Saturday, 30 January 2016

सामान्य काल चौथा रविवार


सामान्य काल चौथा रविवार
यिरमियाह 1, 4-5, 17-19,  1 कुरिंथी 12ः31-13ः13, लूकस 4ः21-30
ख्रीस्त मे प्रिय भाईयों, बहनों एवं मेरे माता पिताओं आज माता कलिसिया हमें आमंत्रित करती हैं की हम सब ईष्वरीय प्रेम से अनुग्रहीत होकर जीवन बतायें आज के पाठों मे प्रभु हमें प्रेम का संदेष दे रहे हैं।
पवित्र बाईबल में हम पाते है की प्रभु ईष्वर हम मानवों के बिच में से कीस प्रकार से लोगों को  चुनता एवं विषष प्रकार की जिम्मेदारी उन्हें सोंपी जाती थी। प्रभु ईष्वर अबा्रहाम, माता मरियम, योहन बापतिस्ता, एवं अपने सभी षिष्यों कोें हम मानवों की मुक्ति कार्य में सहभागी बनाया हैं।
परंतु सर्वषक्तिमान ईष्वर आज हम सब कों बुलाता है ना सीर्फ उसके चुने हुए लोगों को परंतु हरएक को वह बुलाता। आज के पहले पाठ में नबी यिरमियाह के ग्र्र्रंथ  में 1ः4.5, 17.19, आज प्रभु हमसे कहते है की श्माता के गभं में तुम को रचने से पहले ही, मैंने तुम को जान लिया। तुम्हारे जन्म से पहले ही, मैंने तुम को पवित्र किया। मैने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया।
प्रभु आज कहते है की श्माता के गर्भ में तुम को रचने से पहले ही, मैंने तुम को जान लिया। जिस प्रभु ने संसार की सृष्टी की वह जानता है हमें क्योंकि वह सृष्टीकर्ता इस धरा का कर्ताधरता है।
आज के कलयुग में किसी को जानना बहुत ही कठीन कार्य  है। हम अकसर कहते है कि मैं उसे जानता हुुॅ की मेरा दोस्त कैसा है या मेरे परीवार के सदस्य कैसे है या मेरा बेटा कैसा है। दरसल सच्चाई यह की हम स्वंयम को ही आज तक नहीं जान पाये और आप कितनी भी कोषिष कर ले खुद को जानने के लिये पर आप कदापी नही जान पायेगें। क्योंकि ईष्वर ही सब जानने वाला है सब समझ ने वाला है। उससे हमारी जान पहचान अभी से नहीं है परंतु अनंत काल से है इसिलिये आज प्रभु हम से कहते है। माता  के गर्भ मे रचने ‘‘‘‘‘‘‘प्रभु से हमारा रिष्ता अनादिकाल से आज माता कलिसिया हमें आमंत्रित करती की प्रभु के द्वारा स्थापित इस रिष्ते को हम प्यार से जोडे।
इसायाह नबी के ग्रंथ 49ः15 प्रभु कहते है ’’क्या स्त्री अपना दुधमुुॅहा बच्चा भुला सकती है ्क्या वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी! यदि वह भुला भी दे तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊॅगा।
ईष्वर जानता है हमाारे अंतरतम के भावों को हमारे हर एक कार्य कों मेरे जन्म के पहले कौन सी घटनाएॅ घटी उन सबों को वो जानता है कीस प्रकार से हमारा लालन पालन हुआ वह जानता है हमारे जो भी कार्य करते है वह सदा उसकी आॅखों के सामने रहते हैं।
नबी यिरमियाह के समान ही गलातियों के नाम पत्र में संत पाॅलूस भी कहते है 1-15 ’’ईष्वर ने मुझे माता के गर्भ से ही अलग कर लिया और अपने अनुग्रह से बुलाया था’’।
प्रभु आज कह रहे है, की 1ः5 ’’मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया।’’ एक नबी प्रभु के द्वारा चुना हुआ व्यक्ति होता है, गलातियो के नाम पत्र 1-15 किन्तु ईष्वर ने मुझे माता के गर्भ से ही अलग कर लिया और अपने अनुग्रह से बुलाया था। प्रेरित - चरित 13ः47 मैंने तुम्हें  राष्ट्रों की ज्योति बना दिया है जिससे तुम्हारे द्वारा मुक्ति का संदेष पृथ्वी के सीमातों तक फैल जाये। यिरमियाह के समान ही संत पाॅलूस प्रभु के द्वारा चूने गए की प्ररित चरित 13-47 ’’मैंने तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बना दिया है, जिससे तुम्हारे द्वारा मुक्ति का संदेष पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जाये।’’
