Tuesday, 8 June 2021

Feast of Sacred Heart of Jesus 11 June 2021

 

पहला पाठ : होशेआ 11:1, 3-4, 8-9

दूसरा पाठ: एफेसियों 3:8-12, 14-19

सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 19:31-37




आज हम प्रभु येसु ख्रीस्त के अति पवित्रतम हृदय का पर्व मनाते हैं। हृदय का पवित्र बाइबल में क्या महत्व अथवा स्थान है? पवित्र बाइबल में करीब 1000 से भी ज्यादा बार हृदय शब्द का प्रयोग हुआ है। कैथोलिक धर्म की धर्म शिक्षा के नम्बर 2563 (CCC2563) में हृदय  को किसी मनुष्य का छिपा हुआ केंद्र कहा गया है। केवल ईश्वर ही इसे पूरी तरह से समझ सकता है. 


यदि मुझे किसी को जानना है तो उस व्यक्ति को मेरे सामने अपना दिल को खोलना होगा। कई बार किसी बात का यकिन दिलाने के लिए हमारा कोई अजीज़ दोस्त हम से कहता हैं कि मैं तुम्हें मेरे दिल की बात बता रहा हूँ। इसका मतलब क्या हुआ? यह कि वह व्यक्ति अपनी सबसे भीतर की बात व अपनी सबसे व्यक्तिगत बात को हमारे सामने रख रहा है। और दूसरे शब्दों में यदि हम कहें तो वह अपना दिल हमारे सामने खोल रहा है; वह अपने भीतर छिपी सच्चाई को हमारे सामने रख रहा है। और भी सटीक रूप  से कहें तो वह व्यक्ति यह चाहता है कि हम उसे उस रूप में समझें जैसा वो वास्तव में है।

आज का यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि सारी कायनात के खुदा, हम सब को बनाने और हमारा अस्तित्व बनाये रखने वाले ईश्वर ने अपना दिल हमारे लिये खोला दिया है। पवित्र हृदय के प्रति हमारी भक्ति का आधार यही है। आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन कहता है कि उन्होंने इस्राएलियों को उनकी किसी श्रेष्ठता के कारण नहीं अपनाया पर प्रभु ने उनके प्रति अपने प्रेम के खातिर उन्हें अपनी प्रजा बनाया।  यहोवा ईश्वर उन्हें बच्चों की भाँति  दुलार और प्यार करता है - इस्राएल जब बालक था, तो मैं उसे प्यार करता था और मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया। मैंने एफ्राईम को चलना सिखाया। मैं उन्हें गोद में उठाय करता था, किन्तु वे नहीं समझे कि मैं उनकी देखरेख करता था मैं उन्हें दया तथा प्रेम की बागडोर से टहलाता था। जिस तरह कोई बच्चे को उठा कर गले लगाता है, उसी तरह मैं भी उनके साथ व्यवहार करता था। मैं झुक कर उन्हें भोजन दिया करता था।
 संत योहन के पहले पत्र 4:16  में प्रभु का वचन हमें ईश्वर की परिभाषा बतलाता है।  और वो है - ईश्वर प्रेम है. ईश्वर का अस्तित्व ही प्रेम है . 

इसलिए पवित्र हृदय के प्रति भक्ति का मलतब होता है ईश्वर के अस्तित्व व उसके सार-तत्व के प्रति भक्ति। दूसरे शब्दों में पवित्र हृदय की भक्ति ईश्वर के प्रति भक्ति ही है, उस रूप में जैसा कि वह अपने आप को हम पर प्रकट करना चाहता है। पूर्व संत पिता बेनेडिक्ट सौलहंवें  कहते हैं - ‘‘उनके छिदे हुए हृदय में स्वयं ईश्वर का हृदय खोला गया है। यहाँ हम देखते हैं कि ईश्वर कौन है और ईश्वर कैसा है। अब स्वर्ग बंद नहीं रहा। ईश्वर अदृष्य से बाहर आ गया है ।’’

यदि ईश्वर अपने आप को इस रूप में प्रकट नहीं करते तो शायद हमें उन्हें जानने का मौका नहीं मिलता। हमें बस ईश्वर के इस निमंत्रण को स्वीकार करना है। येसु अपना दिल  खोलकर हमें यह बतलाना चाह रहे हैं कि ईश्वर मनुष्यों के साथ एक रिशता कायम करना चाहते हैं। हमें दिल से अपनाना चाहते हैं। दुनिया का कोई भी धर्म ईश्वर की ऐसी सुन्दर तस्वीर हमारे सामने नहीं पेश  करता है। केवल मसीहत में खुदा इंसान से इतना अधिक प्यार करता है  कि वह हम में से एक जैसा बन जाता है ताकि वह हमारे लिए अपना दिल खोल सकें और हम उनके साथ प्रेम के रिश्ते  में जुड जायें। 

