निर्गमन ग्रंथ 121-8.11-14
योहन 13ः1-15
ख्रीस्त में प्रिय वविश्वासियों आज के दिन हम प्रभु येसु के द्वारा मानव इतिहास में सारी मानव जाती के उद्धार के लिए सम्पन्न किये गये एक विशेष कार्य की यादगार मना रहे हैं। और वह कार्य है पवित्र यूखारिस्त की स्थापना, और उस यूखारिस्त को सम्पन्न करने के लिए पवित्र पुरोहिताई की सेवकाई की स्थापना तथा प्रभु का अपने अनुयाईयों के लिए प्रेम का आदेश ।
1. पवित्र यूखारिस्तः
पवित्र यूखारिस्त जिसकी स्थापना की याद आज हम मना रहे हैं उसमें हमारे अनन्त जीवन का खजाना, अनन्त व जीवन का उपहार छिपा है। द्वितीय वैटिकन महासभा सिखलाती है कि पवित्र युखरिस्त कलीसिया के जीवन का स्रोत और उसकी पराकाष्ठा है। (Lumen Gentium, 11) इसी से कलीसिया को जीवन मिलता है और इसी में कलीसिया का अंतिम लक्ष्य निहित है। याने कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि पवित्र युखरिस्त नहीं तो कैथोलिक कलीसिया नहीं। क्योंंकि पवित्र यूखरिस्त तो स्वयं येसु ही है, और बिना उनके कलीसिया की कल्पना करना संभव नहीं।
पवित्र यूखारिस्त में येसु ने हमें अपना शरीर और अपना रक्त प्रदान किया है। शरीर और रक्त सिर्फ एक ज़िदा इंसान दे सकता है। याने हमारे येसु सदा जीवित है और वे पवित्र यूखारिस्त में अपनी परिपूर्णता में उपस्थित हैं। जो कोई प्रभु येसु का शरीर और रक्त ग्रहण करता है वह येसु के जीवन को अपने जीवन में ग्रहण करता है।
परन्तु यहाँ सवाल यह खडा होता है कि यदि पवित्र यूखारिस्त में हम प्रभु येसु के जीवन को ग्रहण करते हैं तो फिर जिन प्रभु को ग्रहण करते हैं उस प्रभु की उपस्थिति का प्रभाव हमारे जीवन में क्यों नहीं पडता? पवित्र परम प्रसाद ग्रहण करने के पहले और ग्रहण करने के बाद मुझमें क्या परिवर्तन आता है?
एक और बडा सवाल हमेशा मेरे मन में कौंधता रहता है कि यदि जीवित प्रभु येसु मेरे हृदय में हैं तो फिर भी क्यों मेरे जीवन में संकट, दुःख, बिमारी, निराशा और परेशानियाँ है? अथवा जब मैं कठिनाईयों के दौर से गुजरता हूँ तब युखरिस्तीय प्रभु मेरे अंदर क्या कर रहे होते हैं?
पवित्र सुसमाचार से हमें पता चलता है कि प्रभु येसु ने कई चिन्ह व चमत्कार किये पर कभी भी उन्हें जबरदस्ती नहीं किया। संत योहन 5ः6 में वे 38 साल के रोगी से वे पूछते हैं- ‘‘क्या तुम अच्छा होना चाहते हो?’’ कई बार रोगी स्वयं प्रभु के पास आए और उन्होंने चंगाई के लिए प्रार्थना की जैसा कि संत मारकुस 1ः40-45 में हम पढते हैं कि एक कोढी व्यक्ति येसु के पास आता है और उनसे अनुनय विनय करता है - ‘‘आप चाहें तो मुझे शद्ध कर सकते हैं।’’ कई बार अन्य लोग रोगियों को येसु के पास लाते थे और उन्हें चंगा करने का निवेदन करते थे जैसा कि संत मारकुस अध्याय 5 में जैरूस नामक अधिकारी अपनी बेटी के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना करता है।
प्रभु ने हमें स्वतंत्रता प्रदान की है। जब तक हम येसु को अपने जीवन में कार्य करने की इज़ाजत नहीं देते शायद प्रभु हमारे लिए कुछ नहीं करेंगे। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि प्रभु येसु में ऐसा करने कि क्षमता नहीं। प्रभु येसु हमारे पास आ तो जाते हैं पर हमारे जीवन में तब तक प्रवेश नहीं करेंगे जब तक हम उन्हें इसकी इज़ाजत नहीं देते। संत लूकस 19 में ज़केयुस की कहानी पढते हैं। येसु ने ज़केयुस के घर जाने कि इच्छा ज़ाहिर की- ‘‘आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है’’ और आगे हम पढते हैं - ‘‘उसने तुरन्त उतरकर आनन्द के साथ अपने यहाँ येसु का स्वागत किया।’’ प्रभु तभी ज़केयुस के घर गये जब उसने अपनी तरफ से प्रभु का स्वागत किया।
