Friday, 21 August 2020

21st Sunday in Ordinary time Year A : Hindi Sermon

 23 इतवार 

इसायाह 22 : 19-23 

Matthew 16:13-20

आज के पहले पाठ में हम पढ़ते हैं 22:22 में - "मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कंधे पर रख दूंगा।  यदि वह खोलेगा तो कोई नहीं बंद कर सकेगा।  यदि वह बंद करेगा, तो कोई नहीं खोल सकेगा। " यहाँ पर यह बात एलियाकिम के सन्दर्भ में कही गई है जिसे तत्कालीन प्रसंग में शेबना नामक व्यक्ति के स्थान पर महल प्रपन्धक बनाया जाता है और कहा जाता है कि दाऊद के घराने की कुंजी उसके कंधे  पर राखी जाएगी। हम ताला  वहीं पर लगते हैं जहाँ मूल्यवान चीज़ हो।  और ताला लगाने का आशय होता है कि उस स्थान पर हर कोई ना जा सके।  किसी के हाथ में ऐसे स्थान की चाभी देने का अर्थ होता है उल व्यक्ति को वहां जाने का अधिकार है।    आज के वचन में एलियाकिम को ना केवल चाभी दी गयी पर उसे खोलने और बंद करने का पूर्ण अधिकार दिया गया।  उनके खोलने पर अथवा उनके द्वारा अनुमति देने पर ही कोई भीतर आ सकता है या फिर उन्होंने अनुमति नहीं दी तो कोई अंदर नहीं आ सकता।  

यह तो राजमहल में प्रवेश करने के सन्दर्भ में है।  पर ऐसी ही कुछ बात आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने शिष्य पेत्रुस से कहते हैं - तुम पेत्रुस अर्थात चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाउँगा।  प्रभु येसु ने अपनी कलीसिया का निर्माण पेत्रुस रूपी चाटन पर किया है।  सबसे पहली ध्यान देने योग्य बात यह है कि कलीसिया का  निर्माण कोई पास्टर अथवा फादर नहीं करते, परन्तु प्रभु येसु स्वयं करते हैं।  और प्रभु येसु ने जिस कलीसिया निर्माण किया है वो केवल एक ही कलीसिया है जिसे उन्होने पेत्रुस रूपी चट्टान पर बनाया है, जो आज भी उसी चट्टान पर उनके उत्तराधिकारी की अगवाई में मज़बूत कड़ी है।  और वह है कैथोलिक कलीसिया।  

पेत्रुस को प्रभु  आगे कहतें है - " मै तुम्हें स्वर्ग राज्य की कुंजियाँ प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।"

नबी इसायाह के ग्रन्थ की घटना में सांसारिक राजमहल में प्रवेश की बात बताई गई है परन्तु सुसमाचार में स्वर्गराज्य में प्रवेश की बात कही गई है।  प्रभु येसु जो कि इस संसार में हम सब पापी जनों का उद्धार करने आये, उन्होंने अपने इस मुक्ति कार्य को कलवारी पर आने बलिदान द्वारा सम्पन्न किया।  और उनके द्वारा कमाए उद्दार को हॉसिल करने का ज़रिया उन्होंने कलीसिया बनाया।  उस उद्दार के जीवन में प्रवेश करने या न करने देने का अधिकार कैलिसिया के पास है जिसका उपयोग संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी संत पिता याने पोप और उनके साथ उनके उस प्रेरितिक अधिकार में सहभागि होते हुए सभी बिशप और पुरोहित गण करते हैं।  याने संत पेत्रुस को दिए गए अधिकार का उपयोग संत पिता, बिशप और पुरोहितगण करते हैं।  इसलिए आज के सुसमाचार के अनुसार स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति देने व ना देने के  इस अधिकार को प्रयोग कैथोलिक कलीसिया में  पवित्र संस्कारों  व अन्य प्रार्थनाओं के माध्यम से किया जाता है।  सातों संस्कारों का उद्देश्य यही है की जो कोई उन्हें गृनहण करता है उनके लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाये।  बपतिस्मा, पापस्वीकार, पवित्र यूखरिस्त, दृढीकरण, रोगी विलेपन, पुरोहिताई और विवाह इन सब संस्कारों में निहित कृपा हमारे लिए स्वर्ग का द्वार खोलती है।  इसलिए संस्कारों को उचित रीती से ग्रहण करना हमारी आत्मा के उद्दार के लिए बेहद ज़रूरी है।  हम यह कह सकते हैं कि संत पेत्रुस के हाथों में दी गयी चाभियाँ और कुछ नहीं पर पवित्र संस्कार ही है।  

