Tuesday, 28 January 2020

प्रभु येसु के मंदिर में समर्पण का पर्व ( Year A ) 2 फरवरी 2020


मला. 3ः1-4
इब्रानियों 2ः14-18
लूकस 2ः22-40

कुछ दिनों पहले हमने ख्रीस्त जयंति का पर्व मनाया, उसके बाद पवित्र परिवार का पर्व मनाया, तत्पश्चात ईश माता का पर्व मनाया, फिर प्रभु-प्रकाश का पर्व और आज हम प्रभु येसु के मंदिर में समर्पण का पर्व मना रहे हैं। इन सब पर्वों में हम पवित्र परिवार को एक साथ पाते हैं। प्रभु के मंदिर में समर्पण की घटना को जब हम ऊपरी तौर से पढते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि सब कुछ सामान्य सा है। माता मरियम और संत युसूफ बालक येसु को लेकर ठीक वैसे ही मंदिर में आते हैं, जैसे अन्य यहूदी माता-पिता परंपरागत रूप से करते आ रहे थे। लेकिन जब हम गहराई से इन बातों पर मनन चिंतन करते हैं तो हम पाते हैं कि यह एक बहुत ही रहस्यमय और गहरे अर्थ भरी घटना है। संत लूकस अपने सुसमाचार में लेवी ग्रंथ 12ः1-8 व निर्गमन 13ः2 का हवाला देते हुए इस घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं - ‘‘जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरूसालेम ले गये; जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है।’’ जब हम लेवी ग्रंथ का उद्धरण पढते हैं तो पाते हैं कि मंदिर में समर्पण की धर्मविधी खतना एवं शुद्धीकरण से तालुक रखती है।

यूॅं देखें तो, येसु और माॅं मरियम दोनों, संहिता की किसी शुद्धीकरण की रीति को पूरा करने लिए बाध्य नहीं थे। परन्तु यह उनकी महान विनम्रता को दर्शाता है। उनकी विनम्रता से भी बढ़कर बालक येसु को अन्य यहूदी बच्चों की भाॅंति प्रभु के मंदिर में चढ़ाना संत योहन 1ः14 में कहे गये वचन की पूर्ण पुष्टी करता है - ‘‘शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ उनका मंदिर में चढाया जाना यह बतलाता है कि येसु में ईश्वर पूरी तरह मनुष्य बन गये हैं। माता मरियम और संत यूसुफ जहाॅं येसु के मनुष्य होने के पक्ष को पुख्ता करते हैं। वहीं धर्मी सिमियोन और नबिया अन्ना येसु के ईश्वर होने के पक्ष को पुख्ता करते हैं। जहाॅं सिमियोन एक ओर येसु को सब राष्ट्रों का मुक्तिदाता घोषित करता है। वहीं दूसरी ओर उनके घोर दुखभोग एवं क्रूस मरण द्वारा माता मरियम को होने वाले असहनीय दर्द की भविष्यवाणी करता है - एक तलवार आपके हृदय को आर-पार भेदेगी।

इस रहस्य की और गहराई में यदि जायें, तो हम पवित्र परिवार के अंदर पवित्र यूखारिस्त समारोह की एक झलक पाते हैं। पवित्र यूखारिस्त और माता मरियम में एक घनिष्ट संबंध है। जैसा हम देखते हैं कि पवित्र यूखारिस्त में दो मुख्य भाग होते हैंः 1- पवित्र वचन की धर्मविधी और 2 - पवित्र यूखारिस्त की धर्म विधी। पहले भाग में माता मरियम अपने जीवन में ईश्वर के वचन को न केवल सुनती है परन्तु उसे अपने अंदर धारण करती है। तथा आज के इस पर्व में माता मरियम येसु को मंदिर चढाती हैं। यह मिस्सा के दूसरे भाग - यूखारिस्तीय धर्म विधी की आरम्भिक विधी है - भेंट अथवा चढावा। जैसे हम रोटी और दाखरस प्रभु की वेदी पर चढाते हैं माता मरियम ने बालक येसु को हमारे लिए बलिदान चढने हेतु समर्पित कर दिया। जैसे भेंट में चढाई गई रोटी और दाखरस की भेंट हमारे प्रभु येसु के कलवारी पर चढाये गये उस येसु के बलिदान की याद है जिसे आज के दिन उनकी माता ने मंदिर में चढाया था। येरूसालेम मंदिर में अर्पित येसु का वही शरीर एक दिन कलवारी पर हम सब के पापों के खातिर चढाया जााता है। और मरियम इस पूरे मुक्तिकार्य में येसु के साथ रहती है। प्रभु येसु माता मरियम के द्वारा मंदिर में अर्पित वह चढ़ावा है जिसने हमारे उद्धार के लिए सूली चढ़कर हमें पाप-मुक्त किया है।