प्रभु के द्वारा जो भी कहा जाता है उसे समझ पाना वाकई मे एक रहस्य पुर्ण कार्य है। प्रभु के हर एक वचन मे कई तरह के रहस्यमयी बातें छुपी हुई है।  आज नबी यिरमियाह के ग्रंथ मे प्रभु येसु के जीवन की भविष्यवाणी की गई है। संसार के प्रारंभ से ही पिता ईष्वर येसु को जानते थे किसी को जानना अर्थात उसे प्यार करना, पिता ईष्वर का प्यार ही था जो येसु के बपतिस्मा के समय कहते है कि ’’लूकस 3ः22’’तू मेरा प्रिय पुत्र है। मैं तुझ पर अत्यंत प्रसन्न हूॅ। लूकस 9ः35  ईसा के रुपांतरण के समय  बादल में से यह वाणी सुनाई पडी, ’’यह मेरा परमप्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।’’ इसायाह नबी के ग्रंथ 61ः1
हर एक ख्रीस्तीय का कार्य है की प्रभु येसु के द्वारा बताये गए मार्ग पर चलते हुए जीवन बिताये ये रास्ता अपनाना बहुत कठीन है कहना आसान है, हमें कई प्रकार के अत्याचार सहने पडगें प्रभु स्वंम कहते है की अपना क्रूस उठा कर मेरे पिछे हो लो तिमथी के नाम दुसरे पत्र 3,12 ’’वास्तव में जो लोग मसीह के षिष्य बन कर भक्तिपूर्वक जीवन बिताना चाहेंगे, उन सबों को अत्याचार सहना ही पडेगा।’’
आज के दुसरे पाठ में हमें प्रेम की सही परिभाषा पढने को हमे मिलती है।हर एक को ईष्वर के द्वारा प्रेम का उपहार प्राप्त चाहे वह राजा हो या रंक, हर किसी को प्रेम के उपहार से अमिर बनाया है।
कोई कितना भी धार्मिक क्यों ना हो अगर उसके हृदय में प्रेम न हो तो उसकी धार्मिकता का कोई अर्थ नहीं निकलता। इस संसार में कई लोगो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है कई प्रकार की भाषा बोलते हो, कई प्रकार के कार्य करते हो लेकिन यह सब व्यर्थ साबित होगा अगर उनके हृदय में प्रेम नहीं हैं। प्रेम क्या है ईष्वर ही प्रेम है। गलातियों के पत्र मे प्रभु का वचन कहता है प्रभु हमारे हृदयों में पवित्र आत्मा भेजा है, यह प्रेम का आत्मा है जो हमे बपतिस्मा के द्वारा प्राप्त हुआ है।
योहन 3ः16 पिता ईष्वर ने संसार के प्रारंभ से ही हमें प्रेम कीया है इसी प्रेम को प्रकट करने के लिए उन्होंने अपने एक लोते पुत्र को भी अर्पित कर दिया।
प्वित्र सुसमाचार मे भी हम पाते है कि लोगों के हदय मे प्रेम का अभाव है उनके स्वयंम के रिष्तेदार उन्हें ठुकरा देते है इसिलिए आज प्रभु कहते है की अपने ही नगर मे नबी का आदर नहीं होता है। इसिलिए हर एक ख्रीस्तीय परिवार को आज चाहिए की वह प्रेम से अपने परिवार को सिंचे सच्चे प्रेम की तलाष में आज हर एक मानव भटक रहा आजकल युवा भी प्रेम की तलाष मे भटक रहे है वह ष्षादि करता है लेकिन फिर भी कुछ समय के बाद यह सोचता है कि यह मेरा सच्चा प्रेम नहीं था इसिलिए आज कल के युवा कई प्रकार की बुरी आदतों के षिकार हो जाते है। आज हम निर्णय ले कि पहले हम प्रभु के प्रेम के बंधन मे बंधे उसी के बाद ही जीवन का हर एक बंधन हर एक रिष्ता सुहावना लगेगा।

