Friday, 30 August 2019

वर्ष का 22 वां रविवार : Hindi Reflection


विनम्र बनो छोटे 
और विनम्र बनो 

प्रवक्ता ग्रन्थ ३: १७-१८, २०, २८-२९
इब्रानी १२:१८-१९, २२-२४
लुकस १४:१, ७-१४

ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आज की धर्मविधि में प्रभु हम सबको अपने समान विनम्र बनने का आह्वान कर रहे हैं। प्रभु कहते हैं ‘‘तुम जितने अधिक बडे हो, उतने अधिक नम्र बनो इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे’’ (प्रव 3:19)
महापुरुषों  की तुलना बहुत बार आम के पेड से की जाती है। आम का पेड जितना अधिक फल देता है उसकी डालियां उतनी ही अधिक नीचे झूक जाती हैं व जितना कम फल रहता है डालियां उतनी अधिक तनी हुई रहती है। जो व्यक्ति वास्तव में जितना अधिक महान होता है वह उतना अधिक विनम्रता दूसरों के सामने झूक जाता है लेकिन जो दुनिया की दृष्टि में स्वयं को बडा दिखाना चाहते हैं परन्तु भीतर से खोखले हैं, वे फलहीन या फिर कम फल वाली डालियों की तरह तन कर अपने आपको जबरन महान सिद्ध करवाने की कोशिश करते हैं।
निति वचन 18:12 में प्रभु का वचन कहता है -- "घमंड विनाश की ओर ले जाता है। और विनम्रता सम्मान की ओर।’’ सम्मान माँगने से नहीं अपने विनम्र सुआचरण से मिलता है। प्रभु का वचन कहता है प्रवक्ता  ग्रन्थ 10:31 में ‘‘पुत्र विनम्रता से अपने स्वाभिमान की रक्षा करो। अपने को अपनी योग्यता के अनुसार ही श्रेय दो।’’ याने मैं जो भी हूँ, जितना पानी में हूँ उससे अधिक दंभ न भरूँ। रहीमदासजी का एक प्रसिद्ध दोहा है
‘‘बडे बडाई न करें बडे न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल"
याने जो लोग वास्तव में बडे हैं, सम्मानीय हैं वे अपनी बडाई स्वयं नहीं करते जैसा कि हीरा सबसे कीमती चीजों मेंसे एक होने पर भी कभी किसी से नहीं कहता है कि मेरा मूल्य लाखों रूपये है। उसके स्वभाव व उसके गुणों से लोगों को पता चलता है कि हीरा एक कीमती वस्तु है। हम भी ऐसे ही बनें। एक सच्चा गुणवान व्यक्ति जिसे कई उपलबधियाँ प्राप्त है हमेशा यही सोचेगा कि उसकी यह छोटी सी उपलबधि विशाल  संभावनाओं वाले इस संसार में कुछ भी नहीं है। अंग्रेजी में एक कहावत है - स्काई  इज़ द लिमिट। याने हमें सिखने, बढने व विकास करने की कोई सीमा नहीं। इसलिए कोई भी अपने आप को परिपक्व, सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी व सबसे बडा विद्वान  न मानें। हर कोई यह स्वीकार करे कि मैं भी अन्य लोगों की तरह एक साधारण इसान हूँ। मैं भी गलती कर सकता हूँ, मुझमें भी कमज़ोरियां है।  

फिलिपियों को लिखे पत्र 2:3 में संत पौलुस हमें सुन्दर शब्दों में समझाते हुवे कहते हैं - हर व्यक्ति नम्रतापुर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई केवल अपने हित का ही नहीं, बल्कि केवल दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। आज दुनिया में लडाई-झगडे, व युद्ध क्यों होते हैं इसी कारण की हम दूसरों को अपने से श्रेष्ठ नहीं देख पाते, हम दूसरों की उन्नती नहीं सह पाते, दूसरों को पनपते व ऊपर उठते नहीं देख पाते। हमारा अहंकार हम पर हावी हो जाता है। प्रभु का वचन हमें कहता है निति वचन 29:23 में मनुष्य का अहंकार उसे नीचा दिखाता किंतु विनम्र व्यक्ति का सम्मान किया जाता है। 

आज के सुसमचार में प्रभु हमसे कहते हैं कि जब तुम भोज पर आमंत्रित हो, तो पहले से जाकर सम्मानीय स्थानों पर कब्जा मत जमाओ। पीछे आम लोगों के साथ बैठो, तब मालिक यदि आपको सम्मानीय स्थान के योग्य समझेगा तो व तुम्हें आगे की ओर बुलायेगा। तब सब के सामने आपकी इज्जत बढेगी। इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु हमें यह सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे बारे में वास्तविक आंकलन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमे हमारी हैसियत पता होना चाहिए कि हम कौन हैं। 
आज का समय like - dislike, comment और  share का समय है । हर कोई सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करना चाहता है : मेरी फोटो सबको पसंद आये, मेरी पोस्ट को सब लाइक करे, मेरी तारीफ में लोग अच्छे-- अच्छे कमैंट्स करे यही आज के युवाओं की पर्सनालिटी का मापदंड बन गया है । हमें याद रहे कि इंटरनेट व सोशल मीडिया की दुनिया काफी हद तक झूठी व मायावी है। ये हमें I am important वाली मानसिकता की और ले जाते हैं । और जब ये मानसिकता आ जाती है तो यह हमें अहंकार की ओर  ले जाती है जो विनम्रता की दुश्मन है । 
विनम्रता का मतलब स्वयं को दूसरों के सामने नीचा दिखाना नहीं होता। विनम्रता मतलब होता है सच्चाई, को सच्चाई के तौर पर ग्रहण करना। 

