Atma ki Talwar
Reflections on the Word of God for the Sunday Liturgy by Fr. Preetam Vasuniya, Indore Diocese
Sunday, 6 February 2022
Saturday, 4 December 2021
Second Sunday of Advent 2021, Sunday Reflections in Hindi
बारूक 5ः1-9
फिलि. 1ः4-6,8-11लुक 3ः1-6
इस्राएली लोग ईष्वर की चुनी हुई प्रजा थी। ईष्वर ने उन्हें सभी राष्ट्रों व देषों में से अपनी निजी प्रजा के रूप में चुन लिया था। वे नबियों के द्वारा उनसे कहते हैं - ‘‘चाहे पहाड टल जाये और पहाडियाँ डाँवाडोल हो जायें किंतु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शाँति विधान नहीं डाँवाडोल होगा’’ (इसा. 42ः6)। ‘‘तुम मेेरी दृष्टी में मुल्यवान हो और महत्व रखते हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’’ (इसा. 43ः4)। ‘‘क्या स्त्री अपना दूधमुहा बच्चा भुला सकती है? कया वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगा’’ (इसा. 49ः15)। ऐसा अटल व घनिष्ट प्रेम था यहोवा का अपनी प्रजा के प्रति।
लेकिन इस्राएली प्रजा एक धोखेबाज प्रजा निकली। दूसरा इतिहास ग्रंथ 36ः14 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘याजकों के नेताओं और जनता में भी बहुत अधिक अधर्म फैल गया, क्योंकि उन्होेंने गैर-यहूदी राष्ट्रों के घृणित कार्यों का अनुकरण किया और प्रभु द्वारा प्रतिष्ठित येरूसालेम मंदिर को अपवित्र कर दिया।’’उन्होंने अपने प्रेमी ईष्वर को भूला कर देवी-देवताओं की पूजा की। उन्होंने उस प्रेमी पिता के प्यार को ठुकरा दिया। उन्होंने ईष्वर से बेवफाई की। उन्होंने वो सारे चिन्ह और चमत्कार भूला दिये जिसे ईष्वर ने उनकी आँखों के सामने किये थे। वचन आगे कहता है कि कई नबियों ने उन्हें बार-बार चेतावनी दी कि पाप व बुराई के जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो वह सही नहीं है; ईष्वर के धार्मिकता के मार्ग से भटक कर शैतान के मार्ग पर तुम्हारा जाना सही नहीं है। यह ईष्वर को कतई पसन्द नहीं है। तुम लौटकर वापस आ जाओ। अपना कुमार्ग त्यागकर अपने प्रेमी पिता के पास वापस आ जाओ। पर इस्राएलियों ने नबियों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उल्टे उन पर अत्याचार किये व कईयों को मार डाला। तब ईष्वर जो कि अब तक अपनी प्रजा के साथ था; युद्ध के समय उनकी तरफ से लडता था; शत्रुओं से उनकी रक्षा करता था; उन्हें उनसे भी अधिक शक्तिषाली राजाओं के विरूद्ध विजय दिलाता था; अब इन्हें त्याग देता है। प्रभु ने अपनी चुनी हुई प्रजा को अपने ही भाग्य पर छोड दिया। इसके विषय में प्रभु का वचन इतिहास ग्रंथ 36ः15 में कहता है - ‘‘प्रभु उनके पूवर्जाें का ईष्वर उनके पास अपने दूतों को निरन्तर भेजता रहा; कयोंकि उसे अपने मंदिर तथा अपनी प्रजा पर तरस आता था। किंतु उन्होंने ईष्वर के दूतों का उपहास किया, उसके उपदेषों का तिरस्कार किया और उसके नबियों की हँसी उडाई। अंत में ईष्वर का क्रोध अपनी प्रजा पर फूट पडा और उसे बचने का कोई उपाय नहीं रहा।’’
