वर्ष का सौलहवाँ रविवार
पहला पाठ उत्पत्ति गं्रथ 18ः1-10
कोलोसियों 1ः24-28
लूकस 1038-42
प्रभु येसु मार्था और मरियम के घर जाते हैं। मार्था अच्छा से अच्छा भोजन तैयार कर उनका अपने घर में स्वागत करती है। वहीं मरियम प्रभु के चरणों में बैठकर उनके वचन सुनती है। यह कहानी भले समारी के दृष्टांँत के तुरन्त बाद आती है। इन दोनों कहानियों से पहले सुसमाचार हमें अनन्त जीवन प्राप्त करने का सूत्र बताता है। और वह सूत्र है अपने प्रभु ईष्वर को अपने सारे हृदय, सारी आत्मा, सारी शक्ति और सारी बुद्धी से प्यार करो और अपने पडोसी को अपने समान प्यार करो’’ (लूक 10ः27)। ऐसा प्रतीत होता है कि इन कहानियों के माध्यम से सुसमाचार लेखक ने प्रभु की इस आज्ञा को रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे लागू करना चाहिए इस बात को समझाने की कोषिष की है। जहाँ एक ओर मरियम अपने जीवन से प्रभु को कैसे प्यार करना चाहिए ये सिखाती है वहीं दूसरी ओर भला समारी अपने पडोसियों को किस प्रकार प्यार करना चाहिए ये सिखाता है। ईष्वर को प्रेम करना व अपने पडोसी को प्रेम करना, स्वर्ग राज्य में प्रवेष के लिए ये दोनो महत्वपूर्ण रास्ते हैं।
प्रभु मार्था से कहते हैं कि तुम व्यर्थ ही बहुत सारी चिज़ों की चिंता करती हो। और जो सबसे ज्यादा आवष्यक है उसे भूल रही हो। प्रभु उसके सेवा सत्कार की निंदा नहीं कर रहे थे। सेवा सत्कार भी जरूरी है। आज के पहले पाठ में वचन इसी बात पर जोर देता है। अब्राहम अपने घर आये मेहमानों का बडी आवभगत के साथ स्वागत करता व उनकी मेहमान नवाज़ी करता है। प्रभु येसु स्वयं कई घरों में मेहमान के रूप में गये व लोगों की सेवा सत्कार को स्वीकार किया। उदा. के लिए ज़केयुस (लूक 19ः1-10), मत्ती (मत्ती 9ः9-13), और सिमोन फरीसी (लूक. 7ः36-49) आदि के घर। इसलिए यदि हम कहें कि प्रभु मार्था के कार्यों की निंदा कर रहे थे तो शायद हम गलत हैं। प्रभु मार्था और मरियम के जीवन के उदाहरण से हमें बस यही सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे जीवन में महत्व किस बात को देना है। आज यदि मैं आप से पूछूंँ कि सुबह से लेकर शाम तक की दिनचर्या में आपको सबसे ज़्यादा चिंता किस बात की रहती है। तो विभिन्न के उत्तर मिलेंगे। माता-पिता को बच्चों की, बच्चों को पढाई की, परीक्षा की, होमवर्क की, मज़दूर को काम की, नौकरी करने वालों को पदौन्नती की, सैलरी में इज़फा होने की, गरीब को रोजी-रोटी की आदि विभिन्न चिंतायें। और हम हमारी पूरी जिंदगी इन चिंताओं का हल ढूँढने में बिता देते हैं। परन्तु प्रभु का वचन हमें साफ-साफ कहता है - ‘‘चिंता मत करो - न अपने जीवन निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की कि हम क्या पहनें...चिंता करने से तुम में कौन अपनी आयु घडी भर बढा सकता है? ... और वचन आगे कहता है तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चिजों की ज़रूरत है। तुम सबसे पहले ईष्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चिजे़ तुम्हें यूँ हीे मिल जायेगी।’’ (मत्ती 6ः25, 32-33)। यही है आज के सुसमाचार की षिक्षा मरियम को दुनियाभर के कामों की चिंता थी परन्तु प्रभु कहते हैं मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया। मरियम ने सिर्फ अच्छा नहीं सर्वोत्तम भाग चुन लिया है। मरियम के लिए प्रभु के चरणों में बैठकर उनके वचनों को सुनना सबसे उत्तम लगा। यह उनका व्यक्गित निर्णय था। उन्होंने बाकि काम काज को अलग रखकर प्रभु येसु के चरणों में बैठकर वचन सुनने का निर्णय लिया।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों क्या मरियम येसु के चरणों में बैठकर पिता ईष्वर की महिमा कर रही थी? अथवा क्या प्रभु येसु की वाणी सुनने के बारे में पिता ईष्वर ने धर्मग्रंथ में हमें कोई आदेष दिया है? जि हाँ! ताबोर पर्वत पर उनके रूपान्तरण के समय पिता की वाणी यह कहते हुए सुनाई पडी थी - ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ; इसकी सुनो।’’ (मत्ती 17ः5)। जि हाँ प्रभु येसु के वचनों को सुनने के लिए आदेष स्वयं पिता परमेष्वर की ओर से है। और हाँ प्रभु का वचन सुनने से हमारे जीवन में क्या होता है? इसके बारे में आईये हमस ब मनन चिंतन करें।
