Tuesday, 26 May 2020

पेंटेकोस्ट रविवार 31 मई 2020



प्रेरित चरित  2: 1 - 11 

2 कुरिन्थियों 12 :3 -7 
योहन 20;19-23 

आज कलीसिया का जन्मदिन है। और इस दृष्टिकोण से हम सब का भी जन्मदिन हैं जो कि कलीसिया रूपी शरीर के अंग हैं। आज जब हम कलीसिया का जन्मदिन मनाते हैं तब आईये हम कलीसिया की प्रकृति के बारे में मनन करें। हम ने बचपन में धर्मशिक्षा में पढा है और हर रविवार को धर्मसार में हम बोलते हैं - ‘‘मैं एक ही, पवित्र, कैथोलिक और प्रेरितिक कलीसिया में विश्वास करता हूँ।“ जी हॉं कलीसिया जिसके हम सब अंग हैं वह ‘एक’ है, ‘पवित्र’ है, ‘कैथोलिक’ है, और ‘प्रेरितिक’ है। ये चारों बातें कलीसिया के प्रारम्भ याने पेंतेकोस्त के दिन से ही कलीसिया में देखी जा सकती हैं।

कलीसिया एक है 
जब प्रभु येसु स्वर्ग में आरोहित हो गये शिष्यगण अटारी में ‘‘सब एक हृदय होकर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाईयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।“ (प्रे.च. 1:14)। वे सब प्रार्थना में एक हृदय थे। प्रभु येसु ने अपने अंतिम भोज के समय यही प्रार्थना की थी - ‘‘पिता जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें” (योहन 17:21)। कलीसिया जिसकी पेंतेकोस्त के दिन शुरूआत हुई वो एक थी। विभाजित कलीसिया सच्ची कलीसिया की पहचान नहीं। जहॉं एकता है, एकरूपता है, मसीह प्रेम का बंधन है, भाईचारा और मेल-मिलाप है वही सच्ची कलीसिया है। विभाजनकारी मानसिकता आज कलीसिया के टुकडे-टुकडे कर कलीसिया के मौलिक रूप को बिगाड रही है। आज पेंतेकोस्त का यह दिन सारे विश्वासियों को एक ही चरागाह में लौटने का दिन हो।

दूसरा- कलीसिया पवित्र है, क्योंकि कलीसिया पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा से भरपूर हो जाती है। पवित्र आत्मा जो कि पिता और पुत्र को एक करने वाला प्यार है कलीसिया के ऊपर उतर आता है। यह वही आत्मा है जो सृष्टि से पहले अथाह गर्त पर विचरता था। उसी आत्मा को आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने पुनरूत्थान के बाद शिष्यों को फूँककर प्रदान करते हैं और कहते हैं - ‘‘पवित्र आत्मा को ग्रहण करो” (योहन 20:22)। संत योहन 3:5 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जब तक कोई जल और पवित्र आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता”। संत योहन प्रकाशना ग्रंथ 21:27 में कहते हैं कि स्वर्ग में कोई भी, जो कि अपवित्र है प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिए पवित्र आत्मा के द्वारा अपने को पवित्र करना कलीसिया के लिए बहुत जरूरी है। अपने प्रथम दिन याने पेंतेकोस्त के दिन कलीसिया पवित्र आत्मा से भरकर पवित्र हो जाती है और बदले में दूसरों को भी इस पवित्रता का हिस्सा बनाने के लिए वचन व विश्वास का प्रचार करने निकल पडती है।

