वर्ष का तीसरा रविवार २४ जनवरी २०१६
इस्राएली लोगों को प्रभु ने अपनी चुनी हुई व निजी प्रजा बना लिया था। इनके ऊपर ईष्वर ने अपना असीम प्रेम उँडेल दिया था। पर इस प्रजा ने प्रभु के प्रेम को ठुकरा दिया व पराये दावताओं की पूजा आराधना की। तब प्रभु ने अपने लोगांे को शत्रुओं के हाथों दे दिया और ये लोग करीब पचास सालों तक अपने देष, अपने मुल्क से निर्वासित होकर बाबुल देष में बंदी व गुलाम बनाकर ले जाये गये थे। वहाँ से वापस लौटने पर शास्त्री व पुरोहित एज्ऱा इन्हें प्रभु की वाणी सुनाते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना कि जब धर्मग्रंथ खोला गया तो सारी प्रजा उठ खडी हुई। तब एज्ऱा ने प्रभु, महान ईष्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ ऊपर उठाकर उत्तर दिया, ‘‘आमेन, आमेन’’! इसके बाद वे झूककर मूँह के बल गिर पडे और प्रभु को दंडवत किया। ये लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे। वे प्रभु की वाणी को सुनकर बहुत की भावुक हो गए थे। बडे दिनों के बाद उनके लिए प्रभु की ओर से चिट्ठी मिली थी, धर्म ग्रंथ उनके लिए ईष्वर द्वारा दिया गया एक प्रेम पत्र था जिसे पढने व सुनने को ये लोग तरस रहे थे। इस दिन के विषय में नबी आमोस ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था - ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देष में भूख भेजूँगा-रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास’’ (आमोस 8ः11) प्रभु की वाणी सुनने के लिए भूखे और प्यासे थे। और जब प्रभु की वाणी उन्हें पढकर सुनाई गई तो वे उठ खडे हुए, हाथ खडे कर ईष्वर की आराधना की व मूह के बल गिरकर प्रभु के वचन के प्रति आदर व सम्मान दिखाया। उन्हें मूसा द्वारा कहे गये ये शब्द याद आये कि ‘‘ये तुम्हारे लिए निरे शब्द नहीं है, इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है।’’ (वि.वि. 32ः47)। हम दो क्षण के लिए आँखें बंद करें व अपने घरों में रखे पवित्र बाइबल को देखें, कितनी कोपियाँ है बाइबल की हमारे घरों में, वे कहाँ पर रखीं है। किस पेटी में है? ताक में है? या फिर अल्तार पर रखी है? उसके ऊपर कितनी धूल है, उसके अन्दर हमने क्या-क्या रखा है? हम खुद से आज एक सवाल पुछंे कि हम हमारे धार्मिक ग्रंथ का कितना आदर करते हैं? क्या हम प्रभु की वाणी को सुनकर भावुक हो जाते हंै? क्या प्रभु की वाणी पढते समय हमें ये लगता है कि सचमुच प्रभु स्वयं हमसे बातें कर रहे हैं। क्या प्रभु के वचन हमारे अस्तित्व को प्रभावित करते हैं? क्या प्रभु की वाणी हमारी अंतर आत्मा को चिरने वाली दुधारी तलवार की तरह हमारे अंदर प्रवेष करती है? यदि इन सब प्रष्नों का उत्तर ‘‘नहीं’’ है, तो इसका मतलब ये हुआ कि हमने प्रभु के वचन को प्रभु द्वारा हमें लिखा गया एक प्रेम पत्र नहीं माना है। प्रभु ने अपने प्रेम का इज़हार पवित्र बाइबल के माध्यम से किया है, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को खत लिखता है। यदि कोई किसी को प्रेम-पत्र लिखता है और सामने वाला बदले में उससे प्रेम नहीं करता है, तो वह या तो उस पत्र को पढ़ेगा ही नहीं। यदि पढेगा भी तो जो उसमें लिखा है, वह उसे प्रभावित नहीं करेगा; उसे स्पर्ष नहीं करेगा। यदि हम पवित्र बाइबल को नहीं पढ़ते या फिर पढ़ने पर भी वचन हमें प्रभावित नहीं करता, वचन हमारे दिल को नहीं छूता है तो यह साफ ज़ाहिर है कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति प्रेम की कमी है। यदि हम सचमुच में प्रभु से प्रेम करते हैं तो हम उनकी वाणी को सुनने के लिए तरसेंगे। शायद तेरे नाम फिल्म का यह गाना आप सबों ने सुना होगा तुम से मिलना बातें करना बडा अच्छा लगता है। जब कोई सच्चे दिल से प्रेम करता है। तो ऐसा होता है। उससे मिलना व बातें करना बडा अच्छा लगता है। क्या इस प्रकार के भाव पवित्र बाइबल पढने के लिए हमारे मन में आते हैं। जिस तरह से ये प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए ये गीत गाता है, क्या हम प्रभु के लिए ऐसे ही गा सकते हैं - ‘‘बाइबल खोलना, और वचन पढना बडा अच्छा लगता है, क्या है ये क्यों है जो भी हो हाँ मगर बडा अच्छा लगता है।’’ यदि ऐसा नहीं है तो हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति पे्रम की कमी है। हम प्रभु को बस दुख के समय पुकारते हैं। उस समय उनसे कहते हैं प्रभु मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तू मेरी परेषानी को दूर कर। हम घूटने टेकते हैं, मिस्सा चढाते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हंै। और फिर आफत टलने पर प्रभु को फिर भूल जाते हैं। यह कोई प्यार नहीं। यह बस धोखा है प्रभु के प्रति। लेकिन हम प्रभु को कभी धोखा नहीं दे सकते।
मंै ये सब किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं कह रहा। परन्तु इसलिए कह रहा हूँ कि हम सब प्रभु के प्रेम को समझें। एक तरफा प्यार में कोई मज़ा नहीं। यदि प्रभु हमसे प्रेम करते हैं तो हमें भी उनसे वैसे ही प्यार करना चाहिए। और यदि हम प्रभु से सच्चे हृदय से प्यार करेंगे तो हम उनकी वाणी को सुनने, उसके वचनों को पढने के लिए तरसेंगे। प्रभु की वाणी हमारे हृदयों का स्पर्ष करेगी और हम उनकी वाणी पर कान देकर उनकी मरज़ी के अनुसार आचरण करेंगे।
विधि विवरण ग्रंथ 6ः6 में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ, वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।’’ और विवि 11ः18-21 में वचन कहता है ’’तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निषानी के तौर पर अपने हाथ में और षिरोबन्द की तरह अपने मस्त्क पर बाँधे रखो। इन्हें अपने बाल- बच्चों को सिखाते रहो और तुम चाहे घर में रहो, चाहे यात्रा करो- सोते-जागते समय इनका मनन करते रहो। तुम इन्हें अपने घरों की चैखट और अपने फाटकों पर लिख दो।’’
क्योंकि ’’ये हमारे लिए निरे शब्द नहीं इन पर हमारा हमारा जीवन निर्भर है’’ (वि.वि. 32ः47)। मत्ती 4ः4में वचन कहाता है - ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से नहीं जीता, वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।’’ प्रभु का वचन ही हमारे जीवन का वास्तविक स्रोत है। हमारे प्रोटेस्टेंट भाई-बहन शायद इस बात को हमसे ज्यादा समझते हैं। उन्हें पवित्र बाइबल के कई वचन मुह जबानी याद होते हैं। हम वचन को जितना अधिक पढेंगे, जितना अधिक उस पर मनन करेंगे, हम ईष्वर को व अपने-आपको अधिक गहराई से समझेंगे। हम हमारे जीवन का राज समझ जायेंगे; हमारे जीवन का मकसद हम पर प्रकट हो जायेगा; हम प्रभु के करीबी हो जायेंगे; हमें स्वर्ग की रोहें साफ-साफ नज़र आने लगेंगी; तब हम इस दुनियाई, खोखलेपन, भौतिक सुखों व सांँसारिक माया-मोह से ऊपर उठकर ईष्वर की व स्वर्ग की बातें सोचेंगे, हम एक अर्थपूर्ण व सच्चा मसीही जीवन जीयेंगे।
