
स्वर्ग का दरवाज़ा संकरा है
इसायाह 66:18-21
इब्रानियों 12:7,11-13
लूकस 13:22-30
डामसुस के सांता मार्था के गिरजाघर में संत पिता फ्रांसिस ने एक बार कहा था, ‘‘प्रभु येसु के खून से हम सब का उद्धार हुआ है, सब का केवल कैथोलिक ही नहीं सब, हर कोई को उनके खून से मुक्ति मिली है।" किसी ने पूछा पिताजी क्या नास्तिकों का भी? वे बोले हाँ नास्तिक भी उनकी मुक्ति के भागीदार हैं। हर कोई। उनका रक्त हमें उनके प्रथम श्रेणी के बच्चों में मिला लेता है। हम उनके रंग-रूप में गढे गये हैं और मसीहा का रक्त हर एक को मुक्ति प्रदान करता है। पर चुनाव या विकल्प हमारा है, हम उस मुक्ति को गले लगायें या फिर ठुकरा दें।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि उद्धार का द्वार तो खुला हुआ है, लेकिन वह संकरा है। संकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।
स्वर्ग जाने वाला द्वारा संकरा तो है लेकिन वह प्रतिबंधित नहीं है। प्रभु येसु के अनुसार यह द्वार सब के लिए खुला हुआ है, कोई प्रतिबंध नहीं, कोई टैक्स नहीं। फिर भी यह सभी राष्ट्रों के लोगों के स्वागत के लिए पर्याप्त विस्तृत है। शायद येसु को सुनने वालों में से कई उनका निष्कर्ष सुनकर आष्चर्यचकित हो गये होंगे। ‘‘पूर्व और पश्चिम; उत्तर और दक्षिण से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। और देखो, जो पिछले हैं वे अगले जायेंगे, और जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे।’’
स्वर्ग का दरवाजा विश्व के हर एक कोने से आये लोगों को अपने अंदर ले सकता है । संत योहन ने प्रकाशना ग्रन्थ में जो दिव्य दर्शन देखा था उसमें वे प्रभु येसु के इन शब्दों की पुष्टी करते हैं जहाँ लिखा है - ‘‘इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंषों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विषाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खडे थे। और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कह रहे थे, ‘‘सिंहासन पर विराजमान हमारे ईष्वर और मेमने की जय!’’ (प्रकाशना 7ः9-10)
अधिकतर यहूदियों ने स्वर्ग को बहुत हल्के में लिया बहुतों का ये मानना था कि सभी, जो बहुत ही बूरे हैं, उनको छोडकर बाकी सब यहूदी स्वर्ग जायेंगे। वे हमेशा अपने आप को स्वर्ग राज्य के अंदर के लोग समझते थे। वे अपने आपको उद्धार पाये हुवे लोग समझते थे सिर्फ इसलिए कि वे यहूदी थे। वे बडे गर्व से कहा करते थे अब्राहम हमारे पिता है। प्रभु की यह शिक्षा उन यहूदियों के लिए थी जो ऐसी धारणा लिये बैठे थे।
परन्तु आज हमारे लिए इसके क्या मायने हैं। ख्रीस्तीय होने के नाते हम सब ईश्वर की प्रजा के सदस्य बन गये हैं। जिस प्रकार इस्राएली लोग सिनाई पर्वत पर एक विधान के तहत अपने खतना द्वारा ईश प्रजा के भागीदार बन गये उसी प्रकार ख्रीस्तीय लोग बपतिस्मा के द्वारा ईश परिवार एवं प्रजा के सदस्य बन गये हैं। पुराने विधान के लोगों के समान हम भी नये विधान ईश प्रजा हैं । हम भी इस्राएलियों की तरह विशेषाधिकार प्राप्त लोग बन गये हैं। हम भी स्वर्ग राज्य के अंदर के लोग बन गये हैं। अन्य धर्मों एवं पंथों की तुलना में हमारे पास मुक्ति की परिपूर्णता है। लेकिन हम हमारे इस विशेषाधिकार पर ही निर्भर नहीं रह सकते। हम इसके लिए दावा नहीं कर सकते। संत लूकस के सुसमाचार में हम सुनते हैं ऐसे लोग ये कहेंगे - ‘‘प्रभु हमने आपके सापने खाया पिया और हमारे बाजारों में आपने उपदेष दिया’’ परन्तु वह तुम से कहेगा, मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो।’’ जी हाँ, हम कहेंगे प्रभु हमने गिरजाघर में जाकर प्रार्थना की, मिस्सा बलिदान में भाग लिया, नोवेना प्रार्थना की आदि। प्रभु कहेंगे कुकर्मियों तुम मुझ से दूर हट जाओ। क्योंकि यह सच है कि हम प्रभु येसु के द्वारा मुक्त कर दिये गये हैं इसका मतलब ये नहीं कि आराम से बैठ जायें वचन कहता है - ‘‘संकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो।’’ हमें प्रयत्न करते रहना है। संकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा - पूरा प्रयत्न करना प्रभु येसु ने हमारे लिए, हमारी मुक्ति के लिए जो किया है उसके प्रति हमारा एक प्रत्यिुतर है।