तीसरा- कलीसिया कैथोलिक है कैथोलिक का अर्थ है सार्वभौमिक अथवा विश्वव्यापी। प्रभु येसु अपने अंतिम आदेश के रूप में संत मत्ती के सुसमाचार 28:19 में कहते हैं - ‘‘तुम जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ।” पेंतेकोस्त के दिन ‘‘पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए . . . हर एक अपनी-अपनी भाषा मंष शिष्यों को बोलते सुन रहा था” (प्रे.च. 2:5-6)। याने मसीह का संदेश किसी विशेष देश या भाषा के लोगों के लिए नहीं बल्कि समस्त संसार के लोगों के लिए है। इसे पवित्र आत्मा ने पेंतेकोस्त के दिन साबित कर दिया कि कलीसिया का दायरा सिर्फ येरूसालेम अथवा यहूदियों तक ही सीमित नहीं पर यह हर भाषा, हर देश व हर जाति के लिए है। जैसा कि प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से अपने स्वर्गारोहण से पहले कहा था - ‘‘पवित्र आत्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरूसालेम, सारी यहूदिया और समारिया में तथा पृथ्वी के अंतिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे” (प्रे.च. 1:8) पोंतियुस पिलातुस ने भी किसी न किसी रूप में मुक्तिदाता के क्रूस पर ‘येसु नाज़री यहूदियों का राजा’इस लेख को विभिन्न भाषाओं में लिखवाकर यह साबित किया कि येसु सारी दुनिया के राजा हैं।

चौथा - कलीसिया प्रेरितिक है। संत पौलुस एफेसियों 2:20 में कलीसिया के विषय में कहते हैं - ‘‘आप लोगों का निर्माण उस भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खडा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं येसु मसीह है।” कलीसिया का निर्माण 12 प्रेरितों की नींव पर किया गया है जो कि नये इस्राएल के बारह कुलपति हैं।

प्रेरित का मतलब होता है - भेजा हुआ। इस दृष्टि से हर एक विश्वासी येसु मसीह द्वारा भेजा गया है। इसलिए हर बपतिस्माधारी एक मिशनरी बन जाता है। मिशन कार्य सिर्फ किन्हीं गिने चुने लोगों का काम नहीं पर हर एक विश्वासी जो कि कलीसिया का अंग है एक मिशनरी है अथवा एक प्रेरित है।
जैसे ही पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरा वे वचन के प्रचार में जुट गये। वे लोगों को बतलाने लग गये कि येसु मसीह कौन हैं, उनके कार्य क्या हैं, वे क्यों इस संसार में आये, और उनमें विश्वास करने से हमें क्या मिलेगा आदि। हमें भी हमारे बपतिस्मा में, दृढीकरण संस्कार में, हमारे पुरोहिताई संस्कार में तथा अन्य अवसरों पर जब हमने पवित्र आत्मा के अभिषेक की प्रार्थना की है हमें पवित्र आत्मा का अभिषेक भरपूर मिला है। पर क्या हमने अब तक उन शिष्यों की तरह येसु का संदेश लोगों तक पहुँचाने की पहल की है? उन्होंने बिना समय गवॉंये सुसमाचार सुनाना प्रारम्भ कर दिया। हमने कितना समय अब तक गॅंवा दिया है। यदि हम इस कार्य में असफल हैं तो हमने कलीसिया के प्रेरितिक स्वभाव को खो दिया है।

प्रेरित चरित में हम प्रारंभिक कलीसिया और प्रारंभिक विश्वासियों के बारे में पढ़ते हैं।  वे पवित्र आत्मा से भरपूर जीवन जीते थे।  उनके जीवन में पवित्र आत्मा क्रियाशील था।  कुरिन्थियों को लिखे पात्र में (1 Cor. 12:6-8) संत पौलुस हमें बतलाते हैं कि वह आत्मा किसी को प्रज्ञा के शब्द देता है , किसी को उसी आत्मा द्वारा ज्ञान के शब्द मिलते हैं वही आत्मा किसी को रोगियों को चंगा करने का, किसी को चमत्कार दिखाने का, किसी को भविष्यवाणी करने का, किसी को आत्माओं की परख करने का, किसी को भाषाएँ बोलने का और किसी को भाषाओं की व्याख्या करने का वरदान देता है। 
संत पौलुस कहते हैं - "हम को प्राप्त अनुग्रह के अनुसार हमारे वरदान भी भिन्न-भिन्न होते हैं। हमें भविष्यवाणी का वरदान मिला, तो विश्वास के अनुरूप उसका उपयोग करें; सेवा-कार्य का वरदान मिला, तो सेवा-कार्य में लगे रहें। शिक्षक शिक्षा देने में और उपदेशक उपदेश देने में लगे रहें।" (रोमि ० 12: 6-8)  याने हर कोई अपने अंदर पवित्र आत्मा  को  पहचाने और उनसे प्राप्त वरदानों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करें।  पर आज हम देखते हैं कि कलीसिया में आत्मा के वरदानो का उपयोग कुछ गिने चुने लोग ही करते हैं।  वास्तव में - हर विश्वासी पवित्र आत्मा से भरकर रोगियों को चंगा करने, भाषाएँ बोलने, भविष्यवाणी करने, वचन का प्रचार करने, चमत्कार करने, सेवा करने आदि के लिए बुलाया गया है। और प्राम्भिक विश्वासियों ने विश्वासियों  गंभीरता से लिया और उन्होंने आत्मा से भरपूर हो कर जीवन बिताया।  संत पौलुस  1 कोरिंथ 14:१२ लिखते हैं -  आप लोग आध्यात्मिक वरदानों की अभिलाषा करते हैं, इसलिए ऐसे वरदानों से सम्पन्न होने का प्रयत्न करें, जो कलीसिया के आध्यात्मिक निर्माण में सहा यक हों। और तिमथी को लिखते हुए वे कहते हैं 2 तिम 1: 6) मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमान है।

