covid-19 और इम्मानुएल का साथ
अगर आज आप इस लेख को पढ पा रहे हैं तो यकिन मानिये आप करोडों की उस आबादी का एक अंश हो जिसने इस बीते वर्ष 2020 में एक महान चमत्कार को अपने जीवन में घटित होते देखा है और अनुभव किया है। जि हाँ, ये न तो मज़ाक है और न ही कोई अतिश्योक्ति । आज मेरी और आपकी गिनती उन में नहीं हुई जो कोरोना का शिकार हुए और इस दुनिया से गुजर गये हैं। करोडों संक्रिमित हुए, लाखों मर गये, और हज़ारों आज की तारिख में भी संक्रिमित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर स्थानीय प्रशासन ने, मिडिया से लेकर इंटरनेट ने, सब ने हमें कोरोना के बारे में और उससे बचाव के विषय में बहुत कुछ बताया, पर साथ ही साथ हमारे अंदर बहुत ही ज्यादा नकारात्मकता भरने का काम भी किया। कईयों ने तो यह तक कह दिया था कि यह वाइरस हमारा वजूद ही मिटा देगा। एक पूर्ण असंमजस, अनिश्चितता , खौफ़ और भय के महौल में हम जी रहे हैं।
हमें शुरूआती दौर में लाखों लाशों के ढेर दियाये गये, कुछ सच्चे तो कुछ झूठे दावे किये गये। इलाज या दवाई तो इसकी कुछ है नहीं फिर भी अस्पतालों में लोगों को भर्ती किया जाता रहा और मरने वालों से ज्यादा लोग ठिक भी होते रहे, पर हमें डर से बाहर नहीं आने दिया गया। इस बात पर हमें यकीन नहीं करने दिया गया कि मनुष्य और सारी दुनिया को बनाने वाला ईश्वर जीवित है। हमें बारम्बार यह बताया गया कि इस महामारी का अभी तक कोई ईलाज नहीं मिला है याने कोई मानव निर्मित समाधान नहीं मिला है। मनुष्यों ने इसका इलाज अभी तक नहीं खोजा है। इसका टीका बनने तक हमें इस समस्या से दो-दो हाथ होते रहना पडेगा। याने कुल मिलाकर हमारा ज्यादा से ज्यादा ध्यान मानवीय समाधान की ओर केंद्रित किया गया। हमारे अंदर यह बात डाली जाती रही कि टीका ही इस महामारी का सफल व साकार समाधान होगा। यहाँ पर हम टीके का कोई विरोध नहीं कर रहे हैं, न ही इसको लेकर कोई शक है कि टीका काम करेगा। पर इसके पीछे कहीं न कहीं हमने ईश्वर की ताकत को कमजोर किया है या फिर उनकी शक्ति को नज़रअंदाज किया है। हमने ईश्वर के सामर्थ्य को टीके की तुलना में, अर्थात् मानवनिर्मित समाधान की तुलना में कम व छोटा आंका है। क्या आज अधिकतर लोग कोरोना के टीके के लिए बेसब्री से इंतजार नहीं कर रहे हैं? और क्या ऐसी उम्मीद नहीं लगा रहे हैं कि एक बार टीका आ जायेगा तो फिर सब ठीक हो जायेगा? पर क्या हम वास्तविकता से वाकिफ नहीं हैं? क्या जिन बिमारियों का इलाज हमारे हाथ में हैं, क्या उनकी दवाईयों से हमने सब लोगों को बचा लिया है? क्या कोई भी दवाई सौ प्रतिशत कारगर सिद्ध हुई है? नही ना ! तो फिर हम क्यों मानव और मानव निर्मित चीजों पर ईश्वर से अधिक विश्वास रख रहे हैं? क्या कोई दवाई, कोई टीका, कोई ईलाज़ हमारे सामर्थ्यवान ईश्वर से बढकर हो सकता है? क्या आज तक किसी ने समुद्र को दो भागों में बाॅंटकर रास्ता बनाया है? क्या किसी ने आदेश देकर तुफान को शाॅंत किया है? क्या किसी ने चार दिन से कब्र में पडे मुर्दे को जिलाया है? क्या मरूभूमि में जलस्रोत बहाने और तुफानों के रूख मोडने वाला ईश्वर हमें एक छोटे से वाइरस से बचाने में असमर्थ हो गया है? हरगीजह नहीं।
