पास्का का पाॅंचवा इतवार
प्रे च 6:१-7
1 पेत्रुस २:४-9
योहन 14 : 1-14
मेरे पिता के यहाॅं बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता। क्योंकि मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जाता हॅूं। मैं वहाॅं जा कर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आउॅंगा और तुम्हें अपने यहाॅं ले जाउॅंगा, जिससे जहाॅं मैं हूॅं, वहाॅं तुम भी रहो।’’
समय-समय पर यह ज़रूरी है कि हम स्वर्ग की महिमामय सच्चाई के ऊपर अपना ध्यान केंद्रित करें। स्वर्ग की सच्चाई वास्तविक है और ईश्वर इसे हमें देने के लिए तैयार हैं, वहाॅं एक दिन हम सब, पवित्र त्रियेक ईश्वर के साथ मिलकर एक हो जायेंगे। काश कि हम स्वर्ग की महानता को सही तरीके से समझ गये होते, तो हम आनन्द, उत्साह व शाॅंति से भरकर उसकी तरफ एक गहरी इच्छा से देखते, और हर समय हम स्वर्ग के बारे में सोचते।
पर दुर्भाग्यवश इस संसार को छोडने व अपने विधाता से मिलने की सोच हम में से कईयों को डराती है। शायद इसके पीछे मरण पश्चात की अनिश्चितता एक कारण है, और अपनों को पीछे छोड जाने का दुःखमय एहसास, साथ ही इस बात का डर की मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं।
लेकिन एक विश्वासी अथवा मसीही होने के नाते यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम स्वर्ग के प्रति एक गहरा प्रेम रखें तथा स्वर्ग के बारे में न केवल सही ज्ञान रखें परन्तु इस दुनिया में हमारे जीवन के उद्देष्य के बारे में भी हम सही-सही जानकारी रखें।
प्यारे विश्वासियों पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल इस संसार और स्वर्ग के बारे में बहुत ही स्पष्ट शिक्षा प्रदान करता है वचन कहता है 1 पेत्रुस 2ः11 में - ‘‘प्यारे भाईयों, आप इस दुनियाँ में परदेशी और प्रवासी हैं।’’
जि हाॅं प्रभु का वचन कहता है हम इस दुनिया में परदेशी अथवा प्रवासी हैं। याने ये दुनिया हामरा मूल वतन नहीं है। यदि ये दुनिया हमारा मूल वतन नहीं है तो फिर हम कहाॅं के हैं? फिलिपियों को लिखे संत पौलुस के पत्र 3ः20 में प्रभु का वचन हमें बताता है कि हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिादाता प्रभु ईसा मसीह की राह देखते रहते हैं। तो हमारी स्थाई नागरिकता स्वर्ग की है। जिसका अर्थ यह हुआ कि जहाॅं तक स्वर्ग का सवाल है हम वहाॅं के लिए परदेशी नहीं है। ऐफे. 2ः19 में प्रभु का वचन कहता है - आप लोग अब परदेशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि संतों के सह नागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं। तो प्यारे साथियों हम स्वर्ग में निवास करने वाले संतों के साथ स्वर्ग के सह नागरिक हैं।