 समारी स्त्री के वाकये में येसु उस स्त्री से पानी माँगता है। प्रभु प्यासा है। क्रूस से भी उन्होंने यह कहा था - ‘‘मैं प्यासा हूँ।’’ (योहन १९:२८).   हमारा ईश्वर आज भी प्यासा है, हमारे लिए। आज भी उसका दिल हमारे लिए खुला हुआ है। वह हर रोज अपना दिल खोलकर हमें अपने पास बुलाता है। संत मत्ती ११:28 में प्रभु येसु हम से कहते है - "थके मांदे  और बोझ से दबे हुए लोगों! तुम सब के सब मेरे पास आओ . मैं तुम्हें विश्राम दूंगा. मैं स्वाभाव से नम्र और विनीत हूँ. " वो अपने प्रेमी ह्रदय के करीब हम सब को बुला रहा है . वो हमें अपने प्रेम के सागर में डूबा देना चाहता है . वह हर रोज हमें यह निमंत्रण देता है कि हम उनके प्यार को  जाने, पहचानें व उसके प्रेम में दिवाने हो जायें। उसके प्रेम के रस में अपने का डुबो दें। उसके छिदे हुए हृदय से टपकते लहू व जल से हम अपने पापमय जीवन को धो लें। और अपने आप को येसु के प्रेमी हृदय में छिपा लें जो सिर्फ और सिर्फ हमारे खातिर माँस बना, ताकि एक मानवीय हृदय से ईश्वर अपने बच्चों से प्यार कर सके। आईये हम येसु के पवित्रम हृदय की तस्वीर को हमारे जेहन में लायें जो कि सारी मानवजाती के प्यार के लिए दहक रहा है। और अपने आपको व सारी मानवजाती को प्रभु येसु के अति पवित्रतम् हृदय के प्रति समर्पित करें व प्रार्थना करें जिससे  जैसा कि आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस कहते हैं - "आप लोग  येसु के प्यार की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, और गहराई   को समझ सकें" (ऐफेसयों 3 :18) और उनके प्रेम के निमंत्रण को स्वीकार कर उनके प्रेम में निरंतर बढते जायें। आमेन।


Sweet Heart of Jesus, 
be my love.

Happy Feast to All. 

Monday, 7 June 2021

Feast of Corpus Christi: Reflection in Hindi By Fr Preetam Vasuniya

 आज हम प्रभु येसु ख्रीस्त के अति पवित्रतम शरीर एवं रक्त का पर्व मना रहे हैं। कोरोना की महामारी, लॉक डाऊन, और सामाजिक दुरी के इस दौर में कई कैथोलिक विश्वासियों को सबसे ज्यादा जिस बात ने दुखित और विचलित किया वो है महीनो तक पवित्र यूखरिस्त नहीं ग्रहण कर पाना। इस लॉक डाउन के दौरान कई विश्वासियों ने पवित्र यूखरिस्त के आभाव में अपने को काफी अधूरा और खली महसूस किया। कईयों की येसु को दिल में ग्रहण करने के लिए आत्मिक भूख और प्यास बहुत तीव्र हो गई होगी। 


कुछ दिन पहले प्रख्यात पेंटेकोस्टल पास्टर बेन्नी हिन् का एक वीडियो देखने को मिला जिसमें वे पवित्र यूखरिस्त के बारे  में बतलाते हुए कहते हैं कि एक अध्ययन में ये सामने आया है कि कैथोलिक चर्च में पवित्र यूखरिस्त के दौरान ज्यादा लागों को चंगाई मिलती है। क्योंकि वे पवित्र यूखरिस्त में विश्वास करते हैं। अपने चर्च का हवाला देते हुए वे कहते हैं कि उनके लिए तो यूखरिस्त में प्रभु येसु की केवल प्रतीकात्मक उपस्थिति होती है। परन्तु प्रभु येसु ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा कि - ‘‘ले लो और खाओ। यह मेरा शरीर है” (मत्ती 26:26) उन्होंने यह नहीं कहा कि यह रोटी मेरे शरीर का प्रतीक है। पर उन्होंने कहा यह मेरा शरीर है। और संत योहन 6:53 में भी प्रभु येसु ने स्पष्ट कहा है - ‘‘यदि तुम मानव पुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगेतो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा
प्रभु येसु के इस संसार में आने का उद्देश्य ही यह था कि उनके द्वारा हमें अनन्त जीवन प्राप्त हो। संत योहन 3:16 में लिखा है - ‘‘ईश्वर ने संसार को इतना प्रेम किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दियाजिससे जो कोई उस में विश्वास करता हैउसका सर्वनाश न होबल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे। अनन्त जीवन का खजानाअनन्त जीवन का उपहार पवित्र यूखरिस्त में छिपा है।  