आमेन !

Thursday, 21 January 2016

वर्ष का तीसरा रविवार २४ जनवरी २०१६

वर्ष का तीसरा रविवार २४ जनवरी २०१६ 

इस्राएली लोगों को प्रभु ने अपनी चुनी हुई व निजी प्रजा बना लिया था। इनके ऊपर ईष्वर ने अपना असीम प्रेम उँडेल दिया था। पर इस प्रजा ने प्रभु के प्रेम को ठुकरा दिया व पराये दावताओं की पूजा आराधना की। तब प्रभु ने अपने लोगांे को शत्रुओं के हाथों दे दिया और ये लोग करीब पचास सालों तक अपने देष, अपने मुल्क से निर्वासित होकर बाबुल देष में बंदी व गुलाम बनाकर ले जाये गये थे। वहाँ से वापस लौटने पर शास्त्री व पुरोहित एज्ऱा इन्हें प्रभु की वाणी सुनाते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना कि जब धर्मग्रंथ खोला गया तो सारी प्रजा उठ खडी हुई। तब एज्ऱा ने प्रभु, महान ईष्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ ऊपर उठाकर उत्तर दिया, ‘‘आमेन, आमेन’’! इसके बाद वे झूककर मूँह के बल गिर पडे और प्रभु को दंडवत किया। ये लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे। वे प्रभु की वाणी को सुनकर बहुत की भावुक हो गए थे। बडे दिनों के बाद उनके लिए प्रभु की ओर से चिट्ठी मिली थी, धर्म ग्रंथ उनके लिए ईष्वर द्वारा दिया गया एक प्रेम पत्र था जिसे पढने व सुनने को ये लोग तरस रहे थे। इस दिन के विषय में नबी आमोस ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था -  ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देष में भूख भेजूँगा-रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास’’ (आमोस 8ः11) प्रभु की वाणी सुनने के लिए भूखे और प्यासे थे। और जब प्रभु की वाणी उन्हें पढकर सुनाई गई तो वे उठ खडे हुए, हाथ खडे कर ईष्वर की आराधना की व मूह के बल गिरकर प्रभु के वचन के प्रति आदर व सम्मान दिखाया। उन्हें मूसा द्वारा कहे गये ये शब्द याद आये कि ‘‘ये तुम्हारे लिए निरे शब्द नहीं है, इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है।’’ (वि.वि. 32ः47)। हम दो क्षण के लिए आँखें बंद करें व अपने घरों में रखे पवित्र बाइबल को देखें, कितनी कोपियाँ है बाइबल की हमारे घरों में, वे कहाँ पर रखीं है। किस पेटी में है? ताक में है? या फिर अल्तार पर रखी है? उसके ऊपर कितनी धूल है, उसके अन्दर हमने क्या-क्या रखा है? हम खुद से आज एक सवाल पुछंे कि हम हमारे धार्मिक ग्रंथ का कितना आदर करते हैं? क्या हम प्रभु की वाणी को सुनकर भावुक हो जाते हंै? क्या प्रभु की वाणी पढते समय हमें ये लगता है कि सचमुच प्रभु स्वयं हमसे बातें कर रहे हैं। क्या प्रभु के वचन हमारे अस्तित्व को प्रभावित करते हैं? क्या प्रभु की वाणी हमारी अंतर आत्मा को चिरने वाली दुधारी तलवार की तरह हमारे अंदर प्रवेष करती है? यदि इन सब प्रष्नों का उत्तर ‘‘नहीं’’ है, तो इसका मतलब ये हुआ कि हमने प्रभु के वचन को प्रभु द्वारा हमें लिखा गया एक प्रेम पत्र नहीं माना है। प्रभु ने अपने प्रेम का  इज़हार पवित्र बाइबल के माध्यम से किया है, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को खत लिखता है। यदि कोई किसी को प्रेम-पत्र लिखता है और सामने वाला बदले में उससे प्रेम नहीं करता है, तो वह या तो उस पत्र को पढ़ेगा ही नहीं। यदि पढेगा भी तो जो उसमें लिखा है, वह उसे प्रभावित नहीं करेगा; उसे स्पर्ष नहीं करेगा। यदि हम पवित्र बाइबल को नहीं पढ़ते या फिर पढ़ने पर भी वचन हमें प्रभावित नहीं करता, वचन हमारे दिल को नहीं छूता है तो यह साफ ज़ाहिर है कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति प्रेम की कमी है। यदि हम सचमुच में प्रभु से प्रेम करते हैं तो हम उनकी वाणी को सुनने के लिए तरसेंगे। शायद तेरे नाम फिल्म का यह गाना आप सबों ने सुना होगा तुम से मिलना बातें करना बडा अच्छा लगता है। जब कोई सच्चे दिल से प्रेम करता है। तो ऐसा होता है। उससे मिलना व बातें करना बडा अच्छा लगता है। क्या इस प्रकार के भाव पवित्र बाइबल पढने के लिए हमारे मन में आते हैं। जिस तरह से ये प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए ये गीत गाता है, क्या हम प्रभु के लिए ऐसे ही गा सकते हैं - ‘‘बाइबल खोलना, और वचन पढना बडा अच्छा लगता है, क्या है ये क्यों है जो भी हो हाँ मगर बडा अच्छा लगता है।’’ यदि ऐसा नहीं है तो हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति पे्रम की कमी है। हम प्रभु को बस दुख के समय पुकारते हैं। उस समय उनसे कहते हैं प्रभु मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तू मेरी परेषानी को दूर कर। हम घूटने टेकते हैं, मिस्सा चढाते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हंै। और फिर आफत टलने पर प्रभु को फिर भूल जाते हैं। यह कोई प्यार नहीं। यह बस धोखा है प्रभु के प्रति। लेकिन हम प्रभु को कभी धोखा नहीं दे सकते।