आज का यह पर्व हर एक ख्रीस्तीय परिवार को व हर माता-पिता को आह्वान करता है कि हम भी अपने बच्चों को ईश्वर को समर्पित करें। उन्हें यह विश्वास दिलायें कि वे ईश्वर के हैं, संसार के नहीं। हम आज की दुनिया में हमारे बच्चों को संसार और संसार की बहुत सारी चीजें़ तो ज़रूर देते हैं और उन्हें संसार का या संसारी बना रहे हैं पर हम उन्हें ईश्वर ज्ञान, और ईश्वर की भक्ति से दूर कर रहे हैं। हम उन्हें अच्छी पढाई, अच्छी नौकरी और सफलता हासिल करना तो सिखा रहे हैं परन्तु कहीं न कहीं इस अंधी दौड में हम इन सब से ज्यादा जो आवश्यक, है उसे भूल रहे है या नज़र अंदाज कर रहे हैं। संत मत्ती के सुसमाचार 6ः33 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेगी।’’ आईये हम हमारे बच्चों को ईश्वर को समर्पित करें और उन्हें ईश्वर से जुडकर, ईश्वर के प्रेम एवं सान्निध्य में रहते हुए जीवन जीना सिखायें, उन्हें प्रभु में बढना सिखायें।
आमेन।



Wednesday, 22 January 2020

वर्ष का तीसरा इतवार, (Year A )हिंदी मनन चिंतन 26 जनवरी 2020

इसायाह 8:23.9:3
1कुरिन्थियों1:10-13.17
मत्ती 4:12-23

आज के पहले पाठ में हम नबी इसायस को यह भविष्यवाणी करते सुनते हैं - अंधकार में भटकने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, अंधकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। (इसायाह 9,1)। यह ज्योति क्या है? ऐसा कौन सा प्रकाश है जिसके बारे में नबी कह रहे हैं? क्या यह चंद्रमा की रोशनी है या फिर सूरज का तेज प्रकाश? हरगिज नहीं। नबी जिस रिशनी की बात कर रहे हैं, वह हज़ारों सूरज की रोशनी से भी तेज है। यह एक ऐसा तेज है जिसके सामने किसी भी प्रकार का अंधकार टिक नहीं सकता है।
उत्पत्ति ग्रंथ 1,1-3 में हम पढते हैं कि प्रारम्भ में पृथ्वी उजाड और सुनसान थी। अथाह गर्त पर अंधकार छाया हुआ था और ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था। ईश्वर ने कहा प्रकाश हो जाये, और प्रकाश हो गया। प्रकाश ईश्वर की पहली सृष्टि है। प्रभु ने सबसे पहले प्रकाश बनाया। पेड-पौधे और जीव-जन्तु बनाने से पहले ईश्वर ने प्रकाश बनाया क्योंकि यह हर प्रकार के जीवन के लिए एक अति आवष्यक घटक है। पूर्ण अंधकार में जीवन संभव नहीं।

