Saturday, 25 March 2017

चालीसे का चौथा रविवार, 22 March 2020

1 सामुएल 16, 1- 7.10-13
एफेसिओ 5, 8-14
योहन 9, 1-41
आध्यात्मिक अंधापन 
आज के मनन चिंतन के लिए हमारे पास है एक अंधे व्यक्ति के चंगा किये जाने का सुसमाचार पाठ है। प्रभु येसु जन्म से अंधे एक व्यक्ति को चंगाई प्रदान करते हैं। फरीसी और शास्त्री इस चंगाई को लेकर बडा बवाल खडा कर देते हैं। और प्रभु येसु पर विश्राम दिवस को अपवित्र करने का आरोप लगाते हैं। अंत में वे उस व्यक्ति को सभागृह से बहिष्कृत कर देते हैं। चंगा करते समय वह व्यक्ति नहीं जान रहा था कि जिसने उसे चंगा किया है वह कौन है। बाद में प्रभु येसु उससे मिलते हैं और अपने आपको उस पर प्रकट करते हैं, और वह प्रभु की आराधना करता है। योहन इस चमत्कार के द्वारा हमारे सामने लोगों के आध्यात्मिक अंधेपन पर प्रकाश  डालता है तथा प्रभु येसु को संसार की ज्योति के रूप में प्रस्तुत करता है।
बडी रोचक बात यह है कि यहां चमत्कार का विवरण केवल दो वाक्यों में समाप्त हो जाता है लेकिन उस चमत्कार को लेकर जो विवाद खडा होता है उसका विवरण 39 वाक्यों में किया गया है।

वह व्यक्ति शारीरिक रूप से अंधा था जिसे प्रभु दृष्टि प्रदान करते हैं और वह देखने लगता है। उसी प्रकार प्रभु चाहते थे कि फरीसी और शास्त्री लोग जो कि आध्यात्मिक रूप से अंधे हैं वे आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त करें। पर वे अपने अकडपन व जिद्द के कारण नहीं सुधर पाये। फरीसियों का धार्मिक रवैया बडा विचित्र था। वे सोचते थे कि वे धर्मग्रंथ के ज्ञाता हैं। उन्हें सब कुछ मालुम है। बाकि लोग कुछ भी नहीं जानते हैं। वे सबसे धार्मिक एवं ज्ञानी लोग हैं। अपने इसी रवैये के चलते वे हमेश  दूसरों में दोष निकालने व उन पर उंगली उठाने की ताक में लगे रहते थे। यही उनका अध्यात्मिक अंधापन है। उनको दूसरों की अच्छाई कभी नज़र नहीं आती। प्रभु  येसु ने जो भलाई का काम किया उस अंधे व्यक्ति के लिए वो उन्हें नहीं दिखा। उन्हें दिखा तो सिर्फ विश्राम दिवस का कानून कि उस दिन कोई काम न करे।

आध्यात्मिक अंधापन कई प्रकार का हो सकता है। जैसा कि हमने पहले पाठ में सुना जब समुएल  दाऊद राज-अभिषेक करने गया तो उसने यशेए  के बडे बेटे को देखा, उसके रंग-रूप, और लम्बे कद को देखकर सोचता है कि वही ईश्वर का अभिषिक्त है। परन्तु प्रभु उनसे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं - ‘‘उसके रूप-रंग और लम्बे कद का ध्यान न रखो। मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य तो बाहरी रूप -रंग देखता है, किंतु प्रभु हृदय देखता है।’’