मैं तभी एक विनम्र व्यक्ति बन सकता हूँ, जबः
1. मैं दूसरों के गुणों, प्रतिभावों व मुल्यों को पहचानता हूँ। खासकरके उन  गुणों को जो मुझसे बढकर हैं तथा दूसरे व्यक्ति में उन गुणों को, उसकी काबिलियत को देखकर उसकी तारिफ कर सकूँ।
2. खुद के गुणों, प्रतिभावों व क्षमताओं की सीमा को पहचानना कि मैं इतना ही कर सकता हूँ। याने अपने अहंकार को आसमान जैसा ऊँचा रखकर खुद की हदों के परे कुछ हासिल करने की कोशिश  न करना। मुझे मेरी कमज़ोरियों, बाधाओं को स्वीकार करना चाहिए कि इससे आगे मैं नहीं जा सकता । 
3. एक विनम्र व्यक्ति के मन में ईर्ष्या व जलन की भावना कभी नहीं होती। जब उसकी तुलना में दूसरे लोगों को अधिक चाहा जा रहा है, दूसरा व्यक्ति अधिक फल-फूल रहा है, अधिक प्रसिद्धी प्राप्त कर रहा है तब एक विनम्र व्यक्ति ईश्वर  को इसके लिए ख़ुशी  पुर्वक धन्यवाद देता है।
4. एक विनम्र व्यक्ति अपनी सारी खूबियों और सफलतााओं का श्रेय ईश्वर को देता है । 1 कुरिन्थियों 1 :31 में प्रभु का वचन कहता है - "यदि कोई गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करे।"

विनम्रता एक महापुरूष की निशानी  ही नहीं बल्कि उन्नती व वृद्धी का  एक मार्ग भी है। जो मैनेजमेंट व प्रोजेक्ट के ऊपर काम करते हैं उसमें वे मुल्यांकन का एक सिद्धांत अपनाते हैं जिसे SWOT अनालिसिस कहते हैं। इसमें स्वयं की strength याने क्षमता, ताकत को आंका जाता है फिर खुद की  weakness याने कमजोरियों को ढूंढा व पहचाना जाता है फिर अपनी क्षमता व कमजोरी के अनुसार भविष्य में सुधार के क्या-क्या अवसर हैं  या क्या क्या opportunities है ये देखा जाता है।  और अंत में threats याने  क्या-क्या बधायें हैं उन्हें पहचाना जाता है। 

स्वयं के आध्यात्मिक विकास के लिए यह विधी बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है। विनम्रता व्यक्ति को अपनी गिरेबांह में झांकने व खुद की कमजोंरियों को देखने व उन्हें अपनी ताकत क्षमाताओं में परिवर्तित करने में मदद करती है। दूसरी ओर जो व्यक्ति घंमडि व अहंकारी है, जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं उसका जीवन में उद्धार होना मुश्किल है । ऐसे व्यक्तियों का विकास स्थिर हो जाता है और वे जीवन में बहुत अधिक निराश, व हताश  हो जाते हैं। 
आइये हम सच्चे ख्रीस्तीय बनें , विनम्र व दीन - हीन बनकर सबों की सेवा करें । क्योंकि प्रभु कहते हैं "जो मन के दीन हैं , स्वर्ग राज्य उन्हीं का है " (मत्ती  5 :3 )
आमेन 

Friday, 23 August 2019

वर्ष का 21 वाँ सामान्य रविवार, 25 अगस्त 2019


स्वर्ग का दरवाज़ा संकरा है 
इसायाह 66:18-21
इब्रानियों 12:7,11-13
लूकस 13:22-30

डामसुस के सांता मार्था के गिरजाघर में संत पिता फ्रांसिस ने एक बार  कहा था, ‘‘प्रभु येसु के खून से हम सब का उद्धार हुआ है, सब का केवल कैथोलिक ही नहीं सब, हर कोई को उनके खून से मुक्ति मिली है।" किसी ने पूछा पिताजी क्या नास्तिकों का भी? वे बोले हाँ नास्तिक भी उनकी मुक्ति के भागीदार हैं। हर कोई। उनका रक्त हमें उनके प्रथम श्रेणी के बच्चों में मिला लेता है। हम उनके रंग-रूप में गढे गये हैं और मसीहा का रक्त हर एक को मुक्ति प्रदान करता है। पर चुनाव या विकल्प हमारा है, हम उस मुक्ति को गले लगायें या फिर ठुकरा दें।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि उद्धार का द्वार तो खुला हुआ है, लेकिन वह संकरा है। संकरे द्वार से प्रवेश  करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।

स्वर्ग जाने वाला द्वारा संकरा तो  है लेकिन वह प्रतिबंधित नहीं है। प्रभु येसु के अनुसार यह द्वार सब के लिए खुला हुआ है, कोई प्रतिबंध नहीं, कोई टैक्स नहीं। फिर भी यह सभी राष्ट्रों के लोगों के स्वागत के लिए पर्याप्त विस्तृत है। शायद येसु को सुनने वालों में से कई उनका निष्कर्ष सुनकर आष्चर्यचकित हो गये होंगे। ‘‘पूर्व और पश्चिम; उत्तर और दक्षिण  से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। और देखो, जो पिछले हैं वे अगले जायेंगे, और जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे।’’ 