तो हमें ज़रूरत है सबसे पहले उस पवित्र आत्मा के वरदानों से भरपूर होने ही और उन वरदानों का उपयोग कलीसिया के निर्माण व ईश्वर की महिमा के लिए करने की तथा हम उस आत्मा की आग को हमारे ख्रीस्तीयजीवन से कभी भी  बुझने ना दें।  

आज फिर से येसु हम सबों पर अपना पवित्र आत्मा भेज रहे हैं और हमें एक ही, पवित्र, कैथोलिक एवं प्रेरितिक कलीसिया के रूप में गठित कर रहे हैं। तो आईये हम सब येसु मसीह में एक बनें, पवित्र बनें, कैथोलिक बनें याने सब प्रकार के लोगों को कलीसिया में मिलायें और प्रेरितिक बनें याने आत्मा से भरपूर हो कर, उसके वरदानों का उपयोग करते हुवे, बिना वक्त गॅंवाए येसु मसीह के सुसमाचार के प्रचार में लग जायें। आमेन।

Fr. Preetam Vasuniya, Indore Diocese 

Happy Feast of Pentecost. 

May the 

Spirit of the Lord overshadow you 

today and forever. 

Saturday, 9 May 2020

पास्का का पाॅंचवा इतवार 10 May 2020

पास्का का पाॅंचवा इतवार

प्रे च 6:१-7
1 पेत्रुस २:४-9
योहन 14 : 1-14

मेरे पिता के यहाॅं बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता। क्योंकि मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जाता हॅूं। मैं वहाॅं जा कर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आउॅंगा और तुम्हें अपने यहाॅं ले जाउॅंगा, जिससे जहाॅं मैं हूॅं, वहाॅं तुम भी रहो।’’

समय-समय पर यह ज़रूरी है कि हम स्वर्ग की महिमामय सच्चाई के ऊपर  अपना ध्यान केंद्रित करें। स्वर्ग की सच्चाई वास्तविक है और ईश्वर इसे हमें देने के लिए तैयार हैं, वहाॅं एक दिन हम सब, पवित्र त्रियेक ईश्वर  के साथ मिलकर एक हो जायेंगे। काश  कि हम स्वर्ग की महानता को सही तरीके से समझ गये होते, तो हम आनन्द, उत्साह व शाॅंति से भरकर उसकी तरफ एक गहरी इच्छा से देखते, और हर समय हम स्वर्ग के बारे में सोचते।

पर दुर्भाग्यवश  इस संसार को छोडने व अपने विधाता से मिलने की सोच हम में से कईयों को डराती है। शायद इसके पीछे मरण पश्चात की अनिश्चितता  एक कारण है, और अपनों को पीछे छोड जाने का दुःखमय एहसास, साथ ही इस बात का डर की मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं।

