Friday, 17 March 2017

चालीसे का तीसरा रविवार

निर्गमन 17, 1-7
रोमियो 5, 1-11

योहन 4, 5-42

 ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, आज के पाठों के अनुसार हम विशेष  रूप से दो बिंदुओं पर मनन चिंतन करेंगे 1) संकट में ईश्वर  पर भरोसा और 2) प्रभु येसु, संजीवन जल

1) संकट में ईश्वर पर भरोसा
आज के पहले पाठ में हमने मरूस्थल में इस्राएली लोगों की परीक्षा के बारे में सुना। करीब 430 सालों की मिस्र की गुलामी के बाद ईश्वर उन पर तरस खाकर उन्हें मूसा की अगुवाई में स्वतंत्र कराता है। उन्हें महान चिन्ह व चमत्कार दिखलाते हुए यह आश्वासन देता है कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर तुम्हारे साथ हूँ। जब तक सब कुछ ठीक चल रहा था कोई शिकायत नहीं थी, परन्तु जब उन पर संकट आया, उनका विश्वास डगमगाने लगा। जब मरूभूमि में उन्हें पानी नहीं मिला तो वे मूसा व ईश्वर के विरूद्ध भुनभुनाने लगे। समुद्र में रास्ता बनाकर उन्हें बचाने वाले ईश्वर पर से उनका भरोसा शीघ्र ही उठ गया। तब ईश्वर ने मूसा को आदेश  दिया कि वह चट्टान पर अपना डंडा मारे और तुरन्त ही वहां से पानी की धारा बह निकली। सबों ने पानी पिया व अपनी प्यास बुझाई। प्रभु ने उस समय उनकी प्यास तो बुझाई लेकिन अपनेे अविष्वास का खामियाजा उन्हें भुगतना पडा। उनमें से एक भी प्रतिज्ञात देष में प्रवेष नहीं कर सका। सिर्फ उनकी संतानें वहां पहुँची।
हम भी कितनी बार हमारे जीवन में दुःख व संकट के बादल मंडराने पर इस्राएली लागों की भांति ईश्वर के विरूद्ध कुडकुडाते हैं, और शिकायत करते हैं। हम प्रभु से कहते हैं देख कि हम दुख संकट में है और तू देखता ही नहीं। हम आभावों में जी रहे हैं और तू हमारी तरफ ध्यान ही नहीं देता! क्या प्रभु सचमुच हमारे दुख-संकट को नहीं देखता? क्या वह हमारी पीडाओं से अपना मुंह मोड लेता है? हरगीज़ नहीं। वह हमसे कहता है येरमियाह 49, 16 में - ‘‘मैं ने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है, तुम्हारी चार दिवारी निरन्तर मेरी आँखों के सामने है।’’ हमारा घर, हमारी चार दिवारी हमेशा  उसकी निगाह में है। ऐसा कुछ भी नहीं जो उनकी जानकारी के बिना हमारे साथ घटित होता हो। इसीलिए भजनकार, भजनसंहिता 139 में कहता है - ‘‘ईश्वर तू मुझे जानता है। मैं चाहे लेटूँ या बैठूँ, तू जानता है। . . . मैं चाहे चलूँ या लेटूँ, तू देखता है।’’ जि हाँ  प्यारे भाईयों और बहनों ईश्वर हर समय हमें देखता है। इसलिए संकट के समय भी हमें धैर्यपूर्वक उस ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। उनका वचन कहता है इसायाह 49, 8 में - ‘‘मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनुँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करूँगा।’’ प्रभु अपने समय व अपनी योजना के मुताबिक हमारे जीवन में कार्य करेगा। और उसकी योजनाए हमेशा  हमारे हित में ही होती है। वे कहते हैं - ‘‘क्योंकि मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ, तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाएँ’’ (यिरमियाह 29,11)। वचन कहता है - ‘‘तुम प्रभु पर अपना भार छोड दो, वह तुम को सम्भालेगा। वह धर्मी को विचलित नहीं होने देगा’’ (स्तोत्र 55,23) इसलिए हम सदैव  ईश्वर पर अपना पूर्ण भरोसा बनाये रखें। क्यांकि जो कोई ईश्वर पर भरोसा रखता है वचन कहता है वह उस पेड के सदृष है जो जल स्रोत के पास लगाया गया है, जिसकी जडें पानी के पास फैली हुई है। वह कडी धूप से नहीं डरता...वह सूखे के समय भी चिंता नहीं करता (यिर 17,7-8)। प्रभु पर भरोसा रखने वाला जलस्रोत के निकट लगे पेड के समान निष्चिंत रहता है। हम भी प्रभु पर भरोसा रखें व निश्चिन्त रहें।