स्वर्ग का  दरवाजा  विश्व  के हर एक कोने से आये लोगों को अपने अंदर ले सकता है । संत योहन ने प्रकाशना ग्रन्थ में जो दिव्य दर्शन  देखा था उसमें वे प्रभु येसु के इन शब्दों की पुष्टी करते हैं जहाँ लिखा है - ‘‘इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंषों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विषाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खडे थे। और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कह रहे थे, ‘‘सिंहासन पर विराजमान हमारे ईष्वर और मेमने की जय!’’ (प्रकाशना 7ः9-10)

अधिकतर यहूदियों ने स्वर्ग को बहुत हल्के में लिया बहुतों का ये मानना था कि सभी, जो बहुत ही बूरे हैं, उनको छोडकर बाकी सब यहूदी स्वर्ग जायेंगे। वे हमेशा अपने आप को स्वर्ग राज्य के अंदर के लोग समझते थे। वे अपने आपको उद्धार पाये हुवे लोग समझते थे सिर्फ इसलिए कि वे यहूदी थे। वे बडे गर्व से कहा करते थे अब्राहम हमारे पिता है। प्रभु की यह शिक्षा उन यहूदियों के लिए थी  जो ऐसी धारणा लिये बैठे थे।

परन्तु आज हमारे लिए इसके क्या मायने हैं। ख्रीस्तीय  होने के नाते हम सब ईश्वर  की प्रजा के सदस्य बन गये हैं। जिस प्रकार इस्राएली लोग सिनाई पर्वत पर एक विधान के तहत अपने खतना द्वारा ईश  प्रजा के भागीदार बन गये उसी प्रकार ख्रीस्तीय लोग बपतिस्मा के द्वारा  ईश  परिवार एवं प्रजा के सदस्य बन गये हैं। पुराने विधान के लोगों के समान हम भी नये विधान ईश प्रजा हैं । हम भी इस्राएलियों की  तरह  विशेषाधिकार प्राप्त लोग बन गये हैं। हम भी स्वर्ग राज्य के अंदर के लोग बन गये हैं। अन्य धर्मों एवं पंथों की तुलना में हमारे पास मुक्ति की परिपूर्णता है। लेकिन हम हमारे इस विशेषाधिकार  पर ही निर्भर नहीं रह सकते। हम इसके लिए दावा नहीं कर सकते। संत लूकस के सुसमाचार  में  हम सुनते हैं  ऐसे लोग ये कहेंगे - ‘‘प्रभु हमने आपके सापने खाया पिया और हमारे बाजारों में आपने उपदेष दिया’’ परन्तु वह तुम से कहेगा, मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो।’’ जी हाँ, हम कहेंगे प्रभु हमने गिरजाघर में जाकर प्रार्थना की, मिस्सा  बलिदान में भाग लिया,  नोवेना प्रार्थना की आदि। प्रभु कहेंगे कुकर्मियों तुम मुझ से दूर हट जाओ। क्योंकि यह सच है कि हम प्रभु येसु के द्वारा मुक्त कर दिये गये हैं इसका मतलब ये नहीं कि आराम से बैठ जायें वचन कहता है - ‘‘संकरे द्वार से प्रवेश  करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।’’ हमें प्रयत्न करते रहना है। संकरे द्वार से प्रवेश  करने का पूरा - पूरा प्रयत्न करना प्रभु येसु ने हमारे लिए, हमारी मुक्ति के लिए जो किया है उसके प्रति हमारा एक प्रत्यिुतर है।


मुक्ति की घटना भी ऐसी ही है। यह एक तरफा नहीं है। यदि मुक्ति कार्य एक तरफा होता है तो वह पूर्ण नहीं है। यदि मुक्तिकार्य में सिर्फ येसु ही कार्यरत हैं और ख्रीस्तीय प्रजा अपनी ओर से इसमें भागीदारी नहीं देती, अपनी ओर से प्रयास नहीं करती तो इसका प्रभाव हमारे जीवन में नहीं आयेगा। द्वितीय वाटीकन महासभा का संविधान ल्युमन जेन्स्युम कहता है कि कोई व्यक्ति यद्यपि वह कलीसिया रुपी  शरीर का अंग है, पर प्रेम व सेवा के मार्ग पर नहीं चलता तो वह कलीसिया की गोद में तो ज़रूर रहता है पर केवल शारीरिक रूप में उसकी आत्मा ईश्वर से दूर है। जो कोई अपने मन वचन व कर्म से ईश्वर के मार्ग पर नहीं चलता उसकी वाणी को सुनकर अपने जीवन द्वारा उसका जवाब नहीं देता तो न केवल वह उद्धार से वंचित होगा, परन्तु उसका न्याय  बडी ही कठोरता एवं क्रूरता से किया जायेगा। जो बाहर के समझे जाते हैं वे प्रभु भोज के भागीदार बनेंगे और अंदर वाले बाहर कर दिये जायेंगे। इसीलिए आज का वचन कहते है - जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं वे अलगे हो जायेंगे।  अंतिम न्याय के दिन एक बडा उलट-फेर होगा। जिन्हें हम अंदर देखने का सोच रहे थे होंगे वे  सकता है  बाहर हो जायेंगे। हो सकता है कई बिशप्स , फादर्स सिस्टर्स व दुनिया की दृष्टी में धार्मिक माने जाने वाले ख्रीस्तीय  विश्वासीगण स्वर्ग के संकरे द्वार के बहार ही रह जायेंगे। और जिन्हें हम श्रापित नीच व बिना महत्व के सोचते हैं वे ही प्रभु के साथ भोजन की मेज़ पर बैठकर प्रभु भोज का लुफ्त उठायेंगे।