मुक्ति की घटना भी ऐसी ही है। यह एक तरफा नहीं है। यदि मुक्ति कार्य एक तरफा होता है तो वह पूर्ण नहीं है। यदि मुक्तिकार्य में सिर्फ येसु ही कार्यरत हैं और ख्रीस्तीय प्रजा अपनी ओर से इसमें भागीदारी नहीं देती, अपनी ओर से प्रयास नहीं करती तो इसका प्रभाव हमारे जीवन में नहीं आयेगा। द्वितीय वाटीकन महासभा का संविधान ल्युमन जेन्स्युम कहता है कि कोई व्यक्ति यद्यपि वह कलीसिया रुपी शरीर का अंग है, पर प्रेम व सेवा के मार्ग पर नहीं चलता तो वह कलीसिया की गोद में तो ज़रूर रहता है पर केवल शारीरिक रूप में उसकी आत्मा ईश्वर से दूर है। जो कोई अपने मन वचन व कर्म से ईश्वर के मार्ग पर नहीं चलता उसकी वाणी को सुनकर अपने जीवन द्वारा उसका जवाब नहीं देता तो न केवल वह उद्धार से वंचित होगा, परन्तु उसका न्याय बडी ही कठोरता एवं क्रूरता से किया जायेगा। जो बाहर के समझे जाते हैं वे प्रभु भोज के भागीदार बनेंगे और अंदर वाले बाहर कर दिये जायेंगे। इसीलिए आज का वचन कहते है - जो अगले हैं वे पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं वे अलगे हो जायेंगे। अंतिम न्याय के दिन एक बडा उलट-फेर होगा। जिन्हें हम अंदर देखने का सोच रहे थे होंगे वे सकता है बाहर हो जायेंगे। हो सकता है कई बिशप्स , फादर्स सिस्टर्स व दुनिया की दृष्टी में धार्मिक माने जाने वाले ख्रीस्तीय विश्वासीगण स्वर्ग के संकरे द्वार के बहार ही रह जायेंगे। और जिन्हें हम श्रापित नीच व बिना महत्व के सोचते हैं वे ही प्रभु के साथ भोजन की मेज़ पर बैठकर प्रभु भोज का लुफ्त उठायेंगे।
संकरे द्वार का एक अन्य उदाहरण प्रभु हमें दूसरे शब्दों में देते हैं। ‘‘मैं तुमसे यह भी कहता हूँ सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किंतु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है।’’ (मत्ती 19:24) रास्ता बडा संकरा है केवल इंसान ही उसमें प्रवेश कर सकता है। धन-दौलत नहीं। यदि किसी को अपने धन पर बहुत अधिक भरोसा है तो वे याद रखें कि संकरे द्वार से प्रवेश करते समय कहीं वह अपने धन के साथ वहीं अटक के न रह जायें। इसान के लिए उसकी आत्मा ही ज्यादा महत्व रखती है धन-दौलत नहीं। प्रभु येसु ने कहा है मनुष्य को इससे क्या लाभ कि वह सारा संसार कमा ले परन्तु अपनी आत्मा को ही खो दे ।
ये संकरा द्वार आखिर है क्या? संत योहन के सुसमाचार १०: ७-९ में प्रभु येसु हमसे कहते हैं - "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - भेड़शाला (याने स्वर्ग) का द्वार मैं हूँ। यदि कोई मुझ से हो कर प्रवेश करेगा, तो उसे मुक्ति प्राप्त होगी। वह भीतर-बाहर आया-जाया करेगा और उसे चरागाह मिलेगा।"
अब हमें समझ में आता है कि संकरे द्वार से प्रवेश करना कठिन क्यों है । क्योंकि प्रभु येसु की रहे शिक्षा कठीन है । प्रभु येसु की रहे बड़ी जटिल है । योहन के सुसमाचार के ६ वें अध्याय में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु की शिक्षा बड़ी कठिन होने के कारण उनके कई शिष्य उन्हें छोडकर चले जाते हैं । तब प्रभु अपने प्रेरितों से पूछते हैं क्या तुम भी मुझे छोड़कर चले जाना कहते हो ? इस पर पेत्रूस बड़ा अच्छा जवाब देते हैं - "प्रभु हम आपको छोड़कर कहाँ जाएं आपके ही शब्दों में अनंत जीवन का सन्देश है ।
जी हौं प्यारे मित्रों येसु रुपी द्वार से होकर जाना आसान तो नहीं लेकिन हम आज अपने आप से पूछें कि इस चुनौती से भागकर ,चौड़े दरवाज़े तलाशना, आसान राहें खोजना, जो शैतान और सांसारिकता हमें देती है, और इस चक्कर में अनंत जीवन को खो देना कितना उचित होगा ?
आईये हम संत पेत्रुस की तरह प्रभु से बोलें - प्रभु यद्यपि संकरे द्वार याने आपसे होकर जाना कठिन है पर हम आपको छोड़कर और कहाँ जाएं क्योंकि अनंत जीवन तो आप में ही है। आमेन ।
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