द्वितीय वैटिकन महासभा सिखलाती है कि पवित्र युखरिस्त कलीसिया के जीवन का स्रोत और उसकी पाराकाष्ठा है। (Lumen Gentium, 11) इसी से कलीसिया को जीवन मिलता है और इसी में कलीसिया का अंतिम लक्ष्य निहित है। अन्य संस्कारों में तो हमें ईश्वर की कृपा मिलती है परन्तु पवित्र यूखारिस्त में तो हमें कृपाओं को प्रदान करने वाला ईश्वर स्वयं प्राप्त होता है। क्योंकि यूखरिस्त तो स्वयं प्रभु येसु ही हैंऔर बिना उनके कलीसिया की कल्पना करना संभव नहीं।

पर एक बडा सवाल यह उठता है कि इस प्रभु येसु को ग्रहण करने वालों ने उन्हें कितनी गहराई से समझा हैक्या आपने कभी कल्पना की कि यदि आप भी प्रभु येसु के समय उनके साथ होते और आपको उन्हें स्पर्श करने का अवसर मिलता! कितना सुखद और कितना अनुग्रहकारी क्षण होता वहहै नअगर छूना नहीं मिलता तो कम से कम उनकी एक झलक भी देखने को मिल जाती तो भी हम तो अपने को बडा सौभाग्यशाली मानतेहै नमाँ मरियम की महानता पर प्रवचन देते समय मैं कई बार इस बात को रखता हूँ कि वे इसलिए महान मानी जाती है क्योंकि उन्होंने ईश्वर के पुत्र को नौ महिनों तक अपने गर्भ में रखा। उन्होंने सृष्टिकर्त्ता को नौ महिनों तक अपनी कोख में रखा। जरा विचार कीजिए कि यदि सिर्फ नौ महिनों तक येसु की देह को अपने गर्भ में रखने से यदि माता मरिय सब नारियों में धन्य बन गई तो हर रविवार या फिर हर रोज उसी येसु को अपने दिल में ग्रहण करने वाले हम कितने महान हो सकते हैं। क्या हम इस बात को दिल से मानते हैं कि हमारे दिल में रोज आने वाला येसु वही येसु है जो मरियम के गर्भ में थाक्या यह वही येसु है जो जोसफ और मरियम के साथ नाज़रेथ में करीब तीस साल रहाक्या यह वही येसु है जिसने अंधों को आँखें और मुर्दों को जान दीजी हाँ यह वही प्रभु है. 

तब दूसरा सवाल यह खडा होता है कि यदि प्रभु येसु अपनी उसी महिमा में पवित्र यूखरिस्त में हमारे दिल में आते हैं तो फिर हमें जो उन्हें ग्रहण करते हैं उस प्रभु की उपस्थिति का प्रभाव हमारे जीवन में क्यों नहीं पडतापवित्र यूखरिस्त ग्रहण करने के पहले और ग्रहण करने के बाद मुझ में क्या परिवर्तन आता हैयूखरिस्त ग्रहण करने के कितने समय तक मैं इस अनुभुति में रहता हूँ कि प्रभु मेरे दिल में है? 

