Friday, 17 April 2020

Divine Mercy Sunday

प्रभु येसु मसीह के हृदय से निकलती लाल और सफेद रंग की दो किरणों वाली सुन्दर तस्वीर हम सब ने देखी होगी जिसमें नीचे ‘‘येसु मैं आप पर भरोसा रखता हू’’ लिखा रहता है। यूॅं तो माइकल ऐंजेलो और लियो नार्ड द विंची जैसे कई कलाकारों ने अपनी कल्पनाओं के घोडे दौडाते हुए प्रभु येसु के जीवन और चरित्र को दर्शाती हुई बेहद सुन्दर व आकर्षक कई कलाकृतियाॅं बनाई हैं। पर जिस तस्वीर की आज हम बात कर रहे हैं वह किसी मनुष्य की कल्पना की उपज नहीं पर स्वयं प्रभु येसु की आज्ञानुसार संत फोस्तीना के माध्यम से बनवाई गई है। सन्1931 में प्रभु येसु ने सिस्टर फोस्टीना को दर्शन देकर अपनी दिव्य दया के बारे में बतलाया और अधिक से अधिक लोगों को येसु की दिव्य दया हासिल होने के लिए दिव्य दया की भक्ति को बढावा देने को कहा। जि हाॅं प्रभु येसु ने इसी रूप में संत फोस्टीना को  दर्शन  दिया  और कहा कि जैसा वे उन्हें दिव्य दर्शन में देख रहीं हैं वैसा ही एक चित्र तैयार करके उसके नीचे येसु मैं तुझ पर भरोसा रखता हूॅं लिखें। और आगे प्रभु येसु ने उनसे कहा - मैं चाहता हूॅं कि मेरे इस तस्वीर की दुनियाभर में आदर-भक्ति हो। मैं वादा करता हूॅं कि जो कोई इस तस्वीर का आदर करेगा उसका सर्वनाश  नहीं होगा। 

अपने उस रूप में दिये  दर्शन की व्याख्या करते हुए प्रभु येसु कहते हैं- ये सफेद किरणें मेरी बगल से निकले पानी को दर्शाती  हैं, जो हर एक आत्मा को शुद्ध करता है। और लाल किरणें मेरे रक्त को दर्शाती  जो आत्माओं को जीवन प्रदान करता है। ये दोनों किरणें उस वक्त मेरे दयामय हृदय की गहराईयों से निकली जब मेरी बगल को भाले से छेदा गया था. (योहन 19:34) ये उन आत्माओं के लिए सुरक्षा प्रदान करती हैं जो मेरे पिता के क्रोध व दंड के लायक हैं। धन्य हैं वे आत्मायें जो मेरी इन किरणों की छाया में सुरक्षित हैं। दिव्य न्यायाधीश के हाथ उन पर कृपा करेंगे। तब तक मानव शांति नहीं पाएगा जब तक वह ईश्वर  की ओर न मुडे और उनकी करूणा पर भरोसा न करे। 

और आज के दिन के बारे में प्रभु येसु ने यह कहा - मैं चाहता हूॅं कि पास्का के बाद का पहला रविवार मेरी दया के दिन के रूप में मनाया जाये। जो कोई इस दिन योग्य रीति से पाप स्वीकार करके पवित्र परम संस्कार को ग्रहण करेगा वह न केवल अपने पापों की माफी पायेगा परन्तु उन पापों के कारण जो दंड उन्हें मिलने वाला था उससे भी मुक्ति पायेगा। इस दिन दिव्य दया के भंडार के सारे दरवाज़े खुल जाते हैं जहाॅं से कृपा का झरना बहता है। मेरे पास आने में कोई भी आत्मा न डरें। यह दिव्य दया का पर्व सारे संसार के लिए एक सान्तवना होगा। 

हम पवित्र शुक्रवार से लेकर दिव्य दया की नोवेना व रोजरी माला प्रार्थना करते आये हैं और आज हम उस दिव्य दया को याद कर रहे हैं जो सारे संसार के पापों के लिए येसु मसीह के अति करूणामय हृदय से सदा बहती रहती है। इसीलिए संत  मत्ती के सुसमाचार 18ः14 में भटकी हुई भेड के प्रसंग में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘इसी तरह मेरा स्वर्गीक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।’’
प्रभु येसु ने संत फोस्टीना से दिव्य दया की नोवेना के संदर्भ में कहा था - ‘‘इन नौ दिनों की प्रार्थना मेें तुम सारी आत्माओं को मेरी दया के झरने के पास लेकर आना और इस झरने से उन्हें जितना अधिक सामर्थ्य, और आशीष  की ज़रूरत है मैं उन्हें दू़ॅंगा विशेष करके परीक्षा और मौत की घडी में। हर रोज तुम समरूप आत्माओं को लाकर मेरी दया के सागर में उन्हें डुबाओ।’’

यह है हमें प्रेम करने वाले ईश्वर  के दिल की तडप। संत योहन का पहला पत्र 4ः8 कहता है - " ईश्वर  प्रेम है’’ जि हाॅं ईश्वर की सारी पहचानों में से प्रेम के रूप में उनकी पहचान सबसे सटीक पहचान है। उनके दिल मंे प्रेम कुछ इस कदर उमडता था कि उसने उस प्रेम का इजहार करने के लिए इंसान को बनाया। उसने इंसान को बनाया ताकि वह उस पर अपना प्रेम लुटा सके। पर इंसान ने उस प्रेम का तिरस्कार किया। इंसान ने बेवफाई की। और उस प्रेम को ठुकरा कर इस संसार में संसार और संसार की चीजों से दिल लगा लिया। वचन कहता है - ‘‘जो संसार को प्यार करता है उसमें पिता का प्रेम नहीं।’’ 1 योहन 2ः15 और 1 योहन 5ः19 में वचन कहता है-‘‘हम जानते हैं कि हम ईश्वर के हैं जब कि समस्त संसार दुष्ट के वश  में है।’’ यदि हम संसार से प्यार करते हैं तो इसका मतलब है हम दुष्ट याने शैतान से प्यार करते हैं। 

फिर भी हमारे प्रेमी पिता ने हमें दुष्ट के शिकंजे में फॅंस कर मरने नहीं दिया। उसने हमें अनन्त जीवन देने हेतु अपने ही एकलौते बेटे को हमारे लिए भेज दिया ताकि उनके द्वारा हम पुनः पिता के प्यार को पा सकें। हम हमारे पापों द्वारा पिता से जितना दूर जाने की कोशिश  करते हैं पिता उतना ही हमारे करीब आकर हमें अपने प्रेम व करूणा से भर देना चाहता है। इसीलिए उसने कलवारी पर अपने एकलौते बेटे का बलिदान चढाया ताकि उनके रक्त द्वारा हमारे पापों के दाग धोये जा सकें और हम पिता के प्रेम व करूणा के फिर से भागिदार बन सकें।

उसी येसु मसीह की दिव्य करूणा के द्वारा पिता सारी मानवता को अपने प्रेम भरे आगोश में ले लेना चाहता है। सारी मानव जाती को येसु की दिव्य दया के सागर में डुबाकर उन्हें शुद्ध कर फिर से अपनी प्रिय संतानों के रूप में अपनाना व प्यार दिखाना चाहता है।