लेकिन एक विश्वासी अथवा मसीही होने के नाते यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम स्वर्ग के प्रति एक गहरा प्रेम रखें  तथा स्वर्ग के बारे में न केवल सही ज्ञान रखें परन्तु इस दुनिया में हमारे जीवन के उद्देष्य के बारे में भी हम सही-सही जानकारी रखें।

प्यारे विश्वासियों पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल इस संसार और स्वर्ग के बारे में बहुत ही स्पष्ट  शिक्षा  प्रदान करता है  वचन कहता है 1 पेत्रुस 2ः11 में - ‘‘प्यारे भाईयों, आप इस दुनियाँ में परदेशी  और प्रवासी हैं।’’  

जि हाॅं प्रभु का वचन कहता है हम इस दुनिया में परदेशी  अथवा प्रवासी हैं। याने ये दुनिया हामरा मूल वतन नहीं है। यदि ये दुनिया हमारा मूल वतन नहीं है तो फिर हम कहाॅं के हैं? फिलिपियों को लिखे संत पौलुस के पत्र 3ः20 में प्रभु का वचन हमें बताता है कि हमारा स्वदेश  तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिादाता प्रभु ईसा मसीह की राह देखते रहते हैं। तो हमारी स्थाई नागरिकता स्वर्ग की है। जिसका अर्थ यह हुआ कि जहाॅं तक स्वर्ग का सवाल है हम वहाॅं के लिए परदेशी नहीं है। ऐफे. 2ः19 में प्रभु का वचन कहता है - आप लोग अब परदेशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि संतों के सह नागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं। तो प्यारे साथियों हम स्वर्ग में निवास करने वाले संतों के साथ स्वर्ग के सह नागरिक हैं।

इस संसार के बारे में तो हमने बहुत कुछ जानकारियाॅं हासिल की हैं पर आईये हम जानें कि  स्वर्ग के बारे में वचन क्या कहता है- 2 कुरिं 5ः1-9 - ‘‘हम जानते हैं कि जब यह तम्बू, पृथ्वी पर हामारा यह घर, गिरा दिया जायेगा, तो हमें ईश्वर द्वारा निर्मित एक निवास मिलेगा। वह एक ऐसा घर हैै, जो हाथ का बना नहीं है और अनन्त काल तक स्वर्ग में बना रहेगा। इसलिए हम इस शरीर में कराहते रहते और उसके उपर अपना स्वर्गिक निवास धारण करने की तीव्र अभिलाषा करते हैं।’’ यहाॅं पर स्वर्ग को एक ऐसा भवन बताया गया है जो ईश्वर द्वारा निर्मित है। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ने हम से कहा है - ‘‘मेरे पिता के यहाॅं बहुत से निवास स्थान हैं. . . मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जा रहा हूॅं।’’ और यह घर सदा बना रहने वाला घर है। यह घर सबसे सुरक्षित घर है। यह न कभी जलेगा न भस्म होगा, यहाॅं न कोई चोर आयेगा न कोई बीमारी, न कोई महामारी और न कोई कोरोना वायरस। वचन 4 में लिखा है कि धरती पर के इस तंबू रहते समय तो हम दबते और कराहते रहते हैं। याने जब तक हम इस दुनिया रूपी तम्बू में हैं हम दुःखों और विपत्तियों से कराहते रहेंगे। प्रभु येसु चाहते हैं हम इन दुखों और परीक्षाओं से मुक्त होकर दुनिया के सारे सुखों से परे एक अनन्त आनन्द के भागिदार बन जायें। वचन 5 में लिखा है - ‘‘ईश्वर ने स्वयं उस उद्देष्य के लिए हमें गढा है और अग्रिम के रूप् में हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है।’’ 

ईश्वर का हमारे जीवन को लेकर यही उद्देष्य कि हम इस दुखों के तंबू को छोडकर उनके हाथों द्वारा निर्मित अनन्त निवास को अपना निवास बनायें। यदि ईश्वर का हमारे जीवन को लेकर यही उद्देष्य है तो फिर हम क्यों अपने जीवन के लिए कोई और उद्देष्य निर्धारित करें।