संकरे द्वार का एक अन्य उदाहरण प्रभु हमें दूसरे शब्दों में देते हैं। ‘‘मैं तुमसे यह भी कहता हूँ सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किंतु धनी का ईश्वर  के राज्य में प्रवेश  करना कठिन है।’’ (मत्ती 19:24) रास्ता बडा संकरा है केवल इंसान ही उसमें प्रवेश  कर सकता है। धन-दौलत नहीं। यदि किसी को अपने धन पर बहुत अधिक भरोसा है तो वे याद रखें कि संकरे द्वार से प्रवेश करते  समय कहीं वह अपने धन के साथ  वहीं अटक के न रह जायें। इसान के लिए उसकी आत्मा ही  ज्यादा महत्व रखती  है धन-दौलत नहीं। प्रभु येसु ने कहा है मनुष्य को इससे क्या लाभ कि वह सारा संसार कमा ले परन्तु अपनी आत्मा को ही खो दे ।

ये संकरा द्वार आखिर है क्या? संत योहन के सुसमाचार १०: ७-९ में प्रभु येसु हमसे कहते हैं -  "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - भेड़शाला (याने स्वर्ग) का द्वार मैं हूँ। यदि कोई मुझ से हो कर प्रवेश करेगा, तो उसे मुक्ति प्राप्त होगी। वह भीतर-बाहर आया-जाया करेगा और उसे चरागाह मिलेगा।" 

अब हमें समझ में आता है कि संकरे द्वार से प्रवेश करना कठिन क्यों है । क्योंकि प्रभु येसु की रहे  शिक्षा कठीन है । प्रभु येसु की रहे बड़ी जटिल है । योहन के सुसमाचार के ६ वें अध्याय में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु की शिक्षा बड़ी कठिन होने के कारण उनके कई शिष्य उन्हें छोडकर चले जाते हैं । तब प्रभु अपने प्रेरितों से पूछते हैं क्या तुम भी मुझे छोड़कर चले जाना कहते हो ? इस पर पेत्रूस बड़ा अच्छा जवाब देते हैं - "प्रभु हम आपको छोड़कर कहाँ जाएं आपके ही शब्दों में अनंत जीवन का सन्देश है  ।

जी हौं प्यारे मित्रों येसु रुपी द्वार से होकर जाना आसान तो नहीं लेकिन हम आज अपने आप से पूछें कि इस चुनौती से भागकर ,चौड़े दरवाज़े तलाशना, आसान राहें खोजना, जो शैतान और सांसारिकता हमें देती है, और इस चक्कर में अनंत जीवन को खो देना कितना उचित होगा ?

आईये हम संत पेत्रुस की तरह प्रभु से बोलें - प्रभु यद्यपि संकरे द्वार याने आपसे होकर जाना कठिन है पर हम आपको छोड़कर और कहाँ जाएं क्योंकि अनंत जीवन तो आप में ही  है। आमेन  ।


Saturday, 17 August 2019

सामान्य काल का २०वा रविवार १८ ऑगस्त २०१९



मै पृथ्वी पर आग लेकर 
आया हूँ 

यिरमियाह ३८:४-६,८ - १० 
इब्रानियों १२:२,३,४,१८ 
लूकस १२:४९-५३ 
मित्रों आज के वचन  बड़े ही चुनोती भरे हैं  प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं - "मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे   और वे आगे कहते हैं - "क्या तुम सोचते हो कि मैं पृथ्वी पर शांति ले कर आया हूँ? मैं तुमसे कहता हूँ ऐसा नहीं है  
प्रभु येसु की इन बातों को हम कैसे समझें ? जब प्रभु येसु का जन्म हुआ था तब स्वर्गदूतों ने तो गया था - "सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले ।" " तो फिर  क्या ये उसी येसु के वचनं है? क्या वही येसु ये बोल रहे हैं, जो स्वाभाव से नम्र और विनीत हैं, जो हमें अपना बोझ उन्हें दे देने को कहते हैं, और हमें विश्राम देने का वादा करते हैं?

जी हाँ , ये वही येसु हैं  यहाँ कोई विरोधाभास नहीं है , उनकी शिक्षा नहीं बदली  येसु मसीह के वचन जितने मधुर व सुखदाई हैं उतने ही चुनौतीपूर्ण व कठोर हैं प्रभु येसु अपने शिष्यों से कोई लोकलुभावन, व झूठा वादा नहीं करते जैसा कि आज कल के हमारे नेता लोग करते हैं।  वे हमेशा स्वर्ग राज्य की सच्चाई को ही हमारे सामने रखते हैं । 