आईये हम दिव्य करूणा से भरे येसु के पास आयें और अपने लिए तथा सारे संसार के पापों के लिए प्रायश्चित्त करते हुए परम पिता ईश्वर को प्रभु येसु का दिव्य शरीर और रक्त व उनकी आत्मा व ईश्वरत्व को समर्पित करते हुए अपने ऊपर और सारे संसार पर दया की याचना करें। 
आमेन। 

Friday, 10 April 2020

पास्का पर्व का मनन चिंतन 2020



मेरे प्रिय भाईयों बहनों आज की पूजनविधि में  हम प्रभु के 
पुनरूत्थान पर मनन चिंतन करेंगे। योहन  11,33 में वचन कहता है - पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ। .......
हमने बीते दिनों में प्रभु येसु के दुखभोग एवं मरण की यादगारी मनाई। उनकी मृत्यु के बाद  उनके कुछ शिष्यों  ने उनकी पवित्र लाश  उतारी और उन्हें कब्र में रख दिया। प्रभु येसु के विरोधियों ने उनकी कब्र पर बडा सा पत्थर रखकर उस पर मूहर लगा दी यह सोचकर कि इसने पहले से कहा था कि वह तीसरे दिन जी उठेगा। न जाने कब उन के शिष्य आयेंगे और इसकी लाश  को ले जायेंगे। प्रभु के विरोधियां ने सोचा सारी कहानी का अंत वहां हो गया। सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन हम प्रेरित चरित  2, 24 में हम पढते हैं, जहां संत पेत्रुस कहते हैं  - ‘‘ ईश्वर  ने मृत्यु क बंधन खोलकर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असंभव था कि प्रभु येसु मृत्यु के वश  में रहे।’’ मृत्यु के अधीन, उसके अधिकार में उसके बंधन में रहना प्रभु येसु के लिए असंभव था।

प्रभु येसु के शिष्यों के अंदर भी डर था। और इसिलिए वे लोग भी सोच रहे थे कि सारी कहानी खत्म हो गई है, और वे जाकर एक कमरे में अपने-आप को बंद कर के छिप गये। अपने आप में ग्लानी महसूस कर रहे थे। अपने किये कार्यों पर ग्लानी व दुःख महसूस कर रहे थे कि दुखित क्षणों में हमने प्रभु को छोड दिया। हमने प्रभु का तिरस्कार किया। सबों पर उदासी छायी हुई थी। सब डरे हुए थे एक बंद कमरे में, मानो वे मरे हुए थे। 

संत योहन 20, में हम पढते हैं उनके बंद कमरे में पुनर्जिवित प्रभु येसु प्रवेश करते  हैं। और पुनर्जिवित प्रभु येसु का सामर्थ्य उस कमरे में भर जाता है। उनका प्रकाश  उस कमरे में भर जाता है। उनका जीवन उस कमरे में भर जाता है। इस तरह 2 तिमथी 1,10 में वचन कहता है - ‘‘ईसा ने मृत्यु का विनाश किया और अपने सुसमाचार के द्वारा अमर जीवन को अलोकित किया है।’’ जो शिष्य डरे हुए थे, असुरक्षा मसूस कर रहे थे कमरे में बंद थे, उन में प्रभु येसु ने एक नये जीवन का संचार किया। वे मरे -मरे थे उन पर प्रभु येसु ने जीवन का संचार किया। उनके उपर जो ग्लानी की भावना थी दुख से भरे थे, उन्हें प्रभु येसु ने आनन्द से भर दिया। जैसे कि एक पौधा, जो पानी के आभाव में मुरझा रहा हो, सूखने-सूखने को हो और अचानक उसे पानी किल जाए तो  वह फिर से खिल उठता है। हरा-भरा हो जाता है वैसे ही प्रभु के  शिष्यों में नई जान आ जाती है।

हम सुसमाचार में पढते हैं कि प्रभु येसु के प्रिय  शिष्याओं  में से एक मरियम मगदलेना और कुछ नारियां प्रभु येसु की कब्र की ओर जाती है। प्रातः का समय था वे आपस में सोच रहे थे कि हमारे लिए कौन कब्र को खोल देगा ताकि हम उनकी लाश  पर इत्र लगाएं। और ऐसा सोचते हुए वे कब्र के पास जा रही थी, सुसमाचार हमें बताता है कि जब वे वहां पहुंचती है तो कब्र खुली हुई थी। मरियम दौड कर आयी पेत्रुस और योहन को बुला लाई उन्होंने भी देखा कि कब्र खुली है और येसु की लाश  उसमें  नहीं है। और वह वहीं खडी रह गई और रोने लगी। तो स्वर्ग दूतों ने पूछा नारी क्यों रोती हो। उसने कहा कि क्योंकि वे मेरे गुरू की लाश  को ले गए हैं और  मैं नहीं जानती कि वह कहां है। बाद में प्रभु येसु स्वयं उससे पूछते हैं, नारी तुम क्यों रोती हो! और वह वही जवाब देती है। अंत में प्रभु येसु उन्हें नाम लेकर उसे पुकारते हैं "मरियम " और मरियम प्रभु येसु को पहचान लेती है। पुनर्जीवित प्रभु येसु का सामार्थ्य उसके अंदर प्रवेश  कर जाता है।

इस तरह हम देखते हैं कि सुसमाचार में पढते हैं कि करीब चालिस दिनों तक प्रभु येसु अपने शिष्यों के साथ रहे और उनको बार-बार विविध रूपों में दर्शन  देते हुए इस बात का अनुभव करा रहे थे कि देखो मैं मर गया था लेकिन अभी जी गया हूँ। जैसा कि प्रकाशना 1 :18 ग्रंथ में हम पढते हैं - ‘‘जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे पास है।  तो इस प्रकार करीब चालिस दिन तक प्रभु येसु ने बारम्बार अपनेशिष्यों को दर्शन  देकर इस बात का अनुभव कराया कि वे  जीवित हैं  और पुनरूत्थान पर उनका विश्वास  दृढ करवाया। और उनका जीवन परिवर्तित हो गया। 

प्रभु येसु के पुनरूत्थान ने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया। उनका जीवन दर्षन ही बदल गया। जीवन को देखने का नज़रिया बदल गया। उनके लिए जीवन का एक नया रास्ता खुल गया। और प्रभु के पुनरूत्थान का अनुभव इतना गहरा था कि हमें वचन बताता है कि वे जाकर प्रचार करने लगे।  फिलिपियों 3,10 में संत पौलुस कहता है - "मैं यही चाहता हूं कि येसु मसीह को जानूं और उनके पुनरूत्थान के सामार्थ्य का अनुभव करूं।’’
संत पेत्रुस प्रे. च. 2, 23-24 में प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते हैं। यह पहला उपदेश  था और प्रभु के शिष्यों का  पहला प्रचार। उनके उपदेश की विषय-वस्तु और केंद्र प्रभु का पुनरूत्थान था। वे पुनर्जीवित प्रभु का गहरा अनुभव लोगों के साथ बांटते हैं। प्रे. च. 4, 35 में हम पढते हैं - प्रभु येसु के शिष्य बडे सामार्थ्य के साथ प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देते थे और उन पर बडी कृपा बनी रहती थी। जब हम भी पुनर्जीवित येसु का साक्ष्य देंगे हम पर भी प्रभु की कृपा बनी रहेगी।

