19th Sunday in Ordinary time
ख्रीस्त में प्यारे विश्ववासियों पिछले सप्ताह हमने पवित्र सुसमाचार में पढा कि येसु ने रोटियों का चमत्कार करके, पाँच हजार लोगों से अधिक लोगों को भेरपेट भोजन कराया। इसके तुरन्त बाद वे अपने शिष्यों को नाव पर सवार होकर समुद्र के उस पार जाने के लिए बाध्य करते हैं। शब्दों पर ज़रा गौर फरमाईये। येसु ने अपने शिष्यों को उस पार जाने के लिए बाध्य किया। याने उन्हें जबदस्ती वहॉं से जाने को कहा। आखिर क्यों? वहाँ ऐसा क्या हो गया था? संत योहन अपने सुसमाचार में इस बात को स्पष्ट करते हैं। संत योहन 6:14— 15 में हम पढते हैं — ''लोग येसु का यह चमत्कार देखकर बोल उठे, निश्चय ही यह वे नबी हैं, जो आने वाले हैं। येसु समझ गये कि वे आ कर उन्हें राजा बनाने के लिए पकड ले जायेंगे, इसलिए वे फिर अकेले ही पहाडी पर चले गये।''
प्रभु येसु वहाँ किसी प्रकार का असंमजस पैदा करना नहीं चाहते थे। यहूदियों के लिए हेरोद पहले से राजा था और दूसरी और प्रभु येसु सांसारिक राजा बनने के लिए इस संसार में नहीं आये थे। इसलिए वे अपनी पहचान लोगों को एक सांसारिक राजा के रूप में नहीं देना चाहते थे।
इसके आगे हम पढते हैं कि वे लोगों को विदा करके पहाडी पर प्रार्थना करने चले जाते हैं। प्रभु येसु के लिए प्रार्थना एक बहुत ही अहम काम था। वे हमेशा अपना दिनभर का काम निपटाकर एकांत में प्रार्थना करने निकल जाये करते थे। उनके लिए प्रार्थना का अर्थ कुछ माँगना नहीं था जैसा कि हम से कई लोग करते हैं। प्रार्थना करना याने प्रभु को हमारी आवश्यक्ताओं लिस्ट दे दो और कहो मुझे ये चाहिए, मुझे वो चाहिए, ऐसा कर दो, वैसा कर दो आदि। सही मायने में यह कोई प्रार्थना नहीं है। प्रभु येसु के लिए प्रार्थना का अर्थ था एकांत में अपने पिता से मिलना, उनसे बातें करना, उनके प्यार से खुद को भरना व अपना प्यार पिता को देना। वे यही करने के लिए अकेले में जाया करते थे।
मैं एक कैथलिक पुरोहित हूँ। हम लोग प्रभु की सेवकाई में अपना पूरा जीवन समर्पित करते हैं, इसलिए हम पारिवारिक जीवन से खुद को अलग रखते हैं। फिर भी साल में एक बार हम छुट्टी पर अपने घर जाते हैं। ये छुट्टियों के दिन हमारे लिए बडे खास होते हैं क्योंकि हम इन दिनों अपने प्रिय जनों से अपने माता—पिता से मिल पाते हैं। मैं जब घर जाता हूँ तो मेरी माँ मुझे अपनी बाहों में भरकर मुझे चूमती और बहुत सारा लाड दिखाती है। और मेरी भी ख्वाहिश यही रहती है कि मैं मेरे माता—पिता के साथ कुछ समय बिताऊँ। उनसे बातें करूँ। मैं उनसे कुछ माँगने नहीं जाता। बस उनके साथ थोडा समय बिताने, उनका प्यार पाने, और उन्हें अपना प्यार दिखाने।
यह है प्रार्थना अपने ईश्वर के साथ समय बिताना और उनके प्रेम से खुद को भरना जैसे येसु करते थे।
इससे आगे हम पढते हैं कि नाव तट से दूर चली जाती है और लहरों से डगमाने लगती है क्योंकि वायु प्रतिकूल थी। जब उनकी नाव डगमगा रही थी तो वचन कहता है येसु उन्हें देखते हैं। जब हमारे जीवन की नाव डगमगा रही होती है तब ईश्वर हम हमें देखता है। उसकी निगाहें हम पर निरंतर बनी रहती है। नबी इसायाह 49:16 ''तुम्हारी चारदीवारी मेरी आँखों के सामने रहती है।''
यहूदियों के लिए सागर और सागर का जल भय और विनाश का प्रतीक था क्योंकि समूद्र और उसकी प्रचंडता के सामने वे अपने को बेबस पाते थे। प्रभु येसु उसी आतंकित करने वाली लहरों पर चलते हुए आते हैं और यह संदेश देते हैं कि इंसान जिन ताकतों के सामने घुटने टेक देता है वे सारी ताकतें उनके कदमों तले हैं। दुनिया की सारी ताकतों के ऊपर येसु को अधिकार है। संत मत्ती 28:18 में प्रभु येसु कहते हैं — ''मुझे स्वर्ग और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।''
जब शिष्य येसु को पानी पर चलते हुए आते देखते हैं तो वे डर जाते तब येसु उनसे कहते हैं — ''ढारस रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।''
''मैं ही हूँ'' यह अभिव्यक्ति अपने आप में बहुत खास है। पवित्र सुसमाचार की मूल भाषा याने यूनानी में इसका अनुवाद है — एगो अमी। जब मूसा 3:14 में जब मूसा ने ईश्वर का नाम पूछा तो ईश्वर ने अपना नाम यही बताया था। आई आम। मैं ही हूँ। एगो एमी। जब प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा डरो मत एगो अमी तो वे उन्हें यह बतलाना चाह रहे थे कि वे वही ईश्वर है जो इ्स्राएलियों को लाल सागर में से सूखे पैर बाहर निकाल लाया था।
