
उत्पत्ति 2:7-9 . 3:1-7
रोमियों 5:12-19
मत्ती 4:1-11
ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों,ईश्वर ने आदम और हेवा को बनाया, उन्हें पृथ्वी पर विचरने वाले हर जीव जन्तुओं पर अधिकार दिया, और उनसे यह उम्मिद की गयी कि वे बदले में ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी व ईमानदार रहें। बल्कि हमारे आदि माता-पिता ने ईश्वर प्रदत वरदानों के घमंड में ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया जिसका परिणाम उन्हें और उनकी संतानों को भुगतना पडा और आज तक संसार भुगत रहा है। इस बात पर खेद प्रकट करना हमारा हक बनता है कि हमारे आदि माता-पिता ने बहुत ही मुर्खतापूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण कार्य किया है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम उनसे कितने भिन्न हैं। हम हमारे दैनिक जीवन में ईश्वर की दया व कृपा को विभिन्न रूपों में देखते व अनुभव करते हैं। लेकिन हम फिर भी बहुत बार ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते तथा हमारे आदि माता-पिता से भी अधिक मुर्खतापूर्ण व दुर्भाग्यपूर्ण कार्य करते हैं। क्या ये हमारे लिए शर्म व खेद की बात नहीं?
जिस प्रलोभन एवं परीक्षा का सामना प्रभु येसु ने किया वे हमारे लिए एक प्रोत्साहन एवं सांत्वना का स्रोत हैं। यदि हमारे प्रभु एवं गुरूवर येसु को स्वयं प्रलोभनों के दौर से गुजरना पडा तो हम भी परीक्षा एवं प्रलोभन मुक्त जीवन की उम्मीद नहीं कर सकते। मूल रूप से हमारे प्रलोभन भी वही है जो आदम हेवा के सामने थे और जो प्रभु येसु के सामने थे। हेवा को सबसे पहले वह फल सुंदर और स्वादिष्ट दिखा। उसे देखने में सुंदर दिखा और उसने सोचा देखने में इतना सुन्दर है तो खाने में कितना स्वादिष्ट होगा। वैसे ही प्रभु येसु के सामने सबसे पहला प्रलोभन शारीरिक भूख मिटाने का था। शैतान ने उनसे कहा कि वह अपनी दिव्य शक्ति से पत्थर को रोटी बनाकर खा ले क्योंकि वह भूखा है। आज हमारा यह शरीर कई प्रकार की भूखों को शांत करने के लिए हमें बाध्य करता है। हमारी पंचेंद्रियां विभिन्न प्रकार से तृप्त होना चाहती हैं। हमारे समाने विभिन्न प्रकार की भूख रहती है। आँखों की भूख - दूसरों को वासना भरी निगाहों से देखने की भूख, अश्लीलता भरी चीज़ें देखने और पढने की भूख, अच्छा से अच्छा स्वादिष्ट भोजन करने की भूख, दैहिक वासना की भूख, सच्ची - झूठी तारीफ सुनने की भूख। आरमदायक घर व सुख-सुविधा की भूख अदि।
फिर शैतान ने हेवा को ईश्वर के बाराबर हो जाने का प्रलोभन दिया। उसने येसु को भी सारी दुनिया का वैभव दे देने का प्रलोभन दिया। और आज भी वह हमें विभिन्न प्रकार से बडे-बडे वादे करके प्रलोभित करता रहता है। खोखली तारीफ एवं बडापन दिखाने का प्रलोभन, चार जन की भीड में प्रशंसा पाने का प्रलोभन, स्कूल में अव्वल आकर घमंड करने का प्रलोभन, अपने आप को दूसरों से ज़्यादा धार्मिक मानने का प्रलोभन और धन व शक्ति का प्रलोभन आवश्यकता से अधिक धन और हैसियत से अधिक मान-सम्मान पाने, सत्ता हथियाने एवं दूसरों पर शासन करने की लालच में इंसान कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है। क्योंकि इंसान कमजोर प्राणी है। मत्ती 26,41 में वचन कहता है - अत्मा तो तत्पर है लेकिन शरीर दुर्बल है। हम दुर्बल शरीर वाले प्राणी हैं।
