक फल देता है उसकी डालियां उतनी ही अधिक नीचे झूक जाती हैं व जितना कम फल रहता है डालियां उतनी अधिक तनी हुई रहती है। जो व्यक्ति वास्तव में जितना अधिक महान होता है वह उतना अधिक विनम्रता दूसरों के सामने झूक जाता है लेकिन जो दुनिया की दृष्टि में स्वयं को बडा दिखाना चाहते हैं वे फलहीन या फिर कम फल वाली डालियों की तरह तन कर अपने आपको जबरन महान सिद्ध करवाने की कोषिष करते हैं।
निति वचन 18:12 में प्रभु का वचन कहता है घमंड विनाष की ओर ले जाता है। और विनम्रता सम्मान की ओर।’’ सम्मान माँगने से नहीं अपने विनम्र सुआचरण से मिलता है। प्रभु का वचन कहता है प्रवक्ता गं्रथ 10:31 में ‘‘पुत्र विनम्रता से अपने स्वाभिमान की रक्षा करो। अपने को अपनी योग्यता के अनुसार ही श्रेय दो।’’ याने मैं जो भी हूँ, जितना पानी में हूँ उससे अधिक दंभ न भरूँ। रहीमदासजी का एक प्रसिद्ध दोहा है
‘‘बडे बडाई न करें बडे न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल

याने जो लोग वास्तव में बडे हैं सम्मानीय हैं वे अपनी बडाई स्वयं नहीं करते जैसा कि हीरा सबसे कीमती चीजों मेंसे एक होने पर भी कभी किसी से नहीं कहता है कि मेरा मूल्य लाखों रूपये है। उसके स्वभाव व उसके गुणों से लोगों को पता चलता है कि हीरा एक कीमती वस्तु है। हम भी ऐसे ही बनें। एक सच्चा गुणवान व्यक्ति जिसे कई उपलबधियाँ प्राप्त है हमेषा यही सोचेगा कि उसकी यह छोटी सी उपलबधि वस्तृत संभावनाओं के सामने कुछ भी नहीं है। अंग्रेजी में एक कहावत है - स्काई  इज़ द लिमिट। याने हमें सिखने, बढने व विकास करने की कोई सीमा नहीं। इसलिए कोई भी अपने आप को परिपक्व, सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी व सबसे बडा विधवान न मानें। हर कोई यह स्वीकार करे कि मैं भी अन्य लोगों की तरह एक साधारण इसान हूँ। मैं भी गलती कर सकता हूँ, मुझमें भी कमज़ोरियां है फिलिपियों को लिखे पत्र 2:3 में संत पौलुस हमें सुन्दर शब्दों में समझाते हुवे कहते हैं - हर व्यक्ति नम्रतापुर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई केवल अपने हित का ही नहीं, बल्कि केवल दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। आज दुनिया में लडाई-झगडे, व युद्ध क्यों होते हैं इसी कारण की हम दूसरों को अपने से श्रेष्ठ नहीं देख पाते, हम दूसरों की उन्नती नहीं सह पाते, दूसरों को पनपते व ऊपर उठते नहीं देख पाते। हमारा अहंकार हम पर हावी हो जाता है। प्रभु का वचन हमें कहता है निति वचन 29:23 में मनुष्य का अहंकार उसे नीचा दिखाता किंतु विनम्र व्यक्ति का सम्मान किया जाता है। आज के सुसमचार में प्रभु हमसे कहते हैं कि जब तुम भोज पर आमंत्रित हो, तो पहले से जाकर सम्मानीय स्थानों पर कब्जा मत जमाओ। पीछे आम लोगों के साथ बैठो, तब मालिक यदि आपको सम्मानीय स्थान के योग्य समझेगा तो व तुम्हें आगे की ओर बुलायेगा। तब सब के सामने आपकी इज्जत बढेगी।
इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु हमें यह सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे बारे में वास्तविक आंकलन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमे हमारी औकात पता होना चाहिए। कि हम कौन हैं। विनम्रता का मतलब स्वयं की दूसरों के सामने नीचा दिखाना नहीं होता। विनम्रता मतलब होता है सच्चाई, को सच्चाई के तौर पर ग्रहण करना। मैं तभी एक विनम्र व्यक्ति बन सकता हूँ, जबः
1. मैं दूसरों के गुणों, प्रतिभावों व मुल्यों को पहचानता हूँ। खासकरके उन  गुणों को जो मुझसे बढकर हैं तथा दूसरे व्यक्ति में उन गुणों को, उसकी काबिलियत को देखकर उसकी तारिफ कर सकूँ।
2. खुद के गुणों, प्रतिभावों व क्षमताओं की सीमा को पहचानना कि मैं इतना ही कर सकता हूँ। तथा खुद की हदों के परे कुछ हासिल करने की कोषिष न करना। याने मुझे मेरी कमज़ोरियों, बाधाओं को स्वीकार करना चाहिए कि इससे आगे मुझसे कुछ नहीं होगा।
3. एक विनम्र व्यक्ति के मन में ईष्र्या व जलन की भावना कभी नहीं होती। जब उसकी तुलना में दूसरे लोगों को अधिक चाहा जा रहा है, दूसरा व्यक्ति अधिक फल-फूल रहा है, अधिक प्रसिद्धी प्राप्त कर रहा है तब एक विनम्र व्यक्ति ईष्वर को इसके लिए खुषी पुर्वक धन्यवाद देता है।
विनम्रता महापुरूष की निषानी ही नहीं बल्कि उन्नती व वृद्धी एक मार्ग भी है। जो मैनेजमेंट व प्रोजेक्ट के ऊपर काम करते हैं उसमें वे मुल्यांकन का एक सिद्धांत अपनाते हैं जिसे ैॅव्ज् अनालिसिस कहते हैं। इसमें स्वयं की ैजतमदहजी याने क्षमता, ताकत को आंका जाता है फिर खुद की  याने कमजोरियों को ढूंढा व पहचाना जाता है फिर अपनी क्षमता व कमजोरी के अनुसार भविष्य में सुधार के क्या-क्या अवसर हैं व्चचवतजनदपजपमे है व क्या-क्या बधायें हैं। स्वयं के आध्यात्मिक विकास के लिए यह विधी बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है। विनम्रता व्यक्ति को अपनी गिरेबांह में झांकने व खुद की कमजोंरियों को देखने व उन्हें अपनी ताकत क्षमाताओं में परिवर्तित करने में मदद करती है। दूसरी ओर जो व्यक्ति घंमडि व अहंकारी है, जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं उसका जीवन में कभी उद्धार नहीं होगा। ऐसे व्यक्तियों का विकास स्थिर हो जाता है और वे जीवन में बहुत अधिक निराष, व हताष हो जाते हैं। अब प्रष्न यह उठता है कि क्या मैं इतना विनम्र हूँ कि मेरी कमजोरियों को स्वीकार करके उन्हें मेरे विकास के लिए एक माध्यम बना सकूँ। जो कोई इस प्रष्न का उत्तर में देते है प्रभु की कृपा हमेषा उसके साथ है। आमेन।


