Saturday, 30 March 2019

चालीसा काल का चौथा रविवार हिंदी प्रवचन


योशुआ  5ः9-12
2 कुरिंथयों 5ः19-21
लूकस 15ः1-3.11-32

आज हमारे मनन चिंतन का विषय है वही सुनी-सुनाई और रटी-रटाई ‘खोए बेटे की कहानी।’ यह एक ऐसी कहानी है जो हर समय और हर काल में पिता का दयामय चेहरा हमारे सामने ताजा कर देती है। जब हम मनुष्य और ईश्वर  के बीच संबंधों की बात करते हैं तो साधारण तौर पर इन दोनों वास्तविकताओं के बीच ज़मीन आसमान का अंतर पाते हैं । साधारण जनमानस के लिए ईश्वर  आसानी से प्राप्त नहीं होने वाली शक्ति है; ईश्वर  एक अदृष्य शक्ति है जिसे इंसान कई जतन करने पर ही पा सकता है; वह एक दिव्य शक्ति है जो मनुष्यों की पहुँच बहुत परे है। ये सारी बातें सत्य है। ईश्वर  एक विशाल व अगम्य वास्तविकता है जिसके सामने हम मनुष्य कुछ भी नहीं है। ईश्वर  के साथ अपने रिश्ते को समझने के लिए कई विद्वानों ने बरसों गुज़्ाार दिये, कई ज्ञानियों ने अपनी उमर गुज़ार दी। कई दार्शनिकों  और विचारकों ने ईश्वर और इंसान के बीच संबंध को समझाने के लिए बडे-बडे ग्रंथ लिख डाले। किसी ने इस  रिश्ते को , आत्मा  और परमात्मा के रूप में परिभाषित किया। किसी ने इसे आध्यात्मिक और भौतिक के रूप में तो कि सी ने नष्वर और अनष्वर के रूप में समझाा। जितना अधिक उन्होंने इस दशा  में सोचना चाहा उतना ही अधिक उन्होंने इंसान को ईश्वर  से दूर पाया। सदियों पुराने जटिल सवाल का जवाब प्रभु येसु ने बडे ही सहज तरीके से खोये हुए बेटे की कहानी में दे दिया। और वह ईश्वर  हमारा पिता है और हम उसकी संताने हैं। ईश्वर  वास्तव में उतना जटील नहीं है जितना हम मनुष्य उन्हें बना देते हैं। कई बार हमें ये लगता है कि ईश्वर  की रूची सिर्फ ये देखने में  रहती है कि मैं कितना पाप कर रहा हूँ। वह एक चौकिदार की तरह मेरे कुकर्मों पर निगाह रखता है और उनके लिए मुझे दंड देगा। कई बार धर्मशिक्षा  में भी बच्चों को यही सिखाया जाता है कि यदि वे पाप करेंगे तो ईश्वर  उन्हें दंडित करेगा; पाप करने वालों को सजा दी जायेगी; आदि। और ईश्वरीय दंड का यह डर हमारी नैतिकता या अच्छे आचरण का मापदंड बन जाता है। हम ईश्वर  की सजा के डर के कारण पाप से दूर रहने का प्रयास करते हैं। पर प्रभु आज हमें यह विश्वाश दिलाना चा हते हैं कि वे कोई डरावने व्यक्ति नहीं परन्तु एक दयालु और क्षमाशील  पिता है। जब हम पाप करके; उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके; उनके प्रेमी हृदय को तोडकर; उनसे दूर चले जाते हैं तो वह क्रोधित होकर हमें हमारे गुनाहों की सज़ा देने के लिए नहीं परन्तु हमें क्षमाकर के अपने घर में फिर से स्वागत करने के लिए इंतजार करता है। उनकी आँखें हमारे गुनाहों का हिसाब रखने के लिए नहीं परन्तु इसलिए हमारा पीछा करती हैं कि किस दिन उसका यह प्यार बेटा या प्यारी बेटी होश  में आयेगा/आयेगी और पिता के घर तरफ की राहों पर कदम बढाते हुए पिता की देहली पर आकर पिता से कहेंगे कि पिताजी मैं ने आप के विरूद्ध पाप किया है। उनकी आँखें घर वापस लौटते अपने बच्चों को देखने के लिए तरसती हैं। उनके कान ये सुनने को तरसे हैं - पिताजी मुझसे भूल हो गई, मुझसे गलती हो गई; मैं फिर से अपने घर में आपके साथ रहना चाहता हूँ, भले ही बेटे की तरह नहीं तो कमसे कम एक नौकर की तरह ही सही पर मैं तेरे साथ ही रहना चाहता हूँ। हमारा पिता दंड देने के लिए नहीं पर माफ करके गले लगाने के लिए उत्सुक है। मेरे गुनाहों को गिनाने नहीं पर मुझे फिर से बेटा कहकर पुकारने के लिए उत्सुक है। स्तोत्र ग्रंथ 103ः10 में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न ही हमारे अपराधों के अनुसार हमें दंड देता है. . .पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता हैः क्योंकि वह जानता कि हम किस चीज़ के बने हैं उसे याद रहता है कि हम मिट्टी हैं।’’ जि हाँ वह इसलिए दया दिखाता है क्योंकि उसे मालुम है कि हम मिट्टी के बने इंसान हैं, उसे मालुम है कि हम कमज़ोर हैं। इसलिए वह हम पर तरस खाता है।
उनका हमारे प्रति प्रेम और उनकी दयालुता व क्षमाशीलता  हमारी सारी कल्पनाओं व विचारों से भी महान है। संत योहन मरिया वियान्नी कहते हैं - ईश्वर  की क्षमाषिलता के विषाल पहाड के सामने हमारे बडे से बडे पाप भी धूल के एक कण के बराबर होते हैं। जितनी दया व क्षमा  की हमें उम्मीद रहती है प्रभु उससे कई गुना अधिक दया व प्यार हमें दिखाते हैं।