मंै ये सब किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं कह रहा। परन्तु इसलिए कह रहा हूँ कि हम सब प्रभु के प्रेम को समझें। एक तरफा प्यार में कोई मज़ा नहीं। यदि प्रभु हमसे प्रेम करते हैं तो हमें भी उनसे वैसे ही प्यार करना चाहिए। और यदि हम प्रभु से सच्चे हृदय से प्यार करेंगे तो हम उनकी वाणी को सुनने, उसके वचनों को पढने के लिए तरसेंगे। प्रभु की वाणी हमारे हृदयों का स्पर्ष करेगी और हम उनकी वाणी पर कान देकर उनकी मरज़ी के अनुसार आचरण करेंगे।
विधि विवरण ग्रंथ 6ः6 में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ, वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।’’ और विवि 11ः18-21 में वचन कहता है ’’तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निषानी के तौर पर अपने हाथ में और षिरोबन्द की तरह अपने मस्त्क पर बाँधे रखो। इन्हें अपने बाल- बच्चों को सिखाते रहो और तुम चाहे घर में रहो, चाहे यात्रा करो- सोते-जागते समय इनका मनन करते रहो। तुम इन्हें अपने घरों की चैखट और अपने फाटकों पर लिख दो।’’
क्योंकि ’’ये हमारे लिए निरे शब्द नहीं इन पर हमारा हमारा जीवन निर्भर है’’ (वि.वि. 32ः47)। मत्ती 4ः4में वचन कहाता है - ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से नहीं जीता, वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।’’ प्रभु का वचन ही हमारे जीवन का वास्तविक स्रोत है। हमारे प्रोटेस्टेंट भाई-बहन शायद इस बात को हमसे ज्यादा समझते हैं। उन्हें पवित्र बाइबल के कई वचन मुह जबानी याद होते हैं। हम वचन को जितना अधिक पढेंगे, जितना अधिक उस पर मनन करेंगे, हम ईष्वर को व अपने-आपको अधिक गहराई से समझेंगे। हम हमारे जीवन का राज समझ जायेंगे; हमारे जीवन का मकसद हम पर प्रकट हो जायेगा; हम प्रभु के करीबी हो जायेंगे; हमें स्वर्ग की रोहें साफ-साफ नज़र आने लगेंगी; तब हम इस दुनियाई, खोखलेपन, भौतिक सुखों व सांँसारिक माया-मोह से ऊपर उठकर ईष्वर की व स्वर्ग की बातें सोचेंगे, हम एक अर्थपूर्ण व सच्चा मसीही जीवन जीयेंगे।
प्रभु के वचन में ही हमारा सब कुछ निहित है। एक बार चख कर तो देखो, प्रभु कितना मधूर है। (स्तोत्र 34ः8) नबी एज़ेकिएल को एक दिव्य दर्षन में प्रभु का वचन दिया गया और कहा गया -‘‘मानवपुत्र! मैं जो पुस्तक तुम्हें दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो।’’ नबी कहते हैं - ‘‘मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।’’
आईये हम प्रभु के वचन के प्रति हमारे दिलों में प्यार जगायें। रोज़ प्रभु के वचनों को हमारे घरों में पढें व उस पर मनन चिंतन करें तथा उनपर आधारित जीवन व्यतित करें। यही प्रभु की मरजी है। यही प्रभु की ख्वहीष है, हम सब के लिए। जब हम ऐसा करेंगे तो हम पवित्र कलीसिया में एक ही शरीर के अंगों के रूप में जीवन बितायेंगे। आज दूसरा पाठ हमसे कहता है कि हम सब एक ही शरीर के अंग है। हमारे शरीर के किसी भी अंग में परेषानी या पीडा होती है तो सारा शरीर उस पीडा व दर्द में भाग लेता है। वैसे ही जब हम प्रभु के वचनों पर चलेंगे, तो हमारे भाई का दर्द मेरा दर्द होगा; सिरिया में गला रेतकर मारे गये लोगों का दर्द में अपने शरीर में अनुभव करूँगा; कंधमाल में यातना सहने वाले भाईयों और बहनों की पीडा मेरी पीडा बन जायेगी। प्रभु के मार्ग से भटकते किसी भी विष्वासी की मुझे वैसे ही चिंता होगी जैसे मैं अपने स्वयं की चिंता करता हूँ। यह कलीसिया की एकरूपता व सच्चा भात्र प्रेम सिर्फ प्रभु के वचनों को पढने, सुनने व उनको हमारे जीवन में उतारने पर ही आयेगा। 

