2 कुरिन्थियों 12 :3 -7
योहन 20;19-23
आज कलीसिया का जन्मदिन है। और इस दृष्टिकोण से हम सब का भी जन्मदिन हैं जो कि कलीसिया रूपी शरीर के अंग हैं। आज जब हम कलीसिया का जन्मदिन मनाते हैं तब आईये हम कलीसिया की प्रकृति के बारे में मनन करें। हम ने बचपन में धर्मशिक्षा में पढा है और हर रविवार को धर्मसार में हम बोलते हैं - ‘‘मैं एक ही, पवित्र, कैथोलिक और प्रेरितिक कलीसिया में विश्वास करता हूँ।“ जी हॉं कलीसिया जिसके हम सब अंग हैं वह ‘एक’ है, ‘पवित्र’ है, ‘कैथोलिक’ है, और ‘प्रेरितिक’ है। ये चारों बातें कलीसिया के प्रारम्भ याने पेंतेकोस्त के दिन से ही कलीसिया में देखी जा सकती हैं।
कलीसिया एक है
जब प्रभु येसु स्वर्ग में आरोहित हो गये शिष्यगण अटारी में ‘‘सब एक हृदय होकर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाईयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।“ (प्रे.च. 1:14)। वे सब प्रार्थना में एक हृदय थे। प्रभु येसु ने अपने अंतिम भोज के समय यही प्रार्थना की थी - ‘‘पिता जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें” (योहन 17:21)। कलीसिया जिसकी पेंतेकोस्त के दिन शुरूआत हुई वो एक थी। विभाजित कलीसिया सच्ची कलीसिया की पहचान नहीं। जहॉं एकता है, एकरूपता है, मसीह प्रेम का बंधन है, भाईचारा और मेल-मिलाप है वही सच्ची कलीसिया है। विभाजनकारी मानसिकता आज कलीसिया के टुकडे-टुकडे कर कलीसिया के मौलिक रूप को बिगाड रही है। आज पेंतेकोस्त का यह दिन सारे विश्वासियों को एक ही चरागाह में लौटने का दिन हो।
कलीसिया एक है
जब प्रभु येसु स्वर्ग में आरोहित हो गये शिष्यगण अटारी में ‘‘सब एक हृदय होकर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाईयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।“ (प्रे.च. 1:14)। वे सब प्रार्थना में एक हृदय थे। प्रभु येसु ने अपने अंतिम भोज के समय यही प्रार्थना की थी - ‘‘पिता जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें” (योहन 17:21)। कलीसिया जिसकी पेंतेकोस्त के दिन शुरूआत हुई वो एक थी। विभाजित कलीसिया सच्ची कलीसिया की पहचान नहीं। जहॉं एकता है, एकरूपता है, मसीह प्रेम का बंधन है, भाईचारा और मेल-मिलाप है वही सच्ची कलीसिया है। विभाजनकारी मानसिकता आज कलीसिया के टुकडे-टुकडे कर कलीसिया के मौलिक रूप को बिगाड रही है। आज पेंतेकोस्त का यह दिन सारे विश्वासियों को एक ही चरागाह में लौटने का दिन हो।
दूसरा- कलीसिया पवित्र है, क्योंकि कलीसिया पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा से भरपूर हो जाती है। पवित्र आत्मा जो कि पिता और पुत्र को एक करने वाला प्यार है कलीसिया के ऊपर उतर आता है। यह वही आत्मा है जो सृष्टि से पहले अथाह गर्त पर विचरता था। उसी आत्मा को आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने पुनरूत्थान के बाद शिष्यों को फूँककर प्रदान करते हैं और कहते हैं - ‘‘पवित्र आत्मा को ग्रहण करो” (योहन 20:22)। संत योहन 3:5 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जब तक कोई जल और पवित्र आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता”। संत योहन प्रकाशना ग्रंथ 21:27 में कहते हैं कि स्वर्ग में कोई भी, जो कि अपवित्र है प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिए पवित्र आत्मा के द्वारा अपने को पवित्र करना कलीसिया के लिए बहुत जरूरी है। अपने प्रथम दिन याने पेंतेकोस्त के दिन कलीसिया पवित्र आत्मा से भरकर पवित्र हो जाती है और बदले में दूसरों को भी इस पवित्रता का हिस्सा बनाने के लिए वचन व विश्वास का प्रचार करने निकल पडती है।
