Friday, 28 May 2021

पवित्र त्रित्व का रविवार: 30 May 2021 Hindi Reflection by Fr. Preetam Vasuniya


 पवित्र त्रित्व का रविवार


निर्गमन 4:32-34, 39-40 
रोमियों 8:14-17 
मत्ती 28:16-20 
आज हम पवित्र त्रिएक ईश्वर का रविवार मनाते हैं। और आज के दिन शायद प्रवचन देना सबसे मुश्किल  होता है। क्योंकि पवित्र त्रित्व का रहस्य ईश्वर के अस्तित्व का सबसे गहरा रहस्य है। ईश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में, या उनके देहधारण को या फिर उनके पुनरूत्थान को काफी हद तक समझा जा सकता है। परन्तु एक ही ईश्वर होते हुए भी उसमें तीन जन होना, वो भी बिना किसी भिन्नता के, बिना किसी विरोधाभास के और बिना किसी वर्गिकरण के। ऐसे एक अटूट व परिपूर्ण एकतारूपी ईश्वर के अस्तित्व को समझना साधारण व सीमित मानव बुद्धी के बस की बात नहीं।

कई लोग इसे समझाने के लिए कई ऐसे उदाहरण पेश करते हैं जिसे हम हमारी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा अनुभव कर सकते हैं और समझ सकते हैं। जैसे कई लोग पानी की तीन विभिन्न अवस्थाओं का हवाला देते हुए कहते हैं जैसे पानी का मौलिक रूप H2O है, पर वह तीन विभिन्न अवस्थाओं में पाया जाता है जैसे द्रव (तरल पानी), ठोस (बर्फ) और गैस (भाप)। इन तीनों रूपों में वह है तो वही पानी पर तीन विभिन्न अवस्थाओं में मौजूद रहता है। वैसे ही ईश्वर है तो एक ही वास्तविकता एक ही अस्तित्व पर वह तीन विविध रूपों में अपने आप को प्रकट करता है - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा।

परन्तु सच्चाई यह है कि कोई भी अनुभवजन्य ज्ञान या उदाहरण पवित्र त्रित्व को समझाने के लिए सटीक या पर्याप्त नहीं है। क्योंकि यह ‘ईश्वर’ का रहस्य है। इसायाह 55ः8-9 में वही ईश्वर हम से कहते हैं - ‘‘तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं है और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं है। जिस तरह आकाश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा है उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊँचे हैं।’’

जब हम पवित्र त्रित्व के बारे में बात करते हैं  तो मैं इसकी शुरूआत संत योहन के पहले पत्र अध्याय 4ः8 से करना उचित समझता हूँ। जहाँ पर संत योहन ईश्वर की परिभाषा इन शब्दों में पेश  करते हैं - ‘‘ईश्वर प्रेम है।’’
हम ख्रीस्तीयों की सबसे हटकर एक पहचान है और वह है हमारी ईश्वर की समझ या ईश्वर की पहचान। ख्रीस्तीयों के लिए ईश्वर प्यार है। एक यहूदी या फिर मुस्लिम यह कहेंगे कि ईश्वर प्यार करता है। यह सच है। परन्तु ईसाईत की अलग पहचान इस बात को लेकर है कि हमारे लिए ‘ईश्वर प्यार है।’ दूसरे शब्दों में प्यार वह कोई चीज नहीं जिसे ईश्वर करता है परन्तु प्यार ईश्वर की परिभाषा है, प्यार ईश्वर की एक पहचान है। या फिर प्यार ईश्वर का अस्तित्व है। ‘ईश्वर प्यार है’ यह दावा ही पवित्र त्रित्व को समझने व पहचानने का आधार है। ईश्वर प्यार है और ईश्वर त्रित्व है ये दोनों एक ही बात की और इंगित करते हैं।

यदि हम यह कहते हैं कि ईश्वर प्यार है तो ईश्वर के अपने अस्तित्व के भीतर ही यह प्यार क्रियाशील होना चाहिए। याने ईश्वर के एक ही अस्तित्व में प्यार करने वाला, प्यार पाने वाला और प्यार स्वयं मौजूद होना चाहिए। जि हाॅं ईश्वर संसार से प्यार करता है यह सत्य है। परन्तु आदिकाल से ईश्वर की पहचान यह है कि वह प्यार है। और इसलिए हमें यह कहना उचित है कि ईश्वर प्यार है और अपने अंदर उस प्यार की तीन भूमिकायें हैं। पिता जो कि प्यार का उद्गम है, और  जो पुत्र से प्रेम  करता है और पिता पुत्र के बीच का यह प्रेम ही आत्मा है। पवित्र त्रियेक ईश्वर यह बतलाता है कि उसमें प्रेम की परिपूर्णता है। जिसमें प्रेम की परिपूर्णता है वही सच्चा और पूर्ण ईश्वर हो सकता है। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में प्रेम की परिपूर्णता विद्यमान है। जब हम प्रेम की बात करते हैं तो हमारा अनुभव हमें यह बतलाता है कि प्यार कभी निश्छल नहीं हो सकता है परन्तु प्यार हमेशा गतिशील रहता है। यदि मुझमें किसी के प्रति प्यार है तो वह प्यार मेरे भीतर निष्क्रिय रूप में पडा नहीं रहता पर वह गतिशील  या क्रियाशील  होकर अपनी अभिव्यक्ति का रास्ता खोजता है। वह शब्दों द्वारा, उपहार द्वारा, आलिंगन द्वारा, स्पर्श द्वारा, चुंबन द्वारा या फिर मन में प्रेम भरी एक कल्पना द्वरा व्यक्त किया जाता है।