 हम ईसाईयों को चाहिए कि हम पुनर्जीवित मसीह का साक्ष्य देंवे। कभी-कभी देखने में आता है कि हम प्रभु मसीह के क्रूस पर बलिदान तक ही अपने साक्ष्य को सीमित रखते हैं। और प्रभु येसु के बलिदान के बारे में हम साक्ष्य देते हैं। पर सच्चे  मसीही वो हैं जो प्रभु येसु के पुनरूत्थान के बारे में साक्ष्य देते हैं। आज गैर ख्रीस्त  से भी यदि हम पूछें कि आप ईसा मसीह के बारे में क्या जानते हैं तो वे बतायेंगे कि उन्होंने सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम व क्षमा के मार्ग की न केवल शिक्षा  दी परन्तु अपने जीवन में उसे आत्मासात भी किया। उन्होंने क्रूस पर मरते समय भी अपने विरोधियों को क्षमा दी आदि। पर बहुत ही विरले हम उनके मुख से प्रभु के पुनरूत्थान के बार में सुनेंगे। क्यों? क्यों लोग प्रभु के पुनरूत्थान से अनभिज्ञ है? क्योंकि हम पुनर्जीवित प्रभु का साक्ष्य नहीं देते।    1 कुरिं 15,17 में वचन कहता - ‘‘यदि येसु मसीह का पुनरूत्थान नहीं हुआ है तो हमारा विश्वाश  व्यर्थ है।’’ हम मसीहियों के विश्वाश  का आधार है प्रभु येसु का पुनरूत्थान। हम किसी मरे हुए व्यक्ति की आराधना नहीं कर रहे हैं। हम पत्थरों अथवा मूर्तियों की नहीं,  हम एक ज़िदा खुदावन्द की आराधना करते हैं।  हम पुनर्जीवित येसु मसीह की आराधना करते हैं। जितनी यह बात  हमारे जीवन मजबूत होती जायेगी उतना आधीक हम प्रभु येसु के जीवन  का अपने जीवन में अनुभव करने लगेंगे। तो हम हर मसीही पुनर्जीवित येसु के साक्षी हैं। और हमें प्रभु येसु के पुनरूत्थान का साक्ष्य देना है।


यह साक्ष्य हमें  हमारे कर्मों एवं वचनों दोनों से देना है। हमें पुनर्जीवित मसीह की घोषणा करना है। हमें लोगों को यह बतलाना है कि हमारा प्रभु जिंदा खुदा  है। और अपने कर्मों द्वारा भी यह दिखलाना है कि हमारा प्रभु हममें, हमारे अन्दर, हमारे जीवन में जिंदा है। गलातियों  को लिखे  पत्र 


2 :20 में  में संत पौलुस कहते हैं - ‘‘मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित है।’’ पुनर्जीवित मसीह मुझमें जीवित है। वो मेरे अंदर कार्य कर रहा है। वो मेरे अंदर अपने राज्य के फल उत्पन्न कर रहा है। कब्र से निकलकर वो मेरे जीवन में समाहित हो गया है। हम सब संत पौलुस के साथ आज यही बोलें - मुझमें अब से येसु जिंदा है। मेरा प्रभु मुझमें ज़िंदा है. मसीह का जीवन मुझमें मुझमें है।  मसीह का खून मेरे रगों में बह रहा है.  और यदि मसीह मुझमें जीवित है तो फिर मेरे कार्य, मेरी बातें, मेरा व्यवहार और मेरे विचार भी मसीह की तरह ही होना चाहिए। प्रभु का पुनरूत्थान मनाते समय यही भावना और यही घोषणा हम सब की होनी चाहिए। आमेन।

Wish you all a Joyful Easter 
Fr. Preetam Vasuniya 
Indore Diocese 

Thursday, 9 April 2020

पवित्र शुक्रवार का मनन चिंतन 2020




प्रभु येसु मसीह के दुःखभोग और मृत्यु के दिन को हम गुड फ्राइडे कहते हैं। किसी की मौत हमारे लिए एक गुड या अच्छी बात कैसे हो सकती है? किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हमें आनन्द नहीं देती हमें दुःख देती है। परन्तु प्रभु येसु की मृत्यु के दिन को गुड फ्राइडे कहते हैं क्योंकि इस दिन सारी मानव जाती के लिए सबसे बडा शुभ कार्य सम्पन्न हुआ। प्रभु येसु मसीह ने सारी दुनिया के पापों की कीमत चुकाने के लिए, हम सबों के पापों का प्रायश्चित करने के लिए अपने प्राणों की निछावर कर दिया, अपने आप को बलिदान कर दिया। 1 योहन 2ः2 में ईश्वर का वचन कहता है - ‘‘उन्होंने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी।’’ प्रभु येसु मसीह ने सारी दुनिया के पापों के लिए प्रायश्चित किया है। प्रज्ञा ग्रंथ 2ः23 में प्रभु का वचन कहता है -‘‘ईश्वर ने इंसान को अमर बनाया; उसने उसे अपना ही प्रतिरूप बनाया।’’ आप और हम ईश्वर के प्रतिरूप बनाये गये। लेकिन पाप के कारण मनुष्य का रूप बिगडता गया। पाप ने हमारे रूप को बिगाड दिया है, विकृत कर दिया है। सारी मानव जाती पाप के बोझ से दब रही है। हर मनुष्य पाप के बोझ से दब रहा है। और इसलिए मानव इतिहास के प्रारम्भ से अब तक वह इस खोज में है कि कहाँ पर जाकर वह इस पाप की गठरी को, पाप के बोझ को उतारे। इस पाप के लिए क्या प्रायश्चित किया जाये। इसलिए विभिन्न धर्मों में विभिन्न प्रकार के बलिदान, विभिन्न प्रकार के यज्ञ चढावा इत्यादि की प्रथा है।

हम पढते हैं प्रभु येसु मसीह जिस धर्म में आये थे यहूदी धर्म में, वहाॅं पर भी मूसा के द्वारा ईश्वर से प्राप्त वाणी के अनुसार विभिन्न प्रकार के बलिदान चढाने के नियम दिये गये, प्रायश्चित के बलिदान। जानवारों की बली चढाना, बछडों की बली चढाना आदि। मानव इतिहास से आज तक मनुष्यों ने न जाने कितने ही जानवारों की गर्दन काटीं, न जाने कितना ही खुन बहाया लेकिन मनुष्य पाप से मुक्त नहीं हुआ है। इब्रानियों को लिखे पत्र 9ः12-15 में प्रभु का वचन कहता हैै - ‘‘उन्होंने बकरों तथा बछडों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश  किया और इस तरह हमारे लिए सदा सर्वदा बना रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।" वाक्य 14 में हम पढते हैं - "तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत  आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईष्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?’’ और वचन 13 में लिखा है कि यदि बकरों और साॅंडों के रक्त व उनकी राख लोगों पर छिडके जाने से यदि लोग शुद्ध हो जाते हैं तो प्रभु येसु के अति पवित्रतम रक्त से पापों से मुक्ति क्यों नहीं मिल सकती? प्रभु येसु मसीह के उस महान बलिदान द्वारा हमें हमारे पापों से मुक्ति मिली है। 1 पेत्रुस 1ः18-19 में संत पेत्रुस कहते हैं - ‘‘आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चाॅंदी जैसी नष्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है, बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान रक्त की कीमत पर।’’ प्रभु येसु मसीह ने हम सब के पापों के लिए प्रायश्चित  किया है। प्रभु येसु ने अपने इस संसारे में आने और उनके कार्यों के बारे में कहा हैै योहन 10ः10 में चोर केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करें बल्कि परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।’’ वैसे ही योहन 3ः17 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा कि वह संसार को दोषी ठहराये। उसने उसे इसलिए भेजा है कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे।’’