आमेन।      
  











Thursday, 14 January 2016

वर्ष का दूसरा इतवार

र्ष का दूसरा इतवार
इसा - 62ः1-5
1 कुरि - 12ः4-11
योहन - 2ः1-12  


पिछले सप्ताह हमने प्रभु येसु के बपपिस्मा का पर्व मनाया। यर्दन नदी में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा ग्रहण करने के बाद प्रभु येसु अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ करते हैं। अब तक वे अपने माता-पिता के साथ उनके कार्यों में हाथ बंँटा रहे थे। लेकिन अब से वे अपने स्वर्गीक पिता के कार्यों को प्रारम्भ करते हैं जिसके लिए वे इस जग में आये थे। आज प्रभु येसु, काना के विवाह भोज में अपनी सेवकाई के कार्य का पहला चमत्कार दिखाकर अपनी ईष्वरीय महीमा प्रकट करते हैं।
काना के विवाह भोज में उपस्थित होकर प्रभु येसु ने विवाह के प्रतिष्ठान को पवित्र कर दिया। उन्होंने विवाह को एक पवित्र संस्कार की गरीमा प्रदान की। काना के विवाह में प्रभु येसु की उपस्थिति यह दर्षाती है कि हर एक ख्रीस्तीय विवाह में प्रभु स्वयं उपस्थित होते हैं। और प्रभु जीवन भर हमारे वैवाहिक जीवन में, हमारे पारिवारिक जीवन में हमारे साथ रहना चाहते हैं। क्या हम प्रभु को हमारे परिवारों में हमारे वैवाहिक जीवन में आमंत्रित करते हैं? उन्हें हमारे घरों में जगह देते हैं? यदि हम प्रभु को हमारे साथ रहने देंगे तो प्रभु हमारे जीवन में भी चमत्कार करेंगे जैसे कि आज के सुसमाचार में प्रभु काना के विवाह में करते हैं।
काना के विवाह के चमत्कार में माता मरियम की भूमिका बहुत ही अहम है। यहूदी प्रथा के अनुसार अंगुरी के बिना कोई शादी नहीं होती थी। ऐसे में अंगूरी का खत्म हो जाना उस परिवार के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था। यहाँ उनके मान-सम्मान का सवाल था। समाज में उनकी बेइज्जती होने वाली थी। लोगों के सामने उन्हें नीचा देखना पडता। माँ मरियम को ये बात पता चलती है। उनकी परेषानी को भाँपकर वे अपने बेटे के पास चली जाती है। और जाकर कहती हैं - ‘‘उन लोगों के पास अंगूरी नहीं रह गयी है।’’ माँ मरियम ने अब तक अपने बेटे को कोई चमत्कार करते तो नहीं देखा था। 30 सालों तक वो बस एक साधारण इंसान की तरह उनके अधीन रहा था। फिर माता मरियम के पास इतना विष्वास कहाँ से आया कि वो सीधे अपने बेटे के पास जाकर कहती है कि उनके पास अंगूरी समाप्त हो गयी है और यह उम्मिद करती है कि वो कोई चमत्कार करके अंगूरी बना देगा? माता मरियम ने स्वर्गदूत के संदेष पर विष्वास किया था कि वो ईष्वर की माता बनने वाली है; एलिज़बेथ ने उनसे कहा था - ‘‘मुझे ये सौभाग्य कैसे मिला कि मेरे प्रभु की माँ मुझसे मिलने आयी।’’ धर्मी सिमियोन तथा अन्ना की बातें जो उन्होंने प्र्रभु येसु के बारे में कही थीं व स्वयं प्रभु येसु के वचन जब वे मंदिर में 12 साल की आयु में खो गये थे; उन्होंने कहा था कि क्या तुमको यह पता नहीं था कि मैं मेरे पिता के घर में होऊगा। संत लूकस हमसे कहते हैं कि ‘‘माता मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा व उन पर मनन-ंिचंतन किया करती थी’’ उन्हें पता था कि उनका बेटा सचमुच में ईष पुत्र है। इसलिए उन्हें विष्वास था कि वह कुछ भी कर सकता है। माँ का विष्वास बहुत ही दृढ था, पक्का था।  