संत पेत्रुस पेंटेकोस्ट के दिन संस्कार रूपी चाभी का उपयोग किया और 3000 लोगों को बपतिस्मा देकर  स्वर्ग का द्वार खोल दिया।  उसी प्रकार पहले तो वे गैर यहूदियों के लिए इस चाभी के उपयोग के पक्ष्य में 

उद्धार की चाभी केे पक्ष में नहीं थे परन्तु प्रेरितों की किताब 10 में पढते हें कि पेत्रुस को एक दिेव्य दर्शन देते हैं और गैर यहूदियों के उद्धार की शिक्षा का संदेश सुनाते हैं। तब पेत्रुस बोल उठता है — ''मैं अब अच्छी तरह समझ गया हूं कि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। और तब 11 में हम पढते पेत्रुस येरूसालेम की महासभा में इस बात को स्पष्ट करते हैं कि उद्धार किसी एक कौम या समुदाय के लिए नहीं परन्तु सभी  जातियों और राष्टों के लिए है। और वे उन्हें उस घटना का वर्णन करते हैं जिसमें स्वर्गदूत ने कर्नेलियुस से कहा था कि पेत्रुस को अपने घर बुलाईए ''वह जो शिक्षा सुनायेंगे उसके द्वारा आप को और सारे परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी।''11र:14 और आगे वचन में हम पढते हैं कि जैसे ही पेत्रुस ने बोलना प्रारम्भ किया पत्रवत्र आत्मा उन लोगों पर उतरा। तो इस प्रकार से पेत्रुस ने वहां उस चाभी का उपयोग करते हुए गैर यहूदियों के लिए भी मुक्ति का द्वार खोला। और आज भी कलीसिया में पुरोहित, बिशप और संत पिता अपने इस अधिकार व शक्ति का उपयोग करते हुए हज़ारों—लाखों आत्माओं के लिए उद्धार का दरवाज़ा खोल रहे हैं। 

प्यारे विश्वासियों किसी भी प्रकार की गलत शिक्षा के शिकार बनकर सच्चे विश्वास को छोडकर कहीं और न भटक जायें। उद्धार की चाभियां प्रभु येसु ने स्वयं अपने प्रेरितों को दी है और उनके उत्तराधिकारी प्रेरितों की इसी धरोहर को जारी रखते हुए मुक्ति के कार्य को आगे बढा रहे हैं। प्रभु येसु ने दो हज़ार साल पहले एक ही सच्ची कलीसिया ठहराई थी जो प्रारम्भ से ही कैथोलिक कलीसिया के नाम से जानी जाती है। पवित्र यूखरिस्त, पवित्र पाप स्वीकार संस्कार औरपुरोहिताई जैसे संस्कार इसी कलीसिया में पाये जाते हैं जिन्हें स्वयं प्रभु येसु ने स्थापित किया है जिसका वर्णन हम पवित्र सुसमाचारों में पाते हैं। जैसा कि संत योहन 20:23 में हम पढते हैं कि किस प्रकार प्रभु ने अपने प्रेरितों को दूसरों के पाप पापस्वीकार संस्कार के द्वारा माफ करने का इन शब्दों में अधिकार दिया — ''तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।'' वैसे ही संत लूकस 22:19 में पवित्र यूखरिस्त की स्थापना की — ''उन्होंने रोटी ली और धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, "यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है। यह मेरी स्मृति में किया करो"। और प्रभु येसु ने संत योहन 6:53—54 में स्पष्ट रूप से कहा है — "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि तुम मानव पुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा। जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है और मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा। शैतान हम बहकाये ना, कोई भी हमें पथभ्रष्ट ना करे, हम एक ही पवित्र, कैथोलिक, और प्रेरितिक कलीसिया से जुडे रहें और इस कलीसिया में रहते हुए और इस कलीसिया के द्वारा हमें प्रदान किये गये साधनों द्वारा याने संस्कारों द्वारा हम मुक्ति के द्वार से स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करें। आमेन। 