प्रभु येसु इस संसार में हमें मुक्ति देने के लिए आये। किस बात से मुक्ति देने के लिए? मत्ती रचित सुसमाचार 1ः21 - ‘‘वह अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा।’’ पाप मनुष्य का सबसे बडा बोझ है और उस पाप के बोझ से इंसान को मुक्त करने के लिए प्रभु येसु मसीह इस संसार में आये। इसलिए मत्ती 9ः12 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘मैं धर्मियों को नहीं पापियों को बुलाने आया हूँ।’’ कितना बडा शुभ सन्देश  मैं धर्मियों को नहीं पापियों को बुलाने आया हूँ। संत पौलुस इसी बात को 1 तिमथी 1ः15 में कहते हैं - ‘‘येसु पापियों को बचाने के लिए संसार में आये, ओर उन में सर्वप्रथम मैं हूँ।’’ हमें बनाने वाला ईश्वर नहीं चाहता है कि हम बरबाद हो जायें, हम नष्ट हो जायें। ईश्वर ने मनुष्य की पापमय अवस्था को देखा। इसलिए ईश्वर उस पर तरस खाया। ईश्वर को उस पर दया आई। पवित्र बाइबल में जिस ईष्वर के बारे में हमें बताया गया है वह हमें दंड देने वाला ईश्वर नहीं है। बल्कि हमें पाप से शुद्ध करने वाला ईश्वर है। पाप के चंगुल से बचाने वाला ईश्वर है। ईश्वर ने मनुष्य जाती पर इतनी दया की कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित किया जिसे जो कोई उन में विश्वास करें उनका सर्वनाष न हो बल्कि वे अनंत जीवन प्राप्त करें। लूकस 19ः10 में प्रभु ने कहा है - ‘‘जो खो गया था उसी खोजने मानव पुत्र आया है।’’ जो खो गया था मानव पुत्र उसी को ढूॅंढने और बचाने आया है। प्रभु येसु इस संसार में हमें बचाने के लिए आये। और उन्होंने हमें कैसे बचाया? इसके बारे में नबी इसायाह 53 में प्रभु येसु मसीह के जन्म के करीब 600-700 साल पहले नबी ने उनके प्रायश्चित के बलिदान के विषय में भविष्यवाणी की और वह इस प्रकार है - ‘‘परन्तु हमारे ही रोगों को वह अपने ऊपर लेता था। और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था और उसे दंडित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे। हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कुकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दंड वह भोगता था, उसके द्वारा हम भले चंगे हो गये हैं। हम सब अपना-अपना रास्ता पकड कर भेडों की तरह भटक रहे थे उसी पर प्रभु ने हम सब के पापों का भार डाला है। ’’

तो यहाँ पर वचन कहता है कि प्रभु येसु ने हमारे पापों का बोझ अपने ऊपर ले लिया। जो बोझ हमें ढोना चाहिए था, जो दंड हमें मिलना चाहिए था उसे प्रभु येसु ने अपने शरीर में सह लिया। 2000 साल पहले कलवारी पहाड पर क्रूस पर जो येसु मरे, उनकी वह दशा  हमारी दशा  होनी थी, उनके बदन  पर लगी चोटें हमें लगनी थी, उनके सिर पर का वह काँटों का मुकट हमारे सिर पर लगाना था, प्रभु येसु ने हमारे पापों का बोझ अपने ऊपर ले लिया। यही एक महान रहस्य है। यह ईश्वर के प्रेम का मामला है। पवित्र बाइबल हमें बतलाती है कि ईश्वर प्रेम है। ईश्वर के उस प्रेम ने हमारा दुःख, हमारा दर्द व हमारी पीडायें अपने ऊपर ले ली। क्या यह आनन्द का विषय नहीं? क्या यह अनुग्रह का विषय नहीं कि किसी ने अपने पापों का बोझ अपने ऊपर ले लिया? 2 कुरिंथियों 5ः21 में हम पढते हैं- ‘‘मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईष्वर की पवित्रता के भागी बन सकें।’’

वे तो निर्दोष थे उनका कोई पाप नहीं था परन्तु हमारे कल्याण, हमारे उद्धार के लिए ईश्वर ने उन्हें हमारे पापों का भागी बना दिया। दो भाई थे। दोनों में बहुत ही प्यार था। छोटा बडे के बिना और बडा छोटे के बिना रह नहीं पाते थे। छोटा कुछ परिस्थितिवश  गलत संगती में पड जाता है। अपने दोस्तों के साथ आवारगिर्दी करना, नशापान करना आदि। किसी दिन किसी बहस के चलते दोस्तों में बात मार-काट तक पहुँच गई। छोटे भाई ने नशे  में धूत एक व्यक्ति पर चाकू से हमला कर दिया। और वह व्यक्ति वहीं दम तोड देता है। पुलिस ने छोटे भाई का पीछा किया, जो चाकू हाथ में लिये खुन से सने अपने वस्त्रों में घर की ओर भागा। उसके भाई ने उसे देखते ही सारा माज़रा जान लिया। बिना समय गंवाय उसने उसके हाथों से चाकू छीना और उसके खूनी कपडे उतरवाये और स्वयं वे कपडे पहन कर भाई से बोला तू अच्छे कपडे पहन कर यहाँ से छिप जा। अब से पाप मत करना। पुलिस आती है बडे लडके को चाकू हाथ में लिए देखती है और उसे मुजरिम मानकर उसे जेल में बंद कर देती है। कलवारी पर ऐसा ही कुछ हुआ। गुनाह में ने किये सज़ा येसु ने भुगती। उसने हमारे पापों का बोझ, हमारे पापों का कलंक अपने ऊपर ले लिया। गलातियों 3ः13 में वचन कहता है - ‘‘येसु हमारे लिए शापित बने और इस तरह हम को संहिता के अभिषाप से मुक्त किया। क्योंकि लिखा है जो काठ (लकडी) पर लटकाया जाता है वह शापित है।"

