Monday, 31 December 2018

1 जनवरी ईश माता का पर्व 2019 Hindi Reflections from Atma ki Talwar

l1 जनवरी ईश माता का पर्व
2019

आज हम नये साल की शुरूआत ईष माता मरियम के पर्व के साथ करते हैं। मा मरियम कृपाओं से भरपूर की गयी थी। उनको प्राप्त सब कृपाओं में ईष्वर की माता बनना सबसे श्रेष्ठ था। मरियम की महानता इसमें है कि उनके हाँ कहने पर हमारी मुक्ति का द्वार खुल गया। उन्होंने कहा ‘‘देख, मैं प्रभु की दासी हूँ तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाए’’ और उसी क्षण शब्द ने उनके गर्भ में देहधारण किया; उसी क्षण ईष्वर का शब्द उनके गर्भ में शरीर धारण कर मनुष्य बन गया। इस प्रकार मरियम ईष्वर की माता बन गई; हमारे मुक्तिदाता की माता बन गई और हमारी मुक्ति में एक महान सहायक बन गई।

ईष-माता का समारोह यद्यपि कलीसिया के आरम्भ से  मनाया जाता रहा है किंतु इसे हमारे काथलिक धर्मसिद्धांत के रूप में मान्यता एफेसुस की परिषद में सन् 431 में दिया गया। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं कि - ‘‘आदि में शब्द था, शब्द ईष्वर के साथ था और शब्द स्वयं ईष्वर था। उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ........।(और उसी) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ (योहन 1:14 )याने प्रभु येसु, पिता के एकलौते पुत्र अनादि वचन है जो आदि में पिता के साथ विद्यमान था, जिसे ‘‘समय पूरा हो जाने पर ईष्वर ने इस संसार में भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुआ और संहिता के अधीन रहा, जिससे वह संहिता के अधीन रहने वालों को छुडा सकें और हम ईष्वर के दत्तक पुत्र-पुत्रियां बन जाये’’ ( गला 4:4-5) इसका मतलब ये हुआ कि प्रभु येसु स्वयं ईष्वर थे जो अनन्तकाल से विद्यमान है। तथा मानव मुक्ति के लिए वे स्वयं एक मनुष्य बन गये। मनुष्य बनने के लिए ईष्वर ने एक कुँवारी को अपने बेटे की माँ बनने के लिए चुना। इसलिए माँ मरियम ईष्वर की माँ है। उनके शरीर में रहकर ईष्वर जो अदृष्य थे; जिसका शरीर नहीं था एक शरीर धारण करते हैं। यही कलीसिया का विष्वास है; यही पवित्र बाईबल हमें सिखलाती है।  परन्तु कई विश्वासी भाई बहनें मरियम को ईश् माता के रूप में समुचित आदर सम्मान नहीं देते। एक बार एक कैथोलिक भाई किसी नयी जगह पर गया। वहां सन्डे को प्रार्थना के लिए चर्च ढ़ुढ़ते-ढुंढ़ते एक चर्च गया। उनसे प्रार्थना का समय पूछा। वे अंदर गए और उन्होंने उस चर्च के पास्टर से पूछा कि आपके चर्च में माता मरियम के लिए कोई जगह नहीं है क्या। वे बोले जी नहीं। हम मरियम को कोई जगह नहीं देते। तो कैथोलिक भाई बोला- जहाँ प्रभु की माँ के लिए जगह नहीं वहाँ मेरे लिए भी जगह नहीं। इस पर उस कलीसिया के व्यक्ति ने उसे समझाते हुए कहा- देखो हम ये तो मानते हैं कि मरियम येसु की माँ है। पर येसु को जन्म देने के बाद उनका रोल या फिर उनकी भूमिका खत्म हो जाती है। जैसे चूजा निकलने के बाद अंडे के छिलके का क्या कोई महत्व नहीं वैसे ही येसु के जन्म के बाद मरियम का कोई महत्व तो नहीं रह जाता। ईश्वर  की योजना में मुक्तिदाता को जन्म देने लिए एक नारी का होना था। और वह योजना  मसीह के जन्म के साथ पुरी हो जाती है। उसके बाद मसीह का काम शुरू होता है।

