Friday, 31 May 2019

स्वर्गारोहण का पर्व 9 जून 2019


प्रेरितचरित ७:५५-६० 
प्रकाशना २२:१२-१४ 
योहन १७:२०-२६ 

स्वर्गारोहण का पर्व अपने आप में एक खास पर्व है जिस दिन हमारे मुक्तिदाता प्रभु येसु ख्रीस्त अपना मुक्तिकार्य सम्पन्न कर इस संसार से आरोहित कर लिये जाते हैं। स्वर्गारोहण की बात जब आती है तब यहूदियों के ब्रह्माण्ड शास्त्र को समझना गौरतलब है। यहूदियों के मतानुसार तीन लोक होते हैं - पृथ्वी लोक, स्वर्गलोक और अधोलोक। प्रभु येसु के स्वार्गारोहण के संदर्भ में इन तीनों लोकों को एक अलग-अलग अस्तित्व में देखते हुए यह कहना उचित नहीं होगा कि येसु इस लोक को पूरी तरह छोडकर दूसरे लोक में चले गये। और यूं कहें कि अपने स्वर्गारोहण के बाद प्रभु येसु इस दुनिया में अपनी अनुपस्थिति छोड गये। नहीं, येसु के स्वर्गारोहण के समय कुछ हट कर और विशेष कार्य सम्पन्न होता है। उनका पुनरूत्थान, स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा का प्रेरितों पर उतरना ये तीनों घटनायें एक दूसरे से बेहद जुडी हुई हैं। पुनरूत्थान के बाद प्रभु येसु का शरीर रूपान्तरित हो जाता है। जो है तो शरीर पर उसे साधारण मानवीय ऑंखें पहचान नहीं पाती। वे उन्हें कोई आत्मा समझ बैठते हैं। तब वे उनके सामने भूनी हुई मछली का एक टुकडा खाते हैं और उनकी ऑंखों का भ्रम दूर करते हैं। (संत लूकस 24:36-42)। जैसे उनका वह शरीर जो योहन 1:14 के अनुसार कुँवारी के गर्भ में देह धारण करता है वह अब रूपान्तरित होकर एक पुनरूत्थित शरीर बन जाता है। अपने स्वर्गारोहण में वैसे ही येसु इस दुनिया की वास्तविकता को स्वर्गीक वास्तविकता में तब्दील कर देते हैं। अपने ’पिता हमारे’की प्रार्थना में प्रभु येसु इसी की कामना करते हुए कहते हैं - हे पिता तेरा राज्य इस धरती पर आये। तो हमारी मुक्ति का अर्थ इस पापमय संसार से छुटकारा पाकर कहीं दूसरे लोक में बच भागना नहीं, पर ईश्वर द्वारा हमारे इस संसार को एक नया रूप देना है, उनका राज्य हमारे बीच स्थापित करना है। जैसा कि स्तोत्रकार स्तोत्र 57:12 में कहता है - समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो। इसे समझने के लिए हमें पेंतेकोस्त के दिन जो होता है उसपर ध्यान देना ज़रूरी है। ये दोनों घटनायें याने प्रभु का स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा का उतरना एक दूसरे से घनिष्टता से जुडी हुई है। इन दोनों घटनाओं में, येसु दुनिया से स्वर्ग जाते हैं और स्वर्ग से पवित्र आत्मा नीचे आता है। तो येसु मसीह का स्वर्गारोहण इस लोक से किसी अन्य लोक में जाना नहीं परन्तु दुनियाई वास्तविकता को स्वर्गिक वास्तविकता में परिवर्तित करना है। यह स्वर्ग और पृथ्वी का मिलन है। यहॉं पृथ्वी का स्वर्ग के द्वारा रूपान्तरण होता है। स्वर्गिक शक्ति दुनिया को रूपान्तरित करती है।
दोनों स्वर्गारोहण और पेंतेकोस्त में येसु मसीह के शरीर का ही रूपान्तरण होता है। आज के पहले पाठ में संत पौलुस कलोसियों 1:24 में कहते हैं कि कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से पूर्णता तक पहुँचा देते हैं। यदि कलीसिया मसीह का शरीर है तो पेंतेकोस्त के दिन कलीसिया रूपी मसीह के शरीर को मसीह ने अपना आत्मा भेज कर परिपूर्णता प्रदान की है। इससे हमको यह समझ में आता है कि येसु अपने स्वर्गारोहण के द्वारा कलीसिया को रूपान्तरित करते हैं, पवित्र करते हैं, परिपूर्ण करते हैं और एक नया रूप देते हैं। वे धरती पर की कलीसिया को स्वर्गिक कलीसिया से जोडते हैं। जिसे पवित्र मिस्सा बलिदान की अवतरणिका में पुरोहित व्यक्त करते हुये कहते हैं कि हम स्वर्ग के समस्त दूतगणों के स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए तेरा गुणगान करते और गाते हैं - पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु विश्वमंडल के ईश्वर...।

