Sunday, 10 July 2016

वर्ष का पन्द्रहवां रविवार (वर्ष - स)

15th Sunday of the year
Cycle C

विधिविवरण ग्रन्थ ३०:१०-१४ 

कोलोसियों १:१५-२० 
लुकस १०:२५-३७ 

किसी दिन एक व्यक्ति प्रभु येसु के पास आता और उनसे पूछता है कि अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए उसको क्या करना चाहिए। प्रभु यह जानकर कि वह शास्त्री याने यहूदी धर्मग्रंथ का ज्ञाता है] उससे पूछते हैं कि धर्मग्रंथ क्या कहता है। यहूदियों के धर्मग्रंथ तौराह में तकरीबन 613 आज्ञायें है लेकिन वह शास्त्री बडी ही चतुराई से उन सारी आज्ञाओं का सार सिर्फ दो आज्ञाओं में समेटते हुवे कहता है अपने प्रभु-ईष्वर को अपने सारे हृदय] सारी आत्मा सारी शक्ति और सारी बुद्धी से प्यार करो और अपने पडोसी को अपने समान प्यार करो।** प्रभु ने कहा तुम अनन्त जीवन का रास्ता जानते हो, यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे। अपने प्रष्न की सार्थकता दिखलाने के लिए उसने ईसा से कहा] लेकिन मेरा पडोसी कौन है? और प्रभु उसे भले समारी का सुन्दर दृष्टान्त सुनाते हैं। हम सब इस कहानी से भली-भाँति परिचित हैं।
 यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ईष्वर की दृष्टि में सही भला कार्य करता है। वह अपने जीवन में ईष्वर की दया और प्रेम को चरितार्थ करता है] उसे जीता है। मेरा पडोसी कौन है इसके तीन सम्भावित उत्तर यह कहानी हमें देती है। पहला उत्तर उन डाकुओं की ओर से आता है उनके लिए अपने परिवार घर कुटम्ब से बाहर रहने वाला, अपने बगल में रहने वाला, या फिर कोई मुसाफिर एक पडोसी नहीं था उनके जीवन का दर्षन यही है कि वे किस प्रकार से दूसरों को लूटे] उनसे माल हडप लें] उनकी चीजों को हथिया लें। उनकी स्वार्थपुर्ति में पीडित का क्या हाल होता है उसकी उनको परवाह नहीं किसी किसी रूप में ऐसी मानसिकता बहुत सारे लोगों की होती है। अपने बल] रोब] सामाजिक राजनैतिक धाक के बल पर वे गरीब कमजोर तबके के लोगों को अपना निषाना बनाते हैं। और उनका आर्थिक] सामाजिक शारीरिक शौषण करते हैं।