क्या यह तर्क सही है?  क्या मरयम महज एक अंडे का छिलका है? क्या परम् पिता ईश्वर की निगाह में यह नारी बस एक अंडे के छिलके के बराबर है? क्या ईश्वर के आदेश पर ही गेब्रियल दूत मरियम को प्रणाम नहीं करता? (लूक 1,28); क्या एलिज़ाबेथ पवित्र आत्मा से भरकर यह नहीं कहती - आप नारियों में धन्य है, और धन्य है आपके गर्भ का फल। मुझे यह सौभाग्य कैसे मिला कि मेरे प्रभु की माँ मुझसे मिलने आयी? क्या वास्तव में उनका रोल जन्म के बाद ख़त्म हो जाता है। तो फिर जन्म के बाद हेरोद जब शिशु येसु को मारना चाह रहा था तब कौन योसेफ के साथ बालक को मिस्र देश लेकर भागती हैं? संत लुकस के अनुसार कौन येसु को मन्दिर में समर्पित करती है? (लूक 2,22-23) कौन तीन दिन तक येसु को खोजते हुए येरूसलम मन्दिर तक जाती है?(लूक 2,48); कौन येसु की सेवकाई के समय उनसे मिलने जाती थी? (मत्ती 12,46-50); किसके कहने पर येसु ने काना के विवाह में अपना पहला चमत्कार दिखाया?(योहन 2,1-12); कौन क्रूस ढोते येसु के साथ-साथ चली? और कौन कलवारी पहाड़ी पर क्रूस के नीचे बेटे येसु के साथ खड़ी रही(19,25) और वो कौन थी जिसे येसु ने क्रूस से योहन को अपनी माता के रूप में दे दिया? (योहन 19,27)। प्रभु के स्वर्गारोहण के बाद कौन शिष्यों को एक साथ लेकर पवित्रात्मा के अभिषेक के लिए तैयार करती है? (प्रे.च. 1,12-14)।

अब बताईये क्या येसु के जन्म के बाद मरियम की भूमिका ख़त्म हो जाती है? कोई कितना भी विरोध कर ले, कितने भी तर्क लगाले, पर मरियम का आदर व सम्मान हर विश्वासी को करना चाहिए। क्योंकि वह येसु (ईश्वर )की माँ है। और क्योंकि पवित्र बाइबिल में भी उन्हें सम्मान का दर्ज़ा मिला है।
ईश माता होने के साथ ही साथ वो हम सब की, सारी कलीसिया की माँ है।  क्योंकि स्वयं येसु ने क्रूस पर से उन्हें हमारी माता के रूप में हमें सौंपा है। हम संत योहन के सुसमाचार में पढते हैं येसु संत योहन से कहते हैं - ‘‘यह तुम्हारी माता है’’ और माँ मरियम से कहते हैं - ‘‘यह आपका पुत्र है’’ (यो 19ः27)। और वचन आगे कहता है उस समय से उस शिष्य ने अपने यहाँ उसे आश्रय दिया।’’ संत योहन ने क्या किया? तब से माँ मरियम को अपने घर में जगह दी। अपनी ही माँ के रूप में, अपने ही परिवार के एक सदस्य के रूप में। हम सब यदि यसु की माँ को अपनी माता मानते हैं, स्वीकरते हैं तो हमें भी उन्हें अपने घरों में ले जाना होगा। माता मरियम को हमारे परिवारों में जगह देना होगा; हमारे परिवार के ही एक सदस्य के रूप में माँ को स्वीकार करना होगा। क्योंकि उनके पुत्र की यही आखिरी ख्वाहीश थी अपनी माँ को लेकर कि उसका हर अनुयायी उनकी माँ को अपनी माँ समझे व उसे अपने घर ले जाये। उसने अपनी माँ को हमें इसलिए दे दिया कि वह हमारे साथ रहकर हमारी ज़रूरतों में हमारे लिए प्रार्थना करती रहे। वह हमारी परिवार में रहकर हमारे परिवारों को नाज़रेथ के पवित्र परिवार की तरह एक पवित्र व आदर्श परिवार बनानें में हमारी मदद करे। हमें धर्म मार्ग पर चलाये व शैतान के प्रलोभनों से हमारी रक्षा करे क्योंकि ईष्वर ने शैतान की सारी शक्तियों को माँ मररियम के पैरों तले डाल दिया है।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों प्रभु येसु द्वारा हमें प्रद्त इस अमुल्य उपहार को हम हमारे घरों में, हमारे परिवारों में कैसे रख सकते हैं। मैं सोचता हूँ पवित्र रोज़री माला से उत्तम और कोई साधन नहीं जिसके द्वारा हम माँ मरियम को अपने घरों में बुला सकते हैं उनका आह्वान कर सकते हैं, उनसे प्रार्थना की अरज कर सकते हैं। जिस घर में रोज़री माला विनती होती है माँ मरियम उस घर में रहती है, उस घर का, उस परिवार का एक अभिन्न अंग बनकर। उनकी प्रार्थनायें माँ प्रभु तक जल्दि पहुँचा देती है।