खोए हुए बेटे पर आधारित अनिल काँत की फिल्म ‘मेरा बेटा’ में जब बेटा वापस लौटकर आता है तो वह अपने घर पर पिताजी को नहीं पाता है। उसके आंगन में उनका माली मिल जाता है और कहता है कि आपके पापा तो आॅफिस गये हैं। इस पर बेटा उनसे कहता है कि जब पापा घर आये तो उनसे कहना कि मै उनसे मिलने की ख्वाहिश लेकर घर आया था। यदि वे मुझसे मिलना चाहते हैं तो आँगन में दरवाजे वाली लाईट जलाकर रखें। मैं वापस आऊंगा तो लाईट देखकर समझ जाऊँगा कि पापा मुझसे मिलना चाहते हैं। या नहीं यदि लाईट चालू नहीं दिखी तो मैं वापस लौट जाऊँगा और फिर कभी नहीं आऊँगा। यह कहकर वह वहाँ से चला जाता है। जब वह वापस लौटता है तो क्या देखता है कि उसके दरवाजे के सामने की लाईट ही नहीं परन्तु उसका सारा घर रोशनी से सरोबार था। पूरी बिल्डिंग लाईट्स से सजाई गई थी।

प्यारे विश्वासियों यही है आज के सुसमाचार का सन्देश। हमारे छोटे-बडे पापों की तुलना में हमें माफ करने वाले पिता का हृदय बहुत ही विशाल  है। हमारे प्रति उस प्रेमी पिता की इच्छा को प्रभु येसु ने कुछ इस तरह बयाँ किया है- ‘‘जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, उन में से एक का भी सर्वनाष न होने दूँ।’’  (संत योहन 6 :39 )ा  प्रभु नहीं चाहता कि उनकी संतानों में से एक का भी सर्वनाश  हो। बाकि निन्यानबे भेडों को छोडकर वह भटकी हुई एक भेड की भी खोज में निकल पडता है। और जब तक वह उसे नहीं पाता उसे ढुंँढता रहता है। और उसे पाने पर वह आनन्दित हो उठता है (लूकस 15ः1-7)।

आज हम अपने आप से पुछें हम कहाँ हैं? अपने पिता के घर में या फिर पिता के घर से दूर की एक दुनिया में? यदि हम अपने पिता के घर से दूर चले गये हैं तो चालिसा काल हमें एक और मौका दे रहा है। हमारा पिता हर एक अपने बच्चे की राह तकता दरवाजे़ पर खडा है। उसकी नज़रें उसी राह तरफ निहार रही हैं  जिस राह से हम उन से दूर निकल गये थे। आओ, हम अब लौट चलें। आओ हम अपने पिता के घर वापस चलें। वह हमें फिर से अपनायेगा। वह हमें फिर से गले लगायेगा। और अपने बेटे-बेटियां कहलाने का अधिकार हमें वापस प्रदान करेगा। आमेन।


Saturday, 23 March 2019

चालीसे का तीसरा रविवार: हिंदी प्रवचन

निर्गमन ग्रंथ 3ः1-8.13-15
1 कुरिंथियों 10ः1-6.10-12
लूकस 13ः1-9
चालीसे के तीसरे रविवार में आज प्रभु हम से कहते हैं- ‘‘मैं ने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दषा देखी और अत्याचारियों से मुक्ति के लिए उसकी पुकार सुनी है। मैं उसका दुःख अच्छी तरह जानता हूँ। मैं उसे मिस्रियों के हाथ से छुडा कर और इस देष से निकालकर, एक समृृद्ध तथा विषाल देष ले जाऊँगा, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती है।’’
इस्राएली लोग मूसा की अगुवाई में मिस्र की गुलामी से मुक्त से होकर, लाल सागर व मरूभूमि पार करते हुए उस देष में प्रवेष करते हैं जिसे ईष्वर ने उन्हें देने की प्रतिज्ञा की थी।