प्रभु येसु का स्वर्गारोहण इस प्रकार से उनके धरती छोडकर जाने को नहीं परन्तु उनके द्वारा इस कलीसिया को स्वर्गिक कलीसिया से जोडने की एक कडी है। और हर एक विश्वासी के लिए एक आह्वान है कि हमें येसु के इस कार्य को अपने जीवन में आगे बढाते रहना है। हमें स्वर्ग और धरती को एक साथ लाने या जोडने के येसु के मिशन को आगे बढाना है। तब हम भी एक दिन प्रभु येसु के समान अपने पुनरूत्थित शरीर में सर्वशक्तिमान के स्वर्गिक सिंहासन के सामने खडे होकर उनकी महिमा के दर्शन करेंगे। आमेन।

येसु ख्रीस्त के अति पवित्रम शरीर एवं रक्त का पर्व, 23 जून 2019



उत्पत्ति 14ः18-20
1 कुरिंथियों 11ः23-26
लुकस  9ः11-17

आज हम प्रभु येसु ख्रीस्त  के अति पवित्रम शरीर एवं रक्त का पर्व मना रहे हैं। कुछ दिन पहले प्रख्यात पेंटेकोस्टल प्रवचक बेन्नी हिंन का एक विडियो देखने को मिला जिसमें वे पवित्र युखरिस्त के बारे में बतलाते हुए कहते हैं कि एक अध्ययन में ये सामने आया है कि कैथोलिक चर्च में पवित्र युखरिस्त के दौरान ज्यादा लागों को चंगाई मिलती है। क्योंकि वे पवित्र युखरिस्त में विष्वास करते हैं। अपने चर्च का हवाला देते हुए वे कहते हैं कि उनके के लिए तो युखरिस्त में प्रभु येसु की केवल प्रतिकात्म उपस्थिति होती है। परन्तु प्रभु येसु ने तो सपष्ट शब्दों में कहा कि - ‘‘ले लो और खाओ। यह मेरा शरीर है’’ (मत्ती 26ः26)। उन्होंने यह नहीं कहा कि यह रोटी मेरे शरीर का प्रतीक  है। पर उन्होंने कहा यह मेरा शरीर है। और संत योहन 6ः53 में भी प्रभु येसु ने स्पष्ट कहा है - ‘‘यदि तुम मानव पुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा।’’

प्रभु येसु का इस संसार में आने का उद्देष्य ही यह था कि उनके द्वारा हमें अनन्त जीवन प्राप्त हो। संत योहन 3ः16 में लिखा है - ‘‘ईष्वर ने संसार को इतना प्रेम किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विष्वास करता है, उसका सर्वनाष न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।’’

