Friday, 25 November 2016

आगमन का पहला रविवार


इसायाह 2:1-5
रोमियों 13:11-14
मत्ती 24:37-44 

आज के पहले पाठ में हमने नबी इसायाह को यह कहते सुना - ‘‘आओ हम यहोवा के पर्वत पर चढ जायें, याकूब के ईश्वर  के मंदिर चलें। नबी ऐसा क्यों कहते है? हमें पर्वत पर क्यों चढना है? क्योंकि वही हमारे जीवन का अखिरी मकसद है। वही हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। संत योहन के सुसमाचार 17:14 में प्रभु येसु पिता से हमारे बारे में कहते हैं कि हम इस संसार के नहीं है। और आगे वे कहते हैं कि ‘‘ पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, पिता! मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहें जिससे वे मेरी महिमा देख सकें, जिसे तूने मुझे प्रदान किया है।’’ यही कारण है कि नबी हमें प्रभु के निवास की ओर जाने के लिए आमंत्रण देते हैं । 
आज के दूसरे पाठ के वचन बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रभावी है क्योंकि इन्हीं वचनों के द्वारा संत अगस्तीन का मन परिवर्तन हुआ था। वे एक बगीचे में टहल रहे थे। वे काफी निराश  व दुःखी थे क्योंकि एक पवित्र जीवन जीने के  उनके  सारे प्रयास विफल हो चुके थे। वो अपने  दिल व मन को टटोलते रहे। कब तक? आखिर कब तक? कल? कल? आज, अभी क्यों नहीं? वो मनन चिंतन करते हुवे, स्वयं से लाखों सवाल पुछते हुवे रोने लगे। तब उन्हें एक आवाज यह कहते हुए सुनाई पडी - ‘‘लो और पढो‘‘ ‘‘लो और पढो’’ ये आवाज एक बच्चे की सी थी। उन्होंने रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र निकाला और ठीक आज हमने जो दूसरा पाठ सुना वही पढा और ईश वचन ने उसके दिल का स्पर्ष किया। वचन ने उनके जीवन को बदल दिया. 
आज का सुसमाचार हमें जागते रहने को कहता है। इसका मतलब यह है कि हमें एक जागृत  अंतरआत्मा के साथ जिना है। हमें हमारी अंतरआत्मा के साथ छेडखानी नहीं करनी चाहिए न ही हमें हमारी अंतर आत्मा को सोने अथवा मरने देना है। हमें भले और बूरे में स्पष्ट अंतर मालुम होना चाहिए। हमें पाप को पाप और अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखना आना चाहिए। हमें हमारे अंदर, हमारे जीवन में बुराईयों को कम करते हुए भलाई को बढावा देना चाहिए। जागृत रहने का मतलब यह भी होता है कि हम हमारे आस-पास, होने वाली घटनाओं से, जीवन की सच्चाई से आंँखें न मूंदे। लोगों के  दुःख-दर्दों से उनकी पीडाओं से हम नजरें न फेंरे बल्कि उनके दुःखों में भागीदार होकर उनके दुःखोें को, उनके जीवन के बोझ को हल्का करने की कोशिश  करें।
 संत पौलुस लिखते हैं - ‘‘नींद से जागने की घडी आ गयी है। रात प्रायः बीत चुकी है, दिन निकलने को है, इसलिए हम, अंधकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-श स्त्र धारण कर लें। हम दिन के योग्य आचरण करें। ?’’ किसी भी प्रकार का बूरा काम अंधकार का काम है। बपतिस्मा के समय हमें, अथवा हमारे माता-पिता के हाथों में एक जलती हुई मोमबत्ती दी गई थी। और पुरोहित ने हमसे कहा था कि आप ख्रीस्त की ज्योति से ज्योर्तिमय हो गये है फलतः ज्योति के पुत्र -पुत्रियों की भांँति निरंतर आचरण करिये, अपने विश्वस  का दीपक जलाए रखिए और जब प्रभु आवें, तो सब संतो के  साथ, स्वर्गिक भवन में उसका स्वागत करें। कहाँ गया वो करार जिसे हमने प्रभु के सामने किया था? कहाँ गई वो प्रतिज्ञा? हम अपने आप से पुछें - क्या मैं प्रभु ख्रीस्त की उस ज्योति को प्रज्वलित रख पाया हूँ? क्या उस ज्योति से मैं, ओरों के जीवन में प्रकाश कर पाया हूँ? या फिर मेरा जीवन अंधकार के संसार में कहीं खो सा गया है, मैं अंधकार के कार्यों में इतना मगन हो गया हूँ कि मुझे उस ज्योति का ख्याल