Saturday, 26 January 2019

वर्ष का तीसरा रविवार 27 जनवरी 2019


नहेमिया 8,2-6.8-10
1 कोरिंथियों 12, 12-30


 लूकस ,1-4. 4,14-24

इस्राएली लोगों को प्रभु ने अपनी चुनी हुई व निजी प्रजा बना लिया था। इनके ऊपर ईष्वर ने अपना असीम प्रेम उँडेल दिया था। पर इस प्रजा ने प्रभु के प्रेम को ठुकरा दिया व पराये दावताओं की पूजा आराधना की। तब प्रभु ने अपने लोगांे को शत्रुओं के हाथों दे दिया और ये लोग करीब पचास सालों तक अपने देष, अपने मुल्क से निर्वासित होकर बाबुल देष में बंदी व गुलाम बनाकर ले जाये गये थे। वहाँ से वापस लौटने पर शास्त्री व पुरोहित एज्ऱा इन्हें प्रभु की वाणी सुनाते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना कि जब धर्मग्रंथ खोला गया तो सारी प्रजा उठ खडी हुई। तब एज्ऱा ने प्रभु, महान ईष्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ ऊपर उठाकर उत्तर दिया, ‘‘आमेन, आमेन’’! इसके बाद वे झूककर मूँह के बल गिर पडे और प्रभु को दंडवत किया। ये लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे। वे प्रभु की वाणी को सुनकर बहुत की भावुक हो गए थे। बडे दिनों के बाद उनके लिए प्रभु की ओर से चिट्ठी मिली थी, धर्म ग्रंथ उनके लिए ईष्वर द्वारा दिया गया एक प्रेम पत्र था जिसे पढने व सुनने को ये लोग तरस रहे थे। इस दिन के विषय में नबी आमोस ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था -  ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देष में भूख भेजूँगा-रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास’’ (आमोस 8ः11) प्रभु की वाणी सुनने के लिए भूखे और प्यासे थे। और जब प्रभु की वाणी उन्हें पढकर सुनाई गई तो वे उठ खडे हुए, हाथ खडे कर ईष्वर की आराधना की व मूह के बल गिरकर प्रभु के वचन के प्रति आदर व सम्मान दिखाया। उन्हें मूसा द्वारा कहे गये ये शब्द याद आये कि ‘‘ये तुम्हारे लिए निरे शब्द नहीं है, इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है।’’ (वि.वि. 32ः47)। हम दो क्षण के लिए आँखें बंद करें व अपने घरों में रखे पवित्र बाइबल को देखें, कितनी कोपियाँ है बाइबल की हमारे घरों में, वे कहाँ पर रखीं है। किस पेटी में है? ताक में है? या फिर अल्तार पर रखी है? उसके ऊपर कितनी धूल है, उसके अन्दर हमने क्या-क्या रखा है? हम खुद से आज एक सवाल पुछंे कि हम हमारे धार्मिक ग्रंथ का कितना आदर करते हैं? क्या हम प्रभु की वाणी को सुनकर भावुक हो जाते हंै? क्या प्रभु की वाणी पढते समय हमें ये लगता है कि सचमुच प्रभु स्वयं हमसे बातें कर रहे हैं। क्या प्रभु के वचन हमारे अस्तित्व को प्रभावित करते हैं? क्या प्रभु की वाणी हमारी अंतर आत्मा को चिरने वाली दुधारी तलवार की तरह हमारे अंदर प्रवेष करती है? यदि इन सब प्रष्नों का उत्तर ‘‘नहीं’’ है, तो इसका मतलब ये हुआ कि हमने प्रभु के वचन को प्रभु द्वारा हमें लिखा गया एक प्रेम पत्र नहीं माना है। प्रभु ने अपने प्रेम का  इज़हार पवित्र बाइबल के माध्यम से किया है, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को खत लिखता है। यदि कोई किसी को प्रेम-पत्र लिखता है और सामने वाला बदले में उससे प्रेम नहीं करता है, तो वह या तो उस पत्र को पढ़ेगा ही नहीं। यदि पढेगा भी तो जो उसमें लिखा है, वह उसे प्रभावित नहीं करेगा; उसे स्पर्ष नहीं करेगा। यदि हम पवित्र बाइबल को नहीं पढ़ते या फिर पढ़ने पर भी वचन हमें प्रभावित नहीं करता, वचन हमारे दिल को नहीं छूता है तो यह साफ ज़ाहिर है कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति प्रेम की कमी है। यदि हम सचमुच में प्रभु से प्रेम करते हैं तो हम उनकी वाणी को सुनने के लिए तरसेंगे। शायद तेरे नाम फिल्म का यह गाना आप सबों ने सुना होगा तुम से मिलना बातें करना बडा अच्छा लगता है। जब कोई सच्चे दिल से प्रेम करता है। तो ऐसा होता है। उससे मिलना व बातें करना बडा अच्छा लगता है। क्या इस प्रकार के भाव पवित्र बाइबल पढने के लिए हमारे मन में आते हैं। जिस तरह से ये प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए ये गीत गाता है, क्या हम प्रभु के लिए ऐसे ही गा सकते हैं - ‘‘बाइबल खोलना, और वचन पढना बडा अच्छा लगता है, क्या है ये क्यों है जो भी हो हाँ मगर बडा अच्छा लगता है।’’ यदि ऐसा नहीं है तो हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति पे्रम की कमी है। हम प्रभु को बस दुख के समय पुकारते हैं। उस समय उनसे कहते हैं प्रभु मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तू मेरी परेषानी को दूर कर। हम घूटने टेकते हैं, मिस्सा चढाते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हंै। और फिर आफत टलने पर प्रभु को फिर भूल जाते हैं। यह कोई प्यार नहीं। यह बस धोखा है प्रभु के प्रति। लेकिन हम प्रभु को कभी धोखा नहीं दे सकते।