इस संसार के बारे में तो हमने बहुत कुछ जानकारियाॅं हासिल की हैं पर आईये हम जानें कि स्वर्ग के बारे में वचन क्या कहता है- 2 कुरिं 5ः1-9 - ‘‘हम जानते हैं कि जब यह तम्बू, पृथ्वी पर हामारा यह घर, गिरा दिया जायेगा, तो हमें ईश्वर द्वारा निर्मित एक निवास मिलेगा। वह एक ऐसा घर हैै, जो हाथ का बना नहीं है और अनन्त काल तक स्वर्ग में बना रहेगा। इसलिए हम इस शरीर में कराहते रहते और उसके उपर अपना स्वर्गिक निवास धारण करने की तीव्र अभिलाषा करते हैं।’’ यहाॅं पर स्वर्ग को एक ऐसा भवन बताया गया है जो ईश्वर द्वारा निर्मित है। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ने हम से कहा है - ‘‘मेरे पिता के यहाॅं बहुत से निवास स्थान हैं. . . मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जा रहा हूॅं।’’ और यह घर सदा बना रहने वाला घर है। यह घर सबसे सुरक्षित घर है। यह न कभी जलेगा न भस्म होगा, यहाॅं न कोई चोर आयेगा न कोई बीमारी, न कोई महामारी और न कोई कोरोना वायरस। वचन 4 में लिखा है कि धरती पर के इस तंबू रहते समय तो हम दबते और कराहते रहते हैं। याने जब तक हम इस दुनिया रूपी तम्बू में हैं हम दुःखों और विपत्तियों से कराहते रहेंगे। प्रभु येसु चाहते हैं हम इन दुखों और परीक्षाओं से मुक्त होकर दुनिया के सारे सुखों से परे एक अनन्त आनन्द के भागिदार बन जायें। वचन 5 में लिखा है - ‘‘ईश्वर ने स्वयं उस उद्देष्य के लिए हमें गढा है और अग्रिम के रूप् में हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है।’’
ईश्वर का हमारे जीवन को लेकर यही उद्देष्य कि हम इस दुखों के तंबू को छोडकर उनके हाथों द्वारा निर्मित अनन्त निवास को अपना निवास बनायें। यदि ईश्वर का हमारे जीवन को लेकर यही उद्देष्य है तो फिर हम क्यों अपने जीवन के लिए कोई और उद्देष्य निर्धारित करें।
प्रकाशना ग्रंथ में भी स्वर्ग का वर्णन किया गया हैः जीवन के लिए मूल भूत आवश्यकताएं हैं - पानी, भोजन, स्वास्थ्य और घर। कोरोना वायरस ने अमीर और गरीब सबों को अपने-अपने घरों में कैद कर दिया है। और इंसान अपनी चार दिवारी में रहकर यह विचार कर रहा है कि जीने के लिए बहुत सारी दौलत, बहुत कीमती वस्त्र, आभुषण, रेस्त्रां और होटलों में भोजन, पार्टियाॅं, पिकनिकक, मंहगी याात्रायें करना ये सब कोई मायने नहीं रखता। महत्वपूर्ण है तो बस सबों के लिए पानी, भोजन, स्वास्थ्य और एक सुरक्षित रहने की व्यस्था। यही मूलभूत आवश्यकताएँ है और प्रकाशना ग्रंथ 22ः1-5 में वचन कहता है स्वर्ग में इन सब की पूर्ती भरपूरी से की जायेगी। वहाॅं फिर हमें किसी बात की कमी नहीं रहेगी। वहाॅं हमारे स्वर्गिक घर में न रोना, दर्द, और नही मृत्यु होगी। आज पूरा विश्व वैश्विक महामारी कोविड 19 से लड रहा है, आज यदि हमें कोई कह दे कि इस दुनिया में एक जगह है जहाॅं पर कोरोना वारस कभी नहीं आ सकता, वहाॅं कोरोना वायरस तो क्या कोई भी बिमारी अथवा मौत आपका पीछा करते हुए वहाॅं नहीं पहूॅंच पायेगी, तो हम में से कितने ही लोग वहाॅं जाने के लिए तैयार हो जायेंगे चाहे वो कितना ही दूर हो अथवा वहाॅं जाने का खर्चा कितना भी अधिक क्यों न हो। पिता ईश्वर ने तो एक ऐसे घर के बारे में हमें बताया है जहाॅं हमें कोई भी हानी नहीं होगी। परन्तु वहाॅं जाने के लिए हम कितना रूची व कितना उत्साह दिखाते हैं? वहाॅं जाने के लिए उत्सुक होने के बजाय हम इस दुनिया को ही अपना घर बनाये रखने की ख्वाहिश रखते हैं।
