मित्रों आज के वचन बड़े ही चुनोती भरे हैं। प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं - "मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे । और वे आगे कहते हैं - "क्या तुम सोचते हो कि मैं पृथ्वी पर शांति ले कर आया हूँ? मैं तुमसे कहता हूँ ऐसा नहीं है ।
प्रभु येसु की इन बातों को हम कैसे समझें ? जब प्रभु येसु का जन्म हुआ था तब स्वर्गदूतों ने तो गया था - "सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले ।" " तो फिर क्या ये उसी येसु के वचनं है? क्या वही येसु ये बोल रहे हैं, जो स्वाभाव से नम्र और विनीत हैं, जो हमें अपना बोझ उन्हें दे देने को कहते हैं, और हमें विश्राम देने का वादा करते हैं?
जी हाँ , ये वही येसु हैं। यहाँ कोई विरोधाभास नहीं है , उनकी शिक्षा नहीं बदली । येसु मसीह के वचन जितने मधुर व सुखदाई हैं उतने ही चुनौतीपूर्ण व कठोर हैं। प्रभु येसु अपने शिष्यों से कोई लोकलुभावन, व झूठा वादा नहीं करते जैसा कि आज कल के हमारे नेता लोग करते हैं। वे हमेशा स्वर्ग राज्य की सच्चाई को ही हमारे सामने रखते हैं ।
किसी के जीवन में आग लगाने का जो आशय आज के सुसमाचार में है वो जैसा हम सोचते हैं वैसा नहीं है । ये आग हिंसा और झगडे की आग नहीं परन्तु प्रेम की आग है। यह अग्नि प्रेम की अग्नि है। हमारे मानवीय प्रेम की नहीं, पिता के प्रेम की अग्नि: जिससे भरकर येसु हमारे लिए सूली पर चढ़ गए, जिस प्रेम से परिपूर्ण होकर येसु ने हमारे लिए दुःख उठाया और अपनी जान दे दी।
येसु हमसे कहते हैं - जैसे मैंने तुम्हें प्रेम किया वैसे वैसे ही तुम एक दूसरे को प्यार करो। हम ख्रीस्तीय ईश्वर के उस प्रेम को इस दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाने के लिए चुने गए हैं। हम इस दुनियां में पिता के प्यार के वाहक हैं। दुनियाई प्रेम और मसीही प्रेम में अंतर है। दुनियाई प्रेम में जैसा कि प्रभु येसु कहते हैं हम उन्हीं से प्रेम करते हैं जो हमसे प्रेम करते हैं. पर येसु ने हमें अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने को सिखलाया है और दूसरों के लिए अपने प्राण भी दे देने को सिखलाया ।
और जब हम मसीह के उस प्रेम के वाहक बनते हैं तब दुनिया हमारे विरुद्ध हो जाती है। क्योंकि जहाँ ईश्वर का प्रेम है वहां शैतान की कोई चाल या कोई काम सफल नहीं हो सकता। इसलिए शैतान हमेशा प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने वालों को परेशान करता है। उनके जीवन में अशांति लाता है। जैसा कि आज के पहले पाठ में नबी यर्मियाह के साथ होता है। इसलिए जव प्रभु येसु आज हमसे कहते हैं कि वे शांति लेकर नहीं आये इसका मतलब यह हुआ कि उनका अनुसरण करने वाले, उनके अनुयायो को इस दुनियाई जीवन में कई कष्ट और दुःख झेलने होंगे। जैसा कि आज के सुसमाचार में प्रभु ने कहा है कि अपने ही करीबी लोग हमारे विरुद्ध हो जायेंगे । इसके कई सबूत मैं ने देखे हैं । येसु में विश्वास करने के कारण कइयों को अपने परिवार व समाज से बहिस्कृत कर दिया जाता है। येसु में विश्वास करने व उनके वचनों पर चलने के कारण मैंने भी मेरे जीवन में अपने साथियों, या फिर अन्य किसी लोगों से तिस्कार व निंदा झेली है । और में ही क्यों,आपने ने भी इसका अनुभव किया होगा। और हर वह इंसान जो सच्चे अर्थों में येसु का अनुयाई है उसे ये सब झेलना ही होगा। तो क्या इस डर से हम मसीह का अनुसरण करना छोड़ दें? क्या येसु ने नहीं कहा कि जो कोई मेरा अनुसरण करना चाहता है वह अत्म त्याग करें एवं अपना क्रूस उठा के मेरे पीछे चलें? और मत्ती २४:१३ में प्रभु का वचन कहता है - "जो अंत तक धीरज धरेगा उसी की मुक्ति होगी."
इन विचलित करने वाली बातों के बावजूद भी हमें दृढ़ता पूर्वक अंत तक येसु के पीछे चलते रहना है। तभी हमें महामयी मुकुट प्राप्त होगा।
तो आइये हम करें कि प्रभु हममें अपने प्रेम की वो ज्वाला प्रज्वलित कर दे जिससे भरकर हम जनजन में येसु के उस प्रेम का प्रचार व प्रसार कर सकें:
आओ, हे पवित्र आत्मा, अपने भक्तों के हिर्दयों को भर दो
और उन्हें अपने दिव्य प्रेम की अग्नि से प्रज्वलित कर दो
अपना आत्मा भेज दो और हमारा नवनिर्माण हो जायेगा
और तू पृथ्वी का रूप नया कर देगा।
आमेन ।
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