तब खल्दैयियों के राजा ने उन पर आक्रमण किया; उनकी आस्था व धार्मिकता के प्रतीक येरूसालेम मंदिर को तहस-नहस कर दिया; ईष्वर के मंदिर को सुपूर्दे खाक कर दिया। सारे देश को उजाड दिया; कईयों का वध कर दिया; व बाकि लोगों को बंदी बनाकर बाबुल देश उनकी गुलामी करने ले जाया गया। वहाँ करीब पचास साल तक वे बाबुल के निर्वासन में रहे; उनकी गुलामी करते रहे। वहाँ से इन्होंने प्रभु को पुकारा, इन्होंने अपने किये पर पश्चताप किया; इन्होंने प्रभु को अपनी दुर्दषा में पुकारा और प्रभु ने उनकी सुध ली। क्योंकि स्तोत्र 103ः 10-12 में वचन कहता है ‘‘प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है; वह सहनषील और अत्यंत प्रेममय है; वह सदा दोष नहीं देता और चिरकाल तक क्रोध नहीं करता।’’ और प्रव. 17ः20-23 में वचन कहता है - ‘‘ईष्वर पश्चताप करने वालों को अपने पास लौटने देता और निराष लोगों को ढारस बंधाता है।’’ इसलिए प्रभु आज के पहले पाठ में उन्हें सांत्वना भरे शब्दों में कहता है - ‘‘येरूसालेम! अपने शोक और संताप के वस्त्र उतार और सादा के लिए ईष्वर की महिमा का सौंदर्य धारण कर...येरूसालेम! उठ खडा हो जा, पर्वत पर चढ़ कर पूर्व की ओर दृष्टि लगा। देख, प्रभु की आज्ञा से तेरे पुत्र पष्चिम और पूर्व से एकत्र हो गये हैं। वे आनन्द मना रहे हैं, क्योंकि ईष्वर ने उनकी सुधी ली है...दयामय तथा न्यायी ईष्वर इस्राएल को आनन्द प्रदान करेगा और अपनी महिमा के प्रकाष से उसका पथप्रदर्षन करेगा।’’
बपतिस्मा ग्रहण करके हम सभी प्रभु की चुनी हुई प्रजा बन गये हैं। हम सब नये येरूसालेम यानी प्रभु की कलीसिया के सदस्य हैं; हम सब नयी इस्राएली प्रजा कहलाते हैं। प्रभु ने हम सब से अनन्त प्रेम से प्रेम किया है। जो प्रेमभरे वचन प्रभु ने इस्राएली जनता से कहे थे वे आज हमसे भी कहते हैं। तुम मेरी दृष्टि में मुल्यवान हो...चाहे माँ अपने दुधमुँहे बच्चे को भूला भी दे तो भी मैं तुम्हें नहीं भूलाऊँगा आदि। आईये हम अपने आप का जाँच करके देखें कि हम उन इसा्रएली लोगों से कितने भिन्न हैं। क्या हम, भी हमसे प्रेम करने वाले ईष्वर को त्याग कर बुराई के मार्ग पर नहीं चलते? क्या हम भी हमारे कार्यों द्वारा उनको अप्रसन्न नहीं करते? क्या हमने भी जानबुझकर हमसे अनन्त प्रेम करने वाले ईष्वर के दिल को नहीं तोडा? क्या हमने उनको अपने पापों के कारण दुःख नहीं पहुँचाया?
तो आईये हम भी प्रभु के पास वापस लौट चलें। यह आगमन का समय हमारे लिए प्रभु के पास पुनः लौट आने का उचित समय है। आइये हम आज के सुसमाचार के वचनों पर मनन चिंतन करें। आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता हमें अपने पापों पर पश्चताप करते हुए प्रभु के लिए अपने आपको तैयार करने को कहते हैं। वे कहते हैं ‘‘प्रभु का मार्ग तैयार करो’’ हम सब को प्रभु के लिए मार्ग तैयार करने की ज़रूरत है। योहन बपतिस्ता का काम था प्रभु के रास्ते को सीधा करना। हमें भी पश्चताप, क्षमा, शाँति, प्रेम व पवित्रता के जीवन द्वारा प्रभु के रास्ते को सीधा करना है। ‘‘हर पहाड व पहाडी समतल की जाये’’ हमें हमारे जीवन से घमंड के पहाडों को खोदकर समतल करना है। ‘‘हर घाटी भर दी जाये’’ घाटी को भरना अथवा खाई को पाटना, हमें याद दिलाता है हमारी खोखली धार्मिकता की। जिस विष्वास की हम घोषणा करते हैं और जिस प्रकार का जीवन हम रोज वास्तव में जीते हैं इसके बीच एक बहुत बडी खाई है, जिसे हमें समतल करना है। हमें हमारे विष्वास व दैनिक जीवन के बीच की खाई को भरकर दोनों में समानता लाना है। हमारी कथनी व करनी में समानता लाना है। ‘‘टढे-मेढे रास्ते सीधे कर दिये जायेंगे’’ हमारे पापमय रास्ते, बुराईयों भरे रास्ते को हमें सीधा करना है। बुराईयों के टेढे-मेढे रास्ते को सुधारकर हमें सीधा करना है। याने हमारे जीवन में सुधार लाना है।