तीसरा- कलीसिया कैथोलिक है। कैथोलिक का अर्थ है सार्वभौमिक अथवा विश्वव्यापी। प्रभु येसु अपने अंतिम आदेश के रूप में संत मत्ती के सुसमाचार 28:19 में कहते हैं - ‘‘तुम जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ।” पेंतेकोस्त के दिन ‘‘पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए . . . हर एक अपनी-अपनी भाषा मंष शिष्यों को बोलते सुन रहा था” (प्रे.च. 2:5-6)। याने मसीह का संदेश किसी विशेष देश या भाषा के लोगों के लिए नहीं बल्कि समस्त संसार के लोगों के लिए है। इसे पवित्र आत्मा ने पेंतेकोस्त के दिन साबित कर दिया कि कलीसिया का दायरा सिर्फ येरूसालेम अथवा यहूदियों तक ही सीमित नहीं पर यह हर भाषा, हर देश व हर जाति के लिए है। जैसा कि प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से अपने स्वर्गारोहण से पहले कहा था - ‘‘पवित्र आत्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरूसालेम, सारी यहूदिया और समारिया में तथा पृथ्वी के अंतिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे” (प्रे.च. 1:8) पोंतियुस पिलातुस ने भी किसी न किसी रूप में मुक्तिदाता के क्रूस पर ‘येसु नाज़री यहूदियों का राजा’इस लेख को विभिन्न भाषाओं में लिखवाकर यह साबित किया कि येसु सारी दुनिया के राजा हैं।
चौथा - कलीसिया प्रेरितिक है। संत पौलुस एफेसियों 2:20 में कलीसिया के विषय में कहते हैं - ‘‘आप लोगों का निर्माण उस भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खडा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं येसु मसीह है।” कलीसिया का निर्माण 12 प्रेरितों की नींव पर किया गया है जो कि नये इस्राएल के बारह कुलपति हैं।
प्रेरित का मतलब होता है - भेजा हुआ। इस दृष्टि से हर एक विश्वासी येसु मसीह द्वारा भेजा गया है। इसलिए हर बपतिस्माधारी एक मिशनरी बन जाता है। मिशन कार्य सिर्फ किन्हीं गिने चुने लोगों का काम नहीं पर हर एक विश्वासी जो कि कलीसिया का अंग है एक मिशनरी है अथवा एक प्रेरित है।
जैसे ही पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरा वे वचन के प्रचार में जुट गये। वे लोगों को बतलाने लग गये कि येसु मसीह कौन हैं, उनके कार्य क्या हैं, वे क्यों इस संसार में आये, और उनमें विश्वास करने से हमें क्या मिलेगा आदि। हमें भी हमारे बपतिस्मा में, दृढीकरण संस्कार में, हमारे पुरोहिताई संस्कार में तथा अन्य अवसरों पर जब हमने पवित्र आत्मा के अभिषेक की प्रार्थना की है हमें पवित्र आत्मा का अभिषेक भरपूर मिला है। पर क्या हमने अब तक उन शिष्यों की तरह येसु का संदेश लोगों तक पहुँचाने की पहल की है? उन्होंने बिना समय गवॉंये सुसमाचार सुनाना प्रारम्भ कर दिया। हमने कितना समय अब तक गॅंवा दिया है। यदि हम इस कार्य में असफल हैं तो हमने कलीसिया के प्रेरितिक स्वभाव को खो दिया है।
प्रेरित चरित में हम प्रारंभिक कलीसिया और प्रारंभिक विश्वासियों के बारे में पढ़ते हैं। वे पवित्र आत्मा से भरपूर जीवन जीते थे। उनके जीवन में पवित्र आत्मा क्रियाशील था। कुरिन्थियों को लिखे पात्र में (1 Cor. 12:6-8) संत पौलुस हमें बतलाते हैं कि वह आत्मा किसी को प्रज्ञा के शब्द देता है , किसी को उसी आत्मा द्वारा ज्ञान के शब्द मिलते हैं वही आत्मा किसी को रोगियों को चंगा करने का, किसी को चमत्कार दिखाने का, किसी को भविष्यवाणी करने का, किसी को आत्माओं की परख करने का, किसी को भाषाएँ बोलने का और किसी को भाषाओं की व्याख्या करने का वरदान देता है।