मंै ये सब किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं कह रहा। परन्तु इसलिए कह रहा हूँ कि हम सब प्रभु के प्रेम को समझें। एक तरफा प्यार में कोई मज़ा नहीं। यदि प्रभु हमसे प्रेम करते हैं तो हमें भी उनसे वैसे ही प्यार करना चाहिए। और यदि हम प्रभु से सच्चे हृदय से प्यार करेंगे तो हम उनकी वाणी को सुनने, उसके वचनों को पढने के लिए तरसेंगे। प्रभु की वाणी हमारे हृदयों का स्पर्ष करेगी और हम उनकी वाणी पर कान देकर उनकी मरज़ी के अनुसार आचरण करेंगे।
विधि विवरण ग्रंथ 6ः6 में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ, वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।’’ और विवि 11ः18-21 में वचन कहता है ’’तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निषानी के तौर पर अपने हाथ में और षिरोबन्द की तरह अपने मस्त्क पर बाँधे रखो। इन्हें अपने बाल- बच्चों को सिखाते रहो और तुम चाहे घर में रहो, चाहे यात्रा करो- सोते-जागते समय इनका मनन करते रहो। तुम इन्हें अपने घरों की चैखट और अपने फाटकों पर लिख दो।’’
क्योंकि ’’ये हमारे लिए निरे शब्द नहीं इन पर हमारा हमारा जीवन निर्भर है’’ (वि.वि. 32ः47)। मत्ती 4ः4में वचन कहाता है - ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से नहीं जीता, वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।’’ प्रभु का वचन ही हमारे जीवन का वास्तविक स्रोत है। हमारे प्रोटेस्टेंट भाई-बहन शायद इस बात को हमसे ज्यादा समझते हैं। उन्हें पवित्र बाइबल के कई वचन मुह जबानी याद होते हैं। हम वचन को जितना अधिक पढेंगे, जितना अधिक उस पर मनन करेंगे, हम ईष्वर को व अपने-आपको अधिक गहराई से समझेंगे। हम हमारे जीवन का राज समझ जायेंगे; हमारे जीवन का मकसद हम पर प्रकट हो जायेगा; हम प्रभु के करीबी हो जायेंगे; हमें स्वर्ग की रोहें साफ-साफ नज़र आने लगेंगी; तब हम इस दुनियाई, खोखलेपन, भौतिक सुखों व सांँसारिक माया-मोह से ऊपर उठकर ईष्वर की व स्वर्ग की बातें सोचेंगे, हम एक अर्थपूर्ण व सच्चा मसीही जीवन जीयेंगे।
प्रभु के वचन में ही हमारा सब कुछ निहित है। एक बार चख कर तो देखो, प्रभु कितना मधूर है। (स्तोत्र 34ः8) नबी एज़ेकिएल को एक दिव्य दर्षन में प्रभु का वचन दिया गया और कहा गया -‘‘मानवपुत्र! मैं जो पुस्तक तुम्हें दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो।’’ नबी कहते हैं - ‘‘मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।’’
आईये हम प्रभु के वचन के प्रति हमारे दिलों में प्यार जगायें। रोज़ प्रभु के वचनों को हमारे घरों में पढें व उस पर मनन चिंतन करें तथा उनपर आधारित जीवन व्यतित करें। यही प्रभु की मरजी है। यही प्रभु की ख्वहीष है, हम सब के लिए। जब हम ऐसा करेंगे तो हम पवित्र कलीसिया में एक ही शरीर के अंगों के रूप में जीवन बितायेंगे। आज दूसरा पाठ हमसे कहता है कि हम सब एक ही शरीर के अंग है। हमारे शरीर के किसी भी अंग में परेषानी या पीडा होती है तो सारा शरीर उस पीडा व दर्द में भाग लेता है। वैसे ही जब हम प्रभु के वचनों पर चलेंगे, तो हमारे भाई का दर्द मेरा दर्द होगा; सिरिया में गला रेतकर मारे गये लोगों का दर्द में अपने शरीर में अनुभव करूँगा; कंधमाल में यातना सहने वाले भाईयों और बहनों की पीडा मेरी पीडा बन जायेगी। प्रभु के मार्ग से भटकते किसी भी विष्वासी की मुझे वैसे ही चिंता होगी जैसे मैं अपने स्वयं की चिंता करता हूँ। यह कलीसिया की एकरूपता व सच्चा भात्र प्रेम सिर्फ प्रभु के वचनों को पढने, सुनने व उनको हमारे जीवन में उतारने पर ही आयेगा। 