हम भी इस प्रकार के अंधेपन के शिकार कई बार हो जाते हैं। हम बाहरी तौर पर देखकर लोगों के ऊपर निर्णय देते हैं। हम वास्तविकता को जाने बगैर ही कई बार लोगों के विरूद्ध बातें करते हैं। उन्हें कोसते हैं, उन पर दोष लगाते हैं। और फरीसियों की तरह ये सोचते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं। हमें सब पता है। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण यही रहता है कि जो वे देखते और सोचते हैं वही सच्चाई है। अपनी संकीर्ण सोच के पैमाने से सब लोगों को देखते व जज करते हैं।
शारीरिक अंधेपन को दूर करना शायद आसान है लेकिन अध्यात्मिक अंधापन दूर करना मुश्किल काम है। क्योंकि शारीरिक रूप से अंधे व्यक्ति को तो यह मालूम रहता है कि वह अंधा है। वह इस सच्चाई को स्वीकार करता है। लेकिन आध्यात्मिक रूप से अंधे लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते कि वे अंधे हैं। इसलिए उनका सुधार बहुत मुश्किल रहता है। आध्यात्मिक रूप से अंधे लोग बेहद स्वार्थी होते हैं। उन्हें अपने जीवन से बाहर कुछ दिखाई नहीं देता। उन्हें समाज में हो रहे पाप नहीं दिखते, गरीबों के आँसू, बेसहारों की पीडा, व दलितों की दयनीय स्थिति नज़र नहीं आती। उन्हें दिखता है तो सिर्फ अपना स्वार्थ। वे अंधकार में जीवन जीते हैं। हम जानते हैं कि जहाँ अंधकार है वहां कुछ देख नहीं पाते। परन्तु जहाँ प्रकाश है वहां सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है। इसलिए आज के दूसरे पाठ में प्रभु येसु हम से कहते हैं - ‘‘आप लोग पहले अन्धकार थे, अब प्रभु के शिष्य होने के नाते ज्योति बन गये हैं। इसलिए ज्योति की संतान की तरह आचरण करें।’’ हम प्रभु येसु के शिष्य  होने के नाते अंधकार को पार कर ज्योति में आ गये हैं। प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (योहन 8,12)। जो प्रभु येसु में विश्वास करते हैं, जो कोई उनका अनुसरण करते हैं वे पापमय अंधकार में नहीं भटकेंगे। प्रभु येसु की यह ज्योति हमें कहाँ से प्राप्त होगी।? स्तोत्र 119,105 में वचन कहता है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है।’’ जि हाँ प्रभु के वचन हमारे जीवन के लिए ज्योति हैं। यदि हम हमारे जीवन का आध्यात्मिक अंधापन दूर करना चाहते हैं तो हमें हर बात हर चीज़, वचन के उजाले में देखने की ज़रूरत है। कुछ करने या बोलने के पहले हम वचन के पैमाने पर हर चीज़ को तोलें ।

आईये हम वचन की रोशनी में जीवन की हर घटना को देखने की कोशिश करें। जब तक हम प्रभु के वचनों को पढेंगे नहीं, उनके ऊपर मनन चिंतन नहीं करेंगे हम अंधकार में ही भटकते रहेंगे। वचन को सिर्फ पढने मात्र से हमें दिव्य ज्योति प्राप्त नहीं होगी। प्रभु कहते हैं - ‘‘तेरी शिक्षा का पालन करने से ही नवयुवक निर्दोष आचरण कर सकता है’’ (स्तोत्र 119, 9)। और संत याकूब हमें हिदायत देते हैं - आप लोग अपने आप को धोखा न दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें’’ (याकूब 1,22)। केवल वचन पढकर अथवा सुनकर ये न सोचें कि हम ने हमारा कर्तव्य पूरा कर लिया। हमें रौशनी मिल गयी है,ं हमें ज्योति मिल गयी है। वचन के श्रोता बनने भर से हमारा जीवन आलोकित नहीं होता उसका पालन करने से वचन की रौशनी हमारे जीवन में प्रभावशाली होती है।। आईये, हम तपस्या के इन दिनों में, प्रभु वचन से अपनी आध्यात्मिक भूख व प्यास मिटायें। व प्रभु के वचन को पढकर, उसे सुनकर अपने जीवन में उस वचन को काम करने दें। ताकि हम सचमुच में ज्योति की संतान के रूप में इस संसार में रह सकें। आमेन।



Friday, 17 March 2017

चालीसे का तीसरा रविवार

निर्गमन 17, 1-7
रोमियो 5, 1-11

योहन 4, 5-42

 ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, आज के पाठों के अनुसार हम विशेष  रूप से दो बिंदुओं पर मनन चिंतन करेंगे 1) संकट में ईश्वर  पर भरोसा और 2) प्रभु येसु, संजीवन जल