यदि हम इस दुनिया के नागरिक नहीं हैं, यदि हम यहाॅं परदेशी या प्रवासी हैं तो हमें इस दुनिया में रहते हुए क्या करना चाहिए अथवा कैसा आचरण करना चाहिए? हमारे देश के केरल राज्य के कई लोग विदेशों में प्रवासी के रूप में जाते हैं। मैं ने उनमें एक बात देखी है कि वे जहाॅं कहीं भी रहते हों, अपनी मूल भाषा, और संस्कृत को बरकरार रखते हैं। याने वे परदेश में रहते हैं पर परदेशियों जैसे नहीं बनते, परन्तु वे अपने मूल वतन की संस्कृति में ही जीते हैं। हमें भी ऐसा ही बनना होगा। यदि स्वर्ग हमारा मूल वतन है और यह दुनिया हामारे लिए परदेश ,तो हमें हमारे मूल वतन की संस्कृति को इस परदेश में बनाये रखना होगा। हमें स्वर्ग की संस्कृति को इस दुनिया में बनाये रखना होगा, और अपने मूल वतन को लौटने को हमें बेकरार होना होगा। ठिक उसी प्रकार जैसे इन दिनों अपने घरों से दूर पलायन कर काम पर गये मजदूर किसी भी हालत में अपने घरों को लौटने के लिए बे बकरार हैैं। क्योंकि अपना घर तो अपना घर होता है। आईये हम उसी प्रकार अपने वास्तिविक व अनन्त काल के घर के लिए हमेशा लालायित रहें जिसे हमारे स्वर्गिक पिता ने अपने हाथों से हमारे लिए बनाया है। एक ऐसा घर जो कभी नष्ट नहीं होगा और जहाॅं न कभी मौत होगी न भूख न प्यास और न बिमारी जिसे हमारे येसु मसीह ने हमारे लिए हम से पहले जाकर तैयार किया है ताकि जहाँ वे हैं वहां हम भी रह सकेंसे हमारे आमेन।
प्रे च 6:१-7
1 पेत्रुस २:४-9
योहन 14 : 1-14
मेरे पिता के यहाॅं बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता। क्योंकि मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जाता हॅूं। मैं वहाॅं जा कर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आउॅंगा और तुम्हें अपने यहाॅं ले जाउॅंगा, जिससे जहाॅं मैं हूॅं, वहाॅं तुम भी रहो।’’
समय-समय पर यह ज़रूरी है कि हम स्वर्ग की महिमामय सच्चाई के ऊपर अपना ध्यान केंद्रित करें। स्वर्ग की सच्चाई वास्तविक है और ईश्वर इसे हमें देने के लिए तैयार हैं, वहाॅं एक दिन हम सब, पवित्र त्रियेक ईश्वर के साथ मिलकर एक हो जायेंगे। काश कि हम स्वर्ग की महानता को सही तरीके से समझ गये होते, तो हम आनन्द, उत्साह व शाॅंति से भरकर उसकी तरफ एक गहरी इच्छा से देखते, और हर समय हम स्वर्ग के बारे में सोचते।
पर दुर्भाग्यवश इस संसार को छोडने व अपने विधाता से मिलने की सोच हम में से कईयों को डराती है। शायद इसके पीछे मरण पश्चात की अनिश्चितता एक कारण है, और अपनों को पीछे छोड जाने का दुःखमय एहसास, साथ ही इस बात का डर की मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं।
लेकिन एक विश्वासी अथवा मसीही होने के नाते यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम स्वर्ग के प्रति एक गहरा प्रेम रखें तथा स्वर्ग के बारे में न केवल सही ज्ञान रखें परन्तु इस दुनिया में हमारे जीवन के उद्देष्य के बारे में भी हम सही-सही जानकारी रखें।
