इसायाह ५०, ४-७
फिलिपियों २,६-७
मत्ती २६, १४-६६
येसु का येरूसलेम में प्रवेश करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह यहूदियों के पास्का पर्व का समय था। प्रभु येसु येरूसलेम में प्रवेश करते हैं क्योंकि उनका समय आ चुका था। 21 मार्च 2017 को न्युयाॅर्क के एक यहूदियों के प्रार्थना गृह में बम होने की अपवाह के बाद उस प्रेमिस से प्री-सकूल के बच्चों को आनन-फानन में सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। इस प्रकार की कई घटनाओं के बारे में हम पढते और सुनते हैं। कहीं तुफान अथवा भूकम्प की से बचने के लिए लोग अपने घरों को अपने आशियांनों को छोडकर सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं तो कहीं आतंकियों या फिर विरोद्धी सेना से बचने के लिए सुरिक्षत स्थानों को तलाशते हैं। क्योंकि हम सब मौत से डरते हैं। हम मरने से डरते हैं। कोई ज़्याद तो कोई कम, पर मौत से डर हर-किसी को लगता है। साधरणतः सभी अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं। हम जीना चाहते हैं। हम नहीं जानते कि हम कब तक जीयेंगे पर जीवन से हमें प्रेम है। परन्तु प्रभु येसु इस संसार में इस लिए आये कि वे मारे जायें। वो मौत को गले लगाकर मौत को हराने के लिए इस संसार में आये। वे इसलिए आये कि उनके मारे जाने से हमें जीवन मिले। उन्होंने मरना स्वीकार किया ताकि हम जीवित रहें।
वे इस मौत को एक मज़बूरी के तौर पर नहीं, परन्तु पिता की मर्जी व उसकी को योजना को पूर्णता तक पहुुँचाने के लिए स्वीकार करते हैं। उनके जीवन का मकसद ही यह था कि वो अपने स्वर्गीक पिता की इच्छा को पूरा करे। संत योहन 4, 34 में वे कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा है उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।’’ पिता की इच्छा को, पिता की मरजी़ को, पिता की चाह को पूरा करना ही प्रभु येसु का भोजन था। पिता की इच्छा क्या थी? संत पौलुस हमें बतलाते हैं रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायष्चित करें और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ यह है पिता ईश्वर की इच्छा। प्रभु येसु अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए व्याकुल थे। संत लूकस 12,50 में प्र्रभु कहते हैं - ‘‘मुझे एक और बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ।" हम सब जानते हैं कि प्रभु येसु ने अपनी सेवकाई प्रारम्भ करने के पहले यर्दन नदी में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लिया था जो कि जल का बपतिस्मा था। अब वे रक्त का बपतिस्मा ग्रहण करने के लिए व्याकुल थे। एक ऐसा बपतिस्मा जो सारे संसार के पापों की क्षमा के लिए वे लेने वाले थे। वे इस दुनिया के, व सारी मानव जाती के नये पुराने सब पापों को सूली पर अपना खून बहाकर माफ करने वाले थे। व सबके पापों का दाम चुकाने वाले थे। इस पवित्र बलिदान के द्वारा वे पिता से हम सब का पुनः मेल कराने वाले थे। सारी कायनात के उद्धार को संपन्न करने वाले थे। एक महान बलिदान देने वाले थे। इसलिए जब समय पूरा हुआ तो वे अपने इस अंतिम मिशन की ओर चल पडते हैं। योहन 13, 1 में हम पढते हैं - ‘‘ईसा जानते थे कि मेरी घडी आ गयी है और मुझे यह संसार छोडकर पिता के पास जाना है। वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने वाले थे।’’ आज हम उस दिन की याद करते हैं जब प्रभु अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने के लिए येरूसलेम की ओर बढते हैं। हमारे प्रति पिता के प्रेम का सबूत देने के लिए वे उस नगर में प्रवेश करते हैं जहाँ उनके प्राणों के दुश्मन उन्हें क्रूरतापूर्वक मार डालने की योजनायें बना रहे थे।