प्यारे विश्वासियों, प्रभु येसु को हम भले ही पवित्र संस्कार में ग्रहण कर लें लेकिन जब तक हम उन्हें अपने जीवन पर अधिकार न दें; जब तक उनके जीवन को अपने जीवन में प्रवाहित होने न दें; जब तक उनका लहू हमारे नसों में बहने न दें, जब तक उनकी मरज़ी को हमारी इच्छाओं और चाहतों पर राज न करने दें पवित्र यूखारिस्तीय येसु हमारे जीवन में निकष्क्रिय बने रहेंगे। और हम मुसिबतों और परेशानियों को अपने हिसाब से सुलझाने का प्रयत्न करते रहेंगे ठीक उसी तरह से जैसे प्रभु येसु नाव में सो रहे थे और जब एक भीषण आँधी ने शिष्यों को परशानी में डाल दिया था। वे अपने हिसाब से उस आँधी पर काबू पाना चाह रहे थे पर सफल नहीं हुए तब उन्हें प्रभु का ख्याल आया। जब उन्होंने येसु को अपनी उस परिस्थिति में काम करने दिया तब जाकर आँधी शाॅंत हुई।
प्यारे विश्वासियों, प्रभु येसु को हम भले ही पवित्र संस्कार में ग्रहण कर लें लेकिन जब तक हम उन्हें अपने जीवन पर अधिकार न दें; जब तक उनके जीवन को अपने जीवन में प्रवाहित होने न दें; जब तक उनका लहू हमारे नसों में बहने न दें, जब तक उनकी मरज़ी को हमारी इच्छाओं और चाहतों पर राज न करने दें पवित्र यूखारिस्तीय येसु हमारे जीवन में निकष्क्रिय बने रहेंगे। और हम मुसिबतों और परेशानियों को अपने हिसाब से सुलझाने का प्रयत्न करते रहेंगे ठीक उसी तरह से जैसे प्रभु येसु नाव में सो रहे थे और जब एक भीषण आँधी ने शिष्यों को परशानी में डाल दिया था। वे अपने हिसाब से उस आँधी पर काबू पाना चाह रहे थे पर सफल नहीं हुए तब उन्हें प्रभु का ख्याल आया। जब उन्होंने येसु को अपनी उस परिस्थिति में काम करने दिया तब जाकर आँधी शाॅंत हुई।
प्यारे विश्वासियों प्रभु येसु को हम कितनी ही बार पवित्र यूखारिस्त में ग्रहण करते हैं पर हम उन्हें अपने जीवन में काम करने नहीं देते। हम हमारे जीवन की परिस्थितियों को येसु को संभालने नहीं देते। और उन्हें निष्क्रिय रूप में हमारे जीवन की नाव में सोने को मजबूर करते हैं।
प्रभु येसु ने पवित्र यूखारिस्त की स्थापना अपनी उपस्थिति को संसार के अंत तक अपने लोगों के बीच बरकरार रखने के लिए की, जैसा कि संत मत्ती 28ः20 में उन्होंने वादा किया -‘‘मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।’’ प्रभु येसु हमारे जीवन में, जीवन के उतार-चढाव में, सुख और दुख में सदा हमारे साथ हैं। हमें ज़रूरत है सिर्फ उन्हें अपने जीवन में कार्य करने देने की; अपने सर्वस्व को उनके हवाले करने की। फिर देखिये जीवित येसु आपके जीवन में कितने महान कार्य करेंगे।
2.पवित्र पुरोहिताई की स्थापनाः आज हम पवित्र पुरोहिताभिषेक की स्थापना का पर्व भी मना हे हैं। पुरोहितों को आज के दिन प्रभु येसु ने एक बहुत ही बडी व महान ज़िम्मेदारी दी। अपनी पावन उपस्थिति को बरकरार रखने के लिए उन्होंने पवित्र यूखारिस्त की स्थापना की और पवित्र यूखरिस्त को सम्पन्न करने के लिए उन्होंने पुरोहितिक सेवकाई की स्थापना की। अपनी मानवीय कमज़ोरिया के बावजुद भी ये पुरोहित जब पवित्र आत्मा का आह्वान करते हुए आशीष की प्रार्थना करते हैं तो गेंहू की वह रोटी और दाख का वह रस प्रभु येसु का सच्चा शरीर और सच्चा रक्त बन जाता है। पवित्र वेदी पर पुरोहित का किरदार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
आईये आज जब हम इस महान सेवकाई की स्थापना की याद कर रहे हैं हम अपने सभी पुरोहितों के लिए प्रार्थना करें जो आज शैतान के विभिन्न हमलों के दौर से गुजर रहे हैं। शैतान पुरोहिताई को नष्ट करने के कई प्रयास कर रहा है। क्योंकि वह जानता है जब तक पुरोहिताई बरकार रहेगी शैतान का राज्य ध्वस्त होता रहेगा। एक पुरोहित अपनी सेवकाई द्वारा शैतान के राज्य के विरूद्ध एक सेनापती की तरह अपनी प्रजा के लिए लडता है व अपनी प्रजा को शैतान के हमलों व बंधनों से बचाता है।
