दूसरा पाठ एफे. 3,1-13
सुसमचाचार मत्ती 2,1-12
दुनिया की सबसे बडी समस्या क्या है? आतंकवाद? जनसंख्या वृद्धी? भ्रष्टाचार? बलात्कार? गरीबी? या फिर हत्या? ये सब अपने आप में बडी समस्यायें तो है, पर मैं इन में से किसी को भी बडी समस्या नहीं मानता हूँ। क्योंकि इन सबसे परे है एक समस्या है, जो बाकि सब समस्याओं की जनक है। और वह समस्या है - ‘‘ईश्वर विहीनता’’। यह वह परिस्थिति है जिसमें हमारे आदि माता-पिता ने अपने प्रथम पाप के बाद प्रवेश किया। ईश्वर की योजना में तो ईष्वर ने इंसान को अपने साथ, अदन वाटिका में रहने के लिए बनाया था। उत्पत्ति ग्रंथ 3,8 में हम पढते हैं कि आदम और हेव्वा को बाग में टहलते ईष्वर की आवाज सुनाई पडी। पर पाप ने मनुष्य को ईष्वर की उपस्थिति से दूर कर दिया। यह पाप का परिणाम है। यह मृत्यु का अनुभव है। रोमियो 6,23 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘पाप का वेतन मृृत्यु है’’ यहाँ मौत के मायने खत्म हो जाना नहीं परन्तु अलग हो जाना है। कई बार लोग आपसी लडाई में बोलते हैं - तू मेरे लिए मर गया और मैं तेरे लिए। मरता कोई नहीं है बस आपसी संबंध तोडकर वे अलग हो जाते हैं। उत्पत्ति 3,3 में प्रभु ने आदम-हेवा से कहा कि वे वाटिका के बीच के पेड का फल न खायें क्योंकि यदि वे उसे खायेंगे तो वे मर जायेंगे। 3,6 में दोनों ने मौत के फल को खाया और वचन 23 में क्या होता है? वे प्रभु की उपस्थिति से दूर कर दिये जाते हैं । वे अदन वाटिका से बेदखल कर दिये जाते हैं। वे ईष्वर विहीन जीवन जीने के लिए छोड दिये जाते हैं। वे ईष्वर से दूर एक ऐसे संसार में आ जाते हैं, जिसके विषय में आज का पहला पाठ कहता है - ‘‘पृृृथ्वी पर अंधेरा छाया हुआ है, और राष्ट्रों पर घोर अंधकार।" यह पाप, अज्ञानता, और बुराई का अंधेरा है। यह शैतान के राज्य का अंधेरा है जिसके आगोष में यह संसार जी रहा है। प्रकाश की अनुपस्थिति ही अंधकार है। जहाँ ज्योति नहीं है वहाँ अंधेरा है। संत योहन 8, 12 मैं प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो कोई मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।’’ पहले पाठ इसा. 60,20 में प्रभु का वचन कहता है - तेरा सूर्य कभी अस्त नहीं होगा, क्योंकि ईष्वर ही तेरा सदा बना रहने वाला प्रकश होगा। यह वादा ईष्वर ने अपनी चुनी हुई जाती इस्राएल के लिए किया था। ऐजे. 37,27 में वही यहोवा ईष्वर उनसे कहता है - ‘‘मैं उनके बीच निवास करूंगा, मैं उनका ईष्वर होऊंगा और वे मेरे प्रजा होंगे।’’ इस्राएली प्रजा का मानना था कि वे एक विषिष्ट प्रजा है जो ईष्वर द्वारा अपनी निजी प्रजा के रूप में चुनी गई हैं; ईष्वर ने नबियों और पूवर्जों द्वारा अपने आपको उन पर प्रकट किया, उन्हें अपना संदेष दिया कि वह उनका उद्धार करेगा। इसलिए वे गैरयहूदी जातियों को घृणित व तुच्छ मानते थे तथा उन्हें उद्धार से दूर मानते थे।
परन्तु प्रभु येसु ने अपने देहधारण द्वारा अथवा अपने जन्म के द्वारा इस भ्रांति को दूर कर दिया। आज हम उस महान घटना को याद कर रहे हैं जब उन्होंने तीन गैर यहूदी ज्ञानियों पर अपने आप को प्रकट किया, अपने को प्रकाशित किया और यह साबित कर दिया कि वे केवल इस्राएलियों के लिए नहीं वरन् हर इंसान के लिए आये हैं।
आज का दूसरा पाठ ऐफे.3,1-13 में इस बात को स्पष्ट करता है - ‘‘सुसमाचार के द्वारा यहूदियों के साथ गैरयहूदी एक ही विरासत के अधिकारी है, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह - विषयक प्रतिज्ञा के सहभागी।’’
इसलिए जो कोई भी उन ज्योतिषियों की तरह मुक्ति को तलाशते हैं, अथवा ईष्वर को खोजते हैं वे उसे प्राप्त करेंगे; वे अंधकार से प्रकाश में आ जायेंगे। तब वे मृृत्यु से जीवन में आ जायेंगे - वे संसार के सारे बंधनों से मुक्त हो जायेंगे। वचन कहता है संत योहन 12, 32 में - ‘‘यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होंगे। तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र कर देगा।’’
आज सारे संसार की ज्योति प्रभु येसु सारी मानव जाती के उद्धार के लिए प्रकट हो गये हैं। संत मत्ती 4,15-16 में वचन कहता है - ‘‘अंधकार में रहने वाले लोगों ने एक महत्ती ज्योति देखी है, मृत्यु के अंधकारमय प्रदेष में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।’’ प्रभु येसु हमें मृत्यु के अंधकार से बाहर निकालकर ईष्वरीय उपस्थिति में ले जाने इस संसार में आये हैं। हमें हमेशा की
ईश्व्रर रहित जिंदगी जो कि अनंत मृत्यु है, से बाहर निकाल कर अपने साथ स्वर्ग ले जाने आये हैं।
हम उस ज्योति को खाजते हुए उसके पास जायें। वचन कहता है - "जब तुम मुझे ढूंढोगे तो मुझे पा जाओगे, यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूंढोगे तो मैं तुम्हें मिल जाऊंगा’’ (यरि. 29,13)। हम प्रभु को पूरे दिल से खोजें और वह हमें मिल जायेगा। और हमें अंधकार से अपनी स्वर्गिक ज्योति की ओर ले जायेगा, हमें मृत्यु से जीवन की ओर तथा ईष्वर विहिन जिंदगी से अपनी पावन उपस्थिति में ले जायेगा। आमेन।
हम उस ज्योति को खाजते हुए उसके पास जायें। वचन कहता है - "जब तुम मुझे ढूंढोगे तो मुझे पा जाओगे, यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूंढोगे तो मैं तुम्हें मिल जाऊंगा’’ (यरि. 29,13)। हम प्रभु को पूरे दिल से खोजें और वह हमें मिल जायेगा। और हमें अंधकार से अपनी स्वर्गिक ज्योति की ओर ले जायेगा, हमें मृत्यु से जीवन की ओर तथा ईष्वर विहिन जिंदगी से अपनी पावन उपस्थिति में ले जायेगा। आमेन।
प्रभु की स्तुति हो प्रभु येसु को धन्यवाद।
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