Monday, 24 February 2020

पवित्र राख बुधवार 26 फ़रवरी 2020 (Year A )

जोएल २, १२-१८
२ कुरिन्थियों ५, २०-६ ,२
मत्ती ६, १-६, १६-१८

उपवास के आह्वान के साथ आज हम दुःखभोग काल का आगाज़ कर रहे हैं। आत्मा के  शुद्धिकरण एवं प्रभु तथा एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप करने का यह उपयुक्त समय है। यह अनुग्रह का समय है, आत्माओं के उद्धार का समय है, यह अन्यंत कीमती समय है। इसे हम यूँ ही न जाने दें। आज के दूसरे पाठ में प्रभु हमसे कहते हैं - ‘‘आप को ईष्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न जाने दें; क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी सुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायाता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है’’ (2 कुरिंथियों 6, 2)

पाप से विकृत हमारे मानवीय स्वभाव को आज एक सही दिशा  की ज़रूरत है। पाप की अज्ञानता में खोए मानव को आज प्रभु की ज्योति की ज़रूरत है। रोम. 3,23 में वचन कहता है - ‘‘क्योंकि सब ने पाप किया और सब ईष्वर की महिमा से वंचित हो गये। ईष्वर की कृपा से सबों को मुफ्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है।’’ हममें शायद ही कोई ऐसा होगा जो निष्पाप है, जिसने कभी पाप ही नहीं किया हो। हम सब पापी हैं। और यदि हम यह स्वीकार करते हैं कि हम सब पापी हैं, हम ईष्वर की महिमा से वंचित हैं, अनन्त जीवन हमारे हाथों से फिसलता जा रहा है, हम प्रभु से दूर होते जा रहे हैं, हमारा जीवन अनन्त विनाश  की ओर खींचा चला जा रहा है तो अब यह उचित समय है, हमारे उद्धार का समय है।

आज हम प्रभु की यह वाणी ध्यान से सुने जिसे हमें प्रभु आज के पहले पाठ के माध्यम से कह रहे हैं - ‘‘अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए पूरे हृदय से मेरे पास लौट आओ। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चाताप करो और अपने प्रभु ईष्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनषील और दयासागर है।’’
चालीसे का यह पवित्र समय हमारे लिए प्रार्थना एवं उपवास करते हुए अपने पापों पर पाश्चाताप  करने का उचित समय है। प्रार्थना और उपवास का क्या संबंध है? उपवास हमारी प्रार्थनाओं को अधिक प्रभावशाली बनाता है। कई बार हमारे जीवन में हम ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरते हैं जहाँ कुछ चीज़ अथवा कुछ काम कर पाना हमारी शक्ति के परे हो जाता है। हम प्रार्थना करते हैं, दुआयें मांगते हैं, चर्च जाते हैं, फिर भी हमारा काम नहीं होता है , या फिर हमारी  बुरी आदत नहीं सुधरती। हम हार जाते हैं, टूट जाते हैं। एक बार प्रभु के चेलों के साथ भी ऐसी ही हुआ। संत मारकुस के सुसमाचार 9, 14-29 में हम इस घटना के बारे में पढते हैं जहांँ प्रभु येसु अपने रूपान्तरण के बाद अपने  शिष्यों  के पास लौटते हैं तो उन्हें एक बडी उलझन मंे पाते हैं। एक व्यक्ति अपने बेटे को जो कि अपदूतग्रस्त था उनके पास लाता है और प्रभु के  शिष्य लाख कोशिश  करने के बाद भी उसे नहीं निकाल पाये। आखिर में उसे प्रभु के पास लाया जाता है और प्रभु उसे चंगाई प्रदान करते हैं। तब  शिष्यों ने प्रभु से अपनी असमर्थता का कारण पूछा तो प्रभु ने कहा - ‘‘प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से यह जाति नहीं निकाली जा सकती’’ (मार्क 9, 29)।