आईये हम माँ मरियम को अपने घरों में जगह दें, रोज उनका स्मरण करें, वो ईष्वर की माता व हम सब की माता है।
आमेन।

May you have a year filled with mighty anointing of the Spirit of God who came upon Mary to make her the Mother of God.
Happy New Year to all.

Saturday, 15 December 2018

आगमन का तीसरा रविवार 16 दिसम्बर 2018


सफनिया ३ः१४-१८
फिल ४ः४-७
लुक ३ः१०-१८
आगमन का तीसरा रविवार आनंद के विषय पर ज़ोर देता है। यह आनन्द का रविवार कहलाता है।
इंसान जब तक इस संसार में है, खुशी तलाशता है। हम बीमार होने पर इलाज़ करवाते हैं, चोट लगने पर मरहम लगाते हैं। क्योंकि हम जीवन में दुःख और दर्द नहीं चाहते। ख़ुशी चाहते हैं। खुशी और आनंद के लिये इंसान क्या क्या नहीं करता। पर सच्ची ख़ुशी हर किसी के नसीब नहीं होती। क्योंकि यह कोई पैसे से मिलने वाली चीज़ नहीं है। खुशियाँ कभी  किसी अरबपति के घर से नदारद तो किसी कंगाल के घर में भरपूर होती है।
क्योंकि आनंद ईश्वर का दिया उपहार है। पवित्र आत्मा का दिया फल है। गलतियों 5,22 में हम पढ़ते हैं आत्मा का फल है प्रेम, आनन्द शांति आदि। इसलिए यदि कोई इस संसार में सच्ची खुशी और आनंद चाहता है तो संत पौलुस आज हमसे कहते हैं आनंद मनाईये, प्रभु में सदा आनंद मनाईये। खुश या आनन्दित रहने के लिए यूँ तो इंसान कई जतन करता है पर वास्तिवक ख़ुशी मिलती नहीं। न पैसा, ना दौलत, न शौहरत, ना पार्टी, और न ही दोस्ती सच्ची ख़ुशी दे सकते है। जब तक हम प्रभु में अपनी ख़ुशी नहीं तलाशते हम अधूरे ही रहेंगे। इस लिए सन्त पौलुस कहते हैं - प्रभु में आनंन्द मनाइये। हमारी खुशियाँ उन्हीं में परिपूर्ण हो सकती है। सन्त योहन 15, 11 में प्रभू अपने शिष्यों से कहते हैं मैंने तुम लोगों से यह इसलिये कहा कि तुम मेरे आनंद के भागिदार बनो और तुम्हारा आनंद परिपूर्ण हो। जब तक हम प्रभु के आंनद के भागीदार नहीं बनते हमारी ख़ुशी हमारा आनंद अधूरा है।
प्रभु के आनंद को हमारे जीवन में अनुभव करने के लिये हमें प्रभु येसु जैसा हृदय चाहिए। क्योंकि "कोई भी पुरानी मशकों में नई अंगूरी नहीं भरता।" (सन्त मारकुस 2,22) नयी अंगूरी के लिए नयी मशकें चाहिए। प्रभु के आनंद के लिए, उसके  काबिल एक दिल चाहिए।
मनुष्यों के जीवन से उनकी खुशियाँ चुराने वाला शैतान है। और हमारे पाप हमारे जीवन में सच्ची ख़ुशी पाने में एक बाधा।