Saturday, 20 August 2016

वर्ष का 21 वाँ सामान्य रविवार



इसायाह 66:18-21
इब्रानियों 12:7,11-13
लूकस 13:22-30

डामसुस के सांता मार्था के गिरजाघर में संत पिता फ्रांसिस ने कहा था, ‘‘प्रभु येसु के खून से हम सब का उद्धार हुआ है, सब का केवल कैथोलिक ही नहीं सब, हर कोई को उनके खून से मुक्ति मिली है। किसी ने पूछा पिताजी क्या नास्तिकों का भी? वे बोले हाँ नास्तिक भी उनकी मुक्ति के भागीदार हैं। हर कोई और उनका रक्त हमें उनके प्रथम श्रेणी के बच्चों में मिला लेता है। हम उनके रंग-रूप में गढे गये हैं और मसीहा का रक्त हर एक को मुक्ति प्रदान करता है। पर चुनाव या विकल्प हमारा है, हम उस मुक्ति को गले लगायें या फिर ठुकरा दें।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि द्वार तो खुला हुआ है, लेकिन वह संकरा है। संकरे द्वार से प्रवेष करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।
प्रभु येरूसालेम के रास्ते पर आगे बढ रहे थे कि किसी ने उनसे पूछा, ‘‘गुरूवर क्या थोडे ही लोग मुक्ति पायेंगे?’’ वह व्यक्ति स्वर्ग जाने वालों की संख्या व कौन-कौन उसमें प्रवेष कर पायेगा उसकी जानकारी चाह रहा था। यह बडी दिलचस्प बात है कि प्रभु येसु प्रष्न को एक तरफ कर देते हैं। संख्या जानने की जिज्ञासा के बजाय प्रभु के लिए महत्वपूर्ण बात यह थी कि कि यदि कोई वास्तव में स्वर्ग जाने परमपिता परमेष्वर के साथ बैठकर स्वर्गीय भोज में भाग लेने की रूची रखता है तो उसे आज ही प्रभु के सुसमाचार को सुनने व उसपर चलने के लिए उसे निर्णय लेना पडेगा।
स्वर्ग जाने वाला द्वारा संकरा है लेकिन वह प्रतिबंधित नहीं है। प्रभु येसु के अनुसार यह द्वार सब के लिए खुला हुआ है, कोई प्रतिबंध नहीं, कोई टैक्स नहीं। लेकिन स्वर्ग जाने वाला द्वार संकरा है। फिर भी यह सभी राष्ट्रों के लोगों के स्वागत के लिए पर्याप्त विस्तृत है। शायद येसु को सुनने वालों में से कई उनका निष्कर्ष सुनकर आष्चर्यचकित हो गये होंगे। ‘‘पूर्व और पच्छिम; उत्तर और दक्खिन से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। और देखो, जो पिछले हैं वे अगले जायेंगे, और जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे।’’ जो लोग स्वर्ग में अपना प्रवेष ऑटोमैटिकली हो जायेगा ये सोच कर बैठे थे वे अंत में अपने आप को दरवाजे से बाहर पायेंगे जब दरवाजा बंद कर दिया जायेगा। फिर भी दरवाजा पर्याप्त चौडा है विष्व के हर एक कोने से लोगों को अपने अंदर लेने के लिए। संत योहन ने प्रकाषना गं्रथ में जो दिव्य दर्षन देखा था उसमें वे प्रभु येसु के इन शब्दों की पुष्टी करते हैं जहाँ लिखा है - ‘‘इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंषों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विषाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खडे थे। और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कह रहे थे, ‘‘सिंहासन पर विराजमान हमारे ईष्वर और मेमने की जय!’’ (प्रकाषना 7ः9-10)
अधिकतर यहूदियों ने स्वर्ग को हल्के में लिया बहुतों का ये मानना था कि सभी जो बहुत ही बूरे हैं उनको छोडकर बाकी सब यहूदी स्वर्ग जायेंगे। वे हमेषा अपने आप को स्वर्ग राज्य अंदर के लोग समझते थे। वे अपने आपको उद्धार पाये हुवे लोग समझते थे सिर्फ इसलिए  िकवे यहूदी थे। वे बडे गर्व से कहा करते थे अब्राहम हमारे पिता है।