3. प्रेम का आदेश: आज के दिन की तीसरी विशेष घटना है - प्रेम का आदेश। अपने शिष्यों के पैर धोकर प्रभु येसु ने उन्हें विनम्र सेवा का पाठ पढाया और उन्हें एक दूसरे को प्यार करने का आदेश दिया।
जि हाँ प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से प्रेम करने का आग्रह नहीं किया परन्तु उन्हें आदेश दिया है। संत योहन 13,34 - ‘‘मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैं ने तुम लोगों को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो।’’ हमारे प्रेम का स्रोत और नमूना ईश्वर का प्रेम है जिसे उसने येसु मसीह में हमारे लिए प्रकट किया है। हमारा प्रेम येसु मसीह के प्रेम जैसा होना चाहिए। वे कहते हैं - ‘‘जैसे मैं ने तुम्हें प्रेम किया वैसे ही तुम एक दूसरों को प्यार करो।’’
अब यह बात यहाँ स्पष्ट हो जाती है कि एक मसीही को प्यार को अपनी पहचान बनाना है। संत योहन 13,35 में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे, तो उसी से सब लोग जान जायेंगे कि तुम मेरे षिष्य हो।’’ मसीही या ख्रीस्तीय होने की पहचान चर्च जाने, रोज़री या क्रूस पहनने या ईसाई नाम रख लेने में नहीं पर प्यार करने में छिपी है।
तो आईये आज पवित्र यूखारिस्त में उपस्थित येसु की शक्ति व सामर्थ्य में विश्वास करें और हमेशा इस अनुभूति में रहें कि हमें जीवन देने वाला जीवित येसु सदा हमारे साथ रहता है और यदि हम उन्हें अपने जीवन में कार्य करने दे तो वह महान से महानतम कार्य हमारे जीवन में सम्पन्न करेंगे। और उस प्रभु को हमारे जीवन में लाने वाले पुरोहित के प्रति हम सम्मान व आदर की भावना रखें व अपनी सेवकाई को योग्यरीति से अंजाम देने में ईश्वर अपने आत्मा द्वारा उनकी मदद करे इसके लिए हम हमेशा उनके लिए प्रार्थना करते रहें। साथ ही हम प्रेम को अपनी पहचान बनायें।
आज हम प्रभु भोज की यादगार मना रहे हैं। संत मत्ती के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं -
संत मत्ती के सुसमाचार 26:18 में प्रभु येसु कहते हैं -"गुरुवर कहते हैं, मेरा समय आ गया है, मैं अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे घर में पास्का का भोजन करूँगा।"
आज हम प्रभु भोज की यादगार मना रहे हैं। संत मत्ती के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं -
संत मत्ती के सुसमाचार 26:18 में प्रभु येसु कहते हैं -"गुरुवर कहते हैं, मेरा समय आ गया है, मैं अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे घर में पास्का का भोजन करूँगा।"
कितनी सुंदर बात है। जब आज हम lockdown के चलते पवित्र गुरुवार की धर्मविधियों में शरीक नहीं हो पा रहे हैं, प्रभु हमसे कह रहे हैं, यह पास्का भोज में तुम्हारे घर में करूँगा। येसु हमारे घर आना चाहते हैं।
प्रकाशना ग्रन्थ 3:20 में प्रभु कहते हैं - मैं द्वार के सामने खड़ा होकर खटखटाता हूँ यदि कोई मेरी वाणी सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।"
आईये इस मुश्किल समय में हम हमारे घरों के द्वार येसु के लिए खोलें। यकीन मानिये वो आएंगे और आज का भोजन आपके साथ करेंगे। संत लुकस 24:29 में, एम्माउस के शिष्यों के साथ चलते येसु उनके घर से आगे बढ़कर जाना चाह रहे थे। तब उन्हींने कहा -"प्रभु हमारे साथ राह जाइये। सांझ हो रही है और दिन ढल चुका है।" हम येसु से कहें - हमारे जीवन के शाम हो रही है, चारों और अंधेरा छा रहे है। दुख, डर, चिंता, और मौत का अंधेरा। प्रभु हमारे साथ राह जाइये।
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