इसलिए ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, जब सारी मानवता पाप, दुःख व कष्टों में कराह उठी थी। जब शैतान ने इंसान से सच्चे आनंद व् ख़ुशी को छीन लिया था  तब प्रभु येसु, ‘अनादि शब्द’ व ‘पिता के एकलौते पुत्र,‘ ने इस धरा पर इन्सान बनकर, एक गरीब गौशाला में कुँवारी मरियम से जन्म लिया। रोमियों को लिखे अपने पत्र अध्याय 3:23-24 में प्रभु का वचन हमसे कहता हैं - ‘‘क्योंकि सबों ने पाप किया और सब ईष्वर की महिमा से वंचित किये गये।’’ पिता ईष्वर  ने इंसान को अपने ही प्रतिरूप बनाया; उसे ईष्वर की महिमा का भागीदार बनाया; ईश्वर ने इंसान को अपने आनंद का भागीदार बनाया था। पर पाप ने उस आनंद से हमें वंचित कर दिया। उस महिमा को अथवा उस प्रभु को पुनः पाने के लिए सन्त योहन बपतिस्ता आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘जिनके पास दो कुरते हों, वह एक उसे दे दे, जिसके पास नहीं है और जिसके पास भोजन है वह भी ऐसा ही करे।’’ वे नाकेदारों से कहते हैं ‘‘जितना तुम्हारे लिये नियत है उससे अधिक न लो’’ याने बेईमानी से लोगों को मत ठगो; व सैनिकों से कहते हैं  -‘‘किसी पर अत्याचार मत करो व झूठा दोष मत लगाओ।’’ हम भी जब उसी प्रभु के हमारी जिंदगी में आने की राह देख रहे हैं तो प्रभु का वचन हमसे भी यही कहते हैं कि जरूरत से ज्यादा अपने पास मत रखो, उसे गरीबों को दे दो। वचन तो कहता है कि यदि तुम्हारे पास दो कुरते हों तो एक उसको दे दो जिसके पास कुुछ भी नहीं है। एक दे देने के बाद भी तुम्हारे पास कम से कम एक और है परन्तु उस गरीब भीखारी, गरीब बच्चे के पास तो कुछ भी नहीं है, वो नंगा घूम रहा है, वो फटेहाल है। हम सब ने रेलवे स्टेशन व गलियों में अर्धनग्न अवस्था में घुमते इंसानों को देखा है। और हमने उनको कुछ देने की जगह उन्हें भला-बूरा भी कहा है। जब हमारे पास किसी गरीब ने आकर हाथ फैलाया तो हमने उससे अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेरीं है। जहाँ नाम, सम्मान और पहचान मिलती है वहाँ हम दान-पुण्य तो करते ही हैं परन्तु प्रभु आज हमसे कहते हैं कि रात के अंधेरे में जाकर फूटपाथ पर पडे ठिठूरते हुवे किसी अभागे को एक कंबल ओढा दो।, रोटी के एक निवाले के लिए तरसते किसी गरीब को कुछ खाने को दे दो, वहाँ आपकी तारिफ करने वाला शायद कोई नहीं होगा परन्तु ‘‘तुम्हारा पिता जो सब कुछ देखता हे तुम्हें पुरस्कार देगा’’ (मत्ती 6ः4),  वह हमसे कहेगा - ‘‘जब मैं भूखा था तब तुमने मुझे खिलाया; प्यासा था तब क्या तुमने मुझे खिलाया; नंगा था तब तुमने मुझे पहनाया; और जब मैं बंदी, बिमार व परदेषी था तो  तुम मुझसे मिलने आये‘‘ इसलिये आकर उस अंनंत आनंद के स्थान में प्रवेश करो जो संसार के प्राम्भ से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है। (मत्ती 25:35-36)। कुछ त्यागने, और दूसरों को देने में जो आनंद मिलता है वह इक्कठा करने, जमा कर करके खज़ाना भरने व सिर्फ अपनी जेब व् पेट का ख्याल रखने में नहीं मिलता।