विभिन्न धर्मों में प्रकाश को ईश्वर की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। पवित्र बाइबल में ईश्वर ने कभी प्रकाश के स्तम्भ के रूप में, कभी जलती झाडी में इस्राएलियों को दर्शन दिये। तथा प्रभु येसु के आगमन के बारे में बतलाते हुए संत मत्ती कहते हैं - अंधकार में रहने वालों ने एक महत्ती ज्योति देखी, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेश, में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। अंधकार! अंधकार और कुछ नहीं ज्योति का अथवा प्रकाश का आभाव है। प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते। जहाँ प्रकाश है वहांँ अंँधेरा नहीं टिक सकता। प्रभु येसु ख्रीस्त ने कहा है - ‘‘ससार की ज्योति मैं हूँं। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी’’ (संत योहन 8,12)। जहांँ प्रभु येसु है वहांँ अंँधकार की कोई शक्ति प्रबल नहीं हो सकती। यदि कोई कहता है प्रभु येसु मुझमें है, वो मेरे साथ है और वह पाप के अंँधकार में जीवन बिताता तो वह स्वयं को धोखा देता है। क्योंकि प्रभु येसु वह ज्योति है जिसके प्रकाश में हमें स्वर्ग का मार्ग साफ-साफ दिखाई देता है। जो प्रभु की ज्योति में चलता है पापमय अंधकार में नहीं चल सकता। प्रभु का वचन वह ज्योति है जो हमें सही मार्ग दिखाता हैं।  वचन कहता है - ‘‘तेरी शिक्षा मुझे ज्योति प्रदान करती और मेरा पथ आलोकित करती है’’ (स्तोत्र 119,105)। इसका मतलब यह हुआ कि प्रभु येसु की ज्योति के उजाले में जो जीता है उसे क्या भला क्या बूरा, क्या पाप और क्या धार्मिकता, यह सब साफ-साफ दिखाई देता है। वह न भटकता और न ही ठोकर खाता है। हम अपने आप को ईसाई कहते तो हैं परन्तु यदि हमारा आचरण अंधकारमय है, हमारे कर्म अंधकारमय है तो हम खोखले ईसाई हैं। ईसाई होते हुए भी हम यदि इस दुनिया में अंधकार में जीवन बिताते हैं, तो हमने मसीह को व उसकी शिक्षाओं को नहीं पहचाना। हम प्रभु की ज्योति से अब भी दूर हैं। संत योहन 1,9-12 में वचन हमसे कहता है - ‘‘शब्द वह सच्ची ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अंधकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था। वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, किंतु संसार ने उसे नहीं पहचाना। जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं उन सब को उसने ईश्वर की संतत्ति बनने का अधिकार दिया।’’ सारे संसार को सत्य का प्रकाश देने, सारी मानवता को मुक्ति की राह दिखाने के लिए संसार की ज्योति प्रभु येसु ख्रीस्त संसार में आ चुके हैं। उनकी ज्योति में चलकर अपनी जीवन नैया पार लगाना या फिर पापमय अंधकार में चलकर अपने जीवन को हमेशा के लिए नष्ट करना ये हमारे व्यक्तिगत चुनाव के ऊपर निर्भर करता है। प्रभु हमें पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं, वे अपनी राहें, अपनी शिक्षाएं हम थोपना नहीं चाहते पर फिर भी वे यही चाहते हैं कि हम हमारी स्वतंत्रता में जीवन का चयन करें। वचन कहता है - ‘‘मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवित रह सकें’’ (विधिविवरण 30,19)। ये चयन हमारे लिए, हमारे जीवन के लिए बहुत ही ज़रूरी है। आज के सुसमाचार में हमने सुना प्रभु येसु पेत्रुस और उनके भाई अंद्रेयस, जे़बेदी के पुत्र याकूब और योहन को अपना अनुसरण करने के लिए बुलाते हैं। वे मछुवारे थे और अपनी नाव, जाल व रिष्तेदारों के साथ समुद्र से मछली पकड रहे थे। उनके सामने दो विकल्प थे - अपनी जाल व नाव के साथ अपना मछुवारे का काम जारी रखना या फिर सब कुछ पीछे छोडकर प्रभु येसु का अनुसरण करना। उन्होंने संसार की ज्योति को चुना। हमारे जीवन में हमें पग-पग यह चयन करना है। यदि हमने एक बार येसु को चुना है उनकी शिक्षाओं को चुना है तो हमें जीवन के हर पढाव में उन्हें ही चुनते रहना है। हर एक बुराई, हर एक पाप की परिस्थिति हमारे सामने दो विकल्प खडे करती है। या तो हम बुराई को चुनें या फिर प्रभु के वचनों को, प्रभु की राहों को। हम दोनों नहीं चुन सकते। प्रभु कहते हैं - ‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता या तो वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा या फिर एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा’’ (मत्ती 6,24)। मैं प्रभु की संतान और शैतान की संतान एक साथ नहीं हो सकता। मैं या तो प्रभु का हूँ या फिर शैतान का, मैं या तू प्रभु की राहों पर चलता हूँ या फिर शैतान की। मैं दोनों राहों पर एक साथ नहीं चल सकता। मैं जीवन के मार्ग पर चलता हूँ या फिर मौत के मार्ग पर, धार्मिकता के मार्ग पर या फिर अधार्मिकता मार्ग पर, मैं ज्योति में चलता हूँ या फिर अंधकार में। प्रकाश और अंधकार, पाप व पूण्य, प्रभु व शैतान ये दोनों ताकतें हर पग पर हमें प्रभावित करती हैं और हमें चुनौति देती है। जो कोई पेत्रुस और अंद्रेयस, योहन और याकूब की तरह जीवन के हर पडाव में येसु को चुनेंगे उनके बारे में वचन कहता है - ‘‘ऐसे लोगों पर द्वितीय मृत्यु का कोई अधिकार नहीं है। वे ईश्वर और मसीह के पुरोहित होंगे और उनके साथ . . . राज्य करेंगे’’ (प्रकाशना 20,6)।
आईये हम अंधकार को त्यागकर संसार की ज्योति प्रभु येसु को चुनें, पाप को छोडकर धार्मिकता को चुनें, अनन्त मृत्यु छोडकर अनन्त जीवन को चुनें। आमेन।



