Saturday, 27 August 2016

वर्ष का २२ वां रविवार 28 August 2016


प्रवक्ता ग्रन्थ ३: १७-१८, २०, २८-२९
इब्रानी १२:१८-१९, २२-२४
लुकस १४:१, ७-१४


ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आज की धर्मविधि में प्रभु हम सबको अपने समान विनम्र बनने का आह्वान कर रहे हैं। प्रभु कहते हैं ‘‘तुम जितने अधिक बडे हो, उतने अधिक नम्र बनो इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे’’ (प्रव 3:19)
महापुरूषाों की तुलना बहुत बार आम के पेड से की जाती है। आम का पेड जितना अधिक फल देता है उसकी डालियां उतनी ही अधिक नीचे झूक जाती हैं व जितना कम फल रहता है डालियां उतनी अधिक तनी हुई रहती है। जो व्यक्ति वास्तव में जितना अधिक महान होता है वह उतना अधिक विनम्रता दूसरों के सामने झूक जाता है लेकिन जो दुनिया की दृष्टि में स्वयं को बडा दिखाना चाहते हैं वे फलहीन या फिर कम फल वाली डालियों की तरह तन कर अपने आपको जबरन महान सिद्ध करवाने की कोषिष करते हैं।
निति वचन 18:12 में प्रभु का वचन कहता है घमंड विनाष की ओर ले जाता है। और विनम्रता सम्मान की ओर।’’ सम्मान माँगने से नहीं अपने विनम्र सुआचरण से मिलता है। प्रभु का वचन कहता है प्रवक्ता गं्रथ 10:31 में ‘‘पुत्र विनम्रता से अपने स्वाभिमान की रक्षा करो। अपने को अपनी योग्यता के अनुसार ही श्रेय दो।’’ याने मैं जो भी हूँ, जितना पानी में हूँ उससे अधिक दंभ न भरूँ। रहीमदासजी का एक प्रसिद्ध दोहा है
‘‘बडे बडाई न करें बडे न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल

याने जो लोग वास्तव में बडे हैं सम्मानीय हैं वे अपनी बडाई स्वयं नहीं करते जैसा कि हीरा सबसे कीमती चीजों मेंसे एक होने पर भी कभी किसी से नहीं कहता है कि मेरा मूल्य लाखों रूपये है। उसके स्वभाव व उसके गुणों से लोगों को पता चलता है कि हीरा एक कीमती वस्तु है। हम भी ऐसे ही बनें। एक सच्चा गुणवान व्यक्ति जिसे कई उपलबधियाँ प्राप्त है हमेषा यही सोचेगा कि उसकी यह छोटी सी उपलबधि वस्तृत संभावनाओं के सामने कुछ भी नहीं है। अंग्रेजी में एक कहावत है - स्काई  इज़ द लिमिट। याने हमें सिखने, बढने व विकास करने की कोई सीमा नहीं। इसलिए कोई भी अपने आप को परिपक्व, सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी व सबसे बडा विधवान न मानें। हर कोई यह स्वीकार करे कि मैं भी अन्य लोगों की तरह एक साधारण इसान हूँ। मैं भी गलती कर सकता हूँ, मुझमें भी कमज़ोरियां है फिलिपियों को लिखे पत्र 2:3 में संत पौलुस हमें सुन्दर शब्दों में समझाते हुवे कहते हैं - हर व्यक्ति नम्रतापुर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई केवल अपने हित का ही नहीं, बल्कि केवल दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। आज दुनिया में लडाई-झगडे, व युद्ध क्यों होते हैं इसी कारण की हम दूसरों को अपने से श्रेष्ठ नहीं देख पाते, हम दूसरों की उन्नती नहीं सह पाते, दूसरों को पनपते व ऊपर उठते नहीं देख पाते। हमारा अहंकार हम पर हावी हो जाता है। प्रभु का वचन हमें कहता है निति वचन 29:23 में मनुष्य का अहंकार उसे नीचा दिखाता किंतु विनम्र व्यक्ति का सम्मान किया जाता है। आज के सुसमचार में प्रभु हमसे कहते हैं कि जब तुम भोज पर आमंत्रित हो, तो पहले से जाकर सम्मानीय स्थानों पर कब्जा मत जमाओ। पीछे आम लोगों के साथ बैठो, तब मालिक यदि आपको सम्मानीय स्थान के योग्य समझेगा तो व तुम्हें आगे की ओर बुलायेगा। तब सब के सामने आपकी इज्जत बढेगी।
इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु हमें यह सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे बारे में वास्तविक आंकलन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमे हमारी औकात पता होना चाहिए। कि हम कौन हैं। विनम्रता का मतलब स्वयं की दूसरों के सामने नीचा दिखाना नहीं होता। विनम्रता मतलब होता है सच्चाई, को सच्चाई के तौर पर ग्रहण करना। मैं तभी एक विनम्र व्यक्ति बन सकता हूँ, जबः
1. मैं दूसरों के गुणों, प्रतिभावों व मुल्यों को पहचानता हूँ। खासकरके उन  गुणों को जो मुझसे बढकर हैं तथा दूसरे व्यक्ति में उन गुणों को, उसकी काबिलियत को देखकर उसकी तारिफ कर सकूँ।
2. खुद के गुणों, प्रतिभावों व क्षमताओं की सीमा को पहचानना कि मैं इतना ही कर सकता हूँ। तथा खुद की हदों के परे कुछ हासिल करने की कोषिष न करना। याने मुझे मेरी कमज़ोरियों, बाधाओं को स्वीकार करना चाहिए कि इससे आगे मुझसे कुछ नहीं होगा।
3. एक विनम्र व्यक्ति के मन में ईष्र्या व जलन की भावना कभी नहीं होती। जब उसकी तुलना में दूसरे लोगों को अधिक चाहा जा रहा है, दूसरा व्यक्ति अधिक फल-फूल रहा है, अधिक प्रसिद्धी प्राप्त कर रहा है तब एक विनम्र व्यक्ति ईष्वर को इसके लिए खुषी पुर्वक धन्यवाद देता है।
विनम्रता महापुरूष की निषानी ही नहीं बल्कि उन्नती व वृद्धी एक मार्ग भी है। जो मैनेजमेंट व प्रोजेक्ट के ऊपर काम करते हैं उसमें वे मुल्यांकन का एक सिद्धांत अपनाते हैं जिसे ैॅव्ज् अनालिसिस कहते हैं। इसमें स्वयं की ैजतमदहजी याने क्षमता, ताकत को आंका जाता है फिर खुद की  याने कमजोरियों को ढूंढा व पहचाना जाता है फिर अपनी क्षमता व कमजोरी के अनुसार भविष्य में सुधार के क्या-क्या अवसर हैं व्चचवतजनदपजपमे है व क्या-क्या बधायें हैं। स्वयं के आध्यात्मिक विकास के लिए यह विधी बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है। विनम्रता व्यक्ति को अपनी गिरेबांह में झांकने व खुद की कमजोंरियों को देखने व उन्हें अपनी ताकत क्षमाताओं में परिवर्तित करने में मदद करती है। दूसरी ओर जो व्यक्ति घंमडि व अहंकारी है, जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं उसका जीवन में कभी उद्धार नहीं होगा। ऐसे व्यक्तियों का विकास स्थिर हो जाता है और वे जीवन में बहुत अधिक निराष, व हताष हो जाते हैं। अब प्रष्न यह उठता है कि क्या मैं इतना विनम्र हूँ कि मेरी कमजोरियों को स्वीकार करके उन्हें मेरे विकास के लिए एक माध्यम बना सकूँ। जो कोई इस प्रष्न का उत्तर में देते है प्रभु की कृपा हमेषा उसके साथ है। आमेन।


No comments:

Post a Comment