मुक्ति प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग प्रेममय सेवा ही है। पवित्र काथलिक कलीसिया की धर्मषिक्षा में हम दया के कार्यों के बारे में सिखते हैं। ये दया के कार्य, प्रेममय सेवा के कार्य हैं जिनके द्वारा हम हमारे पडोसियों की शारीरिक व आध्यात्मिक ज़रूरतों में मदद करते हैं। भ्रमितों का मार्गदर्शन करना, अज्ञानियों को षिक्षा देना, पापियों को सचेत करना, पीडितों को सांत्वना देना, अपराधियों को क्षमा करना, धैर्य के साथ अन्याय को सहन करना व मृतकों व जीवितों के लिए प्रार्थना करना ये सब दया के आध्यात्मिक कार्य हैं। तथा भूखों को खिलाना, प्यासों को पिलाना, वस्त्रहीन को पहनाना, बेघरों को आश्रय देना, बिमारों की सेवा करना, उनसे मिलने जाना, कैदियों से मिलने जाना, व मुर्दाें को दफनाना ये सब दया के शारीरिक कार्य हैं। इन सब में गरीबों को दान देना किसी के प्रति दया दिखाने का सबसे उत्तम कार्य है; यह न केवल सेवा का परन्तु न्याय का कार्य भी है। (कैथोलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा,2447)
मदर तेरेसा कहती हैं कि एक बार वो ऐसे हिंदू परिवार से मिली जिसने कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया था। मदर ने उन्हें थोडा चावल दिया। उस परिवार की माँ ने जो किया उसे देखकर मदर स्तब्ध रह गयी। उसने उस चावल को दो हिस्सों में बाँट दिया व उसका आधा हिस्सा लेकर वह अपने मुसलिम पडोसी के घर गई और उन्हें दे दिया। यह देखकर मदर ने उससे पुछा यह क्या किया तुमने अब तुम्हारे परिवार के लिए कितना बचा है? क्या इतना आप लोगों के लिए पर्याप्त होगा?’’ इस पर उस औरत ने जवाब दिया - ‘‘लेकिन उन लोगों ने भी तो कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया है।’’ इसे कहते हैं शेयरिंग एंड कैरिन्ग या मिल-बाँट कर खाना। हमें सारे संसार की समस्याओं को समाप्त करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए हम व्यक्तिगत रूप से पूरी दुनिया की गरीब तो मिटा नहीं पायेंगे। एक बार किसी ने मदर तेरेेसा से व्यंग्यात्मक रूप से पुछा कि संसार में इतने सारे भूखे लोग हैं उन सबको वह कैसे खिलाइगी। इस पर मदर ने शाँतभाव से कहा -‘‘एक-एक करके’’। जि हाँ हम कमसे कम जब भी हमें किसी एक भी गरीब की मदद करने का अवसर मिलता है तो हमें ज़रूर उसकी मदद करना चाहिए। मदर तेरेसा ने प्रभु की दया व करूणा को वस्त्र की तरह धारण कर लिया था। वह इस दुनिया में प्रभु की दया का एक जीवन्त उदाहरण थी, तथा हम सब ख्रीस्तीयों के लिए एक आदर्ष भी। हम जहाँ गरीब, गंदे व मटमेले बच्चों से कतरा कर निकल जाते हैं वहीं मदर ने ऐसे बच्चों को उठाकर गले से लगा लिया व उन्हें प्रेम  से चूम लिया; किसी का सडा हुआ घाव देखकर हम आँखें फेर लेते हैं, व बदबू से नाँक बंद कर लेते हैं, पर वहीं मदर ने अपने हाथों से ऐसे घावों को धोया व उनकी मरहम पट्टी की।
 आज का सुसमाचार भी दया के कार्य करने को हमें सिखलाता तो आईये इस बार हम ‘दया का क्रिसमस मनायें।’ हर ख्रीस्त जंयति हम हमारी ही खुशी के लिए मनाते हैं, आईये इस बार हम इस दूसरों की खुशी के लिए ख्रीस्तजंयति मनायें। हर क्रिसमस पर हम हमारे लिए नये ब्रांडेड कपडे ज़रूर खरीदते हैं तो इसके साथ ही, आईये हम किसी गरीब नंगे तन को भी ढँक दें; हर क्रिसमस पर हमारे घरों में तरह-तरह के पकवान जरूर बनते हैं व सपरिपवार हम इसका लुफ्त उठाते हैं तो आईये इस बार हम हमारे पकवान गरीबों के भी साथ बाँटे। ख्रीस्त जंयति की खशी को हम अपने ही घर की दिवारों तक सीमित न रखें। किसी मुरझााये, दुखित चेहरे को मुस्कुराहट प्रदान करें; किसी बुझते चिराग को प्रभु की ज्योति से पुनः आलोकित करें। इससे हमें जो आनन्द व आध्यात्मिक लाभ होगा शायद वह क्रिसमस को अपने घरों की चार दिवारों में मनाने से नहीं मिलेगा।