और दूसरे पाठ में संत पौलुस हमें यह बतलाते हैं कि इस्राएलियों के साथ जो कुछ हुआ वह दृष्टांत के रूप में अर्थात् प्रतिकात्मक रूप से उनके द्वारा, इस युग के लिए एक संदेष दिया गया है। इसलिए हजारों साल पहले एक विषेष जाती के लोगों को बताई गई बात आज हमारे लिए भी प्रासंगिक है। आज पापों की दासता रूपी मिस्र देष में बूरी तरह से फँसे अपने लोगों को ईष्वर देख रहा है। पापों के बोझ से दबे अपने लोगों की दयनीय दषा प्रभु जानते हैं। पाप व उसके प्रभाव ने ईष्वर के ही स्वरूप में गढे गये इंसान की आज क्या हालत कर दी है? पापों से मुक्ति के लिए कई जतन करते हुए लोगों को ईष्वर देख रहा है। और आज वह हम से कहता है - कि मैं तुम्हें शैतान व पाप की दासता के बंधनों से मुक्त कर एक ऐसे देष ले जाऊंगा जहां पाप व उसकी ताकतों का कोई जोर नहीं चलता। जहाँ दूध और मधू की नदियां बहती हैं याने जहां आनन्द ही आनन्द है।
कौन प्रभु के द्वारा मुफ्त प्रदान की गई इस मुक्ति को प्राप्त करेगा? वही जो इसके लिए तरसता है, वही जो इसके लिए भूखा और प्यासा है? आज के पहले पाठ में प्रभु ने कहा है कि उन्होेंने मुक्ति के लिए इस्राएलियों की पुकार सुनी है। जो काई मुक्ति के लिए ईष्वर को पुकारेगा, प्रभु उसकी पुकार सुनेगा। और आज भी येसु को उसके जीवन में भेजागा ताकि जैसे मूसा इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले आया वैसे ही प्रभु येसु हमें पापों की दासता से छुडाकर अनन्त मुक्ति की ओर ले जायेगा।
हमारे पापों के कारण हम सब विनाष के पात्र बन गये हैं। लेकिन प्रभु येसु हमारा विनाष नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि हम में से हर कोई बच जाये। इसलिए आज के सुसमाचार में वे एक दृष्टांत के द्वारा वे हमें बतलाते हैं कि किस प्रकार से दाखबारी का मालिक अंजिर के पेड में फल न पाकर निराष होकर उसे काट डालने का आदेष देता है पर माली उस पेड का पक्ष लेता है और कहता है इसे और मौका दिया जाये। मैं इसमें इसकी गुडाई करूंगा, खाद डालुंगा और प्रयास करूंगा कि ये अगले साल फल दें। हम जो हमारे पापों के कारण अपनी आत्मा को विनाष के कागार पर ले आये हैं जैसा कि संत मत्ती 3ः10 में लिखा है - ‘‘अब पेडों की जड में कुल्हाडा लग चुका है। जो पेड अच्छा फल नहीं देता वह काटा और आग में झोंक दिया जायेगा।’’ इसलिए हम जो अपने पापों के कारण ईष्वर से सूखी डालियों की तरह अलग हो गये हैं संत योहन 15ः6 में वचन कहता है वे आग में झोंक दिये जायेेंगे। तो प्यारे विष्वासियों पाप में हमारी हालत यह है। हम जो कि पापमय जीवन जीते हैं हम इसी लायक हैं कि हम नरक की आग में फेंक दिये जायें। परन्तु हमारा उद्धारक, हमारा प्रेम करने वाला प्रभु येसु हमारी तरफदारी करते हुए आज भी पिता से यही गुहार लगा रहा है। इसका विनाष मत करिये, इसे एक और मौका दीजिए, मैं प्रयास करूंगा कि इस व्यक्ति में सुधार आये। मैं वे सारे प्रयास करूंगा जिससे यह व्यक्ति फिर से अध्यात्मिक फल उत्पन्न करने लग जाये।
प्यारे विष्वासियों चालीसे के इस पुण्य समय में प्रभु हमें सुधरने का एक और मौका दे रहे हैं। हमारे मुक्तिदाता येसु हमारा पक्ष लेते हुए हमसे यही उम्मीद कर रहे हैं कि हम उनके मुक्तिकार्य में अपनी तरफ से सहयोग करें। व जैसा वे हम से उम्मीद करते हैं वैसा ही जीवन व्यतित करें। ताकि परम पिता ईष्वर जब हम में फलों की परख करने आये तो हमें बहुत ही फलवन्त पाये। हमारे आध्यात्मि जीवन को देखकर वे प्रसन्न हों और हमें हमेषा के लिए अपनी दाखबारी में सदाबहार पेड की तरह लहलहाने की कृपा व बरकत बख्शे। आमेन।