Thursday, 13 August 2020

 

20th Sunday year A


आज के तीनों पाठों से एक विषय जो उभर के आता है वो है : ईश्वर द्वारा यहूदियों और गैर यहूदियों को ईश्वर के एक ही परिवार के रूप में एकत्रित करना। पहले पाठ में नबी इसायस से ईश्वर कहते हैं कि मेरा घर सब रष्टों के लिए एक प्रार्थना का घर होगा। और संत पौलुस कहते हैं कि वे गैर यहूदियों के लिए प्रेरित चुने गये हैं। और सुसमाचार में प्रभु येस इस्राएल से बाहर पडोसी मुल्क की जमींन पर सुसमाचार सुनाने जाते हैं। और वहाँ पर एक कनानी स्त्री याने गैर यहूदी स्त्री प्रभु को पुकारते हुए कहती है  "प्रभु दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।"

आज दुभाग्यवश हमारे बहुत सारे बच्चे बूरी आत्मा, बुराई की ताकत, या फिर शैतान के द्वारा सताये जा रहे हैं। ये बुराई की आत्मायें विभिन्न रूपों में आज की युवा पीढी की जिंदगी को बरबाद कर रही हैं: कहीं विभिन्न प्रकार के नशों की आत्मा है तो कहीं पापमय रिश्तों की आत्मा; कहीं विद्रोही आत्मा है तो कहीं हिंसा की आत्मा। कहीं मोबाइल, इंटरनेट और सोश्यल मिडिया की मनोग्रस्ती की आत्मा है तो कहीं हिरो वरशिप की आत्मा। हमारे बच्चे शैतान के चंगुल में फंसते जा रहे हैं।

उस स्त्री अपनी बेटी की समस्या को पहचान लिया कि यह शैतान के वश में है। हमारे बच्चे शैतान के वश में हैं पर हम यह पहचान नहीं पा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि वह स्त्री कहती हैमुझ पर दया कीजिए। वो यह नहीं कहती कि मेरी बेटी पर दया कीजिए। दूसरे शब्दों में वो कहती है मेरी सहायता कीजिए। प्रभु येसु उस नारी के विश्वास को तीन बार परखते हैं।

पहली बार उसकी प्रार्थना को नज़अंदाज करके। वे कुछ जवाब ही नहीं देते। दूसरी बार यह कह कर कि मैं केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ। दूसरे शब्दों में कि तुम उस परिवार की सदस्य नहीं हो जिसके लिए मैं भेजा गया हूँ। और तीसरी बार यह कहकर कि बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है। अब यह सुनकर पथभ्रष्ट हो जायें कि येसु ने उस नारी से इस प्रकार की हल्की भाषा का उपयोग क्यों किया। यह उस नारी की विनम्रता की परख थी। प्रभु उसकी विनम्रता को परख रहेथे। यदि वह नारी अहंकारी होती तो येसु को सीधे जवाब देतीमैं तो यह सोचकर तुम्हारे पास आयी थी कि तुम एक धार्मिक, पवित्र और भले इंसान हो, परेशान दुखित लोगों की मदद करते हो। तुम से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी। अगर तुम्हारी निगाहों में हम कुत्ते ही हैं तो नहीं चाहिए तुम्हारी मेहरबानी, नहीं चाहिए कोई चंगाई। मैं चलती हूँ। परन्तु नहीं; वह येसु की भाषा और शब्दों पर नहीं गई लेकिन उसने येसु के दिल की भाषा को समझ लिया था। वह जितनी विनम्र थी उतनी ही बुद्धिमान थी। वह जानती थी कि जो बोला गया है वह कुछ और है और जो दिल में चल रहा है वो कुछ और है। और उसने चार प्रकार से प्रभु येसु के सभी सवालों के जवाब पेश किये जिसका उपयोग आप और मैं सब अपनी प्रार्थनाओं में, अपने निवेदनों में कर सकते हैं।

पहला: वह अपनी प्रार्थना में दृढ बनी रही। उसने हार नहीं मानी। उसने अपना विश्वास और मनोबल कमजोर नहीं होने दिया। उसने उम्मीद बरकरार रखी। वह दृढ बनी रही।