प्यारे विश्वासियों पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल इस संसार और स्वर्ग के बारे में बहुत ही स्पष्ट शिक्षा प्रदान करता है वचन कहता है 1 पेत्रुस 2ः11 में - ‘‘प्यारे भाईयों, आप इस दुनियाँ में परदेशी और प्रवासी हैं।’’
जि हाॅं प्रभु का वचन कहता है हम इस दुनिया में परदेशी अथवा प्रवासी हैं। याने ये दुनिया हामरा मूल वतन नहीं है। यदि ये दुनिया हमारा मूल वतन नहीं है तो फिर हम कहाॅं के हैं? फिलिपियों को लिखे संत पौलुस के पत्र 3ः20 में प्रभु का वचन हमें बताता है कि हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिादाता प्रभु ईसा मसीह की राह देखते रहते हैं। तो हमारी स्थाई नागरिकता स्वर्ग की है। जिसका अर्थ यह हुआ कि जहाॅं तक स्वर्ग का सवाल है हम वहाॅं के लिए परदेशी नहीं है। ऐफे. 2ः19 में प्रभु का वचन कहता है - आप लोग अब परदेशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि संतों के सह नागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं। तो प्यारे साथियों हम स्वर्ग में निवास करने वाले संतों के साथ स्वर्ग के सह नागरिक हैं।
इस संसार के बारे में तो हमने बहुत कुछ जानकारियाॅं हासिल की हैं पर आईये हम जानें कि स्वर्ग के बारे में वचन क्या कहता है- 2 कुरिं 5ः1-9 - ‘‘हम जानते हैं कि जब यह तम्बू, पृथ्वी पर हामारा यह घर, गिरा दिया जायेगा, तो हमें ईश्वर द्वारा निर्मित एक निवास मिलेगा। वह एक ऐसा घर हैै, जो हाथ का बना नहीं है और अनन्त काल तक स्वर्ग में बना रहेगा। इसलिए हम इस शरीर में कराहते रहते और उसके उपर अपना स्वर्गिक निवास धारण करने की तीव्र अभिलाषा करते हैं।’’ यहाॅं पर स्वर्ग को एक ऐसा भवन बताया गया है जो ईश्वर द्वारा निर्मित है। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ने हम से कहा है - ‘‘मेरे पिता के यहाॅं बहुत से निवास स्थान हैं. . . मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जा रहा हूॅं।’’ और यह घर सदा बना रहने वाला घर है। यह घर सबसे सुरक्षित घर है। यह न कभी जलेगा न भस्म होगा, यहाॅं न कोई चोर आयेगा न कोई बीमारी, न कोई महामारी और न कोई कोरोना वायरस। वचन 4 में लिखा है कि धरती पर के इस तंबू रहते समय तो हम दबते और कराहते रहते हैं। याने जब तक हम इस दुनिया रूपी तम्बू में हैं हम दुःखों और विपत्तियों से कराहते रहेंगे। प्रभु येसु चाहते हैं हम इन दुखों और परीक्षाओं से मुक्त होकर दुनिया के सारे सुखों से परे एक अनन्त आनन्द के भागिदार बन जायें। वचन 5 में लिखा है - ‘‘ईश्वर ने स्वयं उस उद्देष्य के लिए हमें गढा है और अग्रिम के रूप् में हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है।’’
ईश्वर का हमारे जीवन को लेकर यही उद्देष्य कि हम इस दुखों के तंबू को छोडकर उनके हाथों द्वारा निर्मित अनन्त निवास को अपना निवास बनायें। यदि ईश्वर का हमारे जीवन को लेकर यही उद्देष्य है तो फिर हम क्यों अपने जीवन के लिए कोई और उद्देष्य निर्धारित करें।