किसी के जीवन में आग लगाने का जो आशय आज के सुसमाचार में है वो जैसा हम सोचते हैं वैसा नहीं है   ये आग हिंसा और झगडे की आग नहीं परन्तु प्रेम की आग है  यह अग्नि प्रेम की अग्नि है। हमारे  मानवीय प्रेम की नहीं,  पिता के  प्रेम की अग्नि:  जिससे भरकर येसु हमारे लिए सूली पर चढ़ गए, जिस प्रेम से  परिपूर्ण होकर  येसु ने हमारे लिए दुःख उठाया और अपनी जान दे  दी
येसु हमसे कहते हैं  - जैसे मैंने तुम्हें प्रेम किया वैसे वैसे ही तुम एक दूसरे को प्यार करो। हम ख्रीस्तीय ईश्वर के उस प्रेम को इस दुनिया के कोने-कोने  तक पहुँचाने के लिए चुने गए  हैं। हम इस दुनियां में पिता के प्यार के वाहक हैं। दुनियाई प्रेम और मसीही प्रेम में अंतर है। दुनियाई प्रेम में  जैसा कि प्रभु येसु कहते हैं हम उन्हीं से प्रेम करते हैं जो हमसे प्रेम करते हैं. पर येसु ने हमें अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने को सिखलाया है और दूसरों के लिए अपने प्राण भी दे देने को सिखलाया ।  

और जब हम मसीह के उस प्रेम के वाहक बनते हैं तब दुनिया हमारे विरुद्ध हो जाती है। क्योंकि जहाँ ईश्वर का प्रेम है वहां शैतान की कोई चाल या कोई काम सफल नहीं हो सकता।  इसलिए शैतान हमेशा प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने वालों को परेशान करता है।  उनके जीवन में अशांति लाता है।  जैसा कि आज के पहले पाठ में नबी यर्मियाह के साथ होता है।   इसलिए जव प्रभु येसु आज हमसे कहते हैं कि वे शांति लेकर नहीं आये इसका मतलब यह हुआ कि उनका अनुसरण करने वाले, उनके अनुयायो को इस दुनियाई  जीवन में  कई कष्ट और दुःख झेलने  होंगे  जैसा कि आज के सुसमाचार में प्रभु ने कहा है कि अपने ही करीबी लोग हमारे विरुद्ध हो जायेंगे । इसके कई सबूत मैं ने देखे हैं ।  येसु में विश्वास करने के कारण कइयों को अपने परिवार व समाज से बहिस्कृत कर दिया जाता है।  येसु में विश्वास करने व उनके वचनों पर चलने के कारण मैंने भी मेरे जीवन में अपने साथियों, या फिर अन्य किसी लोगों से तिस्कार व निंदा झेली है । और में ही क्यों,आपने ने भी इसका अनुभव किया  होगा। और हर वह इंसान जो सच्चे अर्थों में येसु का अनुयाई है उसे ये सब झेलना ही होगा। तो क्या इस डर  से हम मसीह का अनुसरण करना छोड़ दें?  क्या येसु ने नहीं कहा कि जो कोई मेरा अनुसरण करना चाहता है वह अत्म त्याग करें एवं अपना क्रूस उठा के मेरे पीछे चलें? और मत्ती २४:१३ में प्रभु का वचन कहता है - "जो अंत तक धीरज धरेगा उसी की मुक्ति होगी." 

इन विचलित करने वाली बातों के बावजूद भी हमें दृढ़ता पूर्वक अंत तक येसु के पीछे चलते रहना है।  तभी हमें महामयी मुकुट प्राप्त होगा। 


तो आइये हम करें कि प्रभु हममें अपने प्रेम की वो ज्वाला प्रज्वलित कर दे जिससे भरकर हम जनजन में येसु के उस प्रेम का प्रचार व प्रसार कर सकें

आओ, हे पवित्र आत्मा, अपने भक्तों के हिर्दयों को भर दो 
और उन्हें अपने दिव्य प्रेम की अग्नि से प्रज्वलित कर दो 
अपना  आत्मा भेज दो  और  हमारा नवनिर्माण हो जायेगा 
और तू पृथ्वी का रूप नया कर देगा। 
आमेन 





Thursday, 8 August 2019

वर्ष का उन्नीसवाँ रविवार 11 August 2019



प्रज्ञा ग्रंथ 18:6-9
इब्रानियों 11:1-2
लूकस 12:32-48

आज के वचनों द्वारा प्रभु हमें विश्वास  में मजबूत बनने, उनसे मिलने का बेसब्री इंतजार करने व हमेशा  उनके लिए तैयार रहने का उपदेश देते हैं ।
आज का वचन अब्राहम के विश्वास  का हवाला देते हुए हमें उनके समान विश्वास  बनने को कहता है। उनके सामने कई प्रकार की कठोर परीक्षायें आयी पर वह नहीं डिगा, नहीं डगमगाया। ईश्वर ने अब्राहम के जिस बेटे से असंख्य संतानें उत्पन्न करने का वादा किया था उसे ही बली चढाने का आदेश  दिया इस विडम्बना भरी परिस्थिति में भी उसने प्रभु पर भरोसा किया उन्हें मालुम था कि ‘‘ईश्वर  मृतकों को भी जिला सकता है’’ (इब्रानियों 11:19)। उसे पता था कि ईश्वर असम्भव को भी सम्भव कर सकता है। इसे कहते हैं विश्वास। 