अनन्त जीवन का खजाना, अनन्त  जीवन का उपहार पवित्र युखरिस्त में छिपा है। इसलिए मैं मेरी कैथलिक पैदाईष पर गर्व करता हूँ। और अपने आपको सौभाग्यषाली मानता हूँ। मैं ही क्यों दुनियाभर के सब कैथोलिक विष्वासी विषेषरूप से अनुग्रहित हैं क्योंकि वे जीवित प्रभु येसु का शरीर एवं रक्त ग्रहण करते हैं। द्वितीय वैटिकन महासभा सिखलाती है कि पवित्र युखरिस्त कलीसिया के जीवन का स्रोत और उसकी परकाष्ठा है। (स्नउमद ळमदजपनउए 11) इसी से कलीसिया को जीवन मिलता है और इसी में कलीसिया का अंतिम लक्ष्य निहित है। अन्य संस्कारों में तो हमें ईष्वर की कृपा मिलती है परन्तु पवित्र यूखारिस्त में तो हमें कृपाओं को प्रदान करने वाला ईष्वर स्वयं प्राप्त होता है। क्यांेकि यूखरिस्त तो स्वयं प्रभु येसु ही हैं, और बिना उनके कलीसिया की कल्पना करना संभव नहीं।

पर एक बडा सवाल यह उठता है कि इस प्रभु येसु को उन्हें ग्रहण करने वालों कितना गहराई से समझा है?

क्या आपने कभी कल्पना की कि यदि आप भी प्रभु येसु के समय उनके साथ होते और आपको उन्हें स्पर्ष करने का अवसर मिलता! कितना सुखद और कितना अनुग्रहकारी क्षण होता वह, है न? अगर छूना नहीं मिलता तो कमसे कम उनकी एक झलक भी देखने को मिल जाती तो भी हम तो अपने को बडा सौभाग्यषाली मानते, है न? माँ मरियम की महानता पर प्रवचन देते समय मैं कई बार इस बात को रखता हूँ कि वे इसलिए महान मानी जाती है क्योंकि उन्होंने ईष्वर के पुत्र को नौ महिनों तक अपने गर्भ रखा। उन्होंने सृष्टीकर्ता को नौ महिनों तक अपनी कोख में रखा। जरा विचार कीजिए कि यदि सिर्फ नौ महिनों तक येसु की देह को अपने गर्भ में रखने से यदि माता मरिय सब नारियों में धन्य बन गई तो हर रविवार या फिर हर रोज उसी येसु को अपने दिल में ग्रहण करने वाले हम कितने महान हो सकते हैं। क्या हम इस बात को दिल से मानते हैं कि हमारे दिल में रोज आने वाला येसु वही येसु है जो मरियम के गर्भ में था? क्या यह वही येसु है जो जोसफ और मरियम के साथ नाज़रेथ में करीब तीस साल रहा? क्या यह वही येसु है जिसने अंधों को आँखें और मुर्दाें को जान दी?

हम में से अधिकतर लोग पवित्र युखरिस्त की गहराई तक नहीं पहुँच पाते। हम पवित्र युखरिस्त को बहुत ही हल्के में लेते हैं। यदि पवित्र यूखरिस्त की आराधना किसी रिट्रीट के दौरान हो रही है तो हम उन्हंे बहुत ही आदर सम्मान देते हैं। यदि साधारण आराधना है तो आदर व भक्ति की तीव्रता थोडी कम हो जाती है। और यदि पवित्र युखरिस्त सिर्फ पवित्र संदूक में है तो सिर्फ सिर झूका कर हम आगे बढ़ जाते हैं। या कई बार हम इसकी भी ज़रूरत नहीं समझते।  और जब वही प्रभु येसु हमारे अपने हृदय मंे आते हैं तो उनका आदर और भी कम हो जाता है। रीट्रीट या आराधना के समय हमारी श्रद्धा और भक्ति का पात्र बनने वाले प्रभु को क्या हो  जाता है जब वह हमारे दिल में आते हैं। हाँ जरूर प्रभु येसु अपने आपको बहुत ही विनम्र और दीन हीन बना लेते हैं जब वे एक रोटी में समाहित होकर हमारे पास आते हैं। पर उनका वैभव, उनकी महिमा, और उनका ईष्वरत्व कम नहीं होता।