आमेन।      
  










Saturday, 19 January 2019

वर्ष का दूसरा रविवार



इसायाह ६२:१-५ 
१ कोरिंथियों १२: ४-११ 
योहन २:१-११ 
वर्ष का पहला रविवार 

प्रभु अपनी प्रजा को एक नया नाम देगा, जो उनके पवित्र मुख से उच्चारित होगा. पवित्र बाइबिल में नाम का बड़ा महत्व है।   ईश्वर के लिए नाम बहुत मायने जखता है।  उत्त्पति ग्रन्थ १७ में हम पाते हैं कि अपना  विधान अब्राम  के साथ स्थापित करते समय ईश्वर ने उसे एक नया नाम दिया - 'इब्राहिम' जिसका मतलब है राष्ट्रों का पिता।  याकूब को भी ईश्वर एक नया नाम देते हैं - इस्राएल जिसका अर्थ है - प्रभु विजयी हो।  होशिआ के ग्रन्थ १,४ में हम पढ़ते हैं - "प्रभु ने उससे कहा, उसका नाम यिज्रएल रखना;" उसी प्रकार मसीहा के विषय में भी इसायाह ने भविष्यवाणी की कि उसका नाम इम्मानुएल रखा जायेगा जिसका मतलब है ईश्वर हमारे साथ है।  वही ईश्वर हमसे यह कहता है - हे इस्राएल तेरा रचने वाला और हे याकूब तेरा सृजनहार यहोवा अब यों कहता है, मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम ले कर बुलाया है, तू मेरा ही है।" नाम लेकर बुलाने का अपना एक महत्व है।  उसने हमें हमारा नाम लेकर बुलाया है, याने वह हमें जनता है। हमें व्यक्तिगत रूप से जनता है।  यदि हमारे देश का प्रधान मंत्री मुझे नाम से जनता है तो में इसे बड़े गर्व की बात मानुगा । पर  यह तो सिर्फ एक देश का शासक है। यहाँ तो पुरे ब्रह्माण्ड का रचने वाला मुझे व्यक्तिगत रूप से जनता है।  इससे बड़ा सौभग्य और क्या हो सकता है? किसी को नाम से बुलाने में अपनेपन की भावना होती है।  जब प्रभु आज अपने वचन में हमसे कहते हैं कि वे हमें एक नया नाम देने जा रहे हैं,याने वे हमें अपनाने जा रहे हैं, हमें अपना बनाने जा रहे हैं।  हमें एक नयी पहचान देने जा रहे हैं। अपने बेटे बेटियों के रूप में एक नई पहचान देने प्रभु हमें बुला रहे हैं। जिन्हें पिता अपने बेटे बेटियाँ बनाता है वह उन्हें अपना पवित्र आत्मा प्रदान करता है। वह कहता है संत लूकस 11, 13 में वह कहते हैं कि दुनिया के माता पिता बूरे होने पर भी अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें¬ प्रदान कर देते हैं तो मांगने पर स्वर्गिक पिता अपने बच्चों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा। पवित्र आत्मा के द्वारा पिता हमें अपने ईष्वरत्व में सहभागी बनाता है। पवित्र आत्मा के द्वारा वह किसी को प्रज्ञा, किसी को ज्ञान के शब्द, किसी को विशवास, और किसी को रोगियों को चंगा करने का, व किसी को चमत्कार दिखाने का, किसी को भविष्यवाणी करने का तो किसी को आत्माओं की परख करने व किसी को भविष्यवाणी करने का वरदान देता है जैसा कि संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में हमें बतलाते हैं। संत पौलुस कहते हैं कि ईष्वर अपने बच्चों को आत्मा के विभिन्न वरदान प्रदान करता है जिससे वे सबोें के हित के लिए पवित्र आत्मा को प्रकट करे।  उसी आत्मा से भरकर प्रभु येसु अपनी सेवकाई प्रारम्भ करते हैं और गलीलिया के काना में अपना प्रथम चमत्कार दिखाते हैं। और माता मरियम उसी आत्मा की प्रेरणा से उस परिवार के लिए मध्यस्थता करती है। प्रभु जिन्हें बुलाते हैं, उन्हें इस दुनिया में अपनी भुमिका अदा करने के लिए उन्हें पर्याप्त कृपा व सामर्थ्य प्रदान करते हैं। यदि हम अपने आपको चुनी हुई प्रजा मानते हैं तो हम उसके आत्मा के वरदानों से भर जाने के लिए लालायित रहें। वह हमें अपना आत्मा प्रदान करेगा और हमें उसके राज्य के प्रचार के लिए प्रज्ञा, ज्ञान, चंगा करने की शक्ति, और चमत्कार दिखाने की शक्ति प्रदान करेंगे। जिससे हममें भी काना के विवाह की तरह लोगों की समस्याओं को ईष्वर के आत्मा के सामाथ्र्य से सुलझाने  का सामर्थ्य मिलेगा। 
आमेन।     

