Thursday, 13 August 2020

 

20th Sunday year A


आज के तीनों पाठों से एक विषय जो उभर के आता है वो है : ईश्वर द्वारा यहूदियों और गैर यहूदियों को ईश्वर के एक ही परिवार के रूप में एकत्रित करना। पहले पाठ में नबी इसायस से ईश्वर कहते हैं कि मेरा घर सब रष्टों के लिए एक प्रार्थना का घर होगा। और संत पौलुस कहते हैं कि वे गैर यहूदियों के लिए प्रेरित चुने गये हैं। और सुसमाचार में प्रभु येस इस्राएल से बाहर पडोसी मुल्क की जमींन पर सुसमाचार सुनाने जाते हैं। और वहाँ पर एक कनानी स्त्री याने गैर यहूदी स्त्री प्रभु को पुकारते हुए कहती है  "प्रभु दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।"

आज दुभाग्यवश हमारे बहुत सारे बच्चे बूरी आत्मा, बुराई की ताकत, या फिर शैतान के द्वारा सताये जा रहे हैं। ये बुराई की आत्मायें विभिन्न रूपों में आज की युवा पीढी की जिंदगी को बरबाद कर रही हैं: कहीं विभिन्न प्रकार के नशों की आत्मा है तो कहीं पापमय रिश्तों की आत्मा; कहीं विद्रोही आत्मा है तो कहीं हिंसा की आत्मा। कहीं मोबाइल, इंटरनेट और सोश्यल मिडिया की मनोग्रस्ती की आत्मा है तो कहीं हिरो वरशिप की आत्मा। हमारे बच्चे शैतान के चंगुल में फंसते जा रहे हैं।

उस स्त्री अपनी बेटी की समस्या को पहचान लिया कि यह शैतान के वश में है। हमारे बच्चे शैतान के वश में हैं पर हम यह पहचान नहीं पा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि वह स्त्री कहती हैमुझ पर दया कीजिए। वो यह नहीं कहती कि मेरी बेटी पर दया कीजिए। दूसरे शब्दों में वो कहती है मेरी सहायता कीजिए। प्रभु येसु उस नारी के विश्वास को तीन बार परखते हैं।

पहली बार उसकी प्रार्थना को नज़अंदाज करके। वे कुछ जवाब ही नहीं देते। दूसरी बार यह कह कर कि मैं केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ। दूसरे शब्दों में कि तुम उस परिवार की सदस्य नहीं हो जिसके लिए मैं भेजा गया हूँ। और तीसरी बार यह कहकर कि बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है। अब यह सुनकर पथभ्रष्ट हो जायें कि येसु ने उस नारी से इस प्रकार की हल्की भाषा का उपयोग क्यों किया। यह उस नारी की विनम्रता की परख थी। प्रभु उसकी विनम्रता को परख रहेथे। यदि वह नारी अहंकारी होती तो येसु को सीधे जवाब देतीमैं तो यह सोचकर तुम्हारे पास आयी थी कि तुम एक धार्मिक, पवित्र और भले इंसान हो, परेशान दुखित लोगों की मदद करते हो। तुम से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी। अगर तुम्हारी निगाहों में हम कुत्ते ही हैं तो नहीं चाहिए तुम्हारी मेहरबानी, नहीं चाहिए कोई चंगाई। मैं चलती हूँ। परन्तु नहीं; वह येसु की भाषा और शब्दों पर नहीं गई लेकिन उसने येसु के दिल की भाषा को समझ लिया था। वह जितनी विनम्र थी उतनी ही बुद्धिमान थी। वह जानती थी कि जो बोला गया है वह कुछ और है और जो दिल में चल रहा है वो कुछ और है। और उसने चार प्रकार से प्रभु येसु के सभी सवालों के जवाब पेश किये जिसका उपयोग आप और मैं सब अपनी प्रार्थनाओं में, अपने निवेदनों में कर सकते हैं।

पहला: वह अपनी प्रार्थना में दृढ बनी रही। उसने हार नहीं मानी। उसने अपना विश्वास और मनोबल कमजोर नहीं होने दिया। उसने उम्मीद बरकरार रखी। वह दृढ बनी रही।