हमारे विश्वास कितना बडा अथवा गहरा है? हम हमारी प्रार्थनाओं में कितने दृढ़ रहते हैं? हमारी प्रार्थनाओं का तुरन्त जवाब मिलने पर हम कितने समय तक संयम दृढता के साथ विश्वास उम्मीद बरकरार रखते हुए, प्रार्थना जारी रखते हैं। जब कोरोना महामारी शुरू हुई हम सब ने प्रारम्भ में अपनी प्रार्थओं में कितनी दृढ़ता लगन दिखाई! पर अब जब महीनों की प्रार्थओं के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, हमें हमारी प्रार्थनायें बेअसर लग रही हैं। कईयों ने तो प्रार्थना करना ही छोड दिया है। कोई प्रार्थना कर भी रहे हैं तो भी कोई खास उम्मीद से नहीं। यह कनानी नारी आज हमें चुनौती दे रही है कि प्रार्थना का जवाब आने तक बिना विचलित हुए, बिना हिम्मत हारे, बिनाहताश हुए हम प्रार्थना में लगे रहें। हमने सुसमाचार में पढा कि वह नारी प्रार्थना की सुनवाई होने तक बिना विचलित होए प्रार्थना करती रही।

दूसरा: उसने शिष्यों की मध्यस्थता ली। शिष्यों ने उसकी ओर से मध्यस्थता करते हुए कहा — "उसकी बात मानकर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती रही है" शिष्य बोले प्रभु उसकी प्रार्थना सुन लीजिए, वो चुप रहने वाली नहीं है।

आज भी प्रभु के शिष्यों की मध्यस्थ प्रार्थना की अहमियत है। संतों की प्रार्थना का अपना स्था है। जैसे आज के सुसमाचार में शिष्यों ने उस स्त्री के लिए मध्यस्थता की वैसे ही मरियम ने काना के भोज में उस विवाह वाले परिवार के लिए मध्यस्थता की थी। और दोनों ही घटनाओं में हम देखते हैं प्रभु कोई चमत्कार करने की मंशा तो नहीं रखते हैं फिर भी वे अंत में दोनों घटनाओं में उनकी मदद ज़रूरकरते हैं। जरूर आज के सुसमाचार में प्रभु उस नारी की विनम्रता और गहरे विश्वास से प्रभावित होकर उसकी बेटी को चंगा करते हैं परन्तु शिष्यों की मध्यस्थता की भूमिका को सिरे से खारिज़ करना भी उचित प्रतित नहीं होता।

तीसरा: वह प्रभु के करीब आती है और झूककर उन्हें प्रणाम करती है ओर कहती है प्रभु मेरी सहायता कीजिए।

जब हम प्रार्थना करते हैं हमें प्रभु के करीब आना है।  हमें प्रभु से नज़दिकी रिश्ता कायम करते हुए विनम्रता से येसु की प्रभुता को स्वीकार करके उनकी आरधना में अपना सिर झूकाना होगा तब हमारी प्रार्थना की आशिष चंगाई का उत्तर लेकर हमारे पास लौटेगी।

 

चौथा: उसने गुस्सा दिखाया नाराज़गी, पर वह बडी नरमी से पेश आयी और कहा  "जी हाँ, प्रभु! फिर भी स्वामी की मेज़ से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं"

हम पिल्ले ही सही, पर वे भी तो मालिक की मेज़ से गिरे हुए चूर के हकदार हैं। कितनीबडी  विनम्रता। वो कह रही थी कि जि हाँ, मैं नाकाबिल हूँ, इसके कि आपके लोगों जैसे आपकी  मेहरबानी की हकदार बनूँ पर, पर मुझ नाकाबिल पर आपकी रहम की एक बूँद भी गिर जाये तो वो भी मेरे लिए काफी है। कितना दृढ विश्वास और कितनी विनम्रता।

और उसके विश्वास और और उसकी विनम्रता ने सचमुच में येसु को प्रभाविता किया। और वे बोल उठे — "नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।" और उसी क्षण उसकी बेटी चंगी हो गई।

 

आईये इस कोरोना काल में हम हिम्मत हारें। हमारा विश्वास कमज़ोर हो। हम दृढ बने रहें। और प्रभु का यह वचन सुनने तक डटे रहें "तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।" जो तुमने माँगा है, तुम्हारे हर मुराद पूरी हो। आमेन।