स्तोत्र 141 में वचन कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। कितनी वास्तविकतापूर्ण प्रार्थना है ये। हमारे चारों ओर बुराइयां ही बुराइयां है। न केवल आज बल्कि उस जमाने में भी इसलिए स्त्रोतकार कहता है मेरे हृदय को बुराई की ओर झूकने न दे। मत्ती 6 और लूकस 11 में हम पढते हैं कि प्रभु येसु ने अपने शिष्यों को एक प्रार्थना सिखाई। यह सबसे उत्तम प्रार्थना है। हे हमारे पिता............और हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। कितनी सुंदर प्रार्थना है यह। यह सबसे आदर्श, सुंदर और सबसे शक्तिशाली प्रार्थना है। प्रभु ने कहा हे पिता हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से बचा। प्रभु येसु कहते हैं तुम्हें बार बार इस तरह प्रार्थना करने की आवश्यकता है। क्योंकि सबसे पहले हमारा झूकाव पाप की ओर है।
हम उत्पत्ति 8 में पढते हैं सारे संसार मे पाप भर गया था और ईष्वर ने प्रलय भेजा लेकिन ईष्वर ने नूह और उसके परिवार को बचा लिया और प्रलय के बाद नूह ने ईष्वर के लिए बली चढाई और ईष्वर ने यह कहा कि अब से में मनुष्यों को अभिषाप नहीं दूंगा। क्योंकि बचपन से ही मनुष्यों की प्रवृति पाप की ओर है। इसलिए प्रभु हमसे कहते हैं तुम्हें निरन्तर प्रार्थना करनी है। हे पिता हमें परीक्षा में न डाल।
दूसरी तरफ हम देखते हैं मत्ती 18, 7 में प्रभु कहते हैं कि प्रलोभन अनिवार्य है। प्यारे भाईयों बहनों प्रलोभन देने वाला हर समय हमारे चारों ओर मंडराते रहता है। वह हर समय क्रियाशील रहता है। संत पेत्रुस 5, 8 में कहते हैं कि "आपका शत्रु शैतान दहाडते सिंह की तरह विचरता रहता है। और ढूंढता रहता है कि किसे फाड खाये।" तो हमारा शत्रु शैतान ढूंढते रहता है कि किसे फाड खायें। हमें हर समय अंधकार की शक्तियों से लडना पडता है, जैसे कि एफेसियों 6 में लिखा है। हर समय विभिन्न नकारात्मक आत्माओं से लडना पडता है। लालच की आत्मा, गुस्से की आत्म, उदासी की आत्म, आलस की आत्मा, निराशा की आत्मा । हमें इनसे लडना पडता है। हमारा जीवन एक लंबा युद्ध है और इस युद्ध में हमेशा प्रभु से प्रार्थना करते रहना है कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई से हमें बचा। 12 कुरिंथयों 11,14 में संत पौलुस कहते हैं कि आप लोग इस चीज से अष्चर्यचकित न हों कि शैतान कभी-कभी स्वर्गदूत का रूप ले सकता है। कभी हमारे सामने आकर्षक बातें आकर्षक चीजें आकर्षक लोगों को ला सकता है। हमें भ्रमित कर सकता है। इस दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसी परिथितियों में भ्रमित हो जाते हैं और आसानी से शैतान के चुंगूल में पड जाते है। इसलिए हमें हर समय प्रार्थना करने की ज़रूरत है। कि हे प्रभु हमें परीक्षा में न पडने दे। आज हम ऐसे संसार में रह हैं जहां सबसे ज्यादा प्रलोभन देने वाली बातें और चीजें हैं। योहन 17,15-16 में प्रभु ने हमस ब के लिए प्रार्थना की कि पिता मैं नहीं कहता कि उन्हें संसार से उठा ले। वे संसार में हैं लेकिन उन्हें बुराई से बचा।
हम विश्वासी इस संसार में हैं लेकिन यह स्वभाविक है हम इस संसार की बुराईयों में फंस जाते है।
प्रलोभनों से विजय पाने का रास्ता प्रभु येसु हमें दिखलाते हैं। और वह है उपवास, प्रार्थना और ईश वचन का पठन एवं मनन चिंतन। जब प्रभु येसु की परीक्षा ली गयी उससे पहले वे मरूभूमि में चालीस दिनों तक उपवास व प्रार्थना कर रहे थे। और शैतान के हर बहकावे का वे वचन की शक्ति से सामना कर रहे थे। हम सब कमजोर हैं इसलिए हमें प्रभु से शक्ति प्राप्त करने की ज़रूरत है।
आईये हम प्रभु से प्रार्थना करें। हमें परीक्षा में न पडने दे परन्तु सब बुराईयों से हमें बचा, आमेन।