आमेन

Friday, 7 December 2018

आगमन का दूसरा रविवार 9 दिसम्बर 2018 रविवारीय प्रभु वचनो पर मनन


बारूक 5ः1-9
फिलि. 1ः4-6,8-11
लुक 3ः1-6
इस्राएली लोग ईष्वर की चुनी हुई प्रजा थी। ईष्वर ने उन्हें सभी राष्ट्रों व देषों में से अपनी निजी प्रजा के रूप में चुन लिया था। वे नबियों के द्वारा उनसे कहते हैं - ‘‘चाहे पहाड टल जाये और पहाडियाँ डाँवाडोल हो जायें किंतु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शाँति विधान नहीं डाँवाडोल होगा’’ (इसा. 42ः6)। ‘‘तुम मेेरी दृष्टी में मुल्यवान हो और महत्व रखते हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’’ (इसा. 43ः4)। ‘‘क्या स्त्री अपना दूधमुहा बच्चा भुला सकती है? कया वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगा’’ (इसा. 49ः15)। ऐसा अटल व घनिष्ट प्रेम था यहोवा का अपनी प्रजा के प्रति।
लेकिन इस्राएली प्रजा एक धोखेबाज प्रजा निकली। दूसरा इतिहास ग्रंथ 36ः14 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘याजकों के नेताओं और जनता में भी बहुत अधिक अधर्म फैल गया, क्योंकि उन्होेंने गैर-यहूदी राष्ट्रों के घृणित कार्यों का अनुकरण किया और प्रभु द्वारा प्रतिष्ठित येरूसालेम मंदिर को अपवित्र कर दिया।’’उन्होंने अपने प्रेमी ईष्वर को भूला कर देवी-देवताओं की पूजा की। उन्होंने उस प्रेमी पिता के प्यार को ठुकरा दिया। उन्होंने ईष्वर से बेवफाई की। उन्होंने वो सारे चिन्ह और चमत्कार भूला दिये जिसे ईष्वर ने उनकी आँखों के सामने किये थे। वचन आगे कहता है कि कई नबियों ने उन्हें बार-बार चेतावनी दी कि पाप व बुराई के जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो वह सही नहीं है; ईष्वर के धार्मिकता के मार्ग से भटक कर शैतान के मार्ग पर तुम्हारा जाना सही नहीं है। यह ईष्वर को कतई पसन्द नहीं है। तुम लौटकर वापस आ जाओ। अपना कुमार्ग त्यागकर अपने प्रेमी पिता के पास वापस आ जाओ। पर इस्राएलियों ने नबियों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उल्टे उन पर अत्याचार किये व कईयों को मार डाला। तब ईष्वर जो कि अब तक अपनी प्रजा के साथ था; युद्ध के समय उनकी तरफ से लडता था; शत्रुओं से उनकी रक्षा करता था; उन्हें उनसे भी अधिक शक्तिषाली राजाओं के विरूद्ध विजय दिलाता था; अब इन्हें त्याग देता है। प्रभु ने अपनी चुनी हुई प्रजा को अपने ही भाग्य पर छोड दिया। इसके विषय में प्रभु का वचन इतिहास ग्रंथ 36ः15 में कहता है - ‘‘प्रभु उनके पूवर्जाें का ईष्वर उनके पास अपने दूतों को निरन्तर भेजता रहा; कयोंकि उसे अपने मंदिर तथा अपनी प्रजा पर तरस आता था। किंतु उन्होंने ईष्वर के दूतों का उपहास किया, उसके उपदेषों का तिरस्कार किया और उसके नबियों की हँसी उडाई। अंत में ईष्वर का क्रोध अपनी प्रजा पर फूट पडा और उसे बचने का कोई उपाय नहीं रहा।’’
