Act .1:1-11
Eph. 4:1-13
Mk. 16:15-2021
स्वर्गारोहण का
पर्व अपने आप
में एक खास
पर्व है जिस
दिन हमारे मुक्तिदाता प्रभु
येसु ख्रीस्त अपना
मुक्तिकार्य सम्पन्न कर इस संसार
से आरोहित कर
लिये जाते हैं।
स्वर्गारोहण की बात जब
आती है तब
यहूदियों के ब्रह्माण्ड शास्त्र को
समझना गौरतलब है।
यहूदियों के मतानुसार तीन
लोक होते हैं
- पृथ्वी लोक, स्वर्गलोक और
अधोलोक। प्रभु येसु के
स्वार्गारोहण के संदर्भ में
इन तीनों लोकों
को एक अलग-अलग अस्तित्व में
देखते हुए यह
कहना उचित नहीं
होगा कि येसु
इस लोक को
पूरी तरह छोडकर
दूसरे लोक में
चले गये। और
यूं कहें कि
अपने स्वर्गारोहण के
बाद प्रभु येसु
इस दुनिया में
अपनी अनुपस्थिति छोड
गये। नहीं, येसु
के स्वर्गारोहण के
समय कुछ हट
कर और विशेष
कार्य सम्पन्न होता
है। उनका पुनरूत्थान, स्वर्गारोहण और
पवित्र आत्मा का
प्रेरितों पर उतरना ये
तीनों घटनायें एक
दूसरे से बेहद
जुडी हुई हैं।
पुनरूत्थान के बाद प्रभु
येसु का शरीर
रूपान्तरित हो जाता है।
जो है तो
शरीर पर उसे
साधारण मानवीय ऑंखें
पहचान नहीं पाती।
वे उन्हें कोई
आत्मा समझ बैठते
हैं। तब वे
उनके सामने भूनी
हुई मछली का
एक टुकडा खाते
हैं और उनकी
ऑंखों का भ्रम
दूर करते हैं।
(संत लूकस 24:36-42)। जैसे
उनका वह शरीर
जो योहन 1:14 के
अनुसार कुँवारी के
गर्भ में देह
धारण करता है
वह अब रूपान्तरित होकर
एक पुनरूत्थित शरीर
बन जाता है।
अपने स्वर्गारोहण में
वैसे ही येसु
इस दुनिया की
वास्तविकता को स्वर्गीक वास्तविकता में
तब्दील कर देते
हैं। अपने ’पिता
हमारे’की प्रार्थना में
प्रभु येसु इसी
की कामना करते
हुए कहते हैं
- हे पिता तेरा
राज्य इस धरती
पर आये। तो
हमारी मुक्ति का
अर्थ इस पापमय
संसार से छुटकारा पाकर
कहीं दूसरे लोक
में बच भागना
नहीं, पर ईश्वर
द्वारा हमारे इस
संसार को एक
नया रूप देना
है, उनका राज्य
हमारे बीच स्थापित करना
है। जैसा कि
स्तोत्रकार स्तोत्र 57:12 में कहता है
- समस्त पृथ्वी पर
तेरी महिमा प्रकट
हो। इसे समझने
के लिए हमें
पेंतेकोस्त के दिन जो
होता है उसपर
ध्यान देना ज़रूरी
है। ये दोनों
घटनायें याने प्रभु का
स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा
का उतरना एक
दूसरे से घनिष्टता से
जुडी हुई है।
इन दोनों घटनाओं
में, एक में येसु दुनिया से
स्वर्ग जाते हैं
और दूसरी में स्वर्ग से पवित्र
आत्मा नीचे आता
है। तो येसु
मसीह का स्वर्गारोहण इस
लोक से किसी
अन्य लोक में
जाना नहीं परन्तु
दुनियाई वास्तविकता को स्वर्गिक वास्तविकता में
परिवर्तित करना है। यह
स्वर्ग और पृथ्वी
का मिलन है।
यहॉं पृथ्वी का
स्वर्ग के द्वारा
रूपान्तरण होता है। स्वर्गिक शक्ति
दुनिया को रूपान्तरित करती
है।
और यहाँ हम जिस रूपांतरण की बात कर रहे हैं वह रूपांतरण कोई प्राकृतिक अथवा भौतिक रूपांतरण नहीं। इसका सीधा सा मतलब मनुष्यों के रूपांतरण से है। संत पौलुस कलोसियों 1:24 में कहते हैं कि कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से पूर्णता तक पहुँचा देते हैं।
इससे हमें
यह समझ में
आता हैं कि
कलीसिया याने विश्वासियों का
समुदाय प्रभु येसु
का रहस्य्मय शरीर
हैं। यदि कलीसिया मसीह
का शरीर है
तो पेंतेकोस्त के
दिन कलीसिया रूपी
इसी शरीर को
मसीह ने अपना
आत्मा भेज कर
परिपूर्णता प्रदान की है।
इससे हमको यह
समझ में आता
है कि येसु
अपने स्वर्गारोहण के
द्वारा कलीसिया को
रूपान्तरित करते हैं, पवित्र
करते हैं, परिपूर्ण करते
हैं और एक
नया रूप देते
हैं। वे धरती
पर की कलीसिया को
स्वर्गिक कलीसिया से जोडते हैं।
जिसे पवित्र मिस्सा
