सफनिया ३ः१४-१८
फिल ४ः४-७
लुक ३ः१०-१८
आगमन का तीसरा रविवार आनंद के विषय पर ज़ोर देता है। यह आनन्द का रविवार कहलाता है।
इंसान जब तक इस संसार में है, खुशी तलाशता है। हम बीमार होने पर इलाज़ करवाते हैं, चोट लगने पर मरहम लगाते हैं। क्योंकि हम जीवन में दुःख और दर्द नहीं चाहते। ख़ुशी चाहते हैं। खुशी और आनंद के लिये इंसान क्या क्या नहीं करता। पर सच्ची ख़ुशी हर किसी के नसीब नहीं होती। क्योंकि यह कोई पैसे से मिलने वाली चीज़ नहीं है। खुशियाँ कभी किसी अरबपति के घर से नदारद तो किसी कंगाल के घर में भरपूर होती है।
क्योंकि आनंद ईश्वर का दिया उपहार है। पवित्र आत्मा का दिया फल है। गलतियों 5,22 में हम पढ़ते हैं आत्मा का फल है प्रेम, आनन्द शांति आदि। इसलिए यदि कोई इस संसार में सच्ची खुशी और आनंद चाहता है तो संत पौलुस आज हमसे कहते हैं आनंद मनाईये, प्रभु में सदा आनंद मनाईये। खुश या आनन्दित रहने के लिए यूँ तो इंसान कई जतन करता है पर वास्तिवक ख़ुशी मिलती नहीं। न पैसा, ना दौलत, न शौहरत, ना पार्टी, और न ही दोस्ती सच्ची ख़ुशी दे सकते है। जब तक हम प्रभु में अपनी ख़ुशी नहीं तलाशते हम अधूरे ही रहेंगे। इस लिए सन्त पौलुस कहते हैं - प्रभु में आनंन्द मनाइये। हमारी खुशियाँ उन्हीं में परिपूर्ण हो सकती है। सन्त योहन 15, 11 में प्रभू अपने शिष्यों से कहते हैं मैंने तुम लोगों से यह इसलिये कहा कि तुम मेरे आनंद के भागिदार बनो और तुम्हारा आनंद परिपूर्ण हो। जब तक हम प्रभु के आंनद के भागीदार नहीं बनते हमारी ख़ुशी हमारा आनंद अधूरा है।
प्रभु के आनंद को हमारे जीवन में अनुभव करने के लिये हमें प्रभु येसु जैसा हृदय चाहिए। क्योंकि "कोई भी पुरानी मशकों में नई अंगूरी नहीं भरता।" (सन्त मारकुस 2,22) नयी अंगूरी के लिए नयी मशकें चाहिए। प्रभु के आनंद के लिए, उसके काबिल एक दिल चाहिए।
मनुष्यों के जीवन से उनकी खुशियाँ चुराने वाला शैतान है। और हमारे पाप हमारे जीवन में सच्ची ख़ुशी पाने में एक बाधा।
इसलिए ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, जब सारी मानवता पाप, दुःख व कष्टों में कराह उठी थी। जब शैतान ने इंसान से सच्चे आनंद व् ख़ुशी को छीन लिया था तब प्रभु येसु, ‘अनादि शब्द’ व ‘पिता के एकलौते पुत्र,‘ ने इस धरा पर इन्सान बनकर, एक गरीब गौशाला में कुँवारी मरियम से जन्म लिया। रोमियों को लिखे अपने पत्र अध्याय 3:23-24 में प्रभु का वचन हमसे कहता हैं - ‘‘क्योंकि सबों ने पाप किया और सब ईष्वर की महिमा से वंचित किये गये।’’ पिता ईष्वर ने इंसान को अपने ही प्रतिरूप बनाया; उसे ईष्वर की महिमा का भागीदार बनाया; ईश्वर ने इंसान को अपने आनंद का भागीदार बनाया था। पर पाप ने उस आनंद से हमें वंचित कर दिया। उस महिमा को अथवा उस प्रभु को पुनः पाने के लिए सन्त योहन बपतिस्ता आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘जिनके पास दो कुरते हों, वह एक उसे दे दे, जिसके पास नहीं है और जिसके पास भोजन है वह भी ऐसा ही करे।’’ वे नाकेदारों से कहते हैं ‘‘जितना तुम्हारे लिये नियत है उससे अधिक न लो’’ याने बेईमानी से लोगों को मत ठगो; व सैनिकों से कहते हैं -‘‘किसी पर अत्याचार मत करो व झूठा दोष मत लगाओ।’’ हम भी जब उसी प्रभु के हमारी जिंदगी में आने की राह देख रहे हैं तो प्रभु का वचन हमसे भी यही कहते हैं कि जरूरत से ज्यादा अपने पास मत रखो, उसे गरीबों को दे दो। वचन तो कहता है कि यदि तुम्हारे पास दो कुरते हों तो एक उसको दे दो जिसके पास कुुछ भी नहीं है। एक दे देने के बाद भी तुम्हारे पास कम से कम एक और है परन्तु उस गरीब भीखारी, गरीब बच्चे के पास तो कुछ भी नहीं है, वो नंगा घूम रहा है, वो फटेहाल है। हम सब ने रेलवे स्टेशन व गलियों में अर्धनग्न अवस्था में घुमते इंसानों को देखा है। और हमने उनको कुछ देने की जगह उन्हें भला-बूरा भी कहा है। जब हमारे पास किसी गरीब ने आकर हाथ फैलाया तो हमने उससे अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेरीं है। जहाँ नाम, सम्मान और पहचान मिलती है वहाँ हम दान-पुण्य तो करते ही हैं परन्तु प्रभु आज हमसे कहते हैं कि रात के अंधेरे में जाकर फूटपाथ पर पडे ठिठूरते हुवे किसी अभागे को एक कंबल ओढा दो।, रोटी के एक निवाले के लिए तरसते किसी गरीब को कुछ खाने को दे दो, वहाँ आपकी तारिफ करने वाला शायद कोई नहीं होगा परन्तु ‘‘तुम्हारा पिता जो सब कुछ देखता हे तुम्हें पुरस्कार देगा’’ (मत्ती 6ः4), वह हमसे कहेगा - ‘‘जब मैं भूखा था तब तुमने मुझे खिलाया; प्यासा था तब क्या तुमने मुझे खिलाया; नंगा था तब तुमने मुझे पहनाया; और जब मैं बंदी, बिमार व परदेषी था तो तुम मुझसे मिलने आये‘‘ इसलिये आकर उस अंनंत आनंद के स्थान में प्रवेश करो जो संसार के प्राम्भ से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है। (मत्ती 25:35-36)। कुछ त्यागने, और दूसरों को देने में जो आनंद मिलता है वह इक्कठा करने, जमा कर करके खज़ाना भरने व सिर्फ अपनी जेब व् पेट का ख्याल रखने में नहीं मिलता।
मुक्ति प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग प्रेममय सेवा ही है। पवित्र काथलिक कलीसिया की धर्मषिक्षा में हम दया के कार्यों के बारे में सिखते हैं। ये दया के कार्य, प्रेममय सेवा के कार्य हैं जिनके द्वारा हम हमारे पडोसियों की शारीरिक व आध्यात्मिक ज़रूरतों में मदद करते हैं। भ्रमितों का मार्गदर्शन करना, अज्ञानियों को षिक्षा देना, पापियों को सचेत करना, पीडितों को सांत्वना देना, अपराधियों को क्षमा करना, धैर्य के साथ अन्याय को सहन करना व मृतकों व जीवितों के लिए प्रार्थना करना ये सब दया के आध्यात्मिक कार्य हैं। तथा भूखों को खिलाना, प्यासों को पिलाना, वस्त्रहीन को पहनाना, बेघरों को आश्रय देना, बिमारों की सेवा करना, उनसे मिलने जाना, कैदियों से मिलने जाना, व मुर्दाें को दफनाना ये सब दया के शारीरिक कार्य हैं। इन सब में गरीबों को दान देना किसी के प्रति दया दिखाने का सबसे उत्तम कार्य है; यह न केवल सेवा का परन्तु न्याय का कार्य भी है। (कैथोलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा,2447)