प्रभु येसु के समय क्रूस मौत की सज़ा का एक माध्यम था। क्रूस पर मौत उन लोगों को दी जाती थी जो समाज में कुख्यात थे, चोर थे, हत्यारे थे, राजद्रोही थे, देश द्रोही थे या अपराधी थी। और प्रभु येसु ख््राीस्त को दो डाकुओं के बीच लटकाया गया था। प्र्रभु येसु को भी यह साबित कने कीकोशिश की यह भी राजद्रोही है, देशद्रोही है यह भी विधर्मी है। प्रभु येसु मसीह ने हमारे अपराधों को अपने ऊपर ले लिया। प्रभु येसु मसीह ने हमारे दंड को अपने ऊपर ले लिया। क्रूस उस जमाने तक अपमान का चिन्ह था, श्राप का चिन्ह था। कोई भी क्रूस को देखना नहीं चाहता था। प्रभु येसु मसीह ने क्रूस की मौत मरकर उस क्रूस को पवित्र बनाया। इसलिए आज मैं और आप क्रूस पहनते हैं, क्रूस का चिन्ह बनाते है, क्रूस घरों में लगाते हैं।

आज क्रूस हमारे लिए श्राप  का नहीं, अनुग्रह का चिन्ह बन गया है। क्योंकि की क्रस पर प्रभु येसु मसीह ने हमें ईश्वर से जोड दिया है। क्रूस पर प्रभु येसु मसीह ने हमें आपस में जोड दिया है। जब हम क्रूस को देखते हैं तो यह दो लकडियों से बना है। एक खडी लकडी और एक आडी लकडी। ये वास्तव में मेल-मिलाप का चिन्ह है। प्रभु येसु मसीह के बलिदान के द्वारा हमारे बीच में  जो खाई है, जो दूरी उसे प्रभु येसु ने खत्म किया है और हमारे लिये ईश्वर के रहस्य खुल गये हैं। प्रभु येसु की मृत्यु के समय मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फटने का आशय  यही है कि ईश्वर और हमारे बीच जो दूरी थी वह खतम हो गई प्रभु येसु मसीह के क्रूस पर मरने से और हम अब ईश्वर को जानने लगे, पहचानने लगे। प्रभु येसु मसीह के बलिदान ने हमें ईश्वर के करीब ला दिया है। इसलिए गुड फ्राइडे हमारे लिए गुड है। अच्छा है। शुभ है क्योंकि प्रभु येसु ने आज हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया है। और इतना ही नही इस बलिदान के द्वारा ईश्वर और हमारे बीच और हमारी आपस में जो दूरियां थी वो खत्म हो गई हम ईश्वर के करीब आ गये हैं। हम ईश्वर को धन्यवाद दें इतने बडे व महान रहस्य के लिए, इतने बडे अनुग्रह के लिए।

अब सवाल यह खडा होता हैः हम इस महान बलिदान के फल को कैसे प्राप्त करें? रोमियों 3ः25 में संत पौलुस कहते हैं - ‘‘ईष्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहाकर पाप का प्रायश्ति करें और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें । सबसे पहली बात जो हमारे लिए जानने योग्य है वह यह है कि क्रूस पर येसु का बलिदान को दुर्घटना नहीं है बल्कि ईश्वर की एक योजना का हिस्सा है। और इस योजना का फल हम विश्वास के द्वारा प्राप्त करें। जो भी प्रभु येसु के इस बलिदान पर विश्वस करता है कि प्रभु येसु ने मेरे लिए क्रूस पर मेरे पापों का प्रायश्चित कर लिया है उसे उस बलिदान का फल मिलेगा। उस बलिदान का फल क्या है? मुक्तिः पाप से मुक्ति, बंधनों से मुक्ति, बूरी आदतों से मुक्ति, और पापमय अवस्थाओं से मुक्ति, और पापमय संगती से मुक्ति, रोगों से मुक्ति, महामारी से मुक्ति, और अनन्त मुक्ति जो कि अनन्त जीवन है।

 प्यारे विश्वासियों ये एक महान घटना है। यह एक महान योजना है। आज हम हमारे पापों को याद करें। प्रभु येसु हमारे पापों को क्षमा करने के लिए सक्षम है, समर्थ है बशर्ते कि हम ईश्वर की ओर मुड जायें। हम चाहे किसी भी देश , भाषा, व धर्म के क्यों न हों, हम  कितने भी बडे अपराधी क्यों न हो, हम येसु की ओर मुड जाएँ । येसु हम सब की मुक्ति के लिए मरे हैं, उनका बलिदान व्यर्थ न जायें बल्कि फलप्रद बने। हमारे व्यक्तिगत जीवन में येसु का बलिदान फलप्रद बने। येसु के लहू से आज मेरे सारे गुनाहों के दाग धुल जाये। येसु का क्रूस आज पिता से मेरे संबंध फिर से जोड दे व मेरे भाईयों बहनों से मुझे फिर से मिला दे। पूर्ण मेल-मिलाप का यह बलिदान आज मेरे जीवन में मुक्ति का फल उत्पन्न करे। जैसा की नबी इसायाह 53:4 में वचन कहता है - "वह हमारे ही रोगों को अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुखों से लदा हुआ था" आज येसु इस संसार से कोरोना वायरस से फ़ैल रही महामारी को अपने क्रूस पर ले ले और अपने क्रूस मरण के सामर्थ्य से इस दुनिया को इस महामारी से मुक्त कर दे।
आमेन।

Wednesday, 8 April 2020

पवित्र गुरुवार का प्रवचन 2020


निर्गमन ग्रंथ 121-8.11-14

1कुरिंथियों 11ः23-26
योहन 13ः1-15


ख्रीस्त में प्रिय वविश्वासियों आज के दिन हम प्रभु येसु के द्वारा मानव इतिहास में सारी मानव जाती के उद्धार के लिए सम्पन्न  किये गये एक विशेष कार्य की यादगार मना रहे हैं। और वह कार्य है पवित्र यूखारिस्त की स्थापना, और उस यूखारिस्त को सम्पन्न करने के लिए पवित्र पुरोहिताई की सेवकाई की स्थापना तथा प्रभु का अपने अनुयाईयों के लिए प्रेम का आदेश । 

1. पवित्र यूखारिस्तः 

पवित्र यूखारिस्त जिसकी स्थापना की याद आज हम मना रहे हैं उसमें हमारे अनन्त जीवन का खजाना, अनन्त व जीवन का उपहार छिपा है। द्वितीय वैटिकन महासभा सिखलाती है कि पवित्र युखरिस्त कलीसिया के जीवन का स्रोत और उसकी पराकाष्ठा है। (Lumen Gentium, 11) इसी से कलीसिया को जीवन मिलता है और इसी में कलीसिया का अंतिम लक्ष्य निहित है। याने कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि पवित्र युखरिस्त नहीं तो कैथोलिक कलीसिया नहीं।  क्योंंकि पवित्र  यूखरिस्त तो स्वयं येसु ही है, और बिना उनके कलीसिया की कल्पना करना संभव नहीं। 

पवित्र यूखारिस्त में येसु ने हमें अपना शरीर और अपना रक्त प्रदान किया है। शरीर और रक्त सिर्फ एक ज़िदा इंसान दे सकता है। याने हमारे येसु सदा जीवित है और वे पवित्र यूखारिस्त में अपनी परिपूर्णता में उपस्थित हैं। जो कोई प्रभु येसु का शरीर और रक्त  ग्रहण करता है वह येसु के जीवन को अपने जीवन में ग्रहण करता है। 
परन्तु यहाँ सवाल यह खडा होता है कि यदि पवित्र यूखारिस्त में हम प्रभु येसु के जीवन को ग्रहण करते हैं तो फिर जिन प्रभु को ग्रहण करते हैं उस प्रभु की उपस्थिति का प्रभाव हमारे जीवन में क्यों नहीं पडता? पवित्र परम प्रसाद ग्रहण करने के पहले और ग्रहण करने के बाद मुझमें क्या परिवर्तन आता है? 