प्रभु की यह षिक्षा उन यहूदियों के लिए थी के लिए थी जो ऐसी धारणा लिये बैठे थे। परन्तु आज हमारे लिए इसके क्या मायने हैं। ख््राीस्तीय होने के नाते हम सब ईष्वर की प्रजा के सदस्य बन गये हैं। जिस प्रकार इस्राएली लोग सिनाई पर्वत पर एक विधान के तहत अपने खतना द्वारा ईष प्रजा के भागीदार बन गये उसी प्रकार ख्रीस्तीय लोग बपतिस्मा के द्वारा ईष परिवार एवं प्रजा के सदस्य बन गये हैं। पुराने विधान के लोगों के समान हम भी नये विधान के अब्राहम के वंषज हैं। हम भी उनकी तरह विषेषाधिकार प्राप्त लोग बन गये हैं। हम भी स्वर्ग राज्य अंदर के लोग बन गये हैं। अन्य धर्मों एवं पंथों की तुलना में हमारे पास मुक्ति की परिपूर्णता है। लेकिन हम हमारे इस विषेषाधिकार पर ही निर्भर नहीं रह सकते। हम इसके लिए दावा नहीं कर सकते। संत लूकस के सुसमाचार से हम सुनते हैं - ‘‘प्रभु हमने आपके सापने खाया पिया और हमारे बाजारों में आपने उपदेष दिया’’ परन्तु वह तुम से कहेगा, मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो।’’ फिर हम कहेंगे प्रभु हमने गिरजाघर में जाकर प्रार्थना की मिस्स बलिदान में भाग लिया नोवेना प्रार्थना की आदि। प्रभु कहेंगे कुकर्मियों तुम मुझ से दूर हट जाओ। क्योंकि यह सच है कि हम प्रभु येसु के द्वारा मुक्त कर दिये गये हैं इसका मतलब ये नहीं कि आराम से बैठ जायें वचन कहता है - ‘‘संकरे द्वार से प्रवेष करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।’’ हमें प्रयत्न करते रहना है। संकरे द्वार से प्रवेष करने का पूरा - पूरा प्रयत्न करना प्रभु येसु ने हमारे लिए, हमारी मुक्ति के जो किया है उसके प्रति हमारा एक प्रत्यिुतर है। प्रभु ईष्वर ने हम सब से प्रेम किया है वे हमसे हमेषा प्यार करते ही रहते हैं लेकिन यदि हम उनके प्रेम को विनिमय नहीं करते अथवा बदले में प्यार नहीं लौटते तो फिर उनके प्यार का आनन्द हम नहीं ले पायेंगे। मुक्ति की घटना भी ऐसी ही है। यह एक तरफा नहीं है। यदि मुक्ति कार्य एक तरफा होता है तो वह पूर्ण नहीं है। यदि मुक्तिकार्य में सिर्फ येसु ही कार्यरत हैं और ख््राीस्तीय अपनी ओर से इसमें भागीदारी नहीं देते, अपनी ओर से प्रयास नहीं करते तो इसका प्रभाव हमारे जीवन में नहीं आयेगा। द्वितीय वाटीकन महासभा का संविधान ल्युमन जेन्स्युम कहता है कि कोई व्यक्ति यद्यपि वह कलीसिया शरीर का अंग है पर प्रेम व सेवा के मार्ग पर नहीं चलता तो वह कलीसिया की गोद में तो ज़रूर रहता है पर केवल शारीरिक रूप में उसकी आत्मा ईष्वर से दूर है। जो कोई अपने मन वचन व कर्म से ईष्वर के मार्ग पर नहीं चलता उसकी वाणी को सुनकर अपने जीवन द्वारा उसका जवाब नहीं देता तो न केवल उसका उद्धार ही नहीं होगा परन्तु उसका निर्णय बडी ही कठोरता एवं क्रूरता से किया जायेगा। जो बाहर के समझे जाते हैं वे प्रभु भोज के भागीदार बनेंगे और अंदर वाले बाहर कर दिये जायेंगे। इसीलिए आज का वचन कहते है - जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं वे अलगे हो जायेंगे। अंतिम न्याय के दिन एक बडा उलट-फेर होगा। जिन्हें हम अंदर देखने का सोच रहे थे होंगे वे बाहर हो जायेंगे। कई बिषप्स, फादर्स सिस्टर्स व दुनिया की दृष्टी में धार्मिक माने जाने वाले ख््राीस्तीय विष्वासीगण। और जिन्हें हम श्रापित नीच व बिना महत्व के सोचते हैं वे ही प्रभु के साथ भोजन की मेज़ पर बैठकर प्रभु भोज का लुफ्त उठायेंगे।
संकरे द्वार का एक अन्य उदाहरण प्रभु हमें दूसरे शब्दों में देते हैं। ‘‘मैं तुमसे यह भी कहता हूँ सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किंतु धनी का ईष्वर के राज्य में प्रवेष करना कठिन है।’’ (मत्ती 19:24) रास्ता बडा संकरा है केवल इंसान ही उसमें प्रवेष कर सकता है। धन-दौलत नहीं। यदि किसी को अपने धन पर बहुत अधिक भरोसा है तो वे याद रखें कि संकरे द्वार से प्रवेष करते समय कहीं वहीं अटक के न रह जायें। इसान ही ज्यादा महत्व रखता है धन-दौलत नहीं।
तो आईये हम हमारे जीवन में एक अच्छा इंसान बनें। जो ईष वचन का अपने मन वचन व कर्माें से प्रत्युत्तर देता हो, जो औरों में मसीह का चेहरा देखता हो। जो अपने लिए स्वर्ग में धन  इन्वेस्ट करता हो। ताकि जब हमारा बुलावा आयेगा तो हम बिना बैग, बिना लगेज के उस द्वार से प्रवेष करते हुवे उस राज्य में प्रविष्ठ हो जायें जहाँ हमारे पिता ने हमारे लिए अनन्तकाल तक निवास करने के लिए घर तैयार कर रखा है। जहाँ हम हमारे सृष्टिकर्ता के साथ एक ही टेबल पर बैठकर भोजन करेंगे।
आमेन ।

