इसायाह 2:1-5
रोमियों 13:11-14
मत्ती 24:37-44
आज के पहले पाठ में हमने नबी इसायाह को यह कहते सुना - ‘‘आओ हम यहोवा के पर्वत पर चढ जायें, याकूब के ईश्वर के मंदिर चलें। नबी ऐसा क्यों कहते है? हमें पर्वत पर क्यों चढना है? क्योंकि वही हमारे जीवन का अखिरी मकसद है। वही हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। संत योहन के सुसमाचार 17:14 में प्रभु येसु पिता से हमारे बारे में कहते हैं कि हम इस संसार के नहीं है। और आगे वे कहते हैं कि ‘‘ पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, पिता! मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहें जिससे वे मेरी महिमा देख सकें, जिसे तूने मुझे प्रदान किया है।’’ यही कारण है कि नबी हमें प्रभु के निवास की ओर जाने के लिए आमंत्रण देते हैं ।
आज के दूसरे पाठ के वचन बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रभावी है क्योंकि इन्हीं वचनों के द्वारा संत अगस्तीन का मन परिवर्तन हुआ था। वे एक बगीचे में टहल रहे थे। वे काफी निराश व दुःखी थे क्योंकि एक पवित्र जीवन जीने के उनके सारे प्रयास विफल हो चुके थे। वो अपने दिल व मन को टटोलते रहे। कब तक? आखिर कब तक? कल? कल? आज, अभी क्यों नहीं? वो मनन चिंतन करते हुवे, स्वयं से लाखों सवाल पुछते हुवे रोने लगे। तब उन्हें एक आवाज यह कहते हुए सुनाई पडी - ‘‘लो और पढो‘‘ ‘‘लो और पढो’’ ये आवाज एक बच्चे की सी थी। उन्होंने रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र निकाला और ठीक आज हमने जो दूसरा पाठ सुना वही पढा और ईश वचन ने उसके दिल का स्पर्ष किया। वचन ने उनके जीवन को बदल दिया.
आज का सुसमाचार हमें जागते रहने को कहता है। इसका मतलब यह है कि हमें एक जागृत अंतरआत्मा के साथ जिना है। हमें हमारी अंतरआत्मा के साथ छेडखानी नहीं करनी चाहिए न ही हमें हमारी अंतर आत्मा को सोने अथवा मरने देना है। हमें भले और बूरे में स्पष्ट अंतर मालुम होना चाहिए। हमें पाप को पाप और अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखना आना चाहिए। हमें हमारे अंदर, हमारे जीवन में बुराईयों को कम करते हुए भलाई को बढावा देना चाहिए। जागृत रहने का मतलब यह भी होता है कि हम हमारे आस-पास, होने वाली घटनाओं से, जीवन की सच्चाई से आंँखें न मूंदे। लोगों के दुःख-दर्दों से उनकी पीडाओं से हम नजरें न फेंरे बल्कि उनके दुःखों में भागीदार होकर उनके दुःखोें को, उनके जीवन के बोझ को हल्का करने की कोशिश करें।
संत पौलुस लिखते हैं - ‘‘नींद से जागने की घडी आ गयी है। रात प्रायः बीत चुकी है, दिन निकलने को है, इसलिए हम, अंधकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-श स्त्र धारण कर लें। हम दिन के योग्य आचरण करें। ?’’ किसी भी प्रकार का बूरा काम अंधकार का काम है। बपतिस्मा के समय हमें, अथवा हमारे माता-पिता के हाथों में एक जलती हुई मोमबत्ती दी गई थी। और पुरोहित ने हमसे कहा था कि आप ख्रीस्त की ज्योति से ज्योर्तिमय हो गये है फलतः ज्योति के पुत्र -पुत्रियों की भांँति निरंतर आचरण करिये, अपने विश्वस का दीपक जलाए रखिए और जब प्रभु आवें, तो सब संतो के साथ, स्वर्गिक भवन में उसका स्वागत करें। कहाँ गया वो करार जिसे हमने प्रभु के सामने किया था? कहाँ गई वो प्रतिज्ञा? हम अपने आप से पुछें - क्या मैं प्रभु ख्रीस्त की उस ज्योति को प्रज्वलित रख पाया हूँ? क्या उस ज्योति से मैं, ओरों के जीवन में प्रकाश कर पाया हूँ? या फिर मेरा जीवन अंधकार के संसार में कहीं खो सा गया है, मैं अंधकार के कार्यों में इतना मगन हो गया हूँ कि मुझे उस ज्योति का ख्याल ही नहीं रहा? यदि हमें