वह सामर्थ्यवान ईश्वर , एक बार फिर हमारे मानव इतिहास में दस्तक दे रहा है। वह एक बार फिर से हमारे जीवन में आने के लिए दरवाज़ा खटखटा रहा है। अनादिकाल से विद्यमान वचन आज हमारे व्यक्तिगत जीवन में फिर से देहधारी होने जा रहा है। जिस प्रकार से हम आज डरे-सहमे, चिंतित व घोर अनिश्चितता से घिरे हुए हैं, कल क्या होने वाला है किसी को पता नहीं वैसे ही मरियम और युसूफ चिंतित, डरे हुए व आगे क्या हाने वाला है उसको लेकर बिल्कुल अनिश्चित थे। पर एक ही बात थी जिसने उन दोनों में पूर्ण आश्वासन और एक गहरी उम्मीद बंधाई और वो बात थी ईश्वर के वचन पर, ईश्वर के वादे पर पूर्ण भरोसा व विश्वास करना। इसलिए एलिजबेथ मरियम को धन्य मानते हुवे कहती है - ‘‘धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कुछ कहा है वह पूरा हो जायेगा।’’ प्यारे मित्रों, मरियम ने विश्वास किया कि जो ईश्वर ने जो कहा है वह उनके जीवन में पूरा हो जायेगा और हम देखते हैं वह वास्तव में पूरा हो जाता है। मरियम ने कहा देखिये मैं प्रभु की दासी हूँ आपका कथन मुझमें पूरा हो जाये, वही क्षण था जब ईश्वर का वचन उनकी कोख में देह धारण कर लेता है, अदृष्य ईश्वर शरीर रूप में मानव बनकर इस धरा पर आ जाता है। यदि आज हम उस येसु पर पूर्ण रूप से विश्वास करें तो जितने भी वादे उन्होंने पवित्र बाइबल में हम से किये हैं वो सारे के सारे वादे ईश्वर हमारे जीवन में पूरा करेंगे।
प्यारे मित्रों इस ख्रीस्तजयन्ती पर येसु को अपने जीवन में आने दें। उन्हें अपने जीवन पर अधिकार लेने दें। हम ये जानें कि यह दुनिया उन्हीं के अधीन हैं और उनके नियंत्रण में हैं, न कि किसी वाइरस या और किसी दुनियाई ताकत के। थेस. 1ः17-18 में हम पढते हैं - ‘‘वह समस्त सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं और समस्त सृष्टि उन में ही टिकी हुई हैं।" इस महामारी के द्वारा ईश्वर सारी मानवजाती को नींद से जागने का अह्वान कर रहे हैं। यह मनुष्यों के लिए इस गलतफहमी से पर्दा हटाने का आह्वान है कि वे इस दुनिया को चला रहे हैं व विज्ञान और तकनिकी विकास व उपलब्धियों पर दम्भ भर कर यह सोचना कि उन्हें ईश्वर की अब कोई ज़रूरत नहीं। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘मुझ से अलग रहकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।’’ (यो. 15ः8)।
तो आईये प्यारे मित्रों हम इस संकट के समय में ईश्वर से जुडे रहें। हमें निराश, हताश, मायुस व दुःखी होने का कोई कारण नहीं हो सकता जब येसु हमारे बीच में मनुष्य बनकर आये हैं। उनका नाम 'एम्मानुएल' है जिसका अर्थ है ईश्वर हमारे साथ है। और संत पौलुस कहते हैं - ‘‘यदि ईश्वर हमारे साथ है तो कौन हमारे विरूद्ध हो सकता है?’’ जि हाँ, कोरोना, न भूख, भविष्य की चिंता और न ही मौत हमारे विरूद्ध हो सकते हैं। इस संदर्भ में मैं कहना चाहुँगा ईश्वर पर भरोसा रखने का आशय सिर्फ इस दुनिया में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना नहीं है। यदि हम हमारी शारीरिक मौत और भौतिक सुरक्षा तक ही सीमित हैं तो फिर हमें उसके लिए ईश्वर पर आश्रित रहने की ज़रूरत नहीं। पर यदि हम अनन्त जीवन के अभिलाषी हैं, यदि हम येसु के साथ हमेशा की जिंदगी चाहते हैं, वह जिंदगी जिसे येसु हमें दिलाने के लिए इस संसार में आया है, तो फिर हमें इस दुनिया और दुनिया की ताकतों के डर व भय से ऊपर उठने की ज़रूरत है। प्रभु का वचन कहता है - "उनसे नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किंतु आत्मा को नहीं मार सकते" (मत्ती 10ः28)।
हमारा मन क्यों कोविड जैसी समस्या के सामने विचलित व भयभित हो जाता है क्योंकि हमने हमारे ईश्वर की ताकत, उसकी महानता और उसकी महिमा को नहीं जाना है। यदि हम हमारे ईश्वर की ताकत को पहचानते और उस पर विश्वास करते तो कभी किसी भी चीज़ से नहीं डरते। प्यारे मित्रों चरनी में जन्मा बालक येसु कोरोना से, जो कि एक महज सुक्ष्म कण है, बहुत ही विशाल है। पवित्र बाइबल हमें बतलाती है - "तुम्हारा प्रभु ईश्वर, ईश्वरों का ईश्वर तथा प्रभुओं का प्रभु है। वह महान् शक्तिशाली तथा भीषण ईश्वर है।" (वि.वि. 10ः17) और 1 योहन 4ः4 में संत योहन कहते हैं - "बच्चो! तुम ईश्वर के हो और तुमने उन लोगों पर विजय पायी है, क्योंकि जो तुम में हैं, वह उस से महान् हैं, जो संसार में है।" जि हाँ, जो येसु हमारे अंदर हैं वो उस कोरोना से जो आज एक भयावह खौफ़ बनकर संसार में घुम रहा है, कई गुना महान है। कोविड-19 के मनुष्यों में संक्रमण का इतिहास सिर्फ एक साल पुराना है। और पवित्र बाइबल हमें बतलाती कि है प्रभु येसु आदि से विद्यमान वचन है। (संत योहन 1ः1 आदि में शब्द थाए शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था, वह आदि में ईश्वर के साथ था) कोरोना का प्रभाव कब तक रहेगा हमें नहीं पता पर हमारा ईश्वर अनन्तकाल तक जीवित रहता है ये हम जानते हैं। प्रकाशना 1ः8, और 18 में प्रभु का वचन कहता है - "जो है, जो था और जो आने वाला हैए वही सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर कहता है-आल्फा और ओमेगा ;आदि और अन्त, मैं हूँ। जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखोए, मैं। अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। " तो हमने देखा कि कोरोना जिसे हमने एक बहुत बडी समस्या मान लिया है, प्रभु येसु जैसीविशाल ताकत व सच्चाई के सामने बिलकुल शक्तिहीन, छोटा और नगण्य है।
इसलिए यह समय डरने,निराशा में गिरने, घबराने, और चिंता करने का नहीं पर उम्मीद विश्वास और भरोसे का समय है। हमारी उम्मीद, हमारा भरोसा, और हमारे विश्वास का स्रोत प्रभु येसु इस दुनिया में इसलिए मनुष्य बनकर आया कि वह हमें बहुतायत का जीवन दे सकें। संत योहन 10ः10 में वचन कहता है - "चोर केवल चुरानेए मारने और नष्ट करने आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करें. बल्कि परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।" जि हाँ, जहाँ एक तरफ कोरोना हमें मारने और नष्ट करने आया है वहीं प्रभु येसु हमें बहुतायत का जीवन देने आये हैं।
