
शायद
कलीसिया के इतिहासकार ही ये बता पायेंगे कि सबसे पहले कलीसिया ने किसे संत घोषित
किया था। पर हमें यह तो अच्छी तरह से पता है कि पवित्र बाईबल के अनुसार सबसे पहले
संत की घोषणा स्वयं प्रभु येसु ने की थी - उस भले डाकू को यह कहते हुवे, ’’आज ही तुम मेरे साथ स्वर्ग
में होंगे।’’
इस प्रकार
कलीसिया ने कई व्यक्तियों को उनके जीवन-चरित्र व प्रभु से उनके करीबी रिश्ते के कारण
संत घोषित किया है। इन्हें देखकर, इनके जीवन
पर मनन-चिंतन करके हमें भी उस स्वर्गीय धाम की ओर आगे बढते रहने के लिए प्रोत्साहन
व प्रेरणा मिलती है। इन आत्माओं में जो कि हमारी ही तरह इन्सान थे, इस दुनिया
में हमारी ही तरह परिवारों में जन्में व अपने स्थानीय समाज में पले बढे। पर इस
भौतिक संसार के मोहों से ऊपर उठकर इन्होंने स्वयं को ख्रीस्त के अनुरूप बना लिया।
अब इनके द्वारा प्रभु हमसे बोलते हैं, वे हमसे कहते हैं - "तुम्हारी
मानवीय कमज़ोरियाँ मैं जानता हूँ, इनके
बावजूद भी तुम संत बन सकते हो। ये संतगण भी तुम्हारी ही तरह इस दुनिया में थे पर
इन्होंने सदा पिता ईश्वर की ईच्छा को पुरा किया; सदा पिता
की मरजी पूरी करने के लिए जीए। इसलिए अब ये तुम्हारे लिए आदर्श हैं एक
नमूना है। इन्हें देखकर उन राहों पर तुम भी चले आओ जो राहें मेरे स्वर्गीय धाम की
ओर जाती हों।" मेरे साथियों के साथ मैं एक बार ध्यान
आश्रम कांकरिया गया था, वहां एक दिन हम फादर के साथ पहाड पर चढे। ऊपर चढने के
लिए कोई रास्ता नहीं था। मेरे कुछ साथी झाडियों
मेंसे रास्ता खोजते हुवे पहले ऊपर चढ गये व वहाँ से बाकी लोगों को बताने लगे उधर
से नहीं इधर से आओ.....हाँ इस तरफ से...। मैं सोचता हूँ ये संतगण भी इसी तरह हमसे
पहले स्वर्ग पहूँचकर हमें इशारा कर-करके बुला रहे हैं - ये
वाला रास्ता सही है....जिस रस्ते से हम आये हैं वही सही रास्ता है, इसी पर
चले आओ। ये संत स्त्री पुरूष व बच्चे हमारे मार्गदर्शक व प्रेरणा
स्रोत हैं। इसलिए यह उचित है कि हम प्रभु येसु की अति प्रिय इन मित्रों व उनके सच्चे
अनुयायों को प्यार करें उनका उनुकरण करें व उनका आदर सम्मान करें। आज हम ईश्वर को
धन्यवाद दें कि उन्होंने हमारे इन असंख्य संत लोगों के जीवन में अपने मुक्ति कार्य
को सम्पन्न किया है।
आज के
पहले पाठ में जो कि प्रकाशना ग्रंथ
अघ्याय 7 से लिया
गया है, हम ये पाते
हैं कि संत योहन एक दिव्य दर्शन में संत जनों के एक विशाल
जनसमूह को देखते हैं इतने अधिक लोग कि उनकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। क्या
हम उस संतों के समुदाय में शामिल होंगे..? क्या हमारी गिनती उनमें होगी? जी हाँ
सम्भावना बहुत ज्यादा है। आप और मैं संतों की उस भीड में से एक हो सकते हैं।
प्यारे भाईयों-बहनों वचन कहता है - मैं ने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों, और भाषाओं
का ऐसा जनसमूह देखा जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। याने वो सभी राष्ट्रों अथवा
देशों से होंगे - अमेरिका, रोम, येरूसालेम, पाकिस्तान, भारत...; सब वंशों से - आप
के वंश से मेेरे पूर्वज आपके पूर्वज और आने वाली संतती; सब
प्रजातियाँ चाहे आर्यन हो या द्रवीडियन, मैंगोलियन हो या फिर निग्रो मद्रासी हो या फिर
आदिवासी सब उसमें शामिल है; सब
भाषा-भाषी - अंग्रजी बोलने वाले या फिर हिन्दी, मलयालम या कोंकणी, उर्दू या मराठी या तमील सबके
सब इस दल में शामिल हैं। प्रभु ने अपने झूंड में हम सबको गिन रखा है। अब हम चाहे
तो इसी के अंदर रहें या फिर इसमें से बाहर हो जायें। इस झूंड में बने रहने के लिए
आज का वचन कहता है- "ये वे लोग
हैं जिन्होंने मेमने रक्त से अपने वस्त्रों को धोकर उजले कर लिये हैं। इसलिए ईश्वर के सिंहासन
के सामने खडे रहते और दिन रात उसके मंदिर में उसकी सेवा करते हैं।’’ संतो के
समूदाय में बने रहने के लिए हमें मेमने रक्त से अपने वस्त्रों को धोकर, अपने आप
को साफ करना है। हमें क्रूसित मेमने के रक्त से खुद को धोकर
साफ करने की ज़रूरत है। संत योहन का 1 ला पत्र 1:7 में प्रभु