संत पौलुस रोमियों को लिखे पत्र अध्याय 10ः17 में हमें सिखाते हैं कि प्रभु के वचन सुनने से हममें विष्वास उत्पन्न होता है। ‘‘इस प्रकार हम देखते हैं कि सुनने से विष्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह है मसीह का वचन’’ वचन सुनने से हम पवित्र हो जाते हैं - ‘‘मैंने जो षिक्षा तुम्हें दी है उसके कारण तुम शुद्ध हो गये हो’’ (योहन 15ः3)। वचन हमें चंगा करता है - ‘‘उसे किसी जडी -बुटी या लेप से स्वास्थ्यलाभ नहीं हुआ बल्कि प्रभु! तेरे शब्द ने उसे चंगा किया’’ (प्रज्ञा 16ः12)। तथा ‘‘उसने अपनी वाणी भेजकर उन्हें स्वस्थ किया’’ (स्तोत्र 107ः20)। वचन हमारे लिए सच्चा भोजन है जो हमें वास्तविक जीवन सच्चा जीवन प्रदान करता है- ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है’’ (मत्ती 4ः4)। प्रभु के वचन सुनने से हम प्रभु येसु के परिवार के वास्तविक सदस्य बन जाते हैं - ‘‘मेरी माता और मेरे भाई वही हैं जो ईष्वर का वचन सुनते और उनका पालन करते हैं’’ (लूकस 8ः21)। उनके शब्दों में अनन्त जीवन का संदेष छिपा है संत पेत्रुस प्रभु से कहते हैं - ‘‘प्रभु हम किसके पास जायें, आपके ही शब्दों मे अनन्त जीवन का संदेष है’’ (योहन 6ः68)। प्रभु वचन हमे सही मार्ग दिखाता है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है’’ (स्तोत्र 119ः105)। और जो वचन सुनते हैं उनके लिए प्रभु एक बहुत ही सुन्दर प्रतीज्ञा करते हैं - ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उस में विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेष कर चुका है’’ (योहन 5ः24)
आइये हम आज अपने आप से पूछें कि हम हमारे जीवन में प्रभु व उसके वचनों को कितनी प्राथमिकता देते हैं? हमारी रोज़मर्रा की भागदौड भरी जिंदगी में, जहाँ सुबह से लेकर शाम तक हम बस इसी जुगाड में लगे रहते हैं कि हम क्या खायें, क्या पियें, और क्या पहनें, क्या हम प्रभु को उनके वचनों को प्राथमिकता दे पाते हैं? हम मेंसे कितने लोग ऐसे हैं जो रोज पवित्र बाइबल का कम से कम एक वाक्य रोज़ पढता है। और उस पर मनन चिंतन करते हुए व उसके ऊपर अपना जीवन बिताने की कोषिष करता है। यदि हम ये करते हैं तो प्रभु के ये वचन हमारे लिए ही हैं - ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उस में विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेष कर चुका है’’ जि हाँ, वह व्यक्ति मृत्यु को पार कर अनन्त जीवन में प्रवेष कर चुका है।
पहला पाठ उत्पत्ति गं्रथ 18ः1-10
कोलोसियों 1ः24-28
लूकस 1038-42

प्रभु मार्था से कहते हैं कि तुम व्यर्थ ही बहुत सारी चिज़ों की चिंता करती हो। और जो सबसे ज्यादा आवष्यक है उसे भूल रही हो। प्रभु उसके सेवा सत्कार की निंदा नहीं कर रहे थे। सेवा सत्कार भी जरूरी है। आज के पहले पाठ में वचन इसी बात पर जोर देता है। अब्राहम अपने घर आये मेहमानों का बडी आवभगत के साथ स्वागत करता व उनकी मेहमान नवाज़ी करता है। प्रभु येसु स्वयं कई घरों में मेहमान के रूप में गये व लोगों की सेवा सत्कार को स्वीकार किया। उदा. के लिए ज़केयुस (लूक 19ः1-10), मत्ती (मत्ती 9ः9-13), और सिमोन फरीसी (लूक. 7ः36-49) आदि के घर। इसलिए यदि हम कहें कि प्रभु मार्था के कार्यों की निंदा कर रहे थे तो शायद हम गलत हैं। प्रभु मार्था और मरियम के जीवन के उदाहरण से हमें बस यही सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे जीवन में महत्व किस बात को देना है। आज यदि मैं आप से पूछूंँ कि सुबह से लेकर शाम तक की दिनचर्या में आपको सबसे ज़्यादा चिंता किस बात की रहती है। तो विभिन्न के उत्तर मिलेंगे। माता-पिता को बच्चों की, बच्चों को पढाई की, परीक्षा की, होमवर्क की, मज़दूर को काम की, नौकरी करने वालों को पदौन्नती की, सैलरी में इज़फा होने की, गरीब को रोजी-रोटी की आदि विभिन्न चिंतायें। और हम हमारी पूरी जिंदगी इन चिंताओं का हल ढूँढने में बिता देते हैं। परन्तु प्रभु का वचन हमें साफ-साफ कहता है - ‘‘चिंता मत करो - न अपने जीवन निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की कि हम क्या पहनें...