आज के दूसरे पाठ में विश्वास  की बहुत ही सुन्दर परिभाषा दी गई है। ‘‘विश्वास  उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आशा  करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।’’
एक बार एक घर में आग लग गई। पूरा घर आग की लपटों से घिरा हुआ था। ऊपरी मंजिल पर एक नन्हीं बालिका सो रही थी। उसके पिता जी नीचे थे। वे उसे नीचे से पुकारते हैं बेटी खिडकी से नीचे कूद जाओ। ऊपर से जवाब आता है, पिताजी मैं आपको नहीं देख पा रही हूँ। पिताजी कहते हैं - बेटी कूद जाओ, नहीं डरो। भरोसा रखो, मैं यहाँ हूँ। बच्ची ऊपर से कूद पडती है और पिता उसे अपनी बाहों में समेट लेते हैं। इसे कहते हैं भरोसा, यही है विश्वास। जब हम विश्वास  करते हैं, हम अनिश्चितता  के अंधकार में कूद पडते हैं। क्या होगा क्या नहीं, कुछ नहीं पता बस इतना पता रहता है कि मेरा प्रभु मेरे साथ है वह मेरा नुकसान होने नहीं देगा। वचन कहता है - ‘‘उसकी लाठी उसके व उसके डंडे पर मुझे भरोसा है’’ (स्तोत्र 23:4)। वह तुम्हारे पैरों को फिसलने नहीं देगा . . . प्रभु ही तुम्हारा रक्षक है वह छाया की तरह तुम्हारे दाहिने रहता है’’ (स्तोत्र 121:2)। ‘‘तुमने सर्वोच्च ईश्वर को अपना शरणस्थान बनाया है। तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा’’ (स्तात्र 91:9-10)।

इस दुनिया में हम ‘‘परदेशी  एवं मुसाफिरों के समान’’ हैं (इब्रानियों 11:13)। ‘‘हम हमारा स्वदेष खोज रहे हैं (इब्रानियों 11ः14)। हमारा सारा जीवन हमारे वास्तविक निवास, हमारे वास्तविक घर की ओर एक यात्रा है। हर विश्वासी  को अब्राहम की तरह अनजान राहों पर खुदा पर भरोसा करते हुए यात्रा पर निकल पडना चाहिए। हम इस संसार में हमेशा  के लिए डेरा नहीं डाल सकते, हमें चलते रहना है। हम इस जग में उस चिडिया के समान है जो कि एक सूखी डाली पर बैठी हुई है। डाली कभी भी टूट सकती है। पर चिडिया को उसकी चिंता नहीं, क्योंकि वह  उडकर कहीं ओर जाने के लिए हमेशा  तैयार है। हमें भी वैसे ही हमेशा  इस जग से उड जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक बार संत फिलिप नैरी गली में बच्चों के साथ फुटबाॅल खेल रहे थे। किसी ने उनसे पूछा यदि तुम्हें ये पता चले कि तुम कुछ ही क्षणों बाद मर जाने वाले हो तो तुम क्या करोगे? उन्होंने बडी शालीनता से जवाब दिया - ‘‘मैं बच्चों के साथ फुटबाॅल खेलता रहूँगा।’’ उन्हें कोई परवाह नहीं। क्योंकि वे उस चिडिया की तरह कभी भी उड जाने के लिए तैयार थे।

संतगण ऐसे ही होते है। वे प्रभु से अपने मिलन को बेताब रहते हैं। वे प्रभु के बुलावे के इंतज़ार में रहते हैं कि कब उनकी आत्मा का मिलन ईश्वर से हो जाये जाये। स्तोत्र ग्रंथ 42:2-3 में प्रभु भक्त कहता है - ‘‘ईश्वर ! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसी मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है। मेरी आत्मा ‘ईश्वर की जीवन्त ‘ईश्वरकी प्यासी है। मैं कब जाकर ईष्वर के दर्शन  करूँगा।’’  तथा स्तोत्र 63:2 में वचन कहता है - ‘‘‘ईश्वर तू ही मेरा ‘ईश्वर है! मैं तुझे ढूँढता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी संतप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्षनों के लिए तरसता रहता हूँ।’’ 

प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हम से कहते हैं ‘‘तुम लोग उन लोगों की तरह बन जाओ जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आकर द्वार खटखटायगा तो तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें’’ (लूकस 12:36)। हमें प्रभु का इंतज़ार करते रहना है। यहूदी लोगों ने कई सालों तक मसीहा के आने का इंतज़ार किया। प्रभु येसु ने स्वयं अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ करने व लोगों को स्वर्गराज्य के रहस्यों की शिक्षा  देने की शुरूआत करने के लिए 30 सालों तक इंतज़ार किया। पुनरूत्थित प्रभु ने अपने शिष्यों  को येरूसालेम में तब तक इंतज़ार करने को कहा जब तक कि वे पवित्र आत्मा की शक्ति से न भर जायें। (प्रे. च. 1:4)। 

इंतज़ार करने की एक अपनी एक आध्यात्मिकता है । प्रार्थना के द्वारा हम प्रभु को हमारे जीवन में आने के लिए इंतज़ार करते हैं। प्रभु के लिए इंतज़ार करके हम यह ज़ाहिर करते हैं व स्वीकार करते हैं कि प्रभु के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। हमें हमारे जीवन में उनकी बेहद ज़रूरत है। इसीलिए हम उनका इंतजार करते हैं। स्तोत्र ग्रंथ 130:5-6 में वचन कहता है - ‘‘मैं प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है। भोर की प्रतीक्षा करने वाले पहरेदार से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है।’’