का वचन कहता है - ‘‘उसके पुत्र
प्रभु ईसा मसीह का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है।’’ प्रभु येसु का लहू है दुनिया का सबसे शक्तिशाली डिटर्जेंट
जो पाप के गहरे से गहरे, काले से
भी काले दाग को धोकर साफ कर देता है। प्रभु का वचन हमें कहता है नबी इसायाह
के ग्रंथ 1:18 में ‘‘तुम्हारे
पाप सिंदूर की तरह लाल ही क्यों न हो वे हीम की तरह उज्ज्वल हो जायेंगे। वे किरमिज
की तरह मटमैले क्यों न हो वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगे।’’
बपतिस्मा
संस्कार में हमें शुद्धता के प्रतीक स्वरूप श्वेत वस्त्र प्रदान किया गया था जिसे
हमने अंत तक शुद्ध रखने की प्रतीज्ञा की थी। याने उस वस्त्र के समान अंत तक शुद्ध
बने रहने की प्रतीज्ञा की थी। हम जानते हैं कि हमारी मानवीय कमज़ोरियों के कारण हम
वैसे ही नहीं रहे जैसे कि हम बपतिस्मा के समय थे। पर मेमने का रक्त, हमारे
प्रभु येसु का रक्त हमें फिर से शुद्ध कर सकता है। हर मेल-मिलाप संस्कार व पवित्र
युखरिस्त में सच्चे मन व सच्ची तैयारी से भाग लेने पर यही होता है। हमारे सारे पाप
दोष धुल जाते हैं और हम पुनः शुद्ध, श्वेत हो जाते हैं।
रक्त का
मतलब होता है जीवन। तो ख्रीस्त के रक्त का मतलब होगा ख्रीस्त का जीवन।
अतः ख्रीस्त के रक्त से स्वयं को धाने का मतलब होगा कि हम ख्रीस्तमय हो जायें।
ख्रीस्त के पवित्र संस्कारों को ग्रहण कर हम उसके साथ एक हो जाते हैं। संत पौलुस
कहते हैं कि हमारा पुराना स्वभाव मसीह के साथ कू्रस पर चढाया जा
चुका है। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह
मुझमें जीवित हैं। (गला. 2:19) आज जब हम
उस मसीह की देह और रक्त को ग्रहण करेंगे तो हम भी यही कहें कि हे प्रभु अब से
मुझमें तू ही जीवित रहे।
संत योहन
आज के दूसरे पाठ में हमसे कहते हैं - पिता ने
हमें कितना प्यार किया है। हम ईश्वर की सन्तान
कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। यदि हम वास्तव में ईश्वर की ही
संतान हैं; यदि ईश्वर हमारा
पिता है तो हम इस लोक में रहते हुवे उस पिता को क्यों न खोजें। हमसे अनन्त प्रेम से प्रेम
करने वाले उसे प्रेमी पिता का चेहरा क्यों न खोजें। हमारी इस जीवन यात्रा में हम
उस पिता को खोजते रहें जो हमें प्यार करता है। और जो भी उसे सच्चे मन से खोजेगें
उनके लिए संत योहन कहते हैं वे उसे वेैसा ही देंखेंगे जैसा कि वह वास्तव में है।
हम उस प्रभु को जैसा वो है वैसा ही देख पायेंगे। इसकेलिए आज का सुसमाचार एक शर्त
हमारे सामने रखता है - जिनका हृदय निर्मल है वही
ईश्वर के दर्शन करेंगे।
हम सब ईश्वर के मुख के
दर्शन करने के लिए बुलाये गये हैं। सब के सब संत बनने के
लिए बुलाये गये हैं। प्रभु हर स्त्री पुरूष, युवक-युवतियों, बडे-बुजूर्गों, छोटे
बच्चों, विवाहितों, अविवाहितों, समर्पित
भाईयों और बहनों, अमीरों व
गरीबों, शिक्षित व अक्षितों, तथा
व्यापारियों व किसानों सभी को संतों की संगती में उनके स्वर्गीय सिंहासन के सामने
निवास करने के लिए आह्वान करते हैं। इसलिए हम ये न सोचें कि संत केवल फादर सिस्टर
व समर्पित लोग ही बन सकते हैं। नहीं हर बिरादरी कव लोग संत बन सकते हैं। संत पिता
फ्राँसिस इस संदर्भ में दो टूक शब्दों में विश्व युवा दिवस
के मौके पर युवाओं से कहते हैं। हमें बिना कैसक (फादर लोगों का लिबास) वाले संत
चाहिए। वे आगे कहते हैं हमें जिंस, टीशर्ट व टेनिस
शूज पहनने वाले संत चाहिए जो फिल्में देखते हों व म्युजिक सुनते हों परन्तु अपने
जीवन में मसीह को प्रथम स्थान देते हों। हमें संत चाहिए जो रोज़ प्रार्थना के लिए
समय देते हों, तथा जो ये
जानते हों कि पवित्रता, शुद्धता, व अच्छी
चिजों से कैसे प्यार करना चाहिए। हमें 21 वीं सदी के लिए संत चाहिए जो
इस संसार में रहते हो लेकिन इस संसार के नहीं है। आईये हम आज ईश्वर से कृपा व
आशीष माँगे कि हम इस संसार में रहते हुवे हमारी नज़रें हमारे उस स्वर्गीय निवास की
ओर लगाये रखें जहाँ असंख्य दूत व संत ईश्वर के सम्मुख
हमारी राह देख रहे हैं। आमेन।