तब दूसरा सवाल यह खडा होता है कि यदि प्रभु येसु अपनी उसी महिमा व जलाल में पवित्र यूखरिस्त में हमारे दिल में आते हैं तो फिर हम जो उन्हें ग्रहण करते हैं उस प्रभु की उपस्थिति का प्रभाव हमारे जीवन में क्यांे नहीं पडता? पवित्र परम प्रसाद ग्रहण करने के पहले और ग्रहण करने के बाद मुझमें क्या परिवर्तन आता है? परमप्रसाद ग्रहण करने के कितने समय तक मैं इस अनुभुति में रहता हूँ कि प्रभु मेरे दिल में है।

एक और बडा सवाल यह हमेषा मेरे मन में कौंधता रहता है कि यदि जीवित प्रभु येसु मेरे हृदय में हैं तो फिर भी क्यों मेरे जीवन में संकट, दुःख, बिमारी, निराषा और परेषानियाँ है? अथवा जब मैं कठिनाईयों के दौर से गुजरता हूँ तब युखरिस्तीय प्रभु मेरे अंदर क्या कर रहे होते हैं? क्या वे सो रहे होते हैं? जि हाँ, काफी हद तक यह कहा जा सकता है कि प्रभु सो जाते होंगे। वास्तव में तो प्रभु कभी सोते नहीं। स्तोत्र 121ः4 में प्रभु का वचन कहता है -‘‘इस्राएल का रक्षक न तो सोता है और न झपकी लेता है।’’ पर मत्ती 8ः23-27 में हम पाते हैं कि प्रभु येसु अपने षिष्यों के साथ नाव में सवार होकर कहीं जा रहे थे। और वे एक आँधी में फँस जाते हैं। उस बवंडर के बीच पवित्र सुसमाचार हमें बतलाता है कि प्रभु येसु सो रहे होते हैं। क्या प्रभु येसु वास्तव में सो रहे थे? क्या वे वास्तव में इतनी गहरी नींद में थे कि वहाँ पर क्या हो रहा है उन्हें पता भी नहीं चला? मैं नहीं सोचता वे वास्तव में गहरी निंद में थे। दरअसल षिष्यों के पास उनसे बात करने का समय नहीं था। षिष्य अपनी ही धुन में थे। इसलिए येसु विश्राम करने चले जाते हैं। शायद हम भी यूखरीस्तीय प्रभु को इसी प्रकार सोने भेज देते हैं। एक बार पवित्र परम प्रसाद ग्रहण किया और फिर भूल गये प्रभु को। हम व्यर्थ ही जीवन में परेषान रहते हैं, जबकि हमारा जिंदा खुदावन्द हरदम हमारे साथ रहता है। षिष्यों की तरह व्यर्थ ही जिंदगी के छोटे-मोटे तुफानों से घबराकर अपने हिसाब से अपने जीवन की नाव को बचाने के प्रयास करते रहते हैं। जब सब कुछ हमारी क्षमता के परे होने लगता है तब हमें उस प्रभु की याद आती है। हमें हमारे प्रभु को सुलाना नहीं उन्हें हमारी जिंदगी में व्यस्त रखना है। यदि आपका कोई अजीज मित्र आपसे मिलने आपके घर आये इस उम्मिद से कि मिलकर ढेर सारी बातें करेंगे, अपना सुख-दुख साझा करेंगे व साथ में कुछ समय बितायेंगे। ज़रा सोचिए यदि आप उसे समय नहीं देते, आप अपने मोबाइल, टीवी या फिर कम्युटर में व्यस्थ हैं तो आपके उस दोस्त को कैसा लगेगा? प्रभु येसु आपसे रोज बातें करना चाहते हैं; रोज आपका हाल पुछना चाहते हैं; आपकी रोज की खैर-खबर रखना चाहते हैं; आपके दुखों को हल्का करना चाहते हैं; आपके जिंदगी के बोझ को अपने ऊपर लेना चाहते हैं; वे कहते हैं - ‘‘थके माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सबके सब मेरे पास आओ मैं तुम्हेें विश्राम दूँगा।’’ (संत मत्ती 11,28)