Saturday, 12 January 2019

प्रभु येसु का बपतिस्मा: हिंदी प्रवचन

यशायाह ४२,१-४. ६-७ 
प्रे. च.  १०,३४-३८ 
लूकस ३, १५-१६. २१-२२  
आज हम उस महान घटना की याद करते हैं जब इस दुनिया का रचने वाला सारे ब्ररह्माण्ड का मालिक यर्दन नदी में, पापियों की भीड में पापी जगत के उद्धार हेतु अपने आपको अत्यंत विनम्र बनाते हुए, योहन के सामने सिर झुकाकर बपतिस्मा ग्रहण करते हैं। हम यह जानते हैं कि योहन बपतिस्मादाता का बपतिस्मा तो पापों के पश्चाताप का बपतिस्मा था। तो फिर येसु के द्वारा वह बपतिस्मा लेने का क्या औचित्य? वे तो निष्पाप थे! संत पेत्रुस जो स्वयं उनके साथ रहे अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं - ‘‘उन्होंने कोई पाप नहीं किया और उनके मुख से कभी छल कपट की बात नहीं निकली’’ (1 पेत्रुस 2,22)। संत योहन भी इस बात की पुष्टि करते हैं - ‘‘तुम जानते हो कि मसीह पाप हरने के लिए प्रकट हुए। उनमें कोई पाप नहीं है’’ (1योहन 3, 5)।  उनके इस दुनिया में आने  का उद्देष्य यही  था कि वे निर्दोष होते हुवे भी सारी मानवजाति के पापों का बोझ अपने ऊपर ले और अपने क्रूस बलिदान द्वारा सबों को पाप व मौत से छुटकारा दे सकें।  इसलिए उन्हें यर्दन किनारे देख योहन कहता है - ‘‘देखो- ईश्वर  का मेमना, जो संसार का पाप हर लेता है’’(योहन1,36)। वही योहन प्रकाशना ग्रंथ 5,9 में कहते हैं - ‘‘तू पुस्तक ग्रहण कर उसकी मोहरें खोलने योग्य है, क्योंकि तेरा वध किया गया है। तूने अपना रक्त बहा कर ईष्वर के लिए प्रत्येक वंश, भाषा, प्रजाती और राष्ट्र से मनुष्यों को खरीद लिया है।’’ उसने अपने लहू की कीमत चुका कर पापियों का उद्धार करने, उन्हें खरीद लिया है। यर्दन का यह बपतिस्मा कलवारी पर जो पूर्ण हुआ, उसका आगाज़ मात्र था। संत लूकस 12,50 में वे कहते हैं - ‘‘मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह पूर्ण नहीं हो जाता मैं कितना व्याकुल हूँ।’’ यर्दन नदी में जिसका आगाज़ हुआ वो कलवारी पर पूर्ण हुआ जहाँ पर उन्होंने वास्तव में एक बलित मेमना बनकर सारे संसारे के पापों को हर लिया। संत पौलुस रोमियों 8,3 में इस प्रकार कहते हैं - ‘‘इस प्रकार ईश्वर ने मानव शरीर में पाप को दंडित किया है, जिससे हम में जो कि शरीर के अनुसार नहीं, बल्कि आत्मा के अनुसार आचरण करते हैं- संहिता की धार्मिकता पूर्णता तक पहुंच जाये।"
यहाँ एक बात गौरतबल है कि हमारी मुक्ति के इस कार्य का आगाज, उसकी शुरूआत आत्मा के अभिषेक से होती है। ईष्वर का पुत्र यर्दन नदी में डूबकी लगाकर जैसे ही निकलता है और सारे संसार के लिए प्रार्थना में लीन रहता है उसी समय स्वर्ग खुल  जाता है। कितनी महान घटना है यह! आदि काल से पापी मनुष्यों के लिए बंद स्वर्ग आज खुल गया। पिता के घर के वे दरवाज़े जो हमारे पापों के परिणाम स्वरूप बंद हो गये थे, आज खुल गये। एक नये युग की शुरूआत हो गई; उद्धार का आगाज़ हो गया। और इस शुरूआत को मुकाम तक पहुंचाने में पवित्र आत्मा के अभिषेक की ज़रूरत थी। पिता ने अपने पुत्र के ऊपर वही आत्मा उतारा जिसकी प्रतिज्ञा व भविष्यवाणी वह आज के पहले पाठ में करते हैं - ‘‘यह मेरा सेवका है मैं इसे संभालता हूँ। मैं ने इसे चुना है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ। मैं ने इसे अपना आत्मा प्रदान किया है।" मुक्तिकार्य को संपन्न करने के लिए येसु को पवित्र आत्मा की विषेष ज़रूरत थी। आत्मा के सामर्थ्य से ही वे शैतान के कार्यों को समाप्त करते हुए सेवकाई करते थे व सुसमाचार का प्रचार करते थे। संत लूकस 4,18 में हम पढते हैं  - ‘‘ईश्व र  का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बंदियों को मुक्ति और अंधों को दृृष्टिदान का संदेष दूँ। दलितों को स्वतंत्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।’’