हमारे जीवन में कुछ बुराईयाँ ऐसी होती है, जो जीवनभर पीछा नहीं छोडती। हम हजारों कोशिश  करते हैं, पर फिर भी हम उन पापोें अथवा बुराईयों के दास बने रहते हैं। कई ऐसे व्यक्तियों को मैंने देखे है जो विभिन्न प्रकार की बूरी आदतों जैसे नशापान, गाली देना, दूसरों की बुराई करना, वासना के गुलाम बन जाना आदि के ऐसे गुलाम बन जाते हैं कि वे चाह कर भी उनसे मुक्ति एवं छुटकारा नहीं पा सकते। हम मेसे भी कई विभिन्न प्रकार के ऐसे पुराने से पुराने बंधनों से बंधे हुए हैं। बुराईयों ने हमारे ऊपर अधिकार करके रखा है। बुरी आदतें, बुरे विचार हमारे जीवन को चलाती हैं। यदि हम मेसे कोई है जिसे लगता है कि मेरे पापों का, मेरे पापमय स्वभाव का, मेरी बुरी आदत का कोई निदान नहीं हैैं। तो इस चालीसे के समय में उपवास रखकर प्रार्थना करते हुए हम अपनी कमज़ोरियों को प्रभु को समर्पित करें। वह अपने वादे का पक्का है। कोई बंधन ऐसा नहीं जिसे प्रभु येसु नहीं तोड सकते, कोई भी बुरी आदत ऐसी नहीं है जिससे मसीह हमें निजात नहीं दिला सकते। वचन कहता है - ‘‘उसके पुत्र के जीवन द्वारा निष्चय ही हमारा उद्धार होगा‘‘ (रोम 5, 10)। ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को क्रूस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें। आप उनके घावों द्वारा भले चंगे हो गये हैं’‘ (1 पेत्रुस 2, 24) हमारी हर एक कमज़ोरी को, हर एक दुर्बलता प्रभु येसु अपने क्रूस के ऊपर ले जाते हैं और उनके खून बहाये जाने से हमें चंगाई मिलती है, हमें छुटकारा मिलता है। ईष्वर ने हमें अंधकार की अधीनता से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आया। उस पुत्र के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, अर्थात् हमें पापों की क्षमा मिलती है।


चालीसा काल प्रभु के पुनरूत्थान के पर्व की तैयारी का समय है। हम इस समय हमारे पापमय मृत्यु के जीवन को त्यागकर प्रभु के साथ एक नवीनता का जीवन प्रारम्भ करने की तैयारी करते हैं। पवित्र कलीसिया इस पवित्र समय में पुण्य कमाने के तीन प्रमुख मार्ग हमें बतलाती है।
पहला है - उपवास व त्याग करते हुए अपने किये हुए पापों पर पश्ताप  करना व पापमय जीवन को त्यागते हुए प्रभु के करीब आना
दूसरा - प्रार्थना में जीवन बिताना 
तीसरा- दान देना। या ज़रूरतमंदों की सहायता करना। 

इन सब पुण्यकर्मों को करने का हमारा उद्देश्य  हमारे सामने बिल्कुल साफ होना चाहिए। हमारे धर्म कर्मों की जानकारी सिर्फ मुझे और मेरे प्रभु को हो। हमारा उपवास, हमारी प्रार्थना दूसरों को प्रभावित करने के लिए नहीं लेकिन प्रभु को प्रसन्न करने के लिए होना चाहिए। यदि हम दूसरों को दिखाने के लिए, दूसरों की वाह-वही लूटने के लिए, दूसरों से तारीफ पाने के लिए हमारे धर्म-कर्म करते हैं तो आज का सुसमाचार हमसे कहता है हम हमारे स्वर्गीक पिता के पुरस्कार से वंचित हो जायेंगे। प्रार्थना का उद्देष्य यह नहीं कि मैं धार्मिक कहलाऊँ पर यह कि मैं प्रभु से अपना संबंध जोडूं। दान देने का उद्देष्य यह नहीं कि दूसरे लो, मेरी उदारता को जानें पर यह कि मेरे द्वारा किसी गरीब, किसी बेसहारा, किसी पीडित की मदद हो जाये। मेरा धन, मेरी शक्ति व गुण दूसरों के काम आये। मेरे उपवास का मतलब यह नहीं कि लोग मेरी धार्मिकता से वकिफ़ हो जायें, पर यह कि मेरी शारीरिक भूख मुझमें अध्यात्मिक भूख जगाये। रोटी की भूख मुझमें प्रभु व उसके वचनों की भूख जगाये। और मेरे उपवास व त्याग से जो कुछ बचता है उससे मैं किसी ज़रूरतमंद की मदद करूंँ। आने वाले इन चालीस दिनों में यदि मैं इन बातों पर ध्यान देता हूँ तो यह पावन समय मेरे लिए बहुत ही अर्थपूर्ण व प्रभु की आषिष व कृपा का एक स्रोत बनकर मेरे जीवन में मसीह के उद्धार व मुक्ति को प्राप्त करने में मेरी सहायाता करेगा।
आमेन।





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