हम इंतज़ार तभी कर सकते हैं जब हम तैयार हैं। यदि हमारे घर कोई मेहमान आने वाला हो और घर में तैयारियाँ पूरी न हुई हो तो हम यही सोचेंगे कि हमारा मेहमान अभी नहीं पहुंचे, थोडी देर बाद आये ताकि हम तैयारियाँ पूरी कर लें। प्रभु हम से आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘तुम. . . तैयार रहो, क्योंकि जिस घडी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी समय मानव पुत्र आयेगा’’ (लूक 12:40)।

हमें विश्वास  की ज़रूरत है। हमें दया, करूणा व प्रेम से संचालित विश्वास  की ज़रूरत है जो हमें सच्चे प्रेम से प्रेरित कार्य करने के लिए सिखायेगा। हमें चट्टाने से भी मजबूत व अडिग विश्वास  की ज़रूरत है जो आंधी, तुफान एवं बवंडर में भी विचलित नहीं होगा। हमें हिम्मतवान विश्वास  की ज़रूरत है जो हमें बिना किसी झिझक के ईश्वर  के लिए व आत्माओं की मुक्ति के लिए महान कार्य के लिए प्रेरित करे। हमें वह विश्वास चाहिए जो एक जलती मशाल  के समान है जो अंधकार की शक्तियों से लड सकता है, जो अपनी रोशनी  से अज्ञानियों को सही राह दिखा सकता है व पापियों को प्रभु के उजाले में ला सकता है, जो कुनकुने हैं उन में विश्वास  व प्रभु के प्रेम ज्वाला प्रज्वल्लित कर सकता है, जो पाप में मर चुके हैं उन्हें प्रभु की मुक्ति की एक आशा  किरण दिखा सकें तथा अपने मधुर व शक्तिशाली  शब्दों से कठोर से भी कठोर दिल को पिघला सकें तथा शैतान का हर समय हिम्मत के साथ सामना कर सकें। जब हमें इस प्रकार का विश्वास  मिल जायेगा। तब हम सब प्रभु की उत्कंठा से राह देख सकते हैं। तब हम उसका इंतज़ार कर सकते हैं। संत फिलिप नेरी की तरह तब हम भी तैयार रह सकेंगे। औरख़ुशी-ख़ुशी  उनके राज्य में प्रविष्ठ हो जायेंगे जहाँ हम सब के लिए हमारे प्रभु येसु ने स्थान तैयार कर रखा है।
आमेन।


Jay Yesu ki

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Friday, 2 August 2019

सामान्य काल का 1 8 वां रविवार 4 अगस्त 2019


ये दिल माँगे मोर... । 

पहला पाठ उपदेशक  1:2; 2:21-23
दुसरल पाठ कोलोसिओ  3:1-5,9-11
सुसमाचार लूकस  12:13-21

90 के दशक  में पेप्सी के विज्ञापन का एक स्लोगन था जो भारत में काफी लोकप्रिय हो गया, वो था - ये दिल माँगे मोर थवा ये दिल और माँगता है। आज के तीनों पाठों का सार भी शायद यही है। तीनों पाठ मनुष्य की ‘ये दिल माँगे मोर’ वाली प्रवृति पर एक करारा प्रहार करते हैं। दौलत और दुनियाई कोई भी चीज अपने आप में बूरी नहीं होती। पर जिंदगी में सिर्फ उसे ही हासिल करना, और उसे ऐसे हासिल करते जाना की खुद को समझ न आये कि मुझे कितना चाहिए! मुझे कितनी संपत्ति की ज़रूरत है! या फिर ये सूध न पडे कि मेरे लिये पर्याप्त कितना होगा।  और फिर मैं यदि मेरा खून पसीना एक कर दूँ यह कहते हुए कि ये दिल माँगे मोर तो आज के पहले पाठ में उपदशक कहता है यह बिल्कुल व्यर्थ है। कई लोगों को आज तक यह बात समझ में नहीं आई है कि वे जीने के लिए काम करते हैं या फिर काम करने के लिए जीते हैं। यदि हमारी मेहनत सिर्फ एक सुखी जीवन के लिए है तो एक गरीब की एक दिन की कमाई काफी है, दो रोटी खाकर सूकुन से सो जाने के लिए और  यूँ तो सोने की थाली में भोजन करने वाले एक करोडपती को भी  रातभर  चैन की निंद नहीं आती। उपदेशक कहता है - मनुष्य समझदारी, कौशल  और सफलता से काम करने के बाद जो कुछ एकत्र करत लेता है, उसे वह सब ऐसे व्यक्ति के लिए छोड देना पडता है जिसने उसके लिए कोई परिश्रम नहीं किया है। यह सब व्यर्थ और दुर्भाग्यपूर्ण है।
मैं यह नहीं सोचता कि कोई भी इंसान जो अधिक से अधिक धन इकट्ठा करके इस दुनिया में ऐशो आराम की जिंदगी बिताने के ख्वाब देखता है वह इस सत्य से अनभिज्ञ रहता है कि ये जिंदगी चार दिन की है। हम सब इस बात को जानते हैं। पर इस सत्य को हम नज़र अंदाज करते हैं। हमें पता है कि इस दुनिया की कोई भी चीज जिसे हमने हासिल किया है खत्म होने वाली है - चाहे वो रूपया है या दौलत, नाम हो या शौहरत सब यहीं का यहीं धरा रह जायेगा। फिर भी हम उसी के पीछे भागते हैं; उसी को हासिल करना चाहते हैं; उसी से अपनी जिंदगी को भर लेना चाहते हैं। इसलिए प्रभु येसु आज के सुसमाचार में ऐसे लोगों के लिए ‘मूर्ख’ शब्द का प्रयोग करते हैं। ‘‘मूर्ख इसी रात तेरे प्राण तुझसे ले लिए जायेंगे और तूने जो इकट्ठा किया (धन-दौलत, नाम और शौहरत) वह अब किसका होगा?’