प्यारे विश्वासियों , मुक्ति कार्य पवित्र आत्मा की शक्ति व सामर्थ्य  से ही संपन्न हुआ है और उसका प्रभाव या उसका लाभ लेने के लिए हमें भी उसी आत्मा से भर जाने की ज़रूरत है। पवित्र आत्मा के अभिषेक के बिना यह असंभव है कि कोई येसु को पहचान सके या उसे जाने व स्वीकार करें। 1 कोरिंथियों 12,3 में वचन कहता है - ‘‘कोई पवित्र आत्मा की प्रेरणा के बिना यह नहीं कह सकता ईसा ही प्रभु हैं।’’ 
जितनी ईश  पुत्र प्रभु येसु को पवित्र आत्मा की ज़रूरत थी उससे कई गुना अधिक हमें जो कि उनके अनुयाई हैं आत्मा के अभिषेक की ज़रूरत है। स्वर्गीय पिता मांगने वालों को पवित्र आत्मा देने को सदा तत्पर हैं। लूकस 11,13 में वचन कहता है  ‘‘यदि बूरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीज़ें देते हो, तो मंागने पर तुम्हारा स्वर्गीक पिता तुम्हें पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?’’ प्रभु ने हमें हमारी प्रार्थनाओं में धन, दौलत, शौहरत और आराम की जिंदगी मांगने को नहीं कहा, पर पवित्र आत्मा मांगने को कहा है। प्रभु येसु ने स्वयं यह ज़रूरी समझा और हमें यह आश्वासन दिया कि वे हमारे लिए पिता से पवित्र आत्मा भेजने के लिए प्रार्थना करेंगे - ‘‘मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा, वह सत्य का आत्मा है’’ (योहन14,15)। 
पवित्र आत्मा ईश्वर  की ओर से हमें दिया जाने वाला सबसे उत्तम दान है। इसलिए सात संस्कारों में सबसे पहले हमें बपतिस्मा दिया जाता है जिसमें  हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया जाता है। मसीही जीवन की शुरूआत पवित्र आत्मा से होती है। पवित्र आत्मा की शक्ति व साम्थ्र्य से ही प्रभु येसु मनुष्य बने, आत्मा के अभिषेक के बाद ही कलीसिया का आरम्भ हुआ। 
ख्रीस्त में प्यारे विश्वासियों  इसिलिए यदि उद्धार का  जीवन जीना है, मुक्ति के मार्ग पर चलते हुए येसु मसीह के साथ अनंत जीवन में प्रवश करना है तो पवित्र आत्मा को अपना दोस्त बना लें। रोज़ आत्मा के नये अभिषेक के लिए प्रार्थना करें। उससे भरपूर होने के लिए तरसें। आत्मा से रोज बातें करें, एक दोस्त की तरह और वह तुम्हें ‘‘पूर्ण सत्य तक ले जायेगा।’’ योहन (16,13) 
आमेन। 