आज प्रभु येसु, सुसमाचार की सच्चाई को अपने आपमें धारण करते हैं और उसकी घोषणा करते हैं। उन्होंने अपने षिष्यों से कहा था - ‘‘जब तक गेहूं का दाना जमीन पर गिरकर मर नहीं जाता वह तब तक अकेला रहता है, पर जब वह मर जाता है तब वह बहुत फल उत्पन्न करता है।’’ येसु स्वयं वह बीच है जो येरूसलेम की उस प्रचीन भूमि पर गिरा। ये वही गेंहूँ का दाना है जो मरकर बहुत फल उत्पन्न करता है, जो मुक्ति के फल उत्पन्न करता है। अतः मानवों की मुक्ति के लिए उनका मरना आवश्यक था ।
हम हमारी मृत्यु से दूर भागते हैं। परन्तु प्रभु येसु अपनी मौत को ख़ुशी से गले लगाने के लिए येरूसालेम में प्रवेश करते हैं। वे मौत के भय से पीछे नहीं हटते। क्योंकि वे अपनी मौत की कीमत जानते थे। वे जानते थे कि उनका हर दुख, हर दर्द, हर एक कोडों की मार, उनका हर घांव, काटों वो ताज, और हाथ पैरों की वो कीलें ये सब मानव के पापों की मुक्ति के लिए आवश्यक हैं। प्रभु येसु के लिए अपने मानवीय जीवन से महान है पापी आत्माओं का उद्धार।
प्रभु येसु स्वर्ग के राज्य की स्थापना करने के लिए इस जहान में आये थे। जब यर्दन नदी में अपने बपतिस्मा के बाद उन्होंने सुसमाचार का प्रचार प्रारम्भ किया उनका पहला सन्देश यही था। पश्चाताप करो, स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। विभिन्न कहानियों एवं दृष्टांतों द्वारा वे इस राज्य के बारे में लोगों को समझते रहे। पर लोग उन्हें सही अर्थों में समझ नहीं पाये। क्योंकि ईश्वर का राज्य संसार के राज्यों और ईश्वर का शासन सांसारिक राजाओं के शासन से बहुत ही भिन्न है। यह हिंसा एवं खुन खराबे के साथ सत्ता हासिल करने वाला राज्य नहीं। यह निर्बलों पर निरंकुष शासन करने वाला राज्य नहीं। यह गरीबों और बेसहारों का शोषण करने वाला राज्य नहीं। परन्तु यह है विनम्रता, अंहिसा, प्रेम, दयालुता और क्षमा का राज्य। दुनिया के राजा अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए हथियार बंद सेनाओं के साथ अपने दुष्मनों पर चढाई करते हैं। पर आज सारी दुनिया का राजा निहत्थे ही महज बारह अनुयायों के साथ पूरे संसार पर विजय पाने चल पडा है। उनको रथ, घोडों अथवा पालकी की ज़रूरत नहीं क्योंकि उनका राज्य इस दुनिया के दिखावटी वैभव पर टिका हुआ नहीं है। ये विनम्रता का राज्य है इसलिए उनके लिए एक तुच्छ समझा जाने वाला जानवर, गधा ही काफी था। वे गधे की सवारी करते हुए, विनम्रता का पाठ पढाते हुए वे येरूसलेम की ओर निकल पडे हैं। आज के दूसरे पथ में संत पौलुस हमें बताते हैं - "उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया है। और मनुष्यों का रूप धारण करने के बाद वह मरण तक, हाँ क्रूस के मरण तक, आज्ञाकारी बन गये ओर इस प्रकार उन्होंने अपने को और भी दीन बना लिया है। इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान बना दिया है।"
जैसा कि प्रारम्भ में बताया गया है कि ये सब उस समय सम्पन्न होता है जब यहूदी लोग अपना वार्षिक पास्का पर्व मनाने पवित्र नगरी येरूसलेम आते हैं। यह पर्व मिस्र देश से उनकी आज़ादी की धार्मिक यादगारी पर्व है जब ईश्वर ने उन्हें मेमने के रक्त के चिन्ह द्वारा दूत की तलवार एवं फिराऊँ की गुलामी से बचाया था। ये उनकी मुक्ति का पर्व था। नये विधान का मेमना, प्रभु येसु शैतान रूपी फिराऊँ और पाप रूपी मिस्र से सारी मानव जाती को छुडाने के लिए इसी समय को चुनता हैं। हज़ारों यहूदी तीर्थ यात्रा करते हुए येरूसलेम पहुंच रहे थे। उसी बीच गधे पर सवार यहूदियों का राजा येरूसलेम की ओर बढ़ता है। तीर्थ यात्री उनके सामने रास्ते पर अपने कपडे बिछाते एवं जैतुन की डालियां लहराते हुए अपने राजा का स्वागत करते व भजन गाते हुए कहते हैं - होसन्ना, होसान्ना, होसान्ना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम पर आते हैं स्वर्ग प्रभु को होसान्ना!!!