तब खल्दैयियों के राजा ने उन पर आक्रमण किया; उनकी आस्था व धार्मिकता के प्रतीक येरूसालेम मंदिर को तहस-नहस कर दिया; ईष्वर के मंदिर को सुपूर्दे खाक कर दिया। सारे देश को उजाड दिया; कईयों का वध कर दिया; व बाकि लोगों को बंदी बनाकर बाबुल देश उनकी गुलामी करने ले जाया गया। वहाँ करीब पचास साल तक वे बाबुल के निर्वासन में रहे; उनकी गुलामी करते रहे। वहाँ से इन्होंने प्रभु को पुकारा, इन्होंने अपने किये पर पश्चताप किया; इन्होंने प्रभु को अपनी दुर्दषा में पुकारा और प्रभु ने उनकी सुध ली। क्योंकि स्तोत्र 103ः 10-12 में वचन कहता है ‘‘प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है; वह सहनषील और अत्यंत प्रेममय है; वह सदा दोष नहीं देता और चिरकाल तक क्रोध नहीं करता।’’ और प्रव. 17ः20-23 में वचन कहता है - ‘‘ईष्वर पश्चताप करने वालों को अपने पास लौटने देता और निराष लोगों को ढारस बंधाता है।’’ इसलिए प्रभु आज के पहले पाठ में उन्हें सांत्वना भरे शब्दों में कहता है - ‘‘येरूसालेम! अपने शोक और संताप के वस्त्र उतार और सादा के लिए ईष्वर की महिमा का सौंदर्य धारण कर...येरूसालेम! उठ खडा हो जा, पर्वत पर चढ़ कर पूर्व की ओर दृष्टि लगा। देख, प्रभु की आज्ञा से तेरे पुत्र पष्चिम और पूर्व से एकत्र हो गये हैं। वे आनन्द मना रहे हैं, क्योंकि ईष्वर ने उनकी सुधी ली है...दयामय तथा न्यायी ईष्वर इस्राएल को आनन्द प्रदान करेगा और अपनी महिमा के प्रकाष से उसका पथप्रदर्षन करेगा।’’
बपतिस्मा ग्रहण करके हम सभी प्रभु की चुनी हुई प्रजा बन गये हैं। हम सब नये येरूसालेम यानी प्रभु की कलीसिया के सदस्य हैं; हम सब नयी इस्राएली प्रजा कहलाते हैं। प्रभु ने हम सब से अनन्त प्रेम से प्रेम किया है। जो प्रेमभरे वचन प्रभु ने इस्राएली जनता से कहे थे वे आज हमसे भी कहते हैं। तुम मेरी दृष्टि में मुल्यवान हो...चाहे माँ अपने दुधमुँहे बच्चे को भूला भी दे तो भी मैं तुम्हें नहीं भूलाऊँगा आदि। आईये हम अपने आप का जाँच करके देखें कि हम उन इसा्रएली लोगों से कितने भिन्न हैं। क्या हम, भी हमसे प्रेम करने वाले ईष्वर को त्याग कर बुराई के मार्ग पर नहीं चलते? क्या हम भी हमारे कार्यों द्वारा उनको अप्रसन्न नहीं करते? क्या हमने भी जानबुझकर हमसे अनन्त प्रेम करने वाले ईष्वर के दिल को नहीं तोडा? क्या हमने उनको अपने पापों के कारण दुःख नहीं पहुँचाया?