Saturday, 16 March 2019

चालीसा का दूसरा रविवार:हिंदी प्रवचन 17 मार्च 2019

उत्पत्ति ग्रंथ 12, 1-4
2 तिमिथी 2 1, 8-10
मत्ती 17, 1-9

एकान्तवास, प्राकृतिक सुंदरता, प्रार्थना एवं भक्ति तथा इश्वरीय अनुभव प्राप्त करने के लिए कई जवान लडके लडकियाँ कॉन्वेंट अथवा विभिन्न मठों में प्रवेश लेते हैं। इस दुनिया की भीड-भाड एवं शोर-गुल से अलग एकांत में प्रभु भक्ति में समय बिताने का अपना अलग ही आनन्द रहता है। कई बार लोग अपने व्यस्ततम जीवन से उबकर एकान्त स्थानों पर, प्रकृति के आंचल तले, सकून और शांति पाने के लिए जाते हैं। कई लोग आश्रमों अथवा इस प्रकार के आध्यात्मिक स्थलों पर जाकर प्रार्थना में समय बिताना पसंद करते हैं, जहां उन्हें ईश्वरीय उपस्थिति का अभास होता है। कई बार फादर सिस्टर्स जो शिक्षा, स्वास्थ्य एवं समाजिक उत्थान की विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, अपना कुछ समय रिट्रीट एवं प्रार्थना में बिताने के लिए, वे एक शांतिपूर्ण स्थानों पर जाते हैं, जहां वे प्रार्थना एवं मनन ध्यान करते हुए ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते व ईश्वर से आध्यात्मिक संवाद करते हैं। आजकल रिट्रीट एवं आध्यत्मिक साधना के लिए ऐसे कई केंद्र खोले जा रहे हैं जहां लोग आकर कुछ समय बिताते व अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं का निदान पाते हैं। कई लोग इन स्थानों पर आकर अपना पुराना जीवन बदल कर एक नई जिंदगी की शुरूआत करते हैं। कई अपनी पुरानी बूरी आदतों व पापमय जीवन को छोडकर एक नया जीवन ग्रहण कर वापस लौटते हैं। कई लोग अपनी रिट्रीट समाप्त हो जाने पर भी वहां से जाना नहीं चाहते। उन्हें वह स्थान, वहां का प्रार्थनामय माहौल, ईश्वरीयअनुभूति और आत्मिक सुकून अच्छा व सुखद लगता है। उन्हें वापस उस माहौल में जाने से डर  लगता है जहां बुराईयों का संसार है, जहां चुनौतियां है, जहां जीवन का संघर्ष है। वैसा ही आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के शिष्यों के साथ होता है।
प्रभु येसु अपने तीन शिष्यों पेत्रुस, याकूब और योहन को उनके सामने एक रहास्योद्घाटन करने के लिए ताबोर पर्वत पर ले जाते हैं। जब वे उस पहाड पर ही थे कि उनके सामने प्रभु येसु का मुखमंडल सूर्य की तरह दमक उठा और उनके वस्त्र प्रकाश के समान उज्वल्ल हो गये। शिष्यों को मूसा और एलियस येसु के साथ बातचित करते दिखाई पडे तथा उन्होंने आसमान से एक वाणी को यह कहते सुना - यह मेरा प्रिय पुत्र है, मैं इस पर अन्यन्त प्रसन्न हूँ, इसकी सुनो। इन तीन शिष्यों के लिए यह दिव्य दृष्य काफी चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक उन्होंने प्रभु येसु को एक साधारण पुरूष के रूप में ही देखा था। उन्होंने उन्हें इस महिमा में नहीं देखा था। प्रभु येसु जान बूझकर अपने शिष्यों को यह दिव्य दृष्य दिखाना चाहते थे ताकि निकट भविष्य में जब वे यहूदियों द्वारा पकडाये जायेंगे व क्रूस पर दर्दनाक मौत मरेंगे, तब उनका मन विचलित न हो जाए। तब उन्हें यह दिव्य दृष्य याद रहे कि प्रभु येसु सिर्फ एक साधरण इंसान नहीं है। वे सच्चे ईश्वर और सच्चे मनुष्य हैं। इस मानव रूप में उनके दुख भोगने के बाद वे अपार महिमा में जी उठेंगे। सांसारिक दुखों व कष्टों के बाद महिमामय आनन्द व उल्लास है। पर वे अपने शिष्यों से इस बात के विषय में उनके पुररूत्थान तक किसी से बात नहीं करने की समझाईश देते हैं। क्योंकि वे ये नहीं चाहते थे कि उनके अनुयायी सिर्फ उनकी महिमा व दिव्य शक्ति को देखकर उनका अनुसरण करे। वे यह चाहते थे कि उनके अनुयायी अपने दैनिक जीवन का क्रूस उठाकर उनका अनुसरण करे। सब लोग यह जानें कि येसु के पीछे जाना मतलब दैनिक जीवन के दुख-दर्द सहते हुए, उनके साथ चलना है। येसु के साथ चलने वाले हर विश्वासी को क्रूस को गले लगाते हुए आगे बढना है। बिना क्रूस के पुनरूत्थान संभव नहीं। स्वर्ग में जाकर ईश्वर की महिमा के भागिदार बनने का कोई शॉर्ट कट नहीं है। इस जीवन के उतार चढाव को पार करते हुए ही हम वहां तक पहुंच सकते हैं। प्रभु कहते हैं स्वर्ग का द्वारा एक संकरा द्वार है। जि हां स्वर्ग का द्वार केवल संकरा ही नहीं, इस मार्ग में पत्थर हैं, कांटे हैं और मुसिबतों के पहाड भी हैं।
तीन शिष्यों को ताबोर पर्वत पर ईश्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर विरोधी तत्वों जैसे शास्त्री एवं फरिसीयों का सामना करना नहीं चाहते थे। वे भीड जो कि दिन रात प्रभु के पीछे रहती थी उससे बचना चाहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईश्वरीयअनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों। जिस ईश्वरीय महिमा व प्रभु की पावन  उपस्थिति का अनुभव उन्हें हुआ उसे वे अपनी परिपूर्णता में इस जीवन के बाद प्राप्त करेंगे। लेकिन तब तक पिता ने जो मिशन उन्हें सौंपा है उसे उन लोगों को पूरा करना है। और इस मिशन को पूरा करने के लिए जीवन में आये हर दुःख व कष्ट को सहना है। प्रभु येसु तो अपना मिशन पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, यहां तक कि क्रूस पर मरने के लिए भी। इसलिए वे अपने शिष्यों को भी उसी प्रकार पूरी तरह से तैयार रहने की शिक्षा दे रहे थे।
आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईश्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईश्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईष्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।

आमेन।

Friday, 8 March 2019

चालीसे का पहला रविवार: हिंदी प्रवचन (10 March, 2019)




ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों,ईश्वर  ने आदम और हेवा को बनाया, उन्हें पृथ्वी पर विचरने वाले हर जीव जन्तुओं पर अधिकार दिया, और उनसे यह उम्मिद की गयी कि वे बदले में ईश्वर  के प्रति आज्ञाकारी व ईमानदार रहें। बल्कि हमारे आदि माता-पिता ने ईश्वर  प्रदत वरदानों के घमंड में ईश्वर  की आज्ञा का उल्लंघन किया जिसका परिणाम उन्हें और उनकी संतानों को भुगतना पडा और आज तक संसार भुगत रहा है। इस बात पर खेद प्रकट करना हमारा हक बनता है कि हमारे आदि माता-पिता ने बहुत ही मुर्खतापूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण कार्य किया है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम उनसे कितने भिन्न हैं। हम हमारे दैनिक जीवन में ईश्वर की दया व कृपा को विभिन्न रूपों में देखते व अनुभव करते हैं। लेकिन हम फिर भी बहुत बार ईश्वर  की आज्ञाओं का उल्लंघन करते तथा हमारे आदि माता-पिता से भी अधिक मुर्खतापूर्ण व दुर्भाग्यपूर्ण कार्य करते हैं। क्या ये हमारे लिए शर्म व खेद की बात नहीं?