प्रभु के वचन में ही हमारा सब कुछ निहित है। एक बार चख कर तो देखो, प्रभु कितना मधूर है। (स्तोत्र 34ः8) नबी एज़ेकिएल को एक दिव्य दर्षन में प्रभु का वचन दिया गया और कहा गया -‘‘मानवपुत्र! मैं जो पुस्तक तुम्हें दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो।’’ नबी कहते हैं - ‘‘मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।’’
आईये हम प्रभु के वचन के प्रति हमारे दिलों में प्यार जगायें। रोज़ प्रभु के वचनों को हमारे घरों में पढें व उस पर मनन चिंतन करें तथा उनपर आधारित जीवन व्यतित करें। यही प्रभु की मरजी है। यही प्रभु की ख्वहीष है, हम सब के लिए। जब हम ऐसा करेंगे तो हम पवित्र कलीसिया में एक ही शरीर के अंगों के रूप में जीवन बितायेंगे। आज दूसरा पाठ हमसे कहता है कि हम सब एक ही शरीर के अंग है। हमारे शरीर के किसी भी अंग में परेषानी या पीडा होती है तो सारा शरीर उस पीडा व दर्द में भाग लेता है। वैसे ही जब हम प्रभु के वचनों पर चलेंगे, तो हमारे भाई का दर्द मेरा दर्द होगा; सिरिया में गला रेतकर मारे गये लोगों का दर्द में अपने शरीर में अनुभव करूँगा; कंधमाल में यातना सहने वाले भाईयों और बहनों की पीडा मेरी पीडा बन जायेगी। प्रभु के मार्ग से भटकते किसी भी विष्वासी की मुझे वैसे ही चिंता होगी जैसे मैं अपने स्वयं की चिंता करता हूँ। यह कलीसिया की एकरूपता व सच्चा भात्र प्रेम सिर्फ प्रभु के वचनों को पढने, सुनने व उनको हमारे जीवन में उतारने पर ही आयेगा।
आमेन।
इस्राएली लोगों को प्रभु ने अपनी चुनी हुई व निजी प्रजा बना लिया था। इनके ऊपर ईष्वर ने अपना असीम प्रेम उँडेल दिया था। पर इस प्रजा ने प्रभु के प्रेम को ठुकरा दिया व पराये दावताओं की पूजा आराधना की। तब प्रभु ने अपने लोगांे को शत्रुओं के हाथों दे दिया और ये लोग करीब पचास सालों तक अपने देष, अपने मुल्क से निर्वासित होकर बाबुल देष में बंदी व गुलाम बनाकर ले जाये गये थे। वहाँ से वापस लौटने पर शास्त्री व पुरोहित एज्ऱा इन्हें प्रभु की वाणी सुनाते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना कि जब धर्मग्रंथ खोला गया तो सारी प्रजा उठ खडी हुई। तब एज्ऱा ने प्रभु, महान ईष्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ ऊपर उठाकर उत्तर दिया, ‘‘आमेन, आमेन’’! इसके बाद वे झूककर मूँह के बल गिर पडे और प्रभु को दंडवत किया। ये लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे। वे प्रभु की वाणी को सुनकर बहुत की भावुक हो गए थे। बडे दिनों के बाद उनके लिए प्रभु की ओर से चिट्ठी मिली थी, धर्म ग्रंथ उनके लिए ईष्वर द्वारा दिया गया एक प्रेम पत्र था जिसे पढने व सुनने को ये लोग तरस रहे थे। इस दिन के विषय में नबी आमोस ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था - ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देष में भूख भेजूँगा-रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास’’ (आमोस 8ः11) प्रभु की वाणी सुनने के लिए भूखे और प्यासे थे। और जब प्रभु की वाणी उन्हें पढकर सुनाई गई तो वे उठ खडे हुए, हाथ खडे कर ईष्वर की आराधना की व मूह के बल गिरकर प्रभु के वचन के प्रति आदर व सम्मान दिखाया। उन्हें मूसा द्वारा कहे गये ये शब्द याद आये कि ‘‘ये तुम्हारे लिए निरे शब्द नहीं है, इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है।’’ (वि.वि. 