यह सब करना तभी संभव है जब हमें हमारी गलतियों का आभास होगा। जब हमें लगेगा कि हाँ मैं सचमुच प्रभु से दूर हो गया हूँ, मुझे जब ये लगने लगेगा कि हाँ मुझे प्रभु के पास लौट आना चाहिए। और इसके लिए सच्चे मन से पश्चताप करते हुवे पापस्वीकार संस्कार के द्वारा प्रभु से व अपने पडोसियों से मेलमिलाप करने व पवित्र युखरिस्त में भाग लेने से बेहतर रास्ता और क्या हो सकता है। माता कलीसिया इस आगमनकाल में हमें पश्चताप करने व अपनी पापमय जिंदगी से मन फिराकर प्रभु के पास लौटने का एक सुअवसर प्रदान करती हैं। आईये हम इस पवित्र समय का पूरा लाभ उठायें। व प्रभु के लिए स्वयं को अच्छी तरह से तैयार करें।
आमेन।
Tuesday, 8 June 2021
Feast of Sacred Heart of Jesus 11 June 2021
पहला पाठ : होशेआ 11:1, 3-4, 8-9
दूसरा पाठ: एफेसियों 3:8-12, 14-19
सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 19:31-37
Sweet Heart of Jesus,
be my love.
Happy Feast to All.
Monday, 7 June 2021
Feast of Corpus Christi: Reflection in Hindi By Fr Preetam Vasuniya
द्वितीय वैटिकन महासभा सिखलाती है कि पवित्र युखरिस्त कलीसिया के जीवन का स्रोत और उसकी पाराकाष्ठा है। (Lumen Gentium, 11) इसी से कलीसिया को जीवन मिलता है और इसी में कलीसिया का अंतिम लक्ष्य निहित है। अन्य संस्कारों में तो हमें ईश्वर की कृपा मिलती है परन्तु पवित्र यूखारिस्त में तो हमें कृपाओं को प्रदान करने वाला ईश्वर स्वयं प्राप्त होता है। क्योंकि यूखरिस्त तो स्वयं प्रभु येसु ही हैं, और बिना उनके कलीसिया की कल्पना करना संभव नहीं।
Friday, 28 May 2021
पवित्र त्रित्व का रविवार: 30 May 2021 Hindi Reflection by Fr. Preetam Vasuniya
पवित्र त्रित्व का रविवार
आमेन।
Thursday, 13 May 2021
स्वर्गारोहण का पर्व, the Solemnity of the Ascension, 16 May, 2021: #Reflection in Hindi by Fr. Preetam Vasuniya
Act .1:1-11
Eph. 4:1-13
Mk. 16:15-2021
स्वर्गारोहण का
पर्व अपने आप
में एक खास
पर्व है जिस
दिन हमारे मुक्तिदाता प्रभु
येसु ख्रीस्त अपना
मुक्तिकार्य सम्पन्न कर इस संसार
से आरोहित कर
लिये जाते हैं।
स्वर्गारोहण की बात जब
आती है तब
यहूदियों के ब्रह्माण्ड शास्त्र को
समझना गौरतलब है।
यहूदियों के मतानुसार तीन
लोक होते हैं
- पृथ्वी लोक, स्वर्गलोक और
अधोलोक। प्रभु येसु के
स्वार्गारोहण के संदर्भ में
इन तीनों लोकों
को एक अलग-अलग अस्तित्व में
देखते हुए यह
कहना उचित नहीं
होगा कि येसु
इस लोक को
पूरी तरह छोडकर
दूसरे लोक में
चले गये। और
यूं कहें कि
अपने स्वर्गारोहण के
बाद प्रभु येसु
इस दुनिया में
अपनी अनुपस्थिति छोड
गये। नहीं, येसु
के स्वर्गारोहण के
समय कुछ हट
कर और विशेष
कार्य सम्पन्न होता
है। उनका पुनरूत्थान, स्वर्गारोहण और
पवित्र आत्मा का
प्रेरितों पर उतरना ये
तीनों घटनायें एक
दूसरे से बेहद
जुडी हुई हैं।
पुनरूत्थान के बाद प्रभु
येसु का शरीर
रूपान्तरित हो जाता है।
जो है तो
शरीर पर उसे
साधारण मानवीय ऑंखें
पहचान नहीं पाती।
वे उन्हें कोई
आत्मा समझ बैठते
हैं। तब वे
उनके सामने भूनी
हुई मछली का
एक टुकडा खाते