1) संकट में ईश्वर पर भरोसा
आज के पहले पाठ में हमने मरूस्थल में इस्राएली लोगों की परीक्षा के बारे में सुना। करीब 430 सालों की मिस्र की गुलामी के बाद ईश्वर उन पर तरस खाकर उन्हें मूसा की अगुवाई में स्वतंत्र कराता है। उन्हें महान चिन्ह व चमत्कार दिखलाते हुए यह आश्वासन देता है कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर तुम्हारे साथ हूँ। जब तक सब कुछ ठीक चल रहा था कोई शिकायत नहीं थी, परन्तु जब उन पर संकट आया, उनका विश्वास डगमगाने लगा। जब मरूभूमि में उन्हें पानी नहीं मिला तो वे मूसा व ईश्वर के विरूद्ध भुनभुनाने लगे। समुद्र में रास्ता बनाकर उन्हें बचाने वाले ईश्वर पर से उनका भरोसा शीघ्र ही उठ गया। तब ईश्वर ने मूसा को आदेश  दिया कि वह चट्टान पर अपना डंडा मारे और तुरन्त ही वहां से पानी की धारा बह निकली। सबों ने पानी पिया व अपनी प्यास बुझाई। प्रभु ने उस समय उनकी प्यास तो बुझाई लेकिन अपनेे अविष्वास का खामियाजा उन्हें भुगतना पडा। उनमें से एक भी प्रतिज्ञात देष में प्रवेष नहीं कर सका। सिर्फ उनकी संतानें वहां पहुँची।
हम भी कितनी बार हमारे जीवन में दुःख व संकट के बादल मंडराने पर इस्राएली लागों की भांति ईश्वर के विरूद्ध कुडकुडाते हैं, और शिकायत करते हैं। हम प्रभु से कहते हैं देख कि हम दुख संकट में है और तू देखता ही नहीं। हम आभावों में जी रहे हैं और तू हमारी तरफ ध्यान ही नहीं देता! क्या प्रभु सचमुच हमारे दुख-संकट को नहीं देखता? क्या वह हमारी पीडाओं से अपना मुंह मोड लेता है? हरगीज़ नहीं। वह हमसे कहता है येरमियाह 49, 16 में - ‘‘मैं ने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है, तुम्हारी चार दिवारी निरन्तर मेरी आँखों के सामने है।’’ हमारा घर, हमारी चार दिवारी हमेशा  उसकी निगाह में है। ऐसा कुछ भी नहीं जो उनकी जानकारी के बिना हमारे साथ घटित होता हो। इसीलिए भजनकार, भजनसंहिता 139 में कहता है - ‘‘ईश्वर तू मुझे जानता है। मैं चाहे लेटूँ या बैठूँ, तू जानता है। . . . मैं चाहे चलूँ या लेटूँ, तू देखता है।’’ जि हाँ  प्यारे भाईयों और बहनों ईश्वर हर समय हमें देखता है। इसलिए संकट के समय भी हमें धैर्यपूर्वक उस ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। उनका वचन कहता है इसायाह 49, 8 में - ‘‘मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनुँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करूँगा।’’ प्रभु अपने समय व अपनी योजना के मुताबिक हमारे जीवन में कार्य करेगा। और उसकी योजनाए हमेशा  हमारे हित में ही होती है। वे कहते हैं - ‘‘क्योंकि मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ, तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएँ’’ (यिरमियाह 29,11)। वचन कहता है - ‘‘तुम प्रभु पर अपना भार छोड दो, वह तुम को सम्भालेगा। वह धर्मी को विचलित नहीं होने देगा’’ (स्तोत्र 55,23) इसलिए हम सदैव  ईश्वर पर अपना पूर्ण भरोसा बनाये रखें। क्यांकि जो कोई ईश्वर पर भरोसा रखता है वचन कहता है वह उस पेड के सदृष है जो जल स्रोत के पास लगाया गया है, जिसकी जडें पानी के पास फैली हुई है। वह कडी धूप से नहीं डरता...वह सूखे के समय भी चिंता नहीं करता (यिर 17,7-8)। प्रभु पर भरोसा रखने वाला जलस्रोत के निकट लगे पेड के समान निष्चिंत रहता है। हम भी प्रभु पर भरोसा रखें व निश्चिन्त रहें।