सचमुच में यह लगता है कि अंधकार का, विभिन्न प्रकार की बुराईयों का हमारे जीवन में कब्ज़ा है, यदि हमें लगता है कि हमने हमारे जीवन की ज्योति प्रभु येसु से काफी दूरियाँ बना ली है,तो आगमन का यह समय हमारे लिए सबसे उपयुक्त समय है, प्रभु के पास लौट आने के लिए। प्रभु आज हमसे कह रहे हैं पहले की अपेक्षा, जिस दिन हमने बपतिस्मा ग्रहण किया था, जिस दिन हमने विश्वास ग्रहण किया था उसकी तुलना में आज मुक्ति हमारे अधिक निकट है (रोमियो13ः11)। प्रभु कहते हैं जो हुआ सो हुआ। अपने बीते दिनों को लेकर अपने आप को मत कोसो। जो बित गया सो बित गया। तुम्हारे जीवन की काली रात अब बीत चुकी है, नवजीवन का सूरज अब निकलने को है। ‘‘इसलिए अन्धकार के कार्यों को त्याग कर, ज्योति के अस्त्र-सस्त्र धारण कर लो।’’ प्रकाश ना ग्रन्थ ३:२ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘जागो, तुम में जो जीवन शेष है और बुझने-बुझने को है, उस में प्राण डालो।’’हम हमारे विश्वाश व सतकर्मों की जो ज्योति बुझने-बुझने को हो आईये उसमें एक नई जान भर दें। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुमने शिक्षा स्वीकार की और सुनी, उसे याद रखो, उसका पालन करो और पश्चताप करो। यदि तुम नहीं जागोगे, तो मैं चोर की तरह आऊँगा और तुम्हें मालूम नहीं हैं कि मैं किस घडी आऊँगा’’ (प्रकाषना 3:3)।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आगमन के इस पवित्र काल में प्रभु हमारे जीवन में आकर हमें नया बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं - ‘‘मैं तुम्हें एक नया हृदय प्रदान करूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूंगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निकाल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूंँगा’’ (एजेकिएल36ः26)। प्रभु कहते हैं - ‘‘तुम अपने पूवर्जों के समान मत बने रहो। प्राचीनकाल में उन्होंने नबियों की चेतावनी सुनी थी, किंतु उन्होंने न सुना, न कुछ ध्यान दिया था’’ (जकर्या 1:4)।
आईये हम उनके समान न बनें। इस पवित्र समय का हम पूरा आध्यात्मिक लाभ उठावें। हम अपने पापों पर पश्चाताप करते हुए, अपनी गलतियों के लिए प्रभु से क्षमा मांगते हुए, प्रभु के पवित्र पर्वत की ओर आगे बढें। आईये उस मुक्तिदाता मसीहा केदर्शन करने के लिए अपने आप को तैयार करें, जो आने वाला है। नबी इसायाह आज के पहले पाठ में कहते हैं कि वह मसीहा ‘‘राष्ट्रों पर शासन करेगा और देशों के झगडे़ मिटायेगा। लोग अपनी तलवारों को पीट-पीटकर फाल और भाले को हंँसिया बना लेंगे। राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध की विद्या समाप्त हो जायेगी। याकूब के वंश ! हम प्रभु की ज्योति में चलते रहेें।’’ आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर हावी हो रहा है; कहीं आतंकियों के द्वारा खून खराब तो कहीं धर्म जाती को लेकर झगडे लड़ाई प्रभु ने जिस प्रेम व शांति का राज्य के विषय इस कहा है वह स्थापित होगा जब हम उस मसीहा को हमारे जीवन में बुलायेंगे, जब हम हमारा यह जीवन उनके वचनों के मुताबित उनकी इच्छा के अनुसार बितायेंगे। प्रभु हमारे द्वारा इस जग में प्रेम व शांति का राज्य स्थापित करेंगे। हम उनकी प्रजा इसकेलिए अपने आप को प्रभु को सौंप दें। उन्हें हमारे जीवन का उपयोग करने दें। उन्हें हमारे जीवन के द्वारा एक नयी सृष्टि, एक नये संसार का निर्माण करने दें। जहांँ न युद्ध होगा न लडाई, न ईष्र्या न द्वेष, न लालच और न भ्रष्टाचार। आईये हम सब मिलकर प्रभु के उस राज्य के आगमन की तैयारी करें। आमेन।
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