संत पौलुस कहते हैं - "हम को प्राप्त अनुग्रह के अनुसार हमारे वरदान भी भिन्न-भिन्न होते हैं। हमें भविष्यवाणी का वरदान मिला, तो विश्वास के अनुरूप उसका उपयोग करें; सेवा-कार्य का वरदान मिला, तो सेवा-कार्य में लगे रहें। शिक्षक शिक्षा देने में और उपदेशक उपदेश देने में लगे रहें।" (रोमि ० 12: 6-8) याने हर कोई अपने अंदर पवित्र आत्मा को पहचाने और उनसे प्राप्त वरदानों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करें। पर आज हम देखते हैं कि कलीसिया में आत्मा के वरदानो का उपयोग कुछ गिने चुने लोग ही करते हैं। वास्तव में - हर विश्वासी पवित्र आत्मा से भरकर रोगियों को चंगा करने, भाषाएँ बोलने, भविष्यवाणी करने, वचन का प्रचार करने, चमत्कार करने, सेवा करने आदि के लिए बुलाया गया है। और प्राम्भिक विश्वासियों ने विश्वासियों गंभीरता से लिया और उन्होंने आत्मा से भरपूर हो कर जीवन बिताया। संत पौलुस 1 कोरिंथ 14:१२ लिखते हैं - आप लोग आध्यात्मिक वरदानों की अभिलाषा करते हैं, इसलिए ऐसे वरदानों से सम्पन्न होने का प्रयत्न करें, जो कलीसिया के आध्यात्मिक निर्माण में सहा यक हों। और तिमथी को लिखते हुए वे कहते हैं 2 तिम 1: 6) मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमान है।
तो हमें ज़रूरत है सबसे पहले उस पवित्र आत्मा के वरदानों से भरपूर होने ही और उन वरदानों का उपयोग कलीसिया के निर्माण व ईश्वर की महिमा के लिए करने की तथा हम उस आत्मा की आग को हमारे ख्रीस्तीयजीवन से कभी भी बुझने ना दें।
प्रेरित चरित में हम प्रारंभिक कलीसिया और प्रारंभिक विश्वासियों के बारे में पढ़ते हैं। वे पवित्र आत्मा से भरपूर जीवन जीते थे। उनके जीवन में पवित्र आत्मा क्रियाशील था। कुरिन्थियों को लिखे पात्र में (1 Cor. 12:6-8) संत पौलुस हमें बतलाते हैं कि वह आत्मा किसी को प्रज्ञा के शब्द देता है , किसी को उसी आत्मा द्वारा ज्ञान के शब्द मिलते हैं वही आत्मा किसी को रोगियों को चंगा करने का, किसी को चमत्कार दिखाने का, किसी को भविष्यवाणी करने का, किसी को आत्माओं की परख करने का, किसी को भाषाएँ बोलने का और किसी को भाषाओं की व्याख्या करने का वरदान देता है।
संत पौलुस कहते हैं - "हम को प्राप्त अनुग्रह के अनुसार हमारे वरदान भी भिन्न-भिन्न होते हैं। हमें भविष्यवाणी का वरदान मिला, तो विश्वास के अनुरूप उसका उपयोग करें; सेवा-कार्य का वरदान मिला, तो सेवा-कार्य में लगे रहें। शिक्षक शिक्षा देने में और उपदेशक उपदेश देने में लगे रहें।" (रोमि ० 12: 6-8) याने हर कोई अपने अंदर पवित्र आत्मा को पहचाने और उनसे प्राप्त वरदानों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करें। पर आज हम देखते हैं कि कलीसिया में आत्मा के वरदानो का उपयोग कुछ गिने चुने लोग ही करते हैं। वास्तव में - हर विश्वासी पवित्र आत्मा से भरकर रोगियों को चंगा करने, भाषाएँ बोलने, भविष्यवाणी करने, वचन का प्रचार करने, चमत्कार करने, सेवा करने आदि के लिए बुलाया गया है। और प्राम्भिक विश्वासियों ने विश्वासियों गंभीरता से लिया और उन्होंने आत्मा से भरपूर हो कर जीवन बिताया। संत पौलुस 1 कोरिंथ 14:१२ लिखते हैं - आप लोग आध्यात्मिक वरदानों की अभिलाषा करते हैं, इसलिए ऐसे वरदानों से सम्पन्न होने का प्रयत्न करें, जो कलीसिया के आध्यात्मिक निर्माण में सहा यक हों। और तिमथी को लिखते हुए वे कहते हैं 2 तिम 1: 6) मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमान है।
तो हमें ज़रूरत है सबसे पहले उस पवित्र आत्मा के वरदानों से भरपूर होने ही और उन वरदानों का उपयोग कलीसिया के निर्माण व ईश्वर की महिमा के लिए करने की तथा हम उस आत्मा की आग को हमारे ख्रीस्तीयजीवन से कभी भी बुझने ना दें।
आज फिर से येसु हम सबों पर अपना पवित्र आत्मा भेज रहे हैं और हमें एक ही, पवित्र, कैथोलिक एवं प्रेरितिक कलीसिया के रूप में गठित कर रहे हैं। तो आईये हम सब येसु मसीह में एक बनें, पवित्र बनें, कैथोलिक बनें याने सब प्रकार के लोगों को कलीसिया में मिलायें और प्रेरितिक बनें याने आत्मा से भरपूर हो कर, उसके वरदानों का उपयोग करते हुवे, बिना वक्त गॅंवाए येसु मसीह के सुसमाचार के प्रचार में लग जायें। आमेन।