Saturday, 5 January 2019

प्रभु प्रकाश का पर्व, 2019, हिंदी मनन चिंतन

प्रभु प्रकाश  का पर्व, 2019

पहला पाठ इसायाह 60,1-22
दूसरा पाठ एफे. 3,1-13
सुसमचाचार मत्ती 2,1-12 

दुनिया की सबसे बडी समस्या क्या है? आतंकवाद? जनसंख्या वृद्धी? भ्रष्टाचार? बलात्कार? गरीबी? या फिर हत्या? ये सब अपने आप में बडी समस्यायें तो है, पर मैं इन में से किसी को भी बडी समस्या नहीं मानता हूँ। क्योंकि इन सबसे परे है एक समस्या है, जो बाकि सब समस्याओं की जनक है। और वह समस्या है - ‘‘ईश्वर  विहीनता’’। यह वह परिस्थिति है जिसमें हमारे आदि माता-पिता ने अपने प्रथम पाप के बाद प्रवेश  किया। ईश्वर  की योजना में तो ईष्वर ने इंसान को अपने साथ, अदन वाटिका में रहने के लिए बनाया था। उत्पत्ति ग्रंथ 3,8 में हम पढते हैं कि आदम और हेव्वा को बाग में टहलते ईष्वर की आवाज सुनाई पडी। पर पाप ने मनुष्य को ईष्वर की उपस्थिति से दूर कर दिया। यह पाप का परिणाम है। यह मृत्यु का अनुभव है। रोमियो 6,23 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘पाप का वेतन मृृत्यु है’’ यहाँ मौत के मायने खत्म हो जाना नहीं परन्तु अलग हो जाना है। कई बार लोग आपसी लडाई में बोलते हैं - तू मेरे लिए मर गया और मैं तेरे लिए। मरता कोई नहीं है बस आपसी संबंध तोडकर वे अलग हो जाते हैं। उत्पत्ति 3,3 में प्रभु ने आदम-हेवा से कहा कि वे वाटिका के बीच के पेड का फल न खायें क्योंकि यदि वे उसे खायेंगे तो वे मर जायेंगे3,6 में दोनों ने मौत के फल को खाया और वचन 23 में क्या होता है? वे प्रभु की उपस्थिति से दूर कर दिये जाते हैं । वे अदन वाटिका से बेदखल कर दिये जाते हैं। वे ईष्वर विहीन जीवन जीने के लिए छोड दिये जाते हैं।  वे ईष्वर से दूर एक ऐसे संसार में आ जाते हैं, जिसके विषय में आज का पहला पाठ कहता है - ‘‘पृृृथ्वी पर अंधेरा छाया हुआ है, और राष्ट्रों पर घोर अंधकार।" यह पाप, अज्ञानता, और बुराई का अंधेरा है। यह शैतान के राज्य का अंधेरा है जिसके आगोष में यह संसार  जी रहा है। प्रकाश की अनुपस्थिति ही अंधकार है। जहाँ ज्योति नहीं है वहाँ अंधेरा है। संत योहन 8, 12 मैं प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो कोई मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।’’ पहले पाठ इसा. 60,20 में प्रभु का वचन कहता है - तेरा सूर्य कभी अस्त नहीं होगा, क्योंकि ईष्वर ही तेरा सदा बना रहने वाला प्रकश  होगा। यह वादा ईष्वर ने अपनी चुनी हुई जाती इस्राएल के लिए किया था। ऐजे. 