Saturday, 6 August 2016

वर्ष का उन्नीसवाँ रविवार



प्रज्ञा ग्रंथ 18:6-9

इब्रानियों 11:1-2

लूकस 12:32-48

आज के वचनों द्वारा प्रभु हमें विश्वास  में मजबूत बनने, उनसे मिलने का बेसब्री इंतजार करने व हमेशा  उनके लिए तैयार रहने का उपदेश देते हैं ।
आज का वचन अब्राहम के विश्वास  का हवाला देते हुए हमें उनके समान विश्वास  बनने को कहता है। उनके सामने कई प्रकार की कठोर परीक्षायें आयी पर वह नहीं डिगा, नहीं डगमगाया। ईष्वर ने अब्राहम के जिस बेटे से असंख्य संतानें उत्पन्न करने का वादा किया था उसे ही बली चढाने का आदेष दिया इस विडम्बना भरी परिस्थिति में भी उसने प्रभु पर भरोसा किया उन्हें मालुम था कि ‘‘ईष्वर मृतकों को भी जिला सकता है’’ (इब्रानियों 11:19)। उसे पता था कि ईष्वर असम्भव को भी सम्भव कर सकता है। इसे कहते हैं विष्वास। आज के पहले पाठ में विष्वास की बहुत ही सुन्दर परिभाषा दी गई है। ‘‘विष्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आषा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।’’
एक बार एक घर में आग लग गई। पूरा घर आग की लपटों से घिरा हुआ था। ऊपरी मंजिल पर एक नन्हीं बालिका सो रही थी। उसके पिता जी नीचे थे। वे उसे नीचे से पुकारते हैं बेटी खिडकी से नीचे कूद जाओ। ऊपर से जवाब आता है, पिताजी मैं आपको नहीं देख पा रही हूँ। पिताजी कहते हैं - बेटी कूद जाओ, नहीं डरो। भरोसा रखो, मैं यहाँ हूँ। बच्ची ऊपर से कूद पडती है और पिता उसे अपनी बाहों में समेट लेते हैं। इसे कहते हैं भरोसा, यही है विष्वास। जब हम विष्वास करते हैं, हम अनिष्चिता के अंधकार में कूद पडते हैं। क्या होगा क्या नहीं, कुछ नहीं पता बस इतना पता रहता है कि मेरा प्रभु मेरे साथ है वह मेरा नुकसान होने नहीं देगा। वचन करता है - ‘‘उसकी लाठी उसके व उसके डंडे पर मुझे भरोसा है’’ (स्तोत्र 23:4)। वह तुम्हारे पैरों को फिसलने नहीं देगा . . . प्रभु ही तुम्हारा रक्षक है वह छाया की तरह तुम्हारे दाहिने रहता है’’ (स्तोत्र 121:2)। ‘‘तुमने सर्वोच्च ईष्वर को अपना शरणस्थान बनाया है। तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा’’ (स्तात्र 91:9-10)।
इस दुनिया में हम ‘‘परदेषी एवं मुसाफिरों के समान’’ हैं (इब्रानियों 11:13)। ‘‘हम हमारा स्वदेष खोज रहे हैं (इब्रानियों 11ः14)। हमारा सारा जीवन हमारे वास्तविक निवास, हमारे वास्तविक घर की ओर एक यात्रा है। हर विष्वासी को अब्राहम की तरह अनजान राहों पर खुदा पर भरोसा करते हुए यात्रा पर निकल पडना चाहिए। हम इस संसार में हमेषा के लिए डेरा नहीं डाल सकते, हमें चलते रहना है। हम इस जग में उस चिडिया के समान है जो कि एक सूखी डाली पर बैठी हुई है। डाली कभी भी टूट सकती है। पर चिडिया को उसकी चिंता नहीं, क्योंकि वह  उडकर कहीं ओर जाने के लिए हमेषा तैयार है। हमें भी वैसे ही हमेषा इस जग से उड जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक बार संत फिलिप नैरी गली में बच्चों के साथ फुटबाॅल खेल रहे थे। किसी ने उनसे पूछा यदि तुम्हें ये पता चले कि तुम कुछ ही क्षणों बाद मर जाने वाले हो तो तुम क्या करोगे? उन्होंने बडी शालीनता से जवाब दिया - ‘‘मैं बच्चों के साथ फुटबाॅल खेलता रहूँगा।’’ उन्हें कोई परवाह नहीं। क्योंकि वे उस चिडिया की तरह कभी भी उड जाने के लिए तैयार थे।