हमारे विश्वास कितना बडा अथवा गहरा है? हम हमारी प्रार्थनाओं में कितने दृढ़ रहते हैं? हमारी प्रार्थनाओं का तुरन्त जवाब मिलने पर हम कितने समय तक संयम दृढता के साथ विश्वास उम्मीद बरकरार रखते हुए, प्रार्थना जारी रखते हैं। जब कोरोना महामारी शुरू हुई हम सब ने प्रारम्भ में अपनी प्रार्थओं में कितनी दृढ़ता लगन दिखाई! पर अब जब महीनों की प्रार्थओं के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, हमें हमारी प्रार्थनायें बेअसर लग रही हैं। कईयों ने तो प्रार्थना करना ही छोड दिया है। कोई प्रार्थना कर भी रहे हैं तो भी कोई खास उम्मीद से नहीं। यह कनानी नारी आज हमें चुनौती दे रही है कि प्रार्थना का जवाब आने तक बिना विचलित हुए, बिना हिम्मत हारे, बिनाहताश हुए हम प्रार्थना में लगे रहें। हमने सुसमाचार में पढा कि वह नारी प्रार्थना की सुनवाई होने तक बिना विचलित होए प्रार्थना करती रही।

दूसरा: उसने शिष्यों की मध्यस्थता ली। शिष्यों ने उसकी ओर से मध्यस्थता करते हुए कहा — "उसकी बात मानकर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती रही है" शिष्य बोले प्रभु उसकी प्रार्थना सुन लीजिए, वो चुप रहने वाली नहीं है।

आज भी प्रभु के शिष्यों की मध्यस्थ प्रार्थना की अहमियत है। संतों की प्रार्थना का अपना स्था है। जैसे आज के सुसमाचार में शिष्यों ने उस स्त्री के लिए मध्यस्थता की वैसे ही मरियम ने काना के भोज में उस विवाह वाले परिवार के लिए मध्यस्थता की थी। और दोनों ही घटनाओं में हम देखते हैं प्रभु कोई चमत्कार करने की मंशा तो नहीं रखते हैं फिर भी वे अंत में दोनों घटनाओं में उनकी मदद ज़रूरकरते हैं। जरूर आज के सुसमाचार में प्रभु उस नारी की विनम्रता और गहरे विश्वास से प्रभावित होकर उसकी बेटी को चंगा करते हैं परन्तु शिष्यों की मध्यस्थता की भूमिका को सिरे से खारिज़ करना भी उचित प्रतित नहीं होता।

तीसरा: वह प्रभु के करीब आती है और झूककर उन्हें प्रणाम करती है ओर कहती है प्रभु मेरी सहायता कीजिए।

जब हम प्रार्थना करते हैं हमें प्रभु के करीब आना है।  हमें प्रभु से नज़दिकी रिश्ता कायम करते हुए विनम्रता से येसु की प्रभुता को स्वीकार करके उनकी आरधना में अपना सिर झूकाना होगा तब हमारी प्रार्थना की आशिष चंगाई का उत्तर लेकर हमारे पास लौटेगी।

 

चौथा: उसने गुस्सा दिखाया नाराज़गी, पर वह बडी नरमी से पेश आयी और कहा  "जी हाँ, प्रभु! फिर भी स्वामी की मेज़ से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं"

हम पिल्ले ही सही, पर वे भी तो मालिक की मेज़ से गिरे हुए चूर के हकदार हैं। कितनीबडी  विनम्रता। वो कह रही थी कि जि हाँ, मैं नाकाबिल हूँ, इसके कि आपके लोगों जैसे आपकी  मेहरबानी की हकदार बनूँ पर, पर मुझ नाकाबिल पर आपकी रहम की एक बूँद भी गिर जाये तो वो भी मेरे लिए काफी है। कितना दृढ विश्वास और कितनी विनम्रता।

और उसके विश्वास और और उसकी विनम्रता ने सचमुच में येसु को प्रभाविता किया। और वे बोल उठे — "नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।" और उसी क्षण उसकी बेटी चंगी हो गई।

 

आईये इस कोरोना काल में हम हिम्मत हारें। हमारा विश्वास कमज़ोर हो। हम दृढ बने रहें। और प्रभु का यह वचन सुनने तक डटे रहें "तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।" जो तुमने माँगा है, तुम्हारे हर मुराद पूरी हो। आमेन।

 

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