धन्यवादी बनो किसी का उपकार कभी मत भुलाओ
https://youtu.be/MrI8ebEIFaM
एक तरफ भौतिकतावादी इंसान दिनों दिन स्वार्थी होता जा रहा है। वह सिर्फ अपने लिए खुशियां और सुख व आरामदायक जिंदगी पाना चाहता है। वहीं दूसरी और आज भी कई भले लोग मौजुद हैं जो दूसरों का ख्याल रखते हैं। जो दूसरों की भलाई करते हैं। कई लोग तो अपनी पीडा का भुलाकर दूसरों की पीडा व दुःख को कम करने की चेष्टा करते हैं। जैसा कि आज के पहले पाठ में एक इस्राएली लडकी जिसका एक तरह से अपहरण करके उसे नामान नामक सेनाध्यक्ष के यहाॅं दासी के रूप में बेच दिया जाता है। वह परदेश में एक व्यक्ति की गुलाम बन कर रह रही होती हैं। वहाॅं पर वह अपने रंजो गम भुलाकर वह अपने स्वामी के हित का सोचती है। उसका स्वामी नामान भयंकर कोढ से ग्रसीत था। अपनी दासी के सुझावानुसार वह इस्राएल में नबी एलिशा के पास जाता है जो उन्हें यर्दन नदी में सात बार डूबकी लगाने को कहता है। और जैसे ही वह नदी से बाहर आता है उसका शरीर फिर से छोट बालक जैसा स्वच्छ हो जाता है । उसके आनन्द की कोई सीमा नहीं रही। वह इस्राएल के ईश्वर की तारीफ करता है कि उसको छोड पृथ्वी पर और कोई देवता नहीं। तथा वह आभार स्वरूप नबी को कुछ उपहार देना चाहता है। और नबी उस चमत्कार का श्रेय खुद को न देकर ईश्वर को देते हुए उपहार लेने से मना कर देता है।
मित्रों हमारे उपकारकों के प्रति आभारी होना एक उत्तम गुण है। सामने वाला भले ही आपसे ये उम्मीद न करे कि हम उसका एहसान चुकायें। पर यह हमारा परम कर्तव्य बनता है कि हम हमारा हित करने वालों के शुक्रगुज़ार बनें।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ने दस काढियों को मुफ्त में चंगा कर दिया। एक कोढ़ी होना उन दिनों एक भयंकर बात थी। कोढी व्यक्ति को समाज और नगर से बाहर कर दिया जाता था। कोई उनके पास तक नहीं आता था। इस बिमारी का कोई ईलाज भी नहीं था। एक तरफ तो बिमारी और दूसरी तरफ से समाज व अपनों से तिरस्कार, वहीं ऊपर से कोई ईलाज भी नहीं। एक अत्यंत निराशामय परिस्थिति, इस प्रकार वे एक बिना उम्मिद की जिंदगी जीते थे। ऐसे हालातों में येसु के द्वारा उनका चंगा कर दिया जाना उनके लिए एक नयी जिंदगी मिलने के बराबर था। सब खुश हो जाते हैं , पर बस एक ही लौटकर येसु के पास जाता है और उन्हें धन्यवाद देता है। इतना बडा एहसान और मन में कृतज्ञा का कोई भाव नहीं? येसु को इस पर बडा आश्चर्य हुआ! उन्हें इस बात का दुःख भी हुआ। वे पूछते हैं कि क्या दसों चंगे नहीं हुए? तो बाकी नौ कहाॅं है?
हम में से कुछ लोग उस समारी कोढी की तरह हैं जो प्रभु के चरणों में गिरकर उनके एहसानों के लिए शुक्रिया अदा करते हैं, वहीं कई लोग बाकी नौ कोढियों की तरह अपनी गरज निकल जाने पर अपने रास्ते चलते बनते हैं। जब तक किसी से फायदा मिलता हो लोग उसके आगे पीछे घुमते हैं पर जब अपना काम हो गया तो वे बिना एहसान जताये वहाॅं से निकल लेते हैं। जब तक कोई हमारा फायदा पहूॅंचाता हो हम उसके गुण गाते हैं जैसे वे कोढी अपनी उस दयनीय परिस्थिति में येसु को गुरू कहकर पुकारते हैं। पर ठीक हो जाने पर उन्हें वो गुरू फिर याद नहीं आते।
ऐसे कई अवसरवादी मित्र और रिश्तेदार होते हैं, जो केवल अपने फायदे के लिए रिश्ता निभाते हैं। किसी के एहसान से, किसी के दया धर्म से बडा व्यक्ति बन जाने पर वह अपना हित करने वाले व्यक्ति का तिरस्कार कर देते हैं।
किसी का एहसान भुला देना एक बहुत बूरी बात है। हमारे स्कूलों में कितने हजारों बच्चे पढ कर हर साल निकलते हैं, कितने ही बडे-बडे पदों पर असीन है, कितने ही सफल जिंदगी जी रहे हैं। पर उनमें से कितने लोग वास्तव में अपने स्कूल में जाकर अपने टीचर्स, व प्रिंसपल आदि से जाकर मिलते हैं और उनसे कहते हैं कि आज मैं जो कुछ हूॅं आपकी वजह से हूॅं। कुछ लोग ज़रूर ये करते हैं पर अधिकतर नहीं करते। धन्यवाद देना तो दूर की बात मैं ने मेरे ही पढाये बच्चों को कहीं इत्फाक से मिलने पर बिना अभिवादन किये या मिले बिना, दूसरी तरफ नज़रें करके गुज़रते देखा है। कई मिशनरी स्कूलों में पढे बच्चों को बढे होकर मिशन के विरूद्ध कार्य करते हुए भी देखा है।