एक और बडा सवाल हमेशा मेरे मन में कौंधता रहता है कि यदि जीवित प्रभु येसु मेरे हृदय में हैं तो फिर भी क्यों मेरे जीवन में संकट, दुःख, बिमारी, निराशा और परेशानियाँ है? अथवा जब मैं कठिनाईयों के दौर से गुजरता हूँ तब युखरिस्तीय प्रभु मेरे अंदर क्या कर रहे होते हैं?

पवित्र सुसमाचार से हमें पता चलता है कि प्रभु येसु ने कई चिन्ह व चमत्कार किये पर कभी भी उन्हें जबरदस्ती नहीं किया। संत योहन 5ः6 में वे 38 साल के रोगी से वे पूछते हैं- ‘‘क्या तुम अच्छा होना चाहते हो?’’ कई बार रोगी स्वयं प्रभु के पास आए और उन्होंने चंगाई के लिए प्रार्थना की जैसा कि संत मारकुस 1ः40-45 में हम पढते हैं कि एक कोढी व्यक्ति येसु के पास आता है और उनसे अनुनय विनय करता है - ‘‘आप चाहें तो मुझे शद्ध कर सकते हैं।’’ कई बार अन्य लोग रोगियों को येसु के पास लाते थे और उन्हें चंगा करने का निवेदन करते थे जैसा कि संत मारकुस अध्याय 5 में जैरूस नामक अधिकारी अपनी बेटी के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना करता है। 

प्रभु ने हमें स्वतंत्रता प्रदान की है। जब तक हम येसु को अपने जीवन में कार्य करने की इज़ाजत नहीं देते शायद प्रभु हमारे लिए कुछ नहीं करेंगे। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि प्रभु येसु में ऐसा करने कि क्षमता नहीं। प्रभु येसु हमारे पास आ तो जाते हैं पर हमारे जीवन में तब तक प्रवेश नहीं करेंगे जब तक हम उन्हें इसकी इज़ाजत नहीं देते। संत लूकस 19 में ज़केयुस की कहानी पढते हैं। येसु ने ज़केयुस के घर जाने कि इच्छा ज़ाहिर की- ‘‘आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है’’ और आगे हम पढते हैं - ‘‘उसने तुरन्त उतरकर आनन्द के साथ अपने यहाँ येसु का स्वागत किया।’’ प्रभु तभी ज़केयुस के घर गये जब उसने अपनी तरफ से प्रभु का स्वागत किया। 


प्यारे विश्वासियों, प्रभु येसु को हम भले ही पवित्र संस्कार में ग्रहण कर लें लेकिन जब तक हम उन्हें अपने जीवन पर अधिकार न दें; जब तक उनके जीवन को अपने जीवन में प्रवाहित होने न दें; जब तक उनका लहू हमारे नसों में बहने न दें, जब तक उनकी मरज़ी को हमारी इच्छाओं और चाहतों पर राज न करने दें पवित्र यूखारिस्तीय येसु हमारे जीवन में निकष्क्रिय बने रहेंगे। और हम मुसिबतों और परेशानियों को अपने हिसाब से सुलझाने का प्रयत्न करते रहेंगे ठीक उसी तरह से जैसे प्रभु येसु नाव में सो रहे थे और जब एक भीषण आँधी ने शिष्यों को परशानी में डाल दिया था। वे अपने हिसाब से उस आँधी पर काबू पाना चाह रहे थे पर सफल नहीं हुए तब उन्हें प्रभु का ख्याल आया। जब उन्होंने येसु को अपनी उस परिस्थिति में काम करने दिया तब जाकर आँधी शाॅंत हुई। 

प्यारे विश्वासियों प्रभु येसु को हम कितनी ही बार पवित्र यूखारिस्त में ग्रहण करते हैं पर हम उन्हें अपने जीवन में काम करने नहीं देते। हम हमारे जीवन की परिस्थितियों को येसु को संभालने नहीं देते। और उन्हें निष्क्रिय रूप में हमारे जीवन की नाव में सोने को मजबूर करते हैं। 

प्रभु येसु ने पवित्र यूखारिस्त की स्थापना अपनी उपस्थिति को संसार के अंत तक अपने लोगों के बीच बरकरार रखने के लिए की, जैसा कि संत मत्ती 28ः20 में उन्होंने वादा किया -‘‘मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।’’ प्रभु येसु हमारे जीवन में, जीवन के उतार-चढाव में, सुख और दुख में सदा हमारे साथ हैं। हमें ज़रूरत है सिर्फ उन्हें अपने जीवन में कार्य करने देने की; अपने सर्वस्व को उनके हवाले करने की। फिर देखिये जीवित येसु आपके जीवन में कितने महान कार्य करेंगे। 
2.पवित्र पुरोहिताई की स्थापनाः आज हम पवित्र पुरोहिताभिषेक की स्थापना का पर्व भी मना हे हैं। पुरोहितों को आज के दिन प्रभु येसु ने एक बहुत ही बडी व महान ज़िम्मेदारी दी। अपनी पावन उपस्थिति को बरकरार रखने के लिए उन्होंने पवित्र यूखारिस्त की स्थापना की और पवित्र यूखरिस्त को सम्पन्न करने के लिए उन्होंने पुरोहितिक सेवकाई की स्थापना की। अपनी मानवीय कमज़ोरिया के बावजुद भी ये पुरोहित जब पवित्र आत्मा का आह्वान करते हुए आशीष  की प्रार्थना करते हैं तो गेंहू की वह रोटी और दाख का वह रस प्रभु येसु का सच्चा शरीर और सच्चा रक्त बन जाता है। पवित्र वेदी पर पुरोहित का किरदार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। 
आईये आज जब हम इस महान सेवकाई की स्थापना की याद कर रहे हैं हम अपने सभी पुरोहितों के लिए प्रार्थना करें जो आज शैतान के विभिन्न हमलों के दौर से गुजर रहे हैं। शैतान पुरोहिताई को नष्ट करने के कई प्रयास कर रहा है। क्योंकि वह जानता है जब तक पुरोहिताई बरकार रहेगी शैतान का राज्य ध्वस्त होता रहेगा। एक पुरोहित अपनी सेवकाई द्वारा शैतान के राज्य के विरूद्ध एक सेनापती की तरह अपनी प्रजा के लिए लडता है व अपनी प्रजा को शैतान के हमलों व बंधनों से बचाता है। 

3. प्रेम का आदेश: आज के दिन की तीसरी विशेष  घटना है - प्रेम का आदेश। अपने शिष्यों के पैर धोकर प्रभु येसु ने उन्हें विनम्र सेवा का पाठ पढाया और उन्हें एक दूसरे को प्यार करने का आदेश  दिया।