२)  प्रभु येसु मसीह जीवन का जल
हमने पहले पाठ में सुना कि इस्राएली लोगों को ईश्वर ने मरूभूमि में चमत्कारिक ढंग से जल पिलाया था। यह जल तो सिर्फ उनकी शारीरिक अथवा भौतिक प्यास ही बुझा पाया। लेकिन आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु समारी स्त्री से कहते हैं - ‘‘जो मेरा दिया हुआ जल पिता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगीं, जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में स्रोत बन जायेगा, जो अनन्त जीवन के लिए उमडता रहता है।’’ प्रभु येसु अपने शिष्यों  के साथ येरूसालेम की ओर जा रहे थे। वे समारिया होते हुए जाते हैं। यात्रा करते-करते वे थक जाते हैं और याकूब के कुएँ पर पानी पीने जाते हैं। वहांँ भरी दुपहरी में एक स्त्री जो समाज में बदनाम व कलंकित थी, पानी भरने आती है। हमें ज्ञात हो कि पानी भरने का समय या तो सुबह या फिर शाम को होता है, जहांँ कई स्त्रीयाँ पनघट पर इकट्ठा होती और बतयाती हैं। पर यह स्त्री अकेले एकान्त समय में आती है। वह अन्य लोगों के सामने बाहर निकलने का साहस भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि वह भीतर ही भीतर टूट चुकी थी। पाँच पुरूषों के साथ रहने के बाद भी जीवन में कुछ अधूरापन व खालीपन महसूस करती थी, अपने अंदर एक असंतोष महसूस करती थी। उसके जीवन में वास्तव में एक गहरी प्यास थी जिसे बुझाने के कई तरीके उसने अपनाये, पर वह प्यास बुझी नहीं।
प्रभु येसु कहते हैं कि मैं भला गडेरिया हूँ। मैं वह गडेरिया हूँ जो निन्यानबे भेडों को छोडकर एक भेड जो भटक गई है उस की खोज में जाता है। अपने इसी वचन को आज प्रभु उस याकूब के कुएँ पर पूरा करते हैं। वहाँ, दोपहर की धूप में उन्होंने अपनी एक भटकी हुई भेड को पा लिया। प्रभु येसु ने उस स्त्री से संवाद किया व धीरे-धीरे उसके पुराने पापमय जीवन के घावों पर मरहम लगाते हुए उसे संजीवन जल के पास आने व मुक्ति के झरने से पीकर पूर्ण रूप से तृप्त होने का निमंत्र दिया। प्रभु के वचनों को सुनकर उस स्त्री में अनन्त जीवन के जल के लिए प्यास जागृत हुई। वह स्त्री जो दुनिया के सुखों में संतुष्टी ढूंढती थी, अब जीवन का अर्थ समझने लगती है। वह जान जाती है कि ये भौतिक सुख क्षणिक है और इनसे कुछ लाभ नहीं। वहीं प्रभु येसु में उसने अनन्त जीवन के सुख का राज पा लिया। वह बोल उठती है मुझे वह जल दीजिए, जिससे फिर कभी प्यास न लगे। जिस अनन्त जीवन के जल की बात आप कर रहे हैं, मुझे वह दे दीजिए। मैं पूर्ण रूप से परितृप्त होना चाहती हूँ।
प्यारे भाईयों और बहनों, आज चालीसे के तीसरे रविवार में प्रभु हम सब से यही कह रहे हैं - ‘‘यदि कोई प्यासा हो तो वह मेरे पास आये। जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाये’’ (योहन 7,37-38)। 
 नबी इसायस ने इस जल के बारे में भविष्यवाणी की थी और कहा था- ‘‘तुम आनन्दित होकर मुक्ति के स्रोत में जल भरोगे’’ (इसा 12, 3)। यह मुक्ति का स्रोत, उद्धार का झरना स्वयं हमारे मुक्तिदाता येसु मसीह ही हैं। प्रकाशना ग्रंथ में संत योहन एक दिव्य दृष्य के बारे में बतलाते हुए कहते हैं - ‘‘इसके बाद मुझे संजीवन जल की नदी दिखायी, जो ईश्वर और मेमने के सिंहासन से बह रही थी।’’ यह वही झरना है जो हमारी मुक्ति के लिए प्रवाहित होता है। यही वो जीवन की धरा है जो येसु मसीह के ह्रदय से निकलती है.  संत योहन 19, 34 में हम इसके बारे में पढते हैं - ‘‘एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।’’ 
प्यारे भाईयों और बहनों, हम देखते हैं आजकल पीने का पानी भी बोटलों में बंद, बाज़ारों में बिकता है। पर उद्धार का यह जल मुफ्त है। जिस जल को पीने के बाद भी मृत्यु से नहीं बचा जा सकता वह पैसों में मिलता है, पर मौत के बाद भी अनन्त जीवन देने वाला जल, फ्री में मिल रहा है। वचन कहता है - ‘‘आल्फा और ओमेगा, आदि और अंत मैं हूँ। मैं प्यासे को संजीवन जल के स्रोत से मुफ्त में पिलाऊँगा। यह विजयी की विरासत है। मैं उसका ईश्वर हुऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। (प्रका. 21,6)। नबी इसायाह के ग्रंथ 55, 1-3 में प्रभु कहता है ‘‘तुम सब जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रूपया नहीं है, तो भी आओ। जो भोजन नहीं है उसके लिए तुम रूपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता है, उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो? मेरी बात मानो। कान लगाकर सुनो और मेरे पास आओ। मेरी बात पर ध्यान दो और तुम्हारी आत्मा को जीवन प्राप्त होगा।‘‘
प्रभु ने उस स्त्री से कहा कि यदि तुम ईष्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है, तो तुम उस से माँगती और वह तुम्हें संजीवन का जल देता तुम मुझसे माँगती और मैं तुम्हें संजीवन का जल देता। माँगो और तुम्हें दिया जायेगा। जो कोई अमरता का जीवन चाहते हैं आईये हम संजीवन जल के झरने प्रभु येसु के पास चलें और उनसे वह जल माँगे जिसे पीने के बाद फिर प्यास नहीं लगती, जिसे पीने के बाद इस जीवन की सारी झंझटे समाप्त हो जाती है, जिसे पीने के बाद जीवन सफल हो जाता है। आमेन।