Friday, 17 January 2020

वर्ष का दूसरा इतवार 19 जनवरी 2020


इसायाह 49,3-6
1 कुरिन्थियों 1-3
योहन 1,29-34

आज के सुसमाचार हमने सुना, योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते देख कर उनकी ईशारा करते हुए कहते हैं - ‘‘देखिए यह है ईश्वर  का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है।’’  यह एक सच्चा मिशनरी कार्य है. हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए, हमें भी अन्य लोगों के सामने प्रभु येसु की ओर ईश्वर  कर के बताना चाहिए कि यही है ईश्वर  का मेमना, यही है उद्धारकर्ता ईश्वर , यही है जो हम सब की नैया को भव पार लगा सकता है, यही है जो हमें पिता के दर्शन करा  सकता है और यही है जो हमें स्वर्ग राज्य में ले जा सकता है। प्रभु येसु के सिवा और कोई मार्ग नहीं, प्रभु येसु के सिवा और कोई परिपूर्ण सत्य नही, और उनके बिना कहीं ओर परिपूर्ण जीवन नहीं। उन्होंने कहा है योहन 14ः6 में मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ, मुझसे होकर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता। और योहन 10ः10 में वचन कहता है - चोर केवल चारी करने, मारने और नष्ट करने आता है परन्तु मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करे और उसे परिपूर्णता में प्राप्त करे।



आज के पहले पाठ में वचन हमसे कहता है कि तुम मेरे दास हो, और आगे वचन कहता है कि तुम्हारा दास बने रहना ही काफी नहीं है। मैं तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बनाऊंगा ताकि मेरी मुक्ति पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाये। हममें और अन्य लोगों में, ख््रास्तीयों में व गैरख््रास्तीयों में जमीन आसमान का फर्क है। हमारे ऊपर ईश्वर  के बेटे-बेटियां होने की मुहर लगी हुई है। हम अंधकार से प्रकाश में लाये हुए लोग हैं। संसार सत्य को नहीं पहचानता परन्तु हम सत्य को पहचानते हैं। और वह सत्य है ईश्वर  का मेमना प्रभु येसु ख््रास्त जो हमारे उद्धार के लिए बली चढाया गया है। हां इसी नाम से आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता उन्हें पुकारते हैं  - देखिए यह है ईश्वर  का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है। कुछ दिनों पहले हमने प्रभु येसु के देहधारण अर्थात् ख््रास्त जयंति का पर्व मनाया और हमने यह मनन चिंतन किया की प्रभु येसु हमारे लिए मनुष्य बनकर इस संसार में आये। जब प्रभु येसु हमारे लिए मनुष्य बनकर आये तो फिर आज योहन उन्हें मेमना अर्थात् भेड अथवा बकरी का बच्चा कयों कह रहे हैं?

इस बात को समझने के लिए हमें पुराने विधान एवं यहुदी जाती की मुक्ति इतिहास की गहराई में जाना होगा। जब ईश्वर  ने अपनी चुनी हुई प्रजा को मिस्र की गुलामी से आज़ाद करने का निष्चय किया तब उन्होंने हर एक इस्राएली परिवार को अपने-अपने घरों में एक मेेमने का वध करने और उसका रक्त अपने दरवाजों की चौखट पर पोतने का आदेश  दिया। क्योंकि उस रात प्रभु का दूत मिस्र का भ्रमण कर मिस्र के सारे पहलोटों को मारने वाला था। प्रभु के दूत ने जिन-जिन घरों की चौखट पर मेमने का रक्त देखा उनको छोड बाकी सबके घरों के पहले बेटों को मार दिया। और इस प्रकार फिराऊ राजा घबराकर उन्हें मिस्र से जाने का आदेश  दे देता है। इस प्रकार उनकी धारणा थी कि मेमने के रक्त के द्वारा ईश्वर  ने उनका उद्धार किया है।