आज हम प्रभु येसु के साथ उस भीड में उनके पीछे-पीछे येरूसलेम की पवित्र नगरी मेंप्रवेश करें। आज से हम पवित्र सप्ताह का आरम्भ कर रहे हैं। यह वास्तव में अति पवित्र सप्ताह है। यह वह मुल्यवान समय है जब हमारी मुक्ति का कार्य सम्पन्न हुआ। विभिन्न प्रकार के लोग इस भीड मे प्रभु के साथ येरूलेम में प्रवेश कर रहे हैं। हम भी इस भीड के साथ पवित्र नगरी मेंप्रवेश करें। और हमारी मुक्ति के उन मुल्यवान पलों को हमारे जीवन में जिंदा करें। सैकडों की भीड जो आज होसान्ना गा रही है, जो आज प्रभु की तारीफ कर रही है, तीन दिनों के बाद - इसे क्रूस दो, इसे क्रूस दो कह कर चिल्लाएगी। तीन सालों तक उनके करीब रहकर उनके वचनों को सुनने वाले व चिन्ह और चमत्कार देखने वाले शिष्य भाग खडे होंगे, सबसे भरोसेमंदशिष्य पेत्रुस, याकूब और योहन गेथसेमनी की प्राणपीडा के समय प्रार्थना करके उन्हें ढाढस बंधाने की जगह, सो जायेंगे। पिलातुस उन्हें निर्दोष मानकर रिहा करने का मन बनाने पर सारे यहूदी नेता और भीड उनके विरूद्ध एक स्वर में उन्हें क्रूस देने की गुहार लगाएंगे। उनके साथ मर जाने की बात कहने वाला पेत्रुस उन्हें पहचानने तक से इनकार कर देगा। उनका ही करीबी मित्र चाँदी के चंद सिक्कों के बदले उन्हें बेच देगा। झूठादोषारोपण, अन्यायपूर्ण दंड़, सैनिकों की क्रूरता, उनके द्वारा किया गया अपमान, सब के द्वारा ठुकराया गया एक अभागे इंसान से येसु कलवारी के पहाड़ पर मुक्ति का महायज्ञ सम्पन्न करने जा रहे हैं। उनके इन अत्यंत दुःखमयी पलों में उनकी प्यारी माँ मरिया, कुछ धार्मिक स्त्रियाँ, संत योहन, अरिमिथिया का युसूफ एवं निकोदेमुस उनके आस-पास रहते हैं। जब हम प्रभु के साथ मुक्ति के इन पलों को मनाने जा रहे हैं तो हम अपने आप से पुछें कि मैं किसका किरदार अदा करने जा रहा हूँ? उस धोखेबाज भीड का जो कभी होसन्ना तो कभी क्रूस देने की बात कहती है? या उन शिष्यों का जो डर के मारे उन्हें छोडकर भाग खडे होते हैं अथवा उन्हें पहचाने से भी इनकार कर देते हैं? या फिर उन सैनिकों का जो अपने ही प्रभु ईश्वर पर हाथ उठाते हैं, जो अपने ही मुक्तिदाता पर कोडे बरसाते हैं? या फिर माता मरियम, धार्मिक नारियों एवं संत योहन का जो कि प्रभु के इन असहय दुखों की घडी में उनके साथ रहे व उनके दुखों में भागीदार हुए? या फिर उस भले डाकू का जो यह कहता है कि प्रभु आप जब अपने राज्य में आयेंगे तो मुझे याद कीजिएगा। सारी जिंदगी बुराईयों में बिताने के बाद भी अंतिम क्षणों का उसका पश्चाताप उसे स्वर्ग दिला देता है। प्रभु उससे कहते हैं आज ही तुम मेरे साथ स्वर्ग में होंगे। उसने विश्वास किया कि येसु उसको अनन्त मृत्यु से बचा सकते हैं। वचन कहता है रोमियों 3, 25 में - ‘‘ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायष्चित करें और हम विष्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें।’’ आइये हम हमारे कमजोर टूटे व जर्जर विश्वास को बटोरते हुए, अपनी बिखरी हुई मानवता को समटते हुए इस पवित्र एवं मुक्ति के सप्ताह में प्रवेश करें। प्रभु के साथ हमारी मुक्ति के उन पलों को सजीव करें, जब हमारे प्रभु येसु ने दुःख भोगा, क्रूस पर चढाये गये मर गये, दफनाये गये व तीसरे दिन वे फिर जी उठे।
आमेन।
Thank you very much. And may God bless your good works.
ReplyDeleteThank you Fatherji.
ReplyDeleteAll praise and glory to Jesus Christ.
Thank you Fatherji.
ReplyDeleteAll praise and glory to Jesus Christ.