जिस प्रलोभन एवं परीक्षा का सामना प्रभु येसु ने किया वे हमारे लिए एक प्रोत्साहन एवं सांत्वना का स्रोत हैं। यदि हमारे प्रभु एवं गुरूवर येसु को स्वयं प्रलोभनों के दौर से गुजरना पडा तो हम भी परीक्षा एवं प्रलोभन मुक्त जीवन की उम्मीद नहीं कर सकते। मूल रूप से हमारे प्रलोभन भी वही है जो आदम हेवा के सामने थे और जो प्रभु येसु के सामने थे। हेवा को सबसे पहले वह फल सुंदर और स्वादिष्ट दिखा। उसे देखने में सुंदर दिखा और उसने सोचा देखने में इतना सुन्दर है तो खाने में कितना स्वादिष्ट होगा। वैसे ही प्रभु येसु के सामने सबसे पहला प्रलोभन शारीरिक भूख मिटाने का था।  शैतान ने उनसे कहा कि वह अपनी दिव्य शक्ति से पत्थर को रोटी बनाकर खा ले क्योंकि वह भूखा है। आज हमारा यह शरीर कई प्रकार की भूखों को शांत करने के लिए हमें बाध्य करता है। हमारी पंचेंद्रियां विभिन्न प्रकार से तृप्त होना चाहती हैं। हमारे समाने विभिन्न प्रकार की भूख रहती है। आँखों की भूख - दूसरों को वासना भरी निगाहों से देखने की भूख, अश्लीलता भरी  चीज़ें देखने और पढने की भूख, अच्छा से अच्छा स्वादिष्ट भोजन करने की भूख, दैहिक वासना की भूख, सच्ची - झूठी तारीफ सुनने की भूख। आरमदायक घर व सुख-सुविधा की भूख अदि। 

फिर शैतान ने हेवा को ईश्वर  के बाराबर हो जाने का प्रलोभन दिया। उसने येसु को भी सारी दुनिया का वैभव दे देने का प्रलोभन दिया। और आज भी वह हमें विभिन्न प्रकार से बडे-बडे वादे करके प्रलोभित करता रहता है। खोखली तारीफ एवं बडापन दिखाने का प्रलोभन, चार जन की भीड में प्रशंसा पाने का प्रलोभन, स्कूल में अव्वल आकर घमंड करने का प्रलोभन, अपने आप को दूसरों से ज़्यादा धार्मिक मानने का प्रलोभन और धन व शक्ति का प्रलोभन आवश्यकता  से अधिक धन और हैसियत से अधिक मान-सम्मान पाने, सत्ता हथियाने एवं दूसरों पर शासन करने की लालच में इंसान कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है। क्योंकि इंसान कमजोर प्राणी है। मत्ती 26,41 में वचन कहता है - अत्मा तो तत्पर है लेकिन शरीर दुर्बल है। हम दुर्बल शरीर वाले प्राणी हैं। 
स्तोत्र 141 में वचन कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। कितनी वास्तविकतापूर्ण प्रार्थना है ये। हमारे चारों ओर बुराइयां ही बुराइयां है। न केवल आज बल्कि उस जमाने में भी इसलिए स्त्रोतकार कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। मत्ती 6 और लूकस 11 में हम पढते हैं कि प्रभु येसु ने अपने शिष्यों को एक प्रार्थना सिखाई। यह सबसे उत्तम प्रार्थना है। हे हमारे पिता............और हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। कितनी सुंदर प्रार्थना है यह। यह सबसे आदर्श, सुंदर और सबसे शक्तिशाली प्रार्थना है। प्रभु ने कहा हे पिता हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से बचा। प्रभु येसु कहते हैं तुम्हें बार बार इस तरह प्रार्थना करने की आवश्यकता  है। क्योंकि सबसे पहले हमारा झूकाव पाप की ओर है।

हम उत्पत्ति 8 में पढते हैं सारे संसार मे पाप भर गया था और ईष्वर ने प्रलय भेजा लेकिन ईष्वर ने नूह और उसके परिवार को बचा लिया और प्रलय के बाद नूह ने ईष्वर के लिए बली चढाई और ईष्वर ने यह कहा कि अब से में मनुष्यों को अभिषाप नहीं दूंगा। क्योंकि बचपन से ही मनुष्यों की प्रवृति पाप की ओर है। इसलिए प्रभु हमसे कहते हैं तुम्हें निरन्तर प्रार्थना करनी है। हे पिता हमें परीक्षा में न डाल।
दूसरी तरफ हम देखते हैं मत्ती 18, 7 में प्रभु कहते हैं कि प्रलोभन अनिवार्य है। प्यारे भाईयों बहनों प्रलोभन देने वाला हर समय हमारे चारों ओर मंडराते रहता है। वह हर समय क्रियाशील  रहता है। संत पेत्रुस 5, 8 में कहते हैं कि "आपका शत्रु शैतान दहाडते सिंह की तरह विचरता रहता है। और ढूंढता रहता है कि किसे फाड खाये।" तो हमारा शत्रु शैतान ढूंढते रहता है कि किसे फाड खायें। हमें हर समय अंधकार की शक्तियों से लडना पडता है, जैसे कि एफेसियों 6 में लिखा है। हर समय विभिन्न नकारात्मक आत्माओं से लडना पडता है। लालच की आत्मा, गुस्से की आत्म, उदासी की आत्म, आलस की आत्मा, निराशा  की आत्मा । हमें इनसे लडना पडता है। हमारा जीवन एक लंबा युद्ध है और इस युद्ध में हमेशा  प्रभु से प्रार्थना करते रहना है कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। 12 कुरिंथयों 11,14 में संत पौलुस कहते हैं कि आप लोग इस चीज से अष्चर्यचकित न हों कि शैतान कभी-कभी स्वर्गदूत का रूप ले सकता है। कभी हमारे सामने आकर्षक बातें आकर्षक चीजें आकर्षक लोगों को ला सकता है। हमें भ्रमित कर सकता है। इस दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसी परिथितियों में भ्रमित हो जाते हैं और आसानी से शैतान के चुंगूल में पड जाते है। इसलिए हमें हर समय प्रार्थना करने की ज़रूरत है। कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न पडने दे। आज हम ऐसे संसार में रह हैं जहां सबसे ज्यादा प्रलोभन देने वाली बातें और चीजें हैं। योहन 17,15-16 में प्रभु ने हमस ब के लिए प्रार्थना की कि पिता मैं नहीं कहता कि उन्हें संसार से उठा ले। वे संसार में हैं लेकिन उन्हें बुराई से बचा। 