जब इस प्रकार की बातें सामने आती है तो वही सवाल हमारे मन में आता है जो आज के सुसमाचार में येसु मसीह के मन में आया। क्या दसों निरोग नहीं हुए? क्या दसों का भला नहीं हुआ? तो बाकि नौ कहाॅं है? हमारे मन में भी सवाल उठेंगे हमने इतने सारे बच्चों को पढाया, हमने इतने सारे गरीबों की मदद की, हमने इतने सारे बिमारों का इलाज कराया, पर मुट्ठी भर ही उनमें से आभार प्रकट करते हैं। वास्तव में हम सिर्फ धन्यवाद पाने के लिए किसी का भला नहीं करते, किसी की भलाई करते समय हमारी भावना "नेकी कर दरिया में डाल" जैसी होनी चाहिए। परन्तु आज जो सीखने की बात है वो उन लोगों के लिए है जो किसी के उपकारों को भूला देते हैं।
आज हम अपने आप से पूछें कि कहीं हम भी ऐसे लोगों की गिनती में तो नहीं आते जो अपने एहसान करने वालों को नज़रअंदाज कर देते हैं। कितने ही लोग हमारी जिंदगी में आते हैं ? हमारे जीवन को सुंदर बनाते हैं ? हमारी विभिन्न रूपों में मदद करते? हम आज जो भी हैं उस मुकाम तक पहुॅंचने के लिए कितने लोगों ने हमारा सहयोग किया? क्या मैं कभी उन लोगों को दिल से धन्यवाद बोला हूॅं? क्या मैं मुझे नौकरी मिल जाने के बाद मैं मेरे स्कूल वापस गया हूॅं? क्या मैं ने कभी मेरे बचपन के टीचर्स से मिलकर यह कहा है - 'आपने मेरी जिंदगी संवार दी। आपका ये एहसान मैं कभी नहीं भुलूंगा।' क्या मैं ने अपने माता-पिता को कभी दिल से धन्यवाद कहा है उन सारे उपकारों के लिए जो बचपन से उन्होंने मुझ पर किये हैं? क्या हमने हमारी कीचन गर्ल, हमारे घर काम करने वाली बाई, हमारे गार्डनर, हमारा कचरा उठाने वाले सफाई कर्मियों आदि को कभी उनकी सेवाओं के लिए उन्हें थैंक्स कहा है? मित्रों हज़ारों लोग रोज़ हमारे लिए कुछ न कुछ करते हैं, हम उन्हें दिल से थैंक्स बोलकर देखें। अच्छा लेगेगा आपको भी और सामने वाले को भी। और थैंक्स बोलने से हमारा कहाॅं कुछ घट रहा है?
और इन सबसे बढकर ईश्वर को धन्यवाद देना तो हम कभी भी न भूलें। क्योंकि प्रभु का वचन कहता है - "सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि ईसा मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। (1 थेसलनिकियों 5 :18 ) कितने सारे कारण हैं हमारे पास ईश्वरको धन्यवाद देने के? हमारा पूरा जीवन उनकी ही रहमत पर टिका हुआ है। तो क्यों न हम उसका हर रोज़ शुक्र अदा करें। ईश्वर को सब बातों के लिए धन्यवाद देना सौ में से एक दिन का काम नहीं बल्कि यह हमारी दैनिक प्रार्थना का अहम हिस्सा होना चाहिए। ईश्वर से हमारा संबंध उन नौ व्यक्तियों जैसा न हो जो मुश्किल में तो उन्हें पुकारते हैं पर मुसिबत टलने पर उन्हें याद नहीं करते। कई बार ईश्वर से हमारा संबंध ऐसा ही रहता है। हम मुश्किल समय में उनसे प्रार्थना करते हैं, और प्रार्थना सुनें जाने पर, अथवा हमारा काम हो जाने पर हम ईश्वर को भूल जाते हैं। एक छोटा सा उदाहरण: जब हम कहीं पर जा रहे होते हैं तो हम बडी व्याकुलता से हमारी सफल यात्रा के लिए प्रार्थना करते हैं। फादर-सिस्टर्स जैसे ही गाडी चालू होती है प्रार्थना प्रारम्भ कर देते हैं क्योंकि यात्रा के दौरान कुछ अनहोनी हो जाने का डर रहता है। पर जब हम सुरक्षित अपने गंतव्य स्थान पर पहुॅंचते हैं, क्या हम धन्यवाद की कोई प्रार्थना करते हैं जैसे हमने यात्रा प्रारम्भ करते समय की थी। ...... ? यही हालत अन्य बातों में भी होती है।
आईये प्रिय विश्वासियों हम अपने जीवन में ईश्वर और लोगों को धन्यवाद देने वाले बनें ताकि ईश्वर आशीष और लोगों की दुआ हमारे जीवन में मिलती रहे। आमेन।
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