एक और बडा सवाल हमेशा मेरे मन में कौंधता रहता है कि यदि जीवित प्रभु येसु मेरे हृदय में हैं तो फिर भी क्यों मेरे जीवन में संकटदुःखबीमारीनिराशा और परेशानियाँ हैअथवा जब मैं कठिनाईयों के दौर से गुजरता हूँ तब यूखरिस्तीय प्रभु मेरे अंदर क्या कर रहे होते हैंक्या वे सो रहे होते हैंजी हाँकाफी हद तक यह कहा जा सकता है कि प्रभु सो जाते होंगे। वास्तव में तो प्रभु कभी सोते नहीं। स्तोत्र 121:4 में प्रभु का वचन कहता है -‘‘इस्राएल का रक्षक न तो सोता है और न झपकी लेता है पर मत्ती 8:23-27 में हम पाते हैं कि प्रभु येसु अपने शिष्यों के साथ नाव में सवार होकर कहीं जा रहे थे। और वे एक आँधी में फँस जाते हैं। उस बवंडर के बीच पवित्र सुसमाचार हमें बतलाता है कि प्रभु येसु सो रहे होते हैं। क्या प्रभु येसु वास्तव में सो रहे थेक्या वे वास्तव में इतनी गहरी नींद में थे कि वहाँ पर क्या हो रहा है उन्हें पता भी नहीं चलामैं नहीं सोचता वे वास्तव में गहरी नींद में थे। दरअसल शिष्यों के पास उनसे बात करने का समय नहीं था। शिष्य अपनी ही धुन में थे। इसलिए येसु विश्राम करने चले जाते हैं। शायद हम भी यूखरीस्तीय प्रभु को इसी प्रकार सोने भेज देते हैं। एक बार पवित्र परम प्रसाद ग्रहण किया और फिर भूल गये प्रभु को। हम व्यर्थ ही जीवन में परेशान रहते हैंजबकि हमारा जिंदा खुदावन्द हरदम हमारे साथ रहता है। शिष्यों की तरह व्यर्थ ही जिंदगी के छोटे-मोटे तूफानों से घबराकर अपने हिसाब से अपने जीवन की नाव को बचाने के प्रयास करते रहते हैं। जब सब कुछ हमारी क्षमता के परे होने लगता है तब हमें उस प्रभु की याद आती है। हमें हमारे प्रभु को सुलाना नहीं उन्हें हमारी जिंदगी में व्यस्त रखना है। यदि आपका कोई अजीज मित्र आपसे मिलने आपके घर इस उम्मीद से आये कि मिलकर ढेर सारी बातें करेंगेअपना सुख-दुख साझा करेंगे व साथ में कुछ समय बितायेंगे। ज़रा सोचिए यदि आप उसे समय नहीं देतेआप अपने मोबाइलटीवी या फिर कम्प्यूटर में व्यस्थ हैं तो आपके उस दोस्त को कैसा लगेगाप्रभु येसु आपसे रोज बातें करना चाहते हैंरोज आपका हाल पूछना चाहते हैंआपकी रोज की खैर-खबर रखना चाहते हैंआपके दुखों को हल्का करना चाहते हैंआपकी जिंदगी के बोझ को अपने ऊपर लेना चाहते हैंवे कहते हैं - थके माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सबके सब मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। (संत मत्ती 11,28)
वे आपके जीवन को लेकर चिंतित हैउनके मन में आपके लिए एक योजना है। ‘‘तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ मैं जानता हूँ - तुम्हारे हित की योजनाएँअहित की नहीं तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएँ। (यिरमियाह 29:11) वे चाहते हैं कि आपको अपनी उस सुखद योजना के बारे में बताएआपसे उस पर चर्चा करें।

क्या हम हमारे दिल में रहने वाले प्रभु येसु से बातचीत करते हैंउनकी बातों को सुनते हैंअपने जीवन में उनकी रजाउनकी मरजी क्या हैक्या हम उनसे यह पूछते हैंदिन में कितनी बार हम उनको याद करते हैंवो तो हमारे सबसे करीब हैंहमारे दिल में अंदर हैंहमेशा इस इंतजार में कि हम कब उनसे बात करने का समय निकालेंगे। वो अपने प्यार भरे लब्जों से दिन में कितनी ही बार हमें पुकारते हैं। पर हम कितनी ही बार उनकी वाणी को अनसुना कर देते हैं। हर घडी जब प्रलोभन व बुराई की शक्तियाँ हमें अपनी ओर खींचती हैं तो वह प्रभु येसु कितनी बार हमें उनसे बचने के लिए आगाह करते हैंपर हम उनके प्रयासों को नज़रअंदाज कर देते हैं। हम उन्हें हमारे दिल के एक कोने में सोने को मज़बूर कर देते हैं।
आईये हम पवित्र संस्कार के प्रति अपने नज़रिये को बदलें और उसमें उपस्थित प्रभु की वास्तविक उपस्थिति का आभास स्वयं को हर पल करायें। विशेष करके प्रभु यसु के शरीर और रक्त को ग्रहण करने के तुरन्त बाद के मूल्यवान पलों में कुछ क्षण शाँत रहकर येसु से संवाद करनेऔर उनसे बातचीत करने में लीन हो जायें। जितनी घनिष्टता से हम उनसे जुडेंगे उतना अधिक हम उनका दिव्य अनुभव प्राप्त करेंगे। प्रभु येसु को हम अपना सबसे करीबी मित्र बना लें। उनकी उपस्थिति की अनुभुति हर पल हमारे मन में रहे। यदि ऐसा हुआ तो फिर न तो कोई प्रलोभनन कोई शैतान की ताकतन कोई बुराईन कोई विपत्तिन कोई बीमारी, न कोई महामारी, न कोरोना वायरस और न कोई किसी प्रकार की निराशा हमें विचलित कर सकती है क्योंकि येसु ने इन सब पर विजय प्राप्त की है। (योहन 16:33)। आमेन।