तो आईये हम भी प्रभु के पास वापस लौट चलें। यह आगमन का समय हमारे लिए प्रभु के पास पुनः लौट आने का उचित समय है। आज के पहले पाठ  में बारुक 5, 7 में प्रभु ने अपनी प्रजा को आदेश दिया है कि यदि  वे  प्रभु सुरक्षा में आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें हर एक ऊँचा पहाड़ व चिरस्थाई घाटी को समतल करना होगा। हर ऊँचा पहाड़ और चिरस्थाई घाटी याने हमारे जीवन के वे पाप, हमारी वे बुराइयां जो हमें हिमालय जैसे ऊँचे या कभी न भरने वाली गहरी घाटी सामान लगती हों हमें उन्हें समतल करना होगा। दूसरे शब्दों में प्रभु का आदेश है कि हम इस अगमनकाल  में उन बुराइयों को छोड़ दें जो हमारे जीवन में चिरस्थायी घाटी या ऊँचा पहाड़ बनकर बैठी हैं। 
आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता हमें अपने पापों पर पश्चताप करते हुए प्रभु के लिए अपने आपको तैयार करने को कहते हैं। वे कहते हैं ‘‘प्रभु का मार्ग तैयार करो’’ हम सब को प्रभु के लिए मार्ग तैयार करने की ज़रूरत है। योहन बपतिस्ता का काम था प्रभु के रास्ते को सीधा करना। हमें भी पश्चताप, क्षमा, शाँति, प्रेम व पवित्रता के जीवन द्वारा प्रभु के रास्ते को सीधा करना है। ‘‘हर पहाड व पहाडी समतल की जाये’’ हमें हमारे जीवन से घमंड के पहाडों को खोदकर समतल करना है। ‘‘हर घाटी भर दी जाये’’ घाटी को भरना अथवा खाई को पाटना, हमें याद दिलाता है हमारी खोखली धार्मिकता की। जिस विष्वास की हम घोषणा करते हैं और जिस प्रकार का जीवन हम रोज वास्तव में जीते हैं इसके बीच एक बहुत बडी खाई है, जिसे हमें समतल करना है। हमें हमारे विष्वास व दैनिक जीवन के बीच की खाई को भरकर दोनों में समानता लाना है। हमारी कथनी व करनी में समानता लाना है। ‘‘टढे-मेढे रास्ते सीधे कर दिये जायेंगे’’ हमारे पापमय रास्ते, बुराईयों भरे रास्ते को हमें सीधा करना है। बुराईयों के टेढे-मेढे रास्ते को सुधारकर हमें सीधा करना है। याने हमारे जीवन में सुधार लाना है।
यह सब करना तभी संभव है जब हमें हमारी गलतियों का आभास होगा। जब हमें लगेगा कि हाँ मैं सचमुच प्रभु से दूर हो गया हूँ, मुझे जब ये लगने लगेगा कि हाँ मुझे प्रभु के पास लौट आना चाहिए। और इसके लिए सच्चे मन से पश्चताप करते हुवे पापस्वीकार संस्कार के द्वारा प्रभु से व अपने पडोसियों से मेलमिलाप करने व पवित्र युखरिस्त में भाग लेने से बेहतर रास्ता और क्या हो सकता है। माता कलीसिया इस आगमनकाल में हमें पश्चताप करने व अपनी पापमय जिंदगी से मन फिराकर प्रभु के पास लौटने का एक सुअवसर प्रदान करती हैं। आईये हम इस पवित्र समय का पूरा लाभ उठायें। व प्रभु के लिए स्वयं को अच्छी तरह से तैयार करें।

आमेन।  

I humbly look forward to your comments and valuable suggestions for improvement and corrections. 

May God Bless us all.