हम विश्वासी इस संसार में हैं लेकिन यह स्वभाविक है हम इस संसार की बुराईयों में फंस जाते है।
प्रलोभनों से विजय पाने का रास्ता प्रभु येसु हमें दिखलाते हैं। और वह है पवास, प्रार्थना और ईश  वचन का पठन एवं मनन चिंतन। जब प्रभु येसु की परीक्षा ली गयी उससे पहले वे मरूभूमि में चालीस दिनों तक उपवास व प्रार्थना कर रहे थे। और शैतान के हर बहकावे का वे वचन की शक्ति से सामना कर रहे थे। हम सब कमजोर हैं इसलिए हमें प्रभु से शक्ति प्राप्त करने की ज़रूरत है।
आईये हम प्रभु से प्रार्थना करें। हमें परीक्षा में न पडने दे परन्तु सब बुराईयों से हमें बचा, आमेन।

Tuesday, 5 March 2019

पवित्र राख बुधवार,2019:हिंदी प्रवचन (6 March, 2019)




जोएल २, १२-१८
२ कुरिन्थियों ५, २०-६ ,२
मत्ती ६, १-६, १६-१८

उपवास के आह्वान के साथ आज हम दुःखभोग काल का आगाज़ कर रहे हैं। आत्मा के  शुद्धिकरण एवं प्रभु तथा एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप करने का यह उपयुक्त समय है। यह अनुग्रह का समय है, आत्माओं के उद्धार का समय है, यह अन्यंत कीमती समय है। इसे हम यूँ ही न जाने दें। आज के दूसरे पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘आप को ईष्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न जाने दें; क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी सुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायाता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है’’ (2 कुरिंथियों 6, 2)

पाप से विकृत हमारे मानवीय स्वभाव को आज एक सही दिशा  की ज़रूरत है। पाप की अज्ञानता में खोए मानव को आज प्रभु की ज्योति की ज़रूरत है। रोम. 3,23 में वचन कहता है - ‘‘क्योंकि सब ने पाप किया और सब ईष्वर की महिमा से वंचित हो गये। ईष्वर की कृपा से सबों को मुफ्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है।’’ हममें शायद ही कोई ऐसा होगा जो निष्पाप है, जिसने कभी पाप ही नहीं किया हो। हम सब पापी हैं। और यदि हम यह स्वीकार करते हैं कि हम सब पापी हैं, हम ईष्वर की महिमा से वंचित हैं, अनन्त जीवन हमारे हाथों से फिसलता जा रहा है, हम प्रभु से दूर होते जा रहे हैं, हमारा जीवन अनन्त विनाश  की ओर खींचा चला जा रहा है तो अब यह उचित समय है, हमारे उद्धार का समय है।

आज हम प्रभु की यह वाणी ध्यान से सुने जिसे हमें प्रभु आज के पहले पाठ के माध्यम से कह रहे हैं - ‘‘अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए पूरे हृदय से मेरे पास लौट आओ। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चाताप करो और अपने प्रभु ईष्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनषील और दयासागर है।’’
चालीसे का यह पवित्र समय हमारे लिए प्रार्थना एवं उपवास करते हुए अपने पापों पर पाश्चाताप  करने का उचित समय है। प्रार्थना और उपवास का क्या संबंध है? उपवास हमारी प्रार्थनाओं को अधिक प्रभावशाली बनाता है। कई बार हमारे जीवन में हम ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरते हैं जहाँ कुछ चीज़ अथवा कुछ काम कर पाना हमारी शक्ति के परे हो जाता है। हम प्रार्थना करते हैं, दुआयें मांगते हैं, चर्च जाते हैं, फिर भी हमारा काम नहीं होता है , या फिर हमारी  बुरी आदत नहीं सुधरती। हम हार जाते हैं, टूट जाते हैं। एक बार प्रभु के चेलों के साथ भी ऐसी ही हुआ। संत मारकुस के सुसमाचार 9, 14-29 में हम इस घटना के बारे में पढते हैं जहांँ प्रभु येसु अपने रूपान्तरण के बाद अपने  शिष्यों  के पास लौटते हैं तो उन्हें एक बडी उलझन मंे पाते हैं। एक व्यक्ति अपने बेटे को जो कि अपदूतग्रस्त था उनके पास लाता है और प्रभु के  शिष्य लाख कोशिश  करने के बाद भी उसे नहीं निकाल पाये। आखिर में उसे प्रभु के पास लाया जाता है और प्रभु उसे चंगाई प्रदान करते हैं। तब  शिष्यों ने प्रभु से अपनी असमर्थता का कारण पूछा तो प्रभु ने कहा - ‘‘प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से यह जाति नहीं निकाली जा सकती’’ (मार्क 9, 29)।

