Saturday, 12 January 2019

प्रभु येसु का बपतिस्मा: हिंदी प्रवचन

यशायाह ४२,१-४. ६-७ 
प्रे. च.  १०,३४-३८ 
लूकस ३, १५-१६. २१-२२  
आज हम उस महान घटना की याद करते हैं जब इस दुनिया का रचने वाला सारे ब्ररह्माण्ड का मालिक यर्दन नदी में, पापियों की भीड में पापी जगत के उद्धार हेतु अपने आपको अत्यंत विनम्र बनाते हुए, योहन के सामने सिर झुकाकर बपतिस्मा ग्रहण करते हैं। हम यह जानते हैं कि योहन बपतिस्मादाता का बपतिस्मा तो पापों के पश्चाताप का बपतिस्मा था। तो फिर येसु के द्वारा वह बपतिस्मा लेने का क्या औचित्य? वे तो निष्पाप थे! संत पेत्रुस जो स्वयं उनके साथ रहे अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं - ‘‘उन्होंने कोई पाप नहीं किया और उनके मुख से कभी छल कपट की बात नहीं निकली’’ (1 पेत्रुस 2,22)। संत योहन भी इस बात की पुष्टि करते हैं - ‘‘तुम जानते हो कि मसीह पाप हरने के लिए प्रकट हुए। उनमें कोई पाप नहीं है’’ (1योहन 3, 5)।  उनके इस दुनिया में आने  का उद्देष्य यही  था कि वे निर्दोष होते हुवे भी सारी मानवजाति के पापों का बोझ अपने ऊपर ले और अपने क्रूस बलिदान द्वारा सबों को पाप व मौत से छुटकारा दे सकें।  इसलिए उन्हें यर्दन किनारे देख योहन कहता है - ‘‘देखो- ईश्वर  का मेमना, जो संसार का पाप हर लेता है’’(योहन1,36)। वही योहन प्रकाशना ग्रंथ 5,9 में कहते हैं - ‘‘तू पुस्तक ग्रहण कर उसकी मोहरें खोलने योग्य है, क्योंकि तेरा वध किया गया है। तूने अपना रक्त बहा कर ईष्वर के लिए प्रत्येक वंश, भाषा, प्रजाती और राष्ट्र से मनुष्यों को खरीद लिया है।’’ उसने अपने लहू की कीमत चुका कर पापियों का उद्धार करने, उन्हें खरीद लिया है। यर्दन का यह बपतिस्मा कलवारी पर जो पूर्ण हुआ, उसका आगाज़ मात्र था। संत लूकस 12,50 में वे कहते हैं - ‘‘मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह पूर्ण नहीं हो जाता मैं कितना व्याकुल हूँ।’’ यर्दन नदी में जिसका आगाज़ हुआ वो कलवारी पर पूर्ण हुआ जहाँ पर उन्होंने वास्तव में एक बलित मेमना बनकर सारे संसारे के पापों को हर लिया। संत पौलुस रोमियों 8,3 में इस प्रकार कहते हैं - ‘‘इस प्रकार ईश्वर ने मानव शरीर में पाप को दंडित किया है, जिससे हम में जो कि शरीर के अनुसार नहीं, बल्कि आत्मा के अनुसार आचरण करते हैं- संहिता की धार्मिकता पूर्णता तक पहुंच जाये।"
यहाँ एक बात गौरतबल है कि हमारी मुक्ति के इस कार्य का आगाज, उसकी शुरूआत आत्मा के अभिषेक से होती है। ईष्वर का पुत्र यर्दन नदी में डूबकी लगाकर जैसे ही निकलता है और सारे संसार के लिए प्रार्थना में लीन रहता है उसी समय स्वर्ग खुल  जाता है। कितनी महान घटना है यह! आदि काल से पापी मनुष्यों के लिए बंद स्वर्ग आज खुल गया। पिता के घर के वे दरवाज़े जो हमारे पापों के परिणाम स्वरूप बंद हो गये थे, आज खुल गये। एक नये युग की शुरूआत हो गई; उद्धार का आगाज़ हो गया। और इस शुरूआत को मुकाम तक पहुंचाने में पवित्र आत्मा के अभिषेक की ज़रूरत थी। पिता ने अपने पुत्र के ऊपर वही आत्मा उतारा जिसकी प्रतिज्ञा व भविष्यवाणी वह आज के पहले पाठ में करते हैं - ‘‘यह मेरा सेवका है मैं इसे संभालता हूँ। मैं ने इसे चुना है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ। मैं ने इसे अपना आत्मा प्रदान किया है।" मुक्तिकार्य को संपन्न करने के लिए येसु को पवित्र आत्मा की विषेष ज़रूरत थी। आत्मा के सामर्थ्य से ही वे शैतान के कार्यों को समाप्त करते हुए सेवकाई करते थे व सुसमाचार का प्रचार करते थे। संत लूकस 4,18 में हम पढते हैं  - ‘‘ईश्व र  का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बंदियों को मुक्ति और अंधों को दृृष्टिदान का संदेष दूँ। दलितों को स्वतंत्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।’’