Saturday, 11 March 2017

2nd sunday of Lent

उत्पत्ति ग्रंथ 12, 1-4
2 तिमिथी 2 1, 8-10
मत्ती 17, 1-9

एकान्तवास, प्राकृतिक सुंदरता, प्रार्थना एवं भक्ति तथा इश्वरीय अनुभव प्राप्त करने के लिए कई जवान लडके लडकियाँ कॉन्वेंट अथवा विभिन्न मठों में प्रवेष लेते हैं। इस दुनिया की भीड-भाड एवं शोर-गुल से अलग एकांत में प्रभु भक्ति में समय बिताने का अपना अलग ही आनन्द रहता है। कई बार लोग अपने व्यस्ततम जीवन से उबकर एकान्त स्थानों पर, प्रकृति के आंचल तले, सकून और शांति पाने के लिए जाते हैं। कई लोग आश्रमों अथवा इस प्रकार के आध्यात्मिक स्थलों पर जाकर प्रार्थना में समय बिताना पसंद करते हैं, जहां उन्हें ईष्वरीय उपस्थिति का अभास होता है। कई बार फादर सिस्टर्स जो शिक्षा, स्वास्थ्य एवं समाजिक उत्थान की विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, अपना कुछ समय रिट्रीट एवं प्रार्थना में बिताने के लिए, वे एक शांतिपूर्ण स्थानों पर जाते हैं, जहां वे प्रार्थना एवं मनन ध्यान करते हुए ईष्वर की उपस्थिति का अनुभव करते व ईश्वर से आध्यात्मिक संवाद करते हैं। आजकल रिट्रीट एवं आध्यत्मिक साधना के लिए ऐसे कई केंद्र खोले जा रहे हैं जहां लोग आकर कुछ समय बिताते व अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं का निदान पाते हैं। कई लोग इन स्थानों पर आकर अपना पुराना जीवन बदल कर एक नई जिंदगी की शुरूआत करते हैं। कई अपनी पुरानी बूरी आदतों व पापमय जीवन को छोडकर एक नया जीवन ग्रहण कर वापस लौटते हैं। कई लोग अपनी रिट्रीट समाप्त हो जाने पर भी वहां से जाना नहीं चाहते। उन्हें वह स्थान, वहां का प्रार्थनामय माहौल, ईष्वरीय अनुभूति और आत्मिक सुकून अच्छा व सुखद लगता है। उन्हें वापस उस माहौल में जाने से डर  लगता है जहां बुराईयों का संसार है, जहां चुनौतियां है, जहां जीवन का संघर्ष है। वैसा ही आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के षिष्यों के साथ होता है।
प्रभु येसु अपने तीन षिष्यों, पेत्रुस, याकूब और योहन को उनके सामने एक रहास्योद्घाटन करने के लिए ताबोर पर्वत पर ले जाते हैं। जब वे उस पहाड पर ही थे कि उनके सामने प्रभु येसु का मुखमंडल सूर्य की तरह दमक उठा और उनके वस्त्र प्रकाष के समान उज्वल्ल हो गये। शिष्यों को मूसा और एलियस येसु के साथ बातचित करते दिखाई पडे तथा उन्होंने आसमान से एक वाणी को यह कहते सुना - यह मेरा प्रिय पुत्र है, मैं इस पर अन्यन्त प्रसन्न हूँ, इसकी सुनो। इन तीन षिष्यों के लिए यह दिव्य दृष्य काफी चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक उन्होंने प्रभु येसु को एक साधारण पुरूष के रूप में ही देखा था। उन्होंने