
एफेसिओ 5, 8-14
योहन 9, 1-41
आध्यात्मिक अंधापन
आज के मनन चिंतन के लिए हमारे पास है एक अंधे व्यक्ति के चंगा किये जाने का सुसमाचार पाठ है। प्रभु येसु जन्म से अंधे एक व्यक्ति को चंगाई प्रदान करते हैं। फरीसी और शास्त्री इस चंगाई को लेकर बडा बवाल खडा कर देते हैं। और प्रभु येसु पर विश्राम दिवस को अपवित्र करने का आरोप लगाते हैं। अंत में वे उस व्यक्ति को सभागृह से बहिष्कृत कर देते हैं। चंगा करते समय वह व्यक्ति नहीं जान रहा था कि जिसने उसे चंगा किया है वह कौन है। बाद में प्रभु येसु उससे मिलते हैं और अपने आपको उस पर प्रकट करते हैं, और वह प्रभु की आराधना करता है। योहन इस चमत्कार के द्वारा हमारे सामने लोगों के आध्यात्मिक अंधेपन पर प्रकाश डालता है तथा प्रभु येसु को संसार की ज्योति के रूप में प्रस्तुत करता है।
बडी रोचक बात यह है कि यहां चमत्कार का विवरण केवल दो वाक्यों में समाप्त हो जाता है लेकिन उस चमत्कार को लेकर जो विवाद खडा होता है उसका विवरण 39 वाक्यों में किया गया है।
वह व्यक्ति शारीरिक रूप से अंधा था जिसे प्रभु दृष्टि प्रदान करते हैं और वह देखने लगता है। उसी प्रकार प्रभु चाहते थे कि फरीसी और शास्त्री लोग जो कि आध्यात्मिक रूप से अंधे हैं वे आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त करें। पर वे अपने अकडपन व जिद्द के कारण नहीं सुधर पाये। फरीसियों का धार्मिक रवैया बडा विचित्र था। वे सोचते थे कि वे धर्मग्रंथ के ज्ञाता हैं। उन्हें सब कुछ मालुम है। बाकि लोग कुछ भी नहीं जानते हैं। वे सबसे धार्मिक एवं ज्ञानी लोग हैं। अपने इसी रवैये के चलते वे हमेश दूसरों में दोष निकालने व उन पर उंगली उठाने की ताक में लगे रहते थे। यही उनका अध्यात्मिक अंधापन है। उनको दूसरों की अच्छाई कभी नज़र नहीं आती। प्रभु येसु ने जो भलाई का काम किया उस अंधे व्यक्ति के लिए वो उन्हें नहीं दिखा। उन्हें दिखा तो सिर्फ विश्राम दिवस का कानून कि उस दिन कोई काम न करे।
आध्यात्मिक अंधापन कई प्रकार का हो सकता है। जैसा कि हमने पहले पाठ में सुना जब समुएल दाऊद राज-अभिषेक करने गया तो उसने यशेए के बडे बेटे को देखा, उसके रंग-रूप, और लम्बे कद को देखकर सोचता है कि वही ईश्वर का अभिषिक्त है। परन्तु प्रभु उनसे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं - ‘‘उसके रूप-रंग और लम्बे कद का ध्यान न रखो। मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य तो बाहरी रूप -रंग देखता है, किंतु प्रभु हृदय देखता है।’’
हम भी इस प्रकार के अंधेपन के शिकार कई बार हो जाते हैं। हम बाहरी तौर पर देखकर लोगों के ऊपर निर्णय देते हैं। हम वास्तविकता को जाने बगैर ही कई बार लोगों के विरूद्ध बातें करते हैं। उन्हें कोसते हैं, उन पर दोष लगाते हैं। और फरीसियों की तरह ये सोचते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं। हमें सब पता है। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण यही रहता है कि जो वे देखते और सोचते हैं वही सच्चाई है। अपनी संकीर्ण सोच के पैमाने से सब लोगों को देखते व जज करते हैं।
