Saturday, 8 February 2020

सामान्य काल का 6 वाँ इतवार, (Year A ) 16 फरवरी 2020

 प्रवक्ता ग्रन्थ 15:16-21
1 कोरिंथियों 2:6 - 10
मत्ती 5: 17-37

जीवन और मृत्यु ? 
चुनाव आपका----

मनुष्य  ईश्वर की सर्वोच्च सृष्टि है. कई दृष्टिकोणों से इंसान को अन्य सारे जीवों से भिन्न बनाया है. कैथोलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा के अनुच्छेद 1730 में हम पढ़ते हैं - ईश्वर ने मनुष्य को एक तर्कसंगत प्राणी बनाया, उसे उसने ऐसी गरिमा प्रदान की, जिसकी बदौलत वह अपने कार्यों को स्वयंआरंभ और नियंत्रित कर सकता है। "ईश्वर ने मनुष्य को अपने लिए निर्णय करने की स्वतंत्रता खुद मनुष्य के हाथ में छोड़ दी, ताकि वह अपने स्वयं के सृष्टिकर्ता की तलाश कर सके और स्वतंत्र रूप से उस ईश्वर में अपनी पूर्णता प्राप्त कर सके।"

आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन हमारे सामने इसी बात को रखता है। वचन कहता है - ‘‘उसने अपनी आज्ञायें एवं आदेश प्रकट किये और अपनी इच्छा प्रकट की है। यदि तुम चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन कर सकते हो; ... मनुष्य के सामने जीवन और मृत्यु दानों रखे हुए हैं, जिसे मनुष्य चुनता, वही उसे मिलता है।" प्रारम्भ से ही  ईश्वर ने यह व्यवस्था मनुष्य के लिए बनाई और हमारे आदि माता-पिता को जीवन और मृत्यु के बीच चुनने को कहा। उत्पत्ति 2ः17 में  प्रभु ने मनुष्य से कहा- ‘‘तुम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हो, किंतु भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाना; क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम अवश्य मर जाओगे।’’ उन्होंने क्या चुना? मृत्यु। ईश्वर ये कभी नहीं चाहता था कि इंसान ईश्वर का सान्निध्य छोडकर अपने हमेशा के विनाश का मार्ग चुनेंगे। वि.वि. 30ः19 में प्रभु इस बात को स्पष्ट करते हैं - ‘‘आज मैं तुम लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हूॅं। तुम लोग जीवन को चुन लो।’’ दो विकल्पों मेंसे एक चुनने की आजादी के पीछे ईश्वर की ख़्वाहिश हमेशा यही रहती है कि हम जीवन को चुनें। एज़ेकिएल  18ः23 में प्रभु का वचन कहता है - क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न हूॅं? क्या मैं यह नहीं चाहता कि वह अपना मार्ग छोड दे और जीवित रहे?’’ और वचन 31 में प्रभु बहुत ही व्याकुल होकर कहते हैं - ‘‘अपने पुराने पापों का भार फेंक दो। एक नया हृदय और एक नया मनोभाव धारण करो। प्रभु ईश्वर यह कहता है - हे इस्राएलियों! तुम क्यों मरना चाहते हो?’’ 

मनुष्य शैतान के झूठे बहकावों में आकर इस सत्य को पहचान नहीं पाता और अपने दैनिक जीवन में ऐसे चुनाव करता है जो कि उसे अनन्त जीवन से दूर करते हैं। संत योहन 10ः10 में प्रभु येसु कहते हैं - चोर याने शैतान चुराने मारने और नष्ट करने आता है, परन्तु येसु इसलिए आये कि हम बहुतायत का जीवन पायें।
जब इंसान ने अपने स्वतंत्र चयन द्वारा जीवन को ठुकरा दिया ईश्वर ने तब एक निर्णय लिया। वो निर्णय था हमारे लिए अपने बेटे को भेजना। ताकि उनके द्वारा अनंत जीवन आया सकें। योहन 3:16 में हैम पढ़ते  हैं जि कि ईश्वर ने हमें इतना प्यार किया है कि उसने हमारे लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया ताकि उन पर विश्वास करने वाले अनंत जीवन पा सकें।
ईश्वर ने तो हमें बचाने का निर्णय ले लिया है और अपना बेटा हमे दे दिया है अब आपका और मेरा निर्णय क्या है? 

जी, हाॅं प्रिय विश्वासियों , येसु हमें हमेशा का जीवन देने के लिए आये हैं। उन्होंने हमें अपने उपदेशों औरशिक्षाओं के द्वारा, उस अनन्त जीवन को चुनने का रास्ता हमें बताया है, जैसा कि आज के सुसमाचार में हमने उनकी शिक्षाओं को सुना है। उन्होंने पुरानी  शिक्षाओं को एक नए नज़रिये से देखना व छोटी से छोटी गलतियों व पापों को गंभीरता से लेने व धार्मिकता के मार्ग पर चलने हमें सिखाया है. क्या हम प्रभु के वचनों को अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान देते हैं जैसा कि संत पेत्रुस ने अपने जीवन में येसु के वचनों की महत्ता को समझकर प्रभु येसु से कहा था  - प्रभु हम किस के पास जायें, आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश हैै। 

तो आईये हम प्रभु के वचनों को सुनें, उन पर चलें और अपने दैनिक जीवन में ईश्वर को चुनें, अनंत जीवन को चुनें, मृत्यु को नहीं। आमेन। 

No comments:

Post a Comment