प्रभु येसु उन्हें जवाब देते हैं कि आपको और मुझको इससे क्या? याने अंगूरी खत्म हो गयी तो आप क्यों चिंता कर रही हैं। घर वाले व्यवस्था करेंगे, हम तो मेहमान हैं। और मेरा समय भी अभी नहीं आया है। इसको पढकर ऐसा लगता है कि प्रभु येसु उस दिन चमत्कार करने की मंषा नहीं थी। एक ओर उन्हें ये अच्छी तरह से पता था कि वे स्वयं ईष्वर हैं और वे यह कर सकते हैं लेकिन उनका समय नहीं आया था। वहीं दूसरी ओर जिस नारी ने उनसे विनती की थी, वह वही नारी थी जिसने उन्हें मनुष्य रूप दिया था। यह वही नारी है जिसने ईष पुत्र को नौ महिने तक अपने गर्भ में धारण किया था। यह वही माँ है जिसने प्रभु येसु को बचपन से लेकर बढ़े होने तक अपने हाथों से खिलाया - पिलाया; यह वही माँ है जिसकी ममता के अंाँचल में दुनिया का मुक्तिदाता बढा हुआ था। इसलिए प्रभु येसु, माँ की माँग को ठूकरा नहीं पाये। आज भी वे ऐसा ही करते हैं। जब कभी माँ मरियम हम बच्चों की प्रार्थनायें लेकर अपने बेटे के पास जाती हैं वह उन्हें सुन लेता है। वो हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। माँ मरिमय ने जो काम काना के विवाह में किया था वो आज भी जारी रखती है। वो नित्य हमारे लिए अपने बेटे के सम्मुख प्रार्थना करती रहती है।

प्रभु माँ मरियम से कहते हैं कि इससे मुझे और आपको क्या, मेरा समय नहीं आया है।  परन्तु इस पर माँ मरियम निराष नहीं होती हताष नहीं होती उन्हें पूरा विष्वास था इसलिए वह जाकर सेवकोें से कहती हैं - जैसा वो तुमसे कहते हंै वैसा ही करो। माँ की प्रार्थना व इस दृढ विष्वास के सामने प्रभु स्वयं को रोक नहीं पाये व उन्होंने अपना पहला चमत्कार दिखाया। उन्होंने पानी को अंगूरी में बदल दिया। माँ मरियम हम सब से भी आज यही कह रही हैं। जैसा प्रभु येसु कहते हैं वैसा ही करो। जिहाँ प्यारे भाईयों और बहनों, जब हम जैसा प्रभु येसु हमसे कहते हैं वैसा करेंगे तो हमारे जीवन में भी चमत्कार होंगे चिंन्ह होंगे। हम हमारे जीवन मे,ं हमारे परिवारों में, हमारे कामों में, हमारी पढाई चमत्कार देंखेंगे। बस हमें वही करना है जैसा प्रभु हम से कहते हैं। प्रभु हमसे क्या कहते हैं, वे हमसे क्या चाहते हैं ये हमें कैसे पता चलेगा? वचन से!! पवित्र बाइबल से!!! जब हम प्रभु के वचनों को पढेंगे तो हमें पता चलेगा कि प्रभु हमसे क्या चाहते हैं, प्रभु हमें क्या कह रहे हैं। जब हम हमारी दैनिक प्रार्थनाओं में प्रभु से बातें करेंगे तो हमें पता चलेगा कि प्रभु हमसे क्या कह रहे हैं। यदि हम हमारे जीवन में प्रभु की महिमा देखना चाहते हैं। चिन्ह और चमत्कार देखना चाहते हैं तो जैसा प्रभु हमसे कहता है वैसा ही करना बहुत ही ज़रूरी है। कई बार हम अन्य लोगों के जीवन में चमत्कार होते देखते व सुनते हैं लेकिन हमारे जीवन में कुछ नहीं होता। क्यांेकि हम जैसा प्रभु हमसे कहते हंै वैसा नहीं करते। परन्तु जैसा हम चाहते हैं वैसा करते हैं; हम हमारी मरज़ी करते हैं। 
आईये हम प्रभु येसु और माँ मरियम को हमारे परिवारों में आमंत्रित करें। परिवारों में नित्य रोज़री माला विनती बोलें, प्रभु के वचनों को पढें उन पर मनन चिंतन करें। व प्रभु हमसे जो कहते हैं वैसा ही हम करेें।
आमेन।