प्रकाशना ग्रंथ में भी स्वर्ग का वर्णन किया गया हैः जीवन के लिए मूल भूत आवश्यकताएं  हैं - पानी, भोजन, स्वास्थ्य और घर। कोरोना वायरस ने अमीर और गरीब सबों को अपने-अपने घरों में कैद कर दिया है। और इंसान अपनी चार दिवारी में रहकर यह विचार कर रहा है कि जीने के लिए बहुत सारी दौलत, बहुत कीमती वस्त्र, आभुषण, रेस्त्रां और होटलों में भोजन, पार्टियाॅं, पिकनिकक, मंहगी याात्रायें करना ये सब कोई मायने नहीं रखता।  महत्वपूर्ण है तो बस सबों के लिए पानी, भोजन, स्वास्थ्य और एक सुरक्षित रहने की व्यस्था। यही मूलभूत आवश्यकताएँ है और प्रकाशना ग्रंथ 22ः1-5 में वचन कहता है स्वर्ग में इन सब की पूर्ती भरपूरी से की जायेगी। वहाॅं फिर हमें किसी बात की कमी नहीं रहेगी। वहाॅं हमारे स्वर्गिक घर में न रोना, दर्द, और नही मृत्यु होगी। आज पूरा विश्व  वैश्विक महामारी कोविड 19 से लड रहा है, आज यदि हमें कोई कह दे कि इस दुनिया में एक जगह है जहाॅं पर कोरोना वारस कभी नहीं आ सकता, वहाॅं कोरोना वायरस तो क्या कोई भी बिमारी अथवा मौत आपका पीछा करते हुए वहाॅं नहीं पहूॅंच पायेगी, तो हम में से कितने ही लोग वहाॅं जाने के लिए तैयार हो जायेंगे चाहे वो कितना ही दूर हो अथवा वहाॅं जाने का खर्चा कितना भी अधिक क्यों न हो।  पिता ईश्वर ने तो एक ऐसे घर के बारे में हमें बताया है जहाॅं हमें कोई भी हानी नहीं होगी। परन्तु वहाॅं जाने के लिए हम कितना रूची व कितना उत्साह दिखाते हैं? वहाॅं जाने के लिए उत्सुक होने के बजाय हम इस दुनिया को ही अपना घर बनाये रखने की ख्वाहिश रखते हैं।

यदि हम इस दुनिया के नागरिक नहीं हैं, यदि हम यहाॅं परदेशी या प्रवासी हैं तो हमें इस दुनिया में रहते हुए क्या करना चाहिए अथवा कैसा आचरण करना चाहिए? हमारे देश  के केरल राज्य के कई लोग विदेशों  में प्रवासी के रूप में जाते हैं। मैं ने उनमें एक बात देखी है कि वे जहाॅं कहीं भी रहते हों, अपनी मूल भाषा, और संस्कृत को बरकरार रखते हैं। याने वे परदेश  में रहते हैं पर परदेशियों जैसे नहीं बनते, परन्तु वे अपने मूल वतन की संस्कृति में ही जीते हैं। हमें भी ऐसा ही बनना होगा। यदि स्वर्ग हमारा मूल वतन है और यह दुनिया हामारे लिए परदेश ,तो हमें हमारे मूल वतन की संस्कृति को इस परदेश  में बनाये रखना होगा। हमें स्वर्ग की संस्कृति को इस दुनिया में बनाये रखना होगा, और अपने मूल वतन को लौटने को हमें बेकरार होना होगा। ठिक उसी प्रकार जैसे इन दिनों अपने घरों से दूर पलायन कर काम पर गये मजदूर किसी भी हालत में अपने घरों को लौटने के लिए बे बकरार हैैं। क्योंकि अपना घर तो अपना घर होता है। आईये हम उसी प्रकार अपने वास्तिविक व अनन्त काल के  घर के लिए हमेशा लालायित रहें जिसे हमारे स्वर्गिक पिता ने अपने हाथों से हमारे लिए बनाया है। एक ऐसा घर जो कभी नष्ट नहीं होगा और जहाॅं न कभी मौत होगी न भूख न प्यास और न बिमारी  जिसे हमारे येसु  मसीह ने हमारे लिए हम से पहले जाकर तैयार किया है ताकि जहाँ वे हैं वहां  हम भी रह सकेंसे हमारे आमेन।

