Saturday, 2 March 2019

वर्ष का आठवाँ रविवार हिंदी प्रवचन (3 March,2019)


प्रवक्ता ग्रन्थ 27 :4 -7
1 कुरिन्थियों 15 :54 - 58
लूकस 6 :39-45 

इंसान ईश्वर  की सबसे बेहतरीन रचना है, इसे हर कोई मानता है। पवित्र बाइबल हमें  बतलाता है कि इंसान को  ईश्वर  अपने ही स्वरूप में रचा है (उत्पत्ति 1ः27)। कई सारी बातें हैं जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करती हैं। पर जहाँ  तक मैं सोचता हँू मनुष्य की सोचने की जो क्षमता है, और उसमें जो तर्क-वितर्क करने की क्षमता है वो अन्य किसी प्राणी में नहीं है। अपनी तार्किक क्षमता की बदौलत इंसान नित्य नये आविष्कार करता आ रहा है। इस सिलसिले में इंसान ने अपने  मन की भावनाओं को, और अपने विचारों को अन्य लोगों तक पहुँचाने के क्षेत्र में भी कई प्रयोग किये और कई प्रकार के संचार साधनों को इजात किया। पहले एक समय था जब मानव ईशारों अथवा संकेतों के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुँचाते थे, फिर चित्रकारी द्वारा और फिर धीरे-धीरे शब्दों और भाषाओं का आविष्कार हुआ। यूँ तो विचारों के आदान-प्रदान के आधुनिक से अत्याधुनिक माध्यम जैसे टी.वी., इंटरनेट, मोबाइबल फोन, फेसबुक, वाॅट्सऐप, इंस्टाग्राम, ट्वीट्र आदि आज हमारे पास उपलब्ध है परन्तु व्यापक रूप से जिस माध्यम का प्रयोग आमतौर पर इंसान करता है वह है मौखिक-संवाद या मुँह से बोले शब्द।

इंसान जब से बोलना सिखता है तब से अपनी जिंदगीभर कितने ही शब्द वो बोल  जाता है। कुछ अच्छी कुछ बूरी, कुछ भलाई की तो कुछ बुराई की, कुछ निर्माणकारी तो कुछ विनाशकारी कितनी ही बातें हम उठने से सोने तक करते हैं।
इसलिए हमें इस बात को लेकर सावधान रहना चाहिए कि हम कब, कहाँ और क्या बोल रहे हैं। जहाँ हमारा एक वचन किसी की जिंदगी बना सकता है वहीं हमारी एक वाणी किसी की जिंदगी बरबाद कर सकती है। किसी को दी गई प्रज्ञाभरी सलाह उसे महान बना सकती है, वहीं किसी को दिया गया अभिषाप या हतोत्साह करने वाली बात व्यक्ति को नीचे गिरा सकती है। हमारे शब्द बहुत ही ताकतवर होते हैं।  इसलिए प्र्रभु के वचन में लिखा है- ‘‘अविचारित शब्द कटार की तरह छेदते है; किंतु ज्ञानियों की वाणी मरहम जैसी है’’ (सूक्ति ग्रंथ 13ः3)। और प्रवक्ता ग्रंथ 30ः29-30 में लिखा है  - ‘‘अपने शब्दों के लिए तराजू और बाट बनवाओ। सावधान राहो कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी जिह्वा फिसल जाये।’’ और सूक्ति ग्रंथ 17ः25 में लिखा है - ‘‘जो जिह्वा पर नियंत्रण रखता है वह ज्ञानी है। जो शान्त रहता है वह समझदार है।’’ इसलिए हमें वाणी के महत्व अपने जीवन में समझना  बेहद ज़रूरी है। 

कबीर दासजी कहते हैं : 
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतन करै, आपहु शीतल होय। 
इसका सार है कि मीठी वाणी से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है। 

अब सवाल यह उठता है कि वाणी मीठी होए तो कैसे होए? 
शक्कर या शहद खाने से? मीठी वाणी या फिर अच्छी वाणी किसके मुँह से निकल सकती है, इसका जवाब आज के पाठों में प्रभु का वचन हमें देता है।
आज प्रभु अपने वचन के द्वारा पहले पाठ में हमें बतलाते हैं - ‘‘भट्टी में कुम्हार के बरतनों की और बातचीत में मनुष्य की परख होती है। पेड के फल बाग की कसौटी होते हैं; और मनुष्य शब्दों से उसके स्वभाव का पता चलता है।’’ (प्रवक्ता ग्रंथ  27,6-7)। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि इंसान वही बोलता है जो उसके अंदर भरा हुआ है। कभी कोई सज्जन व्यक्ति जिसके अंदर पवित्रता भरी है अभद्र व अष्लील बातें नहीं करेगा। और जो गाली देता हो अथवा अष्लील बातें करता हो उसका मन साफ व पवित्र होगा यह कभी नहीं कहा जा सकता। इसलिए आज का सुचमाचार हमें सिखलाता है - ‘‘अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भंडार से अच्छी चीज़ें निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भण्डार से बुरी चीज़ें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है वही तो मुँह से बाहर आता है’’ (लूकस6,45)।  
इसलिए यदि हमें मीठी वाणी बोलना है, यदि हमें निर्माणकारी बातें करना है, यदि हमें दूसरों को ऊँचा उठाने की बात करना है, यदि हमें प्रेम भरी बातें करना है तो हमें न तो शक्कर खाने की ज़रूरत है और न ही शहद परन्तु अपने मन को अच्छी, मधूर व पवित्र बातों से भरने की ज़रूरत है। प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जो मुँह में आता है, वह मनुष्य को अषुद्ध नहीं करता, बल्कि जो मुँह से निकलता है वही मनुष्य को अषुद्ध करता है’’ (मत्ती15,11)। और मुँह से वही निकलता है जो अंदर भरा हुआ है। इसलिए वाणी की सफाई तभी संभव है जब हम हमारे मन को साफ करेंगे। अपने भीतर से सारे बूरे विचारों को और  बुरी भावनाओं को बाहर निकालेंगे और अपने दिल व मन को पवित्र व शुद्ध बातों से भरेंगेे। 

इस संदर्भ में प्रभु के वचनों से अच्छी और पवित्र बातें और क्या हो सकती हैं? नबी ऐज़ेकिएल के ग्रंथ 3ः3 में हम पढते हैं प्रभु नबी से कहते हैं - ‘‘मानवपुत्र मैं जो पुस्तक दे रहा हूँ, उसे खाओ और उससे अपना पेट भर लो। मैं ने उसे खा लिया, मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।’’ प्रभु आज हम सब के सामने पवित्र बाइबल रख रहे हैं और कह रहे हैं इसे खाकर, इसमें लिखे शब्दों से अपने दिल को भर लो। प्रभु की वाणी मधु से भी मीठी है। स्तोत्र ग्रंथ 119ः105 में लिखा है - ‘‘तेरा वचन मुझे ज्योति प्रदान करता और मेरा पथ आलोकित करता है।’’ आईये हम प्रभु की वाणी से अपने मन, दिल व जीवन को भर लें और ‘‘अपने मनोभावों को येसु मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें’’ (फिलि. 2ः5)। जिससे हमारी वाणी की मधुरता की सुगंध चहुँ ओर फैल जाये और हम जो कुछ भी बोलें वह प्रभु के वचनों से प्रेरित  हों। आमेन। 

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