संतगण ऐसे ही होते हैं वे प्रभु से अपने मिलन को बेताब रहते हैं। वे प्रभु के बुलावे के इंतज़ार में रहते हैं कि कब उनकी आत्मा का समागम उस परमात्मा में हो जाये। स्तोत्र ग्रंथ 42:2-3 में प्रभु भक्त कहता है - ‘‘ईष्वर! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसी मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है। मेरी आत्मा ईष्वर की जीवन्त ईष्वर की प्यासी है। मैं कब जाकर ईष्वर के दर्षन करूँगा।’’ तथा स्तोत्र 63:2 में वचन कहता है - ‘‘ईष्वर तू ही मेरा ईष्वर है! मैं तुझे ढूँढता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी संतप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्षनों के लिए तरसता रहता हूँ।’’ प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हम से कहते हैं ‘‘तुम लोग उन लोगों की तरह बन जाओ जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आकर द्वार खटखटायगा तो तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें’’ (लूकस 12:36)। हमें प्रभु का इंतज़ार करते रहना है। यहूदी लोगों ने कई सालों तक मसीहा के आने का इंतज़ार किया। प्रभु येसु ने स्वयं अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ करने व लोगों को स्वर्गराज्य के रहस्यों की षिक्षा देने की शुरूआत करने के लिए 30 सालों तक इंतज़ार किया। पुनरूत्थित प्रभु ने अपने षिष्यों को येरूसालेम में तब तक इंतज़ार करने को कहा जब तक कि वे पवित्र आत्मा की शक्ति से न भर जायें। (प्रे. च. 1:4)। इंतज़ार करने की एक अपनी एक अद्यात्मिकता है। प्रार्थना के द्वारा हम प्रभु को हमारे जीवन में आने के लिए इंतज़ार करते हैं। प्रभु के लिए इंतज़ार करके हम यह ज़ाहिर करते हैं व स्वीकार करते हैं कि प्रभु के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। हमें हमारे जीवन में उनकी बेहद ज़रूरत है। इसीलिए हम उनका इंतजार करते हैं। स्तोत्र ग्रंथ 130:5-6 में वचन कहता है - ‘‘मैं प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है। भोर की प्रतीक्षा करने वाले पहरेदार से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है।’’
हम इंतज़ार तभी कर सकते हैं जब हम तैयार हैं। यदि हमारे घर कोई मेहमान आने वाला हो और घर में तैयारियाँ पूरी न हुई हो तो हम यही सोचेंगे कि हमारा मेहमान अभी नहीं पहुंचे, थोडी देर बाद आये ताकि हम तैयारियाँ पूरी कर लें। प्रभु हम से आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘तुम. . . तैयार रहो, क्योंकि जिस घडी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी समय मानव पुत्र आयेगा’’ (लूक 12:40)।
हमें विष्वास की ज़रूरत है। हमें दया, करूणा व प्रेम से संचालित विष्वास की ज़रूरत है जो हमें सच्चे प्रेम से प्रेरित कार्य करने के लिए सिखायेगा। हमें चट्टाने से भी मजबूत व अडिग विष्वास की ज़रूरत है जो आंधी, तुफान एवं बवंडर में भी विचलित नहीं होगा। हमें हिम्मतवान विष्वास की ज़रूरत है जो हमें बिना किसी झिझक के ईष्वर के लिए व आत्माओं की मुक्ति के लिए महान कार्य के लिए प्रेरित करे। हमें वह विष्वास चाहिए जो एक जलती मषाल के समान है जो अंधकार की शक्तियों से लड सकता है, जो अपनी रोषनी से अज्ञानियों को सही राह दिखा सकता है व पापियों को प्रभु के उजाले में ला सकता है, जो कुनकुने हैं उन में विष्वास व प्रभु के प्रेम ज्वाला प्रज्वल्लित कर सकता है, जो पाप में मर चुके हैं उन्हें प्रभु की मुक्ति की एक आषा किरण दिखा सकें तथा अपने मधुर व शक्तिषाली शब्दों से कठोर से भी कठोर दिल को पिघला सकें तथा शैतान का हर समय हिम्मत के साथ सामना कर सकें। जब हमें इस प्रकार का विष्वास मिल जायेगा। तब हम सब प्रभु की उत्कंठा से राह देख सकते हैं। तब हम उसका इंतज़ार कर सकते हैं। संत फिलिप नेरी की तरह तब हम भी तैयार रह सकेंगे। औरख़ुशी-ख़ुशी  उनके राज्य में प्रविष्ठ हो जायेंगे जहाँ हम सब के लिए हमारे प्रभु येसु ने स्थान तैयार कर रखा है।
आमेन।