Thursday, 7 January 2016

प्रभु के बपतिस्मा का पर्व १०-०१-२०१६


इसायस         ४२ रू१.४ए६.७ 
प्रे च               १०य३४.३८ 
लुक                ३रू१५.१६ए  

आज हम हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के बपतिस्मा का पर्व मना रहे हैं। हर साल प्रभु के बपतिस्मा के साथ ख्रीस्त जंयती काल समाप्त होता है और हम साधारण पूजनविधी में प्रवेष करते हैं। पवित्र सुसमाचार में प्रभु के जन्म व बाल्यकाल के बारे हम थोडा ही वर्णन पाते हैं। पवित्र सुसमाचार उनके बारह से तीस साल तक के जीवन के बारे में हमें कुछ भी नहीं बताता। संत लूकस इसके बारे में सिर्फ इतना कहते हैं कि ‘‘ईसा अपने माता-पिता के साथ नाज़रेत गये व उनके अधीन रहे।’’ याने उन्हेंने 18 साल का अपना जीवन अपने माता-पिता के साथ बिताया, उनके अधीन रहकर, उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए व उनके दैनिक कार्यों में उनकी मदद करते हुए। इसके बाद तीस वर्ष की आयु होने पर वे अपना घर व माता-पिता को छोडकर जिस मिषन को व जिस उद्देष्य को लेकर इस संसार में आये थे उसे पूरा करने के लिए चल पडते हैं। सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने स्वयं को प्रकट करने के पहले वे यर्दन नदी की ओर जाते हैं जहाँ पर योहन बपतिस्ता लोगों को पाप क्षमा का बपतिस्मा दे रहा था। प्रभु स्वयं वहाँ लागों की भीड में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लेने के लिए पानी में उतरते हैं। पवित्र त्रित्व का दूसरा व्यक्ति, इस दुनिया का सृष्टीकर्ता, अनादिकाल से पिता के साथ विद्यमान वचन आज यर्दन नदी में योहन के सामने अपना सिर झूकाकर उनसे बपतिस्मा ग्रहण कर रहा हैं। यह वही योहन बपतिस्ता है जिसने लोगों से प्रभु के विषय में कहा था कि मेरे बाद जो आने वाला है वो मुझसे इतना महान है कि मैं झूककर उसके जूते का फिता खोलने के लायक भी नहीं हूँ (मत्ती 3ः11, योहन 1ः27); लेकिन आज उसी योहन बपतिस्ता के सामने प्रभु अपना सिर झूकाकर बपतिस्मा ग्रहण करते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी बपतिस्मा की ज़रूरत नहीं थी। वे तो निष्पाप थे परन्तु फिर भी वे पापियों की कतार में हम सब पापियों का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ खडे थे। वे अपने निजी पापों के लिए नहीं हमारे पापों के पश्चताप हेतु वहाँ खडे थे। उन्होंने हमारे जैसा मानवीय स्वभाव धारण किया व हम पापियों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने हम सबों के पापों को अपने ऊपर ले लिया। संत योहन के सुसमाचार अध्याय 1ः29 में जब योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते हुए देखता है तो अपने षिष्यों से कहता है - ‘‘देखो-ईष्वर का मेमना जो संसार के पाप हरता है।’’ जि हाँ, प्रभु येसु वह मेमना है जिसके ऊपर पिता ने सारे संसार के पापों को लाद दिया है। नबी इसायस 52ः6 में वचन कहता है- ‘‘हम सब अपना-अपना रास्ता पकड कर भेडों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सबों के पापों का भार डाल दिया है।’’ इसलिए प्रभु यर्दन नदी के पानी में हम सब के पापों को लेकर खडे थे। उन्हांने इसके साथ अपने उस मुक्ति कार्य को प्रारम्भ किया जिसके लिए वे इस संसार में आये थे। यह बपतिस्मा तो बस एक प्रतीक व शुरूआत थी उस महान मुक्ति कार्य की जिसे पूरा करने के लिए प्रभु व्याकुल थे। संत लूकस के सुसमाचार 12ः50 में प्रभु कहते हैं -‘‘मुझे एक (और) बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ’’। यर्दन नदी में जो प्रतिकात्मक रूप में प्रारम्भ हुआ उसे प्रभु ने कलवारी पर अपने बलिदान द्वारा पूर्ण किया। वहाँ पर सचमुच बली का एक मेमना बनकर उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर  ले लिया। इसी रक्त के बपतिस्मा लिए वे व्याकुल थे। संत पेत्रुस हमसे कहते हैं कि - ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को कू्रस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें’’ (1पेत्रुस 2ः24)।
प्रभु ने यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण करके बपतिस्मा के जल को पवित्र कर दिया है। और हमारे लिए स्वर्ग का द्वार फिर से खोल दिया है। पुराने विधान में योषुआ के ग्रंथ में हम पढते हैं कि इस्राएली लोग मिश्र की गुलामी से आज़ाद होकर प्रतिज्ञात देष में प्रवेष कर रहे थे उस समय उनको यर्दन नदी को पार करना था। उस समय योषुआ ने प्रभु के विधान की मंजुषाधारी पुरोहितों को नदी के बीचों-बीच खडा कर दिया और नदी का पानी एक बाँध की तरह रूक गया और इस्राएलियों ने सुखे पाँव नदी को पार किया था। आज प्रभु उसी यर्दन नदी के बीचों बीच खडे हैं नये विधान की मंजूषा बनकर। आज वो हमसे यही चाहते हैं कि हम  भी बपतिस्मा द्वारा हमारी पापमय दासता से मुक्त होकर सूखे पाँव इस लोक से स्वर्ग लोग की ओर गमन करें। जब तक सारे इस्राएली यर्दन के उस पार नहीं चले गये तब तक प्रभु के विधान की मंजूषा वहीं पर नदी के बीच में रही। प्रभु येसु नये विधान की मंजूषा के रूप में हम सब का इंतज़ार करते हुवे यर्दन नदी की बीचों बीच खडे रहते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना है कि वह न तो थकता न हिम्मत हारता है, जब तक वह पृथ्वी पर धार्मिकता की स्थापना न कर दे। याने जब तक हम यर्दन के उस पार न निकल जायें, जब तक हम मुक्ति प्राप्त न कर लें प्रभु हमारी मुक्ति का कार्य जारी रखता है।

प्रभु हर एक इंसान को अपने इस मुक्ति कार्य मंें सम्मिलित करना चाहता है। वे चाहते हैं कि हर कोई उद्धार पाये, मुक्ति पाये और बच जाये। आज के दूसरे पाठ में वचन हमसे कहता है- ‘‘ईष्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, वह ईष्वर पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करता है, तो वह ईष्वर का कृपापात्र बन जाता है।’’ याने यर्दन पार कर प्रतिज्ञात देष में जाने के लिए, मुक्ति पाने के लिए, व प्रभु के कृपापात्र बनने के लिए हमें उन पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करने की ज़रूरत है। आईये तो हम हमारी अधर्म की राहों को छोडें, पाप की राहों को छोडें, शैतान का व उसके सारे प्रपचों का परित्याग करें, सारे कुकर्मों का परित्याग करें व पवित्र त्रियेक ईष्वर पर अपने अटूट विष्वास में दृढ बने रहें  जिसे हमने हमारे बपतिस्मा के समय स्वीकार किया था।