ही नहीं रहा? यदि हमें सचमुच में यह लगता है कि अंधकार का, विभिन्न प्रकार की बुराईयों का हमारे जीवन में कब्ज़ा  है, यदि हमें लगता है कि हमने हमारे जीवन की ज्योति प्रभु येसु से काफी दूरियाँ बना ली है,तो आगमन का  यह समय हमारे लिए सबसे उपयुक्त समय है, प्रभु  के पास लौट आने के लिए। प्रभु आज हमसे कह रहे हैं पहले की अपेक्षा, जिस दिन हमने बपतिस्मा ग्रहण किया था, जिस दिन हमने विश्वास  ग्रहण किया था उसकी तुलना में आज मुक्ति हमारे अधिक निकट है (रोमियो13ः11)। प्रभु कहते हैं जो हुआ सो हुआ। अपने बीते दिनों को लेकर अपने आप को मत कोसो। जो बित गया सो बित गया। तुम्हारे जीवन की काली रात अब बीत चुकी है, नवजीवन का सूरज अब निकलने को है। ‘‘इसलिए अन्धकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-सस्त्र धारण कर लो।’’ प्रकाश ना ग्रन्थ ३:२  में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘जागो, तुम में जो जीवन शेष है और बुझने-बुझने को है, उस में प्राण डालो।’’हम  हमारे विश्वाश  व सतकर्मों की जो ज्योति बुझने-बुझने को हो आईये उसमें एक नई जान भर दें। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने शिक्षा  स्वीकार की और सुनी, उसे याद रखो, उसका पालन करो और पश्चताप  करो। यदि तुम नहीं जागोगे, तो मैं चोर की तरह आऊँगा और तुम्हें मालूम नहीं हैं कि मैं किस घडी आऊँगा’’ (प्रकाषना 3:3)। 
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आगमन के इस पवित्र काल में प्रभु हमारे जीवन में आकर हमें नया बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं - ‘‘मैं तुम्हें एक नया हृदय प्रदान करूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूंगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निकाल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूंँगा’’ (एजेकिएल36ः26)। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम अपने पूवर्जों के समान मत बने रहो। प्राचीनकाल में उन्होंने नबियों की चेतावनी सुनी थी, किंतु उन्होंने न सुना, न कुछ ध्यान दिया था’’ (जकर्या 1:4)। 
 आईये हम उनके समान न बनें। इस पवित्र समय का हम पूरा आध्यात्मिक लाभ उठावें। हम अपने पापों पर पश्चाताप करते हुए, अपनी गलतियों के लिए प्रभु से क्षमा मांगते हुए, प्रभु के पवित्र पर्वत की ओर आगे बढें। आईये उस मुक्तिदाता मसीहा केदर्शन  करने के लिए अपने आप को तैयार करें, जो आने वाला है। नबी इसायाह आज के पहले पाठ में कहते हैं कि वह मसीहा ‘‘राष्ट्रों पर शासन करेगा और देशों  के झगडे़ मिटायेगा। लोग अपनी तलवारों को पीट-पीटकर फाल और भाले को हंँसिया बना लेंगे। राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध की विद्या समाप्त हो जायेगी। याकूब के वंश ! हम प्रभु की ज्योति में चलते रहेें।’’ आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर हावी हो रहा है; कहीं आतंकियों के द्वारा खून खराब तो कहीं धर्म जाती को लेकर झगडे लड़ाई प्रभु ने जिस  प्रेम व शांति का राज्य के विषय इस कहा है वह  स्थापित होगा जब हम उस मसीहा को हमारे जीवन में बुलायेंगे, जब हम हमारा यह जीवन उनके वचनों के मुताबित उनकी इच्छा के अनुसार बितायेंगे। प्रभु हमारे द्वारा इस जग में प्रेम व शांति का राज्य स्थापित करेंगे। हम उनकी प्रजा इसकेलिए अपने आप को प्रभु को सौंप दें। उन्हें हमारे जीवन का उपयोग करने दें। उन्हें हमारे जीवन के द्वारा एक नयी सृष्टि, एक नये संसार का निर्माण करने दें। जहांँ न युद्ध होगा न लडाई, न ईष्र्या न द्वेष, न लालच और न भ्रष्टाचार। आईये हम सब मिलकर प्रभु के उस राज्य के आगमन की तैयारी करें। आमेन।