वे आपके जीवन को लेकर चिंतित है; उनके मन में आपके लिए एक योजना है। ‘‘तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ मैं जानता हूँ - तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं तुम्हारे लिए आषामय भविष्य की योजनाएँ।’’ (यिरमियाह 29ः11)। वे चाहते हैं कि आपको अपनी उस सुखद योजना के बारे में वह बताए, आपसे उस पर चर्चा करें।

क्या हम हमारे दिल में रहने वाले प्रभु येसु से बातचित करते हैं? उनकी बातों को सुनते हैं? अपने जीवन में उसकी रजा, उसकी मरजी क्या है, क्या हम उनसे यह पूछते हैं? दिन में कितनी बार हम उनको याद करते हैं? वो तो हमारे सबसे करीब हैं; हमारे दिल में अंदर हैं, हमेषा इस इंतजार में कि हम कब उनसे बात करने का समय निकालेंगे। वो अपने प्यार भरे लब्जों से दिन में कितनी ही बार हमें पुकारते हैं। पर हम कितनी ही बार उनकी वाणी को अनसुना कर देते हैं। हर घडी जब प्रलोभन व बुराई की शक्तियाँ हमें अपनी ओर खींचती हैं तो वह प्रभु येसु हमें कितनी बार हमें उनसे बचने के लिए आगाह करते हैं; पर हम उनके प्रयासों को नज़रअंदाज कर देते हैं। हम उन्हें हमारेे दिल के एक कोने में सोने को मज़बूर कर देते हैं।

आईये हम पवित्र परमप्रसाद के प्रति अपने नज़रिये को बदलें और उसमें उपस्थित प्रभु की वास्तविक उपस्थिति का आभास स्वयं को हर पल करायें। विषेष करके परमप्रसाद ग्रहण करने के तुरन्त बाद के मुल्यवान पलों में कुछ क्षण शाँत रहकर प्रभु येसु से संवाद करने, और उनसे बातचित करने में लीन हो जायें। जितनी घनिष्टता से हम उनसे जुडेंगे उतना अधिक हम उनका दिव्य अनुभव प्राप्त करेंगे। प्रभु येसु को हम अपना सबसे करीबी मित्र बना लें। उनकी उपस्थिति की अनुभुति हर पल हमारे मन में रहे। यदि ऐसा हुआ तो फिर न तो कोई प्रलोभन, न कोई शैतान की ताकत, न कोई बुराई, न कोई विपत्ति, न कोई बिमारी और न कोई निराषा हमें विचलित कर सकती है क्योंकि येसु ने इन सब पर विजय प्राप्त की है। (योहन 16ः33)।



Saturday, 4 May 2019

पास्का काल का तीसरा रविवार: हिंदी मनन चिंतन

प्रे.च. 5ः27-32
प्रकाशना 5ः11-14
योहन 21ः1-19
जब जिंदगी कठीनाईयों से भर जाती है। जब हम दिशाहीन और खोये-खोये और भयग्रस्त हो जाते हैं। जब जीवन में कुछ ऐसा घटता है जिसकी हमें कोई उम्मीद नहीं थी, अथवा कुछ अनपेक्षित घट जाता है तो हम उस परिस्थिति से भागने की कोशिश  करते हैं। और बहुत बार हमारी दौड़ आगे की ओर नहीं पीछे की ओर होती है। जब हम में डर है, अनिश्चितता है, तब हम ऐसी जगह में पनाह लेते हैं जिससे हम पहले से परिचित हैं, वाकिफ हैं, जो आसान है, जहाॅं कम चुनौतियाॅं है। और हमारी पुरानी जिंदगी से ज्यादा परिचित और क्या हो सकता है। आज के सुसमाचार में कुछ ऐसा ही हो रहा है। शिष्य  प्रभु येसु की मृत्यु से जिसके बारे में उन्होंने कभी कल्पना ही नहीं की होगी, इतने विचलित और भयग्रस्त हो गये थेे कि वे पीछे मुडकर अपनी पुरानी जिंदगी की और भाग जाते हैं ।