4th Sunday of Easter 2020


4था रविवार पास्का का
आज कलीसिया प्रभु येसु को भला चरवाहा और भेड शाला के द्वार के रूप में हमारे सामने पेष करती हैं। आज कोविड 19 के कोहराम के माहौल में हर कोई अपने आपको असुरक्षित व डरा हुआ महसूस है। स्वास्थ्य का डर, व्यापार-धंधे व नौकरी के खोने का डर, भविष्य को लेकर डर और अनिष्चिता। इस डर व भय के माहौल में आज हमारा येसु हमें आष्वासन देते हुए कह रहा है कि वह भेडषाला का द्वार है और हम सब उनके चरागाह की भेडें। यदि येसु हमारा चरवाहा है और हम उनकी भेडें हैं तो हमें ििकसी भी मुसिबत व परेषानी से न तो डरना चाहिए और न ही घबराना।  
एक बार एक पिताजी अपने 7 साल के बेटे के साथ नदी पार कर रहे थे। उसने अपने बेटे से कहा बेटा मेरा हाथ कस के पकड लो और मेरे पीछे-पीछे संभाल के चलते रहो। कुछ कदम आगे बढने के बाद जब पानी का बहाव तेज होने लगा तो बेटे ने अपने पिताजी का हाथ छोड दिया। चिंतित व परेषान होकर पिता चिल्लाई - मेरा हाथ मत छोडो बेटा नहीं तो पानी का बहाव तुम्हें बहा ले जायेगा। बेटे ने कहा नहीं पापा, मुझे डर लग रहा है, मुझे डर लग रहा है कि कहीं मेरी पकड ढिली न पड जाये ओर मैं आपका हाथ न छोड दूॅं। इसलिए आप मेरे हाथ को पकडिये। और मैं जानता हूॅं कि भले कुछ भी हो जायेगा पर आप मेरा हाथ कभी नहीं छोडेंगे। 
मैं कब निष्चिंत या बेफिक्र हो सकता हूॅं, तभी जब मुझे पता होता है कि जिसने मेरा हाथ पकडा है वह मुझसे शक्ति षाली है। मैं तब नहीं डरूॅंगा जब मुझे पता होता कि मुझे थामने वाला हाथ मेरे नाज़ुक व कमजोर हाथों से ज़्यादा ताकतवर हैं। आज हम प्रार्थना करें कि इस वैष्विक महामारी के संकट के समय हमारा भला गडेरिया येसु मसाीह हमारे हाथों को थामें। वो हमारा हाथ पकडकर हमें हरे मैदानों में ले जाकर चराए और शीतल जल के झरने से हमें पिलाये। 
एक भले चरवाहे के रूप में येसु का चित्रण उनके साथ हमारे संबंध को बहुत अच्छे से बयाॅं करता है। कल्पना कीजिए कि आप एक भेड हैं, एक विषाल भेडों के समूह में आप भी एक हैं और येसु आपका चरवाहा है। येसु, जो कि सर्वषक्तिमान और सबका मालिक है। येसु जिनके अधीन सब कुछ है जैसा कि संत मत्ती 28ः18 में उन्हेंने कहा है - मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।  तो फिर सोचो आपकी सुरक्षा कितनी सुनिष्चित है। जि हाॅं, आपका मालिक आपका चरवाहा दरवाजे से भेडषाला में प्रवेष करता है। आप अपने चरवाहे की आवाज़ सुनेंगे। और वो आपको आपका नाम लेकर पुकारेगा। वो आपका मार्गदषन करेगा और आपके आगे-आगे चलेगा। ताकि आपके मार्ग में आने वाली हर बाधा, हर मुसिबत को वो आपके रास्ते से हटा सके। वो भला चरवाहा है इसलिए वो किसी भी बैरी, दुष्मन या महामारी को आप पर हमला करने नहीं देगा। वो उसे नष्ट करने के लिए आप से आगे चलेगा। हमारी सुरक्षा सुनिष्चत करने के लिए वह आने वाली हर मुसिबत व समस्या को अपने उपर ले लेगा। जैसा कि इसायाह 53ः4 में लिखा है - ‘‘वह हमारे ही रोगों को अपने उपर लेता था और हमारे ही दुखों से लदा हुआ था।’’ जि, हाॅं मुझे और आपको बचाने के लिए हमारा येसु खुद को कुर्बान कर देता है।
येसु कहते हैं मैं इसलिए आया हूॅं कि वे जीवन प्राप्त करें बल्कि परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें। एक विष्वासी होने के नाते हमें प्रभु येसु को भेडषाला के सच्चे दरवाजे के रूप में स्वीकार करना होगा। येसु हमारी मुक्ति का द्वार हैं। येसु उनसे हमें आगाह करते हैं जो द्वार से नहीं आते और भेडों को चुरा कर ले जाते हैं, उन्हें मारते और नष्ट करते हैं। 