प्यारे विश्वासियों , मुक्ति कार्य पवित्र आत्मा की शक्ति व सामर्थ्य  से ही संपन्न हुआ है और उसका प्रभाव या उसका लाभ लेने के लिए हमें भी उसी आत्मा से भर जाने की ज़रूरत है। पवित्र आत्मा के अभिषेक के बिना यह असंभव है कि कोई येसु को पहचान सके या उसे जाने व स्वीकार करें। 1 कोरिंथियों 12,3 में वचन कहता है - ‘‘कोई पवित्र आत्मा की प्रेरणा के बिना यह नहीं कह सकता ईसा ही प्रभु हैं।’’ 
जितनी ईश  पुत्र प्रभु येसु को पवित्र आत्मा की ज़रूरत थी उससे कई गुना अधिक हमें जो कि उनके अनुयाई हैं आत्मा के अभिषेक की ज़रूरत है। स्वर्गीय पिता मांगने वालों को पवित्र आत्मा देने को सदा तत्पर हैं। लूकस 11,13 में वचन कहता है  ‘‘यदि बूरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीज़ें देते हो, तो मंागने पर तुम्हारा स्वर्गीक पिता तुम्हें पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?’’ प्रभु ने हमें हमारी प्रार्थनाओं में धन, दौलत, शौहरत और आराम की जिंदगी मांगने को नहीं कहा, पर पवित्र आत्मा मांगने को कहा है। प्रभु येसु ने स्वयं यह ज़रूरी समझा और हमें यह आश्वासन दिया कि वे हमारे लिए पिता से पवित्र आत्मा भेजने के लिए प्रार्थना करेंगे - ‘‘मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा, वह सत्य का आत्मा है’’ (योहन14,15)। 
पवित्र आत्मा ईश्वर  की ओर से हमें दिया जाने वाला सबसे उत्तम दान है। इसलिए सात संस्कारों में सबसे पहले हमें बपतिस्मा दिया जाता है जिसमें  हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया जाता है। मसीही जीवन की शुरूआत पवित्र आत्मा से होती है। पवित्र आत्मा की शक्ति व साम्थ्र्य से ही प्रभु येसु मनुष्य बने, आत्मा के अभिषेक के बाद ही कलीसिया का आरम्भ हुआ। 
ख्रीस्त में प्यारे विश्वासियों  इसिलिए यदि उद्धार का  जीवन जीना है, मुक्ति के मार्ग पर चलते हुए येसु मसीह के साथ अनंत जीवन में प्रवश करना है तो पवित्र आत्मा को अपना दोस्त बना लें। रोज़ आत्मा के नये अभिषेक के लिए प्रार्थना करें। उससे भरपूर होने के लिए तरसें। आत्मा से रोज बातें करें, एक दोस्त की तरह और वह तुम्हें ‘‘पूर्ण सत्य तक ले जायेगा।’’ योहन (16,13) 
आमेन। 


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