जि हाँ प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से प्रेम  करने का आग्रह नहीं किया परन्तु उन्हें आदेश  दिया है। संत योहन 13,34 - ‘‘मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम लोगों को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो।’’ हमारे प्रेम  का स्रोत और नमूना ईश्वर  का प्रेम है जिसे उसने येसु मसीह में हमारे लिए प्रकट किया है। हमारा प्रेम येसु मसीह के प्रेम जैसा होना चाहिए। वे कहते हैं - ‘‘जैसे मैं ने तुम्हें प्रेम किया वैसे ही तुम एक दूसरों को प्यार करो।’’
अब यह बात यहाँ स्पष्ट हो जाती है कि एक मसीही को प्यार को अपनी पहचान बनाना है। संत योहन 13,35 में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे षिष्य हो।’’ मसीही या ख्रीस्तीय  होने की पहचान चर्च जाने, रोज़री या क्रूस पहनने या ईसाई नाम रख लेने में नहीं पर प्यार करने में छिपी है। 
तो आईये आज पवित्र यूखारिस्त में उपस्थित येसु की शक्ति व सामर्थ्य  में विश्वास करें और हमेशा इस अनुभूति में रहें कि हमें जीवन देने वाला जीवित येसु सदा हमारे  साथ रहता है और यदि हम उन्हें अपने जीवन में कार्य करने दे तो वह महान से महानतम कार्य हमारे जीवन में सम्पन्न करेंगे। और उस प्रभु को हमारे जीवन में लाने वाले पुरोहित के प्रति हम सम्मान व आदर की भावना रखें व अपनी सेवकाई को योग्यरीति से अंजाम देने में ईश्वर अपने आत्मा द्वारा उनकी मदद करे इसके लिए हम हमेशा उनके लिए प्रार्थना करते रहें। साथ ही हम प्रेम को अपनी पहचान बनायें। 

आज हम प्रभु भोज की यादगार मना रहे हैं। संत मत्ती के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं - 

संत मत्ती के सुसमाचार 26:18 में प्रभु येसु कहते हैं -"गुरुवर कहते हैं, मेरा समय आ गया है, मैं अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे घर में पास्का का भोजन करूँगा।"
कितनी सुंदर बात है। जब आज हम lockdown के चलते पवित्र गुरुवार की धर्मविधियों में शरीक नहीं हो पा रहे हैं, प्रभु हमसे कह रहे हैं, यह पास्का भोज में तुम्हारे घर में करूँगा। येसु हमारे घर आना चाहते हैं।

 प्रकाशना ग्रन्थ 3:20 में प्रभु कहते हैं - मैं द्वार के सामने खड़ा होकर खटखटाता हूँ यदि कोई मेरी वाणी सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।"
आईये इस मुश्किल समय में हम हमारे घरों के द्वार येसु के लिए खोलें। यकीन मानिये वो आएंगे और आज का भोजन आपके साथ करेंगे। संत लुकस 24:29 में, एम्माउस के शिष्यों के साथ चलते येसु उनके घर से आगे बढ़कर जाना चाह रहे थे। तब उन्हींने कहा -"प्रभु हमारे साथ राह जाइये। सांझ हो रही है और दिन ढल चुका है।" हम येसु से कहें - हमारे जीवन के शाम हो रही है, चारों और अंधेरा छा रहे है। दुख, डर, चिंता, और मौत का अंधेरा। प्रभु हमारे साथ राह जाइये।

Saturday, 4 April 2020


येसु का येरूसलेम में प्रवेश करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह यहूदियों के पास्का पर्व का समय था। प्रभु येसु येरूसलेम में प्रवेश  करते हैं क्योंकि उनका समय आ चुका था। जिस मिशन को लेकर वे अपने पिता के घर से हमारे पास इस धरती पर आये थे, उसे पूरा करके लौटने का समय आ गया था। क्रूस पर उनके मरने का समय आ गया था। वे अपनी मौत के साधन क्रूस को गले लगाने के लिए यरूसलेम की ओर प्रस्थान करते हैं। 
आज के कोरोना वाइरस के विनाशकारी इस समय में, पूरी दुनिया भयभित है, डरी व सहमी हुई है। आज कलीसिया एक शरीर के रूप में एकत्रित होकर खजूर रविवार नहीं मना पा रही है। हम इतिहास के एक दुखद दौर से गुजर रहे हैं। 
इस महामारी से जो प्रत्यक्ष डर है वो है मौत का डर। हम मरने से डरते हैं। कोई ज़्यादा तो कोई कम, पर मौत से डर हर-किसी को लगता है। साधरणतः सभी अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं। हम जीना चाहते हैं। हम नहीं जानते कि हम कब तक जीयेंगे पर जीवन से हमें प्रेम है। 
परन्तु प्रभु येसु इस संसार में इस लिए आये कि वे मरें जायें। वो मौत को गले लगाकर मौत को हराने के लिए इस संसार में आये। वे इसलिए आये कि उनके मारे जाने से हमें जीवन मिले। उन्होंने मरना स्वीकार किया ताकि हम जीवित रहें। 

वे इस मौत को एक मज़बूरी के तौर पर नहीं, परन्तु पिता की मर्जी व उनकी योजना को पूर्णता तक पहुुँचाने के लिए स्वीकार करते हैं। उनके जीवन का मकसद ही यह था कि वो अपने स्वर्गीक पिता की इच्छा को पूरा करे। संत योहन 4, 34 में वे कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा है उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।’’ पिता की इच्छा को, पिता की मरजी़ को पिता की चाह को पूरा करना ही प्रभु येसु का भोजन था। पिता की इच्छा क्या थी? संत पौलुस हमें बतलाते हैं रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायश्चित  करें और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ यह है पिता ईश्वर की इच्छा। प्रभु येसु अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए व्याकुल थे। संत लूकस 12,50 में प्र्रभु कहते हैं - ‘‘मुझे एक और बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ।" हम सब जानते हैं कि प्रभु येसु ने अपनी सेवकाई प्रारम्भ करने के पहले यर्दन नदी में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लिया था जो कि जल का बपतिस्मा था। अब वे रक्त का बपतिस्मा ग्रहण करने के लिए व्याकुल थे। एक ऐसा बपतिस्मा जो सारे संसार के पापों की क्षमा के लिए वे लेने वाले थे। वे इस दुनिया के, व सारी मानव जाती के नये पुराने सब पापों को सूली पर अपना खून बहाकर माफ करने वाले थे। व सबके पापों का दाम चुकाने वाले थे। इस पवित्र बलिदान के द्वारा वे पिता से हम  सब का पुनः मेल कराने वाले थे। सारी कायनात के उद्धार को संपन्न करने वाले थे। एक महान बलिदान देने वाले थे। जिस बलिदान से मानव जाती सब प्रकार की बेडियों से मुक्त हो सकती है। सब प्रकार के पाप, श्राप व महामारी से छुटकारे का बलिदान। 
इसलिए जब समय पूरा हुआ तो वे अपने इस अंतिम मिषन की ओर चल पडते हैं। योहन 13, 1 में हम पढते हैं - ‘‘ईसा जानते थे कि मेरी घडी आ गयी है और मुझे यह संसार छोडकर पिता के पास जाना है। वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने वाले थे।’’ आज हम उस दिन की याद करते हैं जब प्रभु अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने के लिए येरूसलेम की ओर बढते हैं। हमारे प्रति पिता के प्रेम का सबूत देने के लिए वे उस नगर में प्रवेश  करते हैं जहाँ उनके प्राणों के दुश्मनों उन्हें क्रूरतापूर्वक मार डालने की योजनायें बना रहे थे। 

