Friday, 19 July 2019

वर्ष का सोलहवाँ रविवार: हिंदी प्रवचन 21 जुलाई 2019



उत्पत्ति 18ः1-10
कोलोसियों1ः24-28
लूकस 10:38-42


"एक ही बात आवश्यक  है।"


आज हम संत लूकस रचित सुसमाचार से पढते हैं प्रभु मार्था और मरियम के घर में जाते हैं। और दोनों ने अपने-अपने तरिकों से प्रभु को अपने घर में खुश करने का प्रयत्न किया। जहाँ एक और मार्था प्रभु के खाने पीने की व्यवस्था में लग गई वहीं मरियम उनके चरणों में बैठकर उनके वचन सुनने लगती है। और मार्था इसको एक मुद्दा बनाकरर मरियम के विरूद्ध शिकायत करती है। इस पर प्रभु एक सुन्दर शिक्षा  देते हैं - ‘‘मार्था  - मार्था तुम बहुत सी बातों के विषय में चिंतित और व्यस्त हो, फिर भी एक ही बात आवश्यक  है।


मैं सोचता हूँ आज का सुसमाचार एक और अनेक बातों की चिंता के बारे में ही है। हमारे पास चिंता के बहुत सारे विषय हैं। हमारा परिवार, हमारा जोब, हमारा घर, हमारे बच्चे, हमारी पढाई, हमारा भविष्य.....आदि अनगिनित चिंता के विषय हमारी जिंदगी में हैं।
प्रभु कहते हैं यदि तुम्हें चिंता करनी है तो ‘एक ही बात आवश्यक  है।’ और वह है येसु ख्रीस्त। जिसे मरियम ने चुन लिया है। बस प्रभु येसु ख्रीस्त हमारी जिंदगी का केंद्र होना है। बिना किसी प्रतिस्पर्धा के याने न उनके सामने किसी और व्यक्ति या वस्तु को नहीं तौलना है। न किसी को येसु से अधिक न कम आँकना है। सिर्फ येसु को केंद्र बनाना है। बाकि सारी चीजें उस केंद्र के ईर्द- गिर्द स्वतः अपना स्थान पा लेगी।

जब कभी हम गिरजाघर में आते हैं हर बार हम इस वास्तविकता से रूबरू होते हैं पर क्या कभी हम ने इस पर गौर किया है? चर्च के अंदर चारों ओर नज़र दौडाईये और देखिये कितनी सारी तस्वीरें और प्रतिमायें लगी हुई हैं। पर ज़रा देखिये केंद्र में कौन हैं? सिर्फ येसु, क्रूसित येसु। पवित्र बाइबल में पढते हैं, प्रकाशना ग्रंथ के अध्याय 4 और 5 में कि स्वर्ग में मेमने के सिंहासन के चारों और एकत्रित होकर स्वर्गीय सेना दिन रात उनकी स्तुति आराधना करती है। स्वर्गिक पिता और बलित मेमना, स्वर्ग में सबके लिए केंद्र है। स्वर्गीय पूजन विधि का केंद्र बलित मेमना है। और हमारा केंद्र कौन है ? जब हम पवित्र यूखारिस्त में भाग लेने आते हैं तो ‘सिर्फ एक ही बात आवश्यक  है’ इस तथ्य को याद करते हैं.  जहाँ ख्रीस्त की सारी प्रजा उनकी ओर मुख करते हुए यह स्वीकार करती है कि न केवल हमारी पूजा का बल्कि हमारे सम्पूर्ण जीवन का केंद्र येसु मसीह हैं। जब हम ‘एक ही आवश्यक वास्तविकता’ या एक ही आवश्यक  सच्चाई की ओर अभिमुख होते हैं तब हम हमारे जीवन में शाँति पाते हैं, आनन्द पाते हैं।

येसु को अपने जीवन का केंद्र मानना और अपने जीवन की अन्य सारी बातों, सारे कामों और सारे रिश्ते- नातों को उसी येसु रूपी केंद्र के इर्द-गिर्द बुनना ही एक सच्चा मसीही जीवन है। आज के सुसमाचार में मरियम ने यही किया। जिसके बारे में येसु कहते हैं - ‘‘मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया है, और वह उस से नहीं लिया जायेगा।’’
दुनिया में कई सारी अच्छी चीजे़ं हो सकती है। हमारी बहुत सारी पसंद-नापसंद सकती है। लेकिन तमाम पसंद नापसंदों और अच्छी बातों में हमें चुनना है कि हमारे लिए सर्वोत्तम क्या है? We have to chose what is  the best for our life. Who can be  the best for our life other than jesus himself?

आज के वचन में प्रभु मार्था के सेवा कार्यों को सीरे से खारिज़ नहीं करते। उन्होंने नहीं कहा मार्था तुम जो कार्य कर रही हो वह अनावश्यक या बेमतलब है। नहीं। उन्होंने कहा तुम्हारी चिंता बेवजह की चीजों को लेकर अधिक है। याने प्रभु कह रहे थे आपने अपने जीवन में प्राथमिकताओं का सही चयन करना नहीं सिखा है। आपकी प्राथमिता की सूची में पहले क्या आता है? आपका भोजन? आपका घर? आपका मकान? आपके कपडे? या और कुछ? प्रभु आज हम से पूछते हैं - तुम्हारी प्रार्थमिकता की सूची में मेरा स्थान कहाँ है? मैं कौन से पायदान पर आता हूँ? मरियम ने प्रभु येसु को अपने जीवन के पहले पायदान पर रखा। मेरे जीवन में येसु कहाँ हैं? संत  मत्ती 6:33 में प्रभु येसु हमसे कहते हैं - "तुम  सबसे पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो." 
आईये आज हम प्रभु के वचनों पर मनन चिंतन करते हुए अपनी जिंदगी में इस प्रश्न का उत्तर तलाशें - मेरे लिए क ही आवश्यक बात क्या है? मेरी एकमात्र चिंता का विषय क्या है? और मेरे जीवन में येसु का स्थान कहाँ है? आमेन।

Have a Blessed Sunday.




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