प्रष्न का दूसरा जवाब आता है लेवी याजक के व्यवहार से। जब उन्होंने उस घायल पीडित व्यक्ति को देखा तो वे उस के बारे में कुछ नहीं सोच पाये उन्हें सिर्फ अपनी ही चिंता थी। कहीं लूटेरे वापस आकर उन पर धावा बोल दे तो? और क्या पता पीडित व्यक्ति जिंदा भी है कि मर गया है( उनके धार्मिक कानून के मुताबिक ये दोनों पुजारी तबके के व्यक्ति यदि किसी मृत शरीर का स्पर्ष कर लेते तो वे अषुद्ध माने जाते] और उन्हें प्रभु के मंदिर में सेवा करने से सात दिन तक के लिए वंचित किया जातागणना ग्रंथ 19%11½ उन्होंने अपने धार्मिक कर्तव्य को प्रेम दया के काम से ऊपर माना। हम मेसे अधिकतर इस वर्ग में आते हैं। हम यहीं असफल हो जाते हैं। हमारी इच्छा तो होती है कि हम लोगों की भलाई उनकी मदद करने आगे बढें पर हमारे सामने हजारों सवाल खडे हो जाते हैं।
किसी का ऐक्सिडेंट हुंआ है] रोड पर पडा है] पर रिस्क वाली बात है] पुलिस केस है] कौन लफडे में पडे, इतनी भीड खडी है कोई भी तो कुछ नहीं कर रहा है] तो मैं क्यों आफत मौल लूँ। मेरा पडोसी कौन है इस सवाल का जवाब हमारे जीवन में एक स्वार्थि रूप ले लेता है। डर हमारा सबसे बडा दुष्मन है इस परिस्थिति में प्यार का विपरीत नफरत नहीं अपितु डर है। जहाँ सच्चा प्यार है वहाँ कोई डर नहीं।’’प्रेम में भय नहीं होता। पूर्ण प्रेम भय दूर कर देता है] क्योकि भय में दंड की आषंका रहती है और जो डरता है] उसका प्रेम पूर्णता तक नहीं पहुँचा है’’ ¼योहन 4%19½ जहाँ प्यार वहाँ भय शंका गायब हो जाती है और हम हिम्मत साहस के साथ बोलने जोखिम उठाने के लिए योग्य बन जाते हैं। 
जिस रोड से वह व्यक्ति जा रहा था वो येरिखो रोड था। भौगोलिक दृष्टि से यह इलाका एक सुनसान घाटी वाला इलाका था और उसमें इस प्रकार की वारदात होना स्वाभिविक था। वहाँ आये दिन इस प्रकार की घटनायें हुआ करती थी।
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों हम सभी येरीखो से येरूसालेम की ओर यात्रा कर रहे हैं। इस येरिखो पर रोड हम भी कई प्रकार के मुसाफिरों से मिलते हैं। दुःखित] पीडित] व्यथित] निराष] हताष] परेषान] गरीब] निःस्सहाय] और लाचार।
येरिखो रोड से गुज़रते समय हम इन की ओर किस निगाह से देखते हैं? उन लुटेरों की निगाह से कि हम किस तरह से उनकी नादानी कमज़ोरी का फायदा उठा सकें अपने स्वार्थ की पूर्ति कर सकें? या फिर उस लेवी याजक की तरह जिनकी रोजी रोटी पक्की थी] जिन्हांने कभी गरीबी का अनुभव नहीं किया था\ वे कतरा के चले जाते हैं। उन्हें दया सेवा से बढकर अपनी पवित्रता धार्मिक प्रपंच कायदे कानून ज्यादा प्रिय थे( या फिर हम उस भले समारी की तरह व्यवहार करते हैं जिसकी समाज में कोई औकात नहीं थी\ जिन्हें यहूदी लोग हीनता की दृष्टी से देखते थे। जिसने अपनी जाती बिरादरी की परवाह किये बिना\ एक जोखिम भरा काम किया उसके दिल में दया प्रेम की जो भावना उमड रही थी उसकी तुलना में जो जोखिम वो उठा रहा था वह नगण्य थी। उसे दया दिखाने सेवा करने के सिवा कुछ और नज़र ही नहीं रहा था। पिछले सप्ताह भी मैंने मदर तेरेसा का उदाहरण दिया था और आज फिर उनका ही उदाहरण देता हूँ। वे थी एक सच्ची पडोसन उन सब लोगों की जो कलकत्ता की गलियों में तडप रहे थे उन्होंने वहाँ किसी गरीब भिखारी अनाथ अथवा दलीत को नहीं परन्तु स्वयं प्रभु येसु को तडपते देखा उनकी सेवा करने के लिए उन्हें कोई भी नहीं रोक सका। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि लोग क्या कहेंगे, कहीं ये घायल व्यक्ति मर गया तो मेरे माथे आयेगा। आदि।
आज का यह दृष्टाँत एक ओर जहाँ उन लोगों पर एक गहरा प्रहार है जो दूसरों के दुख कष्टों पर ध्यान नहीं देते उनके प्रति उदासिनता देखाते हैं वहीं दूसरी ओर यह हम सब कोपिता ईष्वर जैसे दयालु बनने¼लूकस 6:36) के लिए एक खुला निमंत्रण है। हम दुःखितों पीडितों को उदारता] दयालुता] कोमलता सौम्यता भरे  हृदय] से  प्यार करने के लिए बुलाये गये हैं। येरिखो जाने वाला रोड कहीं ओर नहीं हमारे घर के सापने से ही जाता है; वह हमारे घर में भी हो सकता है; हमारे परिवार में भी हो सकता है। जहाँ-जहाँ दुःखित मानवता कराहती है वहाँ-वहाँ यरिखो रोड है। यदि मेरा भाई दुःखित है तो वह येरिखो रोड पर है] यदि मेरे वृद्ध दादा-दादी पीडित है तो वे येरिखो रोड पर हैं] यदि मेरी माँ परेषान है] तो वह येरिखो रोड पर है] यदि मेरे बच्चे बिमार हैं, परेषान हैं निराष हैं हताष हैं( तो वे येरिखो रोड पर हैं] यदि मेरे पिताजी रोजी रोटी की जुगाड में मष्क्कत कर रहे हैं दर-दर भटक रहे हैं तो वे येरिखो रोड पर हैं।
क्या मैं मेरे आस-पास येरिखो रोड पर दुखित- व्यथित इन लोगों के छोटे-बडे दुख-कष्टों की ओर ध्यान देता हूँ( उनके दुःखों को परेषानियों को हल्का करने करने का प्रयास करता हूँ( या फिर मैं उस याजक लेवी की तरह अपनी दुनिया में मस्त हुवे फिरता रहता हूँ\
संत पापा फ्रांसिस कहते हैं कि आज की दुनिया में उदासीनता का संस्कृति पनपती जा रही है। ¼Culture of indefference) हम लोगों के दुखों में शामिल होना नहीं चाहते क्योंकि हम सुरक्षित रहना चाहते हैं। आईये हम प्रभु से प्रार्थना करें कि वह हमें इस दया के वर्ष में पिता ईष्वर के समान दयालू बनना सिखायें।   आमेन।


No comments:

Post a Comment