इसलिए इस संकट के समय में हम अपना मन छोटा न करें, चिंता से खुद को बोझिल न करें। हमारी आशा और उम्मीद हमारे मसीह पे सदा बनी रहे, जो हमारे साथ रहने के लिए इंसान बन गया है। वह जीवित, सर्वशक्तिमान और सब कुछ पर अधिकार रखने वाला ईश्वर है। यदि हमने अब तक कोरोना और उसके कहर के ऊपर अपना सारा ध्यान लगाया है, यदि हमारी निगाहें, हमारा मन और हमारा पूरा ध्यान कोरोना और उसकी तबाही की ओर था तो अब समय है, राहत का, शाँति का, सुरक्षा का, और चंगाई का। क्योंकि हमारा भरोसा किसी न दिखने वाली चीज़ पर नहीं परन्तु चट्टान जैसे मज़बूत, हमारी सुरक्षा व हमारी ढाल येसु मसीह पर हैं।
वह देहधारी शब्द जिसने मरियम की कोख से जन्म लिया उसे एम्मालुएल नाम दिया गया, जिसका अर्थ है -ईश्वर हमारे साथ है। इससे बडी उम्मीद व आशा और क्या हो सकती है? इस क्रिसमस पर प्रभु येसु एक बार फिर से इस वचन के द्वारा हमारे मानव इतिहास में अपनी सदा बनी रहने वाली उपस्थिति को सुनिश्चित कर रहे हैं, ताजा कर रहे हैं।
वह हमारे लिए मनुष्य बना है। उसने हमारी मानवता को, हमारी पीडाओं, दुखों को और दर्दों को एक मानवीय शरीर में झेला है। आज जब मानवता इस वैश्विक महामारी से कराह रही है तो वह येसु हमसे दूर नहीं हैं। वो हमारी वेदनाओं में, हमारी निस्सहाय स्थिति में, हमारी चिंताओं में, हमारी गरीबी में, कोरोना संक्रमण में, मौत के पल में, आर्थिक संकट में हमारे करीब हैं, हमारे साथ है। वो हमारे दुखों से जुदा नहीं बल्कि हमारे दुखों में शामिल है। वचन कहता है नबी इसायाह 53ः4 - परन्तु वह हमारे ही रोगों को अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था
हम उनकी ओर देख ही नहीं पा रहे हैं। वो हमारे सारे रोगों दुखों को अपने कंधों पर लादकर कलवारी पर जाकर अपनी मौत के साथ उन्हें नष्ट करने इस दुनिया में आया है। हमें ज़रूरत है अपने विश्वास की आँखों को खोलने की। वो हमारे घरों में, हमारे दफ्तर में, हमारे स्कूलों में, हमारे अस्पतालों में हर जगह है। हम अपनी निगाहें उनकी ओर लगायें, समस्याओं की ओर नहीं।
और अंत में कोरोना से नहीं डरने का आशय उससे सुरक्षा व बचाव के साधनों को नज़रअंदाज करना व लापरवाही का जीवन जीना नहीं है। प्रभु येसु ने स्पष्ट रूप से कहा है - जो ईश्वर का है उसे ईश्वर को दो और जो केसर का है उसे कैसर को दो। तो हमें सबसे पहले अपना जीवन, अपनी उम्मीद, अपनी आषा व अपना भरोसा व विश्वास ईश्वर पर रखना है और इसके साथ ही जो केसर का है उसे केसर को देना है अर्थात् सुरक्षा के सारे कायदे-कानुन व एहतियात के सारे काम जो हमें कॉरोना से बचाव के लिए करना है, हमें ईमानदारी से करते रहना है। और अपने जीवन द्वारा येसु को महिमा देते रहना है। एम्मानुएल हर एक विश्वासी के जीवन में आकर सारे दुःख, चिंता और भय को दूर करे व आपके जीवन का साथी बन आपके सथा सदा रहे।
फा. प्रीतम वसुनिया
सच्चीदानन्द गुरूकुल देवास
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