32ः47)। हम दो क्षण के लिए आँखें बंद करें व अपने घरों में रखे पवित्र बाइबल को देखें, कितनी कोपियाँ है बाइबल की हमारे घरों में, वे कहाँ पर रखीं है। किस पेटी में है? ताक में है? या फिर अल्तार पर रखी है? उसके ऊपर कितनी धूल है, उसके अन्दर हमने क्या-क्या रखा है? हम खुद से आज एक सवाल पुछंे कि हम हमारे धार्मिक ग्रंथ का कितना आदर करते हैं? क्या हम प्रभु की वाणी को सुनकर भावुक हो जाते हंै? क्या प्रभु की वाणी पढते समय हमें ये लगता है कि सचमुच प्रभु स्वयं हमसे बातें कर रहे हैं। क्या प्रभु के वचन हमारे अस्तित्व को प्रभावित करते हैं? क्या प्रभु की वाणी हमारी अंतर आत्मा को चिरने वाली दुधारी तलवार की तरह हमारे अंदर प्रवेष करती है? यदि इन सब प्रष्नों का उत्तर ‘‘नहीं’’ है, तो इसका मतलब ये हुआ कि हमने प्रभु के वचन को प्रभु द्वारा हमें लिखा गया एक प्रेम पत्र नहीं माना है। प्रभु ने अपने प्रेम का इज़हार पवित्र बाइबल के माध्यम से किया है, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को खत लिखता है। यदि कोई किसी को प्रेम-पत्र लिखता है और सामने वाला बदले में उससे प्रेम नहीं करता है, तो वह या तो उस पत्र को पढ़ेगा ही नहीं। यदि पढेगा भी तो जो उसमें लिखा है, वह उसे प्रभावित नहीं करेगा; उसे स्पर्ष नहीं करेगा। यदि हम पवित्र बाइबल को नहीं पढ़ते या फिर पढ़ने पर भी वचन हमें प्रभावित नहीं करता, वचन हमारे दिल को नहीं छूता है तो यह साफ ज़ाहिर है कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति प्रेम की कमी है। यदि हम सचमुच में प्रभु से प्रेम करते हैं तो हम उनकी वाणी को सुनने के लिए तरसेंगे। शायद तेरे नाम फिल्म का यह गाना आप सबों ने सुना होगा तुम से मिलना बातें करना बडा अच्छा लगता है। जब कोई सच्चे दिल से प्रेम करता है। तो ऐसा होता है। उससे मिलना व बातें करना बडा अच्छा लगता है। क्या इस प्रकार के भाव पवित्र बाइबल पढने के लिए हमारे मन में आते हैं। जिस तरह से ये प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए ये गीत गाता है, क्या हम प्रभु के लिए ऐसे ही गा सकते हैं - ‘‘बाइबल खोलना, और वचन पढना बडा अच्छा लगता है, क्या है ये क्यों है जो भी हो हाँ मगर बडा अच्छा लगता है।’’ यदि ऐसा नहीं है तो हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि हमारे दिल में प्रभु के प्रति पे्रम की कमी है। हम प्रभु को बस दुख के समय पुकारते हैं। उस समय उनसे कहते हैं प्रभु मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तू मेरी परेषानी को दूर कर। हम घूटने टेकते हैं, मिस्सा चढाते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हंै। और फिर आफत टलने पर प्रभु को फिर भूल जाते हैं। यह कोई प्यार नहीं। यह बस धोखा है प्रभु के प्रति। लेकिन हम प्रभु को कभी धोखा नहीं दे सकते।
मंै ये सब किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं कह रहा। परन्तु इसलिए कह रहा हूँ कि हम सब प्रभु के प्रेम को समझें। एक तरफा प्यार में कोई मज़ा नहीं। यदि प्रभु हमसे प्रेम करते हैं तो हमें भी उनसे वैसे ही प्यार करना चाहिए। और यदि हम प्रभु से सच्चे हृदय से प्यार करेंगे तो हम उनकी वाणी को सुनने, उसके वचनों को पढने के लिए तरसेंगे। प्रभु की वाणी हमारे हृदयों का स्पर्ष करेगी और हम उनकी वाणी पर कान देकर उनकी मरज़ी के अनुसार आचरण करेंगे।