बलिदान की अवतरणिका में
पुरोहित व्यक्त करते हुये
कहते हैं कि
हम स्वर्ग के
समस्त दूतगणों के
स्वर में अपना
स्वर मिलाते हुए
तेरा गुणगान करते
और गाते हैं
- पवित्र, पवित्र, पवित्र
प्रभु विश्वमंडल के
ईश्वर...। आज
हम उस घटना
को याद करते
हैं जब प्रभु
येसु ने इस
दुनिया से विदा
लेते समय हमें
जो की उनका
रहस्यमय शरीर हैं, पूरी
तरह से अपने
आप को बदल
कर उनके दिव्य
शरीर के अनुरूप
बनाने का आह्वान
करते हैं। जैसा कि
आज के दूसरे
पाठ में संत
पौलुस कहते हैं - "उन्होंने कुछ
लोगों को प्रेरित, कुछ
को नबी, कुछ
को सुसमाचार-प्रचारक और
कुछ को चरवाहे
तथा आचार्य होने
का वरदान दिया। इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए
सन्तों को नियुक्त किया,
जिससे मसीह के
शरीर का निर्माण तब
तक होता रहे, जब तक हम
विश्वास तथा ईश्वर के
पुत्र के ज्ञान
में एक नहीं
हो जायें और
मसीह की परिपूर्णता के
अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।
यही है
आज के इस
पर्व का सन्देश
कि हम पवित्र
आत्मा के द्वारा
अलग - अलग वरदानों, और
कृपाओं से नवाज़े
गये हैं , हमें
अलग - अलग कार्य
करने के लिए चुना गया
है। उन्होंने कुछ लोगों को
प्रेरित, कुछ को नबी,
कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और
कुछ को चरवाहे
तथा आचार्य होने
का वरदान दिया।
कुछ को
मज़दूर, कुछ को
किसान,कुछ को
शिक्षक, कुछ को
विद्यार्थी,कुछ को डॉक्टर,कुछ को इंजिनियर, कुछ
को वैज्ञानिक,तो
कुछ को राजनेता और
कुछ को शासक,
जो पर हर
किसी के कार्य
के पीछे का
मकसद एक ही
हो - और वह
है जैसा कि
संत पौलुस कहते
हैं - इस प्रकार
उन्होंने सेवा-कार्य के
लिए सन्तों को
नियुक्त किया, जिससे मसीह
के शरीर का
निर्माण तब तक होता
रह। मसीह के शरीर
का निर्माण करते
रहना ही हमारे
मानवीय जीवन का
उद्देश्य होना चाहिए। और हमें
कब तक यह
करना है ? संत
पौलुस कहते है
तब तक - जब
तक हम विश्वास तथा
ईश्वर के पुत्र
के ज्ञान में
एक नहीं हो
जायें और मसीह
की परिपूर्णता के
अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न
कर लें।
पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त करना
हमारा जीवन का
अंतिम उद्देश्य होना
चाहिए। अभी हम अधूरे
हैं, हमारी बुद्धि
अधूरी है, हमारा
ज्ञान अधूरा है,
हमरा प्यार, हमारे
रिश्ते, हमारी भावनाएं, सब
कुछ अधूरा है।
यदि हमारा
यही हल है
तो इस लक्ष्य
को हासिल करने
में हमारी कौन
सहायता करेगा? पवित्र
आत्मा। प्रभु येसु योहन
के सुसमाचार 16:13 में कहते
हैं - "जब वह सत्य
का आत्मा आएगा,
तो तुम्हे पूर्ण
सत्य की ओर
ले जायेगा। "
प्यारे विश्वासियों, सही
मायने में येसु
के रहस्मय शरीर
के अंग बनने,
मसीह की परिपूर्णता के
अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व हासिल
करने के लिए
आइये हम खुद
को उस शक्ति
से संपन्न होने
देने के लिए
खुद को तैयार
करें जो प्रभु
येसु ने अपनी
कलीसिया के लिए प्रदान
किया है और
वह शक्ति है
पवित्र आत्मा। लूकस
24:49 में
उन्होंने प्रेरितों से कहा - देखों,
मेरे पिता ने
जिस वरदान की
प्रतिज्ञा की है, उसे
मैं तुम्हारे पास
भेजूँगा। इसलिए तुम लोग
शहर में तब
तक बने रहो,
जब तक ऊपर
की शक्ति से
सम्पन्न न हो जाओ।"
येसु के आदेश
को मानते हुए
वे स्वर्गारोहण के
बाद अटारी में
येसु की मान
मरियम के साथ
लगातार प्रार्थना व
तयारी में लगे
रहे और पेंटेकोस्ट के
दिन उस आत्मा
के अभिषेक से
भर गए। आइये हम
भी उस आत्मा
से भर जाने
के लिए खुद
को तैयार करें। Amen.
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