उसी प्रकार जब हम कहते हैं कि ईश्व प्यार है तो यह प्यार अपने आप में निष्क्रिय नहीं रह सकता। वह अपनी अभिव्यक्ति खोजेगा। हम यह जानते और विश्वाश करते हैं कि ईश्वर अनादिकाल से विद्यमान हैं। यदि ईश्वर अनादि काल से विद्यमान है और वह ईश्वर प्रेम है तो उस ईश्वर को त्रियेक रूप में होना आवश्यक आवश्यक  है। क्योंकि एक ही जन में, अपने आप में प्रेम की अभिव्यक्ति असंभव है। इसलिए ईश्वर जो कि प्यार है वह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में एक ही प्यार के बंधन में एक ही सह अस्तित्व में निवास करता हैं। इसलिए पवित्र त्रित्व में ही पूर्ण ईश्वर हो सकता है। अन्यथा ईश्वर में एक अधूरापन रह जाता है। और जिसमें अधूरापन है वह ईश्वर नहीं हो सकता। 

अब ये पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा अपना अलग-अलग अस्तित्व रखने वाले तीन ईश्वर नहीं वरन एक ही ईश्वर के तीन जन हैं। इनका अस्तित्व एक ही है और वह है एकमात्र ईश्वर का अस्तित्व। ये तीनों अलग-अलग अस्तित्व नहीं रख सकते। इन तीनों को एक ही अस्तित्व में परिपूर्णता से बाँधे रखने वाली शक्ति है उनका प्रेम। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बीच कभी विभाजित न की जा सकने वाली एकता का रहस्यह है उनका अविभाजित, कभी न तोडा जा सकने वाला और कभी न खत्म होने वाला प्यार। इसलिए प्रभु येसु संत योहन 10ः30 में कहते हैं - ‘‘मैं और पिता एक हैं।’’ और योहन 14ः9 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।’’ और संत पेत्रुस पेंतेकोस्त के दिन अपने प्रथम भाषण में लोगों से नबी योएल के ग्रंथ का हवाला देते हुए पवित्र आत्मा के विषय में की गई भविष्यवाणी के बारे में बतलाते हैं - "मैं अंतिम दिनों सब शरीरधारियों पर अपना आत्मा उतारूँगा।’’ यहाँ पर ईश्वरअपने आत्मा के बारे में कह रहे हैं। जो आत्मा पेंतेकोस्त के दिन प्रेरितो पर उतरा वह ईश्वर से बाहर अस्तित्व रखने वाली कोई आत्मा नहीं परन्तु स्वयं ईश्वर का आत्मा था। याने पवित्र त्रित्व का तीसरा जन स्वयं ईश्वर की त्रियेक सत्ता से प्रसृत होता है।

ईश्वर का त्रिएक रूप में होना हमें क्या सिखलाता है? ईश्वर का त्रिएक अस्तित्व है याने प्रेम की परिपूर्णता का अस्तित्व है। अपने इसी स्वाभाव के कारण ईश्वर हमारी सृष्टि करता है और वही  त्रियेक ईश्वर हमें अपने इस प्रेम में भागिदार होने के लिए बुलाता है। संत योहन 14ः23 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘यदि कोई मुझे प्यार करेगा तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उसमें निवास करेंगे।’’
तो यह है पवित्र त्रित्व में विश्वास करने का अंतिम उद्देश्य कि हम ईश्वर के इस असीम और अनन्त प्रेम के भागिदार बन जायें।

संत योहन 14ः1 में प्रभु येसु अपनी ख़्वाहिश इन श्ब्दों में बयाँन करते हैं - "जिससे जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी रहो’’ प्रभु येसु कहाॅँ है? इसके बारे में योहन 14ः11 में येसु हमें बतलाते हैं  - ‘‘मैं पिता में हूँ ओर पिता मुझमें हैं’’ इसका आशय यह हुआ कि पवित्र त्रिएक ईश्वर हमें अपने प्रेम में एक हो जाने के लिए बुलाता है। याने हम सब पिता पुत्र और पवित्र आत्मा के एकता में भागीदार होकर एक हो जाएँ।  

