
योशुआ 5ः9-12
2 कुरिंथयों 5ः19-21
लूकस 15ः1-3.11-32
आज हमारे मनन चिंतन का विषय है वही सुनी-सुनाई और रटी-रटाई ‘खोए बेटे की कहानी।’ यह एक ऐसी कहानी है जो हर समय और हर काल में पिता का दयामय चेहरा हमारे सामने ताजा कर देती है। जब हम मनुष्य और ईश्वर के बीच संबंधों की बात करते हैं तो साधारण तौर पर इन दोनों वास्तविकताओं के बीच ज़मीन आसमान का अंतर पाते हैं । साधारण जनमानस के लिए ईश्वर आसानी से प्राप्त नहीं होने वाली शक्ति है; ईश्वर एक अदृष्य शक्ति है जिसे इंसान कई जतन करने पर ही पा सकता है; वह एक दिव्य शक्ति है जो मनुष्यों की पहुँच बहुत परे है। ये सारी बातें सत्य है। ईश्वर एक विशाल व अगम्य वास्तविकता है जिसके सामने हम मनुष्य कुछ भी नहीं है। ईश्वर के साथ अपने रिश्ते को समझने के लिए कई विद्वानों ने बरसों गुज़्ाार दिये, कई ज्ञानियों ने अपनी उमर गुज़ार दी। कई दार्शनिकों और विचारकों ने ईश्वर और इंसान के बीच संबंध को समझाने के लिए बडे-बडे ग्रंथ लिख डाले। किसी ने इस रिश्ते को , आत्मा और परमात्मा के रूप में परिभाषित किया। किसी ने इसे आध्यात्मिक और भौतिक के रूप में तो कि सी ने नष्वर और अनष्वर के रूप में समझाा। जितना अधिक उन्होंने इस दशा में सोचना चाहा उतना ही अधिक उन्होंने इंसान को ईश्वर से दूर पाया। सदियों पुराने जटिल सवाल का जवाब प्रभु येसु ने बडे ही सहज तरीके से खोये हुए बेटे की कहानी में दे दिया। और वह ईश्वर हमारा पिता है और हम उसकी संताने हैं। ईश्वर वास्तव में उतना जटील नहीं है जितना हम मनुष्य उन्हें बना देते हैं। कई बार हमें ये लगता है कि ईश्वर की रूची सिर्फ ये देखने में रहती है कि मैं कितना पाप कर रहा हूँ। वह एक चौकिदार की तरह मेरे कुकर्मों पर निगाह रखता है और उनके लिए मुझे दंड देगा। कई बार धर्मशिक्षा में भी बच्चों को यही सिखाया जाता है कि यदि वे पाप करेंगे तो ईश्वर उन्हें दंडित करेगा; पाप करने वालों को सजा दी जायेगी; आदि। और ईश्वरीय दंड का यह डर हमारी नैतिकता या अच्छे आचरण का मापदंड बन जाता है। हम ईश्वर की सजा के डर के कारण पाप से दूर रहने का प्रयास करते हैं। पर प्रभु आज हमें यह विश्वाश दिलाना चा हते हैं कि वे कोई डरावने व्यक्ति नहीं परन्तु एक दयालु और क्षमाशील पिता है। जब हम पाप करके; उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके; उनके प्रेमी हृदय को तोडकर; उनसे दूर चले जाते हैं तो वह क्रोधित होकर हमें हमारे गुनाहों की सज़ा देने के लिए नहीं परन्तु हमें क्षमाकर के अपने घर में फिर से स्वागत करने के लिए इंतजार करता है। उनकी आँखें हमारे गुनाहों का हिसाब रखने के लिए नहीं परन्तु इसलिए हमारा पीछा करती हैं कि किस दिन उसका यह प्यार बेटा या प्यारी बेटी होश में आयेगा/आयेगी और पिता के घर तरफ की राहों पर कदम बढाते हुए पिता की देहली पर आकर पिता से कहेंगे कि पिताजी मैं ने आप के विरूद्ध पाप किया है। उनकी आँखें घर वापस लौटते अपने बच्चों को देखने के लिए तरसती हैं। उनके कान ये सुनने को तरसे हैं - पिताजी मुझसे भूल हो गई, मुझसे गलती हो गई; मैं फिर से अपने घर में आपके साथ रहना चाहता हूँ, भले ही बेटे की तरह नहीं तो कमसे कम एक नौकर की तरह ही सही पर मैं तेरे साथ ही रहना चाहता हूँ। हमारा पिता दंड देने के लिए नहीं पर माफ करके गले लगाने के लिए उत्सुक है। मेरे गुनाहों को गिनाने नहीं पर मुझे फिर से बेटा कहकर पुकारने के लिए उत्सुक है। स्तोत्र ग्रंथ 103ः10 में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न ही हमारे अपराधों के अनुसार हमें दंड देता है. . .पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता हैः क्योंकि वह जानता कि हम किस चीज़ के बने हैं उसे याद रहता है कि हम मिट्टी हैं।’’ जि हाँ वह इसलिए दया दिखाता है क्योंकि उसे मालुम है कि हम मिट्टी के बने इंसान हैं, उसे मालुम है कि हम कमज़ोर हैं। इसलिए वह हम पर तरस खाता है।
उनका हमारे प्रति प्रेम और उनकी दयालुता व क्षमाशीलता हमारी सारी कल्पनाओं व विचारों से भी महान है। संत योहन मरिया वियान्नी कहते हैं - ईश्वर की क्षमाषिलता के विषाल पहाड के सामने हमारे बडे से बडे पाप भी धूल के एक कण के बराबर होते हैं। जितनी दया व क्षमा की हमें उम्मीद रहती है प्रभु उससे कई गुना अधिक दया व प्यार हमें दिखाते हैं।
खोए हुए बेटे पर आधारित अनिल काँत की फिल्म ‘मेरा बेटा’ में जब बेटा वापस लौटकर आता है तो वह अपने घर पर पिताजी को नहीं पाता है। उसके आंगन में उनका माली मिल जाता है और कहता है कि आपके पापा तो आॅफिस गये हैं। इस पर बेटा उनसे कहता है कि जब पापा घर आये तो उनसे कहना कि मै उनसे मिलने की ख्वाहिश लेकर घर आया था। यदि वे मुझसे मिलना चाहते हैं तो आँगन में दरवाजे वाली लाईट जलाकर रखें। मैं वापस आऊंगा तो लाईट देखकर समझ जाऊँगा कि पापा मुझसे मिलना चाहते हैं। या नहीं यदि लाईट चालू नहीं दिखी तो मैं वापस लौट जाऊँगा और फिर कभी नहीं आऊँगा। यह कहकर वह वहाँ से चला जाता है। जब वह वापस लौटता है तो क्या देखता है कि उसके दरवाजे के सामने की लाईट ही नहीं परन्तु उसका सारा घर रोशनी से सरोबार था। पूरी बिल्डिंग लाईट्स से सजाई गई थी।
प्यारे विश्वासियों यही है आज के सुसमाचार का सन्देश। हमारे छोटे-बडे पापों की तुलना में हमें माफ करने वाले पिता का हृदय बहुत ही विशाल है। हमारे प्रति उस प्रेमी पिता की इच्छा को प्रभु येसु ने कुछ इस तरह बयाँ किया है- ‘‘जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, उन में से एक का भी सर्वनाष न होने दूँ।’’ (संत योहन 6 :39 )ा प्रभु नहीं चाहता कि उनकी संतानों में से एक का भी सर्वनाश हो। बाकि निन्यानबे भेडों को छोडकर वह भटकी हुई एक भेड की भी खोज में निकल पडता है। और जब तक वह उसे नहीं पाता उसे ढुंँढता रहता है। और उसे पाने पर वह आनन्दित हो उठता है (लूकस 15ः1-7)।
आज हम अपने आप से पुछें हम कहाँ हैं? अपने पिता के घर में या फिर पिता के घर से दूर की एक दुनिया में? यदि हम अपने पिता के घर से दूर चले गये हैं तो चालिसा काल हमें एक और मौका दे रहा है। हमारा पिता हर एक अपने बच्चे की राह तकता दरवाजे़ पर खडा है। उसकी नज़रें उसी राह तरफ निहार रही हैं जिस राह से हम उन से दूर निकल गये थे। आओ, हम अब लौट चलें। आओ हम अपने पिता के घर वापस चलें। वह हमें फिर से अपनायेगा। वह हमें फिर से गले लगायेगा। और अपने बेटे-बेटियां कहलाने का अधिकार हमें वापस प्रदान करेगा। आमेन।