चिंता करने से तुम में कौन अपनी आयु घडी भर बढा सकता है? ... और वचन आगे कहता है तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चिजों की ज़रूरत है। तुम सबसे पहले ईष्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चिजे़ तुम्हें यूँ हीे मिल जायेगी।’’ (मत्ती 6ः25, 32-33)। यही है आज के सुसमाचार की षिक्षा मरियम को दुनियाभर के कामों की चिंता थी परन्तु प्रभु कहते हैं मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया। मरियम ने सिर्फ अच्छा नहीं सर्वोत्तम भाग चुन लिया है। मरियम के लिए प्रभु के चरणों में बैठकर उनके वचनों को सुनना सबसे उत्तम लगा। यह उनका व्यक्गित निर्णय था। उन्होंने बाकि काम काज को अलग रखकर प्रभु येसु के चरणों में बैठकर वचन सुनने का निर्णय लिया।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों क्या मरियम येसु के चरणों में बैठकर पिता ईष्वर की महिमा कर रही थी? अथवा क्या प्रभु येसु की वाणी सुनने के बारे में पिता ईष्वर ने धर्मग्रंथ में हमें कोई आदेष दिया है? जि हाँ! ताबोर पर्वत पर उनके रूपान्तरण के समय पिता की वाणी यह कहते हुए सुनाई पडी थी - ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ; इसकी सुनो।’’ (मत्ती 17ः5)। जि हाँ प्रभु येसु के वचनों को सुनने के लिए आदेष स्वयं पिता परमेष्वर की ओर से है। और हाँ प्रभु का वचन सुनने से हमारे जीवन में क्या होता है? इसके बारे में आईये हमस ब मनन चिंतन करें।
संत पौलुस रोमियों को लिखे पत्र अध्याय 10ः17 में हमें सिखाते हैं कि प्रभु के वचन सुनने से हममें विष्वास उत्पन्न होता है। ‘‘इस प्रकार हम देखते हैं कि सुनने से विष्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह है मसीह का वचन’’ वचन सुनने से हम पवित्र हो जाते हैं - ‘‘मैंने जो षिक्षा तुम्हें दी है उसके कारण तुम शुद्ध हो गये हो’’ (योहन 15ः3)। वचन हमें चंगा करता है - ‘‘उसे किसी जडी -बुटी या लेप से स्वास्थ्यलाभ नहीं हुआ बल्कि प्रभु! तेरे शब्द ने उसे चंगा किया’’ (प्रज्ञा 16ः12)। तथा ‘‘उसने अपनी वाणी भेजकर उन्हें स्वस्थ किया’’ (स्तोत्र 107ः20)। वचन हमारे लिए सच्चा भोजन है जो हमें वास्तविक जीवन सच्चा जीवन प्रदान करता है- ‘‘मनुष्य सिर्फ रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईष्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है’’ (मत्ती 4ः4)। प्रभु के वचन सुनने से हम प्रभु येसु के परिवार के वास्तविक सदस्य बन जाते हैं - ‘‘मेरी माता और मेरे भाई वही हैं जो ईष्वर का वचन सुनते और उनका पालन करते हैं’’ (लूकस 8ः21)। उनके शब्दों में अनन्त जीवन का संदेष छिपा है संत पेत्रुस प्रभु से कहते हैं - ‘‘प्रभु हम किसके पास जायें, आपके ही शब्दों मे अनन्त जीवन का संदेष है’’ (योहन 6ः68)। प्रभु वचन हमे सही मार्ग दिखाता है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है’’ (स्तोत्र 119ः105)। और जो वचन सुनते हैं उनके लिए प्रभु एक बहुत ही सुन्दर प्रतीज्ञा करते हैं - ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उस में विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेष कर चुका है’’ (योहन 5ः24)
आइये हम आज अपने आप से पूछें कि हम हमारे जीवन में प्रभु व उसके वचनों को कितनी प्राथमिकता देते हैं? हमारी रोज़मर्रा की भागदौड भरी जिंदगी में, जहाँ सुबह से लेकर शाम तक हम बस इसी जुगाड में लगे रहते हैं कि हम क्या खायें, क्या पियें, और क्या पहनें, क्या हम प्रभु को उनके वचनों को प्राथमिकता दे पाते हैं? हम मेंसे कितने लोग ऐसे हैं जो रोज पवित्र बाइबल का कम से कम एक वाक्य रोज़ पढता है। और उस पर मनन चिंतन करते हुए व उसके ऊपर अपना जीवन बिताने की कोषिष करता है। यदि हम ये करते हैं तो प्रभु के ये वचन हमारे लिए ही हैं - ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उस में विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेष कर चुका है’’ जि हाँ, वह व्यक्ति मृत्यु को पार कर अनन्त जीवन में प्रवेष कर चुका है।