इस्राएली कैलेंडर के मुताबिक सातवें महिने के दसवें दिन इस्राइली लोग योम-किपुर नामक पर्व मनाते हैं। इस दिन वे उपवास एवं प्रार्थना करते हुए अपने पापों के लिए प्रायष्चित करते हैं। इस पर्व के बारे में हम लेवी ग्रंथ 16 में पढते हैं कि इस प्रायष्चित विधी में पुरोहित दो मेेमनों को लेकर आता है। उनमें से एक मेमना जनता के पापों के प्रायष्चित के लिए बली चढाया जाता है, और उसका रक्त लोगों पर छिड़का जाता था तथा दूसरे मेमने के ऊपर इस्राएलियों के सारे कुकर्मों और सब प्रकार के अपराधों को स्वीकार कर, उन्हें उसके सिर पर डाल कर उसे रेगिस्तान में पहुंचा दिया जाता है। उनका मानना था कि वह मेमना उनके पापों को लेकर ऐसे स्थान पर चला गया है जहां से वह वापस नहीं आ सकता अर्थात् वे अपने पापों से पूर्ण रूप से मुक्त हो गए हैं।

परन्तु इब्रानियों के पत्र 10ः4-5 में वचन साफ-साफ कहता है - ‘‘सांडों तथा बकरों का रक्त पाप नहीं हर सकता, इसलिए मसीह ने संसार में आकर यह कहा- ‘‘तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है। . . . ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढाए जाने के कारण हम ईश्वर  की ईच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।’’ और इब्रानियों 9ः12 में हम पढते हैं - उन्होंने बकरों तथा बछडों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।’’
यह है प्रभु येसु को ईश्वर  का मेमना कहे जाने का अर्थ। पुराने विधान के मेमनों का रक्त पाप हरने में असमर्थ था परन्तु प्रभु येसु का अति मुल्यवान रक्त हमारे हर गुनाह के दाग को धोने समर्थ है। प्रभु येसु इसिलिए नये विधान का मेमना बनकर बलि चढे ताकि उनके सामार्थ्यवान लहू से हमारा उद्धार हो जाये। मिस्सा बलिदान और कुछ नहीं उसी बलित मेेमने के बलिदान का स्मरण है। वही मेमना नित्य हमारे लिए अपने आपको अर्पित करता है। प्याले में अर्पित दाख का रस उसी मेमने के रक्त में तब्दिल हो जाता है और वह रोटी उसके शरीर में। जो कोई सच्चे मन व पूर्ण तैयारी के साथ मेमने के इस भोज में भाग लेता है, और प्रभु के शरीर एवं रक्त का पान करता है वह उस मुक्ति में भागीदार होता है जिसे प्रभु येसु ने हमें प्रदान किया है।

संत योहन के प्रकाशना ग्रंथ 7ः14 में यह साफ लिखा हुआ है, कि अंतिम महासंकट से अर्थात् नरक में विनाश  से केवल वे ही बच सकते हैं, जिन्होंने अपने वस्त्र मेमने के रक्त से धोकर उज्वल कर लिये हैं। इसलिए आईये हम आज जब पुनः एक बार मेमने के भोज में भाग लेने आये हैं, उसके पवित्र लहू में अपने आप को भिगो लें। मुक्ति का लहू, दुनिया का सबसे शक्तिशाली डिटर्जेंट जो पाप के गहरे से गहरे दाग को भी मिटा देता है, आज हमारे लिए बहाया जा रहा है। हम उस लहू से धोकर अपने वस्त्रों को उज्वल कर लें।
आमेन।