शारीरिक अंधेपन को दूर करना शायद आसान है लेकिन अध्यात्मिक अंधापन दूर करना मुश्किल काम है। क्योंकि शारीरिक रूप से अंधे व्यक्ति को तो यह मालूम रहता है कि वह अंधा है। वह इस सच्चाई को स्वीकार करता है। लेकिन आध्यात्मिक रूप से अंधे लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते कि वे अंधे हैं। इसलिए उनका सुधार बहुत मुश्किल रहता है। आध्यात्मिक रूप से अंधे लोग बेहद स्वार्थी होते हैं। उन्हें अपने जीवन से बाहर कुछ दिखाई नहीं देता। उन्हें समाज में हो रहे पाप नहीं दिखते, गरीबों के आँसू, बेसहारों की पीडा, व दलितों की दयनीय स्थिति नज़र नहीं आती। उन्हें दिखता है तो सिर्फ अपना स्वार्थ। वे अंधकार में जीवन जीते हैं। हम जानते हैं कि जहाँ अंधकार है वहां कुछ देख नहीं पाते। परन्तु जहाँ प्रकाश है वहां सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है। इसलिए आज के दूसरे पाठ में प्रभु येसु हम से कहते हैं - ‘‘आप लोग पहले अन्धकार थे, अब प्रभु के शिष्य होने के नाते ज्योति बन गये हैं। इसलिए ज्योति की संतान की तरह आचरण करें।’’ हम प्रभु येसु के शिष्य होने के नाते अंधकार को पार कर ज्योति में आ गये हैं। प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (योहन 8,12)। जो प्रभु येसु में विश्वास करते हैं, जो कोई उनका अनुसरण करते हैं वे पापमय अंधकार में नहीं भटकेंगे। प्रभु येसु की यह ज्योति हमें कहाँ से प्राप्त होगी।? स्तोत्र 119,105 में वचन कहता है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है।’’ जि हाँ प्रभु के वचन हमारे जीवन के लिए ज्योति हैं। यदि हम हमारे जीवन का आध्यात्मिक अंधापन दूर करना चाहते हैं तो हमें हर बात हर चीज़, वचन के उजाले में देखने की ज़रूरत है। कुछ करने या बोलने के पहले हम वचन के पैमाने पर हर चीज़ को तोलें ।
आईये हम वचन की रोशनी में जीवन की हर घटना को देखने की कोशिश करें। जब तक हम प्रभु के वचनों को पढेंगे नहीं, उनके ऊपर मनन चिंतन नहीं करेंगे हम अंधकार में ही भटकते रहेंगे। वचन को सिर्फ पढने मात्र से हमें दिव्य ज्योति प्राप्त नहीं होगी। प्रभु कहते हैं - ‘‘तेरी शिक्षा का पालन करने से ही नवयुवक निर्दोष आचरण कर सकता है’’ (स्तोत्र 119, 9)। और संत याकूब हमें हिदायत देते हैं - आप लोग अपने आप को धोखा न दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें’’ (याकूब 1,22)। केवल वचन पढकर अथवा सुनकर ये न सोचें कि हम ने हमारा कर्तव्य पूरा कर लिया। हमें रौशनी मिल गयी है,ं हमें ज्योति मिल गयी है। वचन के श्रोता बनने भर से हमारा जीवन आलोकित नहीं होता उसका पालन करने से वचन की रौशनी हमारे जीवन में प्रभावशाली होती है।। आईये, हम तपस्या के इन दिनों में, प्रभु वचन से अपनी आध्यात्मिक भूख व प्यास मिटायें। व प्रभु के वचन को पढकर, उसे सुनकर अपने जीवन में उस वचन को काम करने दें। ताकि हम सचमुच में ज्योति की संतान के रूप में इस संसार में रह सकें। आमेन।
Praise the Lord
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