विधि विवरण ग्रंथ 6ः6 में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ, वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।’’ और विवि 11ः18-21 में वचन कहता है ’’तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निषानी के तौर पर अपने हाथ में और षिरोबन्द की तरह अपने मस्त्क पर बाँधे रखो। इन्हें अपने बाल- बच्चों को सिखाते रहो और तुम चाहे घर में रहो, चाहे यात्रा करो- सोते-जागते समय इनका मनन करते रहो। तुम इन्हें अपने घरों की चैखट और अपने फाटकों पर लिख दो।’’
क्योंकि ’’ये हमारे लिए निरे शब्द नहीं इन पर हमारा हमारा जीवन निर्भर है’’ (वि.वि. 32ः47)। मत्ती 4ः4में वचन कहाता है - ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से नहीं जीता, वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।’’ प्रभु का वचन ही हमारे जीवन का वास्तविक स्रोत है। हमारे प्रोटेस्टेंट भाई-बहन शायद इस बात को हमसे ज्यादा समझते हैं। उन्हें पवित्र बाइबल के कई वचन मुह जबानी याद होते हैं। हम वचन को जितना अधिक पढेंगे, जितना अधिक उस पर मनन करेंगे, हम ईष्वर को व अपने-आपको अधिक गहराई से समझेंगे। हम हमारे जीवन का राज समझ जायेंगे; हमारे जीवन का मकसद हम पर प्रकट हो जायेगा; हम प्रभु के करीबी हो जायेंगे; हमें स्वर्ग की रोहें साफ-साफ नज़र आने लगेंगी; तब हम इस दुनियाई, खोखलेपन, भौतिक सुखों व सांँसारिक माया-मोह से ऊपर उठकर ईष्वर की व स्वर्ग की बातें सोचेंगे, हम एक अर्थपूर्ण व सच्चा मसीही जीवन जीयेंगे।
प्रभु के वचन में ही हमारा सब कुछ निहित है। एक बार चख कर तो देखो, प्रभु कितना मधूर है। (स्तोत्र 34ः8) नबी एज़ेकिएल को एक दिव्य दर्षन में प्रभु का वचन दिया गया और कहा गया -‘‘मानवपुत्र! मैं जो पुस्तक तुम्हें दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो।’’ नबी कहते हैं - ‘‘मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।’’
आईये हम प्रभु के वचन के प्रति हमारे दिलों में प्यार जगायें। रोज़ प्रभु के वचनों को हमारे घरों में पढें व उस पर मनन चिंतन करें तथा उनपर आधारित जीवन व्यतित करें। यही प्रभु की मरजी है। यही प्रभु की ख्वहीष है, हम सब के लिए। जब हम ऐसा करेंगे तो हम पवित्र कलीसिया में एक ही शरीर के अंगों के रूप में जीवन बितायेंगे। आज दूसरा पाठ हमसे कहता है कि हम सब एक ही शरीर के अंग है। हमारे शरीर के किसी भी अंग में परेषानी या पीडा होती है तो सारा शरीर उस पीडा व दर्द में भाग लेता है। वैसे ही जब हम प्रभु के वचनों पर चलेंगे, तो हमारे भाई का दर्द मेरा दर्द होगा; सिरिया में गला रेतकर मारे गये लोगों का दर्द में अपने शरीर में अनुभव करूँगा; कंधमाल में यातना सहने वाले भाईयों और बहनों की पीडा मेरी पीडा बन जायेगी। प्रभु के मार्ग से भटकते किसी भी विष्वासी की मुझे वैसे ही चिंता होगी जैसे मैं अपने स्वयं की चिंता करता हूँ। यह कलीसिया की एकरूपता व सच्चा भात्र प्रेम सिर्फ प्रभु के वचनों को पढने, सुनने व उनको हमारे जीवन में उतारने पर ही आयेगा।
आमेन।
I am really surprised by the quality of your constant posts.
ReplyDeleteHi. Sir.. You really are a genius, I feel blessed to be a regular reader of such a blog Thanks so much.. -অনলাইন কাজ���� font copy and paste
muchLove quotes in hindi
very sad What'sapp dp
SAD STATUS IN HINDI FOR WHAT'SAPP STATUS