जी हाँ, प्यारे विश्वासियों यही है हमारे ईश्वर का नाम — ''एगो अमी'' ''मैं ही हूँ'' आज भी वे हमसे यही कहते हैं जब हम जिंदगी के तुफानों के बीच फँस जाते हैं, जब हम समस्याओं से विपदाओं से, परेशानियों से, बिमारियों से या किसी भी प्रकार की ताकतों से घिर जाते हैं — मैं ही हूँ। मैं ही हूँ जो तुम्हेें इन सब समस्याओं से बाहर निकाल सकता हूँ। मैं ही हूँ जो तुम्हें बचा सकता हूँ मैं ही हूँ जो तुम्हें चंगा कर सकता हूँ आदि। हमें ज़रूरत है तो बस अपनी कठिनाईयों में उन्हें पुकारने की जैसा कि शिष्य अपनी मुश्किल की घडी में चिल्ला उठते हैं। हमारा प्रभु पुकार सुनने वाला ईश्वर है। निर्गमन ग्रंथ 3:7 में प्रभु की वाणी मूसा को यह कहते हुए सुनाई दी — ''मैं ने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दशा देखी और अत्याचारियों से मुक्ति के लिए उसकी पुकार सुनी है।''
हमारे दु:ख—दर्दों में जब हम हमारे ईश्वर को पुकारते हैं तो वह हमारे दुखों के ऊपर चलते हुए, याने हमारे दुखों को कुचलते हुए हमारे पास आ जाता है जैसे आज के सुसमाचार में वह शिष्यों को भयभित करने वाले पानी के ऊपर चलते हुए उनके पास आता है।
पेत्रुस यह जानकर कि पानी पर चल कर आने वाला शख्स येसु हैं तो वह उनसे कहता है कि मुझे भी आपके पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दीजिए। पानी पर चलना अपने आप में एक असंभव व अद्भुत काम था परन्तु पेत्रुस को यह जानता था कि येसु में वह सामर्थ्य है यदि वे आदेश देंगे तो वह भी पानी पर चल सकेगा। तब येसु ने उससे कहा — ''आ जाओ'' वह नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए येसु की ओर आगे बढा। यह पर दो बातें गौर तलब हैं — 1. स्वर्ग और पृथ्वी पर जो अधिकार और शक्ति प्रभु येसु को मिली है यदि हम उनमें विश्वास करेंगे तो वे हमें अपनी उन शक्तियों में सहभागिता प्रदान करेंगे जैसा उन्होंने पेत्रुस के साथ किया । पानी पर चलने का सामर्थ्य पेत्रुस के पास नहीं था पर जब उसने येसु पर विश्वास प्रकट किया तो वह भी उनके समान पानी पर चलने लगा। येसु ने अपने सामर्थ्य उसे सहभागिता प्रदान की। 2. पेत्रुस तभी पानी पर चलने लगा जब वह नाव से बाहर आया। यदि हमें येसु के सामर्थ्य का अनुभव करना है तो हमें नाव से बाहर आना होगा। हमें जोखिम उठाना होगा। हमें निडर होना पडेगा। यदि हम डर कर अथवा संकोचवश यदि नाव में ही बैठे रहे तो हमारे जीवन में हम येसु के अद्भूत कार्यों को होते हुए नहीं देख पायेंगे।
पेत्रुस के मन में यह दृढ विश्वास था कि येसु के सामर्थ्य से वह पानी पर चल सकेगा। उसने अपनी निगाहें उन पर लगाई और पानी पर चलने लगा। परन्तु जब उसने अपनी निगाहें येसु से हटाई तो वह प्रचंड वायु को देखकर घबरा गया और डूबने लगा। जब तक हम हमारी निगाहें येसु पर लगाकर रखेंगे। दुनिया की कोई ताकत हमें डूबा न सकेगी। हम उन ताकतों, उन शक्तियों के ऊपर फतेह पाते हुए आगे बढते जायेंगे। परन्तु यदि हमने येसु पर से अपनी निगाहें हटाई और मुसिबतों को देखकर घबराये तो हम भी पेत्रुस के समान डूबने लगेंगे। प्रभु का वचन कहता है — '' तुम सारे हृदय से प्रभु का भरोसा करो; अपनी बुद्धी पर निर्भर मत रहो।'' (सूक्ति 3:5) पेत्रुस ने अपनी बुद्धी पर भरोसा किया तो वह डूबने लगा। पर जब वह डूबने लगा तो उसने येसु को पुकारा। जब पेत्रुस डूब रहा था तो उसके पास दो विकल्प थे— 1. वह वापस तैरकर नाव पर जा सकता था, चुंकि वह मछुआ था और तैरना अच्छी तरह जानता था। 2. येसु को पुकारना। उसने उस परिस्थति में येसु को पुकारना उत्तम समझा। वह चिल्ला उठा — ''प्रभु! मुझे बचाईये।'' संत ख्रीसोस्तम कहते हैं कि यह कहकर चिल्लाना पेत्रुस के पश्चाताप को दर्शाता है। पेत्रुस पाप के सागर में डूबते समय प्रभु को पुकारता है और प्रभु अपना हाथ बढाकर उसे पाप रूपी सागर से बाहर निकालते हैं। उसका उद्धार करते हैं। हम भी इस पाप भरे संसार में से येसु को पुकारें — ''येसु मुझे बचाईये'' जि हाँ हमें उद्धार की ज़रूरत है, हमें मुक्ति की ज़रूरत है, हमें छुटकारे की ज़रूरत है। हमारे हर संकट, हर विपदा में हम येसु को पुकारें येसु हमें बचाईये और वह अपना हाथ बढाकर हमें बचाऐंगे। आमेन।
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