  
   

Friday, 18 November 2016

ख्रीस्त राजा का महोत्सव 20 Nov, 2016


2 सामुएल:1-3
कलोसियों 1:12-20
लूकस 23:53-43

आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं आज के दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु ‘‘अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है’’ (कोलो 1:15-18)। इसलिए प्रभु येसु एक सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं - ‘‘मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया था, वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चौगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुशमनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने, न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-शौकत  को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौशाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्योँकि  लिखा है - अपने प्रभु  ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4ः8-10)। आज के सुसमाचार में हमने सुना कि जब सैनिकों ने उनकी हंसी उडाते हुए उनसे कहा है - ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।’’ पर प्रभु ने वहां पर भी अपने निजी महिमा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन  नहीं किया।
जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। उनका राज्य इस दुनिया के राजायों जैसा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद वाला राज्य नहीं है। वे कहते हैं मेरा राज्य इस दुनिया का नहीं है (योहन 18:36)। जिस राज्य की प्रभु येसु बात कर रहे थे उसे न तो पिलातुस, न यहूदी और दुनिया की कोई भी ताकत मिटा सकती है। उनका राज्य विश्वासियों के दिलों में स्थापित किया गया है। सम्राटों पर सम्राट पैदा हुए व प्रभु येसु को लोगों के दिलों के सिहासन से हटाने की नाकामियाब कोशिश  की; कई प्रकार की भ्रांत व भटकाने वाली शिक्षायें व सिद्धांत आये, व राजनैतिक शक्तियों व असामाजिक ताकतों ने प्रभु येसु को लोगों के दिलों से दूर करने की लाखों कोशिश   की व आज तक कोशिश की जा रही हैं पर सब व्यर्थ है। पिछले एक दो सालों से इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने कई मासूम व निर्दोष ईसाईयों का संहार किया; हमारे देश  में ओडिशा  के कंधमाल जिले में हजारों ईसाईयों का खून बहाया गया परन्तु कोई भी लोगों के दिलों से येसु को अलग नहीं कर सके। और कभी कर भी नहीं पायेंगे। क्योंकि प्रभु येसु वह राजा है जिनके पास सर्वोच्च शक्ति है। वे सारे ब्रह्माण्ड के राजा है। संत मत्ती के सुसमाचार 28:18 में प्रभु ने कहा है - ‘‘मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।’’
प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईष्वर का राज्य निकट आ गया है’’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर  का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेश  करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास  करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामाथ्र्य के सम्मुख समर्पित करना होगा। ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिश्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेशा शासन करते रहें। बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।
आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने व गीत गाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विष्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)। क्योंकि हम देखते हैं कि आज शैतान विभिन्न रूपों में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिषत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। इसलिए प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय  प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य  से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों . . . और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6ः10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास  की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईश वचन।
 हमारे दिलों के राजा आज हमारे दिलों के द्वार पर आकर खडे होकर कह रहे हैं  - ‘‘मैं द्वार के सामने खडा हो कर खटखटातो हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। प्रभु हमारे दिलों में जबरदस्ती करके नहीं आते, जब तक हम हमारे दिलों को उनके लिए नहीं खोलेंगे वे अंदर नहीं आयेंगे। हमारे दिलों का द्वार खोलने के लिए हमें, सबसे पहले सारी बूरी बातों, बूरे विचारों, व बूरी भावनाओं को हमारे दिलों से दूर करना होगा और उनकी जगह दुसरों के प्रति प्रेम, दया, करूणा, क्षमा व भाईचारी की भावनाओं से हमारे दिलों को सुसज्जित करना होगा। तभी हमारे दिलों के राजा प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे भीतर आकर हमारे हृदयों के सिंहासन पर विराजमान होंगे और तब हम सच्चे अर्थों में कह पायेंगे कि ‘‘वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है’’ (प्रकाशना 17:14)।
आमेन।