Saturday, 10 September 2016

वर्ष का 24 वां सामान्य रविवार, 11 सितंबर, 2016


निर्गमन 32:7-11, 13-14
तिमथि 1:12-17
लुकस 15:1-32

आज के पहले पाठ में हमने सुना प्रभु मूसा से कहते हैं - ‘‘पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा जिसे तुम मिश्र से निकाल लाये हो, भटक गयी है।’’ मूसा प्रभु से मुलाकात करने उनकी उपस्थिति में सीनई पर्वत पर था। प्रभु अत्यंक व्याकुल होकर ये कह रहे हैं। ये प्रभु के दिल के अंतःस्थल से निकली उनकी एक दारूण पुकार है। वे क्रोधित होकर उन लोगों का सर्वनाष करना चाह रहे थे परन्तु मूसा ने मध्यस्थता की, लोगों की पेरवी की व उनका बीच-बचाव किया। और प्रभु ने जो धमकी दी थी उसका विचार छोड दिया। क्योंकि ‘‘वह एक अत्यंत दयालु, व करूणामय ईष्वर है। वह सहनषील सत्यप्रतिज्ञ औ प्रेममय ईष्वर है।’’ (स्तोत्र 86ः15) हम सब प्रभु के प्यारे बच्चे हैं। वह नबी इसायस 43ः4 में हमसे कहते हैं तुम मेरी दृष्टि में मुल्यवान हो और महत्व रखते हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।‘‘ वो हमें कभी भी खोना नहीं चाहते हैं। संत योहन के सुसमाचार 6ः39 में प्रभु येसु हमसे  कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उनक में से एक का भी सर्वनाष न होने दूँ।’’ और मत्ती 18ः14 में प्रभु कहते हैं - ‘‘इसी तरह मेरा स्वर्गिक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।’’ जि, हाँ, ख््रास्त में प्यारे भाईयों प्रभु को हमेषा हमारा ख्याल रखता है। और जब हम हमारे पापमय जीवन द्वारा उनसे दूर हो जाते हैं, भटक जाते हैं तो वे अत्यंत व्याकूल हो उठते हैं। वे उस चरवाहे कि तरह बेचैन व परेषान हो जाते हैं जिसकी एक भेड जिसे वह बेहद प्यार करता था, खो गई हो अथवा उस स्त्री की तरह जिसने अपने पसीने की कमाई का फल, अपना एक सिक्का खो दिया हो। ये दोनो तब तक उसे खोजते रहते हैं जब तक वे उसे नहीं पाते और पाने पर अन्यंत आनन्दित होते हैं, जष्न मनाते हैं।
प्रभु की वही वाणी जो मूसा को सीनई पर्वत पर सुनाई पडी थी आज हमारे कानों में, कलीसिया के अगुवाओं के कानों में गूँज रही है - ‘‘पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा, जिसे तुम मिश्र से निकाल लाये हो, भटक गई है।’’ आज का यह वचन हर एक पुरोहित के कानों में प्रतिध्वनित होना चाहिए। तुम्हारी प्रजा भटक गई, तुम्हारी प्रजा जिसे तुमने बपतिस्मा दिया है, तुम्हारी प्रजा जिसे तुमने संस्कार दिये हैं, व पापमय लालसागर से बाहर ले आये हो, तुम्हारी प्रजा जिसका प्रभु ने तुम्हें चरवाहा नियुक्त किया है वह आज भटक गई है। इसलिए पहाड से उतरो। अपने आरामदायक, शाँतिमय, व सुरक्षित पहाड से नीचे उतरो। अपने स्वार्थ, घमंड, अहंकार के पहाड से नीचे उतरो। और अपनी भटकी हुई भेडों को वापस झूंड में लाओ। क्योंकि पिता की यह इच्छा है कि उनमें से एक भी न खो जाये, उनमें से एक का भी सर्वनाष न हो। संत फोस्तीना को दिये दिव्य दर्षन में प्रभु येसु ने उनसे यही कहा था कि हर किसी को यह याद दिलाओ कि मेरी दिव्य करूणा हर एक जन के लिए है। मैं हर एक आत्मा को अपनी दिव्य करूणा के द्वारा स्वर्ग में ले जाना चाहता हूँ।
प्रभु हमें खोना नहीं चाहते। हम अपने ही कुमर्मां द्वारा, स्वयं खो जाना चाहते हैं, हम स्वयं प्रभु से दूर जाने चाहते हैं, हम हमारा विनाष स्वयं करना चाहते हैं। पर प्रभु हमें बचाना चाहते हैं। मुझे बचपन में पढी हुई ‘‘अब्बू खां की बकरी’’ नामक हिंदी का एक पाठ याद आता है जिसमें चांदनी नाम की अब्बू खां की बकरी जिसे अब्बू बेहद प्यार करते थे अपने बाडे से रस्सी तोडकर भाग जाती है। अब्बू खां उसे ढूंढते-ढूंढते थक जाते हैं। अंधेरा होने तक जंगल में घूम-घूमकर आवाज लगाते हैं। पर चांदनी जवाब नहीं देती। वह एक स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। वह मालिक की आवाज़ को अनसुना कर देती है। रात को भेडियों से उसका सामना हो जाता है। पूरी रात वह हिम्मत के साथ भेडियों से लडती है लेकिन आखिर में दम तोड देती है। हम सब कमजोर इंसान हैं। हमारा भटक जाना, कभी-कभी प्रभु से दूर जाना स्वाभाविक है परन्तु जिस घडी प्रभु की वाणी हमारे कानों पडती है। जब प्रभु हमें पुकारते हैं हमें उनकी और लौट आना चाहिए। हमें हमारा मन फिरा कर पश्चाताप करते हुए प्रभु से मेल-मिलाप करना चाहिए। अन्यथा हमारा भी हाल चांदनी की तरह होगा। शैतान के हाथ हमें हार का सामना करना पड सकता है। वह हमारे शरीर व आत्मा दोनों का नर्क में सर्वनाष कर सकता है। साथ ही जो भी प्रभु की भेडों के रखवाले नियुक्त किये गये हैं वे भी जागरूक व सतर्क रहें। हर खोई हुई भेड का उनसे लेखा लिया जायेगा।

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