उन्हें इस महिमा में नहीं देखा था। प्रभु येसु जान बूझकर अपने षिष्यों को यह दिव्य दृष्य दिखाना चाहते थे ताकि निकट भविष्य में जब वे यहूदियों द्वारा पकडाये व क्रूस पर दर्दनाक मौत मरेंगे, तब उनका मन विचलित न हो जाए। तब उन्हें यह दिव्य दृष्य याद रहे कि प्रभु येसु सिर्फ एक साधरण इंसान नहीं है। वे सच्चे ईष्वर और सच्चे मनुष्य हैं। इस मानव रूप में उनके दुख भोगने के बाद वे अपार महिमा में जी उठेंगे। सांसारिक दुखों व कष्टों के बाद महिमामय आनन्द व उल्लास है। पर वे अपने शिष्यों से इस बात के विषय में उनके पुररूत्थान तक किसी से बात नहीं करने की समझाईष देते हैं। क्योंकि वे ये नहीं चाहते थे कि उनके अनुयायी सिर्फ उनकी महिमा व दिव्य शक्ति को देखकर उनका अनुसरण करे। वे यह चाहते थे कि उनके अनुयायी अपने दैनिक जीवन का क्रूस उठाकर उनका अनुसरण करे। सब लोग यह जानें कि येसु के पीछे जाना मतलब दैनिक जीवन के दुख-दर्द सहते हुए, उनके साथ चलना है। येसु के साथ चलने वाले हर विष्वासी को क्रूस को गले लगाते हुए आगे बढना है। बिना क्रूस के पुनरूत्थान संभव नहीं। स्वर्ग में जाकर ईष्वर की महिमा के भागिदार बनने का कोई शॉर्ट कट नहीं है। इस जीवन के उतार चढाव को पार करते हुए ही हम वहां तक पहुंच सकते हैं। प्रभु कहते हैं स्वर्ग का द्वारा एक संकरा द्वार है। जि हां स्वर्ग का द्वार केवल संकरा ही नहीं, इस मार्ग में पत्थर हैं, कांटे हैं और मुसिबतों के पहाड भी हैं।
तीन षिष्यों को ताबोर पर्वत पर ईष्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर विरोधी तत्वों जैसे शास्त्री एवं फरिसीयों का सामना करना नहीं चाहते थे। वे भीड जो कि दिन रात प्रभु के पीछे रहती थी उससे बचना चाहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईष्वरीय अनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों। जिस ईष्वरी महिमा व प्रभु की पावन  उपस्थिति का अनुभव उन्हें हुआ उसे वे अपनी परिपूर्णता में इस जीवन के बाद प्राप्त करेंगे। लेकिन तब तक पिता ने जो मिषन उन्हें सौंपा है उसे उन लोगों को पूरा करना है। और इस मिषन को पूरा करने के लिए जीवन में आये हर दुःख व कष्ट को सहना है। प्रभु येसु तो अपना मिषन पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, यहां तक कि क्रूस पर मरने के लिए भी। इसलिए वे अपने षिष्यों को भी उसी प्रकार पूरी तरह से तैयार रहने की शिक्षा दे रहे थे।
आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईष्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईष्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईष्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।