हैं और उनकी
ऑंखों का भ्रम
दूर करते हैं।
(संत लूकस 24:36-42)। जैसे
उनका वह शरीर
जो योहन 1:14 के
अनुसार कुँवारी के
गर्भ में देह
धारण करता है
वह अब रूपान्तरित होकर
एक पुनरूत्थित शरीर
बन जाता है।
अपने स्वर्गारोहण में
वैसे ही येसु
इस दुनिया की
वास्तविकता को स्वर्गीक वास्तविकता में
तब्दील कर देते
हैं। अपने ’पिता
हमारे’की प्रार्थना में
प्रभु येसु इसी
की कामना करते
हुए कहते हैं
- हे पिता तेरा
राज्य इस धरती
पर आये। तो
हमारी मुक्ति का
अर्थ इस पापमय
संसार से छुटकारा पाकर
कहीं दूसरे लोक
में बच भागना
नहीं, पर ईश्वर
द्वारा हमारे इस
संसार को एक
नया रूप देना
है, उनका राज्य
हमारे बीच स्थापित करना
है। जैसा कि
स्तोत्रकार स्तोत्र 57:12 में कहता है
- समस्त पृथ्वी पर
तेरी महिमा प्रकट
हो। इसे समझने
के लिए हमें
पेंतेकोस्त के दिन जो
होता है उसपर
ध्यान देना ज़रूरी
है। ये दोनों
घटनायें याने प्रभु का
स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा
का उतरना एक
दूसरे से घनिष्टता से
जुडी हुई है।
इन दोनों घटनाओं
में, एक में येसु दुनिया से
स्वर्ग जाते हैं
और दूसरी में स्वर्ग से पवित्र
आत्मा नीचे आता
है। तो येसु
मसीह का स्वर्गारोहण इस
लोक से किसी
अन्य लोक में
जाना नहीं परन्तु
दुनियाई वास्तविकता को स्वर्गिक वास्तविकता में
परिवर्तित करना है। यह
स्वर्ग और पृथ्वी
का मिलन है।
यहॉं पृथ्वी का
स्वर्ग के द्वारा
रूपान्तरण होता है। स्वर्गिक शक्ति
दुनिया को रूपान्तरित करती
है।
और यहाँ हम जिस रूपांतरण की बात कर रहे हैं वह रूपांतरण कोई प्राकृतिक अथवा भौतिक रूपांतरण नहीं। इसका सीधा सा मतलब मनुष्यों के रूपांतरण से है। संत पौलुस कलोसियों 1:24 में कहते हैं कि कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से पूर्णता तक पहुँचा देते हैं।
इससे हमें
यह समझ में
आता हैं कि
कलीसिया याने विश्वासियों का
समुदाय प्रभु येसु
का रहस्य्मय शरीर
हैं। यदि कलीसिया मसीह
का शरीर है
तो पेंतेकोस्त के
दिन कलीसिया रूपी
इसी शरीर को
मसीह ने अपना
आत्मा भेज कर
परिपूर्णता प्रदान की है।
इससे हमको यह
समझ में आता
है कि येसु
अपने स्वर्गारोहण के
द्वारा कलीसिया को
रूपान्तरित करते हैं, पवित्र
करते हैं, परिपूर्ण करते
हैं और एक
नया रूप देते
हैं। वे धरती
पर की कलीसिया को
स्वर्गिक कलीसिया से जोडते हैं।
जिसे पवित्र मिस्सा
बलिदान की अवतरणिका में
पुरोहित व्यक्त करते हुये
कहते हैं कि
हम स्वर्ग के
समस्त दूतगणों के
स्वर में अपना
स्वर मिलाते हुए
तेरा गुणगान करते
और गाते हैं
- पवित्र, पवित्र, पवित्र
प्रभु विश्वमंडल के
ईश्वर...। आज
हम उस घटना
को याद करते
हैं जब प्रभु
येसु ने इस
दुनिया से विदा
लेते समय हमें
जो की उनका
रहस्यमय शरीर हैं, पूरी
तरह से अपने
आप को बदल
कर उनके दिव्य
शरीर के अनुरूप
बनाने का आह्वान
करते हैं। जैसा कि
आज के दूसरे
पाठ में संत
पौलुस कहते हैं - "उन्होंने कुछ
लोगों को प्रेरित, कुछ
को नबी, कुछ
को सुसमाचार-प्रचारक और
कुछ को चरवाहे
तथा आचार्य होने
का वरदान दिया। इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए
सन्तों को नियुक्त किया,
जिससे मसीह के
शरीर का निर्माण तब
तक होता रहे, जब तक हम
विश्वास तथा ईश्वर के
पुत्र के ज्ञान
में एक नहीं
हो जायें और
मसीह की परिपूर्णता के
अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।
यही है
आज के इस
पर्व का सन्देश
कि हम पवित्र
आत्मा के द्वारा
अलग - अलग वरदानों, और
कृपाओं से नवाज़े
गये हैं , हमें
अलग - अलग कार्य
करने के लिए चुना गया
है। उन्होंने कुछ लोगों को
प्रेरित, कुछ को नबी,
कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और
कुछ को चरवाहे
तथा आचार्य होने
का वरदान दिया।
कुछ को
मज़दूर, कुछ को
किसान,कुछ को
शिक्षक, कुछ को
विद्यार्थी,कुछ को डॉक्टर,कुछ को इंजिनियर, कुछ
को वैज्ञानिक,तो
कुछ को राजनेता और
कुछ को शासक,
जो पर हर
किसी के कार्य
के पीछे का
मकसद एक ही
हो - और वह
है जैसा कि
संत पौलुस कहते
हैं - इस प्रकार
उन्होंने सेवा-कार्य के
लिए सन्तों को
नियुक्त किया, जिससे मसीह
के शरीर का
निर्माण तब तक होता
रह। मसीह के शरीर
का निर्माण करते
रहना ही हमारे
मानवीय जीवन का
उद्देश्य होना चाहिए। और हमें
कब तक यह
करना है ? संत
पौलुस कहते है
तब तक - जब
तक हम विश्वास तथा
ईश्वर के पुत्र
के ज्ञान में
एक नहीं हो
जायें और मसीह
की परिपूर्णता के
अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न
कर लें।
पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त करना
हमारा जीवन का
अंतिम उद्देश्य होना
चाहिए। अभी हम अधूरे
हैं, हमारी बुद्धि
अधूरी है, हमारा
ज्ञान अधूरा है,
हमरा प्यार, हमारे
रिश्ते, हमारी भावनाएं, सब
कुछ अधूरा है।
यदि हमारा
यही हल है
तो इस लक्ष्य
को हासिल करने
में हमारी कौन
सहायता करेगा? पवित्र
आत्मा। प्रभु येसु योहन
के सुसमाचार 16:13 में कहते
हैं - "जब वह सत्य
का आत्मा आएगा,
तो तुम्हे पूर्ण
सत्य की ओर
ले जायेगा। "
प्यारे विश्वासियों, सही
मायने में येसु
के रहस्मय शरीर
के अंग बनने,
मसीह की परिपूर्णता के
अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व हासिल
करने के लिए
आइये हम खुद
को उस शक्ति
से संपन्न होने
देने के लिए
खुद को तैयार
करें जो प्रभु
येसु ने अपनी
कलीसिया के लिए प्रदान
किया है और
वह शक्ति है
पवित्र आत्मा। लूकस
24:49 में
उन्होंने प्रेरितों से कहा - देखों,
मेरे पिता ने
जिस वरदान की
प्रतिज्ञा की है, उसे
मैं तुम्हारे पास
भेजूँगा। इसलिए तुम लोग
शहर में तब
तक बने रहो,
जब तक ऊपर
की शक्ति से
सम्पन्न न हो जाओ।"
येसु के आदेश
को मानते हुए
वे स्वर्गारोहण के
बाद अटारी में
येसु की मान
मरियम के साथ
लगातार प्रार्थना व
तयारी में लगे
रहे और पेंटेकोस्ट के
दिन उस आत्मा
के अभिषेक से
भर गए। आइये हम
भी उस आत्मा
से भर जाने
के लिए खुद
को तैयार करें। Amen.
-
इसायाह ५०, ४-७ फिलिपियों २,६-७ मत्ती २६, १४-६६ येसु का येरूसलेम में प्रवेश करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह यहूदियों के पास्...
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दुःखभोग अथवा खजूर रविवार आज से वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण पुण्य सप्ताह आरंभ होता है। विशेषकर अगला गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रवि...
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आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं आज के दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु “अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्ट...