२)  प्रभु येसु मसीह जीवन का जल
हमने पहले पाठ में सुना कि इस्राएली लोगों को ईश्वर ने मरूभूमि में चमत्कारिक ढंग से जल पिलाया था। यह जल तो सिर्फ उनकी शारीरिक अथवा भौतिक प्यास ही बुझा पाया। लेकिन आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु समारी स्त्री से कहते हैं - ‘‘जो मेरा दिया हुआ जल पिता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगीं, जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में स्रोत बन जायेगा, जो अनन्त जीवन के लिए उमडता रहता है।’’ प्रभु येसु अपने शिष्यों  के साथ येरूसालेम की ओर जा रहे थे। वे समारिया होते हुए जाते हैं। यात्रा करते-करते वे थक जाते हैं और याकूब के कुएँ पर पानी पीने जाते हैं। वहांँ भरी दुपहरी में एक स्त्री जो समाज में बदनाम व कलंकित थी, पानी भरने आती है। हमें ज्ञात हो कि पानी भरने का समय या तो सुबह या फिर शाम को होता है, जहांँ कई स्त्रीयाँ पनघट पर इकट्ठा होती और बतयाती हैं। पर यह स्त्री अकेले एकान्त समय में आती है। वह अन्य लोगों के सामने बाहर निकलने का साहस भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि वह भीतर ही भीतर टूट चुकी थी। पाँच पुरूषों के साथ रहने के बाद भी जीवन में कुछ अधूरापन व खालीपन महसूस करती थी, अपने अंदर एक असंतोष महसूस करती थी। उसके जीवन में वास्तव में एक गहरी प्यास थी जिसे बुझाने के कई तरीके उसने अपनाये, पर वह प्यास बुझी नहीं।
प्रभु येसु कहते हैं कि मैं भला गडेरिया हूँ। मैं वह गडेरिया हूँ जो निन्यानबे भेडों को छोडकर एक भेड जो भटक गई है उस की खोज में जाता है। अपने इसी वचन को आज प्रभु उस याकूब के कुएँ पर पूरा करते हैं। वहाँ, दोपहर की धूप में उन्होंने अपनी एक भटकी हुई भेड को पा लिया। प्रभु येसु ने उस स्त्री से संवाद किया व धीरे-धीरे उसके पुराने पापमय जीवन के घावों पर मरहम लगाते हुए उसे संजीवन जल के पास आने व मुक्ति के झरने से पीकर पूर्ण रूप से तृप्त होने का निमंत्र दिया। प्रभु के वचनों को सुनकर उस स्त्री में अनन्त जीवन के जल के लिए प्यास जागृत हुई। वह स्त्री जो दुनिया के सुखों में संतुष्टी ढूंढती थी, अब जीवन का अर्थ समझने लगती है। वह जान जाती है कि ये भौतिक सुख क्षणिक है और इनसे कुछ लाभ नहीं। वहीं प्रभु येसु में उसने अनन्त जीवन के सुख का राज पा लिया। वह बोल उठती है मुझे वह जल दीजिए, जिससे फिर कभी प्यास न लगे। जिस अनन्त जीवन के जल की बात आप कर रहे हैं, मुझे वह दे दीजिए। मैं पूर्ण रूप से परितृप्त होना चाहती हूँ।
प्यारे भाईयों और बहनों, आज चालीसे के तीसरे रविवार में प्रभु हम सब से यही कह रहे हैं - ‘‘यदि कोई प्यासा हो तो वह मेरे पास आये। जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाये’’ (योहन 7,37-38)। 
 नबी इसायस ने इस जल के बारे में भविष्यवाणी की थी और कहा था- ‘‘तुम आनन्दित होकर मुक्ति के स्रोत में जल भरोगे’’ (इसा 12, 3)। यह मुक्ति का स्रोत, उद्धार का झरना स्वयं हमारे मुक्तिदाता येसु मसीह ही हैं। प्रकाशना ग्रंथ में संत योहन एक दिव्य दृष्य के बारे में बतलाते हुए कहते हैं - ‘‘इसके बाद मुझे संजीवन जल की नदी दिखायी, जो ईश्वर और मेमने के सिंहासन से बह रही थी।’’ यह वही झरना है जो हमारी मुक्ति के लिए प्रवाहित होता है। यही वो जीवन की धरा है जो येसु मसीह के ह्रदय से निकलती है.  संत योहन 19, 34 में हम इसके बारे में पढते हैं - ‘‘एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।’’ 
प्यारे भाईयों और बहनों, हम देखते हैं आजकल पीने का पानी भी बोटलों में बंद, बाज़ारों में बिकता है। पर उद्धार का यह जल मुफ्त है। जिस जल को पीने के बाद भी मृत्यु से नहीं बचा जा सकता वह पैसों में मिलता है, पर मौत के बाद भी अनन्त जीवन देने वाला जल, फ्री में मिल रहा है। वचन कहता है - ‘‘आल्फा और ओमेगा, आदि और अंत मैं हूँ। मैं प्यासे को संजीवन जल के स्रोत से मुफ्त में पिलाऊँगा। यह विजयी की विरासत है। मैं उसका ईश्वर हुऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। (प्रका. 21,6)। नबी इसायाह के ग्रंथ 55, 1-3 में प्रभु कहता है ‘‘तुम सब जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रूपया नहीं है, तो भी आओ। जो भोजन नहीं है उसके लिए तुम रूपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता है, उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो? मेरी बात मानो। कान लगाकर सुनो और मेरे पास आओ। मेरी बात पर ध्यान दो और तुम्हारी आत्मा को जीवन प्राप्त होगा।‘‘
प्रभु ने उस स्त्री से कहा कि यदि तुम ईष्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है, तो तुम उस से माँगती और वह तुम्हें संजीवन का जल देता तुम मुझसे माँगती और मैं तुम्हें संजीवन का जल देता। माँगो और तुम्हें दिया जायेगा। जो कोई अमरता का जीवन चाहते हैं आईये हम संजीवन जल के झरने प्रभु येसु के पास चलें और उनसे वह जल माँगे जिसे पीने के बाद फिर प्यास नहीं लगती, जिसे पीने के बाद इस जीवन की सारी झंझटे समाप्त हो जाती है, जिसे पीने के बाद जीवन सफल हो जाता है। आमेन।


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