Friday, 6 September 2019

वर्ष का तेईसवां रविवार, 8 सितम्बर 2019: Hindi Reflection


येसु का सच्चा शिष्य बनने की शर्तें 
प्रज्ञा ग्रंथ 9ः13-18
फिलेमोन 9-10,12-17
लूकस 14ः25-33
ख्रीस्त में प्यारे विश्ववासियों, पृथ्वी पर अब तक निवास करने वाले प्राणियों में सबसे बुद्धीमान और अपनी विचारने तर्क करने की शक्ति में सर्वोपरी सिर्फ इंसान ही है। आज उस इंसान ने विज्ञान और तकनिकी के क्षेत्र में काफी तरक्की की है। अंतरिक्ष की उडान भरकर मानव ने चाॅंद और ग्रहों की जानकारी हासिल की है। हाल ही में हमारे देश  ने चंद्रयान-2 को चंद्रमा पर भेजा था, पर दुर्भाग्यवश वह सफलतापुर्वक चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर सका। ऐसे कई प्रयास देश  और दुनिया के कई वैज्ञानिक कर चुके हैं। पर फिर भी कई रहस्यों पर अभी तक पर्दा पडा हुआ है। एक ओर इंसान की सारी सफलताओं पर ख़ुशी  व्यक्त करते हुए हमें दूसरी ओर आज के वचन में बताई गई सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। 
आज पहले पाठ में वचन कहता है - ‘‘जो हमारे सामने हैं, उसे हम मुश्किल से समझ पाते हैं, तो आकाश में क्या है, इसका पता कौन लगा सकता है? जि, हाँ हमारे सामने बैठे व्यक्ति के बारे में ही हमें पूरी तरह से नहीं मालुम, हमारे पडोसी के घर की ही हमें पूरी जानकारी नहीं तो आकाश और अंतरिक्ष की जानकारी रखना इंसान के लिए वाकय बहुत कठिन है। पर हम यह देखते हैं कि अंतरिक्ष और अंतरिक्ष के नक्षत्रों की कुछ जानकारी इंसान ने हासिल जरूर कर ली है। इसके बारे में आज के पाठ में प्रभु का वचन आगे कहता है - ‘‘यदि तुने प्रज्ञा का वरदान नहीं दिया होता और पवित्र आत्मा को नहीं भेजा होता,, तो तेरी इच्छा कौन जान पाता?’’ यह वचन हमें बतलाता है कि प्रभु ने इंसान को अपनी इच्छा और अपनी सृष्टि को समझने के लिए प्रज्ञा और बुद्धी यदि न दी होती तो कोई भी इन्हें नहीं जान पाता। वचन हमें यही बतलाना चाह रहा है कि यह ईश्वर ही है जो मनुष्यों को पवित्र आत्मा और प्रज्ञा प्रदान करता है ताकि वे ईश्वर की सृष्टि को जानें व ईश्वर की महानता का बखान कर सकें। परन्तु देखा ये जाता है कि मनुष्य अपनी उपलब्धियों का श्रेय स्वयं को देते हुए ईश्वर जो सब प्रज्ञा और ज्ञान का स्रोत है उसे नकार देता है। कई वैज्ञानिक तो ईश्वर के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान खडा करते हुए उनके अस्तित्व को नकारते हैं। आज प्रभु का वचन यह स्पष्ट कर रहा है कि विज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियाँ ईश्वर द्वारा दी गई प्रज्ञा के बिना संभव नहीं। 
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने अनुयायों के सामने एक चुनौती रख रहे हैं जिससे कई लोग दूर भागते हैं   आजकल कई प्रचारक मसीहियों को भ्रम में डाल रहे हैं। उनके प्रवचनों में वे ये बतलाते हैं कि येसु में विश्वास करने पर व उनसे प्रार्थना करने पर तुम्हारी दुनियाई चीजों में तरक्की होगी। तुम्हें रूपया- पैसा मिलेगा, धन-दौलत मिलेगी, इज्जत और प्रसिद्धी मिलेगी, प्रभु तुम्हारे घरों को भरेगा आदि। अब, ऐसा नहीं है कि प्रभु ये सब देने में असमर्थ हैं पर इन सब चीजों को हासिल कर लेने से हमें कोई खास फाइदा नहीं होने वाला है। क्योंकि  ये सब चीजें इस दुनिया की है, इनका साथ केवल हमारी मौत तक होता है। उसके बाद ये और किसी की हो जायेंगी। फिलिपियों 3ः20 में वचन कहता है - ‘‘हमारा देश  तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिदाता की राह देखते रहते हैं।’’ हमारा अंतिम मुकाम, हमारे जीवन का लक्ष्य स्वर्ग है। इसलिए एक मसीही के लिए स्वर्ग और स्वर्गिक बातों को जानना, समझना व उन पर विश्वास करते हुए उस ओर आगे बढना सबसे महत्वपूर्ण है। चंद्रमा कितना बडा है; वो हमसे कितना दूर है; वहाँ पर क्या-क्या है? आदि जानना अच्छा है पर मुक्ति के लिए जरूरी नहीं। 
इसलिए यदि कोई वास्तव में प्रभु येसु का अनुसरण करना चाहता है तो उसे पूरी तरह से अपना जीवन उसकी मरजी पर चलने के लिए अर्पित करना पडेगा। दुनिया के सब रिश्तों, संबंधों, सब प्रकार के दुनियाई ज्ञान, व धन सम्पत्ति से अनासक्त होना पडेगा। यह एक मुश्किल काम है पर एक सच्चे मसीही के लिए और कोई विकल्प नहीं है  इसलिए  प्रभु कहते हैं कि हमें यदि हमारे जीवन की ईमारत स्वर्ग में बनाना है, तो हम इसके लिए पहले से इसके लिए दृढ निष्चय कर लें कि मुझे यह करना ही है। उसके लिए मुझे क्या-क्या समस्याऐं, व असुविधायें हो सकती है उसकी हिसाब-किताब हम पहले से ही लगा लें। ताकि जब येसु का शिष्य बनकर, स्वर्ग की ओर बढते समय यदि कोई चुनौती आये तो हम  पीछे न हटें लेकिन डटकर उसका सामना करते हुए नित आगे बढते जायें और येसु मसीह का एक सच्चा शिष्य बन सकें। आमेन।  




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