आज के पहले पाठ में संत पेत्रुस अन्य षिष्यों के साथ इस सच्चे चरवाहा के बारे में जो कि बलि चढाया गया है, घोषित करते हैं कि येसु वह भला गडेरिया है जो दुर्बल, कमज़ोर और पतित मानव के उद्धार हेतु खुद सूली पर कुर्बान हुआ है। यह सुनकर लोग पेत्रुस से पूछते हैं तो हमें क्या करना चाहिए। इस पर पेत्रुस उनसे कहते हैं आप में से हर कोई पश्चाताप करें और बपतिस्मा ग्रहण करें। करीब 3000 लोागों ने उस दिन अपने जीवन को बदला और सच्चे पश्चाताप के साथ बापतिस्मा ग्रहण किया और येसु द्वारा प्रदत उद्धार के भागिदार बन गये। 
संत पेत्रुस ने उन्हें सुसमाचार सुनाया; उन्होंने उन्हें प्रभु येसु का वचन सुनाया; भले चरवाहे की वाणी सुनाई। और सच्चे व भले चरवाहे की वाणी पहचान कर वे भटकी हुई भेडें उनके पास चली आई। यही है सच्चा पश्चाताप, यही है मन परिवर्तन, यही है मसीही बनने का सही अर्थ। 

प्रभु येसु हमारा अच्छा व भला चरवाहा है क्या हम उनकी सच्ची अच्छी भेडें हैं? क्या हम उनकी आवाज़ सुनकर उनके पास दौडी चली जाने वाली भेडें हैं? क्या हमारे कान हमें प्रेम करने वाले भले चरवाहे की आवाज़ को सुनने के लिए हमेषा खुले रहते हैं। क्या हमारे भले गडेरिये के वचन हमें आनन्द व हमारी आत्मा को सकून पहूंचाते हैं? या फिर हम इस संसारिक, धोखेबाज, लूटेरे, अथवा चोर की मसालेदार आवाज़, उसकी चिकनी चुपडी बातें, उसकी बहकाने वाली बातें संुनते व सांसारिकता में सुख पाते हैं। 

प्रभु येसु कहते हैं मेरी भेडें मेरी आवाज़ पहचनाती है। 

प्यारे विष्वासिया इस लोकडाउन व कोराना का कहर झेलने के लिए हम अकेले व निस्सहाय नहीं हैं। कोरोना व उससे भी बडी व गंभीर समस्या के उपर अधिकार रखने वाला येसु इस विपत्ति के समय हमारा हाथ थामेगा यदि हम उनकी आवाज़ को सुनें व उनके पास आ जायें। ये वक्त है उनके करीब आने का, ये वक्त है उनसे घनिष्टता का रिष्ता जोडने का, ये वक्त है उनका सामथ्र्य अपने जीवन में देखने का। आईये हम कोरोना के विरूद्ध ये लडाई अपने सामथ्र्य व बल से न लडकर अपना हाथ येसु के हाथ में दे दें। वो मौत की घाटी से भी सुरक्षित निकाल लेगा। आमेन।