आज प्रभु येसु, सुसमाचार की सच्चाई को अपने आपमें धारण करते हैं और उसकी घोषणा करते हैं। उन्होंने अपने शिष्यों  से कहा था - ‘‘जब तक गेहूं  का दाना जमीन पर गिरकर मर नहीं जाता वह तब तक अकेला रहता है, पर जब वह मर जाता है तब वह बहुत फल उत्पन्न करता है।’’ येसु स्वयं वह बीच है जो येरूसलेम की उस प्रचीन भूमि पर गिरा। ये वही गेंहूँ का दाना है जो मरकर बहुत फल उत्पन्न करता है, जो मुक्ति के फल उत्पन्न करता है। अतः मानवों की मुक्ति के लिए उनका मरना आवश्यक है। 
जैसा कि प्रारम्भ में बताया गया है कि ये सब उस समय सम्पन्न होता है जब यहूदी लोग अपना वार्षिक पास्का पर्व मनाने हज़ारों यहूदी तीर्थ यात्रा करते हुए येरूसलेम आते हैं। उसी बीच गधे पर सवार यहूदियों का राजा येरूसलेम की ओर बढ़ता है। तीर्थ यात्री उनके सामने रास्ते पर अपने कपडे बिछाते एवं जैतुन की डालियां लहराते हुए अपने राजा का स्वागत करते व भजन गाते हुए कहते हैं - होसन्ना, होसान्ना, होसान्ना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम पर आते हैं स्वर्ग प्रभु को होसान्ना!!!

आज हम प्रभु येसु के साथ उस भीड में उनके पीछे-पीछे येरूसलेम की पवित्र नगरी में प्रवेश करें। आज से हम पवित्र सप्ताह का आरम्भ कर रहे हैं। यह वास्तव में अति पवित्र सप्ताह है। यह वह मुल्यवान समय है जब हमारी मुक्ति का कार्य सम्पन्न हुआ। विभिन्न प्रकार के लोग इस भीड मे प्रभु के साथ येरूलेम में प्रवेश कर रहे हैं। हम भी इस भीड के साथ पवित्र नगरी में प्रवेश करें। और हमारी मुक्ति के उन मुल्यवान पलों को हमारे जीवन में जिंदा करें। सैकडों की भीड जो आज होसान्ना गा रही है, जो आज प्रभु की तारीफ कर रही है, तीन दिनों के बाद - इसे क्रूस दो, इसे क्रूस दो कह कर चिल्लाएगी। तीन सालों तक उनके करीब रहकर उनके वचनों को सुनने वाले व चिन्ह और चमत्कार देखने वाले शिष्य भाग खडे होंगे, सबसे भरोसेमंद शिष्य पेत्रुस, याकूब और योहन गेथसेमनी की प्राणपीडा के समय प्रार्थना करके उन्हें ढाढस बंधाने की जगह, सो जायेंगे। पिलातुस उन्हें निर्दोष मानकर रिहा करने का मन बनाने पर सारे यहूदी नेता और भीड उनके विरूद्ध एक स्वर में उन्हें क्रूस देने की गुहार लगाएंगे। 

उनके साथ मर जाने की बात कहने वाला पेत्रुस उन्हें पहचानने तक से इनकार कर देगा। उनका ही करीबी मित्र चाँदी के चंद सिक्कों के बदले उन्हें बेच देगा। झूठादोषारोपण, अन्यायपूर्ण दंड़, सैनिकों की क्रूरता, उनके द्वारा किया गया अपमान, सब के द्वारा ठुकराया गया एक अभागे इंसान से येसु कलवारी के पहाड़ पर मुक्ति का महायज्ञ सम्पन्न करने जा रहे हैं। उनके इन अत्यंत दुःखमयी पलों में उनकी प्यारी माँ मरिया, कुछ धार्मिक स्त्रियाँ, संत योहन, अरिमिथिया का युसूफ एवं निकोदेमुस उनके आस-पास रहते हैं। जब हम प्रभु के साथ मुक्ति के इन पलों को मनाने जा रहे हैं तो हम अपने आप से पुछें कि मैं किसका किरदार अदा करने जा रहा हूँ? उस धोखेबाज भीड का जो कभी होसन्ना तो कभी क्रूस देने की बात कहती है? या उन शिष्यों का जो डर के मारे उन्हें छोडकर भाग खडे होते हैं अथवा उन्हें पहचाने से भी इनकार कर देते हैं? या फिर उन सैनिकों का जो अपने ही प्रभु ईष्वर पर हाथ उठाते हैं, जो अपने ही मुक्तिदाता पर कोडे बरसाते हैं? या फिर माता मरियम, धार्मिक नारियों एवं संत योहन का जो कि प्रभु के इन असहय दुखों की घडी में उनके साथ रहे व उनके दुखांे में भागीदार हुए? या फिर उस भले डाकू का जो यह कहता है कि प्रभु आप जब अपने राज्य में आयेंगे तो मुझे याद कीजिएगा। सारी जिंदगी बुराईयों में बिताने के बाद भी अंतिम क्षणों का उसका पश्चाताप उसे स्वर्ग दिला देता है। प्रभु उससे कहते हैं आज ही तुम मेरे साथ स्वर्ग में होंगे। उसने विश्वास किया कि येसु उसको अनन्त मृत्यु से बचा सकते हैं। वचन कहता है रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायश्चित और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ आइये आज के इस निराशाजनक परिस्थिति  में, जब कई दिनों की प्रार्थनाओं के बाद भी परिस्थिति में सुधार नहीं आ रहा है, हम हमारे कमजोर टूटे व जर्जर विश्वास को बटोरते हुए, अपनी बिखरी हुई मानवता को समटते हुए इस पवित्र एवं मुक्ति के सप्ताह में प्रवेश करे। प्रभु के साथ हमारी मुक्ति के उन पलों को सजीव करें, जब हमारे प्रभु येसु ने दुःख भोगा, क्रूस पर चढाये गये मर गये, दफनाये गये व तीसरे दिन वे फिर जी उठे। हर साल की तरह की भीड-भाड वाले समारोह से अलग रहकर इस बार हम  अपने-अपने परिवारों में इस पवित्र सप्ताह में हमारे मुक्ति के रहस्यों को अपने जीवन में ताजा करें। प्रभु के हमारे प्रति में की गहराई को समझें। प्रभु येसु के दुखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान पर हम मनन ध्यान करते हुए इस साल के पवित्र सप्ताह को हमारी मुक्ति के यादगार लम्हों में बदल दें। हम कोरोना व उसके विनाकारी प्रभावों पर अपना ध्यान केंद्रित न करते हुए क्रूसित येसु पर अपना ध्यान केंद्रित करें। जो हमें पाप, श्राप, बिमारी व हर प्रकार की महामारी से बचाने में समर्थ है। इसलिए डर को छोडिई और अपना भरोसा अपने उद्धारकर्ता मसीह पर लगाईये। उनकी मृत्यु के सहभागी होकर हम उनके साथ हमेषा की जिंदगी में जी उठेंगे। 
आमेन।