हमारे जीवन में कुछ बुराईयाँ ऐसी होती है, जो जीवनभर पीछा नहीं छोडती। हम हजारों कोशिश  करते हैं, पर फिर भी हम उन पापोें अथवा बुराईयों के दास बने रहते हैं। कई ऐसे व्यक्तियों को मैंने देखे है जो विभिन्न प्रकार की बूरी आदतों जैसे नशापान, गाली देना, दूसरों की बुराई करना, वासना के गुलाम बन जाना आदि के ऐसे गुलाम बन जाते हैं कि वे चाह कर भी उनसे मुक्ति एवं छुटकारा नहीं पा सकते। हम मेसे भी कई विभिन्न प्रकार के ऐसे पुराने से पुराने बंधनों से बंधे हुए हैं। बुराईयों ने हमारे ऊपर अधिकार करके रखा है। बुरी आदतें, बुरे विचार हमारे जीवन को चलाती हैं। यदि हम मेसे कोई है जिसे लगता है कि मेरे पापों का, मेरे पापमय स्वभाव का, मेरी बुरी आदत का कोई निदान नहीं हैैं। तो इस चालीसे के समय में उपवास रखकर प्रार्थना करते हुए हम अपनी कमज़ोरियों को प्रभु को समर्पित करें। वह अपने वादे का पक्का है। कोई बंधन ऐसा नहीं जिसे प्रभु येसु नहीं तोड सकते, कोई भी बुरी आदत ऐसी नहीं है जिससे मसीह हमें निजात नहीं दिला सकते। वचन कहता है - ‘‘उसके पुत्र के जीवन द्वारा निष्चय ही हमारा उद्धार होगा‘‘ (रोम 5, 10)। ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को क्रूस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें। आप उनके घावों द्वारा भले चंगे हो गये हैं’‘ (1 पेत्रुस 2, 24) हमारी हर एक कमज़ोरी को, हर एक दुर्बलता प्रभु येसु अपने क्रूस के ऊपर ले जाते हैं और उनके खून बहाये जाने से हमें चंगाई मिलती है, हमें छुटकारा मिलता है। ईष्वर ने हमें अंधकार की अधीनता से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आया। उस पुत्र के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, अर्थात् हमें पापों की क्षमा मिलती है।


चालीसा काल प्रभु के पुनरूत्थान के पर्व की तैयारी का समय है। हम इस समय हमारे पापमय मृत्यु के जीवन को त्यागकर प्रभु के साथ एक नवीनता का जीवन प्रारम्भ करने की तैयारी करते हैं। पवित्र कलीसिया इस पवित्र समय में पुण्य कमाने के तीन प्रमुख मार्ग हमें बतलाती है।
पहला है - उपवास व त्याग करते हुए अपने किये हुए पापों पर पश्ताप  करना व पापमय जीवन को त्यागते हुए प्रभु के करीब आना
दूसरा - प्रार्थना में जीवन बिताना 
तीसरा- दान देना। या ज़रूरतमंदों की सहायता करना। 

इन सब पुण्यकर्मों को करने का हमारा उद्देश्य  हमारे सामने बिल्कुल साफ होना चाहिए। हमारे धर्म कर्मों की जानकारी सिर्फ मुझे और मेरे प्रभु को हो। हमारा उपवास, हमारी प्रार्थना दूसरों को प्रभावित करने के लिए नहीं लेकिन प्रभु को प्रसन्न करने के लिए होना चाहिए। यदि हम दूसरों को दिखाने के लिए, दूसरों की वाह-वही लूटने के लिए, दूसरों से तारीफ पाने के लिए हमारे धर्म-कर्म करते हैं तो आज का सुसमाचार हमसे कहता है हम हमारे स्वर्गीक पिता के पुरस्कार से वंचित हो जायेंगे। प्रार्थना का उद्देष्य यह नहीं कि मैं धार्मिक कहलाऊँ पर यह कि मैं प्रभु से अपना संबंध जोडूं। दान देने का उद्देष्य यह नहीं कि दूसरे लो, मेरी उदारता को जानें पर यह कि मेरे द्वारा किसी गरीब, किसी बेसहारा, किसी पीडित की मदद हो जाये। मेरा धन, मेरी शक्ति व गुण दूसरों के काम आये। मेरे उपवास का मतलब यह नहीं कि लोग मेरी धार्मिकता से वकिफ़ हो जायें, पर यह कि मेरी शारीरिक भूख मुझमें अध्यात्मिक भूख जगाये। रोटी की भूख मुझमें प्रभु व उसके वचनों की भूख जगाये। और मेरे उपवास व त्याग से जो कुछ बचता है उससे मैं किसी ज़रूरतमंद की मदद करूंँ। आने वाले इन चालीस दिनों में यदि मैं इन बातों पर ध्यान देता हूँ तो यह पावन समय मेरे लिए बहुत ही अर्थपूर्ण व प्रभु की आषिष व कृपा का एक स्रोत बनकर मेरे जीवन में मसीह के उद्धार व मुक्ति को प्राप्त करने में मेरी सहायाता करेगा।
आमेन।





Saturday, 2 March 2019

वर्ष का आठवाँ रविवार हिंदी प्रवचन (3 March,2019)


प्रवक्ता ग्रन्थ 27 :4 -7
1 कुरिन्थियों 15 :54 - 58
लूकस 6 :39-45 

इंसान ईश्वर  की सबसे बेहतरीन रचना है, इसे हर कोई मानता है। पवित्र बाइबल हमें  बतलाता है कि इंसान को  ईश्वर  अपने ही स्वरूप में रचा है (उत्पत्ति 1ः27)। कई सारी बातें हैं जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करती हैं। पर जहाँ  तक मैं सोचता हँू मनुष्य की सोचने की जो क्षमता है, और उसमें जो तर्क-वितर्क करने की क्षमता है वो अन्य किसी प्राणी में नहीं है। अपनी तार्किक क्षमता की बदौलत इंसान नित्य नये आविष्कार करता आ रहा है। इस सिलसिले में इंसान ने अपने  मन की भावनाओं को, और अपने विचारों को अन्य लोगों तक पहुँचाने के क्षेत्र में भी कई प्रयोग किये और कई प्रकार के संचार साधनों को इजात किया। पहले एक समय था जब मानव ईशारों अथवा संकेतों के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुँचाते थे, फिर चित्रकारी द्वारा और फिर धीरे-धीरे शब्दों और भाषाओं का आविष्कार हुआ। यूँ तो विचारों के आदान-प्रदान के आधुनिक से अत्याधुनिक माध्यम जैसे टी.वी., इंटरनेट, मोबाइबल फोन, फेसबुक, वाॅट्सऐप, इंस्टाग्राम, ट्वीट्र आदि आज हमारे पास उपलब्ध है परन्तु व्यापक रूप से जिस माध्यम का प्रयोग आमतौर पर इंसान करता है वह है मौखिक-संवाद या मुँह से बोले शब्द।