Tuesday, 7 January 2020

प्रभु येसु ख्रीस्त के बपतिस्मा का पर्व 12 January 2020

इसायाह ४२:१-४,६-७ 
प्रेरित चरित १०:३४-३८ 
मत्ती ३:१३-१७ 


आज हम हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के बपतिस्मा का पर्व मना रहे हैं। हर साल प्रभु के बपतिस्मा के साथ ख्रीस्त जंयती काल समाप्त होता है और हम साधारण पूजनविधी में प्रवेश  करते हैं। पवित्र सुसमाचार में प्रभु के जन्म व बाल्यकाल के बारे हम थोडा ही वर्णन पाते हैं। पवित्र सुसमाचार उनके बारह से तीस साल तक के जीवन के बारे में हमें कुछ भी नहीं बताता। संत लूकस इसके बारे में सिर्फ इतना कहते हैं कि ‘‘ईसा अपने माता-पिता के साथ नाज़रेत गये व उनके अधीन रहे।’’ याने उन्हेंने 18 साल का अपना जीवन अपने माता-पिता के साथ बिताया, उनके अधीन रहकर, उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए व उनके दैनिक कार्यों में उनकी मदद करते हुए। इसके बाद तीस वर्ष की आयु होने पर वे अपना घर व माता-पिता को छोडकर जिस मिशन को व जिस उद्देश्य को लेकर इस संसार में आये थे उसे पूरा करने के लिए चल पडते हैं। सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने स्वयं को प्रकट करने के पहले वे यर्दन नदी की ओर जाते हैं जहाँ पर योहन बपतिस्ता लोगों को पाप क्षमा का बपतिस्मा दे रहा था। प्रभु स्वयं वहाँ लागों की भीड में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लेने के लिए पानी में उतरते हैं। पवित्र त्रित्व का दूसरा व्यक्ति, इस दुनिया का सृष्टीकर्ता, अनादिकाल से पिता के साथ विद्यमान  वचन आज यर्दन नदी में योहन के सामने अपना सिर झूकाकर उनसे बपतिस्मा ग्रहण कर रहा हैं। यह वही योहन बपतिस्ता है जिसने लोगों से प्रभु के विषय में कहा था कि मेरे बाद जो आने वाला है वो मुझसे इतना महान है कि मैं झूककर उसके जूते का फिता खोलने के लायक भी नहीं हूँ (मत्ती 3ः11, योहन 1ः27); लेकिन आज उसी योहन बपतिस्ता के सामने प्रभु अपना सिर झूकाकर बपतिस्मा ग्रहण करते हैं।

वास्तव में देखा जाए तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी बपतिस्मा की ज़रूरत नहीं थी। वे तो निष्पाप थे परन्तु फिर भी वे पापियों की कतार में हम सब पापियों का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ खडे थे। वे अपने निजी पापों के लिए नहीं, हमारे पापों के पश्चताप हेतु वहाँ खडे थे। उन्होंने हमारे जैसा मानवीय स्वभाव धारण किया व हम पापियों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने हम सबों के पापों को अपने ऊपर ले लिया। संत योहन के सुसमाचार अध्याय 1ः29 में जब योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते हुए देखता है तो अपने शिष्यों से कहता है - ‘‘देखो-ईश्वर का मेमना जो संसार के पाप हरता है।’’ जि हाँ, प्रभु येसु वह मेमना है जिसके ऊपर पिता ने सारे संसार के पापों को लाद दिया है। नबी इसायस 52ः6 में वचन कहता है- ‘‘हम सब अपना-अपना रास्ता पकड कर भेडों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सबों के पापों का भार डाल दिया है।’’ इसलिए प्रभु यर्दन नदी के पानी में हम सब के पापों को लेकर खडे थे। उन्हांने इसके साथ अपने उस मुक्ति कार्य को प्रारम्भ किया जिसके लिए वे इस संसार में आये थे। यह बपतिस्मा तो बस एक प्रतीक व शुरूआत थी उस महान मुक्ति कार्य की जिसे पूरा करने के लिए प्रभु व्याकुल थे। संत लूकस के सुसमाचार 12ः50 में प्रभु कहते हैं -‘‘मुझे एक (और) बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ’’। यर्दन नदी में जो प्रतिकात्मक रूप में प्रारम्भ हुआ उसे प्रभु ने कलवारी पर अपने बलिदान द्वारा पूर्ण किया। वहाँ पर सचमुच बली का एक मेमना बनकर उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर  ले लिया। इसी रक्त के बपतिस्मा लिए वे व्याकुल थे। संत पेत्रुस हमसे कहते हैं कि - ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को कू्रस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें’’ (1पेत्रुस 2ः24)।
प्रभु ने यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण करके बपतिस्मा के जल को पवित्र कर दिया है। और हमारे लिए स्वर्ग का द्वार फिर से खोल दिया है। पुराने विधान में योशुआ के ग्रंथ में हम पढते हैं कि इस्राएली लोग मिस्र  की गुलामी से आज़ाद होकर प्रतिज्ञात देश में प्रवेश कर रहे थे उस समय उनको यर्दन नदी को पार करना था। उस समय योशुआ ने प्रभु के विधान की मंजूषाधारी पुरोहितों को नदी के बीचों-बीच खडा कर दिया और नदी का पानी एक बाँध की तरह रूक गया और इस्राएलियों ने सुखे पाँव नदी को पार किया था। आज प्रभु उसी यर्दन नदी के बीचों बीच खडे हैं नये विधान की मंजूषा बनकर। आज वो हमसे यही चाहते हैं कि हम  भी बपतिस्मा द्वारा हमारी पापमय दासता से मुक्त होकर सूखे पाँव इस लोक से स्वर्ग लोग की ओर गमन करें। जब तक सारे इस्राएली यर्दन के उस पार नहीं चले गये तब तक प्रभु के विधान की मंजूषा वहीं पर नदी के बीच में रही। प्रभु येसु नये विधान की मंजूषा के रूप में हम सब का इंतज़ार करते हुवे यर्दन नदी की बीचों बीच खडे रहते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना है कि वह न तो थकता न हिम्मत हारता है, जब तक वह पृथ्वी पर धार्मिकता की स्थापना न कर दे। याने जब तक हम यर्दन के उस पार न निकल जायें, जब तक हम मुक्ति प्राप्त न कर लें प्रभु हमारी मुक्ति का कार्य जारी रखता है।