येसु ख्रीस्त की शिक्षाओं पर चले बिना हम उनसे प्यार नहीं कर पायेंगे और न ही उनके प्यार के सहभागी बन पायेंगे। तो सबसे पहले हमें येसु ख्रीस्त  को पहचानना उन्हें स्वीकार करना और उनकी आज्ञाओं को मानना होगा। तब हम उनसे प्यार कर पायेंगे और स्वयं पिता हमें प्यार करेगा और पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा हममें आकर निवास करेंगे। 
आमेन।

Thursday, 13 May 2021

स्वर्गारोहण का पर्व, the Solemnity of the Ascension, 16 May, 2021: #Reflection in Hindi by Fr. Preetam Vasuniya

Act .1:1-11 

Eph. 4:1-13

Mk. 16:15-2021

स्वर्गारोहण का पर्व अपने आप में एक खास पर्व है जिस दिन हमारे मुक्तिदाता प्रभु येसु ख्रीस्त अपना मुक्तिकार्य सम्पन्न कर इस संसार से आरोहित कर लिये जाते हैं। स्वर्गारोहण की बात जब आती है तब यहूदियों के ब्रह्माण्ड शास्त्र को समझना गौरतलब है। यहूदियों के मतानुसार तीन लोक होते हैं - पृथ्वी लोक, स्वर्गलोक और अधोलोक। प्रभु येसु के स्वार्गारोहण के संदर्भ में इन तीनों लोकों को एक अलग-अलग अस्तित्व में देखते हुए यह कहना उचित नहीं होगा कि येसु इस लोक को पूरी तरह छोडकर दूसरे लोक में चले गये। और यूं कहें कि अपने स्वर्गारोहण के बाद प्रभु येसु इस दुनिया में अपनी अनुपस्थिति छोड गये। नहीं, येसु के स्वर्गारोहण के समय कुछ हट कर और विशेष कार्य सम्पन्न होता है। उनका पुनरूत्थान, स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा का प्रेरितों पर उतरना ये तीनों घटनायें एक दूसरे से बेहद जुडी हुई हैं। पुनरूत्थान के बाद प्रभु येसु का शरीर रूपान्तरित हो जाता है। जो है तो शरीर पर उसे साधारण मानवीय ऑंखें पहचान नहीं पाती। वे उन्हें कोई आत्मा समझ बैठते हैं। तब वे उनके सामने भूनी हुई मछली का एक टुकडा खाते हैं और उनकी ऑंखों का भ्रम दूर करते हैं। (संत लूकस 24:36-42) जैसे उनका वह शरीर जो योहन 1:14 के अनुसार कुँवारी के गर्भ में देह धारण करता है वह अब रूपान्तरित होकर एक पुनरूत्थित शरीर बन जाता है। अपने स्वर्गारोहण में वैसे ही येसु इस दुनिया की वास्तविकता को स्वर्गीक वास्तविकता में तब्दील कर देते हैं। अपनेपिता हमारेकी प्रार्थना में प्रभु येसु इसी की कामना करते हुए कहते हैं - हे पिता तेरा राज्य इस धरती पर आये। तो हमारी मुक्ति का अर्थ इस पापमय संसार से छुटकारा पाकर कहीं दूसरे लोक में बच भागना नहीं, पर ईश्वर द्वारा हमारे इस संसार को एक नया रूप देना है, उनका राज्य हमारे बीच स्थापित करना है। जैसा कि स्तोत्रकार स्तोत्र 57:12 में कहता है - समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो। इसे समझने के लिए हमें पेंतेकोस्त के दिन जो होता है उसपर ध्यान देना ज़रूरी है। ये दोनों घटनायें याने प्रभु का स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा का उतरना एक दूसरे से घनिष्टता से जुडी हुई है। इन दोनों घटनाओं में, एक में येसु दुनिया से स्वर्ग जाते हैं और दूसरी में स्वर्ग से पवित्र आत्मा नीचे आता है। तो येसु मसीह का स्वर्गारोहण इस लोक से किसी अन्य लोक में जाना नहीं परन्तु दुनियाई वास्तविकता को स्वर्गिक वास्तविकता में परिवर्तित करना है। यह स्वर्ग और पृथ्वी का मिलन है। यहॉं पृथ्वी का स्वर्ग के द्वारा रूपान्तरण होता है। स्वर्गिक शक्ति दुनिया को रूपान्तरित करती है।