आमेन। 

Saturday, 4 March 2017

चालीसे का पहला रविवार, A




ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, ईष्वर ने आदम और हेवा को बनाया, उन्हें पृथ्वी पर विचरने वाले हर जीव जन्तुओं पर अधिकार दिया, और उनसे यह उम्मिद की गयी कि वे बदले में ईष्वर के प्रति आज्ञाकारी व ईमानदार रहें। बल्कि हमारे आदि माता-पिता ने ईष्वर प्रदत वरदानों के घमंड में ईष्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया जिसका परिणाम उन्हें और उनकी संतानों को भुगतना पडा और आज तक संसार भुगत रहा है। इस बात पर खेद प्रकट करना हमारा हक बनता है कि हमारे आदि माता-पिता ने बहुत ही मुर्खतापूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण कार्य किया है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम उनसे कितने भिन्न हैं। हम हमारे दैनिक जीवन में ईष्वर की दया व कृपा को विभिन्न रूपों में देखते व अनुभव करते हैं। लेकिन हम फिर भी बहुत बार ईष्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते तथा हमारे आदि माता-पिता से भी अधिक मुर्खतापूर्ण व दुर्भाग्यपूर्ण कार्य करते हैं। क्या ये हमारे लिए शर्म व खेद की बात नहीं?
जिस प्रलोभन एवं परीक्षा का सामना प्रभु येसु ने किया वे हमारे लिए एक प्रोत्साहन एवं सांत्वना का स्रोत हैं। यदि हमारे प्रभु एवं गुरूवर येसु को स्वयं प्रलोभनों के दौर से गुजरना पडा तो हम भी परीक्षा एवं प्रलोभन मुक्त जीवन की उम्मीद नहीं कर सकते। मूल रूप से हमारे प्रलोभन भी वही है जो आदम हेवा के सामने थे और जो प्रभु येसु के सामने थे। हेवा को सबसे पहले वह फल सुंदर और स्वादिष्ट दिखा। उसे देखने में सुंदर दिखा और उसने सोचा देखने में इतना सुन्दर है तो खाने में कितना स्वादिष्ट होगा। वैसे ही प्रभु येसु के सामने सबसे पहला प्रलोभन शारीरिक भूख मिटाने का था।  शैतान ने उनसे कहा कि वह अपनी दिव्य शक्ति से पत्थर को रोटी बनाकर खा ले क्योंकि वह भूखा है। आज हमारा यह शरीर कई प्रकार की भूखों को शांत करने के लिए हमें बाध्य करता है। हमारी पंचेंद्रियां विभिन्न प्रकार से तृप्त होना चाहती हैं। हमारे समाने विभिन्न प्रकार की भूख रहती है। आँखों की भूख - दूसरों को वासना भरी निगाहों से देखने की भूख, अष्लील चीज़ें देखने और पढने की भूख, अच्छा से अच्छा स्वादिष्ट भोजन करने की भूख, दैहिक वासना की भूख, सच्ची - झूठी तारीफ सुनने की भूख। आरमदायक घर व सुख-सुविधा की भूख।
फिर शैतान ने हेवा को ईष्वर के बाराबर हो जाने का प्रलोभन दिया। उसने येसु को भी सारी दुनिया का वैभव दे देने का प्रलोभन दिया। और आज भी वह हमें विभिन्न प्रकार से बडे-बडे वादे करके प्रलोभित करता रहता है। खोखली तारीफ एवं बडापन दिखाने का प्रलोभन, चार जन की भीड में प्रषंसा पाने का प्रलोभन, स्कूल में अव्वल आकर घमंड करने का प्रलोभन और धन व शक्ति का प्रलोभन। आवष्यक्ता से अधिक धन और हैसियत से अधिक मान-सम्मान पाने, सत्ता हथियाने एवं दूसरों पर शासन करने की लालच में इंसान कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है। क्योंकि इंसान कमजोर प्राणी है। मत्ती 26,41 में वचन कहता है - अत्मा तो तत्पर है लेकिन शरीर दुर्बल है। हम दुर्बल शरीर वाले प्राणी हैं।