37,27 में वही यहोवा ईष्वर उनसे कहता है - ‘‘मैं उनके बीच निवास करूंगा, मैं उनका ईष्वर होऊंगा और वे मेरे प्रजा होंगे।’’ इस्राएली प्रजा का मानना था कि वे एक विषिष्ट प्रजा है जो ईष्वर द्वारा अपनी निजी प्रजा के रूप में चुनी गई हैं; ईष्वर ने नबियों और पूवर्जों द्वारा अपने आपको उन पर प्रकट किया, उन्हें अपना संदेष दिया कि वह उनका उद्धार करेगा। इसलिए वे गैरयहूदी जातियों को घृणित व तुच्छ मानते थे तथा उन्हें उद्धार से दूर मानते थे। 
परन्तु प्रभु येसु ने अपने देहधारण द्वारा अथवा अपने जन्म के द्वारा इस भ्रांति को दूर कर दिया। आज हम उस महान घटना को याद कर रहे हैं जब उन्होंने तीन गैर यहूदी ज्ञानियों पर अपने आप को प्रकट किया, अपने को प्रकाशित किया और यह साबित कर दिया कि वे केवल इस्राएलियों  के लिए नहीं वरन् हर इंसान के लिए आये हैं। 
आज का दूसरा पाठ ऐफे.3,1-13 में इस बात को स्पष्ट करता है - ‘‘सुसमाचार के द्वारा यहूदियों के साथ गैरयहूदी एक ही विरासत के अधिकारी है, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह - विषयक प्रतिज्ञा  के सहभागी।’’ 
इसलिए जो कोई भी उन ज्योतिषियों की तरह मुक्ति को तलाशते हैं, अथवा ईष्वर को खोजते हैं वे उसे प्राप्त करेंगे; वे अंधकार से प्रकाश में आ जायेंगे। तब वे मृृत्यु से  जीवन में आ जायेंगे - वे संसार के सारे बंधनों से मुक्त हो जायेंगे। वचन कहता है संत योहन 12, 32 में - ‘‘यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होंगे। तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र कर देगा।’’ 
आज सारे संसार की ज्योति प्रभु येसु सारी मानव जाती के उद्धार के लिए प्रकट हो गये हैं। संत मत्ती 4,15-16 में वचन कहता है - ‘‘अंधकार में रहने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।’’ प्रभु येसु हमें मृत्यु के अंधकार से बाहर निकालकर ईष्वरीय उपस्थिति में ले जाने इस संसार में आये हैं। हमें हमेशा की 
ईश्व्रर रहित जिंदगी जो कि अनंत मृत्यु है, से बाहर  निकाल कर अपने साथ स्वर्ग ले जाने  आये हैं। 
हम उस ज्योति को खाजते हुए उसके पास जायें। वचन कहता है - "जब तुम मुझे ढूंढोगे तो मुझे पा जाओगे, यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूंढोगे तो मैं तुम्हें मिल जाऊंगा’’ (यरि. 29,13)।  हम प्रभु को पूरे दिल से खोजें और वह हमें मिल जायेगा। और हमें अंधकार से अपनी स्वर्गिक ज्योति की ओर ले जायेगा, हमें मृत्यु से जीवन की ओर तथा ईष्वर विहिन जिंदगी से अपनी पावन उपस्थिति में ले जायेगा। आमेन। 

प्रभु की स्तुति हो प्रभु येसु को धन्यवाद।