और यहाँ हम  जिस रूपांतरण की बात कर रहे हैं वह रूपांतरण कोई प्राकृतिक अथवा  भौतिक रूपांतरण नहीं। इसका सीधा सा मतलब मनुष्यों के  रूपांतरण से है।   संत पौलुस कलोसियों 1:24 में कहते हैं कि कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से पूर्णता तक पहुँचा देते हैं। 

इससे हमें यह समझ में आता हैं कि कलीसिया   याने विश्वासियों का समुदाय प्रभु येसु का रहस्य्मय शरीर हैं।  यदि कलीसिया मसीह का शरीर है तो पेंतेकोस्त के दिन कलीसिया रूपी इसी शरीर को मसीह ने अपना आत्मा भेज कर परिपूर्णता प्रदान की है। इससे हमको यह समझ में आता है कि येसु अपने स्वर्गारोहण के द्वारा कलीसिया को रूपान्तरित करते हैं, पवित्र करते हैं, परिपूर्ण करते हैं और एक नया रूप देते हैं। वे धरती पर की कलीसिया को स्वर्गिक कलीसिया से जोडते हैं। जिसे पवित्र मिस्सा बलिदान की अवतरणिका में पुरोहित व्यक्त करते हुये कहते हैं कि हम स्वर्ग के समस्त दूतगणों के स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए तेरा गुणगान करते और गाते हैं - पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु विश्वमंडल के ईश्वर... आज हम उस घटना को याद करते हैं जब प्रभु येसु ने इस दुनिया से विदा लेते समय हमें जो की उनका रहस्यमय शरीर हैं, पूरी तरह से अपने आप को बदल कर उनके दिव्य शरीर के अनुरूप बनाने का आह्वान करते हैं।  जैसा कि आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस  कहते हैं - "उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और कुछ को चरवाहे तथा आचार्य होने का वरदान दिया। इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को नियुक्त किया, जिससे मसीह के शरीर का निर्माण तब तक होता रहेजब तक हम विश्वास तथा ईश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त कर लें।

 

यही है आज के इस पर्व का सन्देश कि हम पवित्र आत्मा के द्वारा अलग - अलग वरदानों, और कृपाओं से नवाज़े गये हैं , हमें अलग - अलग कार्य करने के  लिए  चुना गया  है।  उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और कुछ को चरवाहे तथा आचार्य होने का वरदान दिया। 

कुछ को मज़दूर, कुछ को किसान,कुछ को शिक्षक, कुछ को विद्यार्थी,कुछ को डॉक्टर,कुछ को इंजिनियर, कुछ को वैज्ञानिक,तो कुछ को राजनेता और कुछ को शासक, जो पर हर किसी के कार्य के पीछे का मकसद एक ही हो - और वह है जैसा कि संत पौलुस कहते हैं - इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को नियुक्त किया, जिससे मसीह के शरीर का निर्माण तब तक होता रह।  मसीह के शरीर का निर्माण करते रहना ही हमारे मानवीय जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।  और हमें कब तक यह करना है ? संत पौलुस कहते है तब तक - जब तक हम विश्वास तथा ईश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त कर लें।

पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त करना हमारा जीवन का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए।  अभी हम अधूरे हैं, हमारी बुद्धि अधूरी है, हमारा ज्ञान अधूरा है, हमरा प्यार, हमारे रिश्ते, हमारी भावनाएं, सब कुछ अधूरा है। 

यदि हमारा यही हल है तो इस लक्ष्य को हासिल करने में हमारी कौन सहायता करेगा? पवित्र आत्मा।  प्रभु येसु योहन के सुसमाचार 16:13  में कहते हैं - "जब वह सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हे पूर्ण सत्य की ओर ले जायेगा।

प्यारे विश्वासियों, सही मायने में येसु के रहस्मय शरीर के अंग बनने, मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व हासिल करने के लिए आइये हम खुद को उस शक्ति से संपन्न होने देने के लिए खुद को तैयार करें जो प्रभु येसु ने अपनी कलीसिया के लिए प्रदान किया है और वह शक्ति है पवित्र आत्मा। लूकस 24:49 में उन्होंने प्रेरितों से कहा - देखों, मेरे पिता ने जिस वरदान की प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम्हारे पास भेजूँगा। इसलिए तुम लोग शहर में तब तक बने रहो, जब तक ऊपर की शक्ति से सम्पन्न हो जाओ।" येसु के आदेश को मानते हुए वे स्वर्गारोहण के बाद अटारी में येसु की मान मरियम के साथ लगातार प्रार्थना तयारी में लगे रहे और पेंटेकोस्ट के दिन उस आत्मा के अभिषेक से भर गए।  आइये हम भी उस आत्मा से भर जाने के लिए खुद को तैयार करें। Amen.