स्तोत्र 141 में वचन कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। कितनी वास्तविकतापूर्ण प्रार्थना है ये। हमारे चारों ओर बुराई है। न केवल आज बल्कि उस जमाने में भी इसलिए स्त्रोतकार कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। मत्ती 6 और लूकस 11 में हम पढते हैं कि प्रभु येसु ने अपने षिष्यों को एक प्रार्थना सिखाई। यह सबसे उत्तम प्रार्थना है। हे हमारे पिता............और हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। कितनी सुंदर प्रार्थना है। यह सबसे आदर्ष, सुंदर और सबसे शक्तिषाली प्रार्थना है। प्रभु ने कहा हे पिता हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से बचा। प्रभु येसु कहते हैं तुम्हें बार बार इस तरह प्रार्थना करने की आवष्यक्ता है। क्योंकि सबसे पहले हमारा झूकाव पाप की ओर है।
हम उत्पत्ति 8 में पढते हैं सारे संसार मे पाप भर गया था और ईष्वर ने प्रलय भेजा लेकिन ईष्वर ने नूह और उसके परिवार को बचा लिया और प्रलय के बाद नूह ने ईष्वर के लिए बली चढाई और ईष्वर ने यह कहा कि अब से में मनुष्यों को अभिषाप नहीं दूंगा। क्योंकि बचपन से ही मनुष्यों की प्रवृति पाप की ओर है। इसलिए प्रभु हमसे कहते हैं तुम्हें निरन्तर प्रार्थना करनी है। हे पिता हमें परीक्षा में न डाल।
दूसरी तरफ हम देखते हैं मत्ती 18, 7 में प्रभु कहते हैं कि प्रलोभन अनिवार्य है। प्यारे भाईयों बहनों प्रलोभन देने वाला हर समय हमारे चारों ओर मंडराते रहता है। वह हर समय क्रियाषिल रहता है। संत पेत्रुस 5, 8 में कहते हैं कि आपका शत्रु शैतान दहाडते सिंह की तरह विचरता रहता है। और ढूंढता रहता है कि किसे फाड खाये। तो हमारा शत्रु शैतान ढूंढते रहता है कि किसे फाड खायें। हमें हर समय अंधकार की शक्तियों से लडना पडता है, जैसे कि एफेसियों 6 में लिखा है। हर समय विभिन्न नकारात्मक आत्माओं से लडना पडता है। लालच की आत्मा, गुस्से की आत्म, उदासी की आत्म, आलस की आत्मा, निराषा की आत्मा । हमें इनसे लडना पडता है। हमारा जीवन एक लंबा युद्ध है और इस युद्ध में हमेषा प्रभु से प्रार्थना करते रहना है कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। 12 कुरिंथयों 11,14 में संत पौलुस कहते हैं कि आप लोग इस चीज से अष्चर्यचकित न हों कि शैतान कभी-कभी स्वर्गदूत का रूप ले सकता है। कभी हमारे सामने आकर्षक बातें आकर्षक चीजें आकर्षक लोगों को ला सकता है। हमें भ्रमित कर सकता है। इस दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसी परिथितियों में भ्रमित हो जाते हैं और आसानी से शैतान के चुंगूल में पड जाते है। इ।सलिए हमें हर समय प्रार्थना करने की ज़रूरत है। कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न पडने दे। आज हम ऐसे संसार में रह हैं जहां सबसे ज्यादा प्रलोभन देने वाली बातें और चीजें हैं। योहन 17,15-16 में प्रभु ने हमस ब के लिए प्रार्थना की कि पिता मैं नहीं कहता कि उन्हें संसार से उठा ले। वे संसार में हैं लेकिन उन्हें बुराई से बचा। हम विष्वासी इस संसार में हैं लेकिन यह स्वभाविक है हम इस संसार की बुराईयों में फंस जाते है।
प्रलोभनों से विजय पाने का रास्ता प्रभु येसु हमें दिखलाते हैं। और वह है उपवास, प्रार्थना और ईष वचन का पठन एवं मनन चिंतन। जब प्रभु येसु की परीक्षा ली गयी उससे पहले वे मरूभूमि में चालीस दिनों तक उपवास व प्रार्थना कर रहे थे। और शैतान के हर बहकावे का वे वचन की शक्ति से सामना कर रहे थे। हम सब कमजोर हैं इसलिए हमें प्रभु से शक्ति प्राप्त करने की ज़रूरत है।
आईये हम प्रभु से प्रार्थना करें। हमें परीक्षा में न पडने दे परन्तु सब बुराईयों से हमें बचा, आमेन।