प्रभु हर एक इंसान को अपने इस मुक्ति कार्य में  सम्मिलित करना चाहता है। वे चाहते हैं कि हर कोई उद्धार पाये, मुक्ति पाये और बच जाये। आज के दूसरे पाठ में वचन हमसे कहता है- ‘‘ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, वह ईश्वर पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करता है, तो वह ईश्वर का कृपापात्र बन जाता है।’’ याने यर्दन पार कर प्रतिज्ञात देश में जाने के लिए, मुक्ति पाने के लिए, व प्रभु के कृपापात्र बनने के लिए हमें उन पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करने की ज़रूरत है। आईये तो हम हमारी अधर्म की राहों को छोडें, पाप की राहों को छोडें, शैतान का व उसके सारे प्रपचों का परित्याग करें, सारे कुकर्मों का परित्याग करें व पवित्र त्रियेक ईश्वर पर अपने अटूट विश्वास में दृढ बने रहें  जिसे हमने हमारे बपतिस्मा के समय स्वीकार किया था। आमेन.  

Friday, 3 January 2020

प्रभु प्रकाश का पर्व 2020, 5 जनवरी 2020


पहला पाठ इसायाह 60,1-22
दूसरा पाठ एफे. 3,1-13
सुसमचाचार मत्ती 2,1-12 

दुनिया की सबसे बडी समस्या क्या है? आतंकवाद? जनसंख्या वृद्धी? भ्रष्टाचार? बलात्कार? गरीबी? या फिर हत्या? ये सब अपने आप में बडी समस्यायें तो है, पर मैं इन में से किसी को भी बडी समस्या नहीं मानता हूँ। क्योंकि इन सबसे परे है एक समस्या है, जो बाकि सब समस्याओं की जनक है। और वह समस्या है - ‘‘ईश्वर  विहीनता’’। यह वह परिस्थिति है जिसमें हमारे आदि माता-पिता ने अपने प्रथम पाप के बाद प्रवेश  किया। ईश्वर  की योजना में तो ईष्वर ने इंसान को अपने साथ, अदन वाटिका में रहने के लिए बनाया था। उत्पत्ति ग्रंथ 3,8 में हम पढते हैं कि आदम और हेव्वा को बाग में टहलते ईष्वर की आवाज सुनाई पडी। पर पाप ने मनुष्य को ईष्वर की उपस्थिति से दूर कर दिया। यह पाप का परिणाम है। यह मृत्यु का अनुभव है। रोमियो 6,23 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘पाप का वेतन मृृत्यु है’’ यहाँ मौत के मायने खत्म हो जाना नहीं परन्तु अलग हो जाना है। कई बार लोग आपसी लडाई में बोलते हैं - तू मेरे लिए मर गया और मैं तेरे लिए। मरता कोई नहीं है बस आपसी संबंध तोडकर वे अलग हो जाते हैं। उत्पत्ति 3,3 में प्रभु ने आदम-हेवा से कहा कि वे वाटिका के बीच के पेड का फल न खायें क्योंकि यदि वे उसे खायेंगे तो वे मर जायेंगे। 3,6 में दोनों ने मौत के फल को खाया और वचन 23 में क्या होता है? वे प्रभु की उपस्थिति से दूर कर दिये जाते हैं । वे अदन वाटिका से बेदखल कर दिये जाते हैं। वे ईष्वर विहीन जीवन जीने के लिए छोड दिये जाते हैं।  वे ईष्वर से दूर एक ऐसे संसार में आ जाते हैं, जिसके विषय में आज का पहला पाठ कहता है - ‘‘पृृृथ्वी पर अंधेरा छाया हुआ है, और राष्ट्रों पर घोर अंधकार।" यह पाप, अज्ञानता, और बुराई का अंधेरा है। यह शैतान के राज्य का अंधेरा है जिसके आगोष में यह संसार  जी रहा है। प्रकाश की अनुपस्थिति ही अंधकार है। जहाँ ज्योति नहीं है वहाँ अंधेरा है। संत योहन 8, 12 मैं प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो कोई मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।’’ पहले पाठ इसा. 60,20 में प्रभु का वचन कहता है - तेरा सूर्य कभी अस्त नहीं होगा, क्योंकि ईष्वर ही तेरा सदा बना रहने वाला प्रकश  होगा। यह वादा ईष्वर ने अपनी चुनी हुई जाती इस्राएल के लिए किया था। ऐजे. 37,27 में वही यहोवा ईष्वर उनसे कहता है - ‘‘मैं उनके बीच निवास करूंगा, मैं उनका ईष्वर होऊंगा और वे मेरे प्रजा होंगे।’’ इस्राएली प्रजा का मानना था कि वे एक विषिष्ट प्रजा है जो ईष्वर द्वारा अपनी निजी प्रजा के रूप में चुनी गई हैं; ईष्वर ने नबियों और पूवर्जों द्वारा अपने आपको उन पर प्रकट किया, उन्हें अपना संदेष दिया कि वह उनका उद्धार करेगा। इसलिए वे गैरयहूदी जातियों को घृणित व तुच्छ मानते थे तथा उन्हें उद्धार से दूर मानते थे। 
परन्तु प्रभु येसु ने अपने देहधारण द्वारा अथवा अपने जन्म के द्वारा इस भ्रांति को दूर कर दिया। आज हम उस महान घटना को याद कर रहे हैं जब उन्होंने तीन गैर यहूदी ज्ञानियों पर अपने आप को प्रकट किया, अपने को प्रकाशित किया और यह साबित कर दिया कि वे केवल इस्राएलियों  के लिए नहीं वरन् हर इंसान के लिए आये हैं। 
आज का दूसरा पाठ ऐफे.3,1-13 में इस बात को स्पष्ट करता है - ‘‘सुसमाचार के द्वारा यहूदियों के साथ गैरयहूदी एक ही विरासत के अधिकारी है, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह - विषयक प्रतिज्ञा  के सहभागी।’’ 
इसलिए जो कोई भी उन ज्योतिषियों की तरह मुक्ति को तलाशते हैं, अथवा ईष्वर को खोजते हैं वे उसे प्राप्त करेंगे; वे अंधकार से प्रकाश में आ जायेंगे। तब वे मृृत्यु से  जीवन में आ जायेंगे - वे संसार के सारे बंधनों से मुक्त हो जायेंगे। वचन कहता है संत योहन 12, 32 में - ‘‘यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होंगे। तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र कर देगा।’’ 
आज सारे संसार की ज्योति प्रभु येसु सारी मानव जाती के उद्धार के लिए प्रकट हो गये हैं। संत मत्ती 4,15-16 में वचन कहता है - ‘‘अंधकार में रहने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।’’ प्रभु येसु हमें मृत्यु के अंधकार से बाहर निकालकर ईष्वरीय उपस्थिति में ले जाने इस संसार में आये हैं। हमें हमेशा की 
ईश्व्रर रहित जिंदगी जो कि अनंत मृत्यु है, से बाहर  निकाल कर अपने साथ स्वर्ग ले जाने  आये हैं। 
हम उस ज्योति को खाजते हुए उसके पास जायें। वचन कहता है - "जब तुम मुझे ढूंढोगे तो मुझे पा जाओगे, यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूंढोगे तो मैं तुम्हें मिल जाऊंगा’’ (यरि. 29,13)।  हम प्रभु को पूरे दिल से खोजें और वह हमें मिल जायेगा। और हमें अंधकार से अपनी स्वर्गिक ज्योति की ओर ले जायेगा, हमें मृत्यु से जीवन की ओर तथा ईष्वर विहिन जिंदगी से अपनी पावन उपस्थिति में ले जायेगा। आमेन। 

प्रभु की स्तुति हो प्रभु येसु को धन्यवाद।