मदर तेरेसा कहती हैं कि एक बार वो ऐसे हिंदू परिवार से मिली जिसने कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया था। मदर ने उन्हें थोडा चावल दिया। उस परिवार की माँ ने जो किया उसे देखकर मदर स्तब्ध रह गयी। उसने उस चावल को दो हिस्सों में बाँट दिया व उसका आधा हिस्सा लेकर वह अपने मुसलिम पडोसी के घर गई और उन्हें दे दिया। यह देखकर मदर ने उससे पुछा यह क्या किया तुमने अब तुम्हारे परिवार के लिए कितना बचा है? क्या इतना आप लोगों के लिए पर्याप्त होगा?’’ इस पर उस औरत ने जवाब दिया - ‘‘लेकिन उन लोगों ने भी तो कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया है।’’ इसे कहते हैं शेयरिंग एंड कैरिन्ग या मिल-बाँट कर खाना। हमें सारे संसार की समस्याओं को समाप्त करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए हम व्यक्तिगत रूप से पूरी दुनिया की गरीब तो मिटा नहीं पायेंगे। एक बार किसी ने मदर तेरेेसा से व्यंग्यात्मक रूप से पुछा कि संसार में इतने सारे भूखे लोग हैं उन सबको वह कैसे खिलाइगी। इस पर मदर ने शाँतभाव से कहा -‘‘एक-एक करके’’। जि हाँ हम कमसे कम जब भी हमें किसी एक भी गरीब की मदद करने का अवसर मिलता है तो हमें ज़रूर उसकी मदद करना चाहिए। मदर तेरेसा ने प्रभु की दया व करूणा को वस्त्र की तरह धारण कर लिया था। वह इस दुनिया में प्रभु की दया का एक जीवन्त उदाहरण थी, तथा हम सब ख्रीस्तीयों के लिए एक आदर्ष भी। हम जहाँ गरीब, गंदे व मटमेले बच्चों से कतरा कर निकल जाते हैं वहीं मदर ने ऐसे बच्चों को उठाकर गले से लगा लिया व उन्हें प्रेम से चूम लिया; किसी का सडा हुआ घाव देखकर हम आँखें फेर लेते हैं, व बदबू से नाँक बंद कर लेते हैं, पर वहीं मदर ने अपने हाथों से ऐसे घावों को धोया व उनकी मरहम पट्टी की।
आज का सुसमाचार भी दया के कार्य करने को हमें सिखलाता तो आईये इस बार हम ‘दया का क्रिसमस मनायें।’ हर ख्रीस्त जंयति हम हमारी ही खुशी के लिए मनाते हैं, आईये इस बार हम इस दूसरों की खुशी के लिए ख्रीस्तजंयति मनायें। हर क्रिसमस पर हम हमारे लिए नये ब्रांडेड कपडे ज़रूर खरीदते हैं तो इसके साथ ही, आईये हम किसी गरीब नंगे तन को भी ढँक दें; हर क्रिसमस पर हमारे घरों में तरह-तरह के पकवान जरूर बनते हैं व सपरिपवार हम इसका लुफ्त उठाते हैं तो आईये इस बार हम हमारे पकवान गरीबों के भी साथ बाँटे। ख्रीस्त जंयति की खशी को हम अपने ही घर की दिवारों तक सीमित न रखें। किसी मुरझााये, दुखित चेहरे को मुस्कुराहट प्रदान करें; किसी बुझते चिराग को प्रभु की ज्योति से पुनः आलोकित करें। इससे हमें जो आनन्द व आध्यात्मिक लाभ होगा शायद वह क्रिसमस को अपने घरों की चार दिवारों में मनाने से नहीं मिलेगा।
आमेन
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