विनम्र बनो छोटे
और विनम्र बनो
इब्रानी १२:१८-१९, २२-२४
लुकस १४:१, ७-१४
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों आज की धर्मविधि में प्रभु हम सबको अपने समान विनम्र बनने का आह्वान कर रहे हैं। प्रभु कहते हैं ‘‘तुम जितने अधिक बडे हो, उतने अधिक नम्र बनो इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे’’ (प्रव 3:19)
महापुरुषों की तुलना बहुत बार आम के पेड से की जाती है। आम का पेड जितना अधिक फल देता है उसकी डालियां उतनी ही अधिक नीचे झूक जाती हैं व जितना कम फल रहता है डालियां उतनी अधिक तनी हुई रहती है। जो व्यक्ति वास्तव में जितना अधिक महान होता है वह उतना अधिक विनम्रता दूसरों के सामने झूक जाता है लेकिन जो दुनिया की दृष्टि में स्वयं को बडा दिखाना चाहते हैं परन्तु भीतर से खोखले हैं, वे फलहीन या फिर कम फल वाली डालियों की तरह तन कर अपने आपको जबरन महान सिद्ध करवाने की कोशिश करते हैं।
निति वचन 18:12 में प्रभु का वचन कहता है -- "घमंड विनाश की ओर ले जाता है। और विनम्रता सम्मान की ओर।’’ सम्मान माँगने से नहीं अपने विनम्र सुआचरण से मिलता है। प्रभु का वचन कहता है प्रवक्ता ग्रन्थ 10:31 में ‘‘पुत्र विनम्रता से अपने स्वाभिमान की रक्षा करो। अपने को अपनी योग्यता के अनुसार ही श्रेय दो।’’ याने मैं जो भी हूँ, जितना पानी में हूँ उससे अधिक दंभ न भरूँ। रहीमदासजी का एक प्रसिद्ध दोहा है
‘‘बडे बडाई न करें बडे न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल"
याने जो लोग वास्तव में बडे हैं, सम्मानीय हैं वे अपनी बडाई स्वयं नहीं करते जैसा कि हीरा सबसे कीमती चीजों मेंसे एक होने पर भी कभी किसी से नहीं कहता है कि मेरा मूल्य लाखों रूपये है। उसके स्वभाव व उसके गुणों से लोगों को पता चलता है कि हीरा एक कीमती वस्तु है। हम भी ऐसे ही बनें। एक सच्चा गुणवान व्यक्ति जिसे कई उपलबधियाँ प्राप्त है हमेशा यही सोचेगा कि उसकी यह छोटी सी उपलबधि विशाल संभावनाओं वाले इस संसार में कुछ भी नहीं है। अंग्रेजी में एक कहावत है - स्काई इज़ द लिमिट। याने हमें सिखने, बढने व विकास करने की कोई सीमा नहीं। इसलिए कोई भी अपने आप को परिपक्व, सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी व सबसे बडा विद्वान न मानें। हर कोई यह स्वीकार करे कि मैं भी अन्य लोगों की तरह एक साधारण इसान हूँ। मैं भी गलती कर सकता हूँ, मुझमें भी कमज़ोरियां है।
फिलिपियों को लिखे पत्र 2:3 में संत पौलुस हमें सुन्दर शब्दों में समझाते हुवे कहते हैं - हर व्यक्ति नम्रतापुर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई केवल अपने हित का ही नहीं, बल्कि केवल दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। आज दुनिया में लडाई-झगडे, व युद्ध क्यों होते हैं इसी कारण की हम दूसरों को अपने से श्रेष्ठ नहीं देख पाते, हम दूसरों की उन्नती नहीं सह पाते, दूसरों को पनपते व ऊपर उठते नहीं देख पाते। हमारा अहंकार हम पर हावी हो जाता है। प्रभु का वचन हमें कहता है निति वचन 29:23 में मनुष्य का अहंकार उसे नीचा दिखाता किंतु विनम्र व्यक्ति का सम्मान किया जाता है।
आज के सुसमचार में प्रभु हमसे कहते हैं कि जब तुम भोज पर आमंत्रित हो, तो पहले से जाकर सम्मानीय स्थानों पर कब्जा मत जमाओ। पीछे आम लोगों के साथ बैठो, तब मालिक यदि आपको सम्मानीय स्थान के योग्य समझेगा तो व तुम्हें आगे की ओर बुलायेगा। तब सब के सामने आपकी इज्जत बढेगी। इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु हमें यह सिखाना चाहते हैं कि हमें हमारे बारे में वास्तविक आंकलन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमे हमारी हैसियत पता होना चाहिए कि हम कौन हैं।