इंसान जब से बोलना सिखता है तब से अपनी जिंदगीभर कितने ही शब्द वो बोल  जाता है। कुछ अच्छी कुछ बूरी, कुछ भलाई की तो कुछ बुराई की, कुछ निर्माणकारी तो कुछ विनाशकारी कितनी ही बातें हम उठने से सोने तक करते हैं।
इसलिए हमें इस बात को लेकर सावधान रहना चाहिए कि हम कब, कहाँ और क्या बोल रहे हैं। जहाँ हमारा एक वचन किसी की जिंदगी बना सकता है वहीं हमारी एक वाणी किसी की जिंदगी बरबाद कर सकती है। किसी को दी गई प्रज्ञाभरी सलाह उसे महान बना सकती है, वहीं किसी को दिया गया अभिषाप या हतोत्साह करने वाली बात व्यक्ति को नीचे गिरा सकती है। हमारे शब्द बहुत ही ताकतवर होते हैं।  इसलिए प्र्रभु के वचन में लिखा है- ‘‘अविचारित शब्द कटार की तरह छेदते है; किंतु ज्ञानियों की वाणी मरहम जैसी है’’ (सूक्ति ग्रंथ 13ः3)। और प्रवक्ता ग्रंथ 30ः29-30 में लिखा है  - ‘‘अपने शब्दों के लिए तराजू और बाट बनवाओ। सावधान राहो कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी जिह्वा फिसल जाये।’’ और सूक्ति ग्रंथ 17ः25 में लिखा है - ‘‘जो जिह्वा पर नियंत्रण रखता है वह ज्ञानी है। जो शान्त रहता है वह समझदार है।’’ इसलिए हमें वाणी के महत्व अपने जीवन में समझना  बेहद ज़रूरी है। 

कबीर दासजी कहते हैं : 
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतन करै, आपहु शीतल होय। 
इसका सार है कि मीठी वाणी से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है। 

अब सवाल यह उठता है कि वाणी मीठी होए तो कैसे होए? 
शक्कर या शहद खाने से? मीठी वाणी या फिर अच्छी वाणी किसके मुँह से निकल सकती है, इसका जवाब आज के पाठों में प्रभु का वचन हमें देता है।
आज प्रभु अपने वचन के द्वारा पहले पाठ में हमें बतलाते हैं - ‘‘भट्टी में कुम्हार के बरतनों की और बातचीत में मनुष्य की परख होती है। पेड के फल बाग की कसौटी होते हैं; और मनुष्य शब्दों से उसके स्वभाव का पता चलता है।’’ (प्रवक्ता ग्रंथ  27,6-7)। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि इंसान वही बोलता है जो उसके अंदर भरा हुआ है। कभी कोई सज्जन व्यक्ति जिसके अंदर पवित्रता भरी है अभद्र व अष्लील बातें नहीं करेगा। और जो गाली देता हो अथवा अष्लील बातें करता हो उसका मन साफ व पवित्र होगा यह कभी नहीं कहा जा सकता। इसलिए आज का सुचमाचार हमें सिखलाता है - ‘‘अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भंडार से अच्छी चीज़ें निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भण्डार से बुरी चीज़ें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है वही तो मुँह से बाहर आता है’’ (लूकस6,45)।  
इसलिए यदि हमें मीठी वाणी बोलना है, यदि हमें निर्माणकारी बातें करना है, यदि हमें दूसरों को ऊँचा उठाने की बात करना है, यदि हमें प्रेम भरी बातें करना है तो हमें न तो शक्कर खाने की ज़रूरत है और न ही शहद परन्तु अपने मन को अच्छी, मधूर व पवित्र बातों से भरने की ज़रूरत है। प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जो मुँह में आता है, वह मनुष्य को अषुद्ध नहीं करता, बल्कि जो मुँह से निकलता है वही मनुष्य को अषुद्ध करता है’’ (मत्ती15,11)। और मुँह से वही निकलता है जो अंदर भरा हुआ है। इसलिए वाणी की सफाई तभी संभव है जब हम हमारे मन को साफ करेंगे। अपने भीतर से सारे बूरे विचारों को और  बुरी भावनाओं को बाहर निकालेंगे और अपने दिल व मन को पवित्र व शुद्ध बातों से भरेंगेे। 

इस संदर्भ में प्रभु के वचनों से अच्छी और पवित्र बातें और क्या हो सकती हैं? नबी ऐज़ेकिएल के ग्रंथ 3ः3 में हम पढते हैं प्रभु नबी से कहते हैं - ‘‘मानवपुत्र मैं जो पुस्तक दे रहा हूँ, उसे खाओ और उससे अपना पेट भर लो। मैं ने उसे खा लिया, मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।’’ प्रभु आज हम सब के सामने पवित्र बाइबल रख रहे हैं और कह रहे हैं इसे खाकर, इसमें लिखे शब्दों से अपने दिल को भर लो। प्रभु की वाणी मधु से भी मीठी है। स्तोत्र ग्रंथ 119ः105 में लिखा है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है।’’ आईये हम प्रभु की वाणी से अपने मन, दिल व जीवन को भर लें और ‘‘अपने मनोभावों को येसु मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें’’ (फिलि. 2ः5)। जिससे हमारी वाणी की मधुरता की सुगंध चहुँ ओर फैल जाये और हम जो कुछ भी बोलें वह प्रभु के वचनों से प्रेरित  हों। आमेन।