प्रे.च. 5ः27-32
प्रकाशना 5ः11-14
योहन 21ः1-19
जब जिंदगी कठीनाईयों से भर जाती है। जब हम दिशाहीन और खोये-खोये और भयग्रस्त हो जाते हैं। जब जीवन में कुछ ऐसा घटता है जिसकी हमें कोई उम्मीद नहीं थी, अथवा कुछ अनपेक्षित घट जाता है तो हम उस परिस्थिति से भागने की कोशिश करते हैं। और बहुत बार हमारी दौड़ आगे की ओर नहीं पीछे की ओर होती है। जब हम में डर है, अनिश्चितता है, तब हम ऐसी जगह में पनाह लेते हैं जिससे हम पहले से परिचित हैं, वाकिफ हैं, जो आसान है, जहाॅं कम चुनौतियाॅं है। और हमारी पुरानी जिंदगी से ज्यादा परिचित और क्या हो सकता है। आज के सुसमाचार में कुछ ऐसा ही हो रहा है। शिष्य प्रभु येसु की मृत्यु से जिसके बारे में उन्होंने कभी कल्पना ही नहीं की होगी, इतने विचलित और भयग्रस्त हो गये थेे कि वे पीछे मुडकर अपनी पुरानी जिंदगी की और भाग जाते हैं ।
प्रभु ने पेत्रुस को गलीलिया की झील में मछली पकडते हुए बुलाया था। उसने अपनी वह पुरानी जिंदगी छोडकर येसु का अनुसरण किया। येसु ने उन्हें वह चट्टान बनाने का वादा किया जिस पर प्रभु की कलीसिया खडी होगी। पर वह पेत्रुस अन्य शिष्यों के साथ अपनी पुरानी जिंदगी की ओर चल देता है। वह जिंदगी जिससेे वह ज्यादा परिचित है, वह जिंदगी जो उनके लिए ज्यादा आसान है, वह जिंदगी जो येसु का अनुसरण करने से कहीं ज्यादा आरामदायक और कम चुनौतियों से भरी है। पेत्रुस का मछली पकडना हमारे लिए जिंदगी में अर्थ व मकसद तलाशना है। रात के अंधकार में पेत्रुस अपने साथियों के साथ अपनी सारी क्षमता व अनुभव का उपयोग करते हुए कुछ पाने की आशा में पूरी रात बिता देता है पर सुबह तक कुछ हासिल नहीं होता, ज़रूरत निराशा और दुख तो मिला होगा। तब येसु किनारे पर आकर खडे हो जाते हैं। और सवाल करते हैं। बच्चों खाने को कुछ मिला? और जवाब था नहीं।
प्रभु आज हम से पूछते हैं मुझे छोड पुरानी जिंदगी में जाकर अपने जीवन का अर्थ खोजने वाले मेरे बच्चों जीने का अर्थ मिला? बोलो मेरे बिना जिंदगी में सफलता मिली? मुझे ठुकराकर जिंदगी में कुछ हासिल हुआ? हमारा जवाब क्या होगा? मेरा जवाब तो होगा नहीं प्रभु तेरे बिना जिंदगी में कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
तब प्रभु ने दाहिनी ओर जाल डालने को कहा। जब प्रभु के आदेश का पालन हुआ और उनका जाल मछलियों से इतना भर गया कि वे जाल नहीं निकाल पा रहे थे। प्रभु के वचन पर चलने पर, प्रभु का आदेश मानने पर जिंदगी में आशीष व कृपायें इतनी बहुतायत से मिलती है कि हमारी झोली छोटी पड जाती है।
प्रभु का तिरस्कार कर, प्रभु के प्यार को ठुकराकर अपने साथियों के साथ अपने पुराने पेशे को अपनाने वाले पेत्रुस से प्रभु पूछते हैं - ‘‘सिमोन, योहन के पुत्र क्या तुम इनकी अपेक्षा मुझे अधिक प्यार करते हो?’’ प्रभु पूछते हैं क्या तुम इन सब से ज्यादा, मुझे प्यार करते हो? प्रभु आज हम सब से यही पूछते हैं - क्या तुम तुम्हारी नौकरी से, तुम्हारे मित्रों से, तुम्हारे चहेतों से, तुम्हारी दौलत से, तुम्हारे माता पिता से ज्यादा मुझे प्यार करते हो?
प्यारे मित्रों पूनर्जीवत प्रभु ने हमें अपनी मृत्यु व पुनरूत्थान द्वारा एक नया जीवन दिया है। पुरानी पापमय जिंदगी को समाप्त कर दिया है। अब प्रभु हम से चाहते हैं कि हम हमारा दिल, हमारा प्यार सिर्फ येसु को दें। येसु से ज्यादा हम न तो किसी को अहमियत दें और न ही किसी व्यक्ति, किसी आदत व किसी चीज में आसक्त रहें। वचन कहता है - ‘‘अपने प्रभु ईष्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धी से प्यार करो’’ (मत्ती 22ः37)।
आईये हम हमारे जीवन में, जीवन की हर परिस्थिति में, जीवन के हर मुकाम पर, जीवन के हर निर्णय में सिर्फ येसु को चुने। हमारे हर निर्णय का मापदंड येसु और उनके वचन हो। आमेन।
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