आज का समय like - dislike, comment और share का समय है । हर कोई सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करना चाहता है : मेरी फोटो सबको पसंद आये, मेरी पोस्ट को सब लाइक करे, मेरी तारीफ में लोग अच्छे-- अच्छे कमैंट्स करे यही आज के युवाओं की पर्सनालिटी का मापदंड बन गया है । हमें याद रहे कि इंटरनेट व सोशल मीडिया की दुनिया काफी हद तक झूठी व मायावी है। ये हमें I am important वाली मानसिकता की और ले जाते हैं । और जब ये मानसिकता आ जाती है तो यह हमें अहंकार की ओर ले जाती है जो विनम्रता की दुश्मन है ।
विनम्रता का मतलब स्वयं को दूसरों के सामने नीचा दिखाना नहीं होता। विनम्रता मतलब होता है सच्चाई, को सच्चाई के तौर पर ग्रहण करना।
मैं तभी एक विनम्र व्यक्ति बन सकता हूँ, जबः
1. मैं दूसरों के गुणों, प्रतिभावों व मुल्यों को पहचानता हूँ। खासकरके उन गुणों को जो मुझसे बढकर हैं तथा दूसरे व्यक्ति में उन गुणों को, उसकी काबिलियत को देखकर उसकी तारिफ कर सकूँ।
2. खुद के गुणों, प्रतिभावों व क्षमताओं की सीमा को पहचानना कि मैं इतना ही कर सकता हूँ। याने अपने अहंकार को आसमान जैसा ऊँचा रखकर खुद की हदों के परे कुछ हासिल करने की कोशिश न करना। मुझे मेरी कमज़ोरियों, बाधाओं को स्वीकार करना चाहिए कि इससे आगे मैं नहीं जा सकता ।
3. एक विनम्र व्यक्ति के मन में ईर्ष्या व जलन की भावना कभी नहीं होती। जब उसकी तुलना में दूसरे लोगों को अधिक चाहा जा रहा है, दूसरा व्यक्ति अधिक फल-फूल रहा है, अधिक प्रसिद्धी प्राप्त कर रहा है तब एक विनम्र व्यक्ति ईश्वर को इसके लिए ख़ुशी पुर्वक धन्यवाद देता है।
4. एक विनम्र व्यक्ति अपनी सारी खूबियों और सफलतााओं का श्रेय ईश्वर को देता है । 1 कुरिन्थियों 1 :31 में प्रभु का वचन कहता है - "यदि कोई गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करे।"
विनम्रता एक महापुरूष की निशानी ही नहीं बल्कि उन्नती व वृद्धी का एक मार्ग भी है। जो मैनेजमेंट व प्रोजेक्ट के ऊपर काम करते हैं उसमें वे मुल्यांकन का एक सिद्धांत अपनाते हैं जिसे SWOT अनालिसिस कहते हैं। इसमें स्वयं की strength याने क्षमता, ताकत को आंका जाता है फिर खुद की weakness याने कमजोरियों को ढूंढा व पहचाना जाता है फिर अपनी क्षमता व कमजोरी के अनुसार भविष्य में सुधार के क्या-क्या अवसर हैं या क्या क्या opportunities है ये देखा जाता है। और अंत में threats याने क्या-क्या बधायें हैं उन्हें पहचाना जाता है।
स्वयं के आध्यात्मिक विकास के लिए यह विधी बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है। विनम्रता व्यक्ति को अपनी गिरेबांह में झांकने व खुद की कमजोंरियों को देखने व उन्हें अपनी ताकत क्षमाताओं में परिवर्तित करने में मदद करती है। दूसरी ओर जो व्यक्ति घंमडि व अहंकारी है, जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं उसका जीवन में उद्धार होना मुश्किल है । ऐसे व्यक्तियों का विकास स्थिर हो जाता है और वे जीवन में बहुत अधिक निराश, व हताश हो जाते हैं।
आइये हम सच्चे ख्रीस्तीय बनें , विनम्र व दीन - हीन बनकर सबों की सेवा करें । क्योंकि प्रभु कहते हैं "जो मन के दीन हैं , स्वर्ग राज्य उन्हीं का है " (मत्ती 5 :3 )।
आमेन