प्रकाशना ग्रंथ में भी स्वर्ग का वर्णन किया गया हैः जीवन के लिए मूल भूत आवश्यकताएं हैं - पानी, भोजन, स्वास्थ्य और घर। कोरोना वायरस ने अमीर और गरीब सबों को अपने-अपने घरों में कैद कर दिया है। और इंसान अपनी चार दिवारी में रहकर यह विचार कर रहा है कि जीने के लिए बहुत सारी दौलत, बहुत कीमती वस्त्र, आभुषण, रेस्त्रां और होटलों में भोजन, पार्टियाॅं, पिकनिकक, मंहगी याात्रायें करना ये सब कोई मायने नहीं रखता। महत्वपूर्ण है तो बस सबों के लिए पानी, भोजन, स्वास्थ्य और एक सुरक्षित रहने की व्यस्था। यही मूलभूत आवश्यकताएँ है और प्रकाशना ग्रंथ 22ः1-5 में वचन कहता है स्वर्ग में इन सब की पूर्ती भरपूरी से की जायेगी। वहाॅं फिर हमें किसी बात की कमी नहीं रहेगी। वहाॅं हमारे स्वर्गिक घर में न रोना, दर्द, और नही मृत्यु होगी। आज पूरा विश्व वैश्विक महामारी कोविड 19 से लड रहा है, आज यदि हमें कोई कह दे कि इस दुनिया में एक जगह है जहाॅं पर कोरोना वारस कभी नहीं आ सकता, वहाॅं कोरोना वायरस तो क्या कोई भी बिमारी अथवा मौत आपका पीछा करते हुए वहाॅं नहीं पहूॅंच पायेगी, तो हम में से कितने ही लोग वहाॅं जाने के लिए तैयार हो जायेंगे चाहे वो कितना ही दूर हो अथवा वहाॅं जाने का खर्चा कितना भी अधिक क्यों न हो। पिता ईश्वर ने तो एक ऐसे घर के बारे में हमें बताया है जहाॅं हमें कोई भी हानी नहीं होगी। परन्तु वहाॅं जाने के लिए हम कितना रूची व कितना उत्साह दिखाते हैं? वहाॅं जाने के लिए उत्सुक होने के बजाय हम इस दुनिया को ही अपना घर बनाये रखने की ख्वाहिश रखते हैं।
यदि हम इस दुनिया के नागरिक नहीं हैं, यदि हम यहाॅं परदेशी या प्रवासी हैं तो हमें इस दुनिया में रहते हुए क्या करना चाहिए अथवा कैसा आचरण करना चाहिए? हमारे देश के केरल राज्य के कई लोग विदेशों में प्रवासी के रूप में जाते हैं। मैं ने उनमें एक बात देखी है कि वे जहाॅं कहीं भी रहते हों, अपनी मूल भाषा, और संस्कृत को बरकरार रखते हैं। याने वे परदेश में रहते हैं पर परदेशियों जैसे नहीं बनते, परन्तु वे अपने मूल वतन की संस्कृति में ही जीते हैं। हमें भी ऐसा ही बनना होगा। यदि स्वर्ग हमारा मूल वतन है और यह दुनिया हामारे लिए परदेश ,तो हमें हमारे मूल वतन की संस्कृति को इस परदेश में बनाये रखना होगा। हमें स्वर्ग की संस्कृति को इस दुनिया में बनाये रखना होगा, और अपने मूल वतन को लौटने को हमें बेकरार होना होगा। ठिक उसी प्रकार जैसे इन दिनों अपने घरों से दूर पलायन कर काम पर गये मजदूर किसी भी हालत में अपने घरों को लौटने के लिए बे बकरार हैैं। क्योंकि अपना घर तो अपना घर होता है। आईये हम उसी प्रकार अपने वास्तिविक व अनन्त काल के घर के लिए हमेशा लालायित रहें जिसे हमारे स्वर्गिक पिता ने अपने हाथों से हमारे लिए बनाया है। एक ऐसा घर जो कभी नष्ट नहीं होगा और जहाॅं न कभी मौत होगी न भूख न प्यास और न बिमारी जिसे हमारे येसु मसीह ने हमारे लिए हम से पहले जाकर तैयार किया है ताकि जहाँ वे हैं वहां हम भी रह सकेंसे हमारे आमेन।
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