मित्रों इस सत्य को जानते हुए भी हम क्यों मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं?  क्योंकि हम मूर्ख बनाये जाते हैं। हमारी आँखों में धूल डाल दी जाती है, हमें उल्लू बनाया जाता है। किसके द्वारा? संसार और सांसारिक प्रलोभनों द्वारा, शैतान और उसके अनुयायों द्वारा। आज का युग भ्रम और भ्राँतियाँ फैलाने वाला युग है। यह विज्ञापनों और प्रचार का युग है। यहाँ पर हमें झूठी बातों पर विश्वास  करने को मज़बूर किया जाता है। हमें मालुम है, हमने देखा है, अनुभव किया है कि कोई भी क्रीम वास्तव में काले को गौरा नहीं बना पाती है। फिर भी हम फेयर एण्ड लवली, फेयर एण्ड हैण्डसम जैसी कई क्रीम खरीदने और लगाने को मजबूर हैं। क्या किसी ने वास्तव में निरमा से धोने पर दूध की सफेदी अपने कपडों में देखी है, या सर्फ एक्सल से जिद्दी दाग क्या किसी ने निकाले हैं? नहीं ना ! क्या आप ने किसी को धन वृद्धी यंत्र खिरीदकर रातों रात करोडपति बनते देखा है। नहीं ना ! अरे रातों रात यदि यूँ करोडपति बना जा सकता था, तो ये बेचने वाला कब का पूरी दुनिया का मलिक होता! पर फिर भी हम उसके पीछे भागते हैं। फिर भी हम विश्वास करते हैं। आखिर क्यों? 

मेरे पास एक ही उत्तर है - ये सारी शैतान की चाल हैसंत योहन 8ः44 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘ तुम सब अपने पिता शैतान की संतान हो और उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हो। वह तो प्रारम्भ से ही हत्यारा था उसने कभी सत्य का साथ नहीं दिया, क्योंकि उस में कोई सत्य नहीं है। जब वह झूठ बोलता है, तो अपने स्वभाव के अनुसार बोलता है, क्योंकि  वह झूठा है और झूठ का पिता है।’’ ये सच्चाई है। उसने हमें अंधा बना रखा है। वह विभिन्न माध्यमों और स्रोतों से हमें यह कहता रहता है - पैसा ही सब कुछ है उसी के पीछे भागो, दौलत ही सब कुछ है उसी को हासिल करो, मौज मस्ती ही सब कुछ है, ऐश  करो, सब प्रकार के शारीरिक व मानसिक सुखों का भोग करो, अपनी वासनाओं की तृप्ती करो, इज्जत, नाम और शौहरत कमाओ, यही सब कुछ है। 
अब ये बताओ किसको यह नहीं मालुम की ये सब चीजें क्षणिक है, क्षण भंगुर है, पल भर में ओझल होने वाली है। यह जानकर भी तो हम उनके पीछे भागते हैं। आज पूरा बाज़ार इन्हीं चीजों से भरा पडा है। ऐसी चीजों से जो क्षणिक है।

प्यारे मित्रों हम ईश्वर  की संतान हैं, शैतान की नहीं। इसलिए हम ईश्वर की बात माने जो सच्चा है। संत योहन 7ः18 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जिसने मुझे भेजा, वह सच्चा है।’’ जी हाँ उसका वचन सच्चा है। वह इस दुनिया व शैतान जैसा दोहरी बात नहीं करता। वह हमें धोखे में नहीं रखता। प्रभु येसु ने कभी अपने अनुयाईयों को इस दुनिया की निगाह में धनी बनाने का वादा किया। उन्होंने कहा है - पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा मत करो, स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो, जहाँ न तो मोरचा लगात है, न कीडे खाते हैं और न चोर सेंध लगा कर चुराता है।’’ (मत्ती 6ः19-20) आज के दूसरे पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘ऊपर की चीज़ें खोजते रहें। आप पृथ्वी की नहीं, ऊपर की चीजों की चिंता किया करें।’’
आईये आज हम यह निश्चय कर लें  कि हम हमारे जीवन में सच्ची बातों, जो कि सिर्फ ईश्वर से आती है उन पर विश्वास  करंगे  और उन पर चलेंगे या फिर झूठी बातों और झूठे वादों पर विश्वास  करंगे  जो कि शैतान की और से आते हैं; हम  इस दुनिया में कुछ हासिल करना चाहते है जो कि नष्ट होने वाला है या फिर उस जीवन को हासिल करना चाहते हैं जो हमेशा  बना रहेगा, जो केवल येसु ही हमें दे सकते है.

यह हमारे ऊपर निर्भर है हम क्या चुनते हैं। मत्ती 6:21 में प्रभु का वचन कहता है & "जहां तुम्हारी पूंजी है वहीँ तुम्हारा ह्रदय भी होगा । मेरा दिल कहाँ है? 
आमेन।