 प्रभु ने पेत्रुस को गलीलिया की झील में मछली पकडते हुए बुलाया था। उसने अपनी वह पुरानी जिंदगी छोडकर येसु का अनुसरण किया। येसु ने उन्हें वह चट्टान बनाने का वादा किया जिस पर प्रभु की कलीसिया खडी होगी। पर वह पेत्रुस अन्य शिष्यों  के साथ अपनी पुरानी जिंदगी की ओर चल देता है। वह जिंदगी जिससेे वह ज्यादा परिचित है, वह जिंदगी जो उनके लिए ज्यादा आसान है, वह जिंदगी जो येसु का अनुसरण करने से कहीं ज्यादा आरामदायक और कम चुनौतियों से भरी है। पेत्रुस का मछली पकडना हमारे लिए जिंदगी में अर्थ व मकसद तलाशना है। रात के अंधकार में पेत्रुस अपने साथियों के साथ अपनी सारी क्षमता व अनुभव का उपयोग करते हुए कुछ पाने की आशा  में पूरी रात बिता देता है पर सुबह तक कुछ हासिल नहीं होता, ज़रूरत निराशा  और दुख तो मिला होगा। तब येसु किनारे पर आकर खडे हो जाते हैं। और सवाल करते हैं। बच्चों खाने को कुछ मिला? और जवाब था नहीं। 

प्रभु आज हम से पूछते हैं मुझे छोड पुरानी जिंदगी में जाकर अपने जीवन का अर्थ खोजने वाले मेरे बच्चों जीने  का अर्थ मिला? बोलो मेरे बिना जिंदगी में सफलता मिली? मुझे ठुकराकर जिंदगी में कुछ हासिल हुआ? हमारा जवाब क्या होगा? मेरा जवाब तो होगा नहीं प्रभु तेरे बिना जिंदगी में कुछ भी हासिल नहीं हुआ। 

तब प्रभु ने दाहिनी ओर जाल डालने को कहा। जब प्रभु के आदेश का पालन हुआ और उनका जाल मछलियों से इतना भर गया कि वे जाल नहीं निकाल पा रहे थे। प्रभु के वचन पर चलने पर, प्रभु का आदेश मानने पर जिंदगी में आशीष  व कृपायें इतनी बहुतायत से मिलती है कि हमारी झोली छोटी पड जाती है। 

प्रभु का तिरस्कार कर, प्रभु  के प्यार को ठुकराकर अपने साथियों के साथ अपने पुराने पेशे  को अपनाने वाले पेत्रुस से प्रभु पूछते हैं - ‘‘सिमोन, योहन के पुत्र क्या तुम इनकी अपेक्षा मुझे अधिक प्यार करते हो?’’ प्रभु पूछते हैं क्या तुम इन सब से ज्यादा, मुझे प्यार करते हो? प्रभु आज हम सब से यही पूछते हैं - क्या तुम तुम्हारी नौकरी से, तुम्हारे मित्रों से, तुम्हारे चहेतों से, तुम्हारी दौलत से, तुम्हारे माता पिता से ज्यादा मुझे प्यार करते हो? 
प्यारे मित्रों पूनर्जीवत  प्रभु ने हमें अपनी मृत्यु व पुनरूत्थान द्वारा एक नया जीवन दिया है। पुरानी पापमय जिंदगी को समाप्त कर दिया है। अब प्रभु हम से चाहते हैं कि हम हमारा दिल, हमारा प्यार सिर्फ येसु को दें। येसु से ज्यादा हम न तो किसी को अहमियत दें और न ही किसी व्यक्ति, किसी आदत व किसी चीज में  आसक्त रहें। वचन कहता है - ‘‘अपने प्रभु ईष्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धी से प्यार करो’’ (मत्ती 22ः37)। 
आईये हम हमारे जीवन में, जीवन की हर परिस्थिति में, जीवन के हर मुकाम पर, जीवन के हर निर्णय में सिर्फ येसु को चुने। हमारे हर निर्णय का मापदंड येसु और उनके वचन हो। आमेन।